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निओ दिप

कब्र मे मुर्दे को खाने वाले कीड़े भी कुछ सालो मे नष्ट हो जाते हैं। परन्तु हिन्दू उनपर सिर रगड़ते हैं।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक शहर है,बहराइच ।बहराइच में हिन्दू समाज का मुख्य पूजा स्थल है गाजी बाबा की मजार। मूर्ख हिंदू लाखों रूपये हर वर्ष इस पीर पर चढाते है। इतिहास का जानकार हर व्यक्ति जानता है,कि महमूद गजनवी के उत्तरी भारत को १७ बार लूटने व बर्बाद करने के कुछ समय बाद उसका भांजा सलार गाजी भारत को दारूल इस्लाम बनाने के उद्देश्य से भारत पर चढ़ आया । वह पंजाब ,सिंध, आज के उत्तर प्रदेश को रोंद्ता हुआ बहराइच तक जा पंहुचा। रास्ते में उसने लाखों हिन्दुओं का कत्लेआम कराया, लाखों हिंदू औरतों के बलात्कार हुए, हजारों मन्दिर तोड़ डाले।

राह में उसे एक भी ऐसा हिन्दू वीर नही मिला जो उसका मान मर्दन कर सके। इस्लाम की जेहाद की आंधी को रोक सके। परंतु बहराइच के राजा सुहेल देव पासी ने उसको थामने का बीडा उठाया । वे अपनी सेना के साथ सलार गाजी के हत्याकांड को रोकने के लिए जा पहुंचे। महाराजा व हिन्दू वीरों ने सलार गाजी व उसकी दानवी सेना को मूली गाजर की तरह काट डाला । सलार गाजी मारा गया। उसकी भागती सेना के एक एक हत्यारे को काट डाला गया। हिंदू ह्रदय राजा सुहेल देव पासी ने अपने धर्म का पालन करते हुए, सलार गाजी को इस्लाम के अनुसार कब्र में दफ़न करा दिया।

कुछ समय पश्चात् तुगलक वंश के आने पर फीरोज तुगलक ने सलारगाजी को इस्लाम का सच्चा संत सिपाही घोषित करते हुए उसकी मजार बनवा दी। आज उसी हिन्दुओं के हत्यारे, हिंदू औरतों के बलातकारी ,मूर्ती भंजन दानव को हिंदू समाज एक देवता की तरह पूजता है। सलार गाजी हिन्दुओं का गाजी बाबा हो गया है सलार गाजी हिन्दुओं का भगवान बनकर हिन्दू समाज का पूजनीय हो गया है। अब गाजी की मजार पूजने वाले ,ऐसे हिन्दुओं को मूर्ख न कहे तो क्या कहें ।

ख्वाजा गरीब नवाज़, अमीर खुसरो, निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर
जाकर मन्नत मांगने वाले सनातन धर्मी (हिन्दू) लोगो के लिए विशेष :–

पूरे देश में स्थान स्थान पर बनी कब्रों,मजारों या दरगाहों पर हर वीरवार को जाकर शीश झुकाने व मन्नत करने वालों से कुछ प्रश्न :-

1.क्या एक कब्र जिसमे मुर्दे की लाश मिट्टी में बदल चुकी है वो किसी की मनोकामना पूरी कर सकती हैं?
2. ज्यादातर कब्र या मजार उन मुसलमानों की हैं जो हमारे पूर्वजो से लड़ते हुए मारे गए
थे, उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना क्या उन वीर पूर्वजो का अपमान नहीं हैं जिन्होंने अपने प्राण धर्म की रक्षा करते हुए बलि वेदी पर समर्पित कर दियें थे?
3. क्या हिन्दुओ कोे अपने श्री राम, श्री कृष्ण अथवा अन्य देवी देवताओं पर भरोसा नहीं हैं जो मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक हैं?
4. जब गीता में श्री कृष्ण साफ़ साफ़ कहा हैं की कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ मांगने से क्या हासिल होगा?

“यान्ति देवव्रता देवान्
पितृन्यान्ति पितृव्रताः
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति
मद्याजिनोऽपिमाम्”

श्री मद भगवत गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भूत प्रेत, मुर्दा, पितृ (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र,मजार अथवा समाधि) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद प्रेत की योनी में ही विचरण करते हैं व उसे ही प्राप्त करते हैं l

  1. भला किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा आदि वीरो की स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता हैं तो भला हमारे ही देश पर आक्रमण करनेवालो की कब्र पर हम क्यों शीश झुकाते हैं?
  2. क्या संसार में इससे बड़ी मूर्खता का प्रमाण आपको मिल सकता हैं?

  3. हिन्दू कौनसी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति मुसलमानों की कब्रों की पूजा कर प्राप्त कर रहे हैं जो वेदों- उपनिषदों में कहीं नहीं गयीं हैं?

  4. कब्र, मजार पूजा को हिन्दू मुस्लिम सेकुलरता की निशानी बताना हिन्दुओ को अँधेरे में रखना नहीं तो क्या हैं ?

आशा हैं इस लेख को पढ़ कर आपकी बुद्धि में कुछ प्रकाश हुआ होगा l अगर आप श्री राम और श्री कृष्ण को मानते हैं तो तत्काल इस मुर्खता पूर्ण अग्यान को छोड़ दे और अन्य हिन्दुओ को भी इस बारे में बता कर उनकी मूर्खता को दूर करे| अपने धर्म को जानिए l इस अज्ञानता के चक्र में से बाहर निकलिए।

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निओ दिप

तो भक्त जनों

आज की अगली कड़ी में साईं शिरडी (उर्फ़ चाँद मिया) की कथा आगे बढ़ाते हैं

एक बार एक जिज्ञासु बालक साईं शिरडी के भक्त के सामने कुछ प्रश्न लेकर बेठ गया

जिज्ञासु बालक- के कुछ प्रश्न

1) हमारे शास्त्रों में ॐ को कभी नाम के आगे नही लगाया जाता । जैसे ॐ राम या ॐ कृष्ण कभी नही होता
🤔तो ॐ साईं राम क्यों???

2) जो साईं (उर्फ़ चाँद मिया) कभी अपने गांव की सीमा के पार नही गये वो ब्रह्मांड नायक किस तरह?

3) साईं शिरडी (चाँद मिया) के जीवन काल में शिरडी गाँव में बड़ी मुश्किल से 40 या 50 परिवार रहते होंगे
जबकि साईं के चमत्कारों से सम्बंधित किस्से कहानियों की संख्या 500 या हज़ार के पार जा चुकी है जिसमे हर कहानी में साई के चमत्कार की कृपा पात्र व्यक्ति अलग अलग परिवारों से हैं। अब ये 50 परिवार के गाँव में 500 या हज़ार परिवार किधर से आ गए ?

4) साईं शिरडी (चाँद मुहम्मद) ने जीवन भर इस्लाम का पालन किया । पांच समय नमाज़ पढ़ी। बकरे को स्वयं हलाल करके खाया।
जबकि श्री रामजी शुद्ध शाकाहारी व् वेद अनुयायी थे।

तो एक इस्लाम का अनुयायी और एक वेद अनुयायी में साम्यता कैसे ?

🤔🤔 तो साईं के साथ श्री रामजी का नाम क्यों जोड़ दिया ?

5) साईं शिरडी की अम्मी का नाम क्या था?

6) साई शिरडी के अब्बा हजूर का नाम क्या था?

7) साईं शिरडी के अब्बा हज़ूर का पेशा क्या था व् उनका जन्म किधर हुआ था? क्या अफगानिस्तान में?

😳😳ईन प्रश्नों को सुनते ही मेरे तोते उड़ गए

में प्रतीक्षा में था कि साईं के भक्त इस प्रश्न का उत्तर देंगे लेकिन वे निरुत्तर थे।

फिर मेने इन प्रश्नों का उत्तर खोज निकाला

क्या आप भी उत्तर खोजोगे ? 🤔🤔🤔🤔

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निओ दिप

साईं संत या पापी?

एक मुस्लिम संत जो की हजारों करोडो पढ़े लिखे और अमिर लोगो, लेकिन मुर्ख हिन्दुओ के द्वारा पूजा जाता है | लाखो पढ़े लिखे हिंदू एक ऐसे मुस्लिम संत के अंध भक्त होकर पूजते है जिसे हम शिरडी के साईं बाबा के नाम से जानते है| वो संत जो खुद एक मस्जिद में रहता था, सबके सामने कुरान पढता था और एक ही संदेश देता था की मुझे मरने के बाद दफना देना,, ना की जला देना, पर अधिकतर मुर्ख लोग उसे समझ नहीं पाए और उसे अपने भगवानो से ऊपर दर्जा देकर एक ऐसे मुर्दे को पूजते है जो स्वयं एक मुसलमान है…

सिर्फ यही नहीं यह पाखंडी खुद को हिंदू देवी देवताओं का अंश बताता था स्वयं में नारायण, शिव, क्रिशन और राम जैसे हजारों देवी देवताओं के रूप में खुद की पूजा करवाता था पर हिंदू मुस्लिम एकता की बात जरुर करता था| ये एक पूरी तरह से एकतरफा कार्य है जिसमे सारा बलिदान केवल हिन्दुओ को ही देना पड़ता है जैसे की साईं राम, इस्लाम ग्रहण करना, मुस्लिम लड़के द्वारा हिंदू लड़की से शादी करना, और हिन्दुओ केबड़े धार्मिक स्थलों में मुसलमानों को ऊँचे पड़ देना आदि, और मुर्ख हिंदू इन बातो को मान भी लेता है बिना ये सोचे की परधर्म में जीना और उससे अपनाने पर लोक परलोक कही भी ठिकाना नहीं मिलता| साईं का केवल एक ही उद्देश्य था जो किसी समय अजमेर के मुस्लिम संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिस्ती ने आरम्भ किया था| साईं का कार्य केवल उस परम्परा का निर्वहन करते हुए हिंदू को और मुर्ख बना कर इस्लाम के और समीप लाकर उनका मतांतरण कराना था| आज भी ९०० सालो की इस्लामी गुलामी के बाद हिंदू धर्म कुछ कमजोर अवश्य हुआ है और इसे दूर करने के लिए ऐसे पाखंडियों के पाखंड और षड्यंत्र को मिटाने की आवश्यकता है|

