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दारिद्र-दहन प्रयोग

ये शिव जी का स्वर्णाकर्षण भैरव स्वरूप है।कालभैरव के तीन स्वरूपों बटुक भैरव, महाकालभैरव एवम स्वर्णाकर्षण भैरव में स्वर्णाकर्षण भैरव सात्विक स्वरूप है। रुद्रयामल तंत्र में इसका वर्णन है इस का ज्ञान स्वयं महादेव द्वारा नंदी जी और फिर नंदी जी द्वारा लोककल्याण हेतु महर्षि मार्कण्डेय को दिया। स्वर्णाकर्षण भैरव मणिद्वीप के कोषाधिकारी कहे जाते हैं। इस चित्र में वर्णन है कि कैसे वर्षों तक चले देवासुर संग्राम के बाद जब कुबेर और माता लक्ष्मी के कोष में धन का अभाव हो जाता है तो नंदी जी के उपदेश के बाद बद्रीविशाल (विशालातीर्थ) धाम में स्वर्णाकर्षण भैरव को प्रसन्न कर धन प्राप्त करते है।

भगवान स्वर्णाकर्षण भैरव ने उन्हें दर्शन देकर श्री मणिद्वीप लोक से प्रकट होकर 4 भुजाओ से धन की वर्षा की जिससे पुनः सभी देवता “श्री” सम्पन्न हो गए।

ॐ पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम्।
अक्षयं स्वर्णमाणिक्य तड़ित-पूरितपात्रकम्॥
अभिलसन् महाशूलं चामरं तोमरोद्वहम्।
सततं चिन्तये देवं भैरवं सर्वसिद्धिदम्॥
मंदारद्रुमकल्पमूलमहिते माणिक्य सिंहासने, संविष्टोदरभिन्न चम्पकरुचा देव्या समालिंगितः।
भक्तेभ्यः कररत्नपात्रभरितं स्वर्णददानो भृशं, स्वर्णाकर्षण भैरवो विजयते स्वर्णाकृति : सर्वदा॥

हिन्दी भावार्थ: श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव जी मंदार(सफेद आक) के नीचे माणिक्य के सिंहासन पर बैठे हैं। उनके वाम भाग में देवि उनसे समालिंगित हैं। उनकी देह आभा पीली है तथा उन्होंने पीले ही वस्त्र धारण किये हैं। उनके तीन नेत्र हैं। चार बाहु हैं जिन्में उन्होंने स्वर्ण — माणिक्य से भरे हुए पात्र, महाशूल, चामर तथा तोमर को धारण कर रखा है। वे अपने भक्तों को स्वर्ण देने के लिए तत्पर हैं। ऐसे सर्वसिद्धिप्रदाता श्री स्वर्णाकर्षण भैरव का मैं अपने हृदय में ध्यान व आह्वान करता हूं उनकी शरण ग्रहण करता हूं। आप मेरे दारिद्रय का नाश कर मुझे अक्षय अचल धन समृद्धि और स्वर्ण राशि प्रदान करे और मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि करें।

स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः ।
सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात् ।
न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव ।।
म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् ।
अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः ।।
अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः ।
दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण-कारकः ।।
य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा ।
महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं ।।

कठिन आराधना है पर कहा जाता है जिस प्रकार महामृत्युंजय मंत्र आयुवर्धन व रोग नाश के लिए अचूक वरदान है उसी प्रकार स्वर्णाकर्षण भैरव साधना कुंडली मे महादरिद्र योग व आर्थिक समस्याओं के योग को समाप्त करती है।
इस साधना में चैतन्य किये गए स्वर्णाकर्षण यंत्र को पूजा स्थान मे स्थापित कर दें और नित्य यंत्र का दर्शन करे।

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दुर्गा सप्तशती


महर्षि मार्कण्डेय ने गहरे ध्यान की अवस्था में शक्ति साधना के अंतर्गत संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के हेतु एक पवित्र ग्रंथ लिखा जिसे मार्कंडेय पुराण के नाम से जाना जाता है| दुर्गा सप्तशती इस परम पवित्र ग्रंथ का एक अभिन्न अंग है|

दुर्गा सप्तशती माँ दुर्गा का सबसे प्राचीन व् सबसे शक्तिशाली पाठ है| पाठ में कुल मिलाकर 700 श्लोक हैं जिनमें से 535 पूर्ण श्लोक 108 अर्ध श्लोक और 57 उवाच है| दुर्गा सप्तशती पाठ के तीन भाग है, प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र व् उत्तम चरित्र| प्रथम चरित्र की देवी महाकाली, मध्यम चरित्र की देवी महालक्ष्मी व् उत्तम चरित्र की देवी महासरस्वती है और माँ दुर्गा की प्रसन्नता के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है|

दुर्गा सप्तशती के 700 श्लोक शक्ति सूत्र है इनमे परम सुख प्रदान करने वाली असाधारण शक्ति समाहित है| माता का यह पाठ जीवन में सौभाग्य का साथ पाने के लिए और इच्छाओ को पूरा करने के लिए एक अचूक उपाय माना जाता है| नीचे स्क्रॉल कर आप दुर्गा सप्तशती PDF मुफ्त डाउनलोड कर सकते है|

साधक कैसे सात दिनो के समय में सम्पूर्ण पाठ करे इसकी विधि दुर्गा सप्तशती में महर्षि मार्कण्डेय द्वारा बताई गई है जिससे साधक इसे प्रथम नवरात्रि से प्रारंभ कर सप्तमी तक सम्पूर्ण पाठ कर सकते है|

दुर्गा सप्तशती पाठ के सभी 13 अध्याय का एक बार पाठ करना थोड़ा कठिन होता है| इसका उपाय व् सही पाठ विधि का वर्णन महर्षि मार्कण्डेय ने दुर्गा सप्तशती में दिया है| उन्होंने हर दिन किस पाठ को पढ़ना है वह निश्चित कर दिया है जो प्रकार है:

महर्षि मार्कण्डेय के अनुसार नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती पाठ की सर्वोत्तम विधि

दुर्गा सप्तशती पाठ के 5 मुख्य नियम

इस परम शक्तिशाली पाठ की साधना करने से पहले अति आवश्यक नियमो का पालन करना बहुत जरुरी है जिससे साधक बिना किसी त्रुटि के पाठ कर पाठ का सम्पूर्ण लाभ प्राप्त करे| मुख्य रूप से पांच नियम है जिनका पालन जरूर करना चाहिए|

पहला नियम है कि इसका पाठ करते समय पाठ पुस्तक को हाथ में नहीं रखना चाहिए, पुस्तक को अपने सामने किसी चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर रखे| और पाठ के बाद भी पुस्तक को लाल वस्त्र में लपेट कर रखे|

