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भक्ति मार्ग की कथा
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एक बार लक्ष्मी और नारायण धरा पर घूमने आए,कुछ समय घूम कर वो विश्राम के लिए एक बगीचे में जाकर बैठ गए।नारायण आंख बंद कर लेट गए,लक्ष्मी जी बैठ नज़ारे देखने लगीं।
थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा एक आदमी शराब के नशे में धुत गाना गाते जा रहा था,उस आदमी को अचानक ठोकर लगी,
तो उस पत्थर को लात मारने और अपशब्द कहने लगा,लक्ष्मी जी को बुरा लगा, अचानक उसकी ठोकरों से पत्थर हट गया,वहां से एक पोटली निकली उसने उठा कर देखा तो उसमें हीरे जवाहरात भरे थे,वो खुशी से नाचने लगा और पोटली उठा चलता बना।
लक्ष्मी जी हैरान हुई,उन्होंने पाया ये इंसान बहुत झूठा,चोर और शराबी है।सारे ग़लत काम करता है,इसे भला ईश्वर ने कृपा के काबिल क्यों समझा,उन्होंने नारायण की तरफ देखा,मगर वो आंखें बंद किये मगन थे।
तभी लक्ष्मी जी ने एक और व्यक्ति को आते देखा,बहुत ग़रीब लगता था,मगर उसके चेहरे पे तेज़ और ख़ुशी थी,कपडे साफ़ मगर पुराने थे,तभी उससे व्यक्ति के पांव में एक बहुत बड़ा शूल यानि कांटा घुस गया,ख़ून के फव्वारे बह निकले, उसने हिम्मत कर उस कांटे को निकाला,पांव में गमछा बाँधा,प्रभु को हाथ जोड़ धन्यवाद दे लंगड़ाता हुआ चल दिया।इतने अच्छे व्यक्ति की ये दशा।उन्होंने पाया नारायण अब भी आँख बंद किये पड़े हैं मज़े से।
उन्हें अपने भक्त के साथ ये भेद भाव पसंद नहीं आया,उन्होंने नारायण जी को हिलाकर उठाया,नारायण आँखें खोल मुस्काये।लक्ष्मी जी ने उस घटना का राज़ पूछा।तो नारायण ने जवाब में कहा।

लोग मेरी कार्यशैली नहीं समझे।
मैं किसी को दुःख या सुख नहीं देता वो तो इंसान अपनी करनी से पाता है।
यूं समझ लो मैं एक accountant हूं।
सिर्फ ये हिसाब रखता हूं।
किसको किस कर्म के लिए कब या किस जन्म में अपने पाप या पुण्य अनुसार क्या फल मिलेगा।
जिस अधर्मी को सोने की पोटली मिली, दरअसल आज उसे उस वक़्त पूर्व जन्म के सुकर्मों के लिए,पूरा राज्य भाग मिलना था मगर उसने इससे जन्म में इतने विकर्म
किये कि पूरे राज्य का मिलने वाला खज़ाना घट कर एक पोटली सोना रह गया।
और उस भले व्यक्ति ने पूर्व जन्म में इतने पाप करके शरीर छोड़ा था कि आज उसे शूली यानि फांसी पर चढ़ाया जाना था मगर इस जन्म के पुण्य कर्मो की वजह से शूली एक शूल में बदल गई।

अर्थात
ज्ञानी को कांटा चुभे तो उसे कष्ट होता है, दर्द तो होता,मगर वो दुखी नहीं होता।दूसरों की तरह वो भगवान को नहीं कोसता, बल्कि हर तकलीफ को प्रभु इच्छा मान इसमें भी कोई भला होगा मानकर हर कष्ट सह कर भी प्रभु का धन्यवाद करता है।

तो आगे से आप भी किसी तकलीफ में हो तो विचारिये?
सिर्फ़ कष्ट में हैं या दुःखी हैं।

सच्चे दिल से प्रभु पर विश्वास से आपकी आधी सज़ा माफ़ हो जाती है और बाक़ी तकलीफ सहने के लिए परमात्मा आपको उसे ख़ुशी ख़ुशी झेलने की हिम्मत और मार्गदर्शन देते हैं।
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Dev Sharma

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बहुत देर हो गई ……………
संध्या का समय था। कलकत्ते के एक बड़े जमींदार पश्चिमी लिबास पहने हाथ में एक छड़ी घुमाते अपने विशाल संगमरमरी महल की सीढियों पर राजसी अदाऔर मस्ती से कदम रखते हुए उतर रहे थे,

