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चलो आज फिर इतिहास पढ़ा जाये और आगे का जायका लिया जाये। 12 अप्रैल 1861 तक अमेरिका सिर्फ एक राष्ट्र था। फिर उस दिन एक ऐसी घटना हुयी जिसने अमेरिका को हमेशा के लिए बदल दिया है।

उस दिन दासता को लेकर अमेरिका में गृह युद्ध छिड़ गया था।जब अमेरिका के दक्षिणी हिस्से के 6 राज्यों ने अमेरिका से अपने को अलग कर के ‘कंफेडरेट स्टेट्स’ बनाने की घोषणा कर दी तब अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने, उन राज्यों को समझाने के सभी प्रयास असफल होने पर, शांति दूतों और युद्ध विरोधी बुद्धजीवियों को दर किनार करते हुए अमेरिका को गृह युद्ध की आग में कुदा दिया था।

जिस वक्त लिंकन ने युद्ध का निर्णय लिया था उस वक्त लिंकन एक माइनॉरिटी प्रेजिडेंट थे और अमेरिका के सैन्य संसाधन और श्रेष्ठ सैन्य अधिकारी दक्षिणी राज्यो में ही थे। जहाँ लिंकन कंफेडरेट स्टेट्स से संसाधनों के मामले में कमजोर थे वहीँ अंतराष्ट्रीय परिद्रश्य में, उस वक्त की विश्व की महाशक्तियां फ्रांस और इंग्लैंड का परोक्ष समर्थन कफेडरेट स्टेट्स को होने के कारण लिंकन नितांत अलग थलग पड़ गए थे।

इन तमाम विरोधियों के दबाव के बावजूद लिंकन् ने अपने आक्रामक होने के निर्णय पर कभी भी दोबारा नही सोचा था। वो जानते थे की अमेरिका एक विषम स्थिति में है और उसके रजिनैतिक विरोधी, शांति के पैरोकार और युद्ध विरोधी बुद्धजीवी उनका साथ नही देंगे। अमेरिका के सर्वोच्च न्यायलय के प्रधान न्यायाधीश लिंकन के धुर विरोधी थे, कांग्रेस में लिंकन की स्थिति कमजोर होने के कारण वो युद्ध और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए जरुरी बिल को अपने मन मुताबिक पास कराने के लिए भी असमर्थ थे। लिंकन की परेशानी यहां तक थी की युद्ध के लिए सैनिको नई भर्ती के लिए वो राज्यों के गवर्नर्स और शहरो के मेयरों पर निर्भर थे। बिना किसी सौदे बाजी के,लिंकन कुछ भी करने के स्थिति में थे।

फिर जब इतनी दिक्क्त थी तो लिंकन ने युद्ध और सरकार चलायी कैसे?

लिंकन ने इस सबसे निपटने के लिए, सिर्फ अमेरिका की स्वतंत्रता के घोषणा पत्र को ही अपना मूल मंत्र बनाया था। जिसको उन्होंने अमेरिकी संविधान से ऊपर रखा था।

‘उन्होंने अमेरिका के अराजक स्थिति को देखते हुए, उसे “युद्धकालीन आवश्यकता” को आधार बनाया और तमाम संविधान की उन धाराओ को दरकिनार कर दिया था जो अमेरिका को बचाने में बाधक थी’। अमेरिका, अमेरिका प्रेसिडेंटल आर्डर पर चला था।’

‘जहाँ सैनिको की भर्ती में दिक्क्त आरही थी वहां के मेयर, जेल में अनिश्चित कालीन के लिए बंद कर दिए गए, जो अखबार ‘कंफेडरेट स्टेट्स’ के प्रति सहानभूति रखते थे, उनको बंद करा दिया गया, जिनके संपादक राष्ट्रपति लिंकन और उनकी सरकारों की खबरों को तोड़ मोड़ के पेश करते थे उनको अनिश्चित काल के लिए जेल में भेज दिया गया था। लिंकन ने जगह जगह “हेब्स कॉर्प्स” को स्थगित कर दिया था. युद्ध करने से मना करने वालो और भागने वाले को गोली मारने के आदेश दे दिया था।’

मेरा यहां सभी सेकुलरो को यही समझाना है की तुम लोग खुद अपने जाल में फंसते चले जारहे हो। तुम लोगो ने अमेरिका की तर्ज़ पर भारत को दो भागो में पूरा बाँट दिया है। यदि कल, बजट सत्र पर बजट के पास होने और अन्य बिलो पर उत्पात करते हो तो, भारत एक “वित्तीय आपातकाल” की स्थिति में आजायेगा और यकीन मानो, यह “आपातकाल” लगने की बड़ा वैधानिक कारण बन जायेगा। पिछली बार सत्ता को बचाने के लिए इंद्रा गांधी ने वामपंथियों के समर्थन से आपातकाल लगाया था और भारत की जनता ने इसका विरोध किया था लेकिन इस बार देश को बचाने के लिए लगेगा और लोग सड़क पर आकर उसका स्वागत करेंगे।

मोदी से नफरत करने वालो, तुम खुले हाथ से मोदी को तानाशाह बनने का निमंत्रण दे चुके हो और हम स्वागत करने का इंतज़ार कर रहे है।

अरुण शुक्ला

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रूबिका लियाकत ज़ी न्यूज़ छोड़ती है फट से “एबीपी न्यूज़” ने आफर किया और उनको वहां दूसरे दिन नौकरी मिल गई।

सुधीर चौधरी ज़ी न्यूज़ छोड़ता हैं , फट से “आजतक” ने आफर किया और उनको वहां दूसरे दिन नौकरी मिल गई।

चित्रा त्रिपाठी सुबह “आजतक” छोड़ कर शाम में “एबीपी न्यूज़” ज्वाइन करती हैं और अगली सुबह फिर “आजतक” ज्वाइन कर लेती हैं।

ऐसे ही सुशांत सिन्हा साल भर ट्विटर पर ज़हर उगलता रहा उसे टाइम्स आफ इंडिया ने नौकरी पर रख लिया।

देश के जितने ज़हरीले पत्रकार हैं सब सुबह नौकरी छोड़ते हैं, शाम को दूसरी जगह नौकरी पा जाते हैं।

देश के सबसे लोकप्रिय और विश्वसनीय पत्रकार रवीश कुमार BBC HINDI पर यह स्वीकारते हैं कि

“पिछले 2 महीने में एक भी मीडिया समूह का उनके पास नौकरी तो छोड़िए एक फोन भी नहीं आया।”

कौन यह सब कंट्रोल कर रहा है ?

