Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

PAKISTANI HISTORICAL BOOKS


PAKISTANI HISTORICAL BOOKS : According to Hussain Haqqani, only officially published textbooks are used in Pakistan’s schools and colleges since the era of Ayub Khan. This is used by Pakistani government to create a standard narrative of Pakistan’s history. During the rule of General Muhammad Zia-ul-Haq a program of Islamization of the country including the textbooks was started. General Zia’s 1979 education policy stated that “[the] highest priority would be given to the revision of the curricula with a view to reorganizing the entire content around Islamic thought and giving education an ideological orientation so that Islamic ideology permeates the thinking of the younger generation and helps them with the necessary conviction and ability to refashion society according to Islamic tenets”.

According to the Sustainable Development Policy Institute, since the 1970s Pakistani school textbooks have systematically inculcated hatred towards India and Hindus through historical revisionism.There is no mention of Islamic invasion and conversion of Hindus. Many texts give an impression that ancient Indian heritage was not destroyed by Afghans and Turks but Muslim heritage was destroyed by Indians, which contradicts the theory of mainstream historians.

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शिरडी साँई: वैदिक धर्म के लिए एक अभिशाप?


शिरडी साँई: वैदिक धर्म के लिए एक अभिशाप?

आजकल सर्वत्र साँई बाबा की धूम है, कहीँ साँई चौकी, साँई संध्या और साँई पालकी मेँ मुस्लिम कव्वाल साँई भक्तोँ के साथ साँई जागरण करने मेँ लगे हैँ। मन्दिरोँ मेँ साँई की मूर्ति सनातन काल के देवी देवताओँ के साथ सजी है। मुस्लिम तान्त्रिकोँ ने भी अपने काले इल्म का आधार साँई बाबा को बना रखा है व उनकी सक्रियता सर्वत्र देखी जा सकती है। इन सबके बीच साँई बाबा को कोई विष्णु का ,कोई शिव का तथा कोई दत्तात्रेय का अवतार बतलाता है।

परन्तु साँई बाबा कौन थे? उनका आचरण व व्यवहार कैसा था? इन सबके लिए हमेँ निर्भर होना पड़ता है “साँई सत्चरित्र” पर!

जी हाँ ,दोस्तोँ! कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीँ जो रामायण व महाभारत का नाम न जानता हो? ये दोनोँ महाग्रन्थ क्रमशः श्रीराम और कृष्ण के उज्ज्वल चरित्र को उत्कर्षित करते हैँ, उसी प्रकार साईँ के जीवनचरित्र की एकमात्र प्रामाणिक उपलब्ध पुस्तक है- “साँईँ सत्चरित्र”॥

इस पुस्तक के अध्ययन से साईँ के जिस पवित्र चरित्र का अनुदर्शन होता है,
क्या आप उसे जानते हैँ?

चाहे चीलम पीने की बात हो, चाहे स्त्रियोँ को अपशब्द कहने की?
चाहे माँसाहार की बात हो, या चाहे धर्मद्रोह, देशद्रोह व इस्लामी कट्टरपन की….

इन सबकी दौड़ मेँ शायद ही कोई साँई से आगे निकल पाये। यकीन नहीँ होता न?
तो आइये चलकर देखते हैँ…

इसके लिए शिरडी साँई के विषय मेँ व्याप्त भ्रान्तियोँ की क्रमबध्द समीक्षा करना चाहेँगे।…

[A] क्या साँईं ईश्वर या कोई अवतारी पुरूष है?

साईं बाबा का जीवन काल 1835 से 1918 तक था , उनके जीवन काल के मध्य हुई घटनाये जो मन में शंकाएं पैदा करती हैं की क्या वो सच में भगवान थे , क्या वो सच में लोगो का दुःख दूर कर सकते है?

प्रश्नः

{1}भारतभूमि पर जब-जब धर्म की हानि हुई है और अधर्म मेँ वृध्दि हुई है, तब-तब परमेश्वर साकाररूप मेँ अवतार ग्रहण करते हैँ और तबतक धरती नहीँ छोड़ते, जबतक सम्पूर्ण पृथ्वी अधर्महीन नहीँ हो जाती। लेकिन साईँ के जीवनकाल मेँ पूरा भारत गुलामी की बेड़ियोँ मे जकड़ा हुआ था, मात्र अंग्रेजोँ के अत्याचारोँ से मुक्ति न दिला सका तो साईँ अवतार कैसे?