दूसरा नियम जब भी दुर्गा सप्तशती का पाठ करना शुरू करें तो अध्याय के बीच में नहीं उठना चाहिए यदि बहुत ही आवश्यक हो और बीच में उठ गए तब जिस अध्याय के बीच में उठे उस अध्याय का पाठ प्रारंभ से करे तभी वह अध्याय पूर्ण माना जाता है|

तीसरा नियम यह है कि आपको पाठ का अर्थ व महत्व जरूर पता होना चाहिए यदि आपको अर्थ का नहीं पता है तो माता के इस पाठ का पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है|

चौथा नियम हर शब्द को प्रेम पूर्वक व् स्पष्टता से पढ़ना व् पढ़ने की गति ना तो जल्दबाजी में और ना ही बहुत मंद होनी चाहिए| सभी शब्दों का शुद्ध उच्चारण व् हर शब्द से भक्ति रस जिव्हा व् कान में आनी चाहिए|

पांचवा नियम हर अध्याय के अंत अपनी मनकामना की पूर्ति हेतु माता से प्रार्थना करनी चाहिए कि वो प्रसन्न होकर आपकी मनोकामना को पूर्ण करे| माता में पूरा विश्वास रखते हुए ह्रदय में समर्पण भाव रखकर माता को मनोकामना पूर्ण करने के लिए धन्यवाद् करे|

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का महत्व व् लाभ

दुर्गा सप्तशती पाठ साधना से होने वाले लाभ का विवरण करना अत्यंत ही कठिन है क्योंकि इससे अनगिनत लाभ प्राप्त होते हैं| कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार है|

दुर्गा सप्तशती के अनंत लाभ तात्कालिक है अर्थात साधक को साधना का फल शीघ्र मिलने लगता है|
दुर्गा सप्तशती साधक को इच्छाओं को असल जीवन में फलीभूत (Manifest) करने की शक्ति बढ़ती है अर्थात उनकी सोच मात्र से असल जीवन में वैसा ही होने लगता है|
दुर्गा सप्तशती पाठ की साधना करने वाले साधक के चारों ओर एक शक्तिशाली सुरक्षा कवच बन जाता है जिसमे साधक पूर्ण सुरक्षित रहता है|
दुर्गा सप्तशती की साधना साधक के चारो ओर से बुरी आत्माओं नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करती है|
दुर्गा सप्तशती साधना से शरीर, मन, व् आत्मा की हीलिंग होती है और साधक अपने जीवन का पूरा सदुपयोग करते है|
इसकी साधना से साधक के परिवार को भी पाठ के सभी लाभ प्राप्त होते हैं|
दुर्गा सप्तशती का पाठ साधक के मन से चिंताओं और संदेह को दूर कर मन को एकाग्र करता है| व्यक्ति तनाव मुक्त होता है मन शांत और हृदय प्रसन्नचित रहता है|
दुर्गा सप्तशती साधना साधक को संपन्नता और बुद्धिमता की ओर लेकर जाती है| सांसारिक जीवन में सफलता और सौभाग्य का साथ मिलता है|
दरिद्रता मिटकर जीवन में प्रचुरता (Abundance) आती है|
जीवन पथ पर आने वाले विघ्नो और बाधाओं नष्ट होती है साधक के जीवन में रोजगार के नए अवसर आते हैं|
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इन आठ चौपाइयों का नित्य पाठ करने से, ये तो पता नही की अमीरी कितनी आयेगी पर हां ये जरूर पता है कि उस के घर मे कभी गरीबी नही आयेगी।। जय श्री राम।।

जब तें रामु ब्याहि घर आए।

नित नव मंगल मोद बधाए॥🚩

भुवन चारिदस भूधर भारी।

सुकृत मेघ बरषहिं सुख बारी॥🚩

रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई।

उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई॥🚩

मनिगन पुर नर नारि सुजाती।

सुचि अमोल सुंदर सब भाँती॥🚩

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।

जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥🚩

सब बिधि सब पुर लोग सुखारी।

रामचंद मुख चंदु निहारी॥🚩

मुदित मातु सब सखीं सहेली।

फलित बिलोकि मनोरथ बेली॥🚩

राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ।

प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ॥🚩

भावार्थ:-जब से श्री रामचन्द्रजी विवाह करके घर आए, तब से (अयोध्या में) नित्य नए मंगल हो रहे हैं और आनंद के बधावे बज रहे हैं। चौदहों लोक रूपी बड़े भारी पर्वतों पर पुण्य रूपी मेघ सुख रूपी जल बरसा रहे हैं॥🚩

रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई।

उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई॥🚩

मनिगन पुर नर नारि सुजाती।

सुचि अमोल सुंदर सब भाँती॥🚩

भावार्थ:-ऋद्धि-सिद्धि और सम्पत्ति रूपी सुहावनी नदियाँ उमड़-उमड़कर अयोध्या रूपी समुद्र में आ मिलीं। नगर के स्त्री-पुरुष अच्छी जाति के मणियों के समूह हैं, जो सब प्रकार से पवित्र, अमूल्य और सुंदर हैं॥🚩

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।

जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥🚩

सब बिधि सब पुर लोग सुखारी।

रामचंद मुख चंदु निहारी॥🚩

भावार्थ:-नगर का ऐश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता। ऐसा जान पड़ता है, मानो ब्रह्माजी की कारीगरी बस इतनी ही है। सब नगर निवासी श्री रामचन्द्रजी के मुखचन्द्र को देखकर सब प्रकार से सुखी हैं॥🚩

मुदित मातु सब सखीं सहेली।

फलित बिलोकि मनोरथ बेली॥🚩

राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ।

प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ॥🚩

भावार्थ:-सब माताएँ और सखी-सहेलियाँ अपनी मनोरथ रूपी बेल को फली हुई देखकर आनंदित हैं। श्री रामचन्द्रजी के रूप, गुण, शील और स्वभाव को देख-सुनकर राजा दशरथजी बहुत ही आनंदित होते हैं॥🚩

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धनतेरस पर सौभाग्य प्राप्ति के असरदार उपाय