यदि आपको स्थिति समझ में नहीं आ रही तो आप अंधे बहरे और मानसिक विक्षप्त हैं।

वाया सोशल मीडिया

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JNU


बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां से होए। जानिए कैसे?

नाम था कामरेड सज्जाद जहीर ………
ये मियाँ साहब ,पहले तो Pogressive व3riters Association यानि अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के रहनुमा बनकर उभरे ,और अपनी किताब “अंगारे” से इन्होने अपने लेखक होने का दावा पेश किया …………

बाद मे ये जनाब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वेसर्वा बने , मगर बाबू साहब की रूह मे तो इस्लाम बसता था , इसीलिए 1947 मे नये इस्लामी देश बने, पाकिस्तान मे जाकर बस गये, इनकी बेगम रजिया सज्जाद जहीर भी उर्दू की लेखिका थी …….

सज्जाद जहीर, 1948 मे कलकत्ता के कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन मे भाग लेने कलकत्ता पहुँचे, और वहाँ कुछ मुसलमानो ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से अलग होकर CPP यानि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ पाकिस्तान का गठन कर लिया, जो बांग्लादेश मे तो फली – फूली ……
मगर पाकिस्तान मे , सज्जाद जहीर , फैज अहमद फैज , रजिया सज्जाद जहीर ,और कुछ पाकिस्तानी जनरलो ने मिलकर रावलपिंडी षडयंत्र केस मे पाकिस्तान मे सैन्य तख्ता पलट का प्रयास किया और पकडे जाने पर जेल मे डाल दिये गये।

सज्जाद जहीर और फैज अहमद फैज को लंबी सजाऐ सुनाई गई …….

अब आगे की कथा सुनिये , इन मियाँ साहब, सज्जाद जहीर और रजिया जहीर की चार बेटियाँ थी .
1- नजमा जहीर बाकर , पाकिस्तानी सज्जाद जहीर की सबसे बडी बेटी , जो कि नेहरू के मदरसे ,JNU मे Biochemistry की प्रोफेसर है ……..
2- दूसरी बेटी नसीम भाटिया है …………
3- सज्जाद जहीर की तीसरी बेटी है ,नादिरा बब्बर जिसने फिल्म एक्टर और कांग्रेस सांसद राज बब्बर से शादी की है, इनके दो बच्चे है, आर्य बब्बर और जूही बब्बर ……………..
4- सज्जाद जहीर की चौथी और सबसे छोटी बेटी का नाम है नूर जहीर , ये मोहतरमा भी लेखिका है, और JNU से जुडी है ..
नूर जहीर ने शादी नही की और जीवन भर अविवाहित रहने के अपने फैसले पर आज भी कायम है, चूँकि नूर जहीर ने शादी ही नही की , तो बच्चो का तो सवाल ही पैदा नही होता ….. मगर रूकिये, यहाँ आपको निराश होना पडेगा, अविवाहित होने के बावजूद, नूर जहीर के चार बच्चे है, वो भी दो अलग – अलग पुरूषो से ………………

इन्ही नूर जहीर और ए. दासगुप्ता की दूसरी संतान है पंखुडी जहीर, अरे नही चौंकिये मत ………

ये वही पंखुडी जहीर है, जिसने कुछ ही वर्षो पहले दिल्ली मे खुलेआम चूमा- चाटी के लिए , किस ऑफ लव ( kiss of love ) के नाम से इवेंट आयोजित किया था। जी हाँ , ये वही है जो कन्हैयाकुमार वाले मामले मे सबसे ज्यादा उछल कूद मचा रही थी। इसे JNU मे कन्हैयाकुमार की सबसे विश्वश्त सहयोगी माना जाता है। खुले आम सिगरेट, शराब , और अनेको व्यसनो की शौकीन, इन जैसी लडकियाँ जब महिला अधिकारो के नाम पर बवंडर मचाती हैं तो सच मे पूछ लेने को दिल करता है, कि तुम्हारा खानदान क्या है ??????????
और क्या है तुम्हारे संस्कार ???????
बिन ब्याही माँ की, दो अलग अलग पुरूषो से उत्पन्न चार संतानो मे से एक पंखुडी जहीर जैसी औरते, खुद औरतो के नाम पे जिल्लत का दाग है ………..
शायद मेरी ये पोस्ट पाकिस्तान , इस्लामियत , कम्युनिस्टो का सडन भरा अतीत, इनकी मानसिकता, इनका खानदान , और इनके संस्कार बयां करने को काफी है ……….

इन्ही जैसे लोगो ने JNU की इज्जत मे चार चाँद लगा रखे है ………………..

पाकिस्तान मे कम्युनिस्ट पार्टी आज तक 01% वोट भी नही जुटा पाये , कुल 176 वोट मिलते है इन्हे ……..

और पाकिस्तानी सज्जाद जहीर की औलादे , कम्युनिस्टो का चोला पहनकर भारत की बर्बादी के नारे लगा रहे है …..

समझ मे आया ???? JNU के कामरेडो का पाकिस्तान प्रेम और कश्मीर के मुद्दे पर नौटंकी करने का असली उद्देश्य ………………….
क्या कारण है कि ये पंखुडी दासगुप्ता ना लिखकर खुद को पंखुडी जहीर लिखती है ..?????
और हाँ, इसकी सगी मौसी के लडके, नादिरा बब्बर और राज बब्बर की संतान, फिल्म एक्टर आर्य बब्बर का घर का नाम सज्जाद है ….

