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“रामस्य ईश्वर: यः, स: रामेश्वर:। रामो ईश्वरो यस्य सः रामेश्वरः”

प्रभु रामेश्वरम् के ज्योतिर्लिंग की स्थापना श्रीराम ने रामसेतु बनाने से पहले की थी। जब महावीर हनुमान ने उनके द्वारा दिए गए शिवलिंग के इस नाम का मतलब पूछा तो भगवान् राम ने शिव जी के नवीन स्थापित ज्योतिर्लिंग के स्वयं द्वारा दिए इस नाम की व्याख्या में कहा।

रामस्य ईश्वर: यः स: रामेश्वरः।

मतलब जो श्री राम के ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं.

बाद में जब रामसेतु बनने की कहानी भगवान् शिव, माता सती को सुनाने लगे तो बोले कि प्रभु श्री राम ने बड़ी चतुराई से रामेश्वरम नाम की व्याख्या ही बदल दी।
माता सती ने पूछा, ऐसा कैसे? तो देवाधिदेव महादेव ने रामेश्वरम नाम की व्याख्या करते हुए उच्चारण में थोड़ा सा फ़र्क बताया- राम: ईश्वरो यस्य सः रामेश्वरः।
यानि श्री राम जिसके ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं.

ब्रह्माजी ने आकर कहा- रामेश्वर का सही अर्थ मैं करता हूँ- “रामश्चासौ ईश्वरश्च, रामेश्वरः” जो राम हैं वो ईश्वर है, जो ईश्वर है वो शंकर है।
नाम भिन्न है लेकिन है तो एक ही, राम ही कृष्ण हैं, कृष्ण ही नारायण है और वही शिव हैं।

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नौ लखा महल मां सीता के लिए नेपाल में टीकमगढ़ मध्य प्रदेश की महारानी वृषभानु कुंवर बुन्देला / पत्नी महाराजा प्रताप सिंह जू देव बुन्देला ने ₹900000
(नौ लाख) की लागत से बनवाया था,

जनकपुर का नौलखा मंदिर… यह हिंदू मंदिर नेपाल के जनकपुर के केंद्र में स्थित है. राजा जनक के नाम पर शहर का नाम जनकपुर रखा गया था। राजा जनक की पुत्री सीता जिन्हें जानकी भी कहते हैं, उनके नाम पर इस मंदिर का नामकरण हुआ था.यह नगरी मिथिला की राजधानी थी,

भगवान श्रीराम से विवाह के पहले सीता ने ज़्यादातर समय यहीं व्यतीत किया था।जानकी मंदिर साल 1911 में बनकर तैयार हुआ था। क़रीब 4860 वर्ग मीटर में फैले इस मंदिर का निर्माण टीकमगढ़ की महारानी कुमारी वृषभानु ने करवाया था। इस महल में सामना 265 फिट का है।

पहले यहां जंगल हुआ करता था, जहां शुरकिशोर दास तपस्या-साधन करने पहुंचे थे, यहां रहने के दौरान उन्हें माता सीता की एक मूर्ति मिली थी, जो सोने की थी. उन्होंने ही इसे वहां स्थापित किया था।

टीकमगढ़ की महारानी कुमारी वृषभानु बुन्देला एक बार वहां गई थीं. उन्हें कोई संतान नहीं थी। वहां पूजा के दौरान उन्होंने यह मन्नत मांगी थी कि अगर भविष्य में उन्हें कोई संतान होती है तो वो वहां मंदिर बनवाएंगी। संतान की प्राप्ति के बाद वो वहां लौटीं और साल 1895 में मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और 16 साल में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ।

ऐसा कहा जाता है कि उस समय इसके निर्माण पर कुल नौ लाख रुपए खर्च हुए थे, इसलिए इस मंदिर को नौलखा मंदिर भी कहते हैं।

मंदिर में 12 महीने अखंड कीर्तन चलता रहता है। 24 घंटे सीता-राम नाम का जाप यहां लोग करते हैं। साल 1967 से लगातार यहां अखंड कीर्तन चल रहा है।
वर्तमान में राम तपेश्वर दास वैष्णव इस मंदिर के महंत हैं। वे जानकी मंदिर के 12वें महंत हैं. परंपरानुसार अगले महंत का चुनाव वर्तमान महंत करते रहे हैं।

जानकी मंदिर में तीर्थ यात्री न सिर्फ़ भारत से बल्कि विदेशों से भी आते हैं. यहां यूरोप, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया से भी तीर्थ यात्री आते हैं.
मंदिर में मां सीता की मूर्ति अत्यंत प्राचीन है जो 1657 के आसपास की बताई जाती है।
जय सिया राम 🚩🚩🚩

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रामायण काल मे भारत का विदेशों से संपर्क का उल्लेख

कम्बोडिया का नाम आपने सुना ही होगा, विश्व का सबसे बड़ा श्रीहरि मंदिर कम्बोडिया में ही है । रामायणकाल में भी कम्बोडिया का जिक्र आया है ।। रामायण में लिखा है, अयोध्या में जिस स्थान के घोड़े सबसे ज़्यादा थे, उनमें से एक देश कम्बोडिया भी था ।।

कम्बोडिया का प्राचीन नाम कंबोज है, ओर उस समय यह कंबोज आज जितना छोटा नही था, लाओस, वियतनाम आदि क्षेत्र भी इसी कंबोज का ही एक भाग थे ।। लाओस एवं वियतनाम में आज तक बहुत अधिक मात्रा में हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर उपस्तिथ है ।। रामायण में विश्व के प्रत्येक स्थान का वर्णन है ….

संदर्भ –
काम्बोजविषये जातैर्बाहीकैश्च हयोत्तमैः ।
बनायुजैदीजैश्च पूर्णा हरिहयोत्तमैः ॥(वाल्मीकि रामायण )

काम्बोज और बाह्रीक देश में उत्पन्न हुए उत्तम घोड़ों से , वनायु देश के अश्वों से तथा सिन्धु नदी के निकट पैदा होने वाले दरियाई घोड़ों से , जो इन्द्रके अश्व के समान श्रेष्ठ थे , अयोध्यापुरी भरी रहती थी ॥२२ ॥

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माता सीता जन्मोत्सव


माता सीता जन्मोत्सव विशेष
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सीता नवमी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन सीता का प्राकट्य हुआ था। इस पर्व को “जानकी नवमी” भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन पुष्य नक्षत्र में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ। जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को भी ‘सीता’ कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम ‘सीता’ रखा गया। इस दिन वैष्णव संप्रदाय के भक्त माता सीता के निमित्त व्रत रखते हैं और पूजन करते हैं। मान्यता है कि जो भी इस दिन व्रत रखता व श्रीराम सहित सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल, सोलह महान दानों का फल तथा सभी तीर्थों के दर्शन का फल अपने आप मिल जाता है। अत: इस दिन व्रत करने का विशेष महत्त्व है। सीता जन्म कथा सीता के विषय में रामायण और अन्य ग्रंथों में जो उल्लेख मिलता है, उसके अनुसार मिथिला के राजा जनक के राज में कई वर्षों से वर्षा नहीं हो रही थी। इससे चिंतित होकर जनक ने जब ऋषियों से विचार किया, तब ऋषियों ने सलाह दी कि महाराज स्वयं खेत में हल चलाएँ तो इन्द्र की कृपा हो सकती है। मान्यता है कि बिहार स्थित सीममढ़ी का पुनौरा नामक गाँव ही वह स्थान है, जहाँ राजा जनक ने हल चलाया था। हल चलाते समय हल एक धातु से टकराकर अटक गया। जनक ने उस स्थान की खुदाई करने का आदेश दिया। इस स्थान से एक कलश निकला, जिसमें एक सुंदर कन्या थी। राजा जनक निःसंतान थे। इन्होंने कन्या को ईश्वर की कृपा मानकर पुत्री बना लिया। हल का फल जिसे ‘सीत’ कहते हैं, उससे टकराने के कारण कालश से कन्या बाहर आयी थी, इसलिए कन्या का नाम ‘सीता’ रखा गया था।