{2}राष्ट्रधर्म कहता है कि राष्ट्रोत्थान व आपातकाल मेँ प्रत्येक व्यक्ति का ये कर्तव्य होना चाहिए कि वे राष्ट्र को पूर्णतया आतंकमुक्त करने के लिए सदैव प्रयासरत रहेँ, परन्तु गुलामी के समय साईँ किसी परतन्त्रता विरोधक आन्दोलन तो दूर, न जाने कहाँ छिप कर बैठा था,जबकि उसके अनुयायियोँ की संख्या की भी कमी नहीँ थी, तो क्या ये देश से गद्दारी के लक्षण नहीँ है?

{3}यदि साँईँ चमत्कारी था तो देश की गुलामी के समय कहाँ छुपकर बैठा था?

{4}भारत का सबसे बड़ा अकाल साईं बाबा के जीवन के दौरान पड़ा
>(a) 1866 में ओड़िसा के अकाल में लगभग ढाई लाख भूंख से मर गए
>(b) 1873 -74 में बिहार के अकाल में लगभग एक लाख लोग प्रभावित हुए ….भूख के कारण लोगो में इंसानियत ख़त्म हो गयी थी|
>(c ) 1875 -1902 में भारत का सबसे बड़ा अकाल पड़ा जिसमें लगभग 6 लाख लोग मरे गएँ|

साईं बाबा ने इन लाखो लोगो को अकाल से क्यूँ पीड़ित होने दिया यदि वो भगवान या चमत्कारी थे? क्यूँ इन लाखो लोगो को भूंख से तड़प -तड़प कर मरने दिया?

{5} साईं बाबा के जीवन काल के दौरान बड़े भूकंप आये जिनमें हजारो लोग मरे गए
(a) १८९७ जून शिलांग में
(b) १९०५ अप्रैल काँगड़ा में
(c) १९१८ जुलाई श्री मंगल असाम में

साईं बाबा भगवान होते हुए भी इन भूकम्पों को क्यूँ नहीं रोक पाए?…क्यूँ हजारो को असमय मारने दिया ?

[B]साँई माँसाहार का प्रयोग करता था व स्वयं जीवहत्या करता था?
प्रमाण:-
(1)मस्जिद मेँ एक बकरा बलि देने के लिए लाया गया। वह अत्यन्त दुर्बल और मरने वाला था। बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 161.

(2)तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैँ स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 162.

(3)फकीरोँ के साथ वो आमिष(मांस) और मछली का सेवन करते थे।
-:अध्याय 5. व 7.

(4)कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल अर्थात् नमकीन पुलाव।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 269.

(5)एक एकादशी के दिन उन्होँने दादा कलेकर को कुछ रूपये माँस खरीद लाने को दिये। दादा पूरे कर्मकाण्डी थे और प्रायः सभी नियमोँ का जीवन मेँ पालन किया करते थे।
-:अध्याय 32. पृष्ठः 270.

(6)ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है? दादा ने योँ ही मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा है। तब बाबा कहने लगे कि तुमने न अपनी आँखोँ से ही देखा है और न ही जिह्वा से स्वाद लिया, फिर तुमने यह कैसे कह दिया कि उत्तम बना है? थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो। बाबा ने दादा की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मेँ डालकर बोले -”अपना कट्टरपन छोड़ो और थोड़ा चखकर देखो”।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 270.

प्रश्न:-
{1}क्या साँई की नजर मेँ हलाली मेँ प्रयुक्त जीव ,जीव नहीँ कहे जाते?{2}क्या एक संत या महापुरूष द्वारा क्षणभंगुर जिह्वा के स्वाद के लिए बेजुबान नीरीह जीवोँ का मारा जाना उचित होगा?{3}सनातन धर्म के अनुसार जीवहत्या पाप है।
तो क्या साँई पापी नहीँ?{4}एक पापी जिसको स्वयं क्षणभंगुर जिह्वा के स्वाद की तृष्णा थी, क्या वो आपको मोक्ष का स्वाद चखा पायेगा?{5}तो क्या ऐसे नीचकर्म करने वाले को आप अपना आराध्य या ईश्वर कहना चाहेँगे?