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● हैरतअंगेज काँड 😮

दिनांक 24 मई 1971
सुबह 11:00 बजे

भारतीय स्टेट बैंक
संसद भवन मार्ग
नयी दिल्ली

तब स्टेट बैंक की उस शाखा के चीफ कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा होते थे। उस दिन उनके पास इंदिरा गांधी के तत्कालीन मुख्य सचिव पी एन हक्सर का या उनकी आवाज़ में एक फोन आता हैः

‘आप के पास एक आदमी फलाँ कोडवर्ड लेकर आयेगा तो आप उसे 60 लाख रु दे देना।’

इसी दौरान पी एन हक्सर ने कथितरूप से इंदिरा गांधी से भी उनकी बात करवाई। बाद में ऐसा ही हुआ और केशियर साहब ने उस आदमी को 60 लाख रु दो अटैचियों में भर कर दे दिये और वह उन्हें ले कर चला गया।

अब आप सोचेंः

मान लो कि आपका नाम अनिल है और आप पार्क में घूमने गये हुए हैं। तभी कोई नितान्त अंजान आदमी आपके घर आ कर आपकी पत्नी को कहे कि कौशिश साहब ने 100 रु मँगवाये हैं। तो क्या वे उस आदमी को 100 रु का नोट दे देंगी? अजी 100 रु की तो बात छोड़िये वे 10 रु का नोट भी न दें।

पर केवल 300-350 रुपल्ली तनखवाह लेने चीफ कैशियर मल्होत्रा ने उस नितान्त अंजान आदमी को 1971 हाँ जी 1971 में बिना किसी लिखा पढ़ी और जान पहचान के 60 लाख रु दे दिये थे।

मजे की बात यह है कि उस चीफ कैशियर ने इतनी बड़ी रकम शाखा के प्रबंधक से पूछे बिना ही दे दी थी।

कमाल है। आज 51 साल के बाद उन 60 लाख रु की कीमत 200-250 करोड़ रु तो बैठती ही होगी। तब सोने का भाव 160 रु प्रति 10 ग्राम होता था।

चलो आगे बढ़ते हैं

उस आदमी के जाते ही केशियर ने प्रधानमंत्री कार्यालय को फोन मिलाया। शायद उस समय इंदिरा गांधी अपने कार्यालय में नहीं होंगी तो किसी और किसीने फोन उठाया और चीफ कैशियर ने उसे पी एन हक्सर समझ कर यह बता दिया कि फलाने आदमी को 60 लाख रु दे दिये हैं।

मतलब बात लीक हो गयी थी। फिर तो ऊपर से लेकर नीचे तक हड़कंप मच गया था। उसके अगले दिन के सभी समाचार पत्र इससे रंग गये थे।तुरंत पुलिस थाने में रपट लिखवायी गयी। उसके तीसरे दिन ही पुलिस ने दिल्ली के ही एक कमरे में उस आदमी को दबोच लिया और उसके पास से 59 लाख 95 हजार रु बरामद कर लिये थे।

आनन फानन में शायद उसी दिन उसे कोर्ट में पेश किया गया।

उस आदमी का नाम था रुस्तम सोहराबजी नागरवाला

उसके बाद का घटनाक्रम

फिर बीस मिनट में ही

० चार्जशीट दाखिल हो गयी।
० आरोप तय हो गये।
० सरकारी वकील ने दलीलें रखी तो बचाव पक्ष ने भी तर्क रखे।
० फिर आपसी बहस (cross examination) भी हो गये।

० कोर्ट का फैसला भी टाइप हो गया।

० और तो और उन्हीं बीस मिनटों में ही नागरवाला को साढ़े चार साल की सज़ा सुना कर जेल भेज दिया गया।

तारीख पर तारीख वाली बात उस दिन नानी के यहाँ गयी हुई थी 😀

(यह भी हो सकता है कि उसे वकील उपलब्ध ही न करवाया गया हो)

है ना कमाल की बात!

उसके बाद उसने जेल में किसी को यह कहा थाः

‘यदि मैं मुँह खोल दूँ तो देश की राजनीति में भूचाल आ जायेगा।’

(यह तब के समाचार पत्रों में छपा था और इस समाचार को मैंने स्वयं पढ़ा था)

इस बात के तीन दिन के भीतर ही ‘हार्ट अटैक’ के कारण उसकी मौत बतायी गयी थी।

पते की बात

इतना बड़ा काँड होने के बावजूद स्टेट बैंक के चीफ कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा को पुलिस ने गिरफ्तार तक नहीं किया था। बाद में मल्होत्रा ने या तो बैंक की नौकरी छोड़ दी थी या बैंक ने उन्हें बर्खास्त कर दिया था फिर उन्होंने संजय गांधी की कं में (शायद मारुती कार) में नौकरी करनी शुरू कर दी थी।

है ना हैरानगी की बात कि इतने बड़े काँड के जिम्मेदार व्यक्ति को संजय गांधी ने नौकरी दे दी थी।

एक और बात

इस केस के कुछ गवाहों समेत जाँच करने वाले तीन-चार पुलिस अधिकारी सड़क दुर्घटना और संदेहास्पद स्थियों में मरे पाये गये थे। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद इस मामले की तह तक जाने के लिये नागरवाला जाँच आयोग के नाम से एक आयोग भी बिठाया गया था मगर उसके हाथ कुछ भी नहीं लगा था।

■ बात की सत्यता जानने के लिये गूगल पर नागरवाला काँड खोजिये और पढ़िये। इस पर आज भी बहुत सी प्रतिष्ठित वेबसाइट पर यह सब लिखा है।