‘वाल्मीकि रामायण’ के अनुसार
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श्रीराम के जन्म के सात वर्ष, एक माह बाद वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को जनक द्वारा खेत में हल की नोक (सीत) के स्पर्श से एक कन्या मिली, जिसे उन्होंने सीता नाम दिया। जनक दुलारी होने से ‘जानकी’, मिथिलावासी होने से ‘मिथिलेश’ कुमारी नाम भी उन्हें मिले। उपनिषदों, वैदिक वाङ्मय में उनकी अलौकिकता व महिमा का उल्लेख है, जहाँ उन्हें शक्तिस्वरूपा कहा गया है। ऋग्वेद में वह असुर संहारिणी, कल्याणकारी, सीतोपनिषद में मूल प्रकृति, विष्णु सान्निध्या, रामतापनीयोपनिषद में आनन्द दायिनी, आदिशक्ति, स्थिति, उत्पत्ति, संहारकारिणी, आर्ष ग्रंथों में सर्ववेदमयी, देवमयी, लोकमयी तथा इच्छा, क्रिया, ज्ञान की संगमन हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने उन्हें सर्वक्लेशहारिणी, उद्भव, स्थिति, संहारकारिणी, राम वल्लभा कहा है। ‘पद्मपुराण’ उन्हें जगतमाता, अध्यात्म रामायण एकमात्र सत्य, योगमाया का साक्षात् स्वरूप और महारामायण समस्त शक्तियों की स्रोत तथा मुक्तिदायिनी कह उनकी आराधना करता है। ‘रामतापनीयोपनिषद’ का वर्णन ‘रामतापनीयोपनिषद’ में सीता को जगद की आनन्द दायिनी, सृष्टि, के उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार की अधिष्ठात्री कहा गया है- श्रीराम सांनिध्यवशां-ज्जगदानन्ददायिनी। उत्पत्ति स्थिति संहारकारिणीं सर्वदेहिनम्॥

‘वाल्मीकि रामायण’ के अनुसार
सीता राम से सात वर्ष छोटी थीं। ममभत्र्ता महातेजा वयसापंचविंशक:। अष्टादशा हि वर्षाणि मम जन्मति गण्यते॥

‘रामायण’ तथा ‘रामचरितमानस’ के बालकाण्ड में सीता के उद्भवकारिणी रूप का दर्शन होता है एवं उनके विवाह तक सम्पूर्ण आकर्षण सीता में समाहित हैं, जहाँ सम्पूर्ण क्रिया उनके ऐश्वर्य को रूपायित करती है। अयोध्याकाण्ड से अरण्यकाण्ड तक वह स्थितिकारिणी हैं, जिसमें वह करुणा-क्षमा की मूर्ति हैं। वह कालरात्रि बन निशाचर कुल में प्रविष्ट हो उनके विनाश का मूल बनती हैं। यद्यपि तुलसीदास ने सीताजी के मात्र कन्या तथा पत्नी रूपों को दर्शाया है, तथापि वाल्मीकि ने उनके मातृस्वरूप को भी प्रदर्शित कर उनमें वात्सल्य एवं स्नेह को भी दिखलाया है। सीता जयंती सीताजी की जयंती वैशाख शुक्ल नवमी को मनायी जाती है, किंतु भारत के कुछ भाग में इसे फाल्गुन कृष्ण अष्टमी को मनाते हैं। रामायण के अनुसार वह वैशाख में अवतरित हुईं थीं, किन्तु ‘निर्णयसिन्धु’ के ‘कल्पतरु’ ग्रंथानुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी को। अत: दोनों ही तिथियाँ उनकी जयंती हेतु मान्य हैं।

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम तथा माता जानकी के अनन्य भक्त तुलसीदास न ‘रामचरितमानस’ के बालकांड के प्रारंभिक श्लोक में सीता जी ब्रह्म की तीन क्रियाओं उद्भव, स्थिति, संहार, की संचालिका तथा आद्याशक्ति कहकर उनकी वंदना की है- उद्भव स्थिति संहारकारिणीं हारिणीम्। सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामबल्लभाम्॥

अद्भुत रामायण का उल्लेख अनुसार
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श्रीराम तथा सीता इस घटना से ज्ञात होता है कि सीता राजा जनक की अपनी पुत्री नहीं थीं। धरती के अंदर छुपे कलश से प्राप्त होने के कारण सीता खुद को पृथ्वी की पुत्री मानती थीं। लेकिन वास्तव में सीता के पिता कौन थे और कलश में सीता कैसे आयीं, इसका उल्लेख अलग-अलग भाषाओं में लिखे गये रामायण और कथाओं से प्राप्त होता है। ‘अद्भुत रामायण’ में उल्लेख है कि रावण कहता है कि- “जब मैं भूलवश अपनी पुत्री से प्रणय की इच्छा करूँ, तब वही मेरी मृत्यु का कारण बने।” रावण के इस कथन से ज्ञात होता है कि सीता रावण की पुत्री थीं। ‘अद्भुत रामायण’ में उल्लेख है कि गृत्स्मद नामक ब्राह्मण लक्ष्मी को पुत्री रूप में पाने की कामना से प्रतिदिन एक कलश में कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चारण के साथ दूध की बूंदें डालता था। एक दिन जब ब्राह्मण कहीं बाहर गया था, तब रावण इनकी कुटिया में आया और यहाँ मौजूद ऋषियों को मारकर उनका रक्त कलश में भर लिया। यह कलश लाकर रावण ने मंदोदरी को सौंप दिया। रावण ने कहा कि यह तेज विष है। इसे छुपाकर रख दो। मंदोदरी रावण की उपेक्षा से दुःखी थी। एक दिन जब रावण बाहर गया था, तब मौका देखकर मंदोदरी ने कलश में रखा रक्त पी लिया। इसके पीने से मंदोदरी गर्भवती हो गयी।