[C] साँई हिन्दू है या मुस्लिम? व क्या हिन्दू- मुस्लिम एकता का प्रतीक है?

कई साँईभक्त अंधश्रध्दा मेँ डूबकर कहते हैँ कि साँई न तो हिन्दू थे और न ही मुस्लिम। इसके लिए अगर उनके जीवन चरित्र का प्रमाण देँ तो दुराग्रह वश उसके भक्त कुतर्कोँ की झड़ियाँ लगा देते हैँ।
ऐसे मेँ अगर साँई खुद को मुल्ला होना स्वीकार करे तो मुर्देभक्त क्या कहना चाहेँगे?
जी, हाँ!

प्रमाणः-
(1)शिरडी पहुँचने पर जब वह मस्जिद मेँ घुसा तो बाबा अत्यन्त क्रोधित हो गये और उसे उन्होने मस्जिद मेँ आने की मनाही कर दी। वे गर्जन कर कहने लगे कि इसे बाहर निकाल दो। फिर मेधा की ओर देखकर कहने लगे कि तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैँ निम्न जाति का यवन (मुसलमान)। तुम्हारी जाति भ्रष्ट हो जायेगी।
-:अध्याय 28. पृष्ठ 197.

(2)मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैँ तो एक फकीर(मुस्लिम, हिन्दू साधू कहे जाते हैँ फकीर नहीँ) हूँ।मुझे गंगाजल से क्या प्रायोजन?
-:अध्याय 32. पृष्ठ 228.

(3)महाराष्ट्र मेँ शिरडी साँई मन्दिर मेँ गायी जाने वाली आरती का अंश-
“गोपीचंदा मंदा त्वांची उदरिले!
मोमीन वंशी जन्मुनी लोँका तारिले!”

उपरोक्त आरती मेँ “मोमीन” अर्थात् मुसलमान शब्द स्पष्ट आया है।

(4)मुस्लिम होने के कारण माँसाहार आदि का सेवन करना उनकी पहली पसन्द थी।

प्रश्नः
{1}साँई जिन्दगी भर एक मस्जिद मेँ रहा, क्या इससे भी वह मुस्लिम सिध्द नहीँ हुआ? यदि वह वास्तव मेँ हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक होता तो उसे मन्दिर मेँ रहने मेँ क्या बुराई थी?{2}सिर से पाँव तक इस्लामी वस्त्र, सिर को हमेशा मुस्लिम परिधान कफनी मेँ बाँधकर रखना व एक लम्बी दाढ़ी, यदि वो हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक होता तो उसे ऐसे ढ़ोँग करने की क्या आवश्यकता थी?
क्या ये मुस्लिम कट्टरता के लक्षण नहीँ हैँ?{3}वह जिन्दगी भर एक मस्जिद मेँ रहा, परन्तु उसकी जिद थी की मरणोपरान्त उसे एक मन्दिर मेँ दफना दिया जाये, क्या ये न्याय अथवा धर्म संगत है? “ध्यान रहे ताजमहल जैसी अनेक हिन्दू मन्दिरेँ व इमारते ऐसी ही कट्टरता की बली चढ़ चुकी हैँ।”{4}उसका अपना व्यक्तिगत जीवन कुरान व अल-फतीहा का पाठ करने मेँ व्यतीत हुआ, वेद व गीता नहीँ?, तो क्या वो अब भी हिन्दू मुस्लिम एकता का सूत्र होने का हक रखता है?{5}उसका सर्वप्रमुख कथन था “अल्लाह मालिक है।”परन्तु मृत्युपश्चात् उसके द्वितीय कथन “सबका मालिक एक है” को एक विशेष नीति के तहत सिक्के के जोर पर प्रसारित किया गया। यदि ऐसा होता तो उसने ईश्वर-अल्लाह के एक होने की बात क्योँ नहीँ की?