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नेशनल हेराल्ड


“नेशनल हेराल्ड” केस क्या है आसान शब्दों में जानिए…❗

जवाहर लाल नेहरू ने #नेशनल हेराल्ड नामक अखबार सन १९३० में शुरू किया, धीरे-धीरे इस अखबार ने ५००० करोड़ ₹ की संपत्ति अर्जित कर ली, आश्चर्य की बात ये है कि इतनी संपत्ति अर्जित करने के बावजूद भी सन् २००० मे यह अखबार घाटे में चला गया और इस पर ९० करोड़ का कर्जा हो गया…

“नेशनल हेराल्ड” के तत्कालीन डायरेक्टर्स, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और मोतीलाल वोरा ने, इस अखबार को यंग इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी को बेचने का निर्णय लिया…

मज़े की बात ये कि, यंग इंडिया के डायरेक्टर्स थे, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, ऑस्कर फेर्नाडीज़ और मोतीलाल वोरा…

डील यह थी कि यंग इंडिया, #नेशनल हेराल्ड के ९० करोड़ के कर्ज़ को चुकाएगी और बदले में ५००० करोड़ रुपए की अचल संपत्ति यंग इंडिया को मिलेगी…

इस डील को फाइनल करने के लिए नेशनल हेराल्ड के डायरेक्टर मोती लाल वोरा ने “तत्काल” यंग इंडिया के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा से बात की, क्योंकि वह अकेले ही, दोनों ही कंपनियों के डायरेक्टर्स थे… 😎

अब यहाँ एक और नया मोड़ आता है, ९० करोड़ का कर्ज़ चुकाने के लिए #यंग इंडिया ने कांग्रेस पार्टी से ९० करोड़ का लोन माँगा…

इसके लिये कांग्रेस पार्टी ने एक मीटिंग बुलाई जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और कांग्रेस पार्टी के महासचिव शामिल हुए…

और यह वरिष्ठ लोग कौन थे…?
सोनिया, राहुल, ऑस्कर और मोतीलाल वोरा…

आखिरकार कांग्रेस पार्टी ने लोन देना स्वीकार कर लिया, और इसको कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने पास भी कर दिया और #यंग इंडिया के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा ने ले लिया और आगे #नेशनल हेराल्ड के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा को दे दिया…

अभी कुछ और मज़ा बाकी था…
अब कांग्रेस पार्टी ने एक मीटिंग और बुलाई जिसमें सोनिया, राहुल, ऑस्कर और वोरा साहब सम्मलित हुए…
उन्होंने मिलकर यह तय किया कि #नेशनल हेराल्ड ने आज़ादी की लड़ाई में बहुत सेवा की है इसलिए उसके ऊपर ९० करोड़ के कर्ज़ को माफ़ कर दिया जाए और इस तरह ९० करोड़ का छोटा सा कर्ज माफ़ कर दिया गया…
और इस तरह से #यंग इंडिया जिसमें ३६ प्रतिशत शेयर सोनिया और राहुल के हैं और शेष शेयर ऑस्कर और वोरा साहब के हैं, को, ५००० करोड़ रूपए की संपत्ति मिल गई…

जिसमें, एक ११ मंज़िल बिल्डिंग जो बहादुर शाह जफ़र मार्ग दिल्ली में और उस बिल्डिंग के कई हिस्सों को अब पासपोर्ट ऑफिस सहित कई ऑफिसेस को किराये पर दे दिया गया है…

इसको कहते हैं #राख के ढेर से महल# खड़ा कर लेना।

राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी इसी #नेशनल हेराल्ड केस में ५००० करोड़ के घोटाले में पिछ्ले कुछ सालों से जमानत पर घूम रहे हैं…

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Diego Garci


Diego Garcia एक टापू है जिस पर इंग्लैंड का कब्जा है और जो मॉरीशस का है.

Diego Garcia वही टापू है जिसका जिक्र मैंने MH370 के गायब होने पे किया था

इस टापू को इंग्लैंड ने अमेरिका को दिया हुआ है और अमेरिका ने इस पर अपना सैन्य अड्डा बना रखा है. अभी पिछले कुछ दिनों पूर्व मॉरीशस इंटरनेशनल कोर्ट के अंदर इंग्लैंड और अमेरिका से यह केस जीत गया है और उसने अमेरिका को इसे खाली करने के लिए कह दिया है.

सनद रहे कि इस अमेरिका के लाखों करोड़ों डॉलर इस सैन्य अड्डे को डिवेलप करने में लगे हुए हैं और स्ट्रैटेजिक दृष्टि से ईस्ट ओर वेस्ट पर नजर रखने के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है. अब अमेरिका भारत को रिक्वेस्ट कर रहा है कि भारत अपना मॉरीशस पर प्रभाव को यूज करते हुए उसको इस अड्डे पर बने रहने के लिए मॉरीशस पर दबाव बनाए और अगले 100 सालों के लिए इसको अमेरिका को लीज पर दे दे. उसके बदले में अमेरिका बहुत बड़ी रकम देने को तैयार है.

मेरा इस पोस्ट को लिखने का अभिप्राय सिर्फ इतना है की दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण दो महाशक्तियां आज भारत को अपने पाले में देखना चाहती है और अपने बड़े बड़े मसलों को हल करने के लिए भारत की सहायता मांगती है. यह सब देखते भालते हुए भी लोगों को लगता है कि भारत के अच्छे दिन अभी नहीं आए कोई इनसे पूछे की अभी कितने अच्छे दिन इनको चाहिए.आपका क्या ख्याल है ❓

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30 A


આના પર કોઈ કોમેંટ?

કાયદો 30 A

મોદીજી નેહરુના હિંદુઓ સાથેના વિશ્વાસઘાતને સુધારવાની તૈયારી કરી રહ્યા છે.

શું તમે “કાયદો 30”, “કાયદો 30 A” વિશે સાંભળ્યું છે ????
શું તમે જાણો છો કે “30A” નો અર્થ શું છે?

વધુ જાણવા માટે વિલંબ કરશો નહીં……

30A એ બંધારણમાં સમાવિષ્ટ કાયદો છે*
જ્યારે નહેરુએ આ કાયદાને બંધારણમાં સામેલ કરવાનો પ્રથમ પ્રયાસ કર્યો ત્યારે સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલે તેનો ઉગ્ર વિરોધ કર્યો.

