Posted in यत्र ना्यरस्तुपूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:

होती विद्यालंकार


इतिहासिक प्रोपेगैंडा को ध्वस्त करें।

आधुनिक भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले नहीं बल्कि #बंगाली_कुलीन_ब्राह्मण ‘#होती_विद्यालंकार’ है.

उनकी संस्कृत व्याकरण, कविता, आयुर्वेद, गणित, स्मृति, नव्य-न्याय, आदि पर अद्वितीय पकड़ थी । इनके ज्ञान से प्रभावित होकर काशी के पंडितों ने इन्हें ‘विद्यालंकार’ की उपाधि से सम्मानित किया था.

होती विद्यालंकर का जन्म वर्ष 1740 में हुआ था और सन 1810 में इनका निधन हुआ था मतलब यह सावित्रीबाई से बहुत पहले कि हैं। अंग्रेज़ मिशनरि #विलियम_वार्ड ने सन 1811 में प्रकशित अपनी पुस्तक में होती विद्यालंकर का जिक्र करते हुए कहा है कि इनके गुरुकुल में देश भर से छात्र – छात्रएं अध्यन हेतु आती थीं। हर कोई होती का विद्यालंकर नाम से सम्मान करता था।

होती विद्यालंकर के जन्म से कुछ दशक बाद रूप मंजरी देवी का जन्म हुआ था। यह भी बंगाल कि #कुलीन_ब्राह्मण थीं । ये आयुर्वेद की ज्ञाता थीं और कन्याओं के लिए विद्यालय की स्थापना की थीं । इन्हें भी विद्यालंकर उपाधि से सम्मानित किया गया था । सब इन्हें #होतु_विद्यालंकर कहते थें। सन 1875 में इनका निधन हुआ था।

वर्ष 1935 में दिनेश चंद्र सेन ने Greater Bangal : – A social History नाम से पुस्तक लिखे थें। इसमे इन्होंने होती विद्यालंकर और रूप मंजूरी देवी का बंगाल की अन्य विदुषियों के साथ वर्णन किया था।

सावित्रीबाई फुले के विद्यालय को #ईस्ट_इंडिया_कंपनी और #ईसाई_मिशनरियों का समर्थन था। 16 नवम्बर 1852 को अंग्रेज़ो ने सावित्रीबाई को #बेस्ट_टीचर का पुरष्कार दिया था। अंग्रेज़ो का सावित्रीबाई का समर्थन देना और विद्यालय हेतु आर्थिक सहायता करना इसके पीछे सोची समझी चाल थी ।

सावित्रीबाई फुले को प्रथम महिला शिक्षक कहना उतना ही सत्य है जितना जुगनू को सूर्य से अधिक रोशनी वाला कहना सत्य है।

नोट :- प्रथम गुरु माता हैं , इतिहासिक दस्तावेज का सहारा इसलिए लेना पड़ता है ताकि इतिहासिक प्रोपेगैंडा को ध्वस्त कर सकें ।

पोस्ट का श्रेय :: विप्र श्रीयुत सांकृत्यान जी को 🌹🙏🙌❤

“जय श्री भगवान् परशुराम” 🙏📿🚩

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संसार की किसी भी धर्म पुस्तक में नारी की महिमा का इतना सुंदर गुण गान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता हैं.कुछ उद्हारण
१. उषा के समान प्रकाशवती-
ऋग्वेद ४/१४/३
हे राष्ट्र की पूजा योग्य नारी! तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम, शिवम्, सुंदरम की अरुण कान्तियों को छिटकती हुई आओ , अपने विस्मयकारी सद्गुणगणों के द्वारा अविद्या ग्रस्त जनों को प्रबोध प्रदान करो. जन-जन को सुख देने के लिए अपने जगमग करते हुए रथ पर बैठ कर आओ.
२. वीरांगना-
यजुर्वेद ५/१०
हे नारी! तू स्वयं को पहचान. तू शेरनी हैं, तू शत्रु रूप मृगों का मर्दन करनेवाली हैं, देवजनों के हितार्थ अपने अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर. हे नारी ! तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटने वाली हैं, तू दिव्य गुणों के प्रचारार्थ स्वयं को शुद्ध कर! हे नारी ! तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विश्वंस्त करनेवाली हैं, धार्मिक जनों के हितार्थ स्वयं को दिव्य गुणों से अलंकृत कर.
३. वीर प्रसवा
ऋग्वेद १०/४७/३
राष्ट्र को नारी कैसी संतान दे
हमारे राष्ट्र को ऐसी अद्भुत एवं वर्षक संतान प्राप्त हो, जो उत्कृष्ट कोटि के हथियारों को चलाने में कुशल हो, उत्तम प्रकार से अपनी तथा दूसरों की रक्षा करने में प्रवीण हो, सम्यक नेतृत्व करने वाली हो, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप चार पुरुषार्थ- समुद्रों का अवगाहन करनेवाली हो, विविध संपदाओं की धारक हो, अतिशय क्रियाशील हो, प्रशंशनीय हो, बहुतों से वरणीय हो, आपदाओं की निवारक हो.
४. विद्या अलंकृता
यजुर्वेद २०/८४
विदुषी नारी अपने विद्या-बलों से हमारे जीवनों को पवित्र करती रहे. वह कर्मनिष्ठ बनकर अपने कर्मों से हमारे व्यवहारों को पवित्र करती रहे. अपने श्रेष्ठ ज्ञान एवं कर्मों के द्वारा संतानों एवं शिष्यों में सद्गुणों और सत्कर्मों को बसाने वाली वह देवी गृह आश्रम -यज्ञ एवं ज्ञान- यज्ञ को सुचारू रूप से संचालित करती रहे.
५. स्नेहमयी माँ
अथर्वेद ७/६८/२
हे प्रेमरसमयी माँ! तुम हमारे लिए मंगल कारिणी बनो, तुम हमारे लिए शांति बरसाने वाली बनो, तुम हमारे लिए उत्कृष्ट सुख देने वाली बनो. हम तुम्हारी कृपा- दृष्टि से कभी वंचित न हो.
६. अन्नपूर्ण
अथर्ववेद ३/२८/४
इस गृह आश्रम में पुष्टि प्राप्त हो, इस गृह आश्रम में रस प्राप्त हो. इस गिरः आश्रम में हे देवी! तू दूध-घी आदि सहस्त्रों पोषक पदार्थों का दान कर. हे यम- नियमों का पालन करने वाली गृहणी! जिन गाय आदि पशु से पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं उनका तू पोषण कर.
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:
जिस कुल में नारियो कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियो कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं

अरुण शुक्ला

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इन 4 महिलाओं का हर हाल में सम्मान करना चाहिए


इन 4 महिलाओं का हर हाल में सम्मान करना चाहिए
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तुलसीदासजी द्वारा रचित रामचरित मानस नीति-शिक्षा का एक महत्मपूर्ण ग्रंथ है। इसमें बताई गई कई बातें और नीतियां मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी मानी जाती हैं। जिनका पालन करके मनुष्य कई दुखों और परेशानियों से बच सकता है।

रामचरित मानस में चार ऐसी महिलाओं के बारे में बताया गया है, जिनका सम्मान हर हाल में करना ही चाहिए। इन चार का अपमान करने वाले या इन पर बुरी नजर डालने वाले मनुष्य महापापी होते हैं। ऐसे मनुष्य की जीवनभर किसी न किसी तरह से दुख भोगने पड़ते ही है।

अनुज बधू भगिनी सुत नारी, सुनु सठ कन्या सम ए चारी।
इन्हिह कुदृष्टि बिलोकइ जोई, ताहि बधें कछु पाप न होई।।

अर्थात- छोटे भाई की पत्नी, बहन, पुत्र की पत्नी और अपनी पुत्री- ये चारों एक समान होती हैं। इन पर बुरी नजह डालने वाले या इनका सम्मान न करने वाले को मारने से कोई पाप नहीं लगता।

  1. छोटे भाई की पत्नी

छोटे भाई की पत्नी बहू के समान होती है। उस पर कभी बुरी नजर नहीं डालनी चाहिए। ऐसा करने वाले मनुष्य का परिणाम बुरा ही होता है। रामचरितमानस के अनुसार, किष्किन्धा के राजा बालि ने अपने छोटे भाई सुग्रीव को राज्य से बाहर निकाल कर उसकी पत्नी रूमा को अपने अधीन कर लिया था।

छोटे भाई की पत्नी पर बुरी दृष्टि डालना या उसके साथ बुरा व्यवहार करना महापाप होता है। इसी वजह से खुद भगवान राम ने बाली का वध करके उसे उसके कर्मों की सजा दी थी। इसलिए हर मनुष्य को अपने छोटे भाई की पत्नी को अपनी बहू के समान ही समझना चाहिए।

  1. पुत्र की पत्नी
    पुत्र की पत्नी बेटी के समान मानी जाती है। अपनी बहू के सम्मान की रक्षा करना सबका धर्म होता है। मनुष्य को भूलकर भी अपनी बहू का अपमान नहीं करना चाहिए, न ही उसका अपमान होते देख, उस बात का समर्थन करना चाहिए।

रामायण में दी गई एक घटना के अनुसार, एक बार स्वर्ग की अप्सरा रंभा कुबेर के पुत्र नलकुबेर से मिलने जा रही थी। रास्ते में रावण ने उसे देखा और बुरी नीयत से रोक लिया। रावण को कामातुर होता देख रंभा ने कहा कि आज उसने कुबेर के पुत्र नलकुबेर को मिलने का वचन दिया है और इसलिए वह रावण की पुत्रवधू के समान है।

रंभा के ऐसा कहने पर भी रावण ने उसकी बात नहीं मानी और उसके साथ बुरा व्यवहार किया। रावण के ऐसा करने पर रंभा ने क्रोधित होकर उसे किसी भी स्त्री पर नजह डालने पर उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाने का और किसी स्त्री की वजह से ही उसका विनाश होने का श्राप दे दिया था। पुत्रवधू का यही श्राप रावण के विनाश का कारण बना।

  1. अपनी पुत्री
    अपनी पुत्री का सम्मान करना, हर बुरी परिस्थिति से उसे बचाना पिता का धर्म होता है। अपनी पुत्री के साथ बुरा व्यवहार करना, उसे बुरी दृष्टि से देखने से बड़ा पाप और कोई नहीं होता।

ऐसा कर्म करने वाला मनुष्य महापापी माना जाता है और उसे जीवन भर दुःखों का सामना करना ही पड़ता है। ऐसा मनुष्य चाहे कितने ही दान धर्म कर ले, लेकिन उसके पाप का निवारण नहीं होता। इसलिए मनुष्य को भूलकर भी अपनी पुत्री का अपमान नहीं करना चाहिए।

  1. बहन
    मनुष्य को अपनी छोटी बहन को पुत्री और बड़ी बहन को माता के समान समझना चाहिए। जो मनुष्य अपनी बहन के मान की रक्षा नहीं करता या अपने निजी स्वार्थ के लिए उसका अपमान करता है, उसे राक्षस प्रवृत्ति का माना जाता है।

बहन का अपमान या उसके साथ बुरा व्यवहार करने वाले व्यक्ति को जीवित होते हुए भी नरक के समान दुःख उठाने पड़ते हैं। मनुष्य को किसी भी हाल में अपनी बहन का अपमान नहीं करना चाहिए और हमेशा उसकी रक्षा करना चाहिए।
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पति–पत्नी का व्यवहार कैसा हो ?