पूजन विधि
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जिस प्रकार हिन्दू समाज में ‘राम नवमी’ का महात्म्य है, उसी प्रकार ‘जानकी नवमी’ या ‘सीता नवमी’ का भी। इस पावन पर्व पर जो व्रत रखता है तथा भगवान रामचन्द्र जी सहित भगवती सीता का अपनी शक्ति के अनुसार भक्तिभाव पूर्वक विधि-विधान से सोत्साह पूजन वन्दन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल, महाषोडश दान का फल, अखिलतीर्थ भ्रमण का फल और सर्वभूत दया का फल स्वतः ही प्राप्त हो जाता है। ‘सीता नवमी’ पर व्रत एवं पूजन हेतु अष्टमी तिथि को ही स्वच्छ होकर शुद्ध भूमि पर सुन्दर मण्डप बनायें। यह मण्डप सौलह, आठ अथवा चार स्तम्भों का होना चाहिए। मण्डप के मध्य में सुन्दर आसन रखकर भगवती सीता एवं भगवान श्रीराम की स्थापना करें। पूजन के लिए स्वर्ण, रजत, ताम्र, पीतल, काठ एवं मिट्टी इनमें से सामर्थ्य अनुसार किसी एक वस्तु से बनी हुई प्रतिमा की स्थापना की जा सकती है। मूर्ति के अभाव में चित्र द्वारा भी पूजन किया जा सकता है। नवमी के दिन स्नान आदि के पश्चात् जानकी-राम का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए। ‘श्री रामाय नमः’ तथा ‘श्री सीतायै नमः’ मूल मंत्र से प्राणायाम करना चाहिए। ‘श्री जानकी रामाभ्यां नमः’ मंत्र द्वारा आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, पंचामृत स्नान, वस्त्र, आभूषण, गन्ध, सिन्दूर तथा धूप-दीप एवं नैवेद्य आदि उपचारों द्वारा श्रीराम-जानकी का पूजन व आरती करनी चाहिए। दशमी के दिन फिर विधिपूर्वक भगवती सीता-राम की पूजा-अर्चना के बाद मण्डप का विसर्जन कर देना चाहिए। इस प्रकार श्रद्धा व भक्ति से पूजन करने वाले पर भगवती सीता व भगवान राम की कृपा प्राप्ति होती है।
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@everyone

मनीष कपूर

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🙏 *આ પુરું વાંચજો- બીજાને આપજો:–* રામચરિત માનસની કેટલીક રસપ્રદ હકીકતો *

1: ~ રામજી લંકામાં 111 દિવસ રહ્યા.
2: ~ સીતાજી લંકામાં રહ્યા હતા = 435 દિવસ.
3: માનસમાં શ્લોક સંખ્યા = 27 છે.
4: માનસમાં ચોપાઇ સંખ્યા = 4608.
5: માનસમાં દોહા સંખ્યા = 1074.
6: ~ માનસમાં સોરઠા સંખ્યા = 207.
7: માનસમાં શ્લોક સંખ્યા = 86 છે.

8: ~ સુગ્રીવ પાસે તાકાત હતી =
10000 હાથી ની..
9: ~ સીતા રાણી બની = 33 વર્ષની ઉંમરે.
10: માનસની રચના સમયે તુલસીદાસની ઉંમર = 77 વર્ષ હતી.
11: પુષ્પક વિમાનની ઝડપ = 400 માઇલ / કલાક હતી.
12: રામદલ અને રાવણની ટીમ વચ્ચે યુદ્ધ = 87 દિવસ.
13: ~ રામ રાવણ યુદ્ધ = 32 દિવસ ચાલ્યું.
14: ~ પુલ બાંધકામ = 5 દિવસમાં પૂર્ણ.

15: ~ નલનીલના પિતા = વિશ્વકર્મા જી.
16: ~ ત્રિજટા ના પિતા = વિભીષણ.

17: ~ વિશ્વામિત્ર રામને લઈગયા= 10 દિવસ માટે..
18: ~ રામ એ પ્રથમ રાવણનો વધ કર્યો હતો = 6 વર્ષની ઉંમરે.
19: ~ રાવણ પુનર્જીવિત થયો = સુષેન વૈદે નાભિમાં અમૃત રાખ્યું.

શ્રી રામના પરદાદાનું નામ શું હતું?
નહિંતર જાણો-
1 – હું બ્રહ્માજીથી મરીચ થયા,
2 – મરીચીનો પુત્ર કશ્યપ બન્યો,
3 – કશ્યપનો પુત્ર વિવસ્વાન હતો,
4 – વિવસ્વાન ના વૈવસ્વત મનુ બન્યા.વૈવસ્વત મનુ સમયે પ્રલય થયો,
5 – વૈવસ્વત્ મનુના દસ પુત્રોમાંથી એકનું નામ ઇક્ષ્વાકુ હતું, ઇક્ષ્વાકુએ અયોધ્યાને પોતાની રાજધાની બનાવી અને આ રીતે ઇક્ષ્વાકુ કુલની સ્થાપના કરી.
6 – ઇક્ષ્વાકુનો પુત્ર કુક્ષી બન્યો,
7 – કુક્ષીના પુત્રનું નામ વિકુક્ષી હતું,
8 – વિકુક્ષીના પુત્રો બાણ બન્યા,
9 – બાણના પુત્રો અનરણ્ય બન્યા,
10- તે અરણ્યથી પૃથ્વીરાજ થયા,
11- પૃથુ થી ત્રિશંકુનો જન્મ થયો,
12- ત્રિશંકુનો પુત્ર ધુંધુમાર બન્યો,
13- ધંધુમારના પુત્રનું નામ યુવનાશ્વ હતું,
14- યુવનાશ્વના પુત્ર માંધાતા બન્યા,
15- સુસંધીનો જન્મ માંધાતામાંથી થયો હતો,
16- સુસંધિને બે પુત્રો હતા- ધ્રુવસંધિ અને પ્રસેનજિત,
17- ધ્રુવસંધિનો પુત્ર ભરત બન્યો,
18- ભરતનો પુત્ર અસિત બન્યો,
19- અસિતનો પુત્ર સગર બન્યો,
20- સગરાના પુત્રનું નામ અસમંજ હતું,
21- અસમંજનો પુત્ર અંશુમન બન્યો,
22- અંશુમનનો પુત્ર દિલીપ હતો,
23- દિલીપનો પુત્ર ભગીરથ બન્યો, ભગીરથ ગંગાને ધરતી પર ઉતાર્યા હતા.. ભગીરથનો પુત્ર કકુત્સ્થ હતો.
24- કકુત્સ્થનો પુત્ર રઘુ બન્યો, રઘુ ખૂબ જ તેજસ્વી અને શકિતશાળી રાજા હોવાને કારણે, આ રાજવંશનું નામ રઘુવંશ તેના પરથી પડ્યું, ત્યારથી શ્રી રામના પરિવારને રઘુ કુળ પણ કહેવામાં આવે છે.
25- રઘુના પુત્રો પ્રવૃદ્ધ થયા,
26- પ્રવૃદ્ધનો પુત્ર શંખણ હતો,
27- શંખણનો પુત્ર સુદર્શન હતો.
28- સુદર્શનના પુત્રનું નામ અગ્નિવર્ણા હતું,
29- અગ્નિવર્ણાના પુત્રોનો શિઘ્રજ થયો,
30- શિઘ્રજના પુત્ર મરુ
31- મરુનો પુત્ર પ્રસુશ્રુકા હતો,
32- પ્રસૂશ્રુકનો પુત્ર અંબરીશ હતો,
33- અંબરીશના પુત્રનું નામ નહુષ હતું,
34- નહુષનો પુત્ર યયાતી હતો,
35- યયાતિના પુત્રો નાભાગ થયા,
36- નાભાગના પુત્રનું નામ અજ હતું,
37- અજના પુત્ર દશરથ બન્યા,
38- દશરથને ચાર પુત્રો રામ, ભરત, લક્ષ્મણ અને શત્રુઘ્ન હતા.
આમ શ્રી રામનો જન્મ બ્રહ્માની ઓગણચાલીસમી (39) પેઢી માં થયો હતો. શેર કરો જેથી દરેક હિન્દુને આ માહિતી મળે …

* આ માહિતી તમને મહિનાઓની મહેનત બાદ રજૂ કરવામાં આવી છે.
* ત્રણ મોકલીને ધર્મનો લાભ મેળવો.
#રામ_Jiચરિત_માનસ.જય શ્રી રામ રાજા રામ.*આપણી નવી પેઢી ધર્મથી દૂર થતી જાય છે… સંખ્યા થી તો હિન્દુ ધર્મ પાળતી પ્રજા ૧૦૦ કરોડ ઉપર છે…પણ આપણા મહાન હિન્દુ ધર્મ વિશે બાળકો પાસે સાચી માહિતી નથી… તો તમે પણ આ માહિતી વાંચો અને તમારા બાળકો ને પણ વંચાવો….