સરદાર પટેલે કહ્યું, “આ કાયદો હિન્દુઓ સાથે મોટો વિશ્વાસઘાત છે, તેથી જો આ ગુર્નેય કાયદો બંધારણમાં લાવવામાં આવશે, તો હું કેબિનેટ અને કોંગ્રેસ પાર્ટીમાંથી રાજીનામું આપીશ… પછી હું આ વિશ્વાસઘાત સામે લડીશ. તમામ ભારતીયો સાથે કામ કરો… આગળથી.. “

સરદાર પટેલના નિશ્ચય સમક્ષ નેહરુએ ઘૂંટણિયે પડવું પડ્યું કમનસીબે.. મને ખબર નથી કે કેવી રીતે.. થોડા મહિનામાં સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલનું અણધાર્યું અવસાન થયું…

પટેલના મૃત્યુ પછી, નેહરુએ આ કાયદાનો બંધારણમાં સમાવેશ કર્યો.

ચાલો હું તમને 30 A ના લક્ષણો જણાવું.

આ કાયદા હેઠળ – હિંદુઓને હિંદુઓમાં તેમનો “હિંદુ ધર્મ” શીખવવાની મંજૂરી નથી. “કાયદો 30A” તેને પરવાનગી કે સત્તા આપતો નથી…. તો પછી હિંદુઓએ પોતાની ખાનગી કોલેજોમાં હિંદુ ધર્મ ન ભણાવવો જોઈએ… હિંદુ ધર્મ શીખવવા માટે કોલેજો શરૂ કરવી જોઈએ નહીં…. હિંદુ ધર્મ શીખવવા માટે હિંદુ શાળાઓ શરૂ કરવી જોઈએ નહીં. અધિનિયમ 30A હેઠળ સરકારી શાળાઓ કે કોલેજોમાં હિંદુ ધર્મના શિક્ષણની પરવાનગી નથી….

પરંતુ.. વિચિત્ર વાત એ છે કે આની સાથે (30A સાથે) એક બીજો કાયદો છે જે નેહરુએ તેમના બંધારણમાં ઘડ્યો હતો – “અધિનિયમ 30”. આ “કાયદો 30” અનુસાર મુસ્લિમો તેમના ધાર્મિક શિક્ષણ માટે ઇસ્લામિક ધાર્મિક શાળાઓ શરૂ કરી શકે છે અને શરૂ કરી શકે છે….. મુસ્લિમો તેમનો ધર્મ શીખવી શકે છે…. કાયદો 30 મુસ્લિમોને તેમની પોતાની ‘મદ્રેસા’ શરૂ કરવાની સંપૂર્ણ સત્તા અને પરવાનગી આપે છે. ….અને બંધારણની કલમ 30 ખ્રિસ્તીઓને તેમની પોતાની ધાર્મિક શાળાઓ અને કોલેજો સ્થાપવા અને મુક્તપણે તેમના ધર્મનું શિક્ષણ અને પ્રચાર કરવાની સંપૂર્ણ સત્તા અને પરવાનગી આપે છે…!!

આનું બીજું કાનૂની પાસું એ છે કે હિંદુ મંદિરોના તમામ પૈસા અને સંપત્તિ સરકારની ઇચ્છા પર છોડી શકાય છે…. હિંદુ મંદિરોમાં હિંદુ ભક્તો દ્વારા કરવામાં આવતા તમામ નાણાં અને અન્ય દાન રાજ્યની તિજોરીમાં લઈ શકાય છે. …. …

તે જ સમયે મુસ્લિમ અને ખ્રિસ્તી મસ્જિદોમાંથી દાન અને દાન સંપૂર્ણપણે ખ્રિસ્તી-મુસ્લિમ સમુદાયને આપી શકાય છે…. આ રીતે આ “લો 30” ની વિશેષતાઓ છે..*તેથી "કાયદો 30A" અને "કાયદો 30" એ સ્પષ્ટ ભેદભાવ અને હિંદુઓ સાથેનો સ્પષ્ટ વિશ્વાસઘાત છે.*

દરેક વ્યક્તિએ આ સારી રીતે જાણવું અને સમજવું જોઈએ…

અન્યની જાગૃતિ આપણે દરેક સનાતન ધર્મના રક્ષક બનીશું.. વાંચો, જાણો અને ફેલાવો

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होलकर


बात है 1948 की ………..जब होलकर राजघराने का वारिस चुनने की बात चली ……….तो जाहिर है, बेटा ही वारिस बनेगा……….पर यहीं पेच फस गया।

यशवंतराव द्वितिय ने 2 विवाह किए थे………. एक भारतीय महिला से और एक अमेरिकन महिला से।
भरतीय महिला की बेटी थी उषा राजे होलकर।जबकि अमेरिकन महिला के बेटे थे शिवाजी राजे होलकर जो रिचर्ड होलकर के नाम से प्रसिध्द थे ।

रिचर्ड को वारिस बनाने का वक्त आया तब उस वक्त के प्रधानमंत्री नेहरू,गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल और राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने साथ मे बैठकर निर्णय किया कि होलकर का वारिस रिचर्ड नही बन सकता क्योंकि वो खुद एक विदेशी महिला की संतान है।

इस लिए वारिस बेटी उषा राजे होलकर को बनाया गया।
हालांकि रिचर्ड को सम्पति में हिस्सा मिला।उनके बेटे का नाम यशवंत होलकर है।जिनकी शादी गोदरेज घराने की बेटी से हुई है।रिचर्ड की बेटी सबरीना की शादी गोआ के राजघराने में हुई है।

तन मन धन से भरतीय रिचर्ड को वारिस नही बनाया गया……… क्योंकि उस वक्त के pm ने ये नही चाहा कि कोई विदेशी महिला की औलाद इस देश मे राजकाज करे ।
तो अब सवाल ये उठता है कि ये कोंग्रेसी किस मुह से पप्पू गांधी को pm बनवाना चाहते है।
क्या वो भूल गए अपने खुद के दल के सुपर पावर अध्यक्ष ने क्या निर्णय लिया था ????????
भाई अपने को तो नेहरू का ये निर्णय भोत पसन्द आया।
इस बात पर गौर करना चाहिए ।राहुल को pm बनने से रोकने के लिए उनके नाना का फैसला ही दिखा देना चाहिए। भावेश संसारकर

रिपोस्ट

चित्र :रिचर्ड होलकर

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भाजपा सत्ता में आई, उसमें गुजरात का बहुत बड़ा योगदान है!

