Posted in मातृदेवो भव:

“माँ” से बढ़कर कोई नहीं :-

पोस्ट के साथ लगी तस्वीर क्वींसलैंड में रहने वाली एक “माँ” फियोना सिम्पसन की है। फियोना अपनी एक वर्ष की बिटिया क्लारा के साथ शहर से बाहर जा रही थी के अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी। फियोना गाड़ी चला रही थी और बिटिया क्लारा बगल की सीट पर आराम से सो रही थी। बारिश अब भयंकर रूप ले रही थी। अचानक बिजली ज़ोर से कड़की और फियोना ने गाड़ी को वहीं थाम दिया ।

सामने देखा तो मूसलाधार बारिश के साथ तेज़ हवायें चलने लगी थी। अगले ही क्षण फियोना की गाड़ी के सामने एक जोरदार धमाका हुआ। बिजली का खम्बा हवाओं के वेग से उखड़ कर सड़क पर गिर चुका था। फियोना ने दूसरी ओर नज़र दौड़ाई तो एक पेड़ जड़ से उखड़ कर नीचे गिर रहा था …!

तूफान ने दस्तक दे दी थी । इतने में शोर के कारण बिटिया की नींद खुल गयी। फियोना घबरा चुकी थी। उनका सामना एक Tornado ( बवंडर ) से हो रहा था।

अगले ही क्षण हवाओं के दबाव से गाड़ी का एक शीशा टूटा और फियोना की बाजू में जा लगा। फियोना की बाज़ू से लहू रिस रहा था और बगल में बिटिया शोर की घबराहट से ज़ोर ज़ोर से रो रही थी …!

फियोना ने बिटिया को गोद में उठाया और गाड़ी की पिछली सीट पर कूद गई। उसने बिटिया को अपने आप में ऐसे जकड़ लिया के अगर कुछ भी पदार्थ गाड़ी के अंदर आये तो बिटिया तक ना पहुंच पाये। दुर्भाग्यवश गाड़ी का पिछला शीशा भी ध्वस्त हो गया और कांच के टुकड़े फियोना की कमर में जा लगे।

तूफान बढ़ता जा रहा था । फियोना ने बिटिया को जकड़े रखा। इतने में ओले पड़ने शुरू हो गये। तेज़ हवा में बर्फीली ओले किसी गोली की तरह फियोना के शरीर पर लगते रहे। फियोना दर्द से चीख रही थी।

इतने में उसे दिखा के बिटिया के सर से थोड़ा खून बह रहा है। गाड़ी का सामने वाला शीशा भी टूट चुका था और तेज़ तूफान में ना जाने क्या क्या गाड़ी में आकर लग रहा था। फियोना ने बिटिया को और कस के जकड़ लिया ।

इसी बीच कांच के टुकड़े फियोना के शरीर को भेदते रहे और तेज़ रफ़्तार से टकराते ओले असहनीय दर्द देते रहे। परन्तु फियोना को अपनी परवाह ही कहाँ थी …!

उसके माथे पर चिंता की लकीरें तो बिटिया को लेकर थी। तूफान का सामना करते करते फियोना लगभग बेसुध हो गयी पर आखिरी दम तक बिटिया को बचाये रखा। एक कवच बन कर बिटिया से लिपटी रही।

तूफान शांत हुआ तो स्थानीय लोग मदद को आये। उन्हें गाड़ी में एक बेसुध माँ दिखी जिसके शरीर का एक एक हिस्सा ज़ख्मी हो चुका था और ढाल बनी माँ के नीचे एक बिटिया जिसके सर पर एक हल्की सी खरोंच आयी थी …!

यह तस्वीर घायल फियोना की है जब उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया। फियोना के शरीर के हर हिस्से से खून बह रहा था। कई जगह कांच के टुकड़े तक घुस गए थे । असहनीय दर्द था। डॉक्टर आये तो फियोना ने बिटीया को आगे कर दिया …! बोली “डॉक्टर …इसे देखिये इसके सर पर खरोंच है …!

यह बात वह माँ कह रही थी जिसका सारा शरीर ज़ख्मी था। इस असहनीय अवस्था में भी उसे अपनी बेटी की फिक्र लगी थी …!

परिस्थियां जो भी हों हर माँ अपने बच्चों के लिये हर समय समर्पित रहती है। उसे कभी अपने दुःखों की परवाह नहीं होती । उसे सिर्फ अपनी संतान के सुख की चाह होती है ..

दुनिया से जाने के लिए तो बहुत से रास्ते हैं…

पर दुनिया में आने के लिए सिर्फ एक रास्ता है ….”माँ” ।

सादर/साभार

सुधांशु

(जगदीश जी)

(अक्टूबर 2018 की सत्य घटना पर आधारित पोस्ट )

#मां #क्वीन्सलैंड #ममता #घटना

Posted in मातृदेवो भव:

सासरी न सांगता कण कण काम करणाऱ्या , आपण माहेरी असल्यावर प्रत्येक वेळी आईने सांगितलेलं काम कस झिडकारत होतो …हे मात्र लग्न झाल्यावर क्षणोक्षणी आठवत राहत. 😶

