निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों के बचाव के लिए आज उठाए गए कदम ने चौंकाया है और गम्भीर सवाल को जन्म दिया है. अतः सरकार इस तथ्य की जांच CBI, IB या NIA से करवाए कि निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों के संरक्षक कौन लोग हैं, उनका एजेंडा क्या है…?
ज्ञात रहे कि पूरा देश इस तथ्य से भलीभांति परिचित है कि निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारी एक निजी बस के ड्राईवर कंडक्टर खलासी क्लीनर का काम करते थे. अतः उनकी अर्थिक पृष्ठभूमि/स्थिति का आंकलन आसानी से किया जा सकता है.
पूरा देश इस कटु सत्य से भी भलीभांति परिचित हैं कि भारतीय अदालतों में मुकदमेबाजी कितनी महंगी है, विशेषकर जब यह मुक़दमेबाजी हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचती है तो खर्च की सारी सीमाएं तोड़ देती है. यही कारण है कि पिछले कुछ महीनों से निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों के बचाव के लिए की जा रहीं अभूतपूर्व कोशिशों के कारण एक गम्भीर सवाल पिछले कई महीनों से मेरे मन को मथ रहा था. लेकिन उन घृणित हत्यारों के बचाव के लिए आज उठाए गए कदम ने तो मुझे बुरी तरह चौंकाया है.
आज मैं तब स्तब्ध हो गया जब यह समाचार मैंने पढ़ा कि निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों की फांसी की सजा के खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में अपील की गई है तथा संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग में भी अपील की गई है.
उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में मुकदमेबाजी का खर्च करोड़ों में होता है. इसे आप इस तथ्य से समझ सकते हैं कि… कुछ समय पूर्व कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा के खिलाफ भारत ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में जब अपील की थी तो देशहित में हरीश साल्वे ने जाधव की फांसी रुकवाने का मुकदमा लड़ने के लिए केवल एक रुपये फीस ली थी किन्तु ICJ में पाकिस्तान की तरफ केस लड़ने के लिए जो वकील खड़ा हुआ था उसने 6 करोड़ रुपये फीस ली थी. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में वकीलों की फीस सामान्यतः करोड़ों में ही होती है.
हालांकि यह शत प्रतिशत तय है कि चारों हत्यारों की अपील इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में सुनी ही नहीं जाएगी लेकिन प्रश्न यह है कि वो कौन सी ताकतें हैं जो इन चारों हत्यारों को बचाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने के लिए तैयार हैं.? ऐसा करने के पीछे उनका उद्देश्य क्या है.?
ध्यान रहे कि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ), में आज अपील करने से पहले भी चारों हत्यारों के बचाव के लिए अबतक निचली अदालतों से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत तक जिस तत्परता के साथ जितनी त्वरित और आक्रमक शैली में भीषण कानूनी लड़ाई लड़ी गई है, उस लड़ाई को लड़ने में जितना पैसा पानी की तरह बहाया गया होगा, उतना पैसा बहाना किसी निजी बस के ड्राईवर कंडक्टर खलासी क्लीनर या उनके परिजनों के लिए असंभव है.
चारों हत्यारों के वकील द्वारा आज दी गई यह दलील अत्यन्त हास्यास्पद और थोथी है कि हत्यारों के बचाव के लिए विदेशों में रह रहे कुछ भारतीय नागरिकों ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में अपील की है.
क्या यह सम्भव है कि… एक निजी बस में ड्राईवर कंडक्टर खलासी क्लीनर का काम करने वाले घृणित अपराधियों के विदेशों में रह रहे करोड़पति भारतीयों से इतने सघन और प्रगाढ़ सम्बन्ध हों कि वो भारतीय इन हत्यारों के लिए करोड़ों रुपये फूंकने के लिए बेचैन हुए जा रहे हैं.?
उपरोक्त पूरे घटनाक्रम से यह तो निश्चित है कि कुछ बहुत बड़ी और अदृश्य शक्तियां इन हत्यारों के बचाव के लिए जमीन आसमान एक किए हैं. लेकिन इसके पीछे उन शक्तियों का उद्देश्य क्या है.? यह सवाल अत्यन्त रहस्यमय और गम्भीर भी है. अतः देशहित में यह आवश्यक है कि सरकार इस तथ्य की जांच CBI, IB या NIA से करवाए कि निर्भया के हत्यारे चारों बलात्कारियों के संरक्षक कौन लोग हैं, उनका एजेंडा क्या है…?