धनतेरस पर सौभाग्य प्राप्ति के असरदार उपाय

यह उपाय अत्यंत प्रभावी है। हमारा अनुभव है कि जिसने भी यह उपाय किया है उस पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रही है। यह उपाय आपको धनतेरस से आरंभ करना है। इसके लिए धनतेरस के संध्याकाल में स्नान कर लाल वस्त्र धारण करें। तत्पश्चात निवास के पूजा स्थल पर ही एक लघु नारियल (गोला गिरी) पर तथा एक जटा नारियल पर अलग-अलग कलावा लपेटे व दोनों पर केसर से तिलक करें। छोटे नारियल एवं जटा नारियल व एक लाल चुनरी हाथ में लेकर महालक्ष्मी तथा धन के देवता कुबेर का स्मरण कर उनसे अपनी आर्थिक संपन्नता के लिए निवेदन करें। इसके पश्चात दोनों नारियल को सवा मीटर लाल नए वस्त्र पर रखकर उस पर रोली से पुनः तिलक करें तथा श्री लक्ष्मी का एकाक्षरी मंत्र “श्रीं” रोली से लिखें इसके बाद आप धूप दीप अर्पित करें तथा एक लाल गुलाब मां के चरणों में स्पर्श करवा कर दोनों नारियल के साथ रखें। कम से कम 3 माला ” श्रीं ह्रीं श्रीं ” का जाप करें। जप के बाद हाथ जोड़कर पूजा स्थल से बाहर आ जाएं। अगले दिन संध्याकाल में ही किसी भी मां शक्ति के मंदिर में अथवा श्री लक्ष्मी नारायण के मंदिर में जा कर पूजा अर्चना कर पिछले दिन की लाल चुनरी वह एक नया जटा वाला नारियल मंदिर में अर्पित करें अर्थात चुनरी तो माता को उड़ा दें तथा जटा नारियल को माँ के चरणों से स्पर्श कराकर मंदिर में ही फोड़ कर वही छोड़ दें। अब मंदिर से ही एक लाल गुलाब का पुष्प लेकर निवास स्थान पर आए उस पुष्प को दोनों नारियल के साथ ही रख कर उन्हें एकाक्षरी मंत्र की तीन माला का जाप करें। अगले दिन आप केवल एक नया जटा वाला नारियल मंदिर में अर्पित कर एक गुलाब का पुष्प लाकर दोनों नारियल के साथ रख दें। दीपावली की रात्रि में पूजा के बाद दोबारा 11 माला ” ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालए प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः ॐ ” का जाप कर आर्थिक संपन्नता का निवेदन करें। तत्पश्चात दोनों नारियल व सभी पुष्पों को उसी लाल कपड़े में लपेट लें इसके बाद एक जटा नारियल को ले जाकर दीपावली संध्या को ही अथवा अगले दिन पुनः उसी मंदिर में अर्पित कर फोड़ दें और प्रणाम कर निवास पर वापस आ जाएं। लाल वस्त्र को छोटे नारियल सहित पोटली का रूप देकर अपने धन रखने के स्थान पर रख दें इस उपाय के बाद आप स्वयं ही परिवर्तन अनुभव करेंगे।

संध्या काल में पूजा के स्थान के पास यह प्रयोग करना है। एक अभिमंत्रित कुबेर यंत्र की व्यवस्था करें। पूजा स्थल के पास के स्थान को गंगाजल से धोकर स्वच्छ कर लें। इस स्थान पर एक चौकी रखें और इसके सामने लाल आसन पर बैठ जाएं। चौकी पर सवा मीटर लाल वस्त्र 4 तह करके बिछाए और उसके ऊपर 11 कमलगट्टे के बीज रखें। इन बीजों के ऊपर श्री कुबेर यंत्र को स्थान दें। यंत्र को केसर से तिलक करें शुद्ध घी का दीपक व धूप अगरबत्ती के साथ कोई भी पीले रंग का मिष्ठान अर्पित करें और अपने निवास में मां लक्ष्मी के साथ स्थाई वास करने का निवेदन करें। अब आप यंत्र के समक्ष ही लाल रंग के आसन पर बैठकर हल्दी की माला से 11 माला निम्न मंत्र का जाप करें।

मंत्र👉 ” श्री कुबेराय नमः धंधान्यधिपतये नमोस्तुते “।

जप के बाद प्रणाम कर उठ जाएं। अब अगले दिन भी यही क्रिया करें इस प्रकार से दिपावली तक यही क्रिया करते रहें। दीपावली की रात्रि में एक अभिमंत्रित श्री यंत्र को भी 11 कमलगट्टे के बीजों पर स्थान देकर रोली से तिलक आदि करें और दीपावली का पूजन करें पूजन के बाद मध्यरात्रि में जब सब सो जाएं तो आप पुनः स्नान कर लाल वस्त्र धारण करके पूजा स्थान पर आसन पर बैठ जाएं अब पहले 11 बार लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें स्तोत्र के बाद कमलगट्टे की माला से 11 माला ” ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं श्रीहरिप्रिये श्री कुबेराय नमोनमः ” का जाप करें। जाप के बाद प्रणाम कर उठ जाएं और एक शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित कर अपने निवास के मुख्य द्वार पर रख दें। अगले दिन से आपको 5 दिन तक उपरोक्त मंत्र का जाप करना है धनतेरस से दीपावली तक और फिर दीपावली से इन 5 दिन तक आपके निवास में मां लक्ष्मी के साधन देवता श्री कुबेर का विवाह होगा यह विश्वास होना चाहिए।

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भारत के सभी पर्वों में दीवाली का सर्वाधिक महत्व है। इस दिन शुभ मुहूर्त में सही विधि-विधान से लक्ष्मी का पूजन करने पर अगली दीवाली तक के लिए लक्ष्मी कृपा से घर में धन और धान्य की कमी नहीं आती है। लक्ष्मी कृपा पाने के लिए ज्योतिषीय उपाय यहां दिए जा रहे हैं, इन्हें सभी राशियों के लोग कर सकते हैं। इनमें से कोई भी एक या अधिक उपाय करने से दरिद्रता दूर होकर सुख-सम्पत्ति का आगमन होता है।

1. दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के बाद घर के सभी कमरों में शंख और घंटी बजाना चाहिए। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा और दरिद्रता बाहर चली जाती है। मां लक्ष्मी घर में आती हैं।

2. दीपावली पर तेल का दीपक जलाएं और दीपक में एक लौंग डालकर हनुमानजी की आरती करें। किसी मंदिर हनुमान मंदिर जाकर ऐसा दीपक भी लगा सकते हैं।

3. किसी शिव मंदिर जाएं और वहां शिवलिंग पर अक्षत यानी चावल चढ़ाएं। ध्यान रहें सभी चावल पूर्ण होने चाहिए। खंडित चावल शिवलिंग पर चढ़ाना नहीं चाहिए

4. दीपावली पर महालक्ष्मी के पूजन में पीली कौड़ियां भी रखनी चाहिए। ये कौडिय़ा पूजन में रखने से महालक्ष्मी बहुत ही जल्द प्रसन्न होती हैं। आपकी धन संबंधी सभी परेशानियां खत्म हो जाएंगी।

5. लक्ष्मी पूजन के समय हल्दी की गांठ भी साथ रखें। पूजन पूर्ण होने पर हल्दी की गांठ को घर में उस स्थान पर रखें, जहां धन रखा जाता है।

6. दीपावली के दिन झाड़ू अवश्य खरीदना चाहिए। पूरे घर की सफाई नई झाड़ू से करें। जब झाड़ू का काम न हो तो उसे छिपाकर रखना चाहिए।

7. दीवाली के दिन किसी मंदिर में झाड़ू का दान करें। यदि आपके घर के आसपास कहीं महालक्ष्मी का मंदिर हो तो वहां गुलाब की सुगंध वाली अगरबत्ती का दान करें।