सनातनी इश्वरो को पीछे करके साईं को आगे लाने का षड्यंत्र

बाबा शब्द फारसी और इस्लामी संस्कृति का एक शब्द है जिसका हिंदी या संस्कृत में कोई उल्लेख नहीं है परन्तु इसे दुस्प्रचारित किया गया की ये शब्द संस्कृत का है| बाबा एक सूफी संत को मिलने वाली पदवी या नाम है जो मलेशिया के मुस्लिम संतो को मिलती है जब उन्हें कोई इस्लामिक सम्मान मिलता है| बाबा शब्द असल में दादा(पिता के पिता) का ही दूसरा अर्थ है, बाद में ये उस व्यक्ति के लिए प्रयोग में होने लगा जो किसी सनातन संस्कृति को खतम करके इस्लामी सत्ता का ध्वज किसी देश में फहराता है| इसलिए एक तरह से साईं बाबा देश में इस्लामी ध्वज फहराने के लिए पूरी तरह से इस्लामी कठमुल्लो द्वारा प्रचारित किये जा रहे है|

अल्लाह मालिक शब्द ही इस्लामी सत्ता फैला कर साईं के द्वारा हिन्दुओ को मुर्ख बना कर उन्हें धर्म से डिगाना ये सबसे बड़ा उदहारण है साईं के मुस्लिम होने का पर साईं के अंधभक्त अक्सर इस जीते जागते सबूत को ख़ारिज करते रहे है साईं के असली नाम और उसके जनम को लेकर बहुत सी कथाये और कहानिया है यहाँ तक साईं नाम भी शिर्डी हेमाडपंत द्वारा श्री साईं सत्चरित्र में दिया गया है पर ये व्यक्ति कौन है और उसने ये किताब क्यों लिखी इसका आज तक कोई प्रमाण नहीं है और इस किताब का भी कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं है की ये किसी हिन्दू द्वारा रचित है

साईं की असली फोटो देखिये, क्या फोटो में ये हिन्दू लगता है और क्या ऐसा लगता है की इसके अन्दर ऐसी कोई ताकत है जिससे ये लोगो के दुःख दूर कर सकता है. या फिर इसका पहनावा पूरी तरह से मुस्लिम होने के बाद भी ये हिन्दुओ को पूरी तरह से दिग्भ्रमित करके उन्हें मुर्ख बना रहा है ऐसी हजारो साईटस है जो साईं के चमत्कारों का प्रचार करती है जो पूरी तरह से झूठ और फरेब है..

शिरडी साईं की जिंदगी एक मस्जिद में व्यतीत हुई और उनका अधिकतर समय इस्लामी भगवान “अल्लाह” के लिए जाप करके कटी| लेकिन अधिकतर हिंदू साईं को एक अवतार और देवीय वरदान मान कर उसकी उसी तरह पूजा करते है जैसे की सनातन संस्कृति में की जाति है जो की पूरी तरह से गलत और सनातन संस्कृति के विरुद्ध है| कुछ साईं को स्वामी रामदास की तरह पूजते है तो कुछ शिव की तरह, वही कुछ भगवान दत्तात्रेय की तुलना साईं से करते है, अब तो कुछ सिक्ख भी गुरु नानक के तरह ही साईं को अवतार मान कर साईं को पूजने लगे है जो की खुद सिक्ख परंपरा के खिलाफ है| साईं का सबसे प्रसिद्ध वाक्य है “अल्लाह मालिक है” इसलिए साईं के हिंदू न होने के बहुत से प्रमाण होते हुए भी कुछ साईं भक्त इसे या ये कहते है को वो इसे संत मानते है या फिर कहते है की वे सिर्फ थोडा बहुत इसे मानते है| एक खास तरह का संगठन साईं को भगवन मानने पर उतारू है और साईं के पैसे का स्वयं के लिए उपभोग करके हिंदू मान्यतो को एक नए ही दृष्टिकोण बना रहे है|

कुछ मुर्ख लोगो ने हनुमान स्तुति और दुर्गा चालीसा की तर्ज पर साईं के नाम से साईं आरती और भजन संध्या जैसे जाने कितने ग्रन्थ लिख कर सनातन धर्म की प्राचीन प्रतिष्ठा को आघात पंहुचा कर हिन्दू धर्म को ही दूषित करने से बाज नहीं आ रहे है सनातन धर्म केवल वेड, पुराणों उपनिषदों और शास्त्रों पर आधारित है पर युवा पीढ़ी को जिस तरह से धर्म के नाम पर साईं का पाखंड दिखा कर सनातन धर्म से विमुख किया जा रहा है वो बहुत ही निंदनीय है

असल में साईं एक इस्लामिक बुद्धि का व्यक्ति और और अल्लाह का एक सिपाही है जिसका काम मुर्ख हिन्दुओ को अपने जाल में फस कर इस्लामिक सत्ता कायम करना है यही काम अजमेर के ख्वाजा चिस्ती ने किया था और दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन ने किया.. पर अक्सर लोग इस भूल में जीते रहते है की उनकी तो कब्र है पर साईं की तो मूर्ति है जिसे मुसलमान पूजते है नहीं है और यही पर लोग मुर्ख बन जाते है असल में कुरान के कहे अनुसार साम दाम दंड भेद जैसे भी हो इस्लामी सत्ता कायम करना ही मुसलमानों का फ़र्ज़ है जिसे पूरा करने में साईं ने पूरी इमानदारी दिखाई और आज उसकी इसी बात का फायदा मुसलमान उठा रहे है, यही नहीं जो लोग कहते है साईं की तो मूर्ति है तो उनके लिए एक जानकारी की साईं की एक समाधी या माजर भी है

…… ऐसे फोटो आजकल चोराहों पर लगाकार …भगवान का खुलेआम अपमान और हिन्दुओ को मूर्ख बनाया जा रहा है ? मुस्लिम साई के चक्कर में नहीं पड़ते ….धर्म के पक्के है …..सिर्फ अल्लाह ……. हिन्दू प्रजाति ही हमेशा मूर्ख क्यो बनती है ……
साईं को सनातनी बताकर धर्म का अपमान करने का एक षड्यंत्र
एक सच्चाई

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निओ दिप

साँई माँसाहार का प्रयोग करता था व स्वयं जीवहत्या करता था?
प्रमाण:-
(1)मस्जिद मेँ एक बकरा बलि देने के लिए लाया गया। वह अत्यन्त दुर्बल और मरने वाला था। बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 161.

(2)तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैँ स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 162.

(3)फकीरोँ के साथ वो आमिष(मांस) और मछली का सेवन करते थे।
-:अध्याय 5. व 7.

(4)कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल अर्थात् नमकीन पुलाव।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 269.

(5)एक एकादशी के दिन उन्होँने दादा कलेकर को कुछ रूपये माँस खरीद लाने को दिये। दादा पूरे कर्मकाण्डी थे और प्रायः सभी नियमोँ का जीवन मेँ पालन किया करते थे।
-:अध्याय 32. पृष्ठः 270.

(6)ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है? दादा ने योँ ही मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा है। तब बाबा कहने लगे कि तुमने न अपनी आँखोँ से ही देखा है और न ही जिह्वा से स्वाद लिया, फिर तुमने यह कैसे कह दिया कि उत्तम बना है? थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो। बाबा ने दादा की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मेँ डालकर बोले -”अपना कट्टरपन छोड़ो और थोड़ा चखकर देखो”।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 270.

प्रश्न:-
{1}क्या साँई की नजर मेँ हलाली मेँ प्रयुक्त जीव ,जीव नहीँ कहे जाते?{2}क्या एक संत या महापुरूष द्वारा क्षणभंगुर जिह्वा के स्वाद के लिए बेजुबान नीरीह जीवोँ का मारा जाना उचित होगा?{3}सनातन धर्म के अनुसार जीवहत्या पाप है।
तो क्या साँई पापी नहीँ?{4}एक पापी जिसको स्वयं क्षणभंगुर जिह्वा के स्वाद की तृष्णा थी, क्या वो आपको मोक्ष का स्वाद चखा पायेगा?{5}तो क्या ऐसे नीचकर्म करने वाले को आप अपना आराध्य या ईश्वर कहना चाहेँगे?

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निओ दिप

साईं – वैदिक धर्म के लिए अभिशाप है

आज हमारे देश में तथाकथित भगवानो का एक दौर चल निकला है. इन्हीं भगवानों में से एक हैं शिर्डी के साईं बाबा. आज भारतवर्ष के हर नगर में इनके अनेकों मंदिर हैं . अनेकों संस्थाएं इनके नाम से चल रही हें एवं देश विदेश में इनको मानने वालों की तथा इनके लिए दान देने वालों की संख्या में निरंतर वृध्धि हो रही है. महाराष्ट्र के अहमदनगर में स्थित शिर्डी साईं बाबा शीरीं के अनुसार वर्ष २०११ में केवल इस ट्रस्ट को ही ३६ किलो ग्राम सोना, ४४० किलोग्राम चांदी एवं ४०१ Cr रूपया दान में मिला. समस्त साईं मंदिरों में दिए गए दान का तो अनुमान भी लगाना भी संभव नहीं है.

आज साईं को इश्वर का अवतार माना जा रहा है . हमारे महपुरुषों श्री राम कृष्ण का ही रूप इन्हिने बतलाया जा रहा है और उनके इस्थान पर इनकी पूजा की जा रही है. मन में प्रशन उठता है की आखिर ये बाबा हैं कौन, कहाँ से ये आये थे और किस तरह ये लोगों का भला करते हैं. साईं एक पारसी शब्द है जिसका अर्थ है मुस्लिम फकीर. साईं एक टूटी हुयी मस्जिद में रहा करते थे और सर पर कफनी बंधा करते थे. सदा ” अल्लाह मालिक” एवं ” सबका मालिक एक” पुकारा करते थे ये दोनों ही शब्द मुस्लिम धर्म से संभंधित हैं.साईं का जीवन चरित्र उनके एक भक्त हेमापंदित ने लिखा है. वो लिखते हैं की बाबा एक दिन गेहूं पीस रहे थे. ये बात सुनकर गाँव के लोग एकत्रित हो गए और चार औरतों ने उनके हाथ से चक्की ले ली और खुद गेहूं पिसना प्रारंभ कर दिया. पहले तो बाबा क्रोधित हुए फिर मुस्कुराने लगे. जब गेंहूँ पीस गए त्तो उन स्त्रियों ने सोचा की गेहूं का बाबा क्या करेंगे और उन्होंने उस पिसे हुए गेंहू को आपस में बाँट लिया. ये देखकर बाबा अत्यंत क्रोधित हो उठे और अप्सब्द कहने लगे -” स्त्रियों क्या तुम पागल हो गयी हो? तुम किसके बाप का मॉल हड़पकर ले जा रही हो? ” फिर उन्होंने कहा की आटे को ले जा कर गाँव की सीमा पर दाल दो. उन दिनों गाँव मिएँ हैजे का प्रकोप था और इस आटे को गाँव की सीमा पर डालते ही गाँव में हैजा ख़तम हो गया. (अध्याय १ साईं सत्चरित्र )

१. मान्यवर सोचने की बात है की ये कैसे भगवन हैं जो स्त्रियों को गालियाँ दिया करते हैं हमारी संस्कृति में तो स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है और कहागया है की यात्रा नार्यस्तु पुजनते रमन्ते तत्र देवता . आटा गाँव के चरों और डालने से कैसे हैजा दूर हो सकता है? फिर इन भगवान् ने केवल शिर्डी में ही फैली हुयी बीमारइ के बारे में ही क्यूँ सोचा ? क्या ये केवल शिर्डी के ही भगवन थे?