मुझे आश्चर्य होता है कि इतने गम्भीर तथ्य पर देश की मीडिया ने भी आजतक ना तो ध्यान दिया, ना ही कोई सवाल पूछा…
Category: Rape
बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के तीन मुख्य कारण हैं
– इलेक्ट्राॅनिक मीडिया में अश्लीलता
– मैकाले शिक्षा पद्धति
-नैतिक मूल्यों व कानून की अनदेखी
कानून कडे़ करने की आवश्यकता है व बलात्कारियों के मामले फास्ट ट्रैक अदालतों में चलाये जाने चाहिए – स्वामी रामदेव

ये कहानी है एक ऐसे सोने के पेड़ यानि सोनागाछी की, जिस पर न जाने कितनी औरतें, लड़कियां जिन्दा लाश बनकर टंगी हुई हैं।
ये कहानी है एक ऐसे सोने के पेड़ यानि सोनागाछी की, जिस पर न जाने कितनी औरतें, लड़कियां जिन्दा लाश बनकर टंगी हुई हैं। ये कहानी है पेड़ पर टंगी इन जिन्दा लाशों को नोचने वाले चील-कौओं की, जिन्हें हम दुनिया का सबसे प्रखर प्राणी मानते हैं।
हमारे देश में देह-व्यापार को लेकर कई कानून हैं लेकिन देश के कई हिस्सों में ये आज भी लाखों लड़कियों का भाग्य है। देश के कई हिस्सों में आज भी लड़कियां देह-व्यापार के अभिशाप को भुगतने के लिए मजबूर हैं। उन्हीं इलाकों में से एक है कोलकाता का सोनागाछी। जहां बच्ची के पैदा होते ही उसकी किस्मत का फैसला हो जाता है कि उसे आगे चलकर क्या काम करना है।
सोनागाछी स्लम भारत ही नहीं, एशिया का सबसे बड़ा रेड-लाइट एरिया है। इस स्लम में 18 साल से कम उम्र की करीब 12 हजार लड़कियां सेक्स व्यापार में शामिल हैं। उन्हें बचपन से ही वो सब देखना पड़ता है, जिसके बारे में हम और आप सोचना भी पसंद नहीं करेंगे।
इसे बदनसीबी कहना गलत होगा, क्योंकि ये बदनसीबी से भी बुरा है। जिस उम्र में हमारी मां हमें दुनिया की रीति-रिवाज, लाज-शरम सिखाती हैं वहीं यहां कि बच्चियां खुद को बेचना सीखती हैं।
12 से 17 साल की उम्र में ये लड़कियां मर्दों के साथ सोना सीख जाती हैं। उन्हें खुश करना सीख जाती हैं, जिसके बदले उन्हें 274 रुपए मिलते हैं। इन रूपयों के बदले यहां की औरतें तश्तरी का खाना बनकर मर्दों की टेबल पर बिछ जाती हैं।
आप सोच रहे होंगे कि इसमें नया क्या है, पर सवाल तो यही है जो बुराई, कुरीति सदियों से चली आ रही है वो आज भी बनी हुई है। उसमें कोई नयापन नहीं आया है, न तो हमारी सोच में और न ही समाज के नियमों में, जहां आज भी दो पैसे कमाने के लिए एक औरत को अपना सबकुछ गंवाना पड़ता है।




This is what happens in countries where Sharia Law is applied and there are few politicians who want to bring this law in our country.

This is what happens in countries where Sharia Law is applied and there are few politicians who want to bring this law in our country.
Following is the last message from Reyhaneh to her mother.
Read on….
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“Dear Sholeh, today I learned that it is now my turn to face Qisas (the Iranian regime’s law of retribution). I am hurt as to why you did not let me know yourself that I have reached the last page of the book of my life. Don’t you think that I should know? You know how ashamed I am that you are sad. Why did you not take the chance for me to kiss your hand and that of dad? The world allowed me to live for 19 years. That ominous night it was I that should have been killed. My body would have been thrown in some corner of the city, and after a few days, the police would have taken you to the coroner’s office to identify my body and there you would also learn that I had been raped as well. The murderer would have never been found since we don’t have their wealth and their power. Then you would have continued your life suffering and ashamed, and a few years later you would have died of this suffering and that would have been that.