अन्य प्रमुख आक्षेप:

साईं एक टूटी हुयी मस्जिद में रहा करते थे और सर पर कफनी बंधा करते थे. सदा ” अल्लाह मालिक” एवं ” सबका मालिक एक” पुकारा करते थे ये दोनों ही शब्द मुस्लिम धर्म से संभंधित हैं.साईं का जीवन चरित्र उनके एक भक्त हेमापंदित ने लिखा है. वो लिखते हैं की

बाबा एक दिन गेहूं पीस रहे थे. ये बात सुनकर गाँव के लोग एकत्रित हो गए और चार औरतों ने उनके हाथ से चक्की ले ली और खुद गेहूं पिसना प्रारंभ कर दिया. पहले तो बाबा क्रोधित हुए फिर मुस्कुराने लगे. जब गेंहूँ पीस गए त्तो उन स्त्रियों ने सोचा की गेहूं का बाबा क्या करेंगे और उन्होंने उस पिसे हुए गेंहू को आपस में बाँट लिया. ये देखकर बाबा अत्यंत क्रोधित हो उठे और अप्सब्द कहने लगे -” स्त्रियों क्या तुम पागल हो गयी हो? तुम किसके बाप का मॉल हड़पकर ले जा रही हो? ” फिर उन्होंने कहा की आटे को ले जा कर गाँव की सीमा पर दाल दो. उन दिनों गाँव मिएँ हैजे का प्रकोप था और इस आटे को गाँव की सीमा पर डालते ही गाँव में हैजा ख़तम हो गया. (अध्याय १ साईं सत्चरित्र )

१. मान्यवर सोचने की बात है की ये कैसे भगवन हैं जो स्त्रियों को गालियाँ दिया करते हैं हमारी संस्कृति में तो स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है और कहागया है की यात्रा नार्यस्तु पुजनते रमन्ते तत्र देवता . आटा गाँव के चरों और डालने से कैसे हैजा दूर हो सकता है? फिर इन भगवान् ने केवल शिर्डी में ही फैली हुयी बीमारइ के बारे में ही क्यूँ सोचा ? क्या ये केवल शिर्डी के ही भगवन थे?

२. साईं सत्चरित्र के लेखक ने इन्हें क्रिशन का अवतार बताया गया है और कहा गया है की पापियों का नाश करने के लिए उत्पन्न हुए थे परन्तु इन्हीं के समय में प्रथम विश्व युध्ध हुआ था और केवल यूरोप के ही ८० लाख सैनिक इस युध्द में मरे गए थे और जर्मनी के ७.५ लाख लोग भूख की वजह से मर गए थे. तब ये भगवन कहाँ थे. (अध्याय 4 साईं सत्चरित्र )

३. १९१८ में साईं बाबा की मृत्यु हो गयी. अत्यंत आश्चर्य की बात है की जो इश्वर अजन्मा है अविनाशी है वो भी मर गया. भारतवर्ष में जिस समय अंग्रेज कहर धा रहे थे. निर्दोषों को मारा जा रहा था अनेकों प्रकार की यातनाएं दी जा रहीं थी अनगिनत बुराइयाँ समाज में व्याप्त थी उस समय तथाकथित भगवन बिना कुछ किये ही अपने लोक को वापस चले गए. हो सकता है की बाबा की नजरों में भारत के स्वतंत्रता सेनानी अपराधी थे और ब्रिटिश समाज सुधारक !

४. साईं बाबा चिलम भी पीते थे. एक बार बाबा ने अपने चिमटे को जमीं में घुसाया और उसमें से अंगारा बहार निकल आया और फिर जमीं में जोरो से प्रहार किया तो पानी निकल आया और बाबा ने अंगारे से चिलम जलाई और पानी से कपडा गिला किया और चिलम पर लपेट लिया. (अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) बाबा नशा करके क्या सन्देश देना चाहते थे और जमीं में चिमटे से अंगारे निकलने का क्या प्रयोजन था क्या वो जादूगरी दिखाना कहते थे? इस प्रकार के किसी कार्य से मानव जीवन का उद्धार तो नहीं हो सकता हाँ ये पतन के साधन अवश्य हें .

५. शिर्डी में एक पहलवान था उससे बाबा का मतभेद हो गया और दोनों में कुश्ती हुयी और बाबा हार गए(अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) . वो भगवान् का रूप होते हुए भी अपनी ही कृति मनुष्य के हाथों पराजित हो गए?