२. साईं सत्चरित्र के लेखक ने इन्हें क्रिशन का अवतार बताया गया है और कहा गया है की पापियों का नाश करने के लिए उत्पन्न हुए थे परन्तु इन्हीं के समय में प्रथम विश्व युध्ध हुआ था और केवल यूरोप के ही ८० लाख सैनिक इस युध्द में मरे गए थे और जर्मनी के ७.५ लाख लोग भूख की वजह से मर गए थे. तब ये भगवन कहाँ थे. (अध्याय 4 साईं सत्चरित्र )

३. १९१८ में साईं बाबा की मृत्यु हो गयी. अत्यंत आश्चर्य की बात है की जो इश्वर अजन्मा है अविनाशी है वो भी मर गया. भारतवर्ष में जिस समय अंग्रेज कहर धा रहे थे. निर्दोषों को मारा जा रहा था अनेकों प्रकार की यातनाएं दी जा रहीं थी अनगिनत बुराइयाँ समाज में व्याप्त थी उस समय तथाकथित भगवन बिना कुछ किये ही अपने लोक को वापस चले गए. हो सकता है की बाबा की नजरों में भारत के स्वतंत्रता सेनानी अपराधी थे और ब्रिटिश समाज सुधारक !

४. साईं बाबा चिलम भी पीते थे. एक बार बाबा ने अपने चिमटे को जमीं में घुसाया और उसमें से अंगारा बहार निकल आया और फिर जमीं में जोरो से प्रहार किया तो पानी निकल आया और बाबा ने अंगारे से चिलम जलाई और पानी से कपडा गिला किया और चिलम पर लपेट लिया. (अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) बाबा नशा करके क्या सन्देश देना चाहते थे और जमीं में चिमटे से अंगारे निकलने का क्या प्रयोजन था क्या वो जादूगरी दिखाना कहते थे? इस प्रकार के किसी कार्य से मानव जीवन का उद्धार तो नहीं हो सकता हाँ ये पतन के साधन अवश्य हें .

५ शिर्डी में एक पहलवान था उससे बाबा का मतभेद हो गया और दोनों में कुश्ती हुयी और बाबा हार गए(अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) . वो भगवान् का रूप होते हुए भी अपनी ही कृति मनुष्य के हाथों पराजित हो गए?

६. बाबा को प्रकाश से बड़ा अनुराग था और वो तेल के दीपक जलाते थे और इस्सके लिए तेल की भिक्षा लेने के लिए जाते थे एक बार लोगों ने देने से मना कर दिया तो बाबा ने पानी से ही दीपक जला दिए.(अध्याय 5 साईं सत्चरित्र ) आज तेल के लिए युध्ध हो रहे हैं. तेल एक ऐसा पदार्थ है जो आने वाले समय में समाप्त हो जायेगा इस्सके भंडार सीमित हें और आवश्यकता ज्यादा. यदि बाबा के पास ऐसी शक्ति थी जो पानी को तेल में बदल देती थी तो उन्होंने इसको किसी को बताया क्यूँ नहीं?

७. गाँव में केवल दो कुएं थे जिनमें से एक प्राय सुख जाया करता था और दुसरे का पानी खरा था. बाबा ने फूल डाल कर खारे जल को मीठा बना दिया. लेकिन कुएं का जल कितने लोगों के लिए पर्याप्त हो सकता था इसलिए जल बहार से मंगवाया गया.(अध्याय 6 साईं सत्चरित्र) वर्ल्ड हेअथ ओर्गानैजासन के अनुसार विश्व की ४० प्रतिशत से अधिक लोगों को शुध्ध पानी पिने को नहीं मिल पाता. यदि भगवन पीने के पानी की समस्या कोई समाप्त करना चाहते थे तो पुरे संसार की समस्या को समाप्त करते लेकिन वो तो शिर्डी के लोगों की समस्या समाप्त नहीं कर सके उन्हें भी पानी बहार से मांगना पड़ा. और फिर खरे पानी को फूल डालकर कैसे मीठा बनाया जा सकता है?

८. फकीरों के साथ वो मांस और मच्छली का सेवन करते थे. कुत्ते भी उनके भोजन पत्र में मुंह डालकर स्वतंत्रता पूर्वक खाते थे.(अध्याय 7 साईं सत्चरित्र ) अपने स्वार्थ वश किसी प्राणी को मारकर खाना किसी इश्वर का तो काम नहीं हो सकता और कुत्तों के साथ खाना खाना किसी सभ्य मनुष्य की पहचान भी नहीं है.

अमुक चमत्कारों को बताकर जिस तरह उन्हें भगवान् की पदवी दी गयी है इस तरह के चमत्कार तो सड़कों पर जादूगर दिखाते हें . काश इन तथाकथित भगवान् ने इस तरह की जादूगरी दिखने की अपेक्षा कुछ सामाजिक उत्तथान और विश्व की उन्नति एवं समाज में पनप रहीं समस्याओं जैसे बाल विवाह सती प्रथा भुखमरी आतंकवाद भास्ताचार अआदी के लिए कुछ कार्य किया होता!

यह संसार अंधविश्वास और तुच्छ ख्यादी एवं सफलता के पीछे भागने वालों से भरा पड़ा हुआ है. दयानंद सरस्वती, महाराणा प्रताप शिवाजी सुभाष चन्द्र बोस सरदार भगत सिंह राम प्रसाद बिस्मिल सरीखे लोग जिन्होंने इस देश के लिए अपने प्राणों को न्योच्चावर कर दीये लोग उन्हिएँ भूलते जा रहे हैं और साईं बाबा जिसने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में न कोई योगदान दिया न ही सामाजिक सुधार में कोई भूमिका रही उनको समाज के कुछ लोगों ने भगवान् का दर्जा दे दिया है. तथा उन्हें योगिराज श्री कृष्ण और मायादापुरुशोत्तम श्री राम के अवतार के रूप में दिखाकर न केवल इन महापुरुषों का अपमान किया जा रहा अपितु नयी पीडी और समाज को अवनति के मार्ग की और ले जाने का एक प्रयास किया जा रहा है.

आवश्यकता इस बात की है की है की समाज के पतन को रोका जाये और जन जाग्रति लाकर वैदिक महापुरुषों को अपमानित करने की जो कोशिशेन की जा रही हिएँ उनपर अंकुश लगाया जाये ।