अपनी कार में बैठकर संध्या की टहल के लिये।

वह अपने महल के भीतरी भाग से निकलने ही वाले थे कि उन्हें एक स्त्री की आवाज सुनायी दी जो उनके महल में उनके परिवार के वस्त्रों को धोने के लिये ले जाती थी,
यह एक सामान्य बात ही थी। जमींदार साहब को देखते ही वह एक ओर हट गयी और झुककर अभिवादन किया।

जमींदार साहब ने भी अभिवादन स्वीकार किया राजसी अंदाज में।
वह तनिक सा ही आगे बढ़े थे कि स्त्री ने आवाज लगायी –
“रानी साहिब ! धोने के कपड़े दिलवा दीजिये, बहुत देर हो गयी।” “बहुत देर हो गयी।”

जमींदार साहब के पैर थम गये, उन्होंने आकाश की ओर देखा, एक बिजली सी कौंधी, क्षण से भी कम समय में एक नया जन्म हो गया..
“बहुत देर हो गयी।”

वह वापिस पलटे और प्रसाद के भीतर चले गये, अब कहीं नहीं जाना,बहुत देर हो गयी।

वह कपड़े धोने वाली स्त्री ‘प्रथम गुरु’ हो गयी, “गुरु” क्योंकि उसने चेता दिया।

विस्मृत को स्मृत करा दिया।
स्वरुप का बोध करा दिया।

उस स्त्री को नहीं पता कि आज उसके सामान्य शब्दों ने क्या प्रभाव दिखाया है,उसे बोध ही नहीं और यही तो मेरे प्रभु की अहैतुकी कृपा है।

यथाशीघ्र उन्होंने सब कुछ परिजनों के सुपुर्द किया और एक सफ़ेद धोती पहिनकर आ गये
श्रीधाम वृन्दावन ! ठाकुरजी के पास।

ठाकुरजी के अतिरिक्त कुछ न सुहावे,
ब्रजरज में ही पड़ा रहना भावे,
यही स्मरण रहे कि..
“बहुत देर हो गयी।”

उन अकारण करुणा वरुणालय को तो ऐसे ही पागल भाते हैं और उन्हें कृपाकर बुलाते भी तो वही हैं;

अन्यथा किसकी सामर्थ्य हैं जो स्वयं उन तक पहुँच पावे।

नेह भरा बंधन खूब निभा।

अपने अंतिम समय में उन संत की ऐसी ही इच्छा रही कि मेरे देह-त्याग के उपरांत भी मेरी इस देह को रस्सी से बाँधकर श्रीधाम वृन्दावन की कुन्ज-गलियों में खींचना ताकि संस्कार से पहिले इसमें भी खूब ब्रज-रज लग जावे और यह अधम देह भी ब्रजरज के स्पर्श से पवित्र हो जावे।

श्रीकिशोरीजी की न जाने कब कृपा हो जावे, न जाने कब कौन सा “शब्द/अक्षर” आपके मन-प्राणों को झकझोर कर रख दे,

न जाने कब अपने वास्तविक स्वरुप की स्मृति हो आवे,
न जाने कब अनायास ही गुरु मिल जावें,
न जाने कब हमें साक्षात श्रीयुगल-किशोर मिल जावें…….😭😭
जय जय श्री रराधेकृष्णजी🌺
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Sadhna sharma

