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गीता


भगवद  गीता अध्याय: 8
श्लोक 5

श्लोक:
अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्‌।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः॥

भावार्थ:
जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है ।
॥ 5 ।।

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गऊ माता


ऋगवेद में गऊ माता की महिमा का वर्णन —

ऋग्वेद के ६ वें मंडल का सम्पूर्ण २८ वां सूक्त
गाय की महिमा बखान रहा है –

१.आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्त्सीदन्तु –
प्रत्येक जन यह सुनिश्चित करें कि गौएँ
यातनाओं से दूर तथा स्वस्थ रहें |

२.भूयोभूयो रयिमिदस्य वर्धयन्नभिन्ने –
गाय की देख-भाल करने वाले को
ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है |

३.न ता नशन्ति न दभाति –
तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति
गाय पर शत्रु भी शस्त्र का प्रयोग न करें |

४. न ता अर्वा रेनुककाटो अश्नुते
न संस्कृत्रमुप यन्ति ता –
कोइ भी गाय का वध न करे |

५.गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छन् –
गाय बल और समृद्धि लातीं हैं |

६. यूयं गावो मेदयथा –
गाय यदि स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगी
तो पुरुष और स्त्रियाँ भी निरोग और
समृद्ध होंगे |

७. मा वः स्तेन ईशत माघशंस: –
गाय हरी घास और शुद्ध जल का सेवन करें |
वे मारी न जाएं और हमारे लिए समृद्धि लायें |

सनातन धर्म में गौमाता का सर्वश्रेष्ठ स्थान !!

स्कंध पुराण में गौमाता को इस देश की
अधिष्ठात्री का दर्जा दिया गया है।

गाय के दूध,दही,घी,गोबर के गुणों के
संदर्भ में सभी को ज्ञात है।

विश्व की मां गाय है।

विज्ञान में सुख की कल्पना हो सकती
है किन्तु अध्यात्म में शांति,सद्भव,सुख –
समृद्धि की प्राप्ति होती है।
अध्यात्म के चिन्तन से ही समाज का
कल्याण होता है।

शास्त्रों के अनुसार गौसेवा के पुण्य का
प्रभाव कई जन्मों तक बना रहता है !!

देवता भी गो पूजा करते हैं ।
गाय में सब देवताओं का दिव्यत्व है ।
एक धर्मपूर्ण दिन का आरंभ उसकी पूजा
से होता है ।

विभिन्न धार्मिक त्योहारों में उसकी
प्रमुखता है ।

विशेषतः संक्रांति और दीपावली गाय
से जुड़े उत्सव हैं ।

विभिन्न अनुष्ठानों में गव्य उत्पाद
आवश्यक हैं ।
इस प्रकार गाय हमारे जीवन का अभिन्न
अंग है ।

*वेद पुराणों में गाय*
यः पौरुषेण क्रविषा समंक्ते
यो अश्वेन पशुना यातुधानः ।
ये अघ्न्याये भरति क्षीरमग्ने
तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्चः ॥

हे अग्निदेव ! अपनी लपटों से उन दानवों के
सर जला दो,जो मनुष्यों और घोड़े और गाय
जैसे प्राणियों का मांस भक्षण करते और गाय
का दूध चूसते हैं ।
(रिक संहिता ८७-१६१)

*प्रजापतिर्मह्यमेता रराणो
विश्वैर्देवैः पितृभिः संविदानः ।
शिवाः सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां
वयं प्रजया संसदेम ॥
(रिक संहिता १० – १६९-४)

हे परमेश्वर,अन्य सब देवताओं के साथ
हमारी खुशी के लिये शुभ और विशाल
गो स्थान बनाकर उन्हें गाय और बछड़ों
से भर दें ।
हम गो धन का आनंद लें और गायों की
सेवा करें ।

*सा विश्वाय़ूः सा विश्वकर्मा सा विश्वधायाः।
(शुक्ल यजुर्वेद १-४)

गायें यज्ञों में रत सभी ऋषियों और यज्ञों के
आयोजकों के आयुष्य को बढ़ायें ।
गाय यज्ञ के सभी संस्कारों का समन्वय
करती है ।
अपने दूध के नैवेद्य से गाय यज्ञ के सभी
देवताओं को संतुष्ट करती है ।

*आ गावो अग्मन्नुत भद्रकम्रन्
सीदंतु गोष्मेरणयंत्वस्मे ।
प्रजावतीः पुरुरूपा इहस्स्युरिंद्राय
पूर्वीरुष्सोदुहानाः ॥
यूयं गावो मे दयथा कृशं चिदश्रीरं
चित्कृणुथा सुप्रतीकम् ।
भद्र गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो
वय उच्यते सभासु ॥
(अथर्ववेद ४-२१-११ और ६)