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निओ दिप

जो साई को पूजते है उनसे एक एक सवाल …..
किस धर्मग्रंथ मे साई का नाम लिखा है ?????
राम के चरणों कि स्तुति गाने वाली ….कृष्ण की लीलाओ का रसास्वादन करने वाली….शिव कि महिमाओ का वर्णन करके खुद को परम धन्य समझने वाली परम सोभाग्यशाली हिन्दुओ ने किस आधार पर …साई के नाम का घंटा बजाना चालू कर दिया …जवाब हो तो जरूर दीजिएगा………….किस धर्मग्रंथ मे साई का नाम लिखा है ???????? अगर तुम लोगो को संतो को पूजना ही आधुनिक फैशन लग रहा है अथवा साई को पूजने के लिए ये तर्क है तो … ऋषियों को पूजो न …..वशिष्ठ को पूजो न …. अत्री मुनि को पूजो न ….संदीपनी को पूजो न …….दधीचि को पूजो न ……..वाल्मीकि को पूजो न …..साई बाबा न इनसे बड़ा संत था न इनसे बड़ा सिध्ध…… अगर ये पुराने लगते है तो तुलसी दास को पूजो न ………. उन्होने रामायण लिख दी…… उन्हे मंदिरो में स्थापित नहीं किया हा चार चमत्कार दिखाकर…. एक दो उपदेश देकर….सबका मालिक एक का नारा देने वाले साई महाशय को किस आधार पर भगवान बनाकर मंदिरो में स्थापित करने का फतवा जारी कर दिया कुछ साई अंधभक्तो ने ….. अथवा साई अजेंटों ने अथवा साई दलालो ने अथवा साई के नाम पर धंधा करने वालो ने ….
भारत एक भक्ति प्रधान देश है यहा कि अंधी जनता को हर दस वर्ष में एक नया भगवान चाहिए। अरे मूढ़ो क्या तेतीस कोटि देवता तुम्हारे लिए कम पड गए है… या शिव जी ,श्री हरि ,श्री कृष्ण ,श्री राम ,माँ भवानी सब से मन ऊब गया है तुम्हारा… या बस चार चमत्कार देख लिए या किसी के मुह से सुन भी लिए तो बस वही हो गया तुम्हारा मुक्ति दाता। अक्ल पर पत्थर पड गए है या पापो ने बुद्धि को इतना कुंठित कर दिया है कि इतना नहीं सोच पा रहे कि साई महाराज को किस आधार पर भगवान घोसीत कर दिया….बिना सिर पैर के तर्को के आधार पर ही तुम किसी को भगवान मान लोगे? संत पुजयनीय होते है उनके लिए मन में श्रीद्धा होनी चाहिए पर ये जो तुम कर रहे हो वोह तो आँख वाला होकर भी कुए में गिर पड़ने कि तरह है। मेरी श्रद्धा सभी संतो पर है, पर संतो को ही एक मात्र परमबरमहा मानकर सर्वव्यापक परमेश्वर कि अवमानना नहीं कि जा सकती॥ और अवतार अकारण नहीं होता स्वयं भगवान कहते है कि किसी उद्देश्य से होता है और साई महाराज का क्या उद्देश्य था सिर्फ ज्ञान देना…..एकता का संदेश देना …बस….या फिर साई महाराज के ‘लेटैस्ट वर्जन ‘ सत्य साई के अवतार लेने का उद्देश्य क्या था मुह से बॉल निकालकर दिखाना , उँगलियो से राख़ निकालकर दिखाना , जादू से हाथ से जंजीर पैदा कर देना …..ऐसी चीजे सड्को पर एक एक दो दो रुपया मांगते जादूगर दिखाया करते थे……. कड़वा लगे पर सच यही है ….. कि भ्रांतियुक्त बुद्धि से , सिर्फ सुनकर और सिर्फ सुनकर ही सबका मालिक एक चिल्लाते हुये शिरडी वाले साई बाबा आए है तेरे दर पे — गाते हुये शिर्डी कि परिक्रमा लगाकर खुद को भगवान का परम उपासक समझने वाले सिर्फ मूर्ख है सिर्फ मूर्ख है सिर्फ मूर्ख है …… इतना बहुत है …….जिस साई के उपासक के पास इन सब बातो का पूर्णतः ठोस जवाब हो तो ही बात करे … वरना इतने पर भी इन बातो को दरकिनार कर अब भी पूजा कि अलमारी मे भगवान के बीच में रखे साई बाबा के सामने बैठकर … साई राम साई राम चिल्लाना इससे बड़ा मूर्खता का उदाहरण मुझे तो ढूँढे नहीं मिलेगा…….. ……… सोचिए……… और निस्कर्ष निकालिए ….. सच क्या है ….और इतने पर भी जो हिन्दू साई का लॉकेट अपने गले से न निकाले तो उसे खुद को हिन्दू कहने का हक तो है पर वो सनातन धर्मी कतई नहीं है ….क्यो कि सनातन धर्म मे साई था ही नहीं …….न है .
अक्सर इन बातो को सुनकर भी कुछ धर्मप्रिय हिंदुत्ववादी हिन्दू साई का मोह नहीं छोड़ पाते इसलिए वो अंत मे एक तर्क देते है कि हे हे हे अजी हम तो साई को संत मानते है इसलिए मंदिरो में स्थापित करके उनकी पूजा करते है तो क्या साई महाराज से पहले कोई ज्ञानी संत नहीं हुये थे …महर्षि वाल्मीकि जिनहोने कि अपनी त्रिकालदर्शिता से राम की लीलाओ के अंत से पहले ही रामायण कि रचना पूर्ण कर दी थी क्या साई महाराजजी उनसे ज्यादा त्रिकालदर्शी थे। या ब्रम्हाऋषि वसिष्ठ से भी ज्यादा श्रेस्ठ थे जो कि स्वयं श्री राम के कुलगुरु थे …. या विश्वामित्र से ज्यादा बड़े तपस्वी थे…. या वेदब्यास जी जिनके द्वारा अठारह पुराण,चारो वेद,महाभारत,श्रीमदभगवतगीता सहित अनेकों धर्मग्रंथो कि रचना कि थी उनसे बड़े ज्ञानी … या महर्षि दधीचि से ज्यादा बड़े त्यागी थे….चमत्कारो कि कहो तो साई महाराज से बड़े बड़े चमत्कार पहले भी ऋषि मुनियो ने प्रकट किए है तुलसी दास जी ने भी किए थे सूरदास जी ने भी…..तो ये बस ईश्वर भक्त थे भगवान नहीं तो साई महाराज भगवान कैसे हो गए?…… या बस कोई साधारण मनुष्य साईचारित नाम से कोई पुस्तक लिख थे उसी के आधार पर उन्हे भगवान मान लिया?
अरे मुर्खाधिराजों (सच है कृपया मुंह कड़वा मत होने देना) …इन धर्मग्रंथो कि रचना क्यो कि गयी …. इसीलिए ताकि जब मनुष्य भटके तो इनसे धर्म की प्रेरणा ले सके …किस धर्मग्रंथ में लिखा है कि साई महाराज नाम के कोई अवतार होंगे?…..लिखा हुआ तो बहुत दूर रामायण ,महाभारत ,श्रीमद्भगवत गीता ,वेद,उपनिषद श्रुतिया पुराण इनमे साई महाराज का नाम तक नहीं है….तो हिन्दू हो तो क्या धर्मग्रंथो को भी झूठा साबित करोगे।इनमे कलयुग में सिर्फ दो अवतार लिखे गए है एक हो चुका और दूसरा कलयुग के अंतिम चरण में होगा कल्कि अवतार….. तो क्या वेदब्यास जी साई महाराज का जिक्र करना भूल गए होंगे?…..वेदब्यास जी ने ग्रंथो में और तुलसी दास जी ने रामायण में बहुत पहले ही कलयुग का चित्रण किया है जो कि बिलकुल सही है तो क्या उन्होने जानबूझकर साई महाराज के बारे में नहीं लिखा कि साई महाराज नाम के कोई अवतार होंगे?…… नहीं

जिसको भी भक्ति का क्षय और अपना धर्म भ्रष्ट करना हो …..वही साई साई करे …..जो हिन्दू है ….. और भगवान को प्यार करता है ……साई बाबा के चक्कर में न पड़े……. भगवान को छोडकर …… किसी और को भगवान के स्थान पर पूजना …..भगवान के साथ साथ भक्ति और धर्म का भी अपमान है …… जय श्री राम

अपने परमसमर्थ , परम कृपालु , परमभक्तवत्सल…… परम दयालु श्री भगवान को छोडकर ……साई के दर पर जाकर दौलत की भीख मांगने वालो,साई से अपनी इक्षाओ की पूर्ति की आशा रखने वालो को .तुमसे बड़ा मूर्खता का उदाहरण कलयुग में और क्या होगा?

एक सच्चाई

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साई का सच.