कस जगतो आपण… गुर्मीत😛चक्क.. “मी नाही करत.. ते काम मला कंटाळा आला बरं,” अस म्हणून सोडून पळून जातो मैत्रिणिकडे गप्पा ठोकायला… 😢

आई नी जर फक्त,” चहा टाक म्हटलं .. तर 100 कारण सांगून चहा न करणाऱ्या आपण सासरी 100 वेळी हसत मुखाने चहा करतो… 😃 ❤

जर कधी एखाद्या वेळी काम थोडं जास्त झालं आणि हात पाय दुखतात तेव्हा आईची सहजच आठवण येऊन जाते,कारण एखादेवेळी ती पण म्हणलेली आठवते ,”थोडे हात चेपून दे ग..! ” पण तेव्हा तितकं आपण मनावर घेत नाही आणि 1,2 मिनिटं चेपून बाजूला होतो… 😶

आज अस वाटतंय की माहेरी गेल्यावर पण आईने न सांगता तिला आपण 1 कप चहा करून द्यावा, तिला आयतं जेवायला द्यावं.. नसतील तिचे हात पाय दुखंत तरी चेपून द्यावे… 😔
पण शेवटी ती आईच ना,तिला वाटतं लेकरू 2 दिवस माहेरी आलंय आणि तिला काय काम करू द्यायचं नाही, ती नाहीच करू देत.. उलट आपण गेलं की नवं नवीन करून खायला घालेल मांडीवर घेऊन थोपटेल. 😇😇

सर्व आई खरच ग्रेटचं असतात.-😊😊😘😘😘
खूप काही असे अनुभव असतात आणि एखाद्या picture सारखे समोर येत राहतात. 😊

#लव युआई😘😘😘😘😘

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Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक, मातृदेवो भव:

संजू तिवारी

टॉल्सटॉय की प्रसिद्ध कहानी है कि एक आदमी के घर एक संन्यासी मेहमान हुआ – एक परिव्राजक। रात गपशप होने लगी; उस परिव्राजक ने कहा कि तुम यहाँ क्या छोटी-मोटी खेती में लगे हो। साइबेरिया में मैं यात्रा पर था तो वहाँ जमीन इतनी सस्ती है मुफ्त ही मिलती है। तुम यह जमीन छोड़-छाड़कर, बेच-बाचकर साइबेरिया चले जाओ। वहाँ हजारों एकड़ जमीन मिल जाएगी इतनी जमीन में। वहाँ करो फसलें और बड़ी उपयोगी जमीन है और लोग वहाँ के इतने सीधे-सादे हैं कि करीब-करीब मुफ्त ही जमीन दे देते हैं।
उस आदमी को वासना जगी। उसने दूसरे दिन ही सब बेच-बाचकर साइबेरिया की राह पकड़ी। जब पहुँचा तो उसे बात सच्ची मालूम पड़ी। उसने पूछा कि मैं जमीन खरीदना चाहता हूँ। तो उन्होंने कहा, जमीन खरीदने का तुम जितना पैसा लाए हो, रख दो; और जीवन का हमारे पास यही उपाय है बेचने का कि कल सुबह सूरज के ऊगते तुम निकल पड़ना और साँझ सूरज के डूबते तक जितनी जमीन तुम घेर सको घेर लेना।
बस चलते जाना… जितनी जमीन तुम घेर लो। साँझ सूरज के डूबते-डूबते उसी जगह पर लौट आना जहाँ से चले थे- बस यही शर्त है। जितनी जमीन तुम चल लोगे, उतनी जमीन तुम्हारी हो जाएगी।
रात-भर तो सो न सका वह आदमी। तुम भी होते तो न सो सकते; ऐसे क्षणों में कोई सोता है ? रातभर योजनाएँ बनाता रहा कि कितनी जमीन घेर लूँ। सुबह ही भागा। गाँव इकट्ठा हो गया था। सुबह का सूरज ऊगा, वह भागा। उसने साथ अपनी रोटी भी ले ली थी, पानी का भी इंतजाम कर लिया था। रास्ते में भूख लगे, प्यास लगे तो सोचा था चलते ही चलते खाना भी खा लूँगा, पानी भी पी लूँगा। रुकना नहीं है; चलना क्या है; दौड़ना है। दौड़ना शुरू किया, क्योंकि चलने से तो आधी ही जमीन कर पाऊँगा, दौड़ने से दुगनी हो सकेगी – भागा …भागा।
सोचा था कि ठीक बारह बजे लौट पड़ूँगा; ताकि सूरज डूबते – डूबते पहुँच जाऊँ। बारह बज गए, मीलों चल चुका है, मगर वासना का कोई अंत है? उसने सोचा कि बारह तो बज गए, लौटना चाहिए; लेकिन सामने और उपजाऊ जमीन, और उपजाऊ जमीन…थोड़ी सी और घेर लूँ। जरा तेजी से दौड़ना पड़ेगा लौटते समय – इतनी ही बात है, एक ही दिन की तो बात है, और जरा तेजी से दौड़ लूँगा।
उसने पानी भी न पीया; क्योंकि रुकना पड़ेगा उतनी देर – एक दिन की ही तो बात है, फिर कल पी लेंगे पानी, फिर जीवन भर पीते रहेंगे। उस दिन उसने खाना भी न खाया। रास्ते में उसने खाना भी फेंक दिया, पानी भी फेंक दिया, क्योंकि उनका वजन भी ढोना पड़ा रहा है, इसलिए दौड़ ठीक से नहीं पा रहा है। उसने अपना कोट भी उतार दिया, अपनी टोपी भी उतार दी, जितना निर्भार हो सकता था हो गया।
एक बज गया, लेकिन लौटने का मन नहीं होता, क्योंकि आगे और-और सुंदर भूमि आती चली जाती है। मगर फिर लौटना ही पड़ा; दो बजे तक वो लौटा। अब घबड़ाया। सारी ताकत लगाई; लेकिन ताकत तो चुकने के करीब आ गई थी। सुबह से दौड़ रहा था, हाँफ रहा था, घबरा रहा था कि पहुँच पाऊँगा सूरज डूबते तक कि नहीं। सारी ताकत लगा दी। पागल होकर दौड़ा। सब दाँव पर लगा दिया। और सूरज डूबने लगा…। ज्यादा दूरी भी नहीं रह गई है; लोग दिखाई पड़ने लगे। गाँव के लोग खड़े हैं और आवाज दे रहे हैं कि आ जाओ, आ जाओ! उत्साह दे रहे हैं, भागे आओ! अजीब सीधे-सादे लोग हैं – सोचने लगा मन में; इनको तो सोचना चाहिए कि मैं मर ही जाऊँ, तो इनको धन भी मिल जाए और जमीन भी न जाए। मगर वे बड़ा उत्साह दे रहे हैं कि भागे आओ!
उसने आखिरी दम लगा दी – भागा – भागा…। सूरज डूबने लगा; इधर सूरज डूब रहा है, उधर वो भाग रहा है…। सूरज डूबते – डूबते बस जाकर गिर पड़ा। कुछ पाँच – सात गज की दूरी रह गई है, घिसटने लगा।
अभी सूरज की आखिरी कोर क्षितिज पर रह गई. घिसटने लगा। और जब उसका हाथ उस जमीन के टुकड़े पर पहुँचा, जहाँ से भागा था, उस खूँटी पर, सूरज डूब गया। वहाँ सूरज डूबा, यहाँ यह आदमी भी मर गया। इतनी मेहनत कर ली! शायद हृदय कर दौरा पड़ गया। और सारे गाँव के सीधे – सादे लोग जिनको वह समझाता था, हँसने लगे और एक – दूसरे से बात करने लगे!
ये पागल आदमी आते ही जाते हैं! इस तरह के पागल लोग आते ही रहते हैं! यह कोई नई घटना न थी; अक्सर लोग आ जाते थे खबरें सुनकर, और इसी तरह मरते थे। यह कोई अपवाद नहीं था; यही नियम था। अब तक ऐसा एक भी आदमी नहीं आया था, जो घेरकर जमीन का मालिक बन पाया हो।
यह कहानी तुम्हारी कहानी है, तुम्हारी जिंदगी की कहानी है, सबकी जिंदगी की कहानी है। यही तो तुम कर रहे हो – दौड़ रहे हो कि कितनी जमीन घेर लें! बारह भी बज जाते हैं, दोपहर भी आ जाती है, लौटने का भी समय होने लगता है – मगर थोड़ा और दौड़ लें! न भूख की फिक्र है, न प्यास की फिक्र है।
जीने का समय कहाँ है; पहले जमीन घेर लें, पहले जितोड़ी भर लें, पहले बैंक में रुपया इकट्ठा हो जाए, फिर जी लेंगे, फिर बाद में जी लेंगे, एक ही दिन का तो मामला है। और कभी कोई नहीं जी पाता। गरीब मर जाते हैं भूखे; अमीर मर जाते हैं भूखे, कभी कोई नहीं जी पाता। जीने के लिए थोड़ी विश्रांति चाहिए। जीने के लिए थोड़ी समझ चाहिए। जीवन मुफ्त नहीं मिलता – बोध चाहिए।
– ओशो
[ मृत्योर्मा अमृतं गमय ]

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માતૃદિન


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તું છે દરિયો
ને હું છું હોડી…!
મા, મને કેમ
ખબર પડી મોડી…?

આખું આકાશ
એમાં ઓછું પડે,
એવી વિરાટ
તારી ઝોળી…!

મા, મને કેમ
ખબર પડી મોડી…?

તડકાઓ પોતે
તેં ઝીલી લીધા,
ને છાંયડાઓ
આપ્યા અપાર,
એકડો ઘૂંટાવીને
પાટી પર દઈ દીધો
ઈશ્વર હોવાનો આધાર…

અજવાળાં અમને
ઓવારી દીધાં ને,
કાળી ડિબાંગ
રાત ઓઢી…!

મા, મને કેમ
ખબર પડી મોડી…?

વાર્તાઓ કહીને
વાવેતર કીધાં,
અને લાગણીઓ
સીંચી ઉછેર,
ખોળામાં પાથરી
હિમાલયની હૂંફ,
ને હાલરડે
સપનાંની સેર,
રાતભર જાગી
જાગીને કરી તેં
ઈશ્વર સાથે જીભાજોડી…

મા,
મને કેમ
ખબર પડી મોડી…?