गो माताओं ! तुम अपने दूध और घी से
दुर्बलों को बलिष्ठ बनाती हो और रोगियों
को स्वस्थ ।
अपनी पवित्र वाणी से तुम हमारे घरों को
शुद्ध करती हो ।
सभाओं में तुम्हारा गुणगान होता है ।

*वशां देवा उपजीवंति वशां मनुष्या उप ।
वशेदं सर्वं भवतु यावतु सूर्यो विपश्यति ॥
(अथर्ववेद १०-१०-३४)

देवता और मानव गो पदार्थों पर जीतें हैं ।
जब तक सूर्य चमकेगा,विश्व में गायें रहेंगी ।
सारा ब्रह्मांड गाय के संबल पर निर्भर है ।

*सा नो मंद्रेषमूर्जम् दुहाना ।
धेनुर्वा गस्मानुष सुष्टुतैतु ॥

वह है कामधेनु – हमारी आवश्यकताओं
को पूर्ण करने वाली दिव्य गाय ।
उसका मुख स्त्री और शरीर गाय का है ।
जब सागर मंथन हुआ तो वह अमृत के
पूर्व निकली ।
उसके केशों से सुगंध फैलता है ।
अपने थनों से वह धर्म,अर्थ,काम और
मोक्ष की वृद्धि करती है ।
वह आत्म ज्ञान का घर है और सूर्य,चंद्र
और अग्निदेव को शरण देती है ।
सब देवता और प्राणी उस पर निर्भर
करते हैं ।
तनिक सी प्रार्थना पर वह हमें भोजन
और परम ज्ञान देती है ।
वह हमारे निकट ही रहे ।

*पीतोदका जग्धतृणा दुग्धदेहा निरिंद्रियाः ।
आनंदा नाम तेलोकस्तान् स गच्चति ता ददत् ॥

(कठोपनिषद – विश्वजित यज्ञ के अवसर पर
नचिकेता ऋषि ने वाजश्रवों से कहा)
इन गायों ने घास और जल का आहार
लिया है ।
इन्हें दूहा गया है ।
वें अब प्रजनन आयु को पार कर चुकी हैं ।
इन गायों का त्याग करने वाला आनंदविहीन
अंधेरे स्थल को प्राप्त होगा ।
इनके स्थान पर मुझे दान कर दो ।

*गोकुलस्य तृषार्तस्य जलार्थे वसुधाधिपः ।
उत्पादयति यो विघ्नं तं विद्याद्ब्रह्मघातिनम् ॥
(महाभारत अनुशासन पर्व-२४-७)

प्यासी गायों को पानी देने में बाधा डालने
को ब्रह्महत्या के समान मानना चाहिए ।

*गवां मूत्रपुरीषस्य नोद्विजेत कथंचन ।
न चासां मांसमश्नीयाद्गवां पुष्टिं तथाप्नुयात् ॥
(महाभारत अनुशासन पर्व ७८-१७)

गोमूत्र और गोबर का सेवन करने में न
हिच-किचाये ।
ये पवित्र हैं ।
किंतु गोमांस का भक्षण कभी न करें ।
पंचगव्य सेवन से व्यक्ति बलिष्ठ बनता है ।

*गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च ।
गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाह्यहम् ॥
(महाभारत, अनुशासन पर्व ८०-३)

मेरे सामनें,मेरे पीछे और मेरे चारों तरफ
गायें हों ।
मैं गायों के साथ जीता हूँ ।

*दानानामपि सर्वेषां गवां दानं प्रशस्यते ।
गावः श्रेष्ठाः पवित्राश्च पावनं ह्येतदुत्तमम् ॥
(महाभारत, अनुशासन पर्व ८३-३)

गोदान अन्य दानों से श्रेष्ठ है ।
गायें सर्वोच्च और पवित्र हैं ।

*सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदनः ।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्तादुग्धं गीतामृतःमहत् ॥

भगवद्गीता उपनिषदों का सार है ।
यह श्री कृष्ण द्वारा दूही जानेवाली गाय के
समान है ।
अर्जुन बछड़े जैसा है ।
विद्वान भक्त भगवद्गीता का दुग्ध पान कर
रहें हैं ।

*गौर्मे माता वृषभः पिता मे
दिवं शर्म जगते मे प्रतिष्ठा ।

गाय मेरी माता और बैल पिता है ।
यह युगल मुझे इस संसार और स्वर्ग दोनों
में आनंद का आशीर्वाद दे ।
मैं अपने जीवन के लिये गाय पर निर्भर हूँ,
यह करते हुए गाय को समर्पित हों ।