किसी भी परिवार को सुखी रहने के लिए पति-पत्नी का सम्बन्ध सबसे महत्वपूर्ण है। यदि इनका सम्बन्ध प्रेम से भरा हो, खुशियों से भरा हो, तो पूरा परिवार सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर सकता है। पति-पत्नी किसी भी गृहस्थी की धुरी होते हैं। इनकी सफल गृहस्थी ही सुखी परिवार का आधार होती है। अगर पति-पत्नी के रिश्ते में थोड़ा भी दुराव या अलगाव है तो फिर परिवार कभी खुश नहीं रह सकता। परिवार का सुख, गृहस्थी की सफलता पर निर्भर करता है।

पति-पत्नी का जीवन उस साइकिल के पहियों कि तरह है, जो एक दुसरे कि बिना अधूरे हैं। पति-पत्नी का संबंध तभी सार्थक है जबकि उनके बीच का प्रेम सदा तरोताजा बना रहे। तभी तो पति-पत्नी को दो शरीर एक प्राण कहा जाता है। दोनों की अपूर्णता जब पूर्णता में बदल जाती है तो अध्यात्म के मार्ग पर बढऩा आसान और आंनदपूर्ण हो जाता है। मात्र पत्नी से ही सारी अपेक्षाएं करना और पति को सारी मर्यादाओं और नियम-कायदों से छूट दे देना बिल्कुल भी निष्पक्ष और न्यायसंगत नहीं है। स्त्री में ऐसे कई श्रेष्ठ गुण होते हैं जो पुरुष को अपना लेना चाहिए। प्रेम, सेवा, उदारता, समर्पण और क्षमा की भावना स्त्रियों में ऐसे गुण हैं, जो उन्हें श्रेष्ठ और गौरव प्रदान करते हैं।

जो नियम और कायदे-कानून पत्नी पर लागू होते हैं वही पति पर भी लागू होते हैं। ईमानदारी और निष्पक्ष होकर यदि सोचें तो यही साबित होता है कि स्त्री पुरुष की बजाय अधिक महम्वपूर्ण और सम्मान की हकदार है।

भारतीय परिवार में अक्सर विवाह या तो नासमझी में किया जाता है या फिर आवेश में। आवेश सिर्फ क्रोध का नहीं होता, भावनाओं का होता है। फिर चाहे प्रेम की भावना में बहकर किया गया हो, लेकिन अक्सर लोग अपनी गृहस्थी की शुरुआत ऐसे ही करते हैं।

विवाह एक दिव्य परंपरा है, गृहस्थी एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है लेकिन हम इसे सिर्फ एक रस्म के तौर पर देखते हैं। गृहस्थी बसाने के लिए सबसे पहले भावनात्मक और मानसिक स्तर पर पुख्ता होना होता है। हम अपने आप को परख लें। घर के जो बुजुर्गवार रिश्तों के फैसले तय करते हैं वे अपने बच्चों की स्थिति को समझें। क्या बच्चे मानसिक और भावनात्मक स्तर पर इतने सशक्त हैं कि वे गृहस्थी जैसी जिम्मेदारी को निभा लेंगे।

जीवन में उत्तरदायित्व कई शक्लों में आता है। सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है शादी करके घर बसाना। गृहस्थ जीवन को कभी भी आवेश या अज्ञान में स्वीकार न करें, वरना इसकी मधुरता समाप्त हो जाएगी। आवेश में आकर गृहस्थी में प्रवेश करेंगे तो ऊर्जा के दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाएगी। हो सकता है रिश्तों में क्रोध अधिक बहे, प्रेम कम। यदि अज्ञान में आकर घर बसाएंगे, तब हमारे निर्णय परिपक्व व प्रेमपूर्ण नहीं रहेंगे। विवाह भी चिंतन-मनन करके ही करें। विद्वान् पुरुष और विद्वान् स्त्री होगें, तभी गृहस्थ जीवन सुखपूर्वक चल सकता है। दोनों के समान अधिकार होगें, तभी प्रेम रहेगा, खुश रहेगें।

वेदो मे नारी को यज्ञीय बताया है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय है। स्त्रियों को सदा विजयिनी के रूप में प्रतिपादित किया गया हैं। और उनको हर काम मे सहयोग और प्रोत्साहन की बात कही गई है । वैदिक काल में नारी के द्वारा अध्ययन अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती हुई बताइ गई है। जैसे कैकेयी महाराज दशरथ के साथ युद्धमें गई थी। कन्या को अपना पति स्वयं चुनने को भी अधिकार देकर वेद पुरुष से एक कदम आगे ही रखते है।

हमारे वैदिक काल में तो अनेको ऋषिकाए वेद मन्त्रो की द्रष्टा है। अपाला – घोषा – सरस्वति – सर्पराज्ञी – सूर्या – सावित्री – अदिति – दाक्षायणि – लोपामुद्रा – विश्ववारा – आत्रेयी आदि ऋषिकाए वेदो के मन्त्रो की इष्टा बताइ गई है।

वेदो में नारी का गौरवमय स्थान इससे भी ज्ञात होता हे कि नारी को ही “घर” कहा गया है।

