नेहरू और शिक्षा नीति–
जब संसद में नेहरू का स्तुति गान गाया जा रहा था तभी मेरा ध्यान नेहरु के उन पापों की ओर गया जिनकी कीमत हम आजतक चुका रहे हैं.
.
भारतीय शिक्षा का विकृतीकरण नेहरू की एक मुख्य देन है. आइए इसपर विचार करें…
नेहरु के शिक्षा मंत्री –
11 नवम्बर 1888 को पैदा हुए मक्का में, वालिद का नाम था ” मोहम्मद खैरुद्दीन” और अम्मी मदीना (अरब) की थीं। नाना शेख मोहम्मद ज़ैर वत्री ,मदीना के बहुत बड़े विद्वान थे। मौलाना आज़ाद अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय हेरात से भारत आए थे। ये सज्जन जब दो साल के थे तो इनके वालिद कलकत्ता आ गए। सब कुछ घर में पढ़ा और कभी स्कूल कॉलेज नहीं गए। बहुत ज़हीन मुसलमान थे। इतने ज़हीन कि इन्हे मृत्युपर्यन्त “भारत रत्न ” से भी नवाज़ा गया। इतने काबिल कि कभी स्कूल कॉलेज का मुंह नहीं देखा और बना दिए गए भारत के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री। इस शख्स का नाम था “मौलाना अबुल कलम आज़ाद “।
इन्होने इस बात का ध्यान रखा कि विद्यालय हो या विश्वविद्यालय कहीं भी इस्लामिक अत्याचार को ना पढ़ाया जाए. इन्होने भारत के इतिहास को ही नहीं अन्य पुस्तकों को भी इस तरह लिखवाया कि उनमे भारत के गौरवशाली अतीत की कोई बात ना आए. आज भी इतिहास का विद्यार्थी भारत के अतीत को गलत ढंग से समझता है.
हमारे विश्वविद्यालयों में – गुरु तेग बहादुर, गुरु गोबिंद सिंह, बन्दा बैरागी, हरी सिंह नलवा, राजा सुहेल देव पासी, दुर्गा दास राठौर के बारे में कुछ नहीं बताया जाता..
आज की तारीख में इतिहास हैं। 1 ) हिन्दू सदैव असहिष्णु थे 2) मुस्लिम इतिहास की साम्प्रदायिकता को सहानुभूति की नज़र से देखा जाये।
.
भारतीय संस्कृति की रीढ़ की हड्डी तोड़ने तथा लम्बे समय तक भारत पर राज करने के लिए 1835 में ब्रिटिश संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त करने के लिए मैकाले ने क्या रणनीति सुझायी थी तथा उसी के तहत Indian Education Act- 1858 लागु कर दिया गया।
अंग्रेज़ों ने ” Aryan Invasion Theory” द्वारा भारतीय इतिहास को इसलिए इतना तोडा मरोड़ा कि भारतियों कि नज़र में उनकी संस्कृति निकृष्ट नज़र आये और आने वाली पीढ़ियां यही समझें कि अँगरेज़ बहुत उत्कृष्ट प्रशासक थे।
आज जो पढाया जा रहा है उसका सार है –
1) हिन्दू आर्यों की संतान हैं और वे भारत के रहने वाले नहीं हैं। वे कहीं बाहर से आये हैं और यहाँ के आदिवासियों को मार मार कर तथा उनको जंगलों में भगाकर उनके नगरों और सुन्दर हरे-भरे मैदानों में स्वयं रहते हैं।
2) हिन्दुओं के देवी देवता राम, कृष्ण आदि की बातें झूठे किस्से कहानियां हैं। हिन्दू महामूर्ख और अनपढ़ हैं।
3) हिन्दुओं का कोई इतिहास नहीं है और यह इतिहास अशोक के काल से आरम्भ होता है।
4) हमारे पूर्वज जातिवादी थे. मानवता तो उनमे थी ही नहीं..
5) वेद, जो हिन्दुओं की सर्व मान्य पूज्य पुस्तकें हैं ,गड़रियों के गीतों से भरी पड़ी हैं।
6) हिन्दू सदा से दास रहे हैं –कभी शकों के, कभी हूणों के, कभी कुषाणों के और कभी पठानों तुर्कों और मुगलों के।
7) रामायण तथा महाभारत काल्पनिक किस्से कहानियां हैं।
15 अगस्त 1947, को आज़ादी मिली, क्या बदला ????? रंगमंच से सिर्फ अंग्रेज़ बदले बाकि सब तो वही चला। अंग्रेज़ गए तो सत्ता उन्ही की मानसिकता को पोषित करने वाली कांग्रेस और नेहरू के हाथ में आ गयी। नेहरू के कृत्यों पर तो किताबें लिखी जा चुकी हैं पर सार यही है की वो धर्मनिरपेक्ष कम और मुस्लिम हितैषी ज्यादा था। न मैकाले की शिक्षा नीति बदली और न ही शिक्षा प्रणाली। शिक्षा प्रणाली जस की तस चल रही है और इसका श्रेय स्वतंत्र भारत के प्रथम और दस वर्षों (1947-58) तक रहे शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलम आज़ाद को दे ही देना चाहिए बाकि जो कसर बची थी वो नेहरू की बिटिया इन्दिरा गाँधी ने तो आपातकाल में विद्यालयों में पढ़ाया जाने वाला इतिहास भी बदल कर पूरी कर दी ।
जिस आज़ादी के समय भारत की 18.73% जनता साक्षर थी उस भारत के प्रधानमंत्री ने अपना पहला भाषण “tryst With Destiny” अंग्रेजी में दिया था आज का युवा भी यही मानता है कि यदि अंग्रेजी न होती तो भारत इतनी तरक्की नहीं कर पाता। और हम यह सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि पता नहीं जर्मनी, जापान,चीन इजराइल ने अपनी मातृभाषाओं में इतनी तरक्की कैसे कर ली।
सुमेर चंद जैन