However, with that cursed blow the story changed. My body was not thrown aside, but into the grave of Evin Prison and its solitary wards, and now the grave-like prison of Shahr-e Ray. But give in to the fate and don’t complain. You know better that death is not the end of life.
You taught me that one comes to this world to gain an experience and learn a lesson and with each birth a responsibility is put on one’s shoulder. I learned that sometimes one has to fight. I do remember when you told me that the carriage man protested the man who was flogging me, but the flogger hit the lash on his head and face that ultimately led to his death. You told me that for creating a value one should persevere even if one dies.
You taught us that as we go to school one should be a lady in face of the quarrels and complaints. Do you remember how much you underlined the way we behave? Your experience was incorrect. When this incident happened, my teachings did not help me. Being presented in court made me appear as a cold-blooded murderer and a ruthless criminal. I shed no tears. I did not beg. I did not cry my head off since I trusted the law.
But I was charged with being indifferent in face of a crime. You see, I didn’t even kill the mosquitoes and I threw away the cockroaches by taking them by their antennas. Now I have become a premeditated murderer. My treatment of the animals was interpreted as being inclined to be a boy and the judge didn’t even trouble himself to look at the fact that at the time of the incident I had long and polished nails.
How optimistic was he who expected justice from the judges! He never questioned the fact that my hands are not coarse like those of a sportswoman, especially a boxer. And this country that you planted its love in me never wanted me and no one supported me when under the blows of the interrogator I was crying out and I was hearing the most vulgar terms. When I shed the last sign of beauty from myself by shaving my hair I was rewarded: 11 days in solitary.
Dear Sholeh, don’t cry for what you are hearing. On the first day that in the police office an old unmarried agent hurt me for my nails I understood that beauty is not looked for in this era. The beauty of looks, beauty of thoughts and wishes, a beautiful handwriting, beauty of the eyes and vision, and even beauty of a nice voice. My dear mother, my ideology has changed and you are not responsible for it. My words are unending and I gave it all to someone so that when I am executed without your presence and knowledge, it would be given to you. I left you much handwritten material as my heritage.
However, before my death I want something from you, that you have to provide for me with all your might and in any way that you can. In fact this is the only thing I want from this world, this country and you. I know you need time for this. Therefore, I am telling you part of my will sooner. Please don’t cry and listen. I want you to go to the court and tell them my request. I cannot write such a letter from inside the prison that would be approved by the head of prison; so once again you have to suffer because of me. It is the only thing that if even you beg for it I would not become upset although I have told you many times not to beg to save me from being executed.
My kind mother, dear Sholeh, the one more dear to me than my life, I don’t want to rot under the soil. I don’t want my eye or my young heart to turn into dust. Beg so that it is arranged that as soon as I am hanged my heart, kidney, eye, bones and anything that can be transplanted be taken away from my body and given to someone who needs them as a gift. I don’t want the recipient know my name, buy me a bouquet, or even pray for me. I am telling you from the bottom of my heart that I don’t want to have a grave for you to come and mourn there and suffer. I don’t want you to wear black clothing for me. Do your best to forget my difficult days. Give me to the wind to take away.
The world did not love us. It did not want my fate. And now I am giving in to it and embrace the death. Because in the court of God I will charge the inspectors, I will charge inspector Shamlou, I will charge judge, and the judges of country’s Supreme Court that beat me up when I was awake and did not refrain from harassing me. In the court of the creator I will charge Dr. Farvandi, I will charge Qassem Shabani and all those that out of ignorance or with their lies wronged me and trampled on my rights and didn’t pay heed to the fact that sometimes what appears as reality is different from it.
Dear soft-hearted Sholeh, in the other world it is you and me who are the accusers and others who are the accused. Let’s see what God wants. I wanted to embrace you until I die. I love you.
Reyhaneh”
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Reyhaneh was hanged by Iran on Saturday.