*(1) હિન્દુધર્મ પ્રમાણે માનવજીવનના સોળ સંસ્કારો :*

1. ગર્ભાધાન સંસ્કાર
2. પુંસવન સંસ્કાર
3.સીમંતોન્ન્યન સંસ્કાર
4. જાતકર્મ સંસ્કાર
5. નામકરણ સંસ્કાર
6. નિષ્ક્રમણ સંસ્કાર
7. અન્નપ્રાશન સંસ્કાર
8. વપન (ચૂડાકર્મ) સંસ્કાર
9. કર્ણવેધ સંસ્કાર
10. ઉપનયન સંસ્કાર
11. વેદારંભ સંસ્કાર
12. કેશાન્ત સંસ્કાર
13. સમાવર્તન સંસ્કાર
14. વિવાહ સંસ્કાર
15. વિવાહગ્નિપરિગ્રહ સંસ્કાર
16. અગ્નિ સંસ્કાર

*(2) હિન્દુધર્મના ઉત્સવો :*

1. નૂતન વર્ષારંભ
2. ભાઈબીજ
3. લાભપાંચમ
4. દેવદિવાળી
5. ગીતા જયંતિ (માગસર સુદ એકાદશી)
6. ઉત્તરાયણ અને મકરસંક્રાંતિ
7. વસંત પંચમી
8. શિવરાત્રી
9. હોળી
10. રામનવમી
11. અખાત્રીજ
12. વટસાવિત્રી (જેઠ પૂર્ણિમા)
13. અષાઢી બીજ
14. ગુરુ પૂર્ણિમા
15. શ્રાવણી-રક્ષાબંધન
16. જન્માષ્ટમી
17. ગણેશ ચતુર્થી
18. શારદીય નવરાત્રી
19. વિજ્યા દશમી
20. શરદપૂર્ણિમા
21. ધનતેરસ
22. દીપાવલી.

*(3) હિન્દુ – તીર્થો : ભારતના ચાર ધામ :*

1. દ્વારિકા
2. જગન્નાથપુરી
3. બદરીનાથ
4. રામેશ્વર

*( 4 ) હિમાલ હિમાલય ના ચાર ધામ :*

1. યમુનોત્રી
2. ગંગોત્રી
3. કેદારનાથ
4. બદરીનાથ

*(5) હિમાલયના પાંચ કેદાર :*

1. કેદારનાથ
2. મદમહેશ્વર
3. તુંગનાથ
4. રુદ્રનાથ
5. કલ્પેશ્વર

*ભારતની સાત પવિત્ર પુરી :*

1. અયોધ્યા
2. મથુરા
3. હરિદ્વાર
4. કાશી
5. કાંચી
6.. અવંતિકા
7. દ્વારિકા

*દ્વાદશ જ્યોતિલિંગ :*

1. મલ્લિકાર્જુન (શ્રી શૈલ – આંધ્ર પ્રદેશ)
2. સોમનાથ (પ્રભાસ પાટણ – ગુજરાત)
3. મહાકાલ (ઉજ્જૈન –મધ્યપ્રદેશ)
4. વૈદ્યનાથ (પરલી-મહારાષ્ટ્ર)
5. ઓમકારેશ્વર (મધ્યપ્રદેશ)
6. ભીમાશંકર (મહારાષ્ટ્ર)
7. ત્ર્યંબકેશ્વર (મહારાષ્ટ્ર)
8. નાગનાથ (દ્વારિકા પાસે – ગુજરાત)
9. કાશી વિશ્વનાથ (કાશી – ઉત્તરપ્રદેશ)
10. રામેશ્વર (તમિલનાડુ)
11. કેદારનાથ (ઉત્તરાંચલ)
12. ઘૃષ્ણેશ્વર (દેવગિરિ-મહારાષ્ટ્ર)

*અષ્ટવિનાયક ગણપતિ :*

1. ઢુંઢીરાજ – વારાણસી
2. મોરેશ્વર-જેજૂરી
3. સિધ્ધટેક
4. પહ્માલય
5. રાજૂર
6. લેહ્યાદ્રિ
7. ઓંકાર ગણપતિ – પ્રયાગરાજ
8. લક્ષવિનાયક – ઘુશ્મેશ્વર

*શિવની અષ્ટમૂર્તિઓ :*

1. સૂર્યલિંગ કાશ્મીરનું માર્તડ મંદિર / ઓરિસ્સાનું કોર્ણાક મંદિર / ગુજરાતનું મોઢેરાનું મંદિર
2. ચંદ્રલિંગ – સોમનાથ મંદિર
3. યજમાન લિંગ – પશુપતિનાથ (નેપાલ)
4. પાર્થિવલિંગ – એકામ્રેશ્વર (શિવકાંશી)
5. જલલિંગ – જંબુકેશ્વર (ત્રિચિનાપલ્લી)
6. તેજોલિંગ – અરુણાચલેશ્વર (તિરુવન્નુમલાઈ)
7. વાયુલિંગ – શ્રી કાલહસ્તીશ્વર
8. આકાશલિંગ – નટરાજ (ચિદંબરમ)

*પ્રસિધ્ધ 24 શિવલિંગ :*

1. પશુપતિનાથ (નેપાલ)
2. સુંદરેશ્વર (મદુરા)
3. કુંભેશ્વર (કુંભકોણમ)
4. બૃહદીશ્વર (તાંજોર)
5. પક્ષીતીર્થ (ચેંગલપેટ)
6. મહાબળેશ્વર (મહારાષ્ટ્ર)
7. અમરનાથ (કાશ્મીર)
8. વૈદ્યનાથ (કાંગજા)
9. તારકેશ્વર (પશ્ચિમ બંગાળ)
10. ભુવનેશ્વર (ઓરિસ્સા)
11. કંડારિયા શિવ (ખાજુરાહો)
12. એકલિંગજી (રાજસ્થાન)
13. ગૌરીશંકર (જબલપુર)
14. હરીશ્વર (માનસરોવર)
15. વ્યાસેશ્વર (કાશી)
16. મધ્યમેશ્વર (કાશી)
17. હાટકેશ્વર (વડનગર)
18. મુક્તપરમેશ્વર (અરુણાચલ)
19. પ્રતિજ્ઞેશ્વર (કૌંચ પર્વત)
20. કપાલેશ્વર (કૌંચ પર્વત)
21.કુમારેશ્વર (કૌંચ પર્વત)
22. સર્વેશ્વર (ચિત્તોડ)
23. સ્તંભેશ્વર (ચિત્તોડ)
24. અમરેશ્વર (મહેન્દ્ર પર્વત)

*સપ્ત બદરી :*

1. બદરીનારાયણ
2. ધ્યાનબદરી
3. યોગબદરી
4. આદિ બદરી
5. નૃસિંહ બદરી
6. ભવિષ્ય બદરી
7.. વૃધ્ધ બદરી.

