Posted in संस्कृत साहित्य

हिन्दू वैदिक सनातन धर्म -12


हिन्दू वैदिक सनातन धर्म -12

अगस्त ऋषि ने जिस भविष्य संबंधी शास्त्र की रचना की उसे हम लोग नाड़ी शास्त्र या नाड़ी ज्योतिष के नाम से जानते है । तमिल और संस्कृत का विकास लगभग साथ साथ ही हुआ । संस्कृत चूंकि बोलने मे पूर्व ब्रह्म लिपि की तरह थी परंतु लिखने मे अलग थी जैसे आज हम हिन्दी को हिन्दी वर्णमाला के अतिरिक्त अग्रेज़ी वर्णमाला मे भी लिखते है । चूंकि प्रजापति दक्ष ने माँ गायत्री के आदेश पर संस्कृत का प्रसार प्रचार किया इससे यह व्यापक क्षेत्र मे लोगो द्वारा अपनाई गई । जबकि तमिल भाषा एक क्षेत्र विशेष तक ही सीमित रही ।
पंचमुखी ब्रह्मा और गायत्री के लुप्त होने से जब समस्त लोको मे मचे हाहाकार से पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी और पृथ्वी को पाताल लोक से असुर और स्वर्ग लोक से देवताओं अपने नियंत्रण मे लेने के लिए युद्ध छिड़ गया जिसके परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुई ऊर्जा से हिमशिखर पिघलने लगे जिससे जल प्रलय की स्थिति उत्पन्न हुई । तब तक महादेव गौरी से विरोध के कारण ( इसका विवरण आगे की कड़ियों मे मिलेगा ) दक्ष प्रजापति को वीरभद्र द्वारा मृत्युदण्ड दिया जा चुका था जिसे भगवान विष्णु के आग्रह पर महादेव ने बकरे का सिर लगाकर जीवित किया था । इसी उथल पुथल मे ऋग्वेद और सामवेद असुरो के नियंत्रण मे चले गए थे । उस स्थिति मे भी पृथ्वी पर राजा सत्यव्रत के राज्य मे शांति थी जिसका उसे अत्यधिक घमंड था कि मेरे राज्य मे कोई जीव भूखा नहीं सोता । तब भगवान विष्णु ने एक भूखी लाचार मत्स्य ( मछली ) के रूप मे उस नदी मे अवतार लिया जिसमे प्रतिदिन राजा सत्यव्रत प्रतिदिन सूर्य पूजा के लिए जाते थे ।
जब सुबह सत्यव्रत सूर्यदेव को अर्घ्य दे रहे थे तभी मत्स्य ( मछली ) रूपी भगवान विष्णु नें उनसे कहा कि आप मुझे अपने कमंडल में रख लो। दया और धर्म के अनुसार इस राजा ने मछली को अपने कमंडल में ले लिया और घर की ओर निकले, घर पहुँचते तक वह मत्स्य उस कमंडल के आकार का हो गया, राजा नें इसे एक पात्र पर रखा परंतु कुछ समय बाद वह मत्स्य उस पात्र के आकार की हो गई। अंत में राजा नें उसे समुद्र में डाला तो उसने पूरे समुद्र को ढँक लिया। उस सुनहरी-रंग मछली ने अपने दिव्य पहचान उजागर की और अपने भक्त को यह सूचित किया कि उस दिवस के ठीक सातवें दिन प्रलय आएगा तत्पश्चात् विश्व का नया श्रृजन होगा वे सत्यव्रत को सभी जड़ी-भूति, बीज और पशुओं, सप्त ऋषि आदि को इकट्ठा करके प्रभु द्वारा भेजे गए नाव में संचित करने को कहा।
मत्स्य भगवान ने उसे सर्पराज वासुकि को डोर बनाकर बाँध लिया और सुमेरु पर्वत की ओर प्रस्थान किया।
रास्ते में भगवान मत्स्य नारायण ने सत्यव्रत को मत्स्य पुराण सुनाया और इस तरह प्रभु ने सबकी प्रलय से रक्षा की, तथा पौधों तथा जीवों की नस्लों को बचाया और मत्स्य पुराण की विद्या को नवयुग में प्रसारित किया।

आज का प्रश्न – राजा सत्यव्रत को आज हम किस नाम से जानते हैं ?

