#मांकादुख
बात आजादी के पहले की हैं, इंफाल के पहाडी प्रदेश में 70 वर्ष की एक बुढियां और उसका बेटा रहते थें। उन्ही दिनों नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने हर घर से एक व्यक्ति के सेना में भर्ती होने की अपील की थी, ताकि देश को अग्रेजी शासन से मुक्ति दिलाई जा सके।
बुढि मां की इच्छा थी कि उसका बेटा भी देश के काम आये, मां की इच्छा को जानते हुए पुत्र ने ख़ुशी-ख़ुशी सेना में भर्ती होने की ठानी। अगले ही दिन वह युवक नेताजी की फौज में भरती होने के लिए रंगरूटों की पहली पंक्ति में खडा था।
कर्नल के पूछने पर उसने अपना नाम अर्जूनसिंह तथा आयु 20 वर्ष बतायी, जब कर्नल को पता चला कि वह उसकी मां को इकलोता पुत्र हैं तो कर्नल ने उसे सेना में भर्ती करने से इनकार कर दिया। क्योंकि नेताजी की आज्ञा थी घर के अकेले युवक को भर्ती न किया जायेे।
उस युवक ने कर्नल से बहुत अनुनय विनय किया कि वे उसे सेना में भर्ती कर लें परन्तु नेताजी की आज्ञा टाली नही जा सकती थी। निराश युवक घर लोट गया। पुत्र के सेना में भर्ती न होने से मां को बहुत दुख हुआ और इस दुख मे वे परलौक पधार गयी।
दुसरे दिन युवक फिर रंगरूटों की पंक्ति में जाकर खडा हो गया। कर्नल को जब यह पता चला कि युवक को सेना में भर्ती न किये जाने के दुख में उसकी मां यह कहकर मर गयी कि में तुम्हारी मां नही, मैं तो तुम्हारें मार्ग की बाधा हूं तुम्हारी असली मां तो भारतमाता है। तो कर्नल को बहुत दुख हुआ। उसने युवक की वीर माता को सलामी देकर श्रद्धांजली देकर युवक को सेना में भती कर कप्तान नियुक्त कर लिया।
Satish Shashank