चलो आज फिर इतिहास पढ़ा जाये और आगे का जायका लिया जाये। 12 अप्रैल 1861 तक अमेरिका सिर्फ एक राष्ट्र था। फिर उस दिन एक ऐसी घटना हुयी जिसने अमेरिका को हमेशा के लिए बदल दिया है।
उस दिन दासता को लेकर अमेरिका में गृह युद्ध छिड़ गया था।जब अमेरिका के दक्षिणी हिस्से के 6 राज्यों ने अमेरिका से अपने को अलग कर के ‘कंफेडरेट स्टेट्स’ बनाने की घोषणा कर दी तब अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने, उन राज्यों को समझाने के सभी प्रयास असफल होने पर, शांति दूतों और युद्ध विरोधी बुद्धजीवियों को दर किनार करते हुए अमेरिका को गृह युद्ध की आग में कुदा दिया था।
जिस वक्त लिंकन ने युद्ध का निर्णय लिया था उस वक्त लिंकन एक माइनॉरिटी प्रेजिडेंट थे और अमेरिका के सैन्य संसाधन और श्रेष्ठ सैन्य अधिकारी दक्षिणी राज्यो में ही थे। जहाँ लिंकन कंफेडरेट स्टेट्स से संसाधनों के मामले में कमजोर थे वहीँ अंतराष्ट्रीय परिद्रश्य में, उस वक्त की विश्व की महाशक्तियां फ्रांस और इंग्लैंड का परोक्ष समर्थन कफेडरेट स्टेट्स को होने के कारण लिंकन नितांत अलग थलग पड़ गए थे।
इन तमाम विरोधियों के दबाव के बावजूद लिंकन् ने अपने आक्रामक होने के निर्णय पर कभी भी दोबारा नही सोचा था। वो जानते थे की अमेरिका एक विषम स्थिति में है और उसके रजिनैतिक विरोधी, शांति के पैरोकार और युद्ध विरोधी बुद्धजीवी उनका साथ नही देंगे। अमेरिका के सर्वोच्च न्यायलय के प्रधान न्यायाधीश लिंकन के धुर विरोधी थे, कांग्रेस में लिंकन की स्थिति कमजोर होने के कारण वो युद्ध और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए जरुरी बिल को अपने मन मुताबिक पास कराने के लिए भी असमर्थ थे। लिंकन की परेशानी यहां तक थी की युद्ध के लिए सैनिको नई भर्ती के लिए वो राज्यों के गवर्नर्स और शहरो के मेयरों पर निर्भर थे। बिना किसी सौदे बाजी के,लिंकन कुछ भी करने के स्थिति में थे।
फिर जब इतनी दिक्क्त थी तो लिंकन ने युद्ध और सरकार चलायी कैसे?
लिंकन ने इस सबसे निपटने के लिए, सिर्फ अमेरिका की स्वतंत्रता के घोषणा पत्र को ही अपना मूल मंत्र बनाया था। जिसको उन्होंने अमेरिकी संविधान से ऊपर रखा था।
‘उन्होंने अमेरिका के अराजक स्थिति को देखते हुए, उसे “युद्धकालीन आवश्यकता” को आधार बनाया और तमाम संविधान की उन धाराओ को दरकिनार कर दिया था जो अमेरिका को बचाने में बाधक थी’। अमेरिका, अमेरिका प्रेसिडेंटल आर्डर पर चला था।’
‘जहाँ सैनिको की भर्ती में दिक्क्त आरही थी वहां के मेयर, जेल में अनिश्चित कालीन के लिए बंद कर दिए गए, जो अखबार ‘कंफेडरेट स्टेट्स’ के प्रति सहानभूति रखते थे, उनको बंद करा दिया गया, जिनके संपादक राष्ट्रपति लिंकन और उनकी सरकारों की खबरों को तोड़ मोड़ के पेश करते थे उनको अनिश्चित काल के लिए जेल में भेज दिया गया था। लिंकन ने जगह जगह “हेब्स कॉर्प्स” को स्थगित कर दिया था. युद्ध करने से मना करने वालो और भागने वाले को गोली मारने के आदेश दे दिया था।’
मेरा यहां सभी सेकुलरो को यही समझाना है की तुम लोग खुद अपने जाल में फंसते चले जारहे हो। तुम लोगो ने अमेरिका की तर्ज़ पर भारत को दो भागो में पूरा बाँट दिया है। यदि कल, बजट सत्र पर बजट के पास होने और अन्य बिलो पर उत्पात करते हो तो, भारत एक “वित्तीय आपातकाल” की स्थिति में आजायेगा और यकीन मानो, यह “आपातकाल” लगने की बड़ा वैधानिक कारण बन जायेगा। पिछली बार सत्ता को बचाने के लिए इंद्रा गांधी ने वामपंथियों के समर्थन से आपातकाल लगाया था और भारत की जनता ने इसका विरोध किया था लेकिन इस बार देश को बचाने के लिए लगेगा और लोग सड़क पर आकर उसका स्वागत करेंगे।
मोदी से नफरत करने वालो, तुम खुले हाथ से मोदी को तानाशाह बनने का निमंत्रण दे चुके हो और हम स्वागत करने का इंतज़ार कर रहे है।
अरुण शुक्ला