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क्या आपके पास भगवद-गीता है ?
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अगर नहीं है तो जरुर लीजिये, ये आपके जीवन से जुडी कई समस्याओं और प्रश्नों को हल कर सकती है ।
गीता के कुछ महत्वपूर्ण श्लोक जो आपके कई प्रश्नों को सुलझा सकते हैं ?
१. हम चिंता और शोक से कैसे छुटकारा पा सकते हैं ? – भ.गी. 2.22
२. शांति प्राप्त करने के लिए स्थिर मन और अलौकिक बुद्धि कैसे प्राप्त किया जाये ? – भ.गी.2.66
३. भगवान को अर्पित भोजन ही क्यों खाया जाये ? – भ.गी. 3.31
४. अपने निर्धारित कर्तव्यों का पालन करते हुए भक्ति कैसे की जाये ? – भ.गी. 3.43
५. जीवन की पूर्णता को कैसे पाया जाये ? – भ.गी. 4.9
६. धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को कैसे पाएं ? – भ.गी. 4.11
७. आध्यात्मिक गुरु का आश्रय कैसे लें ? – भ.गी. 4.34
८. क्या एक पापी भी दुखों के सागर को पार सकता है ? – भ.गी. 4.36
९. मनुष्य दुखों के जाल में क्यों फंसा हुआ है ? – भ.गी. 5.22
१०. शान्ति का सूत्र क्या है ? – भ.गी. 5.29
११. मन किसका मित्र है और किसका शत्रु ? – भ.गी. 6.6
१२. क्या मन को नियंत्रित करके शांति प्राप्त की जा सकती है ? – भ.गी. 6.7
१३. चंचल मन को कैसे नियंत्रित करें ? – भ.गी. 6.35
१४. पूर्ण ज्ञान क्या है ? – भ.गी. 7.2
१५. मुक्ति कैसे पाएं ? – भ.गी. 7.7
१६. माया को वश में करने का रहस्य क्या है ? – भ.गी. 7.14
१७. पाप-कर्म क्या हैं ? उन्हें कैसे हटाया जाये ? – भ.गी. 9.2
१८. हमारा परम-लक्ष्य क्या होना चाहिए ? – भ.गी. 9.18
१९. क्या कोई व्यक्ति अपनी इच्छा के ग्रह पर पहुँच सकता है ? – भ.गी. 9.25
२०. क्या भगवान हमारे द्वारा अर्पित भोजन ग्रहण करते हैं ? – भ.गी. 9.26
२१. इस भौतिक संसार में आनंद पाने के माध्यम क्या हैं ? – भ.गी. 9.34
२२. इस मनुष्य जन्म की पूर्णता क्या है ? – भ.गी. 10.10
२३. हमारे हृदयों में संचित मल को कैसे साफ़ किया जाये ? – भ.गी. 10.11
२४. परम पुरुषोत्तम भगवान कौन हैं ? – भ.गी. 10.12-13
२५. भगवान कृष्ण ने अर्जुन को विश्व-रूप क्यों दिखाया ? – भ.गी. 11.1
२६. भगवद-गीता का सार क्या है और हमारे दुखों का कारण क्या है ? – भ.गी. 11.55
२७. रजोगुण एवं तमोगुण पर विजय कैसे प्राप्त करें ? – भ.गी. 14.26
२८. क्या हम भगवान को देख, सुन और उनसे बात कर सकते हैं ? – भ.गी. 15.7
२९. जीव शरीर छोड़ते समय साथ में क्या ले जाता है ? – भ.गी. 15.8
३०. भगवान को कैसे पाया जाये ? – भ.गी. 18.66
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શ્રી કૃષ્ણ ભગવાન નું જીવન દર્શન :

શ્રીકુષ્ણ વાસુદેવ યાદવ

જન્મદિવસ
૨૦/૨૧ -૦૭ ઈસવીસન પૂર્વે ૩૨૨૬ ના રોજ રવી/સોમવાર

તિથી
વર્ષ સંવત ૩૨૮૫ શ સંવત ૩૧૫૦ શ્રાવણ વદ આઠમ [ જેને જન્માષ્ટમી તરીકે ઉજવીએ છીએ )

નક્ષત્ર સમય
રોહિણી નક્ષત્ર રાત્રીના ૧૨ કલાકે મધ્ય રાત્રી

રાશી-લગ્ન
વૃષભ લગ્ન અને વૃષભ રાશી

જન્મસ સ્થળ
રાજા કંસ ની રાજધાની મથુરા માં તાલુકો જીલ્લો મથુરા ઉત્તર પ્રદેશ

વંશ – કુળ
ચંદ્ર વંશ યદુકુળ ક્ષેત્ર – માધુપુર

યુગ મન્વન્તર
દ્વાપર યુગ સાતમો વૈવસ્વત મન્વન્તર

વર્ષ
દ્વાપર યુગનો ૮,૬૩૮૭૪ વર્ષ ૪માસ્ અને ૨૨મ દિવસે

માતા
દેવકી [ રાજા કંસના સગા કાકા દેવરાજ ની પુત્રી જેને કંસ એ પોતાની બહેન માની હતી

પિતા
વાસુદેવ [ જેમનું લાડકું નામ હતું આંનદ દુંદુભી ]