દરેક દિવસ માતૃદિવસ. માતૃત્વ ને વંદન.

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મીઠા મધુ ને મીઠા મેહુલા રે લોલ
એથી મીઠી તે મોરી માત રે
જનનીની જોડ સખી! નહી જડે રે લોલ.

પ્રભુના એ પ્રેમતણી પૂતળી રે લોલ,
જગથી જૂદેરી એની જાત રે … જનનીની

અમીની ભરેલ એની આંખડી રે લોલ,
વ્હાલનાં ભરેલાં એના વેણ રે … જનનીની

હાથ ગૂંથેલ એના હીરના રે લોલ,
હૈયું હેમંત કેરી હેલ રે … જનનીની

દેવોને દૂધ એનાં દોહ્યલા રે લોલ,
શશીએ સિંચેલ એની સોડ્ય રે … જનનીની

જગનો આધાર એની આંગળી રે લોલ,
કાળજામાં કૈંક ભર્યા કોડ રે … જનનીની

ચિત્તડું ચડેલ એનું ચાકડે રે લોલ,
પળના બાંધેલ એના પ્રાણ રે … જનનીની

મૂંગી આશિષ ઉરે મલકતી રે લોલ,
લેતા ખૂટે ન એની લહાણ રે … જનનીની

ધરતી માતા એ હશે ધ્રૂજતી રે લોલ,
અચળા અચૂક એક માય રે … જનનીની

ગંગાનાં નીર તો વધે ઘટે રે લોલ,
સરખો એ પ્રેમનો પ્રવાહ રે … જનનીની

વરસે ઘડીક વ્યોમવાદળી રે લોલ,
માડીનો મેઘ બારે માસ રે … જનનીની

ચળતી ચંદાની દીસે ચાંદની રે લોલ,
એનો નહિ આથમે ઉજાસ રે
જનનીની જોડ સખી! નહી જડે રે લોલ.

– દામોદર ખુશાલદાસ બોટાદકર

🙏🌹Happy mother’s Day. .🌹.🙏jsp🙏🙏🙏

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दिल को छू लेने वाली कुछ पंक्तियां

तन्हा बैठा था एक दिन मैं अपने मकान में,
चिड़िया बना रही थी घोंसला रोशनदान में।

पल भर में आती पल भर में जाती थी वो।
छोटे छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो।

बना रही थी वो अपना घर एक न्यारा,
कोई तिनका था, ना ईंट उसकी कोई गारा।

कुछ दिन बाद….
मौसम बदला, हवा के झोंके आने लगे,
नन्हे से दो बच्चे घोंसले में चहचहाने लगे।

पाल रही थी चिड़िया उन्हे,
पंख निकल रहे थे दोनों के
पैरों पर करती थी खड़ा उन्हे।

देखता था मैं हर रोज उन्हें
जज्बात मेरे उनसे कुछ जुड़ गए ,
पंख निकलने पर दोनों बच्चे
मां को छोड़ अकेला उड़ गए।

चिड़िया से पूछा मैंने..
तेरे बच्चे तुझे अकेला क्यों छोड़ गए,
तू तो थी मां उनकी
फिर ये रिश्ता क्यों तोड़ गए..

चिड़िया बोली…
परिन्दे और इंसान के बच्चे में यही तो फर्क है,
इंसान का बच्चा माया के दरिया में गर्क है।

इंसान का बच्चा…..
पैदा होते ही अपना हक जमाता है,
न मिलने पर वो मां बाप को
कोर्ट कचहरी तक ले जाता है।

मैंने बच्चों को जन्म दिया
पर करता कोई मुझे याद नहीं,
मेरे बच्चे क्यों रहेंगे साथ मेरे
क्योंकि मेरी कोई जायदाद नहीं

🙏🙏

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कल मातृ दिवस 2017 – रिश्ते तो बहुत हैं, मां सिर्फ एक है – मातृ दिवस विशेष : मां के लिए बस एक दिन ? – मां से बढ़कर कुछ नहीं है दुनिया में!! Mother’s Day – Sunday, May 8. 2017 :
(Please also see English version, below)

‘जननी नी जोड़ सखी ! नहीं जड़े रे लोल’ के कवि दामोदर बोटादकर ने क्या खूब लिखा है माँ के लिए !!! भारतीय संस्कृति में माँ को ‘मातृदेवो भव:’ कहकर इश्वर का दर्ज्जा दिया गया है। माँ शब्द बोलते ही पुरे विश्व की ख़ुशी हमे मिल गई हो ऐसा प्रतीत होता है। माँ शब्द में एक ऐसी मिठास और आत्मीयता होती है, जो अन्य किसी शब्दों में नहीं होती।
आज ना जाने कितनी माताएं, अपने बच्चों के होते हुए भी वृद्धाश्रम में तन्हा जीवन व्यतीत कर रही हैं. कितनों को उनके बच्चे सड़क पर असहाय छोड़कर चले जाते हैं. वो भी सिर्फ इसीलिए क्योंकि उन्हें अपनी मां ही अपनी स्वतंत्रता और पारिवारिक खुशहाली की राह में बाधा लगने लगती है.