*પંચનાથ :*

1. બદરીનાથ
2. રંગનાથ
3. જગન્નાથ
4. દ્વારિકાનાથ
5. ગોવર્ધનનાથ

*પંચકાશી :*

1. કાશી (વારાણસી)
2. ગુપ્તકાશી (ઉત્તરાખંડ)
3.ઉત્તરકાશી (ઉત્તરાખંડ)
4. દક્ષિણકાશી (તેનકાશી – તમિલનાડુ)
5. શિવકાશી

*સપ્તક્ષેત્ર*

: 1. કુરુક્ષેત્ર (હરિયાણા)
2. હરિહિર ક્ષેત્ર (સોનપુર-બિહાર)
3. પ્રભાસ ક્ષેત્ર (સોમનાથ – ગુજરાત)
4. રેણુકા ક્ષેત્ર (મથુરા પાસે, ઉત્તરપ્રદેશ)
5. ભૃગુક્ષેત્ર (ભરૂચ-ગુજરાત)
6. પુરુષોત્તમ ક્ષેત્ર (જગન્નાથપુરી – ઓરિસ્સા)
7. સૂકરક્ષેત્ર (સોરોં – ઉત્તરપ્રદેશ)

*પંચ સરોવર :*

1. બિંદુ સરોવર (સિધ્ધપુર – ગુજરાત)
2. નારાયણ સરોવર (કચ્છ)
3. પંપા સરોવર (કર્ણાટક)
4. પુષ્કર સરોવર (રાજસ્થાન)
5. માનસ સરોવર (તિબેટ)

*નવ અરણ્ય (વન) :*

1. દંડકારણ્ય (નાસિક)
2. સૈન્ધાવારણ્ય (સિન્ધુ નદીના કિનારે)
3. નૈમિષારણ્ય (સીતાપુર – ઉત્તરપ્રદેશ)
4. કુરુ-મંગલ (કુરુક્ષેત્ર – હરિયાણા)
5. કુરુ-મંગલ (કુરુક્ષેત્ર – હરિયાણા)
6. ઉત્પલાવર્તક (બ્રહ્માવર્ત – કાનપુર)
7. જંબૂમાર્ગ (શ્રી રંગનાથ – ત્રિચિનાપલ્લી)
8. અર્બુદારણ્ય (આબુ)
9. હિમવદારણ્ય (હિમાલય)

*ચૌદ પ્રયાગ :*

1. પ્રયાગરાજ (ગંગા,યમુના, સરસ્વતી)
2. દેવપ્રયાગ (અલકનંદા, ભાગીરથી)
3. રુદ્રપ્રયાગ (અલકનંદા, મંદાકિની)
4. કર્ણપ્રયાગ (અલકનંદા, પિંડારગંગા)
5. નંદપ્રયાગ (અલકનંદા, નંદા)
6. વિષ્ણુપ્રયાગ (અલકનંદા, વિષ્ણુગંગા)
7. સૂર્યપ્રયાગ (મંદાકિની, અલસતરંગિણી)
8. ઈન્દ્રપ્રયાગ (ભાગીરથી, વ્યાસગંગા)
9. સોમપ્રયાગ (મંદાકિની, સોમગંગા)
10. ભાસ્કર પ્રયાગ (ભાગીરથી, ભાસ્કરગંગા)
11. હરિપ્રયાગ (ભાગીરથી, હરિગંગા)
12. ગુપ્તપ્રયાગ (ભાગીરથી, નીલગંગા)
13. શ્યામગંગા (ભાગીરથી, શ્યામગંગા)
14. કેશવપ્રયાગ (ભાગીરથી, સરસ્વતી)

*પ્રધાન દેવીપીઠ :*

1. કામાક્ષી (કાંજીવરમ્ – તામિલનાડુ)
2. ભ્રમરાંબા (શ્રીશૈલ –આંધ્રપ્રદેશ)
3. કન્યાકુમારી (તામિલનાડુ)
4. અંબાજી (ઉત્તર ગુજરાત)
5. મહાલક્ષ્મી (કોલ્હાપુર, મહારાષ્ટ્ર)
6. મહાકાલી (ઉજ્જૈન-મધ્યપ્રદેશ)
7. લલિતા (પ્રયાગરાજ-ઉત્તરપ્રદેશ)
8. વિંધ્યવાસિની (વિંધ્યાચલ-ઉત્તરપ્રદેશ)
9. વિશાલાક્ષી (કાશી, ઉત્તરપ્રદેશ)
10. મંગલાવતી (ગયા-બિહાર)
11. સુંદરી (અગરતાલ, ત્રિપુરા)
12. ગૃહેશ્વરી (ખટમંડુ-નેપાલ)

*શ્રી શંકરાચાર્ય દ્વારા સ્થાપિત પાંચ પીઠ :*

1. જ્યોતિષ્પીઠ (જોષીમઠ – ઉત્તરાંચલ)
2. ગોવર્ધંપીઠ (જગન્નાથપુરી-ઓરિસ્સા)
3. શારદાપીઠ (દ્વારિકા-ગુજરાત)
4. શ્રૃંગેરીપીઠ (શ્રૃંગેરી – કર્ણાટક)
5. કામોકોટિપીઠ (કાંજીવરમ – તામિલનાડુ)

*(4) ચાર પુરુષાર્થ :*

1. ધર્મ
2. અર્થ
3. કામ
4. મોક્ષ
(વૈષ્ણવો ‘પ્રેમ’ને પંચમ પુરુષાર્થ ગણે છે. )

*(5) ચાર આશ્રમ :*

1. બ્રહ્મચર્યાશ્રમ
2. ગૃહસ્થાશ્રમ
3. વાનપ્રસ્થાશ્રમ
4. સંન્યાસાશ્રમ

*(6) હિન્દુ ધર્મની કેટલીક મુલ્યવાન પરંપરાઓ :*

1. યજ્ઞ
2. પૂજન
3. સંધ્યા
4. શ્રાધ્ધ
5. તર્પણ
6. યજ્ઞોપવીત
7. સૂર્યને અર્ધ્ય
8. તીર્થયાત્રા
9. ગોદાન
10. ગોરક્ષા-ગોપોષણ
11. દાન
12.ગંગાસ્નાન
13.યમુનાપાન
14. ભૂમિપૂજન શિલાન્યાસ વાસ્તુવિધિ
15.સૂતક
16.તિલક
17.કંઠી – માળા
18. ચાંદલો – ચૂડી – સિંદૂર
19. નૈવેદ્ય
20. મંદિરમાં દેવ દર્શન, આરતી દર્શન
21. પીપળે પાણી રેડવું
22. તુલસીને જળ આપવું
23. અન્નદાન – અન્નક્ષેત્ર