साई का सच…. शिरडी साई ट्रस्ट 60 वर्षों से एक मुस्लिम फ़क़ीर साई बाबा उर्फ चांदमियाँ को ना केवल हिंदू ब्राह्मण साबित करने का कुत्सित प्रयास कर रहा है, बल्कि अवतार प्रमाणित करने मे लगा हुआ है. धर्म का मूल उद्देश्य ही सत्य की खोज है .उस आस्था का क्या मूल्य जो झूठ और कपट के सहारे खड़ी हुई हो .सत्य तो यह है कि मौला साई के 99% भक्तों को उनकी असलियत के बारे मे कुछ मालूम ही नहीं है . मौला साई के जीवन के बारे मे सबसे प्रामाणिक जानकारी उनके सेवक गोविंदराव दाभोलकर की पुस्तक “‘साई सतचरित्र “” मे मिलती है . यह पुस्तक स्वयं मौला साई के द्वारा ही लिखी मानी जाती है, क्योंकि गोविंद राव ने जब बाबा से उनकी जीवनी लिखने की आज्ञा माँगी तो बाबा ने उन्हे आशीर्वाद देते हुए कहा कि “” मैं तुम्हारे अंतकरण मे प्रकट होकर स्वयं ही अपनी जीवनी लिखूंगा “”.गोविंद राव ने मस्जिद मे होने वाली घटनाओ को संकलित कर सर्वप्रथम मराठी मे पुस्तक लिखी . यही वह पुस्तक है जिसके बल पर चाँदमियाँ को महिमामंडित किया गया है . प्रस्तुत लेख मे साई सतचरित्र पुस्तक के उन तथ्यों को लिखा गया है जो साबित करते हैं कि साई बाबा कट्टर मुस्लिम था. इस लेख का मूल उद्देश्य सत्य को प्रकट करना है… 1 : साई बाबा सारा जीवन मस्जिद मे रहे ( पुस्तक मे हर जगह इस बात का उल्लेख है) नोट : मौला साई लगभग पेंसठ वर्ष तक शिर्डी मे रहे पर एक भी रात उन्होने किसी हिंदू मंदिर मे नही गुज़ारी 2 : अल्लाह मालिक सदा उनके ज़ुबान पर था वो सदा अल्लाह मालिक पुकारते रहते ( पूरी पुस्तक मे जगह जगह इस बात का उल्लेख है ) नोट : मौला साई के मुख से कभी जय श्रीराम, हर हर महादेव या जय माता दी नहीं निकलता था. ना ही कभी वो ओम का उच्चारण करते थे. 3 : रोहीला मुसलमान आठों प्रहार अपनी कर्कश आवाज़ मे क़ुरान शरीफ की कल्मे पढ़ता और अल्लाह ओ अकबर के नारे लगाता. परेशान होकर जब गाँव वालो ने बाबा से उसकी शिकायत की तो उन्होने कहा कि”” वे उसकी कलमो के समक्ष उपस्थित होने का साहस करने मे असमर्थ हैं .”” और बाबा ने गाँव वालों को भगा दिया.( अध्याय 3 पेज 5 ) नोट : शिरडी साई ट्रस्ट इन्ही मौला साई को अखिल ब्रह्मांड नायक कहता है जो क़ुरान की कलमो से डर गये. 4 : तरुण फ़क़ीर को उतरते देख म्हलसापति ने उन्हे सर्वप्रथम “” आओ साई “” कहकर पुकारा. (अध्याय 5 पेज 2 ) नोट : मौला साई मुस्लिम फ़क़ीर थे और फ़क़िरो को अरबी और उर्दू मे साई नाम से पुकारा जाता है. साई शब्द मूल रूप से हिन्दी नही है 5 : मौला साई हमेशा कफनी पहनते थे .(अध्याय 5 पेज 6 ) नोट : कफनी एक प्रकार का पहनावा है जो मुस्लिम फ़क़ीर पहनते हैं 6 : मौला साई सुन्नत (ख़तना ) कराने के पक्ष मे थे. (अध्याय 7 पेज1) नोट : सुन्नत कराना मुस्लिम धर्म की परंपरा है 7 : फ़क़िरो के संग बाबा माँस और मछली का सेवन भी कर लेते थे .(अध्यया 7 पेज 3) नोट : कोई भी हिंदू संत ऐसा घृणित काम नहीं कर सकता. 8 : बाबा ने कहा “” मैं मस्जिद मे एक बकरा हलाल करने वाला हूँ, हाज़ी सिधिक से पूछो की उसे क्या रुचिकर होगा .बकरे का माँस ,नाध या अंडकोष “” (अध्याय 11 पेज 5 ) नोट : हिंदू संत कभी स्वपन मे भी बकरा हलाल नही कर सकता. न ही ऐसे वीभत्स भोजन खा सकता है 9 : एक बार मस्जिद मे एक बकरा बलि चढाने लाया गया तब साई बाबा ने काका साहेब से कहा “” मैं स्वयं ही बलि चढाने का कार्य करूँगा “”.(अध्याय 23 पेज 6) नोट : हिंदू संत कभी ऐसा जघ्न्य कृत्य नही कर सकते. 10 : मालेगाँव के फ़क़ीर पीर मोहम्मद का साई बाबा बहुत आदर करते. वे सदेव उन्हे अपने दाहिने ओर बैठाते. सबसे पहले वो चिलम पीते फिर बाबा को देते .जब दोपहर का भोजन परोस दिया जाता तब बाबा बड़े आदर से उसे उन्हे बुलाकर अपनी दाहिनी ओर बैठाते तब सब भोजन करते .बाबा के पास जो भी दक्षिणा एकत्रित होती उसमे से रोज पचास रुपये वो पीर मोहम्म्द को देते. जब वो लौटते तो बाबा भी सौ कदम तक उनके साथ जाते.(अध्याय 23 पेज 5 ) नोट : मौला साई इतना सम्मान कभी किसी हिंदू संत को नही देते थे .रोज पचास रुपये वो उस समय देते थे जब बीस रुपया तोला सोना मिलता था. मौला साई के जीवन काल में उनके पास इतना दान आता था आयकर विभाग की जाँच भी हुई थी. 11 : एक बार बाबा के भक्त मेघा ने उन्हे गंगा जल से स्नान कराने की सोचा तो बाबा ने कहा “”मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो .मैं तो एक फ़क़ीर हूँ मुझे गंगाजल से क्या प्रायोजन. (अध्याय 28 पेज 7 ) नोट : किसी हिंदू के लिए गंगा स्नान जीवन भर का सपना होता है .गंगा जल का दर्शन भी हिंदुओं मे अति पवित्र माना जाता है 12 : कभी बाबा मीठे चावल बनाते और कभी माँस मिश्रित चावल (पुलाव) बनाते थे (अध्याय 38 पेज 2) नोट : माँस मिश्रित चावल अर्थात मटन बिरयानी सिर्फ़ मुस्लिम फ़क़ीर ही खा सकता हैं, कोई हिंदू संत उसे देखना भी पसंद नही करेगा. 13 : एकादशी को बाबा ने दादा केलकर को कुछ रुपये देकर कुछ माँस खरीद कर लाने को कहा (अध्याय 38 पेज 3 ) नोट : एकादशी हिंदुओं का सबसे पवित्र उपवास का दिन होता है कई घरो मे इस दिन चावल तक नही पकता. 14 : जब भोजन तैयार हो जाता तो बाबा मस्जिद से बर्तन मंगाकर मौलवी से फातिहा पढ़ने को कहते थे (अध्याय 38 पेज 3) नोट : फातिहा मुस्लिम धर्म का संस्कार है 15 : एक बार बाबा ने दादा केलकर को माँस मिश्रित पुलाव चख कर देखने को कहा .केलकर ने मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा है .तब बाबा ने केलकर की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मे डालकर बोले थोड़ा सा इसमे से निकालो अपना कट्टरपन छोड़कर चख कर देखो.(अध्याय 38 पेज 5) नोट : मौला साई ने परीक्षा लेने के नाम पर जीव हत्या कर एक ब्राहमण का धर्म भ्रष्ट कर दिया किंतु कभी अपने किसी मुस्लिम भक्त की ऐसी कठोर परीक्षा नही ली. अन्य तथ्य जो सिद्ध करते हैं साई बाबा जेहादी मुसलमान था… 1 : मुल्ला जेहादी साई का सेवक अब्दुल बाबा जो लगभग तीस साल तक बाबा के साथ मस्जिद मे ही रहा रोज बाबा को क़ुरान सुनाता था. वो रोज रामायण या गीता नही सुनता था. 2 : महाराष्ट्र मे शिर्डी साई मंदिर मे गाई जाने वाली आरती का अंश मंदा त्वांची उदरिले! मोमीन वंशी जन्मुनी लोँका तारिले!” उपरोक्त आरती मेँ “”मोमिन वंशी जन्मुनी “” अर्थात् मुसलमान वंश मे जन्मे शब्द स्पष्ट आया है. (15 साल से मोमीन वंशी गा रहे हैं फिर भी मौला को ब्राहमाण बता रहे हैं ) 3 : मौला साई ने अपनी मृत्यु के कुछ दिन पहले औरंगाबाद के मुस्लिम फ़क़ीर शमशूद्दीन मियाँ को दो सौ पचास रुपये भिजवाया ताकि उनका मुस्लिम रीति रिवाज़ से अंतिम संस्कार कर दिया जाए तथा सूचना भिजवाई की वो अल्लाह के पास जाने वाले हैं .( ये एक तरह से मृत्यु पूर्व बयान जैसा है जिसे कोर्ट भी सच मानती है अगर बाबा हिंदू होते तो तेरहवी करवाते गंगाजली करवाते ) 4 : मुल्ला साई जब तक जीवित रहा शिरडी मे सूफ़ी फ़क़ीर के नाम से ही जाने जाता था. 5 : मौला साई की मृत्यु के बाद उनकी मज़ार बनाई गई थी जो 1954 तक थी. फिर उसे समाधी मे बदल दिया गया .हम न मौला साईं विरोधी हैं न सांप्रदायिक हैं लेकिन हमारा प्रयास है कि चांदमियां को जानबूझकर हिन्दु न साबित किया जाए। पिछले पचास साल से पैसा कमाने के लिए जैसा अधर्म शिरडी ट्रस्ट ने किया वैसा इतिहास में कभी नहीं हुआ। श्री राम के नाम से सीता माता को हटा दिया. शिर्डी साई संस्थान के अरबपति लालची तथाकथित पंडो का फैलाया षड्यंत्रकारी जाल का झूठ… जिस मौला साई के जन्म तिथि का कोई अता पता नही उनकी कपट पूर्वक राम नवमी के दिन जयंती मनाई जा रही है . मौला साई हमेशा अल्लाह मलिक बोलता था, जबकि “”सबका मलिक एक”” नानक जी कहते थे . जो मौला साईं जीवन भर मस्जिद में रहे उसे मंदिर में बैठा दिया गया, जो मौला साईं व्रत उपवास के विरोधी थे उनके नाम से साईं व्रत कथा छप रही हैं, जो मौला साईं हमेशा अल्लाह मालिक बोलते थे उनके साथ ओम और राम को जोड़ दिया, जो मौला साईं रोज कुरान पड़ते थे उनके मंत्र बनाये जा रहे हैं, पुराण लिखी जा रही है. जो मौला साईं मांसाहारी था उन्हें हिन्दू अवतार बनाया जा रहा है, जिस मुल्ला साईं ने गंगा जल छूने से इंकार कर दिया उसके नाम से यज्ञ किये जा रहे हैं, गंगा जल से अभिषेक किया जा रहा है, जो खुद निगुरा था उसे सदगुरु बनाया जा रहा है। जो मुल्ला साई खुद अनपढ़ था उनके नाम से गीता छापी जा रही है, कब्रगाही व्यक्ति के मंदिर बनाना सनातन हिंदू धर्म मे पाप है . इस देश मे हज़ारों संत हुए किंतु किसी की भी मंदिर नही हैं. व्यास जैसे ऋषि जिन्होने 18 पुराण लिखे गीता लिखी, अगस्त्य, विश्वामित्र, कपिल मुनि ,नारद, दत्तात्रेय, भृिगु, पाराशर,सनक ,सनन्दन सनतकुमार ,शौनक, वशिष्ट, वामदेव ,बाल्मीक, तुलसीदास , गोरखनाथ , तुकाराम, मीरा, एकनाथ , मुक्ताबाई , नरहरी, नामदेव सोपान,संत रविदास , चैतन्य महाप्रभु ,राम कृष्ण परमहंस आदि आदि कितने ही संत हुए किंतु किसी के भी जगह जगह मंदिर नहीं हैं. हर राम भक्त हिन्दू से अनुरोध है कि हिन्दू धर्म की शुद्धि और पवित्रता के लिए इसे अधिक शेयर करें…

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तथ्य जो सिद्ध करते हैं साई बाबा मुसलमान थे


तथ्य जो सिद्ध करते हैं साई बाबा मुसलमान थे

१ :: मौला साई का सेवक अब्दुल बाबा जो लगभग तीस साल तक बाबा के साथ मस्जिद मे ही रहा रोज बाबा को क़ुरान सुनाता था . वो रोज रामायण या गीता नही सुनते थे .

२ :: महाराष्ट्र मे शिर्डी साई मंदिर मे गाई जाने वाली आरती का अंश
मंदा त्वांची उदरिले! मोमीन वंशी जन्मुनी लोँका तारिले!” उपरोक्त
.फिर उसे समाधी मे बदल दिया गया .चांद मियां को जानबूझकर हिन्दु न साबित किया जाए।पिछले पचास साल से पैसा स्पष्ट आया है .

( ९५ साल से मोमीन वंशी गा रहे हैं फिर भी मौला को ब्राहमाण बता रहे हैं )

३ :: मौला साई ने अपनी मृत्यु के कुछ दिन पहले औरंगाबाद के मुस्लिम
फ़क़ीर शमशूद्दीन मियाँ को दो सौ पचास रुपये भिजवाया ताकि उनका मुस्लिम रीति रिवाज़ से अंतिम संस्कार कर दिया जाए तथा सूचना भिजवाई की वो अल्लाह के पास जाने वाले हैं .( ये एक तरह से मृत्यु पूर्व बयान जैसा है
जिसे कोर्ट भी सच मानती है अगर बाबा हिंदू होते तो तेरहवी करवाते
गंगाजली करवाते .)

४ :: मौला साई जब तक जीवित रहे शिरडी मे सूफ़ी फ़क़ीर के नाम से ही जाने जाते थे .

५ :: मौला साई की मृत्यु के बाद उनकी मज़ार बनाई गई थी जो 1954 तक थी
.फिर उसे समाधी मे बदल दिया गया .चांद मियां को जानबूझकर हिन्दु न साबित किया जाए।पिछले पचास साल से पैसा माने के लिए जैसा अधर्म शिरडी ट्रस्ट ने किया वैसा इतिहास में कभी नहीं हुआ। श्री राम के नाम से सीता माता को हटा दिया .