પાલક માતા-પિતા
મુક્તિ દેવી નો અવતાર જશોદા, વરુદ્રોનના અવતાર ગોવાળોના રાજા નંદ

મોટા ભાઈ
વસુદેવ અને રોહિણી ના પુત્ર શેષ નો અવતાર – શ્રી બલરામજી

બહેન
સુભદ્રા

ફોઈ
વસુદેવના બહેન પાંડવોની માતા કુંતી

મામા
કાલનેમિ રાક્ષસનો અવતાર મથુરાના રાજા કંસ

બાળસખા
સાંદીપનીઋષિ આશ્રમના સહપાઠી સુદામા

અંગત મિત્ર
અર્જુન

પ્રિય સખી
દ્રૌપદી

પ્રિય પ્રેમિકા
સાક્ષાતભક્તિ નો અવતાર રાધા

પ્રિય પાર્ષદ
સુનંદ

પ્રિય સારથી
દારુક

રથનું નામ
નંદી ઘોષ જેની સાથે શૈબ્ય , મેઘ્પુષ્ય બલાહક , સુગ્રીવ એમ ચાર અશ્વો જોડતા હતા

રથ ઉપરના ધ્વજ
ગરુડધ્વજ , ચક્રધ્વજ , કપિધ્વજ

રથના રક્ષક
નૃસિંહ ભગવાન

ગુરુ અને ગુરુકુળ

સાંદીપની ઋષિ , જ્ઞ્ગાચાર્ય ગુરુકુળ અવંતી નગર હતું

પ્રિય રમત
ગેડી દડો , ગિલ્લીદંડા , માખણ ચોરી , મ્તુંક્ડીઓ ફોડવી , રાસલીલા

પ્રિય સ્થળ
ગોકુળ, વૃંદાવન , વ્રજ , ધ્વારકા

પ્રિય વૃક્ષ
કદંબ, પીપળો, પારીજાત, ભાંડીરવડ

પ્રિય શોખ
વાંસળી વગાડવી , ગયો ચરાવવી

પ્રિય વાનગી
તાંદુલ , દૂધ દહીં છાશ માખણ

પ્રિય પ્રાણી
ગાય , ઘોડા

પ્રિય ગીત
શ્રીમદ ભગવદ ગીતા , ગોપીઓ ના ગીતો , રાસ

પ્રિય ફળ
હણે એને હણવામાં કોઈ પાપ નથી , કર્મ કરો ફળની આશા રાખશો નહી

પ્રિય હથીયાર
સુદર્શન ચક્ર

પ્રિય સભામંડપ
સુધર્મા

પ્રિય પીંછુ
મોરપિચ્છ

પ્રિય પુષ્પ
કમળ અને કાંચનાર

પ્રિય ઋતુ
વર્ષા ઋતુ , શ્રાવણ મહિનો , હિંડોળાનો સમય

પ્રિય પટરાણી
રુક્ષ્મણી જી

પ્રિય મુદ્રા
વરદમુદ્રા, અભ્યમુદ્રા ,એક પગ પર બીજા પગની આંટી મારીને ઉભા રેહવું

ઓળખ ચિહ્ન
ભ્રુગુરુશીએ છાતીમાં લાત મારી તે શ્રીવ્ત્સનું ચિહ્ન

વિજય ચિહ્ન
પંચજન્ય શંખનો નાદ

મૂળ સ્વરૂપ
શ્રી અર્જુઉન ને દિવ્ય ચક્ષુ આપી ગીતામાં દર્શન આપ્યા તે વિશ્વ વિરાટ દર્શન

આયુધો
સુદર્શન ચક્ર , કૌમુકી ગદા, સારંગપાણીધનુષ , વિધ્યાધર તલવાર , નંદક ખડગ

બાળ પરાક્રમ
કાલીનાગ દમન , ગોવર્ધન ઊંચક્યો , દિવ્ય રાસલીલા

પટરાણીઓ
રુક્ષ્મણી , જાંબવતી , મિત્ર વૃંદા, ભદ્રા , સત્યભામા , લક્ષ્મણા, કાલિંદી , નાગ્નજીતી

૧૨ ગુપ્ત શક્તિઓ
કીર્તિ , ક્રાંતિ , તૃષ્ટિ , પુષ્ટિ , ઈલા , ઉર્જા, માયા , લક્ષ્મી , વિદ્યા , પ્રીતિ , અવિધા , સરસ્વતી

શ્રી કૃષ્ણનો અર્થ
સહાયમ , કાળું , ખેંચવું , આકર્ષણ , સંકર્ષણ , વિષ્ણુ ભગવાન નો આઠમો અવતાર