"हिन्दू वैदिक सनातन धर्म -12

अगस्त ऋषि ने जिस भविष्य संबंधी शास्त्र की रचना की उसे हम लोग नाड़ी शास्त्र या नाड़ी ज्योतिष के नाम से जानते है । तमिल और संस्कृत का विकास लगभग साथ साथ ही हुआ । संस्कृत चूंकि बोलने मे पूर्व ब्रह्म लिपि की तरह थी परंतु लिखने मे अलग थी जैसे आज हम हिन्दी को हिन्दी वर्णमाला के अतिरिक्त अग्रेज़ी वर्णमाला मे भी लिखते है । चूंकि प्रजापति दक्ष ने माँ गायत्री के आदेश पर संस्कृत का प्रसार प्रचार किया इससे यह व्यापक क्षेत्र मे लोगो द्वारा अपनाई गई । जबकि तमिल भाषा एक क्षेत्र विशेष तक ही सीमित रही । 
       पंचमुखी ब्रह्मा और गायत्री के लुप्त होने से जब समस्त लोको मे मचे हाहाकार से पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी और पृथ्वी को पाताल लोक से असुर और स्वर्ग लोक से देवताओं अपने नियंत्रण मे लेने के लिए युद्ध छिड़ गया जिसके परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुई ऊर्जा से हिमशिखर पिघलने लगे जिससे जल प्रलय की स्थिति उत्पन्न हुई । तब तक महादेव गौरी  से विरोध के कारण  ( इसका विवरण आगे की कड़ियों मे मिलेगा ) दक्ष प्रजापति को वीरभद्र द्वारा मृत्युदण्ड दिया जा चुका था जिसे भगवान विष्णु के आग्रह पर महादेव ने बकरे का सिर लगाकर जीवित किया था । इसी उथल पुथल मे ऋग्वेद और सामवेद असुरो के नियंत्रण मे चले गए थे । उस स्थिति मे भी पृथ्वी पर राजा सत्यव्रत के राज्य मे शांति थी जिसका उसे अत्यधिक घमंड था कि मेरे राज्य मे कोई जीव भूखा नहीं सोता । तब भगवान विष्णु ने एक भूखी लाचार मत्स्य ( मछली ) के रूप मे उस नदी मे अवतार लिया जिसमे प्रतिदिन राजा सत्यव्रत प्रतिदिन सूर्य पूजा के लिए जाते थे । 
 जब सुबह सत्यव्रत सूर्यदेव को अर्घ्य दे रहे थे तभी मत्स्य ( मछली ) रूपी भगवान विष्णु नें उनसे कहा कि आप मुझे अपने कमंडल में रख लो। दया और धर्म के अनुसार इस राजा ने मछली को अपने कमंडल में ले लिया और घर की ओर निकले, घर पहुँचते तक वह मत्स्य उस कमंडल के आकार का हो गया, राजा नें इसे एक पात्र पर रखा परंतु कुछ समय बाद वह मत्स्य उस पात्र के आकार की हो गई। अंत में राजा नें उसे समुद्र में डाला तो उसने पूरे समुद्र को ढँक लिया। उस सुनहरी-रंग मछली ने अपने दिव्य पहचान उजागर की और अपने भक्त को यह सूचित किया कि उस दिवस के ठीक सातवें दिन प्रलय आएगा तत्पश्चात् विश्व का नया श्रृजन होगा वे सत्यव्रत को सभी जड़ी-भूति, बीज और पशुओं, सप्त ऋषि आदि को इकट्ठा करके प्रभु द्वारा भेजे गए नाव में संचित करने को कहा।
मत्स्य भगवान ने उसे सर्पराज वासुकि को डोर बनाकर बाँध लिया और सुमेरु पर्वत की ओर प्रस्थान किया।
 रास्ते में भगवान मत्स्य नारायण ने सत्यव्रत को मत्स्य पुराण सुनाया और इस तरह प्रभु ने सबकी प्रलय से रक्षा की, तथा पौधों तथा जीवों की नस्लों को बचाया और मत्स्य पुराण की विद्या को नवयुग में प्रसारित किया।

आज का प्रश्न - राजा सत्यव्रत को आज हम किस नाम से जानते हैं ?"
Posted in श्रीमद्‍भगवद्‍गीता

12-year-old Muslim girl, Maryam Siddiqui wins Gita contest in Mumbai organized by Iskcon.


"12-year-old Muslim girl, Maryam Siddiqui wins Gita contest in Mumbai organized by Iskcon."

12-year-old Muslim girl, Maryam Siddiqui wins Gita contest in Mumbai organized by Iskcon.