जायेदस्तं मधवन्त्सेदु योनिस्तदित्वा युक्ता हरयो वहन्तु। ऋग्वेद ३- ५३ -४

अर्थात– घर घर नहीं हैं अपितु गृहिणी ही गृह है। गृहिणी के द्वारा ही गृह का अस्तित्त्व है। यही भाव एक संस्कृत सुभाषित में प्रतिपादित किया गया है।

हमारे धर्म शास्त्रकारो में मनु महाराज ने “मनुस्मृति” में एक श्लोक में कहा है –

यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रा फला: क्रिया: ॥ मनु. ३-५६

अर्थात– जहाँ नारीयों का सम्मान होता है वहाँ देवता निवास करते हैं। जहाँ इसका सम्मान नही होता, वहाँ प्रगति, उन्नति की सारी क्रियाए निष्फल हो जाती हैं।

एक अन्य स्थान में भी कहा गया है की यदि तुम चाहते हो की तुम्हारे कुल की उन्नति हों। यदि तुम्हे ललित कलाओं में रूचि हैं। यदि तुम अपना और अपने सन्तान का कल्याण चाहते हो तो अपनि कन्या को विद्या, धर्म और शील से युक्त करो।

अन्त में तो यही कहना सार्थक होगा की –

शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।

न शोचन्ति तु यत्रता वर्धते तर्द्धि सर्वदा ॥

जिस कुल में स्त्रिया दु:खी रहती हैं वह जल्दी ही नष्ट हो जाता है। जहाँ वे दु:खी नहीं रहतीं उस कुल की वृद्धि होती है। स्त्री पुरुष के विवाह का मतलब वे एक दुसरे के हो चुके हैं, अब वे एक दुसरे के लिए सोचते हैं, कार्य करते और जीवन व्यतीत करते हैं, यही वैवाहिक जीवन का सुख का सार है।

लेखक – आचार्य अनूपदेव

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વાંઢો


તમારે લગ્ન જ ન કરવા હોય અને તમારા લગ્ન થાય નહી આ બંને વસ્તુમાં આમ તો જમીન આસમાનનો ફર્ક છે. પુરુષ વાંઢો રહી જાય તો ઘણીવાર હાંસીપાત્ર બને છે જ્યારે સ્ત્રી વાંઢી રહી જાય એ દયાપાત્ર બને છે. સ્વઈચ્છાથી ન પરણેલી સ્ત્રીઓ મોટાભાગે સમાજસેવા કે ધાર્મિક પ્રવૃતિમાં પોતાની જાતને ઓગાળી ધ્યે છે. પરંતુ પોતાની જીદને લીધે કુંવારી રહી ગયેલી સ્ત્રીઓના વૈજ્ઞાનિક કારણો શું હોઈ શકે?

પ્રથમ કારણ:- શહેરનો મોહ!

‘મારે તો રાજકોટની બહાર જવું જ નથી!’ ‘મને અમદાવાદ સિવાય દમ ઘુંટાય!’ ‘મુંબઈની બહાર ના પરણાય મરી જવાય!’ લગભગ દરેક મોટા શહેરમાં જુવાન થનારી કન્યાઓ આવી અવળી જીદે ચડી જાય છે. અલી ઘેલી! પરણવાનું વ્યક્તિ સાથે છે કે શહેરના બોર્ડ સાથે! ચર્ચ ગેટવાળી કન્યાને કાંદીવલીમાં નથી પરણવું તો નરોડાવાળીને ચાંગોદર નથી જવું અને કાલાવડ રોડવાળીને ગાંધીગ્રામમાં નથી પરણવું. બોલો લ્યો… શહેરનો છે એટલો મોહ પાત્રમાં રાખો તો એ જ્યાં હશે ત્યાં તમને સ્વર્ગ જેવું લાગશે. તમામ કન્યાઓ મેટ્રોસીટી તરફ મીંઢોળ બાંધીને દોડી રહી છે. એ જોતા તો એમ લાગે છે આવનારા વર્ષોમાં ગામડામાં જન્મવું એ અભિશાપ થઈ જશે. કન્યાઓની આ ઘેલછા ગામડાઓને સ્મશાન બનાવ્યે પૂર્ણ થશે કે શું?

બીજુ કારણ: ‘હજી તો દિકરી નાની છે.’

સ્ત્રી આમ તો કદી મોટી ઉંમરની હોતી જ નથી. પરંતુ આ વાક્ય કેટલીક સ્ત્રીઓ પિસ્તાલીસ કે સાંઈઠ વર્ષની થાય ત્યાં સુધી પ્રમાણિકતાથી પકડી રાખે છે. કેટલાક માતા પિતા સારા ઘરનું માગુ આવે ત્યારે વાત આગળ ચલાવ્યા વિના સીધુ જ રોકડું પરખાવે છે કે ‘અમારી દીકરી તો હજી ભણે છે.’ અલ્યા ભઈ તો અમારો ગગો કાંઇ તમારી ગગીના ભણવાના ચોપડા ફાડી નાંખે એવો લાગે છે? અમારૂ ખાનદાન કાંઈ સાવ નિરક્ષર થોડું છે? પાપાની પરી પાપાને જ નાનકડી લાગે છે. પપ્પા ક્યારેક દીકરીની ફેસબુક કે ઇન્સ્ટાની પોસ્ટ પણ વાંચવાનો સમય કાઢો. સત્ય સમજાઈ જશે કે ગગીને આવતી કાલે જ વળાવી દેવી જોઈએ. બહુ નાની ગણ્યા કરશો તો પછી એ કદી ‘નાની’ નહી બને હો!