*આપણા કુલ 4 વેદો છે. :*

1. ઋગવેદ
2. સામવેદ
3. અથર્વેદ
4. યજુર્વેદ

*ભારતીય તત્વજ્ઞાનની આધારશીલા પ્રસ્થાનત્રયી કહેવાય જેમાં ત્રણ ગ્રંથોનો સમાવેશ થાય છે.:*

1. ઉપનીષદો
2. બ્રમ્હસુત્ર
3. શ્રીમદ ભગવદગીતા

*આપણા કુલ 6 શાસ્ત્ર છે.:*

1. વેદાંગ
2. સાંખ્ય
3. નિરૂક્ત
4. વ્યાકરણ
5. યોગ
6. છંદ

*આપણી 7 નદી :*

1. ગંગા
2. યમુના
3. ગોદાવરી
4. સરસ્વતી
5. નર્મદા
6. સિંધુ
7. કાવેરી

*આપણા 18 પુરાણ :*

1. ભાગવતપુરાણ
2. ગરૂડપુરાણ
3. હરિવંશપુરાણ
4. ભવિષ્યપુરાણ
5. લિંગપુરાણ
6. પદ્મપુરાણ
7. બાવનપુરાણ
8. બાવનપુરાણ
9. કૂર્મપુરાણ
10. બ્રહ્માવતપુરાણ
11. મત્સ્યપુરાણ
12. સ્કંધપુરાણ
13. સ્કંધપુરાણ
14. નારદપુરાણ
15. કલ્કિપુરાણ
16. અગ્નિપુરાણ
17. શિવપુરાણ
18. વરાહપુરાણ

*પંચામૃત :*

1. દૂધ
2. દહીં
3. ઘી
4. મધ
5. સાકર

*પંચતત્વ :*

1. પૃથ્વી
2. જળ
3. વાયુ
4. આકાશ
5. અગ્નિ

*ત્રણ ગુણ :*

1. સત્વ
2. રજ
3. તમસ

*ત્રણ દોષ :*

1. વાત
2. પિત્ત
3. કફ

*ત્રણ લોક :*

1. આકાશ
2. મૃત્યુલોક
3. પાતાળ

*સાત સાગર :*

1. ક્ષીર સાગર
2. દૂધ સાગર
3. ધૃત સાગર
4. પથાન સાગર
5. મધુ સાગર
6. મદિરા સાગર
7. લડુ સાગર

*સાત દ્વીપ :*

1. જમ્બુ દ્વીપ
2. પલક્ષ દ્વીપ
3. કુશ દ્વીપ
4. પુષ્કર દ્વીપ
5. શંકર દ્વીપ
6. કાંચ દ્વીપ
7. શાલમાલી દ્વીપ

*ત્રણ દેવ :*

1. બ્રહ્મા
2. વિષ્ણુ
3. મહેશ

*ત્રણ જીવ :*

1. જલચર
2. નભચર
3. થલચર

*ત્રણ વાયુ :*

1. શીતલ
2. મંદ
3. સુગંધ

*ચાર વર્ણ :*

1. બ્રાહ્મણ
2. ક્ષત્રિય
3. વૈશ્ય
4. ક્ષુદ્ર

*ચાર ફળ :*

1. ધર્મ
2. અર્થ
3. કામ
4. મોક્ષ

*ચાર શત્રુ :*

1. કામ
2. ક્રોધ
3. મોહ,
4. લોભ

*અષ્ટધાતુ :*

1. સોનું
2. ચાંદી
3. તાબું
4. લોખંડ
5. સીસુ
6. કાંસુ
7. પિત્તળ
8. રાંગુ

*પંચદેવ :*

1. બ્રહ્મા
2. વિષ્ણુ
3. મહેશ
4. ગણેશ
5. સૂર્ય

*ચૌદ રત્ન :*

1. અમૃત
2. ઐરાવત હાથી
3. કલ્પવૃક્ષ
5. કૌસ્તુભમણિ
6. ઉચ્ચૈશ્રવા ઘોડો
7. પચજન્ય શંખ
8. ચન્દ્રમા
9. ધનુષ
10. કામધેનુ
11. ધનવન્તરિ
12. રંભા અપ્સરા
13. લક્ષ્મીજી
14. વારુણી
15. વૃષ

*નવધા ભક્તિ :*

1. શ્રવણ
2. કીર્તન
3. સ્મરણ
4. પાદસેવન
5. અર્ચના
6. વંદના
7. મિત્ર
8. દાસ્ય
9. આત્મનિવેદન

*ચૌદભુવન :*

1. તલ
2. અતલ
3. વિતલ
4. સુતલ
5. સસાતલ
6. પાતાલ
7. ભુવલોક
8. ભુલૌકા
9. સ્વર્ગ
10. મૃત્યુલોક
11. યમલોક
12. વરૂણલોક
13. સત્યલોક
14. બ્રહ્મલોક



( આ માહીતી બીજાને પણ મોકલો )
…. ૐ નમ શિવાય

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कुछ लोग राम को काल्पनिक मानते है वो सबूत देख ले 14 वर्ष के वनवास में श्रीराम प्रमुख रूप से 17 जगह रुके…

प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ। इस वनवास काल में श्रीराम ने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा, लेकिन इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा भी घटा जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया।

रामायण में उल्लेखित और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की। इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटा उनमें से 200 से अधिक घटना स्थलों की पहचान की गई है।

जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया है, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता जी रुके या रहे थे। वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की। आओ जानते हैं कुछ प्रमुख स्थानों के नाम..

1.तमसा नदी : अयोध्या से 20 किमी दूर है तमसा नदी। यहां पर उन्होंने नाव से नदी पार की।

2.श्रृंगवेरपुर तीर्थ : प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है।

3.कुरई गांव : सिंगरौर में गंगा पार कर श्रीराम कुरई में रुके थे।

4.प्रयाग : कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है।

5.चित्रकूणट : प्रभु श्रीराम ने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं। तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं।

6.सतना : चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे, लेकिन सतना में ‘रामवन’ नामक स्थान पर भी श्रीराम रुके थे, जहां ऋषि अत्रि का एक ओर आश्रम था।

7.दंडकारण्य: चित्रकूट से निकलकर श्रीराम घने वन में पहुंच गए। असल में यहीं था उनका वनवास। इस वन को उस काल में दंडकारण्य कहा जाता था। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर दंडकाराण्य था। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिल हैं। दरअसल, उड़ीसा की महानदी के इस पास से गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था। इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।

यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।

8.पंचवटी नासिक : दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। यह आश्रम नासिक के पंचवटी क्षे‍त्र में है जो गोदावरी नदी के किनारे बसा है। यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है।

9.सर्वतीर्थ : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया था जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में ‘सर्वतीर्थ’ नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है। जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है।

इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी।

10.पर्णशाला: पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को ‘पनशाला’ या ‘पनसाला’ भी कहते हैं। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था। हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था। इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है।

11.तुंगभद्रा : सर्वतीर्थ और पर्णशाला के बाद श्रीराम-लक्ष्मण सीता की खोज में तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए।

12.शबरी का आश्रम : तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्‍मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है। शबरी भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा।

‘पम्पा’ तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। पौराणिक ग्रंथ ‘रामायण’ में हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है। केरल का प्रसिद्ध ‘सबरिमलय मंदिर’ तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है।

13.ऋष्यमूक पर्वत : मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया। ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। पास की पहाड़ी को ‘मतंग पर्वत’ माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था जो हनुमानजी के गुरु थे।