पश्चिम सभ्यता का यही पहला काम है । आज हमारे देश मे भी कुछ ज्यादा ही लोग पश्चिम सभ्यता से प्रभावित होते जा रहे है ।जो लोग पश्चिम सभ्यता मे धँसते जा रहे है वो ध्यान दे कि आगे चलकर उनकी ओलादे यही काम करेगी ॥
पश्चिम सभ्यता का यही पहला काम है । आज हमारे देश मे भी कुछ ज्यादा ही लोग पश्चिम सभ्यता से प्रभावित होते जा रहे है ।जो लोग पश्चिम सभ्यता मे धँसते जा रहे है वो ध्यान दे कि आगे चलकर उनकी ओलादे यही काम करेगी ॥

‘सेक्स टूर’ पर निकली पोर्न स्टार, दिया खुला ऑफर
ये दिल्ली है मेरी जान, इसमे कोई शक नहीं
ये दिल्ली है मेरी जान, इसमे कोई शक नहीं कि ऐतिहासिक विरासत और शान-शौकत से भरपूर दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान प्रगति की जो आंधी आई उससे दिल्ली की तस्वीर और तकदीर दोनों ही बदल गई। पर इसी चकाचौंध के पीछे एक ऐसा दाग भी है जो सदियों से दिल्ली का नासूर बना हुआ है। और वह है दिल्ली का रेड लाईट एरिया जीबी रोड। देश की आज़ादी के पहले से ही अंग्रेजों के जमाने में यहां मुजरे सुनने का चलन था और मुजरा करने वाली तवायफों को लाइसेंस भी मिला हुआ था। उस समय दिल्ली के चारों ओर फैले जिस्म के इस कारोबार को एक जगह इकट्ठा कर दिया गया और जीबी रोड बन गया जिस्म के कारोबार का अड्डा। जीबी रोड का पुरा नाम ग्रेस्टीस बेसीन रोड हैं, ऩई दिल्ली रेलवे स्टेशन से 100 मीटर की दुरी पर यह एरिया हैं ।पहले तयावफों का बाजार चावड़ी बाजार मे था बाद मे इसे शहर से बाहर कर दिया गया आज का जीबी रोड उस समय के वर्लड सिटी से बाहर का इलाका था ।
यह जी बी रोड पर मेरी तीसरी रिपोर्टिंग थी रविवार का दिन था नई दिल्ली पुलिस स्टेशन के एसएचओ सुरेन्द्र कौड़ से इजाजत लेने पुलिस थाने मैं जिस सोंच के साथ गयी थी बिल्कुल उसके उल्टा हुआ और जितना सुना था उनके बारे मे बिल्कुल वैसी हीं थी, क्योंकी मेरे पास कोई विडीयो कैमरा नहीं था इसलिए मुझे इजाजत मिल गइ, उन्होने एक सिपाही को मेरे साथ भेज दिया, मैं और उनका सिपाही दोनो लोग पहुंचे उस इलाके मे सिपाही ने वहां के पुलिस बुथ मे बैठे एक सिपाही से बात कि और मुझे लेकर वह एक कोठे के पास गया मेरे साथ उपर तक तो नहीं गया लेकिन एक लड़के को मेरे साथ भेज दिया उसे सारी बातें समझा दीं उसने वह लड़का अब मेरे साथ था । जिस दिल्ली पर लोग जान लुटा देते हैं हम उसी दिल्ली के एक ऐसे इलाके की बात कर रहे हैं जहां हर रोज ना जाने कितनी जानें जानें लुट जाती हैं, बैलगाडी से लेकर bmw तक इस रोड पर दिख जाती हैं बताने वाले ये बताते हैं कि 30 साल पहले जब यहां कि दुकानों के शटर बंद होते थे तब उनके शटर खुलते थे लेकिन अब यहां 27*7 सर्विस दी जाती हैं । 100 साल से भी पुरानी इमारतों मे बने तहखाने और कबुरतरखाने जैसी खिड़कियों से झांकती महिलाएं सड़क पर आने जाने वाले हर मुसाफिर मे अपना ग्राहक ढ़ुढ़ती हैं. हमने भी ये जानने की कोशिश की यह कौन सी जगह जहां रहने वालों की जिंदगी अंधेरे कमरो तक सिमट कर रह गई हैं यहां रहने वाले ना तो अपना नाम बता सकती हैं ना हीं अपना चेहरा किसी को दिखा सकती हैं आखिर वो कौन सी मजबुरी हैं जहां सबको अपनी पहचान छुपा कर रखनी पड़ती हैं, यकिन नहीं होता की हमारे इस महानगर मे एक ऐसा छेत्र भी हैं जहां से गुजरना अपने आप मे कइ तरह के सवालों से होकर गुजरना हैं, लगभग 100 से 200 मीटर लंबी सड़क हैं जीबी रोड लेकिन देह ब्यापार के धंधे ने इसे बाकी दिल्ली से जुदा कर दिया हैं ऐसा लगता हैं अपने हीं समाज से यह बिलकुल अलग हैं यहा रहने बाले लोगो को हेय दृष्टि से देखा जाता हैं