ત્રીજુ કારણ: ‘બાપ રે! જોઇન્ટ ફેમેલી છે!’

‘મુરતીયાનું આઠ જણાનું કુટુંબ છે અને એમાં સૌથી નાની વહુ ના થવાય.’ બોલો હવે આ બેનબાની ચોઈસ માટે આપણે રાશનકાર્ડ પર કાપ મૂકવાનો? ‘અમારે તો આગળ પાછળ કોઈ ના હોય એવો વરરજો શોધવો છે.’ બેન તો અનાથઆશ્રમ બાજું ધ્યાન દોડાવો. સો એ પાંચ ફેમેલી હવે સંયુક્ત કુટુંબમાં માંડ રહે છે. વડીલોની હૂંફ અને આશિર્વાદ તમામ કપલને જોઈએ છે પરંતુ વડીલો કોઈને નથી જોતા! પોતાના નવજાત શિશુની પ્રોપર સંભાળ માટે માતાપિતા કેર ટેકર તરીકે બધા ઈચ્છે છે. પરંતુ એ માતાપિતાની કેર ટેક બહુ ઓછા કરે છે. જોઇન્ટ ફેમેલીમાં નહી પરણવાની જીદ કરીને કુંવારી બેઠેલી કન્યાઓ પાછી પોતાના ત્રણેય ભાઈઓ અને ભાભીઓ સાથે જ રહેતી હોય છે. આને કહવાય વિકાસ…!

ચોથું કારણ: ‘આઈ વોન્ટ ફ્રીડમ!’

‘મને તો કોઇની અંડરમાં જીવવુ જ નથી. આઈ એમ અ ફ્રી બર્ડ. આઈ વોન્ટ ફ્રિડમ.’ આવા વાક્યો પચ્ચીસ વરસે કહેનારી કેટલીય યુવતીઓ પિસ્તાલીસ પછી સાઈકેટ્રીસની ડિપ્રેશનની દવા લેતી નજરે પડે છે. ફ્રી બર્ડની જીંદગીમાંથી બર્ડ નીકળી જાય છે. અમુક કન્યાઓ પશ્ચિમની જીવનશૈલીને પૂર્વમાં જીવી લેવા તલપાપડ હોય છે. જવાબદારી શબ્દ જ જેને બાણ શૈયા જેવો લાગતો હોય તેવા ઘણાને વર્ષો પછી ‘શૈયા’ જ બાણ જેવી લાગવા માંડે છે. ફ્રિડમની સગલી થામાં બેન! નબળુ પાતળુ ગોતીને ગોઠવાઈ જા. તું નસીબદાર હોઇશ તો તારા પગલે વરને કેનેડા કે યુ.એસ.ના વિઝા મળી જાશે તો પછી ફ્રિડમના સ્વીમીંગપુલમાં એ’યને આજીવન ધુબકા માર્યા કરજે…! સ્વચ્છંદતાને સ્વભાવ ન બનાવાય બેબલી. દુષણોનું સ્વચ્છતા અભિયાન કરી શકે એવો સાવરણો ક્યાંય માર્કેટમાં નથી મળતો. પરણીજા બાઈ નહીંતર આગળ આવશે એકલતાની ખાઈ.

પાંચમું કારણ- પાતળી આર્થિક પરિસ્થિતિ

હવેની છોકરીઓ તો મુરતીયો જોવા આવે ત્યારે જ માઈક્રો ઓબ્ઝરવેશન કરી લ્યે છે. એ કઈ ગાડીમાં આવ્યો? તેની પાસે ક્યો મોબાઈલ છે? આ ભૂરો મને MIનો મોબાઈલ તો ગીફ્ટ નહી આપે ને? મારે તો આઇફોન જ જોઈએ. (પછી ભલેને મારા બાપુજીના ઘરે કોઇની આઇફોનની ત્રેવડ ન હોય તો’ય!) છોકરાના ઘરના સોફા પરથી તેની માનસિકતા ન મપાય બેન! શક્ય છે કે એ અત્યારે પરિવાર મધ્યમવર્ગનો છે પરંતુ તારા પગલા થશે અને તું જો કરકસરથી ઘર ચલાવશે તો પાંચ વરસમાં સૌ સારા વાના થશે. બાકી માત્ર બેંક-બેલેન્સ, મોંઘી ગાડી અને મોટા બંગલા જોઈને હરખે હરખે પરણનારી કેટલીય કન્યાઓને ફાઇવસ્ટાર બંગલામાં દવા પીવાના દિવસો આવ્યા છે. માટે છોકરો કાંડાવાળો હોય, તને સદ્દગુણી લાગે અને તારા દિલમાં તેને જોઈને ઘંટડી વાગે તો આર્થિક પરિસ્થિતિને ગોળી મારજે બેન! વર કન્યાનો એકબીજા પરનો ભરોસો મજબુત થશે તો કોઈપણ પરિસ્થિતિમાંથી રસ્તો મળશે જ! આગે બઢો.

છઠ્ઠું કારણ- સામસામુ નથી કરવું.*

06:43 કેટલીક કન્યાઓનું આ કારણ પ્રમાણમાં વ્યાજબી લાગે છે. ક્યારેક આ ક્રુર ભાસે છે. ભાભી રીટર્ન થાય એટલે વગર વાંકે નણંદબા પણ પરત મોકલી દેવાય છે. સંબંધોની આ મીરર ઇફેક્ટને લીધે ઘણા પરિવારો ટક્યા પણ છે અને તૂટ્યા પણ…!

સાતમું કારણ: ભણેલો જોઈએ!