14.कोडीकरई : हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्‍तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्‍क स्‍ट्रेट से घिरा हुआ है।

यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला और श्रीराम ने अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित कर विचार विमर्ष किया। लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया।

15..रामेश्‍वरम : रामेश्‍वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है। रामेश्‍वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है। महाकाव्‍य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।

16.धनुषकोडी : वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुलर्निर्माण करने का फैसला लिया। धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है। धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है।

इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है। इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है।

17.’नुवारा एलिया’ पर्वत श्रृंखला : वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। ‘नुवारा एलिया’ पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है।

श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है। आजकल भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिलकुल वैसे ही हैं जैसे कि रामायण में वर्णित किए गए हैं।

इस निष्कर्ष के बहुत से प्रमाण मिलते हैं। रामायण कथा के संदर्भ निम्नलिखित रूप में उपलब्ध हैं-

* कौटिल्य का अर्थशास्त्र (चौथी शताब्दी ईपू)

* बौ‍द्ध साहित्य में दशरथ जातक (तीसरी शताब्दी ईपू)

* कौशाम्बी में खुदाई में मिलीं टेराकोटा (पक्की मिट्‍टी) की मूर्तियां (दूसरी शताब्दी ईपू)

* नागार्जुनकोंडा (आंध्रप्रदेश) में खुदाई में मिले स्टोन पैनल (तीसरी शताब्दी)

* नचार खेड़ा (हरियाणा) में मिले टेराकोटा पैनल (चौथी शताब्दी)

* श्रीलंका के प्रसिद्ध कवि कुमार दास की काव्य रचना ‘जानकी हरण’ (सातवीं शताब्दी)

संदर्भ ग्रंथ :
1. वाल्मीकि रामायण
2. वैद युग एवं रामायण काल की ऐतिहासिकता l

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जय श्री राम 🙏🚩

1000 साल प्राचीन देश की एकमात्र भगवान श्री राम की चतुर्भुज रूप में प्रतिमा दशावतार पेटन में रानी की वाव अणहिलवाड़ पाटन..
सोलंकी युग।

1000 yr old Lord Rama Sculpture at Rani ki vav Solanki Rajput period.

The only quadrangular statue of Lord Shri Ram in the country.

📸 – Vastuchitra – anupgandhe

#रामनवमी #RamNavami #रामनवमी_की_हार्दिक_शुभकामनाएं

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शबरी के बेर


#सन्डे_की_चकल्लस
रामनवमी विशेष
0 हमर भांचा श्री राम 0

आज जिसे छत्तीसगढ़ कहा जाता है, उसे पहले दक्षिण कौशल कहा जाता है। यहां के राजा भानुमान की पुत्री थीं कौशल्या। लंकापति रावण को यह पता था कि कौशल्या का पुत्र उनका वध करेगा। इस वजह माता कौशल्या का वध उनके विवाह के पहले ही करना चाहता था। छत्तीसगढ़ के पश्चिमी दिशा में डौन्डी, सहसपुर – लोहरा नामक जगह है। रावण दक्षिण कौशल पर उसी दिशा से हमला करता था। डंडे पीटकर और आवाज लगाकर जिस जगह पर उसके आने की जानकारी दी जाती थी, उस जगह को डौन्डी तथा जहां पर योद्धा साहस के साथ रावण से लोहा लिया करते थे, उस जगह को सहसपुर लोहारा कहा जाने लगा। रायपुर जिले के चंदखुरी ग्राम को माता कौशल्या का जन्मस्थान माना जाता है। यहां उनका मन्दिर भी है। अब यहां भगवान राम की भव्य प्रतिमा भी स्थापित की गई है।
भगवान राम के वनवास के समय माता शबरी द्वारा उन्हें जूठे बेर खिलाने का जिक्र मिलता। छत्तीसगढ़ में माना जाता है कि वे यहां के जांजगीर – चाम्पा जिले में स्थित शिवरीनारायण की निवासी थी। शबरी से शिवरी तथा उनके नाम को भगवान के नाम से जोड़कर शिवरीनारायण हो गया। भगवान राम को बरगद के पत्ते को दोना जैसा मोड़कर उसमें अपने जूठे बेर को खाने के लिए दी थी। बरगद के पत्ते आकार में सीधा होता है। वहीं शिवरीनारायण में एक बरगद के पेड़ का हर पत्ता दोना जैसा मुड़ा हुआ होता है। रायपुर के दूधाधारी मठ के महंत डॉ रामसुंदर दास जी जो कि शिवरीनारायण मन्दिर के भी प्रमुख हैं इस बरगद के बारे में बताया कि इसे कृष्ण वट कहा जाता है। शिवरीनारायण से इसी कृष्ण वट के अंश को लाकर दूधाधारी मठ में रोपित किया गया। इसके पत्ते उसी तरह से मुड़े हुए रहते हैं।
कृष्ण वट से जुड़ा एक किस्सा भगवान कृष्ण से भी मिलता है। कहते हैं कि भगवान कृष्ण ने माता यशोदा से छिपाकर थोड़ा सा माखन बरगद के एक पेड़ के पत्ते में छिपा दिया था। इसके बाद बरगद के उस पेड़ का पत्ता – पत्ता भगवान कृष्ण को समर्पित होकर कटोरी की तरह हो गया। कृष्ण वट के पेड़ उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में भी मिलते हैं। मध्यप्रदेश के सागर स्थित हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय परिसर में 60 साल से भी पुराना कृष्ण वट का एक पेड़ मौजूद है। वैसे साल 1909 में विदेशी वनस्पति शास्त्री कन्दोल ने इस पर शोध किया था। इसका अंग्रेजी नाम फाइकस कृष्णानी द कन्दोल है। इस अंग्रेजी नामकरण का तब बहुत विरोध हुआ था। इस वजह से इसका नाम फाइकस कृष्णानी अधिक कहा जाता है।
माता सीता के वनवास के बारे में एक किवदंती है कि तमसा नदी के पास वाल्मीकि की कुटिया है। वे वहीं रहीं। छत्तीसगढ़ में मान्यता है कि महासमुंद जिले के तुरतुरिया नामक जगह पर वाल्मिकी की कुटिया थी और माता सीता ने वनवास वहीं बिताया। लव – कुश का जन्म भी वहीं हुआ। दोनों किवदंतियों के बारे में रामसुंदर दास जी स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि साधु गण आज यहां और कल वहां विचरण पहले भी करते थे और आज भी करते थे। सम्भव है कि उनकी एक आवास तुरतुरिया भी रही होगी। इस क्षेत्र में लवण और कसडोल नामक जगह है। उन्होंने बताया कि भगवान राम के पुत्र लव के नाम पर लवण और कुश के नाम पर कसडोल नाम प्रचलित हुआ।
भगवान राम का वनवास का बहुत सा समय छत्तीसगढ़ में ही बीता। दंडकारण्य क्षेत्र आज का बस्तर है। भगवान राम छत्तीसगढ़ के लोगों के मनमस्तिष्क में बसे हैं। उनका मामा घर छत्तीसगढ़ ही था। इस वजह से उन्हें यहां भांजा माना जाता है। अंचल में भांजे को शैतानी करने पर मामा उसकी पिटाई नहीं करते क्योंकि वह भगवान रामस्वरूप है। सिर्फ उसके कान उमेठ कर सजा दी जाती है। भांजे का पैर छूकर प्रणाम किया जाता है। यहां तक कि उसे तारणहार भी माना जाता है। मामा या मामी के दशगात्र के समय भी भांजे की पूजा कर मृत आत्मा की सदगति की कामना की जाती है। अंचल में भांजे को भगवान राम मानने या नहीं मानने वालों के बीच एक बारीक रेखा भी है। कहा जा सकता है कि यहां सदियों से बसे बसे लोग ही भांजे को प्रणाम करते हैं। वहीं सत्रहवी सदी के बाद आए लोगों में ये परम्परा नहीं देखी जाती। आजकल टैटू बनवाने का चलन है। टैटू का देशी भाषा में नाम गोदना है। गोदने को लेकर भी किवदंती है। भगवान श्री राम वनवास के समय बस्तर प्रवास पर थे। तब वहां के राजा ने उनका स्वागत किया। इस अवसर पर वहां नृत्य और खानपान का आयोजन किया गया। माता सीता को वहां की वेशभूषा के अनुसार वस्त्र आदि पहनाए गए थे। इस वजह से भगवान श्री राम उन्हें पहचान नहीं पाए और सीता समझकर रानी को छू गए थे। तब वहां के राजा ने हर स्त्री की अलग पहचान बनाने के लिए गोदने का चलन शुरू किया था। अंचल में एक रामनामी समुदाय भी है। ये समुदाय अपने पूरे शरीर में राम नाम का गोदना बनवाता है।
( लेखक – अजय कुमार वर्मा । तस्वीरें साभार वरिष्ठ छायाकार – गोकुल सोनी )