सड़क के दुसरी तरफ हर दो दुकान के बीच मे उपर जाने के लिए एक सिढ़ी मिल जाएगी जहां पहले हीं आपको दलालों से बचने की चेतावनी दिवारों पर लिखी मिल जाएगी पुरे जीबी रोड मे लगभग 28 सिढीयों मे 108 कोठें चल रहे हैं । सिढीयों के रास्ते मे बने बरामदेनुमे हॉल मे घुसा ज्यादातर औरतें सो रही थी, 2/4 के बक्सेनुमा कमरे मे रहना आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जिंदगी कैसे गुजर रही हैं उसी बक्से मे दो से तीन महिलाएं सो रही थी बक्सों के बीच मे एक कमरा दिखा जिसमे तमाम मजहबों के देवी देवताओं की तस्वीरें और एक पलंग के साथ दो कुर्सियां और जरुरत की तमाम चिजें उपल्ब्ध थी, देखने से ही समझ मे आ गया कि वो कमरा मालकिन हैं, आश्चर्य हुआ कि ये भी न्युज चैनलों पर न्यूज भी देखती हैं, पुछने पर पता चला कि देखना पड़ता हैं कि कहीं रेड तो नहीं पड़ा वैसे रेड डालने से पहले इनके पास खबर न्युज चैनलों से भी पहले पहुंच जाती हैं ।सड़क से उपर कि तरफ देखने पर जिस खिड़की पर महिलाएं इशारे करते दिखती हैं मैं भी वहीं जाकर खड़ी हो गयी निचे देखा तो कइयों की निगाह इस खिड़की पर टीकी थी, वही खड़ी एक लड़की से बात करने लगी , उसने बताया कि रेट ठिक ना मिलने पर या ज्यादा परेशानी होने पर वे कोठे बदल लेती हैं
यहां आकर पता चला कि सेक्स वर्कर के उत्थान के नाम पर करोड़ो की कमाइ करने वाले एनजीओ असल मे कितने सजग हैं इनकी बेहतरी के लिए जहां इंसान को बोरे मे ठुंस कर रहने को मजबुर कर दिया गया हो, छत पर बने पानी की टंकियों मे ताला लगा रहता हैं यकिन मानीए उन 2 बाई चार के कमरों मे दिन गुजारते अपनी पहचान छिपाने को मजबुर इन महिलाओं को सब उनकी जवानी की नजर से देखते हैं उन ग्राहकों के से कम नहीं हैं वे लोग जो इनके उत्थान और पुनर्वास की बात करते हैं । हर कोठे मे ताला लगा फ्रिज दिख जाएगा मतलब जर्जर मकानो मे भी फाइव स्टार होटलों की ब्यवस्था करने की इमानदार कोशिश नजर आती हैं, लता दीदी के साथ-साथ मुजरों की भी तस्वीरें दिखेगी और पहली बार जाना की यहां मुजरा भी होता हैं और ये बताती हैं मुजरों के शौकिन आज भी हैं लेकिन शाम होते ही मुजरे के का रंग बदल जाती हैं । जीबी रोड में हर रात नौ बजे के बाद मुजरा पेश करने वाली, उम्र की 45 वीं दहलीज पर पहुंच चुकी शहनाज कहती हैं, ‘मुझे आज भी वो दिन याद है, जब कोठा लोगों से गुलजार रहता था. आज हमारे लिए काफी कठिन समय है.’ राजस्थान की मूल निवासी शहनाज उन हसीन दिनों की याद करते हुए कहती हैं, ‘वह समय था जब हमें पार्टियों और शादियों में मुजरा के लिए कहा जाता था, आज इसके कुछ ही कद्रदान हैं. हर आदमी की ख्वाहिश है कि उसकी पार्टी में विदेशी महिला नृत्य करे और यह स्टेटस दिखाने की भी बात तो है. । हमारे साथ कैमरा नहीं था इसलिए जो भी मिली अपनी भाषा अपने लहजे मे खुलकर बात की, हमने उनके इस धंधे मे आने का कारण जानना चाहा और लगभग वही सुना जो पहले सुन रखा था इसलिए वो बताने का कोई तात्पर्य नहीं बनता । .