एक माँ को सम्मान और आदर देने के लिये हर वर्ष एक वार्षिक कार्यक्रम के रुप में मातृदिवस को मनाया जाता है। ये आधुनिक समय का उत्सव है जिसकी उत्पत्ति उत्तरी अमेरिका में माताओं को सम्मान देने के लिये हुई थी। बच्चों से माँ के रिश्तों में प्रगाढ़ता बढ़ाने के साथ ही मातृत्व को सलाम करने के लिये इसे मनाया जाता है। समाज में माँ का प्रभाव बढ़ाने के लिये इसे मनाया जाता है। पूरे विश्व के विभिन्न देशों में अलग-अलग तारीखों पर हर वर्ष मातृ दिवस को मनाया जाता है। भारत में, इसे हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है।

मां, यह वह शब्द है जो किसी भी व्यक्ति के जीवन में सबसे ज्यादा अहमियत रखता है. ईश्वर सभी जगह उपस्थित नहीं रह सकता इसीलिए उसने धरती पर मां का स्वरूप विकसित किया, जो हर परेशानी और हर मुश्किल घड़ी में अपने बच्चों का साथ देती है, उन्हें दुनियां के हर गम से बचाती है. बच्चा जब जन्म लेता है तो सबसे पहले वह मां बोलना ही सीखता है. मां ही उसकी सबसे पहली दोस्त बनती है, जो उसके साथ खेलती भी है और उसे सही-गलत जैसी बातों से भी अवगत करवाती है. मां के रूप में बच्चे को निःस्वार्थ प्रेम और त्याग की प्राप्ति होती है तो वहीं मां बनना किसी भी महिला को पूर्णता प्रदान करता है.
आज मदर्स डे है. यह दिन बच्चों के जीवन में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण इंसान, मां को समर्पित है. भले ही यह दिन भी अन्य दिनों की तरह विदेशी संस्कृति की ही देन है. लेकिन आज जब सभी की जीवनशैली इतनी ज्यादा व्यस्त हो चुकी है कि उनके पास अपनी मां के लिए ही समय नहीं बचता तो ऐसे में हम एक दिन तो अपनी मां के नाम कर ही सकते हैं.

‘मां की महिमा क्या गाऊं, मां की कहानी क्या सुनाऊं, हे मां तू है महान, तूने हमको जन्म दिया, मिले हर जन्म में तेरी को,मां तुझे सलाम’।

जिस मां ने खुद भूखे रहकर, अपनी सभी इच्छाओं को नजरअंदाज कर अपने बच्चे की हर कमी को पूरा किया आज वही अपने बच्चे के लिए बोझ बन गई है. दुनियां की चकाचौंध में मशगूल व्यक्ति अपनी मां को पीछे छोड़कर सफल जीवन की कामना करता है, जो किसी भी रूप में संभव नहीं है.

क्यों न हम सिर्फ ‘एक ही दिन’ को मां के लिए महत्वपूर्ण न बनाकर ‘हर क्षण’ को सदियों तक मां के लिए महत्वपूर्ण बनाएं। उसे हर क्षण यह अहसास दिलाएं की वह हमारे जीवन में एक ‘सम्माननीय पद’ पर आसीन हैं, ताकि हर दिन एक ममता दिवस के रूप में यादगार बन जाएं।

Happy Mother’s Day !
Mother’s Day is a modern celebration honouring one’s own mother, as well as motherhood, maternal bonds, and the influence of mothers in society. It is celebrated on various days in many parts of the world.
The celebration of Mother’s Day began in the United States in the early 20th century; it is not related to the many celebrations of mothers and motherhood that have occurred throughout the world over thousands of years, such as the Greek cult to Cybele, the Roman festival of Hilaria, or the Christian Mothering Sunday celebration (originally a celebration of the mother church, not motherhood). Despite this, in some countries Mother’s Day has become synonymous with these older traditions.

स्वस्तिक ज्योतिष केंद्र

Posted in मातृदेवो भव:

वेदों में कहा गया है कि मातृ देवो भव: पितृ देवो भव: गुरु देवो भव:
अतिथि देवो भव:। हमारे शास्त्रों में सूत्र संकेतों के रूप में हैं जिन्हें
समझने की कोशिश करनी चाहिए। अभिवादन
शीलस्य नित्य वृद्धोपसेविन:।चत्वारि तस्य
वर्धते,आयुर्विद्या यशो बलं॥अर्थात मात्र प्रणाम करने से, सदाचार के
पालन से एवं नित्य वृद्धों की सेवा करने से आयु, विद्या,
यश और बल की वृद्धि होती है। भगवान
श्रीगणेश अपने माता-पिता में त्रैलोक समाहित मान कर
उनका पूजन और प्रदक्षिणा (चक्कर लगाना) करने से प्रथम
पूज्यनीय बन गए। यदि हम जीवों के
प्रति परोपकार की भावना रखें
तो अपनी कुंडली में
ग्रहों की रुष्टता को न्यूनतम कर सकते हैं। नवग्रह
इस चराचर जगत में पदार्थ, वनस्पति, तत्व, पशु-
पक्षी इत्यादि में अपना वास रखते हैं।
इसी तरह ऋषियों ने पारिवारिक सदस्यों और आसपास के
लोगों में भी ग्रहों का प्रतिनिधित्व बताया है। माता-
पिता दोनों के संयोग से किसी जातक का जन्म होता है
इसलिए सूर्य आत्मा के साथ-साथ पिता का प्रतिनिधित्व करता है और
चंद्रमा मन के साथ-साथ मां का प्रतिनिधित्व करता है। योग शास्त्र में
दाहिने स्वर को सूर्य और बाएं को चंद्रमा कहा गया है। श्वास
ही जीवन है और इसको देने वाले सूर्य
और चंद्र हैं। योग ने इस श्वास को प्राण कहा है। आजकल
ज्योतिष में तरह-तरह के उपाय प्रचलित हैं परन्तु व्यक्ति के
आचरण संबंधी और जीव के निकट
संबंधियों से जो उपाय शास्त्रों में वर्णित हैं कदाचित वे चलन में
नहीं रह गए हैं। यदि कुंडली में सूर्य
अशुभ स्थिति में हो, नीच का हो, पीड़ित
हो तो कर्मविपाक सिद्धांत के अनुसार यह माना जाता है कि पिता रुष्ट
रहे होंगे तभी जातक सूर्य की अशुभ
स्थिति में जन्म पाता है। सूर्य के इस अनिष्ट परिहार के लिए इस
जन्म में जातक को अपने
पिता की सेवा करनी चाहिए और प्रात: उनके
चरण स्पर्श करे और अन्य सांसारिक क्रियाओं से उन्हें प्रसन्न
रखें तो सूर्य अपना अशुभ फल कम कर सकते हैं। यदि सूर्य ग्रह
रुष्ट हैं तो पिता को प्रसन्न करें, चंद्र रुष्ट है तो माता को प्रसन्न
करें, मंगल रुष्ट है तो भाई-बहन को प्रसन्न करें, बुध रुष्ट है
तो मामा और बंधुओं को प्रसन्न करें, गुरु रुष्ट है तो गुरुजन और
वृद्धों को प्रसन्न करें, शुक्र रुष्ट है
तो पत्नी को प्रसन्न करें, शनि रुष्ट है तो दास-
दासी को प्रसन्न करें और यदि केतू रुष्ट है तो कुष्ठ
रोगी को प्रसन्न करें। ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार यदि हम
प्रेम-सत्कार और आदर का भाव रख कर ग्रहों के प्रति व्यवहार
करें तो रुष्ट ग्रह की नाराजगी को शांत
किया जा सकता है।

विकरण प्रकाश राइसोनय

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માતા-પિતાની સેવાથી મળતું પુણ્ય – માં બાપ ને ભૂલશો નહિ


માતા-પિતાની સેવાથી મળતું પુણ્ય – માં બાપ ને ભૂલશો નહિ

પાંચ યજ્ઞકર્મોમાંનું અતિ મહત્વનું યજ્ઞકર્મ માતા-પિતાનું પૂજન અને રોજ પ્રણામ કરવાં, તેમજ જે માતા-પિતાની સેવા કરે છે, તેમને અનેકગણું પુણ્ય મળે છે.

મહર્ષિ વેદવ્યાસને તેમના શિષ્યોએ પ્રશ્ન કર્યો કે એવું કર્યું કર્મ છે જેનાથી વધુ પુણ્ય મળતું હોય તથા મનુષ્યલોકમાં વસતા બધાય વર્ણના લોકો સહેલાઇથી જે મેળવી શકે, નાના મોટા બધાય લોકો જે સાધ્ય કરી શકે?તેનો ઉત્તર આપતાં વ્યાસે કહ્યું, એવાં પાંચ યજ્ઞકર્મો છે. પરંતુ તેમાંનું અતિ મહત્વનું યજ્ઞકર્મ માતા-પિતાનું પૂજન છે અને જે પુરુષ માતા-પિતા પ્રત્યે પૂજ્યભાવ રાખી તેમની સેવા કરે છે, તેમને રોજ પ્રણામ કરે છે તેમને અનેકગણું પુણ્ય મળે છે. પરંતુ માતા-પિતાની જે અવમાનના કરે છે, વૃદ્ધાવસ્થામાં તેમની ઉપેક્ષા કરે છે, તેમની ચાકરી નથી કરતા તે અધ:પતિત થઇ અવગતિ પામે છે અને તેનું ર્દષ્ટાંત આપતાં વ્યાસે કહ્યું.

નરોત્તમ બ્રાહ્નણને થયેલો અહંકાર: પ્રાચીનકાળમાં નરોત્તમ નામનો એક બ્રાહ્નણ હતો. તે પોતાનાં માતા-પિતાનો અનાદર કરી તીર્થયાત્રાએ ગયો. બધાં તીર્થોમાં સ્નાન કરી પુણ્ય કમાયો તેથી તેના મનમાં અહંકાર આવ્યો કે તેનાં જેવાં પુણ્યકર્મ કરનાર કોઇ નથી. એક વખત હંમેશની જેમ તે તેનું ઉપવસ્ત્ર સૂકવતો હતો ત્યારે તેના ઉપર એક બગલો ચરકયો અને ક્રોધે ભરાઇ તેણે બગલાની સામે જોયું તો બગલો બળીને ભસ્મ થઇ ગયો. તે બગલાનો નાશ થયેલો જોઇ બ્રાહ્નણ ગભરાઇ ગયો. તેનું મન તેને ખાવા લાગ્યું. તેનાથી પાપ થઇ ગયું છે તેથી ખૂબ વ્યથિત થયો. એવામાં આકાશવાણી થઇ અને તેમાં કહ્યું કે ‘તું એક પરમ ધાર્મિક ‘મૂક’ નામના ચાંડાલને ત્યાં જા, તે તેનાં માતા-પિતાની ખૂબ ભાવથી સેવાચાકરી કરે છે અને તેની આ સેવાથી પ્રસન્ન થઇ વિષ્ણુ ભગવાન એક બ્રાહ્નણના રૂપમાં ત્યાં રહે છે. તે તારંુ દુ:ખ દૂર કરશે.’