દર્શન આપ્યા
જશોદા , અર્જુન , રાધા , અક્ર્રુરજી નારદ , શિવજી , હનુમાન , જાંબવત

ચક્ર થી વધ
શિશુપાલ , બાણાસુર , શત્ધ્નવા , ઇન્દ્ર duદુર્વાસ, રાહુ

પ્રિય “ગ”
ગોપી, ગાય , ગોવાળ , ગામડું , ગીતા, ગોઠડી , ગોરસ , ગોરજ , ગોમતી , ગુફા

પ્રસિદ્ધ નામ
કાનો , લાલો , રણછોડ , દ્વારકાધીશ, શામળિયો , યોગેશ્વર , માખણચોર, જનાર્દન

ચાર યોગ
ગોકુળમાં ભક્તિ
મથુરામાં શક્તિ
કુરુક્ષેત્ર માં જ્ઞાન
દ્વારિકા માં કર્મ યોગ

વિશેષતા
જીવન માં ક્યારેય રડ્યા નથી

કોની રક્ષા કરી
દ્રૌપદી ચીર પૂર્યા , સુદામાની ગરીબી પૂરી કરી , ગજેન્દ્ર મોક્ષ , મહાભારત ના યુદ્ધ માં પાંડવો ની , ત્રીવ્કા દાસી ની ખોડ દુર કરી ,નલકુબેર અને મણીગ્રીવ બે રુદ્રો વૃક્ષ રૂપે હતા તેમને શ્રાપ મુક્ત કર્યા , યુદ્ધ વખતે ટીંટોડી ના ઈંડા બચાવ્યા

પ્રસિદ્ધ તીર્થધામ
ગોકુળ, મથુરા, વૃંદાવન , વ્રજ દ્વારકા , ડાકોર , શામળાજી , શીનાથી , બેટ દ્વારિકા , સોમનાથ, ભાલકાતીર્થ , પ્રભાસ પાટણ, જગન્નાથ પૂરી , અમદાવાદ નું જગન્નાથ મંદિર , તમામ ઇસ્કોન મેં બીપીએસ મંદિરો, સંદીપની આશ્રમ

મુખ્ય તેહવાર
જન્માષ્ટમી , રથયાત્રા , ભાઈ બીજ , ગોવર્ધન પૂજા , તુલસી વિવાહ , ગીતા જયંતિ
ભાગવત સપ્તાહ , યોગેશ્વર દિવસ , તમામ પાટોત્સવ , નંદ મહોત્સવ , દરેક માસ ની પૂનમ અને હિંડોળા

ધર્મ ગ્રંથ ને સાહિત્ય
શ્રીમદ ભગવદ ગીતા , મહાભારત, શ્રીમદ ભાગવદ ૧૦૮ પુરાણો , હરિવંશ , ગીત ગોવિંદ , ગોપી ગીત , ડોંગરેજી મહારાજ નું ભગવદ જનકલ્યાણ ચરિત્ગ્રંથો

શ્રીકૃષ્ણ ચરિત્રોને લગતા સ્વરૂપો
નટખટ બાળ કનિયો , માખણ ચોર કનૈયો , વિગેરે

શ્રી કૃષ્ણ ભક્તિ ના વિવિધ સમ્પ્રદાય
શ્રી સંપ્રદાય , કબીર પંથ , મીરાબાઈ , રામાનંદ , વૈરાગી , વૈષ્ણવ , વિગેરે

સખા સખી ભક્ત જન
સુદામા ,ઋષભ , કુંભનદાસ , વિશાલ અર્જુન , ત્રીવકા, ચંદ્રભાગા , અંશુ , સુરદાસ,, પરમાનંદ , દ્રૌપદી , શ્યામા, તુલસીદાસ, સ્ન્ધાયાવ્લે અને વિદુર

શાસ્ત્રીય રાગ આધારિત ભક્તિ
સવારે – ભૈરવ વિલાસ , દેવ ગંધાર , રામકલી, પંચમ સુહ , હિંડોળ રાગ
બપોરે – બીલાવ્ત , તોડી , સારંગ, ધન શ્રી આશાવરી ,

આરતી ની વિશિષ્ટતા
સવારે ૬ વાગે મંગલા
સવારે ૮-૧૫ બાળ ભોગ
સવારે ૯-૩૦ શણગાર
સવારે ૧૦ વાગે ગોવાળ ભોગ
સવારે ૧૧-૩૦ રાજ ભોગ
બપોરે ૪ વાગે ઉત્થાન આરતી
સાંજે ૫-૩૦ વાગે શયન ભોગ
સાંજે ૬-૩૦ સુખડી ભોગ
સાંજે ૭ વાગે શયન આરતી