*गावो बंधुर्मनुष्याणां मनुष्याबांधवा गवाम् ।
गौः यस्मिन् गृहेनास्ति तद्बंधुरहितं गृहम् ॥
(पद्मपुराण)

गायों में लक्ष्मी का निवास है ।
वे पापों से मुक्त हैं ।
मानव और गाय का संबंध अति सुंदर है ।
गौविहीन घर प्रियजनविहीन के समान है।

*वागिंद्रियस्वरूपायै नमः ।
वाचावृत्तिप्रद्दयिन्यै नमः ॥
अकारादिक्षकारांतवैखरीवक्स्वरूपिण्य़ै नमः॥
(अत्रि संहिता ३१०)

गो पदार्थों के उपयोग के माध्यम से गो सेवा,
चेतना और साहस दोनों को बढ़ाती है ।

*यन्न वेद्ध्वनिध्यांतं न च गोभिरलंकृतम् ।
यन्नबालैः परिवृतं श्मशानमिव तद्गृहम् ॥
(विष्णु स्मृति)

वह घर श्मशान के समान है जहाँ वेदों
का पाठ नहीं होता और जहाँ गायें और
बालक नहीं दिखते ।

*गोमूत्रगोमयं सर्पि क्षीरं दधि च रोचना ।
षदंगमेतत् परमं मांगल्यं सर्वदा गवाम् ॥

गोमूत्र,गोबर,दूध,घी,दहीं और गोरोचन –
यह ६ अत्यंत पवित्र पदार्थ हैं ।
शास्त्रों के अनुसार गौसेवा एवं गऊ पूजा
के पुण्य का प्रभाव कई जन्मों तक बना
रहता है !!

प्राचीन समय से ही मानव समाज की
मूल संपत्ति गायें रही हैं उस समय पशुधन
की रक्षा एवं पालन पोषण का भार पराक्रमी,
साहसी,निडर वर्ग के हाथों सौंपा जाता था।

गौ की कितनी अनंत महिमा है तथा गौ सेवा
क्या है उसका क्या फल है,भली भांति जाने।

‘सर्वे देवा: स्थिता डेहेसर्व देवमयी हि गौ:।
गाय के शरीर में सभी देवताओं का निवास
है अत: गाय सर्व देवमयी है।

भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही बड़े-बड़े
महापुरुषों द्वारा गौ सेवा और गोपालन
होता चला आया है।

रघुवंशी महाराज दिलीप नंदिनी गौ के लिए
अपने प्राण देने हेतु प्रस्तुत हो गये।

भगवान श्रीराम का अवतार ही गौ,ब्राह्मण
हितार्थ हुआ था।

भगवान श्री कृष्ण का बाल्य जीवन गौ सेवा
में बीता,उन्होंने जंगलों में घूम-घूम कर गाय
चराये।

इसी से उनका नाम गोपाल पड़ा।

गौ सेवा और गौ वंश की उन्नति भारतीय
संस्कृति के अभिन्न अंग हैं।
गौ सेवा ही सच्ची राष्ट्र सेवा एवं सर्वोत्तम
भगवदाराधना है।
गोचर भूमि छोडऩा पुण्य माना गया है।
गौ से हमारा आध्यात्मिक संबंध है।
मृत्यु के पश्चात गौ वैतरणी पार कराती है,
इसलिए गौ सदैव पूज्या है।

हवन में गाय के घी की आहुति दी जाती है
जिससे सूर्य की किरणें पुष्ट होती है।

जिससे वर्षा होकर अन्न,पौधे,घास के पैदा
होने से संपूर्ण प्राणियों का भरण पोषण
होता है।

गाय के गोबर में लक्ष्मी जी का और गौमूत्र
में गंगाजी का निवास माना गया है जिससे
अनेक औषधियां बनाई जाती हैं।

गौ भारत वर्ष की कृषि प्रधान अर्थ व्यवस्था
की भी रीढ़ है।
अमृततुल्य दूध के अतिरिक्त खेत जोतने एवं
बोझा ढोने हेतु बैलों तथा भूमि की उर्वरता
बनाए रखने के लिए उत्तम खाद भी हमें
गाय से मिलना है।

गाय और बैल अपनी दृढ़पीठ पर हमारी
अर्थव्यवस्था का भार उठाए हुए हैं।

अत: मनुष्य को गौ की महिमा महत्ता का
ध्यान रखते हुए उसकी तन,मन,धन से सेवा
करनी चाहिये।