ચાંડાલના ઘરે બ્રાહ્નણનું આવવું:
આ બ્રાહ્નણ ‘મૂક’ ચાંડાલનું ઘર પૂછતો પૂછતો તેના ઘરે પહોંચ્યો. બ્રાહ્નણે તેને કહ્યું કે, હું તમારી પાસે પાપમુક્તિનો રાહ જાણવા આવ્યો છું. તેથી મને હિતકારી ઉપદેશ આપો. ચાંડાલે કહ્યું, ‘હમણાં તો હું મારાં માતા-પિતાની સેવામાં વ્યસ્ત છું. તમે થોડો વખત રાહ જુઓ પછી હું નવરો પડીશ ત્યારે તમારો અતિથિસત્કાર કરીશ.’ પેલો બ્રાહ્નણ ગુસ્સે થઇ કહેવા લાગ્યો. ‘આંગણે આવેલા અતિથિ બ્રાહ્નણનું આ અપમાન છે. મારા સ્વાગત કરવાના કામથી એવું તે કર્યું મોટું કામ છે કે તું મારી ઉપેક્ષા કરે છે?’ ચાંડાલે કહ્યું, ‘તમે નકામા ગુસ્સે થાવ છો. આકાશવાણી સાંભળી તમે મારા ઘરે આવ્યા છો તે હું જાણું છું. હું કોઇ બગલો નથી કે બળીને ભસ્મ થઇ જઇશ. હું મારાં માતા-પિતાની સેવા પૂરી ન કરી લઉં ત્યાં સુધી તમારે રાહ જોવી પડશે. છતાં તમારે રાહ જોવી નહોય તો તમે પેલી પતિવ્રતા સ્ત્રી પાસે જાઓ એ તમને તમારું હિતકર્મ સમજાવશે.’

બ્રાહ્નણને થયેલા જુદા જુદા અનુભવ: પેલા ચાંડાલને ત્યાં બ્રાહ્નણ રૂપે રહેતા વિષ્ણુ ભગવાને તે બ્રાહ્નણને કહ્યું, ચાલો, હું તમને તે પતિવ્રતા સ્ત્રીનું ઘર દેખાડું, પદ્મપુરાણમાં પતિવ્રતા સ્ત્રીનું વર્ણન છે. તે સ્ત્રીએ બ્રાહ્નણને કહ્યું કે, હમણાં હું મારા પતિની સેવામાં વ્યસ્ત છું. તમારે રાહ જોવી ન હોય તો તુલાધાર વૈશ્ય પાસે જાવ. તે સત્યનું આચરણ કરી પ્રામાણિકપણે તેનો ધંધો કરે છે.તુલાધાર વૈશ્યે તે બ્રાહ્નણને પોતે ધંધાનું કાર્ય પૂરું કરી લે ત્યાં સુધી રાહ જોવા કહ્યું. નહીં તો તેણે અદ્રોહક નામના જિતેિન્દ્રય પાસે જવા કહ્યું.

અદ્રોહકે આપેલી શિખામણ: બ્રાહ્નણ વિચાર કરતો હતો કે આ બધાને મારી બધી વાતની જાણ કેવી રીતે થઇ? ત્યારે અદ્રોહકે તેને સમજ આપતાં કહ્યું. ‘તમારાં માતા-પિતા તમારા દ્વારા આદર અને સન્માન પામ્યાં નથી. તેથી તમે તેમની પાસે જઇ સેવા કરો. ત્યાર પછી જ તમને સાયુજય મુક્તિ મળશે. બ્રાહ્નણના મનમાં ચાંડાલ માટે થયેલી શંકા નિર્મૂળ કરતાં અદ્રોહકે કહ્યું, મહત્વ જાતિનું નથી, મહત્વ છે તેણે અનન્ય ભક્તિથી કરેલી માતા-પિતાની સેવાનું. અને તે સેવાથી જ તો પ્રસન્ન થઇ સ્વયં ભગવાન વિષ્ણુ તે ચાંડાલને ત્યાં બ્રાહ્નણ રૂપે રહ્યા.