गुजरात को मीडिया के लोग “हिंदुत्व की प्रयोगशाला” कहते थे!

गुजरात पहला राज्य है, जहां भाजपा सत्ता में आई, और जिस जमाने में भाजपा के केवल दो संसद सदस्य थे! उसमें से एक मेहसाना से थे!

आपको जानकर बड़ा आश्चर्य होगा, कि गुजरात में भाजपा सत्ता में कैसी आई?

मित्रों, गुजरात में भाजपा को सत्ता में लाने में कुख्यात “माफिया डॉन अब्दुल लतीफ” का बहुत बड़ा योगदान है

अगर अब्दुल लतीफ नहीं होता, तो संभव है भाजपा सत्ता में नहीं आती!

अब्दुल लतीफ इतना कुख्यात डॉन था, कि उसने सबसे पहले एके-५६ का उपयोग किया था! और १२ पुलिस कर्मियों सहित, १५० से अधिक नागरिकों का वध किया था, जिसमें “राधिका जिमखाना” वध बहुत प्रसिद्ध हुआ था!

जब “राधिका जिमखाना” क्लब में लतीफ ने अंधाधुंध गोलीबारी करके, एक साथ ३५ नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया था!

लतीफ के ऊपर कांग्रेस और जनता दल दोनों के नेताओं का वरदहस्त था!

लतीफ की इतनी पहुंच थी, कि वह मुख्य मंत्री चिमन भाई पटेल के चेंबर में, बगैर अपॉइंटमेंट के, चला जाता था, और तस्करी, सोने चांदी की स्मगलिंग, ड्रग्स की स्मगलिंग, इत्यादि में अरबों रुपए कमाये, और उसमें नेताओं को हिस्सा जाता था!

यदि लतीफ या लतीफ के गैंग के किसी गुर्गे को कोई हिंदू लड़की पसंद आ जाती थी, तो वो रातों-रात उठा ली जाती थी!

लतीफ, जब चाहे तब, किसी हिंदू का बंगला, दुकान खाली करवा लेता था! उस समय भाजपा गुजरात में संघर्ष के दौर में थी

नरेंद्र मोदी, शंकर सिंह वाघेला, केशुभाई पटेल साइकिल स्कूटर पर, चप्पल पहन कर घूमते थे!

एक दिन, गोमतीपुर में भाजपा की एक सभा थी! भाषण देते देते, केशुभाई पटेल ने जोश में बोल दिया, कि जब भाजपा की सरकार आएगी, तब अब्दुल लतीफ का एनकाउंटर करवा दिया जाएगा! बोलने के बाद, वह डर गए! उनकी सुरक्षा बढ़ा दी गई! लेकिन गुजरात की जनता के अंदर एक संदेश चला गया, कि आखिर यह कौन से पार्टी के नेता हैं, जो अब्दुल लतीफ के गढ़ में, उसका इनकाउंटर करने की बात कर रहे हैं?

केशुभाई पटेल के इस भाषण के बाद, जब चुनाव हुए, तब गुजरात में भाजपा की ३५ सीटे आई, जो अपने आप में बहुत बड़ी विजय थी!

उसके बाद, भाजपा ने अब्दुल लतीफ और उसके गुर्गों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया, और अगले चुनावों में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बन गई! और अपने वायदे के अनुसार, शंकर सिंह वाघेला ने अब्दुल लतीफ का एनकाउंटर करवा दिया!

अब्दुल लतीफ का एनकाउंटर भी बड़े जोरदार तरीके से हुआ था! शंकर सिंह वाघेला के सामने डीएसपी जाडेजा आए, और बोले सर लतीफ का एनकाउंटर करना चाहता हूं, क्योंकि इसने मेरे इंस्पेक्टर झाला का मर्डर किया था, जब वह अपनी गर्भवती पत्नी को देखने छुट्टी पर जा रहा था!

अब्दुल लतीफ को गिरफ्तार किया गया! और नवरंगपुरा स्थित पुराने उच्च न्यायालय में उसकी पेशी होनी थी! पेशी के पहले, डीएसपी जडेजा ने कहा, “दाबेली खाओगे?” लतीफ ने हां बोला, तो उसकी हथकड़ी खोल दी गई! और फिर उसे ८ गोलियां मार दी गई! और मीडिया में कह दिया गया, लतीफ ने नाश्ता करने के लिए हथकड़ी खुलवाई, और भागने का प्रयास किया! जिसके फलस्वरूप वह मारा गया!

उसके बाद, शंकरसिंह वाघेला ने एक और बहुत अच्छा काम किया, कि उन्होंने “अशांत धारा एक्ट” लागू कर दिया, यानी गुजरात के विभिन्न शहरों में बहुत से विस्तार चिन्हित कर दिए गए! और इन विसतारों में किसी हिंदू की संपत्ति, कोई मुस्लिम नहीं खरीद सकता!

और उसके बाद भाजपा गुजरात से होती हुई मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बंगाल, इत्यादि अन्य कई जगह बढ़ती चली गई! और आज केंद्र में ३०३ बैठकों के साथ सत्ता में है!

जब एक हिन्दू जागता है, और दूसरे सोये हुए हिन्दुओं को जगाता है, तब ये गुजरात वाला वातावरण बनता है!