शिर्डी साई संस्थान के झूठ —

जिस मौला साई के जन्म तिथि का कोई अता पता नही उनकी कपट पूर्वक राम नवमीके दिन जयंती मनाई जा रही है .

मौला साई हमेशा अल्लाह मलिक पुकारते थे जबकि “”सबका मलिक एक”” नानक जी कहते थे .

जो मौला साईं जीवन भर मस्जिद में रहे उसे मंदिर में बैठा दिया गया .जो मौला साईं व्रत उपवास के विरोधी थे उनके नाम से साईं व्रत कथा छप रही हैं

जो मौला साईं हमेशा अल्लाह मालिक बोलते थे उनके साथ ओम और राम को जोड़ दिया

जो मौला साईं रोज कुरान पड़ते थे उनके मंत्र बनाये जा रहे हैं पुराण लिखी
जा रही है .

जो मौला साईं मांसाहारी थे उन्हें हिन्दू अवतार बनाया जा रहा है

जिस मौला साईं ने गंगा जल छूने से इंकार कर दिया उसके नाम से यज्ञ किये
जा रहे हैं गंगा जल से अभिषेक किया जा रहा है जो खुद निगुरा था उसे
सदगुरु बनाया जा रहा है।

जो मौला साई खुद अनपढ़ थे उनके नाम से गीता छापी जा रही है

मरणधर्मा व्यक्ति के मंदिर बनाना हिंदू धर्म मे पाप है .

इस देश मे हज़ारों संत हुए किंतु किसी की भी मंदिर नही हैं व्यास जैसे ऋषि जिन्होने गीता भाष्य लिखी, अगस्त्य ,विश्वामित्र, कपिल मुनि ,नारद,
दत्तात्रेय, भृिगु, पाराशर,सनक ,सनन्दन सनतकुमार ,शौनक ,वशिष्ट ,वामदेव
,बाल्मीक ,तुलसीदास , गोरखनाथ ,तुकाराम, नामदेव, मीरा, एकनाथ ,मुक्ताबाई,, नरहरी, नामदेव ,सोपान,संत रविदास , चैतन्य महाप्रभु ,आदि आदि कितने ही संत हुए किंतु किसी के भी जगह जगह मंदिर नहीं हैं .

हर हिन्दू से अनुरोध है कि हिन्दू धर्म की शुद्धि और पवित्रता
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जागो हिंदू जागो !! जागो हिंदू जागो !! जागो हिंदू जागो !! जागो
हिंदू जागो !! जागो हिंदू जागो !!

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पिण्डारी डाकू साईं की असली कहानी और उसके द्वारा हिन्दुओं के खिलाफ जिहाद फैलाने के षड्यंत्र का खुलाशा :-


पिण्डारी डाकू साईं की असली कहानी और उसके द्वारा हिन्दुओं के खिलाफ जिहाद फैलाने के षड्यंत्र का खुलाशा :-
पिछले दिनों मेरे एक मित्र ने शिर्डी साईं के बारे में बहुत सी जानकारी इकठ्ठा की और मुझे बताया की साईं असल में क्या है कहा से आया, जन्म मरण और फिर इतना लम्बे समय बाद उसका अचानक भगवान बनकर निकलना, ये सब कोई संयोग नहीं सोचा समझा षड्यंत्र है।
साईं का जन्म 1838 में हुआ था, पर कैसे हुआ और उसके बाद की पूरी कथा बहुत ही रोचक है, साईं के पिता का असली नाम था बहरुद्दीन, जो की अफगानिस्तान का एक पिंडारी था, वैसे इस पर एक फिल्म भी आई थी जिसमे पिंडारियो को देशभक्त बताया गया है, ठीक वैसे ही जैसे गाँधी ने मोपला और नोआखली में हिन्दुओ के हत्यारों को स्वतंत्रा सेनानी कहा था, औरंगजेब की मौत के बाद मुग़ल साम्राज्य ख़तम सा हो गया था केवल दिल्ली उनके आधीन थी, मराठा के वीर सपूतों ने एक तरह से हिन्दू साम्राज्य की नीव रख ही दी थी। ऐसे समय में मराठाओं को बदनाम करके उनके इलाकों में लूटपाट करने का काम ये पिंडारी करते थे, इनका एक ही काम था लूटपाट करके जो औरत मिलती उसका बलात्कार करना। आज एक का बलात्कार, कल दूसरी का, इस तरह से ये मराठाओं को तंग किया करते थे, पर समय के साथ साथ देश में अंग्रेज आये और उन्होंने इन पिंडारियो को मार मार कर ख़तम करना शुरू किया, साईं का बाप जो एक पिंडारी ही था, उसका मुख्य काम था अफगानिस्तान से आकर भारत के राज्यों में लूटपाट करना, एक बार लूटपाट करते करते वह महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुंचा जहा वह एक वेश्या के घर रुक गया, उम्र भी जवाब दे रही थी, सो वो उसी के पास रहने लग गया, कुछ समय बाद उस वेश्या से उसे एक लड़का और एक लड़की पैदा हुआ, लड़के का नाम उसने चाँद मियां रखा और उसे लेकर लूटपाट करना सिखाने के लिए उसे अफगानिस्तान ले गया, उस समय अंग्रेज पिंडारियों की ज़बरदस्त धर पकड़ कर रहे थे इसलिए बहरुद्दीन भेस बदल कर लूटपाट करता था उसने अपने सन्देश वाहक के लिए चाँद मिया को रख लिया, चाँद मिया आज कल के उन मुसलमान भिखारियों की तरह था जो चादर फैला कर भीख मांगते थे। जिन्हें अँगरेज़ blanket beggar कहते थे, चाँद मिया का काम था लूट के लिए सही वक़्त देखना और सन्देश अपने बाप को देना, वह उस सन्देश को लिख कर उसे चादर के निचे सिल कर हैदराबाद से अफगानिस्तान तक ले जाता था, पर एक दिन ये चाँद मियां अग्रेजो के हत्थे लग गया और उसे पकड़वाने में झाँसी के लोगों ने अंग्रेजों की मदद की जो अपने इलाके में हो रही लूटपाट से तंग थे। उसी समय देश में पहली आजादी की क्रांति हुई और पूरा देश क्रांति से गूंज उठा, अंग्रेजो के लिए बुरा समय था और इसके लिए उन्हें खूंखार लोगों की जरुरत थी, बहर्दुद्दीन तो था ही लालची, सो उसने अंग्रेजो से हाथ मिला लिया और झाँसी चला गया, वहां उसने लोगों से घुलमिल कर झाँसी के किले में प्रवेश किया और समय आने पर पीछे से दरवाजा खोलकर रानी लक्ष्मी बाई को हाराने में अहम्भूमिका अदा की, यही चाँद मिया आठ साल बाल जेल से छूटकर कुछ दिन बाद शिर्डी पंहुचा और वह के सुलेमानी लोगोंसे मिला; जिनका असली काम था गैरमुसलमानों के बीच रह कर चुपचाप इस्लाम को बढ़ाना|
चाँद मियां ने वहीं से अल तकिया का ज्ञान लिया और हिन्दुओं को फ़साने के लिए साईं नाम रख कर शिर्डीमें आसन जमा कर बैठ गया, मस्जिद को जानबूझकर एक हिन्दू नाम दिया और उसके वहा ठहराने का पूरा प्रबंध सुलेमानी मुसलमानों ने किया, एक षड्यंत्र के तहत साईं को भगवान का रूप दिखाया गया और पीछे से ही हिन्दू मुस्लिम एकता की बातें करके स्वाभिमानी मराठाओं को मुर्दा बनाने के लिए उन्हें उनके ही असली दुश्मनों से एकता निभाने का पाठ पढ़ाया गया; पर पीछे ही पीछे साईं का असली मकसद था लोगों में इस्लाम को बढ़ाना।
इसका एक उदाहरण साईंसत्चरित्र में है कि साईं के पास एक पोलिसवाला आता है जिसे साईं मार मार भगाने की बात कहता है, अब असल में हुआ ये की एक पंडित जी ने अपने पुत्र को शिक्षा दिलवाने के लिए साईं को सोंप दिया पर साईं ने उसका खतना कर दिया जब पंडित जी को पता चला तो उन्होंने कोतवाली में रिपोर्ट कर दी, साईं को पकड़ने के लिए एक पुलिस वाला भी आया जिसे साईं ने मार कर भगाने की बात कही थी। मेरी साई बाबा से कोई निजी दुश्मनी नहीं है, परतुं हिन्दू धर्म का नाश हो रहा है, इसलिए मै कुछ सवाल करना चाहता हूं, हिन्दू धर्म एक सनातन धर्म है, लेकिन आज कल लोग इस बात से परिचित नहीं हैं ? क्या जब भारत मे अंग्रेजी सरकार अत्याचार और सबको मौत के घाट उतार रहे थे तब साईबाबा ने कौन से ब्रिटिश अंग्रेजो के साथ आंदोलन किया ? जिदंगी भीख मांगने मे कट गई? मस्जिद मे रह कर कुरान पढ़ना जरूरी था? बकरे हलाल करना क्या जरूरी था ? सब पाखंड है, पैसा कमाने का जरिया है।
ऐसा कौन सा दुख है कि उसे भगवान दूर नही कर सकते है, श्रीमतभगवतगीता मे लिखा है कि श्मशान और समाधि की पुजा करने वाले मनुष्य राक्षस योनी को प्राप्त होते हैं! साई जैसे पाखंडी की आज इतनी ज्यादा मार्केटिंग हो गयी है कि हमारे हिन्दू भाई बहिन आज अपने मूलधर्म से अलग होकर साई मुल्ले कि पूजा करने लगे हैं।
आज लगभग हर मंदिर में इस जिहादी ने कब्जा कर लिया है। हनुमान जी ने हमेशा सीता राम कहा और आज के मूर्ख हिन्दू हुनमान जी का अपमान करते हुए सीताराम कि जगह साईं राम कहने लग गए । बड़े शर्म कि बात है। आज जिसकी मार्केटिंग ज्यादा; उसी कि पूजा हो रही है। इसी लिए कृष्ण भगवान ने कहा था कि कलयुग में इंसान पथ और धर्म दोनों से भ्रष्ट हो जाएगा। 100 मे से 99 को नहीं पता साईं कौन था? इसने कौन सी किताब लिखी? क्या उपदेश दिये ?पर फिर भी भगवान बनाकर बैठे हैं। साई के माँ बाप का सही सही पता नहीं ?पर मूर्खो को ये पता है कि ये किस किस के अवतार हैं?
अंग्रेज़ो के जमाने मे मूर्खो के साई भगवान पैदा होकर मर गए पर किसी भी एक महामारी भुखमरी मे मदद नहीं की। इनके रहते भारत गुलाम बना रहा पर इन महाशय को कोई खबर नहीं रही। शिर्डी से कभी बाहर नहीं निकले पर पूरे देश मे अचानक इनकी मौत के 90-100 साल बाद इनके मंदिर कुकरमूत्ते की तरह बनने लगे? चालीसा हनुमान जी की हुआ करती थी ;पर आज साईं की हो गयी। राम सीता के हुआ करते थे। आज साईं ही राम हो गए। श्याम राधा के थे आज वो भी साईं बना दिये गए। ब्रहस्पति दिन विष्णु भगवान का होता था; आज साई का मनाया जाने लगा। भगवान की मूर्ति मंदिरो में छोटी हो गयी और साईं विशाल मूर्ति में हो गया।प्राचीन हनुमान मंदिर दान को तरस गए और साई मंदिरो के तहखाने तक भर गए।
मूर्ख हिन्दुओं अगर दुनिया मे सच मे कलयुग के बाद भगवान ने इंसाफ किया तो याद रखना मुंह छुपाने के लिए और अपनी मूर्ख बुद्धि पर तरस खाने के लिए कहीं शरण भी न मिलेगी। इसलिए भागवानों की तुलना मुल्ले साईं से करके पाप मत करो !
साभार : – डाक्टर वैद्य पंडित विनय कुमार उपाध्याय