કેટલીક કન્યાઓ સરકારી નોકરને જ પરણવાની પ્રતિજ્ઞા કરી બેસતી હોય છે. કલેક્ટર કે કમિશ્નરને વરવાના સ્વપ્ન જોનારી પછી સરકારી બેંકના પટ્ટાવાળાનું મંગળસૂત્ર પહેરે છે. ઘણી કન્યાઓ “પતિ એ જ પરમેશ્વર” નહીં પરંતુ “પે સ્લીપ એ જ પરમેશ્વર” સૂત્રને જીવનભર વળગી રહે છે.

ટૂંકમાં કન્યાઓ પાસે ન પરણવાના આજે આવા એક હજાર બહાના હોઈ શકે. પરણવાનું એક જ કારણ પુરતું છે કે સુખી થાવા કરતાં કોઈને સુખી કરવા માટે પરણવુ જરૂરી છે. સમયસર પરણી જાવ નહીતર પછી આંટી થઈ જશો.

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સ્ત્રીની આંતર મનની વ્યથા


સ્ત્રીની આંતર મનની વ્યથા:-

નાની હતી.
ખુબ બોલતી.
મા ટોકતી :
ચુપ રહે,
નાનાં છોકરાં બહું ના બોલે…..!

કિશોરી બની.
તોળીને બોલતી.
છતાં મા કહેતી :
ચુપ રહે,
હવે તું નાની નથી…..!

યુવતી બની.
મ્હોં ખોલું,
ત્યાં મા ઠપકારતી :
ચુપ રહે,
પારકા ઘરે જવાનું છે…..!

નોકરી કરવા ગઈ.
સાચું બોલવા ગઈ.
બોસ બોલ્યા :
ચુપ રહો,
માત્ર કામમાં ધ્યાન આપો…..!

પુત્રવધુ બની.
બોલવા જાઉં
તો સાસુ ટપારતી :
ચુપ રહે,
આ તારું પિયર નથી…..!

ગૃહિણી બની.
પતિને કાંઈ કહેવા જાઉં,
પતિ ગુસ્સે થતો :
ચુપ રહે,
તને શું ખબર પડે…..!

માતા બની.
બાળકોને કાંઈ કહેવા જાઉં.
તો તે કહેતા :
ચુપ રહે,
તને એ નહીં સમજાય…..!

જીવનની સાંજ પડી.
બે બોલ બોલવા ગઈ.
સૌ કહે :
ચુપ રહો,
બધામાં માથું ના મારો…..!

વૃદ્ધા બની.
મ્હોં ખોલવા ગઈ.
સંતાનો કહે :
ચુપ રહે,
હવે, શાંતિથી જીવ…..!

બસ……..,
આ ચુપકીદીમાં અંતરના ઊંડાણમાં ઘણુંય સંઘરાયું છે…..
એ સઘળું શબ્દોમાં ઉજાગર કરવા જાઉં,
ત્યાં તો સામે યમરાજા દેખાયા.
તેમણે આદેશ આપ્યો:
ચુપ રહે,
તારો અંત આવી ગયો…..!

હું ચુપ થઈ ગઈ…..
હંમેશના માટે……….!
🙏🏻🙏🏻

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માતૃદીન


Happy Mother’s Day

“મહા હેતવાળી દયાળી જ મા તું”

હતો હું સૂતો પારણે પુત્ર નાનો,
રડું છેક તો રાખતું કોણ છાનો ?
મને દુ:ખી દેખી દુ:ખી કોણ થાતું ?
મહા હેતવાળી દયાળી જ મા તું.

સૂકામાં સુવાડે ભીને પોઢી પોતે,
પીડા પામું પંડે તજે સ્વાદ તો તે;
મને સુખ માટે કટુ કોણ ખાતું ?
મહા હેતવાળી દયાળી જ મા તું.

લઈ છાતી સાથે બચી કોણ લેતું ?
તજી તાજું ખાજું મને કોણ દેતું ?
મને કોણ મીઠાં મુખે ગીત ગાતું ?
મહા હેતવાળી દયાળી જ મા તું.

પડું કે ખડું તો ખમા આણી વાણી,
પડે પાંપણે પ્રેમનાં પૂર પાણી;
પછી કોણ પોતતણું દૂધ પાતું ?
મહા હેતવાળી દયાળી જ મા તું.

મને કોણ કે’તું પ્રભુ ભક્તિ જુક્તિ,
ટળે તાપ-પાપ, મળે જેથી મુક્તિ;
ચિત્તે રાખી ચિંતા રૂડું કોણ ચા’તું,
મહા હેતવાળી દયાળી જ મા તું.

તથા આજ તારું હજી હેત તેવું,
જળે માછલીનું જડ્યું હેત તેવું;
ગણિતે ગણ્યાથી નથી તે ગણાતું,
મહા હેતવાળી દયાળી જ મા તું.

અરે ! એ બધું શું ભલું જૈશ ભૂલી,
લીધી ચાકરી આકરી જે અમૂલી;
સદા દાસ થૈ વાળી આપીશ સાટું,
મહા હેતવાળી દયાળી જ મા તું.

અરે ! દેવતા દેવ આનંદદાતા !
મને ગુણ જેવો કરે મારી માતા;
સામો વાળવા જોગ દેજે સદા તું,
મહા હેતવાળી દયાળી જ મા તું.