जब केशूभाई ने लतीफ का एनकाउंटर करने की घोषणा की थी, गुजरातियों ने बिना किसी प्रश्न-उत्तर के भाजपा को अपना भरपूर समर्थन किया था!

अगर पूरे देश में गुजरात वाला परिणाम हिन्दुओं को चाहिए, तो सभी को वही करना होगा, जो तब गुजरातियों ने किया था!

इसीलिए भाजपा और मोदी को, बिना प्रश्न किये, साथ दें! तभी पूरे देश में से लतीफों का सफाया मोदीजी और भाजपा कर पाएंगे!

गुजराती नागरिक सदैव दूर की सोचते हैं, और ये एक पाठ देशवासियों को, और विशेष कर हिन्दुओं को, उनसे सीखना होगा!

छोटी-छोटी बातों में मोदीजी और भाजपा का विरोध न करें! बल्कि उन्हें अपना पूरा समर्थन दें! ताकि वे अपना काम पूरी प्रामाणिकता से कर सकें!
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ll जय श्री राम ll

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ઇમરજન્સી


આજે તારીખ 25 જૂન – ઇમર્જન્સીને આજે 46 વર્ષ થયા.. ભારતની લોકશાહી ઉપર કટોકટી લાદી દેનાર કોંગ્રેસના કોફીનને વર્તમાન સમયમાં એક બાદ એક ખીલા ઠોકાઈ રહ્યા છે. ત્યારે 46 વર્ષ પેહલા શું બન્યું હતું તે નવી પેઢીએ જાણવું એટલું જ જરૂરી છે. બન્યું હતું એવું કે માર્ચ 1971ની સામાન્ય ચૂંટણીમાં ‘ગરીબી હટાઓ’ના નારા સાથે કોંગ્રેસે 518માંથી 352 બેઠક મેળવી પ્રચંડ બહુમતી હાંસલ કરી. ડિસેમ્બર 1971માં ભારતે પાકિસ્તાનને યુદ્ધમાં કારમી હાર આપી હતી અને દુનિયાના નકશામાં બાંગ્લાદેશ અસ્તિત્વમાં આવ્યું. ઇદિંરા ગાંધી 1971 ની લોકસભાની ચૂંટણી રાયબરેલી બેઠક ઉપર 71,499 વિરુદ્ધ 1,83,309 મતે વિજેતા જાહેર કરાયા ત્યારે પરાજિત ઉમેદવાર સંયુક્ત સમાજવાદી પક્ષના ‘લોકબંધુ’ તરીકે ઓળખાતા ભૂતપૂર્વ સવાતંત્ર સેનાની હતા રાજ નારાયણે ઇંદિરા ગાંધી ઉપર આચારસંહિતા બાબતે અલાહાબાદ હાઇકોર્ટેમાં કેસ કયૉ હતો જે ચાલી રહ્યો હતો. જેમાં ઇંદિરા ગાંધી સામે અદાલતમાં બે આરોપ મુકાયા હતાં. એક કે નવી દિલ્હી ખાતે વડાપ્રધાન સચિવાલયમાં ફરજ બજાવતા યશપાલ કપૂર પાસે ચુંટણી પ્રચારનું કામ કરાવવું. કેમકે કાયદા મુજબ સરકારી અધિકારીને અંગત કામે લગાડી શકાય નહીં. બીજું કે રાય બરેલીમાં ચૂંટણી સભાઓ માટે જે મંચ તૈયાર થયાં હતાં એમાં ઉત્તરપ્રદેશના સરકારી કર્મચારીઓ પાસે કામ લેવામાં આવ્યું હતું. રાજ નારાયણનો કેસ એડવોકેટ શાંતિ ભૂષણ (પ્રશાંત ભૂષણના પિતા) લડી રહ્યા હતા. ઇંદિરા ગાંધીએ વી.એ.ખેર ને કેસ સોંપ્યો. આ કેસ જસ્ટિસ જગમોહનલાલ સિંહા સામે ચાલી રહ્યો હતો. જેઓ ઇમાનદાર માણસ હતા.જસ્ટિસ સિંહાએ માચૅ 1975 દરમ્યાન વડાપ્રધાનને અદાલતમાં હાજર થવા સમન્સ પાઠવ્યું. 18 માચૅ 1975ના રોજ ઇંદિરા ગાંધી અદાલતમાં હાજર થઇને જવાબ આપવા કઠેડામાં 5 કલાક ઉભા રહ્યા. ઇંદિરા ગાંધી માટે આ કેસ જીતવો પ્રતિષ્ઠાનો પ્રશ્ર બની ગયો. તેમણે જસ્ટિસ સિંહાને ઉત્તરપ્રદેશના કોગ્રેસી સાંસદ સભ્ય દ્રારા રુપિયા 5,00,000 માં ખરીદવાની કોશિશ કરી જે નિષ્ફળ ગઈ. બીજી કોશિશમાં તેમણે અલ્હાબાદ હાઇકોર્ટેના ચીફ જસ્ટિસ ડી.એસ.માથુર દ્વારા ઓફર મોકલી સુપ્રીમ કોર્ટેમાં જસ્ટિસ પદ આપવાની વાત કરી. પણ બંને વાત જનતા વચ્ચે પહોંચી ગઈ. કોઈ કીમિયો કામ ન લાગતા આખરે જસ્ટિસ સિંહા બંગલા પર આઈબીની વૉચ ગોઠવી દેવાઈ અને જસ્ટિસ સિંહાના સ્ટેનોગ્રાફર નેગી રામ નિગમને એરેસ્ટ કરીને ટોર્ચર કરવામાં આવ્યા. હેતુ હતો ચુકાદો શું આવવાનો છે તે અગાઉથી સ્ટેનોગ્રાફર પાસથી જાણી લેવાનો. જો કે તે બાદ પણ સફળતા ના મળી. 