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साईं


*साई का इतिहास-* अवश्य पढ़ें 

 बीरगति को प्राप्त हुई रानी लक्ष्मी बाई को मरवाने वाले गद्दारो के बारे मे इतिहास लोगों मेंअब तक यही धारणा हे कि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई अँगरेजों से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुई थी और यह बात सत्य भी हे परंतु कितने लोगों को पता है कि इस विरांगन को पकड़ना अँगरेजों के लिए दुष्कर ही नहीं बल्कि असंभव था ।सालों से अँगरेजों के नाकमें दम करने वाली रानी को पकड़ने के लिए जब अंग्रेजों को कुछ उपाय नहीं सुझा तब उन्होंने पुराने तरीके आजमाए । यानी कि किसी गद्दार सैनिक की खोज जो रानी की सेना में हो और रानी के बारे में काफी कुछ जानता हो गद्दारों का इतिहास देखें तो सिर्फ दो नाम ऐसे हें जिन्होंने भारत के इतिहास को बदल कर रख दिया था पहला गद्दार जयचंद था जो हिन्दू साम्राज्य के विनाश का कारण बना । पृथ्वी राज चौहान अंतिम हिन्दू राजा थे जिनके बादआठ सौ वर्षों तक मुस्लिमों ने शासन किया दूसरा गद्दार मीर जाफर हुआ जो बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला का सेनापति था। वह महत्वाकांक्षी एवं लालची था भारत में अंग्रेजी राज्य की नींव बंगाल से ही पड़ी थी जब प्लासी की लड़ाई में अँगरेजों(रॉबर्टक्लाइव) ने नवाब को हराया था और उसी लड़ाई में गद्दार मीर जाफर अँगरेजों से मिल गया था। बाद में यानी 1757 में अँगरेजों ने उसे बंगाल का नवाब बनाया अब आते हे तीसरे गद्दार पर जो रानी लक्ष्मीबाई की मौत का कारण बना वह था बहरूद्दीन यानी कि चाँद मियाँ ( साँईंबाबा) का बाप बहरूद्दीन एक अफगानी पिंडारी मुसलमान था रानी लक्ष्मीबाई की सेना में लगभग 500 पिंडारी सैनिक थे जिसमें साँईं के पिता का स्थान रानी के निकटतम एवं विश्वस्त सैनिको में था अब अँगरेजों ने बहरूद्दीन को लालच देकर रानी से गद्दारी करने को तैयार कर लिया इसी के निशान देही पर अँगरेजों ने रानी को घेरा रानी अपने इकलौते बेटे को पीठ पर बाँधे भागती रही अंग्रेज पीछा करते रहे रानी हाथ नहीं लगी अब रानी का पीछा करने का जिम्मा पाँच पिंडारियों को दिया गया जिसमें एक शिर्डी वाले चाँद मिया उर्फ़ साईँ का पिता भी था उसे रानी के छिपने के स्थानों का पता था अन्ततः रानी को घेर लिया गया। रानी रणचण्डी की तरह माँ भारती की शान को ना झुकने का प्रण लिए अपनी तलवार से कत्लेआम मचाती रही अंग्रेज सेनापति हैरान था कि कैसे एक अकेली महिला उसके सैनिकों को काट रही है ।रानी गिरती फिर उठती फिर गिरती फिर उठकर लड़ती कईयों की गर्दनें उड़ा देने के पश्चात अंत में वो गिरी तलवार उसके हाथों से दूर जा गिरा हार फिर भी ना मानी वो अपनी तलवार लेने के लिए अंतिम बार उठी , निहत्था पाकर पिंडारी सैनिकों ने रानी पर जोरदार वार किया , रानी फिर कभी नहीं उठी। रानी वीर गति को प्राप्त कर चुकी थी भारत की इस बेटी ने अपनी अंतिम साँस तक अपनी मातृभूमि की , अपने देश की रक्षा की इस महान विरांगना के चरणों में मैं शीष नवाता हूँ——————————
->>यह रहा साईं बाबा का कच्चा चिट्ठा 