8. इस दिन अमावस्या रहती है और इस तिथि पर पीपल के वृक्ष को जल अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने पर शनि के दोष और कालसर्प दोष समाप्त हो जाते हैं।

9. दीपावली पर लक्ष्मी का पूजन करने के लिए स्थिर लग्न श्रेष्ठ माना जाता है। इस लग्न में पूजा करने पर महालक्ष्मी स्थाई रूप से घर में निवास करती हैं।-पूजा में लक्ष्मी यंत्र, कुबेर यंत्र और श्रीयंत्र रखना चाहिए। यदि स्फटिक का श्रीयंत्र हो तो सर्वश्रेष्ठ रहता है।

10. अपने घर के आसपास किसी पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक जलाएं। यह उपाय दीपावली की रात में किया जाना चाहिए। ध्यान रखें दीपक लगाकर चुपचाप अपने घर लौट आए, वापिस पलटकर न देखें।

11. दीपावली की रात लक्ष्मी पूजा करते समय एक थोड़ा बड़ा घी का दीपक जलाएं, जिसमें नौ बत्तियां लगाई जा सके। सभी 9 बत्तियां जलाएं और लक्ष्मी पूजा करें।

12. दीपावली की रात में लक्ष्मी पूजन के साथ ही अपनी दुकान, कम्प्यूटर आदि ऐसी चीजों की भी पूजा करें, जो आपकी कमाई का साधन हैं।

13. लक्ष्मी पूजन के समय एक नारियल लें और उस पर अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि अर्पित करें और उसे भी पूजा में रखें।

14. दीपावली के दिन यदि संभव हो सके तो किसी किन्नर से उसकी खुशी से एक रुपया लें और इस सिक्के को अपने पर्स में रखें। समृद्धि बनी रहेगी।

15. प्रथम पूज्य श्रीगणेश को दूर्वा अर्पित करें। दूर्वा की 21 गांठ गणेशजी को चढ़ाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। दीपावली के शुभ दिन यह उपाय करने से गणेशजी के साथ महालक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है।

16. दीवाली की रात सोने से पहले किसी चौराहे पर तेल का दीपक जलाएं और घर लौटकर आ जाएं। ध्यान रखें पीछे पलटकर न देखें।

17. महालक्ष्मी के चित्र का पूजन करें, जिसमें लक्ष्मी अपने स्वामी भगवान विष्णु के पैरों के पास बैठी हैं। ऐसे चित्र का पूजन करने पर देवी बहुत जल्द प्रसन्न होती हैं।

18. दीपावाली पर श्रीसूक्त एवं कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। रामरक्षा स्तोत्र या हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ भी किया जा सकता है।

19. यदि संभव हो सके तो दीवाली वाले दिन किसी तालाब या नदी में मछलियों को आटे की गोलियां बनाकर खिलाएं। इस पुण्य कर्म से बड़े से बड़े संकट भी दूर हो जाते हैं।

20. एक बात का विशेष ध्यान रखें कि माह की हर अमावस्या पर पूरे घर की अच्छी तरह से साफ-सफाई की जानी चाहिए। साफ-सफाई के बाद घर में धूप-दीप-ध्यान करें। इससे घर का वातावरण पवित्र और बरकत देने वाला बना रहेगा।

21. लक्ष्मी पूजन में सुपारी रखें। सुपारी पर लाल धागा लपेटकर अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि पूजन सामग्री से पूजा करें और पूजन के बाद इस सुपारी को तिजोरी में रखें।

22. घर में स्थित तुलसी के पौधे के पास दीपावली की रात में दीपक जलाएं। तुलसी को वस्त्र अर्पित करें।

23. जो लोग धन का संचय बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें तिजोरी में लाल कपड़ा बिछाना चाहिए। इसके प्रभाव से धन का संचय बढ़ता है। महालक्ष्मी का ऐसा फोटो रखें, जिसमें लक्ष्मी बैठी हुईं दिखाई दे रही हैं।

24. दीपावली पर सुबह-सुबह शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल अर्पित करें। जल में यदि केसर भी डालेंगे तो श्रेष्ठ रहेगा।

25. महालक्ष्मी के महामंत्र ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद् श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मयै नम: का कमलगट्टे की माला से कम से कम 108 बार जप करें।

जय मां लक्ष्मी

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कुबेर साधना रहस्य एक वार महा ऋषि पुलस्य के सिर पे बहुत बड़ी विपता आ पढ़ी और उन को उस समय में दरिद्रता का सहमना करना पड़ा जिस के चलते उस राज्य की प्रजा काल और सूखे की चपेट में या गई और धन न होने की वजह से चारो तरफ लोग भूख और गरीबी से बेहाल हो उठे तब महा ऋषि पुलस्य ने इस से उबरने के लिए कुबेर की सहायता लेनी चाही क्यू के वोह जानते थे के कुबेर के बिना धन नहीं आ सकता मगर दैवी नियमो के चलते कुबेर सीधे धन नहीं दे सकते थे !इस लिए महा ऋषि पुलस्य ने गणपती भगवान की साधना की तो गणपती ब्पा ने कुबेर को हुकम दिया के महा ऋषि की सहायता करे तो कुबेर ने कहा के अगर आप कुबेर यंत्र का स्थापन कर मेरे नो रूप में से किसी की भी साधना करेगे तो धन की बरसात होने लगेगी इस लिए महा ऋषि ने गणपती भगवान से प्रार्थना की और गणपती भगवान ने उन्हे कुबेर के 9 दिव्य रूप के मंत्र दिये महा ऋषि ने कुबेर यंत्र स्थापन कर कुबेर के 9 दिव्य रूप की साधना संपन की और परजा को दरिद्रता से उबारा साधना संपन होने से धन की बरसात होने लगी और चारो तरफ खुशहाली फ़ेल गई !इन 9 दिव्य रूपो की साधना आज भी हमारे शास्त्रो में है और जो एक वार इन साधनयों को कर लेता है उस के जीवन में कोई अभाव नहीं रहता
क्या है यह कुबेर के 9 रूप –
1 – उग्र कुबेर — यह कुबेर धन तो देते ही है साथ में आपके सभी प्रकार के शत्रुओ का भी हनन कर देते है !
2-पुष्प कुबेर –यह धन प्रेम विवाह ,प्रेम में सफलता ,मनो वर प्राप्ति ,स्न्मोहन प्राप्ति ,और सभी प्रकार के दुख से निवृति के लिए की जाती है !
3-चंद्र कुबेर — इन की साधना धन एवं पुत्र प्राप्ति के लिए की जाती है ,योग्य संतान के लिए चंदर कुबेर की साधना करे !
4-पीत कुबेर — धन और वाहन सुख संपति आदि की प्राप्ति के लिए पीत कुबेर की साधना की जाती है !इस साधना से मनो वाशित वाहन और संपति की प्राप्ति होती है !
5- हंस कुबेर — अज्ञात आने वाले दुख और मुकदमो में विजय प्राप्ति के लिए हंस कुबेर की साधना की जाती है !
6- राग कुबेर — भोतिक और अधियात्मक हर प्रकार की विधा संगीत ललित कलाँ और राग नृत्य आदि में न्पुनता और सभी प्रकार की परीक्षा में सफलता के लिए राग कुबेर की साधना फलदायी सिद्ध होती है !
7-अमृत कुबेर — हर प्रकार के स्वस्थ लाभ रोग मुक्ति ,धन और जीवन में सभी प्रकार के रोग और दुखो के छुटकारे के लिए अमृत कुबेर की साधना दिव्य और फलदायी है !
8-प्राण कुबेर — धन है पर कर्ज से मुक्ति नहीं मिल रही वेयर्थ में धन खर्च हो रहा हो तो प्राण कुबेर हर प्रकार के ऋण से मुक्ति दिलाने में सक्षम है !इन की साधना साधक को सभी प्रकार के ऋण से मुक्ति देती है !
9- धन कुबेर — सभी प्रकार की कुबेर साधनयों में सर्व श्रेष्ठ है जीवन में हम जो भी कर्म करे उनके फल की प्राप्ति और धन आदि की प्राप्ति के लिए और मनोकामना की पूर्ति हेतु और भाग्य अगर साथ न दे रहा हो तो धन कुबेर की साधना सर्व श्रेष्ठ कही गई है !

