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मुम्बई के मुख्य कारोबारी क्षेत्र में चाय की एक दुकान है। करीबन 40 वर्ष पुरानी है। इसको शुरू करने वाले मेवाड़ से आये रामसिंह सिर्फ 7 वी पढ़े थे। व्यापारिक क्षेत्र होने की वजह से चाय की अच्छी खासी माँग रहती है।
खैर… दुकान ऐसी चली की रामसिंह जी ने अपने पुत्र को लंदन भेजा और MBA पढ़वाया।
लंदन से लौटकर पुत्र ने किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में मासिक 45 हजार के वेतन पर नौकरी प्रारम्भ की।
मेवाड़ में अपनी किसी पुश्तैनी जमीन के फेर में रामसिंह को गाँव जाना पड़ा। उन्होंने 7 दिन के लिए पुत्र से दुकान देखने को कहा। बड़ी हील हुज्जत के बाद आखिर पुत्र तैयार हुआ ।
दुकान में चाय बनाने वाले से लेकर बाजार की हर दुकान तक चाय बेचने वाले ऐसे कुल मिलाकर 12 व्यक्ति कार्यरत थे।
औसतन रोज की 10000 की बिक्री थी। अब लड़का MBA पढ़ा था, उसने तुरंत हिसाब लगाया तो पता चला की सारे खर्च निकाल कर करीबन 75 हजार रुपये हर मास की आमदनी हो रही है।
उसने कंपनी से त्यागपत्र दिया और दुकान में ही वडा पाव (मुम्बई का सबसे सुलभ और प्रसिद्ध नाश्ता) का काउंटर प्रारम्भ किया।
आज करीबन दुकान में मासिक डेढ़ से दो लाख मासिक आय है।
कल बेंगलुरु में कुछ डिग्री धारी छात्रों ने प्रधानमंत्री जी की रैली के पहले पकौड़े तल कर विरोध प्रदर्शन किया।
इन्हें रामसिंह जैसों की कहानी या तो पता नही,
या ये डिग्री को कार्य से नही स्टेटस से जोड़ते है।
आज मुम्बई, दिल्ली, बेंगलुरु जैसे शहरों में चाय की दुकान से लेकर फल तरकारी बेचने वाले तक महीने के हजारों कमाते है।
यहाँ कहने का ये अर्थ बिल्कुल नही की हर कोई ठेला लगा ले बल्कि स्वरोजगार के सैंकड़ो कार्य की तरफ ध्यान दिलाना है।
छोटे छोटे व्यापार जैसे शहरों के निकटवर्ती कृषि क्षेत्रो से फल, फूल, तरकारी, दूध, अनाज की सप्लाई ,जैसे सैंकड़ो मार्ग है।
इन सबमें न तो ज़्यादा पूँजी लगती है । हां ये जरूर स्टेटस के कार्य नही गिने जाते ।
सिर्फ इतना बताना जरूरी है की ऐसे स्तरहीन कार्य करने वाले बहुत लोगों को मैंने अपने बच्चों को विदेश पढ़ने भेजते और उनके विवाह पाँच सितारा होटलों में करते देखा है।
युवा वर्ग को कार्य को स्तरहीन गिन कर उसे छोड़ने की बजाय उसे नए रूप में प्रस्तुत करना चाहिए । नई तकनीक के प्रतिष्ठान ,पैकिंग इत्यादि प्रारम्भ करना चाहिए ।
आखिर मैकडोनाल्ड, KFC, पिज़्ज़ा हट भी तो अंग्रेज़ी पकौड़े ही तो बेचते है ।