साईं का जन्म 1838 में हुआ था, पर कैसे हुआ और उसके बाद की पूरी कथा बहुत ही रोचक है, साईं के पिता का असली नाम था बहरुद्दीन, जो कि अफगानिस्तान का एक पिंडारी था, वैसे इस पर एक फिल्म भी आई थी जिसमे पिंडारियो को देशभक्त बताया गया है, ठीक वैसे ही जैसे गाँधी ने मोपला और नो आखली में हिन्दुओ के हत्यारों को स्वतंत्रता सेनानी कहा था.औरंगजेब की मौत के बाद मुग़ल साम्राज्य ख़तम सा हो गया था केवल दिल्ली उनके अधीन थी, मराठा के वीर सपूतो ने एक तरह से हिन्दू साम्राज्य की नीव रख ही दी थी, ऐसे समय में मराठाओ को बदनाम करके उनके इलाको में लूटपाट करने का काम ये पिंडारी करते थे, इनका एक ही काम था लूटपाट करके जो औरत मिलती उसका बलात्कार करना, आज एक का बलात्कार कल दूसरी का, इस तरह से ये मराठाओ को तंग किया करते थे, पर समय के साथ साथ देश में अंग्रेज आये और उन्होंने इन पिंडारियो को मार मार कर ख़तम करना शुरू किया.साईं का बाप जो एक पिंडारी ही था, उसका मुख्यकाम था अफगानिस्तान से भारत के राज्यों में लूटपाट करना, एक बार लूटपाट करते करते वह महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुचा, जहा वह एक वेश्या के घर रुक गया, उम्र भी जवाब दे रही थी, सो वो उसी के पास रहने लग गया, कुछ समय बाद उस वेश्या से उसे एक लड़का और एक लड़की पैदा हुआ, लड़के का नाम उसने चाँद मियां रखा और उसे लेकर लूटपाट करना सिखाने के लिए उसे अफगानिस्तान ले गया.उस समय अंग्रेज पिंडारियो की ज़बरदस्त धर पकड़ कर रहे थे, इसलिए बहरुद्दीन भेष बदल कर लूटपाट करता था. उसने अपने सन्देश वाहक के लिए चाँद मिया को रख लिया, चाँद मिया आज कल के उन मुसलमान भिखारियों की तरह था जो चादर फैला कर भीख मांगते थे, जिन्हें अँगरेज़ Blanket Begger कहते थे, चाँद मिया का काम था लूट के लिए सही वक़्त देखना और सन्देश अपने बाप को देना, वह उस सन्देश को लिख कर उसे चादर के नीचे सिल कर हैदराबाद से अफगानिस्तान तक ले जाता था, पर एक दिन ये चाँद मियां अग्रेजो के हत्थे लग गया और उसे पकडवाने में झाँसी के लोगो ने अंग्रेजो की मदद की जो अपने इलाके में हो रही लूटपाट से तंग थे.उसी समय देश में पहली आजादी की क्रांति हुई और पूरा देश क्रांति से गूंज उठा, अंग्रेजो के लिए विकट समय था और इसके लिए उन्हें खूंखार लोगो की जरुरत थी, बहर्दुद्दीन तो था ही धन का लालची, सो उसने अंग्रेजो से हाथ मिला लिया और झाँसी चला गया. उसने लोगो से घुलमिल कर झाँसी के किले में प्रवेश किया और समय आने पर पीछे से दरवाजा खोल कर रानी लक्ष्मी बाई को हराने में अहम् भूमिका अदा की, यही चाँद मिया आठ साल बाद जेल से छुटकर कुछ दिन बाद शिर्डी पंहुचा और वहके सुलेमानी लोगो से मिला जिनका असली काम था गैर-मुसलमानों के बीच रह कर चुपचाप इस्लाम को बढ़ाना.चाँद मियां ने वही से अलतकिया का ज्ञान लिया और हिन्दुओ को फ़साने के लिए साईं नाम रख कर शिर्डी में आसन जमा कर बैठ गया, मस्जिद को जानबूझ कर एक हिन्दू नाम दिया और उसके वहा ठहराने का पूरा प्रबंध सुलेमानी मुसलमानों ने किया, एक षड्यंत्र के तहत साईं को भगवान का रूप दिखाया गया और पीछे से ही हिन्दू मुस्लिम एकता की बाते करके स्वाभिमानी मराठाओ को मुर्दा बनाने के लिए उन्हें उनके ही असली दुश्मनों से एकता निभाने का पाठ पढाया गया. पर पीछे ही पीछे साईं काअसली मकसद था लोगो में इस्लाम को बढ़ाना, इसका एक उदाहरण साईं सत्चरित्र में है कि साईं के पास एक पुलिस वाला आता है जिसे साईं मार मार भगाने की बात कहता है, अब असल में हुआ ये की एक पंडित जी ने अपने पुत्र को शिक्षा दिलवाने के लिए साईं को सोंप दिया, पर साईं ने उसका खतना कर दिया. जब पंडितजी को पता चला तो उन्होंने कोतवाली में रिपोर्ट कर दी, साईं को पकड़ने के लिए एक पुलिस वाला भी आया जिसे साईं ने मार कर भगाने की बात कही थी, ये तभी की फोटो है जब पुलिस वाला साईं को पकड़ने गया था और साईं बुरका पहन कर भागा था.मेरी साई बाबा से कोई निजी दुस्मनी नही है, परतुं हिन्दू धर्म को नाश होरहा है, इसलिए मै कुछ सवाल करना चाहता हूँ. हिन्दू धर्म एक सनातन धर्म है, लेकिन आज कल लोग इस बात से परिचित नही है क्या? जब भारत मे अंग्रेजी सरकार अत्याचार और सबको मौत के घाट उतार रहे थे तब साई बाबा ने कौन से ब्रिटिश अंग्रेजो के साथ आंदोलन किया ? जिदंगी भीख मांगने मे कट गई? मस्जिदमे रह कर कुरान पढना जरूरी था. बकरे हलाल करना क्या जरूरी था ? सब पाखंड है, लोगो को मुर्ख बना कर पैसा कमाने का जरिया है। ऐसा कौन सा दुख है कि उसे भगवान दूर नही कर सकते है.श्रीमद भगवत गीता मे लिखा है कि श्मशान और समाधि की पुजा करने वाले मनुष्य राक्षस योनी को प्राप्त होते हैं.साई जैसे पाखंडी की आज इतनी ज्यादा सेल्स मार्केटिंग हो गयी है कि हमारे हिन्दू भाई बहिन आज अपने मूल धर्म से अलग होकर साई मुल्ले कि पूजा करने लगे है। आज लगभग हर मंदिर में इस जिहादी ने कब्जा कर लिया है।हनुमान जी ने हमेशा सीता राम कहा और आज के मूर्ख हिन्दू हुनमान जी का अपमान करते हुए सीता राम कि जगह साई राम कहने लग गए । बड़ी शर्म कि बात है। आज जिसकी मार्केटिंग ज्यादा उसी कि पूजा हो रही है। इसी लिए कृष्ण भगवान ने कहा था कि कलयुग में इंसान पथ और धर्म दोनों से भ्रष्ट हो जाएगा।100 मे से 99 को नहीं पता साई कौन था, इसने कौन सी किताब लिखी, क्या उपदेश दिये पर फिर भी भगवान बनाकर बैठे है ! साई के माँ बाप का सही सही पता नहीं ,पर मूर्खो को ये पता है कि ये किस किस के अवतार है ! अंग्रेज़ो के जमाने मे मूर्खो के साई भगवान पैदा होकर मर गए पर किसी भी एक महामारी भुखमरी मे मदद नहीं की। इनके रहते भारत गुलाम बना रहा पर इन महाशय को कोई खबर नहीं रही। शिर्डी से कभी बाहर नहीं निकले पर पूरे देश मे अचानक इनकी मौत के 90-100 साल बाद इनके मंदिर कुकुरमुत्ते की तरह बनने लगे।चालीसा हनुमान जी की हुआ करती थी, आज साई की हो गयी ! राम सीता के हुआ करते थे,आज साई ही राम हो गए ! श्याम राधा के थे, आज वो भी साई बना दिये गए ! बृहस्पति दिन विष्णु भगवान का होता था, आज साई का मनाया जाने लगा!भगवान की मूर्ति मंदिरो में छोटी हो गयी और साई विशाल मूर्ति मे हो गए ! प्राचीन हनुमान मंदिर दान को तरस गए और साई मंदिरो के तहखाने तक भर गए!मूर्ख हिन्दुओ अगर दुनिया मे सच मे कलयुग के बाद भगवान ने इंसाफ किया तो याद रखना मुह छुपाने के लिए और अपनी मूर्ख बुद्धि पर तरस खाने के लिए कही शरण भी न मिलेगी ! इसलिए भागवानो की तुलना मुल्ले साई से करके पाप मत करो।इस लेख को पढ़ने के बाद भीन समझ मे आए तो अपना खतना करवा के मुसलमान बन जाओ!क्या करोगे शेयर करके…⁉————–>>>साईं की मृत्यु के बाद –**दशकों तक सांई का कहीं कोई नाम लेवा नहीं था। हो सकता है कि मात्र थोड़ी दूर तक के लोग जानते होंगे। पर अब कुछ तीस या चालीस वर्षों में उनकी उपस्थिति आम हो गई है और लोगों की आस्था का पारा अचानक से उबाल करने लगा है।अच्छा मैं एक बात पूछता हूँ… आप किसी भी साठ या सत्तर साल के व्यक्ति से पूछ लें कि वे साईं बाबा का नाम पहली बार अपने जीवन में कब सुना था?.. निश्चित ही वो कहेगा कि वो पहले नहीं सुना था… कोई नब्बे या कोई अस्सीे के दशक में हीं सुना हुआ कहेगा।इत्ती जल्दी ये इत्ता बड़ा भगवान कैसे बन गया ?एक बात और… हिन्दुओं के भगवान बनाने के पहले इनके चेले चपाटों ने इन्हें कुछ इस प्रकार से पेश किया था जैसे कि सभी धर्मों के यही एक मात्र नियंता हों। हिन्दू , मुस्लिम, सिक्ख ईसाई…सभी के इष्ट यही थे।और इन्हें पेश किया कौन?.. जराये भी समझिए…सत्तर – अस्सी के दशक में जो फिल्में बनती थी या गाने होते थे उसमें या तो हिन्दूओं के भगवान या फिर मुस्लिमों के अल्लाह का जिक्र होता था। भगवान वाला सीन मुस्लिमों को स्वीकार नहीं थाऔर अल्लाह वाला हिन्दूओं को। पर नायक को अलौकिक शक्ति देने के लिए इनका सीन डालना भी जरूरी ही था।..किया क्या जाय?… तो….यह किसी निर्देशक की सोच रही होगी कि.. किसी ऐसे व्यक्ति को अलौकिक शक्ति से लैस करके दिखाया जाय ताकि किसी भी धर्म के लोगो का विरोध ना झेलनी पड़े और वे अपनी फिल्म को सफल बना लें। ऐसा ही कुछ उनके दिमाग में आया होगा… और अचानक से उनके दिमाग की बत्ती जल गई होगी जब किसी ने साईं का नाम सुझाया होगा।Eurekkka….Eurekkka कहते हुए वे उछल पड़े होंगे। इस नये भगवान का सफल परीक्षण उस ऐतिहासिक दिन को किया गया जो साईं भक्तों के लिए एक पवित्र दिन से कम नहीं है।7 जनवरी 1977 को रूपहले पर्दे पर एक फिल्म आई “”अमर अकबर एंथोनी””इस फिल्म में एक गाना बजा “शिर्डी वाले साई बाबा आया हूँ तेरे दर पे सवाली”??बस क्या था.. संयोगवश फिल्म भी हिट… बाबा भी हिट….।साई बाबा के चेले चपाटों के पैर अब तो जमीन पर पड़ ही नहीं रहे थे साई की स्वीकार्यता को देखकर। उससे पहले तक ना कहीं तस्वीर, ना कहीं मुर्ति और नाही कोई चर्चा।और उसके बाद तो हर जगह साई ही साई। फोटोशॉप करके आग से भी निकाले गए साई, जो कई भक्तों के घरों की शोभा बढ़ा रहे हैं। धीरे धीरे, चुपके चुपके हिन्दुओं के मंदिरों में मुर्तियां बैठने लगी… इनके अपने मंदिर भी बनने लगे। एक और मजे की बात कि किसी अन्य धर्मों के लोगों ने इन्हें स्वीकार किया ही नहीं सिवाय हिन्दुओं के। अब देखिए, हमारा सनातनी हिन्दू समाज अब धीरे धीरे उस मोड़ पर जा रहा है जहाँ से दो धड़े साफ साफ दिखेंगे… एक विधर्मी साईं को मानने वाले हिन्दू और दूसरे अपने सनातनी मार्ग पर चलने वाले हिन्दू। इनमें अब दूरियां बढ़ती जाएंगी और आने वाले समय में इस समाज में दो फाड़ होगा। एक “सनातनी हिन्दू” और दूसरा “साईं पूजक हिन्दू”। सनातनी वाले साईं को मान्यता नहीं देंगे और साईं वाले साईं भक्ति नहीं छोड़ेंगे। बात और आगे जाएगी… ये दोनो एक दूसरे के मंदिरों में जाना बंद कर देंगे…. यदि नहीं तो फिर सनातनी उन्हें अपने मंदिरों में आने से रोकेंगे। कोई हार मानने को तैयार नहीं होगा। और यही वो समय होगा जब हिन्दू समाज दो खेमे में बँट जायेगा। बिल्कुल उसी तरह जैसे…मुस्लिम बंटकर शिया – सुन्नी हुए….ईसाई बंटकर कैथोलिक प्रोटेस्टेन्ट हुए…..जैन बंटे तो श्वेतांबर – दिगम्बर हुए…..बौद्ध बंटे तो हीनयान – महायान हुए। हो सकता है ये सुनकर आपको अचम्भा लगे पर हिन्दू धर्म में पड़ रही यही दरार ही विभाजन का कारण बनेगी। “मेरा यह मानना है कि साईं बाबा को एक षडयंत्र की तरह हमारे बीच रोपा गया है और मैं प्राण प्रण से इसका विरोध करता रहूँगा।”शिरडी में सांई की कब्र यानि मजार पर मन्दिर बना दिया।”ना मैं पूर्वाग्रही हूँ.. ना ही दुराग्रही हूँ….और ना ही किसी से चिढ़ है। एक सनातनी हिन्दू होने के नाते अपने धर्म को दूषित और विभाजित होते नहीं देख सकता हूँ।””इसके गुनाहगार वे लोग भी होंगे जो सिर्फ़ तमाशा देख रहे हैं और आवाज नहीं उठा रहे हैं।सनातन धर्म की जय…….!जय श्री राम 

जय श्री कृष्ण 

हर हर महादेव……..