नमस्तुभ्यम् महा मन्त्रम् दायिने शिव रुपिणे, ब्रह्म ज्ञान प्रकाशाय संसार दु:ख तारिणे ।
अती सौम्याय विध्याय वीराया ज्ञान हारिने, नमस्ते कुल नाथाय कुल कौलिन्य दायिने ।।
शिव तत्व प्रकाशाय ब्रह्म तत्व प्रकाशइने, नमस्ते गुरुवे तुभ्यम् साधकाभय दायिने ।
अनाचाराचार भाव बोधाय भाव हेतवे, भावाभाव विनिर्मुक्त मुक्ती दात्रे नमो नम: ।।
नमस्ते सम्भवे तुभ्यम् दिव्य भाव प्रकाशइने, ज्ञानआनन्द स्वरूपाय विभ्वाय नमो नम: ।
शिवाय शक्ति नाथाय सच्चीदानन्द रुपिणे, कामरूप कामाय कामकेलीकलात्मने ।।
कुल पूजोपदेशाय कुलाचारस्वरुपिने, आरक्थ नीजतत्शक्ति वाम भाग विभूतये ।
नमस्तेतु महेशाय नमस्तेतु नमो नम:, यह एदम पठत् स्तोत्रम सधाको गुरु दिङ मुख
प्रातरुथाय देवेशी ततोविध्या प्रशिदति, कुल सम्भव पूजा मादौ योन: पठेएदम ।
विफला तश्य पूजाश्यात विचारआय कल्प्यते, एती श्री कुब्जिका तन्त्रे गुरु स्तोत्रम साम्पूर्णम ।।
महाराज वैश्रवण कुबेर की उपासना से संबंधित मंत्र, यंत्र, ध्यान एवं उपासना आदि की सारी प्रक्रियाएं श्रीविद्यार्णव, मन्त्रमहार्णव, मन्त्रमहोदधि, श्रीतत्वनिधि तथा विष्णुधर्मोत्तरादि पुराणों में निर्दिष्ट हैं। तदनुसार इनके अष्टाक्षर, षोडशाक्षर तथा पंचत्रिंशदक्षरात्मक छोटे−बड़े अनेक मंत्र प्राप्त होते हैं। मंत्रों के अलग−अलग ध्यान भी निर्दिष्ट हैं। इनके एक मुख्य ध्यान−श्लोक में इन्हें मनुष्यों के द्वारा पालकी पर अथवा श्रेष्ठ पुष्पक विमान पर विराजित दिखाया गया है। इनका वर्ण गारुडमणि या गरुणरत्न के समान दीप्तिमान पीतवर्णयुक्त बताया गया है और समस्त निधियां इनके साथ मूर्तिमान होकर इनके पार्श्वभाग में निर्दिष्ट हैं। ये किरीट−मुकुटादि आभूषणों से विभूषित हैं।
इनके एक हाथ में श्रेष्ठ गदा तथा दूसरे हाथ में धन प्रदान करने की वरमुद्रा सुशोभित है। ये उन्नत उदरयुक्त स्थूल शरीर वाले हैं। ऐसे भगवान शिव के परम सुहृद भगवान कुबेर का ध्यान करना चाहिए−
कुबेर का ध्यान यह मंत्र पढ़कर लगाएं−
मनुजवाहम्विमानवरस्थितं गरुडरत्ननिभं निधिनायकम्।
शिवसखं मुकुटादिविभूषितं वरगदे दधतं भज तुन्दिलम्।।
मंत्र महार्णव तथा मंत्र महोदधि आदि में निर्दिष्ट महाराज कुबेर के कुछ मंत्र इस प्रकार हैं−
1. अष्टाक्षरमंत्र− ओम वैश्रवणाय स्वाहा।
2. षोडशाक्षरमंत्र− ओम श्री ओम ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः।
3. पंचत्रिंशदक्षरमंत्र− ओम यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।
इसी प्रकार वहां बालरक्षाकर मंत्र−यंत्र भी निर्दिष्ट हैं, जिसमें ‘अया ते अग्ने समिधा’ आदि का प्रयोग होता है। यह मंत्र बालकों के दीर्घायुष्य, आरोग्य, नैरुज्यादि के लिए बहुत उपयोगी है। इस प्रकार बालकों के आरोग्य लाभ के लिए भी भगवान कुबेर की उपासना विशेष फलवती होती है। प्रायरू सभी यज्ञ−यागादि, पूजा−उत्सवों तथा दस दिक्पालों के पूजन में उत्तर दिशा के अधिपति के रूप में कुबेर की विधिपूर्वक पूजा होती है। यज्ञ−यागादि तथा विशेष पूजा आदि के अंत में षोडशोपचार पूजन के अनन्तर आर्तिक्य और पुष्पांजलि का विधान होता है। पुष्पांजलि में तथा राजा के अभिषेक के अंत में ‘ओम राजाधिराजाय प्रसह्म साहिने’ इस मंत्र का विशेष पाठ होता है, जो महाराज कुबेर की ही प्रार्थना का मंत्र है। महाराज कुबेर राजाओं के भी अधिपति हैं, धनों के स्वामी हैं, अतः सभी कामना फल की वृष्टि करने में वैश्रवण कुबेर ही समर्थ हैं।
व्रतकल्पद्रुम आदि व्रत ग्रंथों में कुबेर के उपासक के लिए फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी से वर्ष भर प्रतिमास शुक्ल त्रयोदशी को कुबेर व्रत करने के अनेक विधान निर्दिष्ट हैं। इससे उपासक धनाढ्य तथा सुख−समृद्धि से संपन्न हो जाता है और परिवार में आरोग्य प्राप्त होता है। सारांश में कहा जा सकता है कि कुबेर की उपासना ध्यान से मनुष्य का दुःख दारिद्रय दूर होता है और अनन्त ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शिव के अभिन्न मित्र होने से कुबेर के भक्त की सभी आपत्तियों से रक्षा होती है और उनकी कृपा से साधक में आध्यात्मिक ज्ञान−वैराग्य आदि के साथ उदारता, सौम्यता, शांति तथा तृप्ति आदि सात्विक गुण भी स्वाभाविक रूप से संनिविष्ट हो जाते हैं।
अब सब प्रकार की सिद्धि देन वाले कुबेर के मन्त्र को कहता हूँ –
‘यक्षाय’ पद बोलकर, ‘कुबेराय’, फिर ‘वैश्रवणाय धन’ इन पदों का उच्चारण कर ‘धान्याधिपतये धनधान्य समृद्धिम में देहि दांपय’, फिर ठद्वय (स्वाहा) लगासे से यह ३५ अक्षरों का कुबेर मन्त्र निष्पन्न होता है ॥१०५-१०६॥
इस मन्त्र के विश्रवा ऋषि हैं, बृहती छन्द है तथा शिव के मित्र कुबेर इसके देवता ॥१०७॥
विमर्श – कुबेरमन्त्र का स्वरुप इस प्रकार है – यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिम मे देहि दापय स्वाहा (३५)।
विनियोग – अस्य श्रीकुबेरमन्त्रस्य विश्रवाऋषिर्बृहतीच्छन्दः शिवमित्रं धनेश्वरो देवताऽत्मनोऽभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॥१०५-१०७॥
मन्त्र के ३, ४, ५, ८, ८, एवं ७ वर्णों से षडङ्गन्यास करे । फिर अलकापुरी में विराजमान कुबेर का इस प्रकार ध्यान करे ॥१०८॥
विमर्श – न्यास विधि – यक्षाय हृदयाय नमः, कुबेराय शिरसे स्वाहा,
वैश्रवणाय शिखायै वषट्, धनधान्यधिपतये कवचाय हुम्,
धनधान्यसमृद्धिम मे नेत्रत्रयाय वौषट्, देहि दापय स्वाहा अस्त्राय फट् ॥१०८॥
अब अलकापुरी में विराजमान कुबेर का ध्यान कहते हैं – मनुष्य श्रेष्ठ, सुन्दर विमान पर बैठे हुये, गारुडमणि जैसी आभा वाले, मुकुट आदि आभूषणों से अलंकृत, अपने दोनो हाथो में क्रमशः वर और गदा धारण किए हुये, तुन्दिल शरीर वाले, शिव के मित्र निधीश्वर कुबेर का मैं ध्यान करता हूँ ॥१०९॥
इस मन्त्र का एक लाख जप करना चाहिए । तिलों से उसका दशांश होम करना चाहिए तथा धर्मादि वाले पूर्वोक्त पीठ पर षडङ्ग दिक्पाल एवं उनके आयुधों का पूजन करना चाहिए ॥११०॥
अब काम्य प्रयोग कहते हैं – धन की वृद्धि के लिए शिव मन्दिर में इस मन्त्र का दश हजार जप करना चाहिए । बेल के वृक्ष के नीचे बैठ कर इस मन्त्र का एक लाख जप करने से धन-धान्य रुप समृद्धि प्राप्त होती है ॥१११॥