एक कोठे पर दो तीन लड़कियों से बात करते-करते एक लड़की ने कहा कि दीदी आप अपने दर्द से दोस्ती कर लिजीए आपकी जिंदगी आसान हो जाएगी, मैं भौचक रह गयी की कितनी बड़ी बात उसने की उस लड़की का नाम तो नहीं लिख सकती लेकिन मुझे मालुम था कि वो सही कह रही हैं और इसी उम्र मे इतनी बड़ी बात करना जैसे वो अपनी पुरी जिंदगी जी ली हो और एक लंबा अनुभव हो । मुझे जितना पता था कि जीबी रोड मे ज्यादातर बंगाल, झारखंड, और आसाम कि लड़कियां रहती हैं लेकिन सिर्फ तीन कोठें पर जाने के बाद देश के लगभग हर कोने कि लड़कियां और महिलाएं मिली, आंध्र प्रदेश से लेकर मुंबई और गुजरात हर राज्य कि मजबूरीयां इन कोठों मे कैद हैं । वहां कि कई महिलाएं अपने बच्चों को हॉस्टल मे रखती हैं औऱ हफ्ते मे एक दिन या महिने मे एक दिन उनसे मिलती हैं, एक महिला बताने लगी कि मैडम कोई नहीं चाहता कि उसके औलाद पर इसकी परछाई भी पड़े, उन्होने बताया कि कैसे नोंचा उनको जाता हैं और 100 रु मे सिर्फ 20 से 25 रु उनके हिस्से आती है बाकी सब अलग-अलग लोगों मे बंट जाती हैं । वे कहने लगी की कितनों दिनो से ये बात आपलोग भी कर रहे हैं और तमाम संस्थाएं कर रही हैं की इसे कानुनी अधिकार दे दिए जाए लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ, अगर हमे कानुनी अधिकार मिल जाएगा तो हमारी कमीशन कम हो जाएगी और पैसे भी ज्यादा बचेंगें तब हो सकता हैं कि हमारी स्थीति कुछ अच्छी हो जाए।
अंदर का मुआयना कर छत पर जाने पर देखा एक ब्यक्ति बर्तन धो रहा था पुछने पर पता चला वो रसोइया हैं, उसने बताया खाने का समय निर्धारित हैं दोपहर के 2 या 3 बजे और रात ढलने के बाद ठिक उसी समय इस बीच उन महिलाओं को कोई और खा रहा होता हैं । अनजानी लड़की को देखते हीं रसोइयां पुछ बैठा कौन हो यह क्या कर रही हो कोई चक्कर तो नहीं हैं, मैने उसे बताया कि नहीं ऐसा कुछ नहीं हैं मेरे साथ कोई और नहीं था । निचे आई तो वहां के दुकानदार बताने लगे कि सस्ता सामान बेचने के बावजुद दिन भर ग्राहकों का इंतजार रहता हैं, लोग इस इलाके मे आने के डर से महंगा समान खरिदना मंजुर करते हैं, जर्जर मकानों के निचे बने दुकानों मे एसी लगे होने के बाबजुद ग्राहकों का नहीं आना उस इलाके कि पहचान बयां करती हैं । दुकानदार ने बात करते हुए बताया कि अगर कोई रिस्तेदार पुछ ले कि आपकी दुकान कहां पर हैं तब बताते हुए भी शर्म आती हैं । तभी मेरे मन मे आया कि इसके आसपास के इलाके को जाने कि वहां रहने वाले लोग क्या कहते हैं मैने नीचे आकर सिपाही जी को कहा कि अब आप जा सकते हैं फिर मैं वहां से निकल पड़ी ।