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શ્રી રામ


એવા તો કયા ગુણ હતા શ્રી રામ માં કે જેનાથી તેમણે રાવણ ને હરાવ્યા ?

– પંડિત, વિદ્વાન, જ્ઞાની : રાવણે તો વેદો ને સ્વર આપ્યા હતા એટલે જ્ઞાન માં તો રામ કરતા શ્રેષ્ઠ રાવણ હતો.

-ધનવાન: રામ અયોધ્યા ના રાજા હતા જયારે રાવણ ની તો આખી લંકા જ સોના ની હતી.

-શક્તિશાળી : શારીરિક બળ રાવણ માં વધુ હતું.

-ઉંમર : ઉમર ની દ્રષ્ટિ થી પણ રાવણ શ્રી રામ કરતા મોટો હતો.

-રાજકીય શક્તિ : કુબેર ( દેવો ના ખજાનચી ) રાવણ ના ઘરે પાણી ભરતાં હતા , શનિદેવ ( કર્મ ફળ દેનાર દેવતા) રાવણ ના પગ નીચે દબાયેલા રહેતા જેનો અર્થ કે કર્મ ફળ પણ રાવણ નિયંત્રીત કરતો. કાળ ( સમય ) ને રાવણે પલંગ થી બાંધી ને રાખ્યો હતો જેનો અર્થ કે રાવણ ની ઈચ્છા વગર રાવણ નું તો શું ,તેના રાજ્ય માં કોઈ નું મૃત્યુ પણ ના થઇ શકે.

– ભક્તિ : રાવણે શિવજી ની ઉપાસના કરતી વખતે કમળ ઓછા પડતા , પોતાના મસ્તક કમળ ની આહુતિ આપી , આના કરતા મોટો ભક્ત કોણ હોઈ શકે ?

આટલી બધી વાતો માં જો રાવણ શ્રી રામ કરતા શ્રેષ્ઠ હતો તો પછી એવી કઈ વાત હતી કે ગુણ હતો જે રામ ને “ભગવાન શ્રી રામ” બનાવે છે ? જેનાથી શ્રી રામે રાવણ ને હરાવ્યો અને રાવણ ના આટલા બધા સદ્ગુણો થી પણ રામ વધુ ઉભરી ને આવ્યા ?

એ વિશેષતા હતી : “ચારિત્ર્ય “

ચારિત્ર્ય ના બળે રામે રાવણ ને હરાવ્યો. અને આજ વાત ભારતીય ઇતિહાસ અને દર્શન દુનિયા સમક્ષ એક સીમાચિહ્ન રૂપે આજે પણ ઝળહળી રહ્યું છે.

વિવેકાનંદ જયારે અમેરિકા ગયા ત્યારે એમનો સન્યાસી પહેરવેશ જોઈને સૂટ , બુટ માં સજ્જ એવા પાશ્ચાત્ય સજ્જને સવાલ કર્યો કે તમે આવા લગરવગર , કપડાં કેમ પહેર્યા છે ? ત્યારે વિવેકાનંદ જી નું પ્રખ્યાત વાક્ય : “in your country tailor makes the personality, while in our country character makes the personality”

રામ નવમી ના પવિત્ર દિવસે ફક્ત સ્ટેટ્સ માં રામ ના ફોટો મુક્વાથી , કે જોર થી જય શ્રી રામ ના નારા લગાડવાથી કદાચ પ્રભુ શ્રી રામ ને એટલી ખુશી નહિ થાય જેટલી આપણે એમના જીવન માંથી એમને આપેલા જીવન સંદેશ ને આપણા જીવન માં ચરિતાર્થ કરી ને આપી શકીએ.

આજ ના ઉત્સવે આપણે વ્યક્તિગત ચારિત્ર્ય અને રાષ્ટ્રીય ચારિત્ર્ય નિર્માણ પર ધ્યાન આપશું તો નક્કી શ્રી રામ ને ખુશી થશે.

જય શ્રી રામ 🚩

– સૌમિલ પરમાર ©

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पंडित देवीदीन जो सनेथू गाव अयोध्या के रहने वाले थे जिनका जन्म सर्युपारी ब्राह्मण परिवार में हुआ था जो की एक कर्मकांडी पुरोहित लेकिन जब बाबर की सेना ने सभी हिंदू राजाओं को हराते हुए राम मंदिर की तरफ बढ़ी तब ,

श्री भगवान परशुराम की तरह ही पंडित देविदीन पांडे ने पुरोहित का काम छोड़कर आसपास के ब्राह्मण क्षत्रियों को लेकर बाबर सेना के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए हथियार उठा लिया ,और बाबर के खिलाफ मीर बाकी के नेतृत्व में मुगलों के सेना से युद्ध किया, ये युद्ध इतना विकराल था की युद्ध करते समय पंडित जी ने 700 मुगलों को अपने हाथों से काट डाला

एक मुगल सैनिक के तलवार के वार से ऐशा हुआ कि देविदीन जी का सर दो भागों में फट कर खुल गया लेकिन उन्होंने अपने गमछा से सर को बांधकर लड़ाई लड़नी शुरू कर दी और अंत में एक सैनिक के द्वारा किए गए वार से यहां काफी घायल हुए और वहीं पर वीरगति को प्राप्त हुए !

उस सेना के सेनापति देविदीन के वीरगति प्राप्त हो जाने के बाद बाबर के सेना जीत गई ! देविदीन ने अपने जीवित रहते राम मंदिर को कभी आंच नहीं आने दी!

इतिहासकार कनिंघम अपने ‘लखनऊ गजेटियर’ के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर लिखता है कि 1,74,000 हिन्दुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात मीर बकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान में सफल हुआ।