रवि कांत

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लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा हर किसी को होती है। लक्ष्मी कृपा के लिए भगवान विष्णु की कृपा पाना अत्यन्त अवश्यक है क्योंकि लक्ष्मी उन्हीं के चरणों में रहती हैं। शास्त्रों में या भगवान विष्णु के किसी भी तस्वीर को देखें, आप पाएंगे कि मां लक्ष्मी सदैव उनके चरणों में बैठी उनके चरण दबाती ही दिखती हैं।

इस बारे में एक #पौराणिक कहानी है कि देवर्षि नारद ने एक बार धन की देवी लक्ष्मी से पूछा कि आप हमेशा श्री हरि #विष्णु के चरण क्यों दबाती रहती हैं? इस पर लक्ष्मी जी ने कहा कि ग्रहों के प्रभाव से कोई अछूता नहीं रहता, वह चाहे मनुष्य हो या फिर देवी-देवता।

महिला के हाथ में देवगुरु बृहस्पति वास करते हैं और पुरुष के पैरों में दैत्यगुरु शुक्राचार्य। जब महिला पुरुष के चरण दबाती है, तो देव और दानव के मिलन से धनलाभ का योग बनता है। इसलिए मैं हमेशा अपने स्वामी के चरण दबाती हूं।

भगवान विष्णु ने उन्हें अपने पुरुषार्थ के बल पर ही वश में कर रखा है। लक्ष्मी उन्हीं के वश में रहती है जो हमेशा सभी के कल्याण का भाव रखता हैं। विष्णु के पास जो लक्ष्मी हैं वह धन और सम्पत्ति है। भगवान श्री हरि उसका उचित उपयोग जानते हैं। इसी वजह से महालक्ष्मी श्री विष्णु के पैरों में उनकी दासी बन कर रहती हैं।

वहीं एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, अलक्ष्मी अपनी बहन #लक्ष्मी से बेहद ईर्ष्या रखती हैं। वह बिल्कुल भी आकर्षक नहीं हैं, उनकी आंखें भड़कीली, बाल फैले हुए और बड़े-बड़े दांत हैं। यहां तक कि जब भी देवी लक्ष्मी अपने पति के साथ होती हैं, अलक्ष्मी वहां भी उन दोनों के साथ पहुंच जाती थीं।

अपनी बहन का ये बर्ताव देवी लक्ष्मी को बिल्कुल पसंद नहीं आया और उन्होंने अलक्ष्मी से कहा कि तुम मुझे और मेरे पति को अकेला क्यों नहीं छोड़ देती। इस पर अलक्ष्मी ने कहा कि कोई मेरी आराधना नहीं करता, मेरा पति भी नहीं है, इसलिए तुम जहां जाओगी, मैं तुम्हारे साथ रहूंगी।
इस पर देवी लक्ष्मी क्रोधित हो गईं और आवेग में उन्होंने अलक्ष्मी को #श्राप दिया कि मृत्यु के देवता तुम्हारे पति हैं और जहां भी गंदगी, ईर्ष्या, लालच, आलस, रोष होगा, तुम वहीं रहोगी।

