Posted in बॉलीवुड - Bollywood

This is “Pooja Dadwal” was the heroine of Atul Agnihotri in Salman Khan’s film “Veergati”.
Nowhere to be seen after that. Took a stand on TV because of not getting success in movies and got married in Goa in some time.
cut to – 2018

Pooja got TB, that too in very serious condition. And in today’s age, there are people who get scared of TB and remove their family members. Pooja’s family broke up with them and left them to die. A friend brought him to Mumbai and got him admitted to the government hospital.
Pooja had no money, he Ravi for help through a video. Ravi Kishan helped them financially and got them treated.

Now worship lives in a move and passes the tiffin service.
No one can tell when the time will turn.

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas, हिन्दू पतन

वर्ष 1757
तुर्क लुटेरा अहमद शाह अब्दाली लूटपाट करता हुआ पंजाब में प्रवेश करता है। आम बाजारों में लूटपाट, आम लोगों, गुलाम महिलाओं और बच्चों का सामूहिक कत्लेआम तो आम बात थी, लेकिन एक और काम किया गया। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को अपवित्र किया गया। गाय को तालाब में काट कर फेंक दिया गया और मंदिर पर अब्दाली का कब्जा हो गया। जब अब्दाली वापस लौटा तो उसने अपने बेटे को पंजाब का सूबेदार बना दिया।
तथाकथित महान सिख साम्राज्य में इतनी ताकत नहीं थी कि वह अपने स्वर्ण मंदिर को मुक्त करा सके। ऐसे कठिन समय में पूरे भारत में एक ही व्यक्ति था, जिस पर उनकी उम्मीद टिकी हुई थी। और तभी मदद के लिए पुणे में एक दयालु पत्र पहुंचा। मराठा साम्राज्य के तात्कालिक पेशवा बालाजी बाजीराव के पास…
वे शिवाजी के सैनिक थे, हिंदुत्व के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले योद्धा! महान पेशवा बाजीराव बल्लाल की महान वीरता परंपरा के वाहक! वे कैसे आगे न आते?
तो पेशवा ने अपने छोटे भाई सेनापति पंडित रघुनाथ राव राघोबा को आदेश दिया।  रघुनाथ राव के लिए यह शक्ति का कार्य नहीं, धर्म का कार्य था। वे अपनी सेना लेकर सरहिंद पहुँचे और एक झटके में पूरा पंजाब मुगलों और अफगानों के अत्याचारों से मुक्त हो गया। स्वर्ण मंदिर पुनः पवित्र हो गया। वहाँ की पवित्र पूजा परंपरा पुनः बहाल हो गई। धर्म की पताका पुनः लहराने लगी। रुकिए। क्या कथा यहाँ पूरी हो जाती है? नहीं कहानी अब शुरू होती है। १७६१ में अहमदशाह अब्दाली पुनः लौटा। पानीपत के मैदान में वही राघोबा भारतीय ध्वज लेकर अब्दाली का सामना करने के लिए खड़े थे। देश के अधिकांश हिंदू राज्य अपनी सेना लेकर उनके साथ खड़े हो गए। सिखों की ओर? नहीं वे नहीं आए। राघोबा की सेना ने तो भोजन देने से भी इनकार कर दिया। युद्ध में मराठों की हार हुई। सदाशिव राव, विश्वास राव और असंख्य मराठा सरदार वीरगति को प्राप्त हुए। उधर पेशवा बालाजी पुत्र की मृत्यु से टूट गए और भाई की भी मृत्यु हो गई।  कहते हैं, तब महाराष्ट्र में कोई घर ऐसा नहीं था, जिसके एक-दो सदस्य वीरगति को न प्राप्त हुए हों। अब्दाली की सेना में केवल एक चौथाई सैनिक बचा था।
बस, प्रतीक्षा करें। पानीपत युद्ध जीतने के बाद अब्दाली अपनी बची हुई खुची सेना और हजारों भारतीय महिलाओं बच्चों को गुलाम बनाकर पंजाब लौट गया। उस लुटेरे पर किसी ने पत्थर नहीं फेंका। वापस पहुँचकर अब्दाली ने 727 गाँवों को रोजगार दिया, जिससे पटियाला राज्य की स्थापना हुई।
लेकिन अब्दाली कहाँ रहा? कोई दोस्त नहीं। वह एक साल बाद लौटा और सबसे पहले स्वर्ण मंदिर को बारूद से उड़ा दिया।
पता नहीं लोग कहानियाँ कैसे भूल जाते हैं, जबकि किताबें भरी पड़ी हैं। विकिपीडिया पर इतना कुछ लिखा है कि आँखें खुल जाती हैं, लेकिन पढ़ना कौन चाहता है…
खैर! आज स्वर्ण मंदिर के रक्षक पेशवा बालाजी बाजीराव की पुण्यतिथि है। श्रद्धांजलि अर्पित करें।
आज किसी ने याद दिला दिया!

सर्वेश!
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