६. बाबा को प्रकाश से बड़ा अनुराग था और वो तेल के दीपक जलाते थे और इस्सके लिए तेल की भिक्षा लेने के लिए जाते थे एक बार लोगों ने देने से मना कर दिया तो बाबा ने पानी से ही दीपक जला दिए.(अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) आज तेल के लिए युध्ध हो रहे हैं. तेल एक ऐसा पदार्थ है जो आने वाले समय में समाप्त हो जायेगा इस्सके भंडार सीमित हें और आवश्यकता ज्यादा. यदि बाबा के पास ऐसी शक्ति थी जो पानी को तेल में बदल देती थी तो उन्होंने इसको किसी को बताया क्यूँ नहीं?

७. गाँव में केवल दो कुएं थे जिनमें से एक प्राय सुख जाया करता था और दुसरे का पानी खरा था. बाबा ने फूल डाल कर खारे जल को मीठा बना दिया. लेकिन कुएं का जल कितने लोगों के लिए पर्याप्त हो सकता था इसलिए जल बहार से मंगवाया गया.(अध्याय 6 साईं सत्चरित्र) वर्ल्ड हेअथ ओर्गानैजासन के अनुसार विश्व की ४० प्रतिशत से अधिक लोगों को शुध्ध पानी पिने को नहीं मिल पाता. यदि भगवन पीने के पानी की समस्या कोई समाप्त करना चाहते थे तो पुरे संसार की समस्या को समाप्त करते लेकिन वो तो शिर्डी के लोगों की समस्या समाप्त नहीं कर सके उन्हें भी पानी बहार से मांगना पड़ा. और फिर खरे पानी को फूल डालकर कैसे मीठा बनाया जा सकता है?

8. फकीरों के साथ वो मांस और मच्छली का सेवन करते थे. कुत्ते भी उनके भोजन पत्र में मुंह डालकर स्वतंत्रता पूर्वक खाते थे.(अध्याय 7 साईं सत्चरित्र ) अपने स्वार्थ वश किसी प्राणी को मारकर खाना किसी इश्वर का तो काम नहीं हो सकता और कुत्तों के साथ खाना खाना किसी सभ्य मनुष्य की पहचान भी नहीं है.

अमुक चमत्कारों को बताकर जिस तरह उन्हें भगवान् की पदवी दी गयी है इस तरह के चमत्कार तो सड़कों पर जादूगर दिखाते हें . काश इन तथाकथित भगवान् ने इस तरह की जादूगरी दिखने की अपेक्षा कुछ सामाजिक उत्तथान और विश्व की उन्नति एवं समाज में पनप रहीं समस्याओं जैसे बाल विवाह सती प्रथा भुखमरी आतंकवाद भास्ताचार अआदी के लिए कुछ कार्य किया होता!

9.साँईँ के चमत्कारिता के पाखंड और झूठ का पता चलता है, उसके “साँईँ चालिसा” से।
दोस्तोँ आईये पहले चालिसा का अर्थ जानलेते है:-
“हिन्दी पद्य की ऐसी विधा जिसमेँ चौपाईयोँ की संख्या मात्र 40 हो, चालिसा कहलाती है।”
क्या आपने कभी गौर किया है?.?……
कि साँईँ चालिसा मेँ कितनी चौपाईयाँ हैँ?
यदि नहीँ, तो आज ही देखेँ….
जी हाँ, कुल 100 or 200.
तनिक विचारेँ क्या इतने चौपाईयोँ के होने पर भी उसे चालिसा कहा जा सकता है?
नहीँ न?…..
बिल्कुल सही समझा आप लोगोँ ने….
जब इन व्याकरणिक व आनुशासनिक नियमोँ से इतना से इतना खिलवाड़ है, तो साईँ केझूठे पाखंडवादी चमत्कारोँ की बात ही कुछ और है!
कितने शर्म की बात है कि आधुनिक विज्ञान के गुणोत्तर प्रगतिशिलता के बावजूद लोग साईँ जैसे महापाखंडियोँ के वशिभूत हो जा रहे हैँ॥

क्या इस भूमि की सनातनी संताने इतनी बुद्धिहीन हो गयी है कि जिसकी भी काल्पनिक महिमा के गपोड़े सुन ले उसी को भगवान और महान मानकर भेडॉ की तरह उसके पीछे चल देती है ?
इसमे हमारा नहीं आपका ही फायदा है …. श्रद्धा और अंधश्रद्धा में फर्क होता है, श्रद्धालु बनो …. भगवान को चुनो