इस प्रकार भगवान विष्णु और अपने पति के चरणों में बैठकर माता लक्ष्मी उनके चरणों की गंदगी को दूर करती हैं, ताकि अलक्ष्मी उनके निकट न आ सकें। इस तरह वे पति को पराई स्त्री से दूर रखने की हर संभव कोशिश कर रही हैं।
माना जाता है सौभाग्य और दुर्भाग्य एक साथ चलते हैं। जब आपके ऊपर सौभाग्य की वर्षा होती है, तब दुर्भाग्य वहीं पास में खड़ा अपने लिए मौका तलाशता है। अलक्ष्मी भी कुछ इसी तरह घर के बाहर बैठकर लक्ष्मी के जाने का इंतजार करती हैं।
जहां भी गंदगी मौजूद होती है, वहां लालच, ईर्ष्या, पति-पत्नी के झगड़े, अश्लीलता, क्लेश और कलह का वातावरण बन जाता है। यह निशानी है कि घर में अलक्ष्मी का प्रवेश हो चुका है। अलक्ष्मी को दूर रखने और लक्ष्मी को आमंत्रित करने के लिए हिन्दू धर्म से जुड़े प्रत्येक घर में सफाई के साथ-साथ नित्य पूजा-पाठ किया जाता है ताकि घर के लोगों को नकारात्मक ऊर्जा से बचाया जा सके। *!! जय श्री हरि !!* *!! जय माँ लक्ष्मी !!* *!! जय श्री विष्णुप्रिया !!* 🙏 जय श्री लक्ष्मीनारायण

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लक्ष्मी प्राप्ति के लिए जलायें संध्या काल में दीपक!!!!!!!!!

शास्त्रों में दिन के अवसान (अन्त) और रात के आगमन अर्थात् दिन और रात के संधि काल को, जब आकाश में न सूर्य हो और न तारे, संध्या काल या सायं काल माना गया है । साधारण भाषा में सूर्यास्त के समय को संध्या काल कहते हैं । हिन्दू धर्म में संध्या काल में भगवान के सामने व तुलसी चौबारे में दीपक जलाने का विधान है, इसी को ‘सांध्य दीप’ कहते हैं ।

संध्या काल में दीप जलाने का महत्व!!!!!!

शास्त्रों में लक्ष्मी प्राप्ति, पापों के नाश, आरोग्य की प्राप्ति व अविद्या रूपी अंधकार (शत्रुओं) के नाश के लिए सांध्य दीप जलाने का बहुत महत्व बताया गया है ।

दीपक जलाते समय रखें इस बात का ध्यान
दीपक को दीवट या थोड़े से चावलों पर ही रखकर जलाना चाहिए । सीधे जमीन पर दीपक जलाकर नहीं रखना चाहिए । इसका कारण यह बताया गया है कि यदि कभी भूल वश दीपक बढ़ (बुझ) जाए तो चावलों या दीवट में रखे होने पर उसका दोष नहीं माना जाता है।

दीपक जलाने के बाद उसे प्रकाश रूप परमात्मा मान कर इस मन्त्र से नमस्कार करना चाहिए—नमस्कार का मन्त्र!!!!!

दीपो ज्योति: परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन: ।
दीपो हरतु मे पापं सांध्यदीप ! नमोस्तु ते ।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुख सम्पदम् ।
शत्रुबुद्धि विनाशं च दीपज्योति नमोऽस्तु ते ।।

अर्थात्—हे सांध्य दीप ! आपकी ज्योति (प्रकाश) परब्रह्म परमात्मा है, आपका प्रकाश भगवान जनार्दन का रूप है । यह प्रकाश मेरे पापों का नाश कर दे, मैं आपको नमस्कार करता हूँ । हे सांध्य दीप ! आपका प्रकाश मंगलकारी, कल्याण करने वाला, आरोग्य व सुख-सम्पत्ति देने वाला और शत्रु की बुद्धि भ्रष्ट करने वाला है, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ।

पूज्य संत श्रीरामचन्द्र डोंगरेजी महाराज द्वारा सांध्य दीप जलाने की सुन्दर व्याख्या!!!!!

पूज्य सन्त श्रीरामचन्द्र डोंगरेजी महाराज ने संध्या समय दीपक जलाने की बहुत सुन्दर व्याख्या की है । भगवान सूर्य बुद्धि के देवता हैं। सूर्य अस्त होने पर मनुष्य की बुद्धि-विवेक कमजोर हो जाते हैं और वासनाएं प्रबल हो जाती हैं । संध्या काल प्रदोष काल है । इस समय शंकरजी की पूजा होती है । इसीलिए संध्या काल में भक्ति करने (जप, कीर्तन, भजन, आरती) का बहुत महत्व है ।

संध्या समय भगवान के नाम का दीपक जलाना चाहिए । भगवान को दीपक की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि परमात्मा स्वयं प्रकाशमय है । भगवान का श्रीअंग करोड़ों सूर्यों के प्रकाश के समान है—‘कोटिसूर्य समप्रभ’ । इसलिए भगवान जहां विराजते हैं वहां अंधेरा आता ही नहीं है । दीपक के प्रकाश की आवश्यकता मानव को है । मानव के मन में अज्ञान का, वासना का अंधकार रहता है । इसलिए भगवान के समक्ष दीपक जलाकर प्रार्थना करनी चाहिए मेरे अंदर आपका प्रकाश (सद्बुद्धि) सदैव बनी रहे ।

प्राय: हम कहते हैं दीपक जोड़ दो अर्थात् जला दो । इसका सीधा अर्थ है कि अपने मन-बुद्धि को प्रकाश रूपी परमात्मा से जोड़ देना । जब बुद्धि परमात्मा से जुड़ जाती है, तब वह सद्बुद्धि हो जाती है । जहां सद्बुद्धि है वहां धर्म है, जहां धर्म है वहीं लक्ष्मी निवास करती है।

विशेष बात : संध्या काल में क्या न करें ?

संध्या काल प्रकाश रूप परमात्मा से जुड़ने का समय है इसलिए इस समय न तो खाना खाना चाहिए क्योंकि इससे अस्वस्थता आती है, न पढ़ना चाहिए क्योंकि पढ़ा हुआ याद नहीं रहता और न ही काम भावना रखनी चाहिए क्योंकि ऐसे समय के बच्चे आसुरी गुणों के होते हैं । यह समय केवल भगवान से जुड़ने और उनको स्मरण करने का है ।

संध्या आरती!!!!!!!

संतों ने भगवान की आरती की तरह संध्या काल की आरती का भी बहुत महत्व बताया है, इसे ‘संध्या आरती’ कहते हैं । एक बहुत ही सुन्दर व भावपूर्ण संध्या आरती पाठकों की सुविधा के लिए दी गयी है । इसको यदि कंठस्थ करके सांध्य दीप जलाते समय गा लिया जाए तो मन में बहुत शान्ति मिलती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है ।

व्रज में संध्या काल को संजा कहते हैं, चूंकि यह व्रज में गाया जाने वाला भजन है इसलिए इसमें संध्या के लिए ‘संजा’ शब्द का प्रयोग हुआ है । इस संध्या आरती में साधक अपने मन को सांध्य दीप जलाकर ईश्वर को स्मरण करने के लिए कह रहा है ।

संध्या आरती (भजन)!!!!!!