जीबी रोड के ठिक पिछे का मोहल्ला हैं शाहगंज वहा पर यहां 400 साल पुरानी मस्जीद हैं और मुस्लीम बहुल इलाका हैं । यहां आकर जीबी रोड का असली दर्द आपको मालुम पड़ेगा । कइ लोगों से बात करने पर रहमान मुझे अपने घर ले गए, चाय मंगाइ और उनके अम्मीजान और दोनो बहने शादिया और फातिमा से बात करने लगा, शादिया दिल्ली युनीवर्सीटी की बीए की छात्रा हैं और बताने लगी की कैसे वो अपने दोस्तो को अपने घर नहीं बुला सकती, शादियां बताती हैं कि शुरु-शुरु मे तो जिसने भी मेरे घर का पता जाना तो सबने अजीब तरीके ब्यहार किया और पुछा कि तुम्हारा घर वहां हैं ऐसे चौंके जैसे हम किसी तरिपाड़ इलाके से आए हैं लेकिन सच ये भी हैं कि तरीपाड़ वाला इलाका भी इससे बेहतर हैं, उनकी अम्मी जान बोल पड़ी की शाम होने से पहले हमलोग घर आ जाते हैं भले हीं हमारा काम खत्म हो ना हो । शादिया बताने लगी कि उनके दोस्त इसलिए उसके घर नहीं आते की वे अपने घरवालों से क्या बताएंगें की कहां जा रहे हैं । एक बुजुर्ग मिले जो बताने लगे की शादी के कार्ड मे जीबी रोड का जिक्र नहीं करने से हमारे रिस्तेदार पहले ही मना कर देते हैं। इनका दर्द ऐसा हैं जो आज अपनी पहचान ढुढ रहे हैं, उनको तो अपने घर से भगा दिया गया इसलिए उनकी पहचान गुम हो गई लेकिन शाहगंज के निवासी तो समाजिक धारणाओं की वजह से अपनी पहचान छिपाने को मजबुर हैं आज के इस सफर मे हमने यहां आकर एक नई दुनीया और उसमे रहने वाले प्राणीयों को जानने का मौका मिला और एक सिख यहां हमे मिली की अगर आपको तकलीफ हैं, दर्द हैं, तो आप उससे दोस्ती कर ले आपकी जींदगी आसान बन जाएगी.





Deepak K Bhatt हमें समस्या की जड़ तक पहुँचना है। समस्या के मूल कारणों को, जन सहयोग और जनचेतना के माध्यम से, उखाड़ फेंकना है।
ये सब घटनाएँ मानसिक विकृतियों का परिणाम है। और ये मानसिक विकृतियाँ, विकास के नाम पर भौतिकता वादी पाश्चात्य संस्कृति के अंधे अनुसरण की देन है। भौतिकतावादी पाश्चात्य संस्कृति में नारी भी उपभोग की एक वस्तु मात्र रह गयी है। भौतिकवादी संस्कृति में जीने वाले लोगों की नज़र में हर चीज़ बिकाऊ है। कोई ज़रा सस्ते में, कोई ज़रा महंगे में, खरीदो, इस्तेमाल करो और फेंक दो, बस। यहाँ आदर्शों मूल्यों और नैतिकता का कोई स्थान नहीं।
आज इन्टरनेट पर पोर्नोग्राफी विडियो, पोर्नोग्राफिक मूवी खुले आम उपलब्ध है। जिसे हमारे देश के immature youth देख देख के कामोत्तेजना में आकर बिना सोचे समझे आसानी से उपलब्ध छोटी छोटी बच्चियों का बलात्कार कर डालते हैं और फिर उसे छुपाने के लिए उसकी हत्या जैसा घृणित और दुर्दान्त अपराध कर डालते हैं।ये है हमारे दिशाहीन विकास का विनाशकारी परिणाम जिसमे हमारे आदर्श, संस्कृति और नैतिक मूल्य अपना दम तोड़ रहे हैं और हम बस भौतिकतावादी विकास की अंधी दौड़ में दौड़ते जा रहे हैं, बगैर यह सोचे की इस विकास की दौड़ की हम क्या कीमत चुका रहे हैं।
आज का हिंदुस्तान दो संस्कृतियो के संक्रमण काल से गुजर रहा है। जिसके कारण लोगों में मानसिक विकृतियाँ उपज रहीं है। इन चीजों का विश्लेषण इतना आसान होता तो मेरे मष्तिष्क में इस समस्या का समाधान खोजने के लिए इतनी उलझन क्यों होती?
मै आप लोगों के सामने समाधान सोचने के लिए यह समस्या रखता ही क्यों?