हमें सभी प्रकार से गाय की रक्षा एवं उन्नति
के लिए कटिबद्ध हो जाना चाहिये।

समस्त मनुष्यों के लिए सुख-शांति के भण्डार
एवं समस्त फल दायिनी गौ माता का वर्तमान
में घोर तिरस्कार हो रहा है।

बड़े दुख की बात है गोपाल के देश में आज
निर्बाध गो-वध जारी है और गो रक्त से भारत
की पवित्र भूमि लाल हो रही है।

ऐसे में राष्ट्र कवि की ये पंक्तियां बरबस याद
आती हैं-
गाय ही विष्णु,कल्पवृक्ष है।
मातृ शक्ति गौ माता हमारी धरोहर है,
इसकी रक्षा हर कीमत पर होनी चाहिये।
गौ हत्या देश के लिये कलंक है।

“तेजो राष्ट्रस्य निर्हन्ति न वीरो जायते वृषा”
(अथर्वेद)
जहाँ गउएँ परेशान होती हैं,वहां उस राष्ट्र
का तेज शून्य हो जाता है,वहां वीर जन्म
नही लेते।

सनातन की शुरूआत गौ माता से ही होती
है और समापन भी गौ माता से होता है।

कोई भी धर्म का कार्य गाय के दूध के बिना
पूर्ण नहीं होता।

सनातन धर्म में गौ माता का सर्वश्रेष्ठ स्थान है।

भगवान श्रीकृष्ण जी का मुख मण्डल गाय
के गोबर,मूत्र से सना हुआ है,गाय की करूणा
सबसे श्रेष्ठ है।

गाय की रक्षा के लिये स्वयं भगवान अवतार
लिये हैं इसलिये गाय का संरक्षण देश समाज
के हित में है।

गऊ माता से प्रेम की सार्थकता तभी सिद्ध
होगी जब सभी अपने जीवन में सरंक्षण की
भावना को आत्मसात करेंगे।

जब गाय से प्यार हो जायेगा तब गाय की
सेवा अपने आप होने लगेगी।

भूमि वन्ध्या हो रही,वृष जाति दिन-दिन घट
रही,घी दूध दुर्लभ हो रहा,बल वीर्य की जड़
कट रही है।

गो वंश के उपकार की सब ओर आज
पुकार है।
तो भी यहां उसका निरंतर हो रहा
संहार है।।

गऊ वंदे मातरम !!

गऊ माता की वंदना;

नमो गोभ्य: श्रीमतीभ्य:सौरभेयीभ्य एव च।
नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो नमो नम:।।

यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत स्थावरजंगमम्।
तांधेनुंशिरसा वंदे भूतभव्यस्य मातरम्।।

पञ्च गाव: समुत्पन्ना मथ्यमाने महोदधौ।
तासां मथ्ये तु या नंदा तस्यै देव्यै नमो नम:।।

सर्वकामदुधे देवि सर्वतीर्थाभिषेचिनि।
पावनि सुरभिश्रेष्ठे देवि तुभ्यं नमो नम:।।

गऊ ग्रास नैवेद्य मन्त्र —

सुरभिस्त्वं जगान्मातेर्देवि विष्णुपदे स्थिता ।
सर्वदेवमयी ग्रासं मया दत्तामिमं।।

गऊ प्रदक्षिणा मन्त्र —

गवां दृष्ट्वा नमस्कृत्य कुर्याच्वैव प्रदक्षिणम्।
प्रदक्षिणीकृता तेन सप्तद्वीपा वसुंधरा।।
मातर: सर्वभूतानां गाव: सर्वसुखप्रदा:।
वृद्धिमाकान्गाक्ष्ता पुंसा नित्यं कार्या प्रदक्षिणा।।

गऊ माता की पूजा करें,,
गऊ माता की सेवा करें,,
गऊ माता का संरक्षण करें,,
गऊ माता की पूजा,नैवेद्य एवं प्रदक्षिणा
अर्पण से समस्त देवी देवताओं की पूजा
हो जाती है।

सनातन हिंदू धर्म का पालन करें,,
देश को समृद्ध बनायें,,

गऊ माता को किसी भांति भी कष्ट पहुंचाने
वाले जन्म जन्मांतर के लिए पीढ़ियों तक
शापित हो जाते हैं,,सदा दुःख पाते हैं।

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,

सदा सर्वदा सुमंगल,,,
वंदेगऊमातरम,,,,,,,
जय श्री कृष्ण,,,
जय भवानी,,,
जय श्री राम~