मन रे तू संजा सुमिरन कर ले,
अरे मन संजा सुमिरन कर ले ।
भोले मन संजा सुमिरन कर ले ।।
काहे को दिवला काहे की बाती,
काहे को घृत जले दिन-राती ।
अरे मन संजा तू …….।।
सोने का दिवला कपूर की बाती,
सुरही (गाय) का घृत जले दिन-राती ।
दीपक जोड़ धरौ मन्दिर में, जगमग होय उजालो,
अरे मन संजा तू …….।।
मेरे ही अंगना तुलसी को बिरवा, जाय ही सींचों करो रे,
संजा, सवेरे और दुपहरी तीनों वक्त हरि कू भजो रे ।
चोरी, बुराई पर-घर निंदा इन तीनन से बचो रे ।।
अरे मन संजा तू …….।।
जा काहू को लेनो और देनो, याही जनम चुकता कर ले,
पाप-पुण्य की बांधि गठरिया, अपने ही सिर पर रखो रे ।
मात-पिता और गुरु अपने की, इनकी सेवा कर ले ।।
अरे मन संजा तू …….।।
काहे की नाव, काहे को खेवा, कौन लगावै बेड़ा पार रे,
सत्य की नाव, धर्म को खेवा, कृष्ण लगावें बेड़ा पार रे ।।
अरे मन संजा तू …….।।
काहे के चंदा, काहे के सूरज, कौन बसै संसार रे ।
सत्य के चंदा,धर्म के सूरज,पाप बसै संसार रे।।
अरे मन संजा तू …….।।

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आर्थिक तंगी दूर करने के लिए करें हनुमानजी की आराधना एवं पीपल के पत्तों का उपाय –


☘️💐आर्थिक तंगी दूर करने के लिए करें हनुमानजी की आराधना एवं पीपल के पत्तों का उपाय -☘️💐
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शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवी-देवताओं में से एक हैं। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस के अनुसार माता सीता द्वारा पवनपुत्र हनुमानजी को अमरता का वरदान दिया गया है। इसी वरदान के प्रभाव से इन्हें भी अष्टचिरंजीवी में शामिल किया जाता है। कलयुग में हनुमानजी भक्तों की सभी मनोकामनाएं तुरंत ही पूर्ण करते हैं।

बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। इन्हीं उपायों में से एक उपाय यहां बताया जा रहा है। इस उपाय को विधिवत किया जाए तो बहुत जल्दी सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। यह उपाय पीपल के पत्तों से किया जाता है।

श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमानजी की कृपा प्राप्त होते ही भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते हैं। पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। कोई रोग हो तो वह भी नष्ट हो जाता है। इसके साथ ही यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह दोष हो तो पवनपुत्र की पूजा से वह भी दूर हो जाता है। हनुमानजी की पूजा में पवित्र का पूरा ध्यान रखना चाहिए।

यदि कोई व्यक्ति पैसों की तंगी का सामना करना रहा है तो उसे प्रति मंगलवार और शनिवार को पीपल के 11 पत्तों का यह उपाय अपनाना चाहिए।

उपाय इस प्रकार है👉 प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को ब्रह्म मुहूर्त में उठें। इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत्त होकर किसी पीपल के पेड़ से 11 पत्ते तोड़ लें। ध्यान रखें पत्ते पूरे होने चाहिए, कहीं से टूटे या खंडित नहीं होने चाहिए। इन 11 पत्तों पर स्वच्छ जल में कुमकुम या अष्टगंध या चंदन मिलाकर इससे पूरे पत्ते पर आगे पीछे सभी तरफ अधिक से अधिक संख्या में श्रीराम का नाम लिखें। नाम लिखते समय हनुमान चालीसा का पाठ अवश्य करते रहें।

जब सभी पत्तों पर श्रीराम नाम लिख लें, उसके बाद राम नाम लिखे हुए इन पत्तों की एक माला बनाएं। इस माला को किसी भी हनुमानजी के मंदिर जाकर वहां बजरंगबली को अर्पित करें। इस प्रकार यह उपाय करते रहें। कुछ समय में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे।

ध्यान रखें उपाय करने वाला भक्त किसी भी प्रकार के अधार्मिक कार्य न करें। अन्यथा इस उपाय का प्रभाव निष्फल हो जाएगा। उचित लाभ प्राप्त नहीं हो सकेगा। साथ ही अपने कार्य और कर्तव्य के प्रति ईमानदार रहें।

🌺🌺हनुमान जी को प्रसन्न करने के अन्य उपाय!
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👉 किसी भी हनुमान मंदिर जाएं और अपने साथ नारियल लेकर जाएं। मंदिर में नारियल को अपने सिर पर सात बार वार लें। इसके बाद यह नारियल हनुमानजी के सामने फोड़ दें। इस उपाय से आपकी सभी बाधाएं दूर हो जाएंगी।

👉 शनिवार को हनुमानजी के मंदिर में 1 नारियल पर स्वस्तिक बनाएं और हनुमानजी को अर्पित करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें।

👉 हनुमानजी को सिंदूर और तेल अर्पित करें। जिस प्रकार विवाहित स्त्रियां अपने पति या स्वामी की लंबी उम्र के लिए मांग में सिंदूर लगाती हैं, ठीक उसी प्रकार हनुमानजी भी अपने स्वामी श्रीराम के लिए पूरे शरीर पर सिंदूर लगाते हैं। जो भी व्यक्ति शनिवार को हनुमानजी को सिंदूर अर्पित करता है उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।

👉 अपनी श्रद्धा के अनुसार किसी हनुमान मंदिर में बजरंग बली की प्रतिमा पर चोला चढ़वाएं। ऐसा करने पर आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।

👉 हनुमानजी के सामने शनिवार की रात को चौमुखा दीपक लगाएं। यह एक बहुत ही छोटा लेकिन चमत्कारी उपाय है। ऐसा नियमित रूप से करने पर आपके घर-परिवार की सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं।

👉 किसी पीपल पेड़ को जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें। इसके बाद पीपल के नीचे बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करें।

🌺विशेष-
उपाय करते समय धैर्य का परिचय दें कोई भी उपाय तुरंत लाभ नही दे सकता पहले प्रारब्ध कमजोर करेगा उसके बाद ही लाभ होगा।

ओली अमित

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लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा रखते हैं…???
एकादशी-शुक्रवार-6 मार्च को आँवले से स्नान करें एवं लक्ष्मी नारायण को आँवला अर्पित करें ।
शुभमस्तु