શીખે સાંભળે એટલા છંદ આઠે,
પછી પ્રીતથી જો કરે નિત્ય પાઠે;
રાજી દેવ રાખે સુખી સર્વ ઠામે,
રચ્યા છે રૂડા છંદ દલપતરામે.
~ કવીશ્વર દલપતરામ

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साधुको भी चाहिये कि वह किसी स्त्रीको चेली न बनाये । दीक्षा देते समय गुरुको शिष्यके हृदय आदिका स्पर्श करना पड़ता है, जबकि संन्यासीके लिये स्त्रीके स्पर्शका कड़ा निषेध है । श्रीमद्भागवतमें आया है कि हाड़-मांसमय शरीरवाली स्त्रीका तो कहना ही क्या है, लकड़ीकी बनी हुई स्त्रीका भी स्पर्श न करे और हाथसे स्पर्श करना तो दूर रहा, पैरसे भी स्पर्श न करेᅳ

पदापि युवतीं भिक्षुर्न स्पृशेद् दारवीमपि ।
(श्रीमद्भागवत ११/८/१३)

शास्त्रोंमें यहाँतक कहा गया हैᅳ

मात्रा स्वस्त्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत् ।
बलवानिद्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ॥
(मनु॰ २/२१५)

‘मनुष्योंको चाहिये कि अपनी माता, बहन अथवा पुत्रीके साथ भी कभी एकान्तमें न रहें; क्योंकि इन्द्रियाँ बड़ी प्रबल होती हैं, वे विद्वान मनुष्यको भी अपनी तरफ खींच लेती हैं ।’

संग न कुर्यात्प्रमदासु जातु योगस्य पारं परमारुरुक्षुः ।
मत्सेवया प्रतिलब्धात्मलाभो वदन्ति या निरयद्वारमस्य ॥
(श्रीमद्भागवत ३/३१/३९)

‘जो पुरुष योगके परम पदपर आरूढ़ होना चाहता हो अथवा जिसे मेरी सेवाके प्रभावसे आत्मा-अनात्माका विवेक हो गया हो, वह स्त्रियोंका संग कभी न करे; क्योंकि उन्हें ऐसे पुरुषके लिये नरकका खुला द्वार बताया गया है ।’

श्री शशांक शेखर शुल्ब

Posted in यत्र ना्यरस्तुपूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:

नारी


संसार की किसी भी धर्म पुस्तक में नारी की महिमा का इतना सुंदर गुण गान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता हैं.कुछ उद्हारण
१. उषा के समान प्रकाशवती-
ऋग्वेद ४/१४/३
हे राष्ट्र की पूजा योग्य नारी! तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम, शिवम्, सुंदरम की अरुण कान्तियों को छिटकती हुई आओ , अपने विस्मयकारी सद्गुणगणों के द्वारा अविद्या ग्रस्त जनों को प्रबोध प्रदान करो. जन-जन को सुख देने के लिए अपने जगमग करते हुए रथ पर बैठ कर आओ.
२. वीरांगना-
यजुर्वेद ५/१०
हे नारी! तू स्वयं को पहचान. तू शेरनी हैं, तू शत्रु रूप मृगों का मर्दन करनेवाली हैं, देवजनों के हितार्थ अपने अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर. हे नारी ! तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटने वाली हैं, तू दिव्य गुणों के प्रचारार्थ स्वयं को शुद्ध कर! हे नारी ! तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विश्वंस्त करनेवाली हैं, धार्मिक जनों के हितार्थ स्वयं को दिव्य गुणों से अलंकृत कर.
३. वीर प्रसवा
ऋग्वेद १०/४७/३
राष्ट्र को नारी कैसी संतान दे
हमारे राष्ट्र को ऐसी अद्भुत एवं वर्षक संतान प्राप्त हो, जो उत्कृष्ट कोटि के हथियारों को चलाने में कुशल हो, उत्तम प्रकार से अपनी तथा दूसरों की रक्षा करने में प्रवीण हो, सम्यक नेतृत्व करने वाली हो, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप चार पुरुषार्थ- समुद्रों का अवगाहन करनेवाली हो, विविध संपदाओं की धारक हो, अतिशय क्रियाशील हो, प्रशंशनीय हो, बहुतों से वरणीय हो, आपदाओं की निवारक हो.
४. विद्या अलंकृता
यजुर्वेद २०/८४
विदुषी नारी अपने विद्या-बलों से हमारे जीवनों को पवित्र करती रहे. वह कर्मनिष्ठ बनकर अपने कर्मों से हमारे व्यवहारों को पवित्र करती रहे. अपने श्रेष्ठ ज्ञान एवं कर्मों के द्वारा संतानों एवं शिष्यों में सद्गुणों और सत्कर्मों को बसाने वाली वह देवी गृह आश्रम -यज्ञ एवं ज्ञान- यज्ञ को सुचारू रूप से संचालित करती रहे.
५. स्नेहमयी माँ
अथर्वेद ७/६८/२
हे प्रेमरसमयी माँ! तुम हमारे लिए मंगल कारिणी बनो, तुम हमारे लिए शांति बरसाने वाली बनो, तुम हमारे लिए उत्कृष्ट सुख देने वाली बनो. हम तुम्हारी कृपा- दृष्टि से कभी वंचित न हो.
६. अन्नपूर्ण
अथर्ववेद ३/२८/४
इस गृह आश्रम में पुष्टि प्राप्त हो, इस गृह आश्रम में रस प्राप्त हो. इस गिरः आश्रम में हे देवी! तू दूध-घी आदि सहस्त्रों पोषक पदार्थों का दान कर. हे यम- नियमों का पालन करने वाली गृहणी! जिन गाय आदि पशु से पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं उनका तू पोषण कर.
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:
जिस कुल में नारियो कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियो कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं

अरुण सुक्ला

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अर्धनग्न


अर्धनग्न महिलाओं को देख कर 90℅ कौन मजे लेता है नारी स्वतंत्रता पर सच्चाई जाने, समझें
एक लेख

एक दिन मोहल्ले में किसी ख़ास अवसर पर महिला सभा का
आयोजन किया गया, सभा स्थल पर
महिलाओं की संख्या अधिक
और पुरुषों की कम थी.!!