राजनैतिक लोग तो अपनी राजनीति चमकाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, कुछ भी कह सकते हैं। मीडिया का उद्देश्य पैसा कमाना मात्र ही रह गया गया है, उनसे सामाजिक दायित्वों की आशा रखना फ़िज़ूल है। हमको आपको समाज में चेतना जगानी है। इसमें किसे से उम्मीद करना बेकार है। आइये हम आप ही समाज में जन जागरण जगाएं। हम पहल करें। लो जुड़ते जायेंगे कारवाँ बढ़ता जायेगा। दुष्यन्त कुमार के शब्दों में,
” कौन कहता है आसमां में सुराख़ हो नहीं सकता।
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।”
” सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं,
मेरी कोशिश है कि सूरत बदलनी चाहिए।”
जयहिन्द।
Rape
मेरठ: गैंगरेप पीड़िता का गायब मिला गर्भाशय।
अगर ऐसा किसी मुस्लिम के साथ हुआ होता तो देश में
अबतक आग लग गयी होती..
लोग सडको पर हंगामा कर रहे होते..नेता और
मंत्री अपनी जान बचाते फिर रहे होते..
लेकिन पीडिता हिन्दू है…इसलिए कोई
हंगामा नही कोई प्रदर्शन
नही सबको मुस्लिम वोट चाहिए…
लेकिन
क्या हिन्दुत्वादी संगठनो को भी मुस्लिम वोट
चाहिए ये संगठन कहा मर गए???
कैसे इतने बड़े काण्ड पर शांत बैठे है क्या प्रदेश सरकार से
या मोदी सरकार से या मुस्लिमो से
सभी हिन्दुत्वादी संगठन डर गए है??
कहा गयी RSS?? कहा गया BHP?? कहा है
श्री राम सेना?? कहा है बजरंग दल??? कहा है शिव
सेना, बीजेपी…..???
क्या सभी के सभी सेकुलर हो गये???
जो इतनी बड़ी घटना पर कोई
हंगामा नही कोई प्रदर्शन नही।

Rape
– This girl was a teacher in a Madarsa on the salary of just 1500
– Madarsa official kidnapped her
– She was drugged and kept in captivity
– Raped many times
– Her Fallopian Tube was removed so that she could never become pregnant
– She was forcefully converted into Islam
– She finds 40 more girls in Madarsa who were told that they will be sent to Saudi Arabia to marry Sheikhs.
– The girl somehow escaped from their captivity.
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She isn’t asking for your sympathy, or candle marches for that matter.
Just give a minute of your thought to what’s happening in a country where people take pride in religious tolerance, profess mutual trust.
And think of what kind of special blind those people are who have their heads sunk deep in the sand, refuse to see the writing on the wall and cry ‘don’t give this a communal color’ when the reality begs to differ.
Sometimes it’s hard to decide who the real enemy is…
The jihadis who are perpetraters of the crime and terror or the ones who try their best to hide those criminals behind the veil of secularism
You decide
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> Watch her statement- https://www.youtube.com/watch?v=J8A259ia9ow
> http://www.firstpost.com/india/up-gangrape-forced-conversion-of-20-year-old-girl-put-meerut-on-the-boil-1649971.html

rape
आखिर ऐसे कौन से अहसान इन कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश सरकार ने आप पर कर दिए कुरैशी जी कि आप को सरकार के बचाव की जरूरत आ पड़ी.
संवैधानिक पद की मर्यादाओं की परवाह किये बगैर आपको अपराधियों के मनोबल को बढ़ाने वाला व देश की नारी शक्ति को हतोत्साहित करने वाला बयान देने की क्या जरूरत पड़ गयी थी…..
एक कार्यवाहक राज्यपाल के तौर पर उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी अजीज कुरैशी को सौंपी गयी थी..
पिछले 10 सालों में जिस अल्पसंख्यक जौहर विश्वविद्यालय के विधेयक को पूर्व राज्यपालों टी.वी राजेश्वर व बी एल जोशी ने कानूनी अड़चनों के चलते रोक रखा था उसे इन्होने तत्काल मान्यता प्रदान कर दी. पता नहीं उन्होंने इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई जबकि कार्यवाहक राज्यपाल होने के नाते उन्हें ऐसा फैसला लेने से बचना चाहिये था.
प्रधानमंत्री ने सदन में व्यथित होकर कहा था कि राजनेता रेप का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने से बाज आयें, लेकिन उसके बावजूद भी सरकार का एक तरह से बचाव करने वाला बयान देने की राज्यपाल को जरूरत क्यों आ पड़ी ??
सवाल बड़ा है !
