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सम्वत् दहन-शिव के अर्थों के विषय में एक प्रश्न था-सम्वत् के अन्त में उसे क्यों जलाते हैं?
अघासु हन्यते गावोऽर्जुन्योः पर्युह्यते॥ (ऋग्वेद १०/८५/१३)
मघासु हन्यन्ते गावः फाल्गुनीषु व्युह्यते (अथर्ववेद १४/१/१३, कौषीतकि सूत्र ७५/५)
पहले माघ मास में वर्ष का अन्त होता था। अतः इसको अघा भी कहते हैं-अघाना-पूर्ण या सन्तुष्ट होना। राम कथा जे सुनत अघाहीं रस विशेष जाना तिन्ह नाहीं॥
सम्वत्सर चक्र यज्ञ का चक्र है जिसमें सभी उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन होता है, जैसे कृषि ऋतु चक्र से सम्बन्धित है। ज्ञानयज्ञ आदि भी इसी चक्र में होते हैं। यज्ञ का पूर्ण प्रतीक गौ है। इसमें यज्ञ के ३ तत्त्व हैं-गति या क्रिया (अंग्रेजॊ का Go), क्रिया का स्थान, उत्पादन। इसी अर्थ में पृथ्वी भी गौ है।
एक अन्य प्रकार से यज्ञ अग्नि भी है-यह यज्ञ में प्रयुक्त पदार्थ या उसका परिवर्तित रूप में उत्पादन है।
अतः वर्ष की यज्ञ रूप अग्नि जब पूर्ण होती है, वह गौ रूप यज्ञ की पूर्णता है। अग्नि भी पूरी होती है, अतः अग्नि को पुनःजलाते हैं। जैसे प्रतिदिन भोजन बनाने के लिये चूल्हा जलाते हैं।

अरुण उपाध्याय

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

महाभारत में कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछा “मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया, क्या ये मेरा अपराध था कि मेरा जन्म एक अवैध बच्चे के रूप में हुआ?

दोर्णाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना कर दिया क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय नही मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था?

परशुराम जी ने मुझे शिक्षा दी साथ ये शाप भी दिया कि मैं अपनी विद्या भूल जाऊंगा क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय समझते थे।

भूलवश एक गौ मेरे तीर के रास्ते मे आकर मर गयी और मुझे गौ वध का शाप मिला?

द्रौपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित किया गया, क्योंकि मुझे किसी राजघराने का कुलीन व्यक्ति नही समझा गया।

यहां तक कि मेरी माता कुंती ने भी मुझे अपना पुत्र होने का सच अपने दूसरे पुत्रों की रक्षा के लिए स्वीकारा।

मुझे जो कुछ मिला दुर्योधन की दया स्वरूप मिला!

तो क्या ये गलत है कि मैं दुर्योधन के प्रति अपनी वफादारी रखता हूँ..??

श्री कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले-

“कर्ण, मेरा जन्म जेल में हुआ था। मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु मेरा इंतज़ार कर रही थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ उसी रात मुझे मेरे माता-पिता से अलग होना पड़ा। तुम्हारा बचपन रथों की धमक, घोड़ों की हिनहिनाहट और तीर कमानों के साये में गुज़रा।

मैने गायों को चराया और गोबर को उठाया।

जब मैं चल भी नही पाता था तो मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए।

कोई सेना नही, कोई शिक्षा नही, कोई गुरुकुल नही, कोई महल नही, मेरे मामा ने मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा।

जब तुम सब अपनी वीरता के लिए अपने गुरु व समाज से प्रशंसा पाते थे उस समय मेरे पास शिक्षा भी नही थी। बड़े होने पर मुझे ऋषि सांदीपनि के आश्रम में जाने का अवसर मिला।

तुम्हे अपनी पसंद की लड़की से विवाह का अवसर मिला मुझे तो वो भी नही मिली जो मेरी आत्मा में बसती थी।

मुझे बहुत से विवाह राजनैतिक कारणों से या उन स्त्रियों से करने पड़े जिन्हें मैंने राक्षसों से छुड़ाया था!

जरासंध के प्रकोप के कारण मुझे अपने परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रान्त मे समुद्र के किनारे बसाना पड़ा। दुनिया ने मुझे कायर कहा।

यदि दुर्योधन युद्ध जीत जाता तो विजय का श्रेय तुम्हे भी मिलता, लेकिन धर्मराज के युद्ध जीतने का श्रेय अर्जुन को मिला! मुझे कौरवों ने अपनी हार का उत्तरदायी समझ।

हे कर्ण! किसी का भी जीवन चुनोतियों से रहित नही है। सबके जीवन मे सब कुछ ठीक नही होता। कुछ कमियां अगर दुर्योधन में थी तो कुछ युधिष्टर में भी थीं।

सत्य क्या है और उचित क्या है? ये हम अपनी आत्मा की आवाज़ से स्वयं निर्धारित करते हैं!

इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है,

इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारा अपमान होता है,

इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन होता है।

फ़र्क़ सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हम उन सबका सामना किस प्रकार करते हैं..!!

अतिसुंदर अतिसुंदर अतिसुंदर !
राधे राधे!
सुप्रभात !