मंच पर तकरीबन पच्चीस वर्षीय
खुबसूरत युवती, आधुनिक वस्त्रों से
सुसज्जित, माइक थामें कोस रही थी
पुरुष समाज को..!!

वही पुराना आलाप….
कम और छोटे कपड़ों को जायज,
और कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता का बचाव करते हुए, पुरुषों की गन्दी सोच और खोटी नीयत का
दोष बतला रही थी.!!

तभी अचानक सभा स्थल से…
तीस बत्तीस वर्षीय सभ्य, शालीन और आकर्षक से दिखते नवयुवक ने खड़े होकर अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति मांगी..!!

अनुमति स्वीकार कर माइक उसके हाथों में सौप दिया गया , हाथों में माइक आते ही उसने बोलना शुरु किया..!!

“माताओं, बहनों और भाइयों,
मैं आप सबको नहीं जानता और आप सभी मुझे नहीं जानते कि, आखिर मैं कैसा इंसान हूं..??

लेकिन पहनावे और शक्ल सूरत से
मैं आपको कैसा लगता हूँ, बदमाश या शरीफ..??

सभास्थल से कई आवाजें गूंज उठीं… पहनावे और बातचीत से तो आप शरीफ लग रहे हो…

बस यही सुनकर, अचानक ही
उसने अजीबोगरीब हरकत कर डाली… सिर्फ हाफ पैंट टाइप की
अपनी अंडरवियर छोड़ कर के बाक़ी सारे कपड़े मंच पर ही उतार दिये..!!

ये देख कर पूरा सभा स्थल आक्रोश से गूंज उठा, मारो-मारो गुंडा है,
बदमाश है, बेशर्म है, शर्म नाम की
चीज नहीं है इसमें…. मां बहन का
लिहाज नहीं है इसको, नीच इंसान है,
ये छोड़ना मत इसको….

ये आक्रोशित शोर सुनकर अचानक वो माइक पर गरज उठा… “रुको…
पहले मेरी बात सुन लो, फिर मार भी लेना , चाहे तो जिंदा जला भी देना
मुझको..!!

अभी अभी तो ये बहन जी कम कपड़े, तंग और बदन नुमा छोटे-छोटे कपड़ों के पक्ष के साथ साथ स्वतंत्रता की दुहाई देकर गुहार लगाकर…
“नीयत और सोच में खोट” बतला रही थी…!! तब तो आप सभी तालियां बजा-बजाकर सहमति जतला रहे थे.. फिर मैंने क्या किया है..??
सिर्फ कपड़ों की स्वतंत्रता ही तो
दिखलायी है..!!

“नीयत और सोच” की खोट तो नहीं ना और फिर मैने तो, आप लोगों को… मां बहन और भाई भी कहकर ही संबोधित किया था..फिर मेरे अर्द्ध नग्न होते ही आप में से किसी को भी
मुझमें “भाई और बेटा” क्यों नहीं नजर आया..??

मेरी नीयत में आप लोगों को
खोट कैसे नजर आ गया..??

मुझमें आपको सिर्फ “मर्द” ही क्यों नजर आया? भाई, बेटा, दोस्त क्यों नहीं नजर आया? आप में से तो किसी की “सोच और नीयत” भी
खोटी नहीं थी…
फिर ऐसा क्यों?? “

सच तो यही है कि झूठ बोलते हैं लोग कि… “वेशभूषा” और “पहनावे” से
कोई फर्क नहीं पड़ता हकीकत तो यही है कि मानवीय स्वभाव है कि किसी को सरेआम बिना “आवरण” के देख लें तो कामुकता जागती है
मन में…रूप, रस, शब्द, गन्ध, स्पर्श
ये बहुत प्रभावशाली कारक हैं। इनके प्रभाव से “विश्वामित्र” जैसे मुनि के
मस्तिष्क में विकार पैदा हो गया था..
जबकि उन्होंने सिर्फ रूप कारक के दर्शन किये। आम मनुष्यों की
विसात कहाँ..??

दुर्गा शप्तशती के देव्या कवच श्लोक 38 में भगवती से इन्हीं कारकों से रक्षा करने की प्रार्थना की गई है..

“रसेरुपेगन्धेशब्देस्पर्शेयोगिनी।
सत्त्वंरजस्तमश्चैवरक्षेन्नारायणी_सदा।।”

रस रूप गंध शब्द स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करें तथा सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण की रक्षा नारायणी देवी करें.!!

अब बताइए, हम भारतीय हिन्दु महिलाओं को “हिन्दु संस्कार” में
रहने को समझाएं तो स्त्रियों की कौन-सी “स्वतंत्रता” छीन रहे हैं..??

सोशल मीडिया पर अर्ध-नग्न होकर नाचती 90% कन्याएँ-महिलाएँ हिंदू हैं..और मज़े लेने वाले 90% कौन है?
ये बताने की भी ज़रूरत है क्या..?

आँखे खोलिए…संभालिए अपने आप को और अपने समाज को, क्योंकि भारतीय समाज और संस्कृति का आधार नारीशक्ति है और धर्म विरोधी, अधर्मी, चांडाल (बॉलीवुड, वामपंथ) ये हमारे समाज के आधार को तोड़ने का षड्यंत्र कर रहे हैं..!!

परम्परागत सनातन धर्म की रक्षा का दायित्व हम सभी पर है।