પહેરવેશ
માથા પર મોર પીછ , કાન પર કુંડળ
ગાળામાં વૈજ્યન્તી માળા , હાર , હાથના કાંડા પર બાજુબંધ , કળાકાર કંકણ, એક હાથ માં વાંસળી બીજા હાથ માં કમળ , કેડે કંદોરો , શીન્ડી ને છડી, પગ માં સાંકળા, લલાટે ક્સ્તુરીયુંક્ત ચન્દન નું તિલક પીળું પીતાંબર, અંગરખું

કોનો કોનો વધ કર્યો ?
પુતના , વ્યોમાસુર, અરીશ્તાસુર, શિશુપાલ ભસ્માસુર, અધાસુર , વિગેરે

શ્રેષ્ઠ મંત્ર
ઓહ્મ નમો ભગવતે વાસુદેવાય
શ્રી કૃષ્ણ: શરણંમમ

જીવન માં ૮ અંક નું મહત્વ
દેવકી નું આઠમું સંતાન
શ્રીકૃષ્ભગવાન નો આઠમો અવતાર
કુલ ૮ પટરાણીઓ
શ્વાન વદ ૮ નો જન્મ
જુદા જુદા ૮ અષ્ટક
કુલ ૮સિદ્ધિ ના દાતા
શ્રેષ્ઠ મંત્ર શ્રીકૃષ્ણ શરણંમમ

અવતારના ૧૨ કારણો
ધર્મની સ્થાપના
કૃષિ કર્મ
પૃથ્વી ની રસાળતા
જીવો નું કલ્યાણ
યજ્ઞ કર્મ
યોગ નો પ્રચાર
સત્કર્મ
અસુરોનો નાશ
ભક્તિ નો પ્રચાર
સ્જ્નનો ની રક્ષા
ત્યાગ ની ભાવના

૧૧ બોધ પરેમ
માતૃ પ્રેમ
પિતૃ પ્રેમ ,
મિત્ર પ્રેમ
કર્મ
જ્ઞાન
ભક્તિ
ગ્રામો ધાર
ફરજ પાલન
સ્ત્રી દાક્ષનીય
રાજ નીતિ
કૂટ નીતિ
યોગ -સ્વાસ્થ્ય
જેવા સાથે તેવા
અન્યાય નો પ્રતિકાર
દુષ્ટો નો સંહાર

૧૧ ના આંક નું મહત્વ
અવતાર લેવા ના ૧૧ કારણો
ભગવદ ગીતાનો ઉપદેશ માગશર વદ ૧૧
યાદવો ની વસ્તી ૫૬ કરોડ હતી
શ્રેષ્ટ ઉપવાસ અગિયારસ નો
રાશી ૧૧મિ
અર્જુન ને વિરાટદર્શન દેખાડ્યું તે ૧૧મો અધ્ય્યાય
મથુરા છોડ્યું ત્યરે ઉંમર ૧૧વર્ષ

મૃત્યુના કારણો
ગાંધારી નો શ્રાપ , દુર્વાસા મુની નો શ્રાપ , વાલિકા વધ નું કારણ

દેહ ત્યાગ નું સ્થળ
સોમનાથ તીર્થ ,પ્રભાસ પાટણ , જીલ્લો જુનાગઢ , ગુજરાત હિરણ્ય નદી ના , કપિલા નદી સરસ્વતી નદી ના સંગમ સ્થાને પીપળા ના વૃક્ષ નીચે ભાલકા તીર્થ વાળી નનો અવતાર પારધીના બાણ થી

અવસાન ની વિગત
મહાભારત ના યુદ્ધ વખતે ૮૯ વર્ષ ૨ માસ ૭ દિવસ શુક્ર વાર
મૃત્યુ સમયે તેમની ઉંમર ૧૨૫ વર્ષ ૭ માસ ૭ દિવસ તારીખ ૧૮-૦૨-૩૧૦૨ શુક્રવાર બપોરના ૨ક્લાક્ ૭મિનિત્ ૩૦સેકન્ડ

  • આદરણીય શ્રી પી એમ પરમાર –
    [ ગુજરાત સમાચાર ધર્મલોક ની પુરતી તારીખ ૧૪-૦૮-૨૦૧૪ નો લેખ ]