12, જૂન 1975ને દિવસે જસ્ટિસ સિંહાએ ઇંદિરા ગાંધી વિરુધ્ધ ચુકાદો આપ્યો. જેમાં ઇંદિરા ગાંધીની જીતને રદ કરી સાથે પ્રતિબંધ ફરમાવ્યો કે આગામી છ વષૅ સુધી તેઓ કોઈ પણ પ્રકારની ચૂંટણી લડી શકે નહીં. ઇન્દિરા ગાંધીના વકીલે ચુકાદાના વિરુધ્ધ માં સ્ટે માગ્યો જેમાં ચુકાદા સામે 20 દિવસ માટે સ્ટે મળ્યો. ચુકાદો આવ્યો તે સાથે જુન 23ના રોજ વિરોધપક્ષોએ જયપ્રકાશ નારાયણના નેતૃત્વમાં રેલી કાઢી જેનું નામ હતું “અહંકાર રેલી”. જેમાં જયપ્રકાશે પોલીસ તથા સૈન્યને કહ્યું કે તેમણે સરકારના ‘ગેરકાયદે’ હુકમો માનવા નહીં. આ નિવેદનનો લાભ લેવા સંજય ગાંધીનું કુટિલ દિમાગ કામ કરી ગયું અને તેમના મતે સંવિધાનની કલમ 352 મુજબ ઇમર્જન્સી લગાવવાનું આ સારું બહાનું હતું. દરમ્યાન હાઇકોર્ટના ચુકાદા સામે ઇન્દિરા ગાંધી સુપ્રીમ કોર્ટ ગયા હતા જ્યાં જસ્ટિસ વી.કે. કૃષ્ણા ઐયરે 24 જૂન, 1975ના દિવસે હાઇકોર્ટના નિર્ણયને યોગ્ય ગણાવીને સાંસદ તરીકે ઇન્દિરા ગાંધીને મળતી તમામ સુવિધાઓ પર પ્રતિબંધ મૂકી દીધો જે પછી ઇંદિરાગાંધી ચારે બાજુથી ચુકાદાનો અમલ કરવાની જવાબદારીમાં ધેરાયેલા હતા. જે બાદ સફદરજંગ રોડ ઉપર આવેલા વડાપ્રધાનના સત્તાવાર નિવાસસ્થાને મિટિંગોનો દોર ચાલુ થયો. કોંગ્રેસ પ્રમુખ દેવકાંત બરુઆ, સિધ્ધાર્થ શંકર રાય, બાબુ જગજીવનરામ, યશવંત ચવાણ, ડૉ. કીરણસિંહ, સંજય ગાંધી અને રાજીવ ગાંધી સાથે જેમને કારણે ઇન્દિરા મુશ્કેલીમાં મુકાયા હતા તે યશપાલ કપૂર. સંજય ગાંધીના મતે રાજીનામુ આપવાને સ્થાને કલમ 352 મુજબ કટોકટી લાદવા નિર્ણય લેવાનો હતો. તે સમેયે કોંગ્રેસ ઉપર સંજય ગાંધીનો ભારે પ્રભાવ હતો તેથી તેમની વાતને કોઈ નકારી શક્યું નહીં. સરકાર સમક્ષ સિદ્ધાર્થ શંકર રાયે ઇમર્જન્સીનો પ્રસ્તાવ મુક્યો. જેને ઇંદિરા ગાંધીએ ટેકો જાહેર કર્યો પછી જરૂર હતી માત્ર રાષ્ટ્રપતિની સહીની ઔપચારિકતાની. ઇંદિરા ગાંધીના અહેસાન તળે દબાયેલા રાષ્ટપતિ ફકરુદીન્ અલી એહમદે જૂન 25, 1975ના રોજ ઇમર્જન્સીના ઘોષણાપત્ર પર સહી કરી દીધી. ઇમર્જન્સીની પૂર્વ તૈયારીઓ સંજય ગાંધી અને તેમનું જૂથ RAWના ગુપ્તચરો સાથે મળીને કયારના કરી ચૂક્યા હતા. દેશની નિર્દોષ પ્રજા ઉપર ઇમર્જન્સી ઠોકી બેસાડ્યાના પ્રથમ 72 કલાકમાં હજારો નિર્દોષ માણસોને જેલમાં ધકેલી દેવામાં આવ્યા. એક સપ્તાહમાં જ આવા કેદીઓની સંખ્યા 1,10,000 થઇ ગઈ. ન્યાયપાલિકાની સત્તા ખતમ કરી દેવામાં આવી. પોલીસ કે સરકારી અધિકારીના જનતા સામેના કોઈ પણ વર્તન બાબતે કોર્ટમાં ન જઈ શકાય. કોઈ પણ કારણ વગર કોઈને પણ ગમે તે રીતે પકડીને પોલીસ જેલમાં નાખી દે. પરિવારને કે લગતા વળગતાને જાણ સુદ્ધાં કરી ન શકાય. પ્રેસની સ્વતંત્રતા સંપૂર્ણપણે છીનવી લેવામાં આવી. સરકારના બાતમીદાર ચારેબાજુ ફરતા રહેતા. લગભગ તમામ લોકપ્રિય વ્યક્તિઓના ફોન ટેપ કરવામાં આવતા. દેશની સુપ્રીમ કોર્ટે નિવેદન આપ્યું કે ભારતમાં હવે right to life પણ નથી રહ્યો. નાગરિકને વાંક ગુના વગર પણ હકૂમત ગમે ત્યારે શૂટ કરાવી કે ફાંસી એ લટકાવી શકે છે. આ બધું ભારતમાં બન્યુ અને એકવીસ મહિના સુધી આ ચાલતું રહ્યું. આજે 46 વર્ષ થયા અત્યારની પેઢીને ત્યારના ઘટનાક્રમ અંગે ઝાઝો અણસાર નહીં હોય. ત્યારની પેઢીએ ભોગવેલી યાતનાઓ અને તકલીફો વિષે જાણીશું તો આપણે આજની પેઢી લોકશાહીની કિંમત સમજીશું. – કેયુર જાની