‘પિતાની આગલી અવસ્થામાં તે સમર્થ હોવાથી અને પુત્ર અસમર્થ હોવાથી પુત્રનું પ્યારથી લાલન-પાલન કરે છે. ઉત્તરાવસ્થામાં માતા-પિતા અશકત તથા અસમર્થ છે, પુત્ર સશકત અને સમર્થ છે તેથી તેણે માતા-પિતાની સેવાચાકરી કરવી જોઇએ. અને તેનું પુણ્ય કોઇપણ પ્રકારની સેવાપૂજા યા તીર્થયાત્રા કરતાં વિશેષ છે.’ નરોત્તમ બ્રાહ્નણ ઘરે પાછો ફર્યો. માતા-પિતાની માફી માગી તેમની સેવામાં શેષ આયુષ્ય વ્યતિત કર્યું.

આપણી શ્રેષ્ઠ પરંપરાની અવમાનના: તૈત્તિરીય ઉપનિષદોમાં પોતાનો અભ્યાસ પૂરો કરી ગૃહસ્થાશ્રમમાં પ્રવેશ કરતાં સ્નાતકો માટેના દીક્ષાન્ત સમારોહમાં આદેશ છે કે માતૃદેવો ભવ, પિતૃદેવો ભવ… પરંતુ કેટલાકનું મંતવ્ય છે કે માતા-પિતાને નમસ્કાર કરવા જેવું કાંઇ હોય તો નમસ્કાર કરીએને? હકીકતમાં માતા-પિતાને નમસ્કાર જોઇતા નથી, પરંતુ સંતાને કૃતઘ્નતા (નગુણા)ના પાપમાંથી બચવા માટે તેમનું પૂજન, સેવાચાકરી કરવી આવશ્યક છે.

પાશ્વાત્યોનો આભાર: આપણે આપણા હજારો વર્ષોના પરંપરાગત સંસ્કારો ભૂલી ગયા છીએ, એ શરમજનક છે. પરંતુ પાશ્વાત્ય લોકોનો આભાર માનીએ કે ફાધર્સ ડે, મધર્સ ડે વગેરે ઊજવી પાશ્વાત્ય રંગોમાં ડૂબેલી આપણી યુવાપેઢીને તેમનાં ફરજનો સભાનતા તરફનો આ અંગુલીનિર્દેશ છે! કાશ યુવાપેઢી આ સમજે અને માતા-પિતા પ્રત્યેના આપણા સંસ્કારો પુનર્જીવિત કરે અને પુરાણે સમજાવેલ માતા-પિતાની સેવાનું હાર્દ સમજે.

આપણાં પુરાણો, પરમાનંદ ગાંધી અને દિવ્યભાસ્કર

Posted in मातृदेवो भव:

बर्तनों की आवाज़ देर रात तक आ रही थी… रसोई का नल चल रहा है माँ रसोई में है….


बर्तनों की आवाज़ देर रात तक आ रही थी…

रसोई का नल चल रहा है

माँ रसोई में है….

 

तीनों बहुऐं अपने-अपने कमरे में सोने जा चुकी….

माँ रसोई में है…

 

माँ का काम बकाया रह गया था

पर काम तो सबका था

पर माँ तो अब भी सबका काम अपना ही मानती है….

 

दूध गर्म करके

ठण्ड़ा करके

जावण देना है…

ताकि सुबह बेटों को ताजा दही मिल सके…

 

सिंक में रखे बर्तन माँ को कचोटते हैं

चाहे तारीख बदल जाये, सिंक साफ होना चाहिये….

 

बर्तनों की आवाज़ से

बहू-बेटों की नींद खराब हो रही है

बड़ी बहू ने बड़े बेटे से कहा

“तुम्हारी माँ को नींद नहीं आती क्या? ना खुद सोती है और ना ही हमें सोने देती है”

 

मंझली ने मंझले बेटे से कहा ” अब देखना सुबह चार बजे फिर खटर-पटर चालू हो जायेगी, तुम्हारी माँ को चैन नहीं है क्या?”

 

छोटी ने छोटे बेटे से कहा ” प्लीज़ जाकर ये ढ़ोंग बन्द करवाओ कि रात को सिंक खाली रहना चाहिये”

 

माँ अब तक बर्तन माँज चुकी थी ।

झुकी कमर

कठोर हथेलियां

लटकी सी त्वचा

जोड़ों में तकलीफ

आँख में पका मोतियाबिन्द

माथे पर टपकता पसीना

पैरों में उम्र की लड़खडाहट

मगर….

दूध का गर्म पतीला

वो आज भी अपने पल्लू  से उठा लेती है

और…

उसकी अंगुलियां जलती नहीं है, क्यों कि

वो माँ है ।

 

दूध ठण्ड़ा हो चुका…

जावण भी लग चुका…

घड़ी की सुईयां थक गई…

मगर…

माँ ने फ्रिज में से भिण्ड़ी निकाल ली

और…

काटने लगी

उसको नींद नहीं आती है, क्यों कि

वो माँ है ।

 

कभी-कभी सोचता हूं कि माँ जैसे विषय पर लिखना, बोलना, बनाना, बताना, जताना क़ानूनन  बन्द होना चाहिये….

क्यों कि यह विषय निर्विवाद है

क्यों कि यह रिश्ता स्वयं कसौटी है ।

 

रात के बारह बजे सुबह की भिण्ड़ी कट गई…

अचानक याद आया कि गोली तो ली ही नहीं…

बिस्तर पर तकिये के नीचे रखी थैली निकाली..

मूनलाईट की रोशनी में

गोली के रंग के हिसाब से मुंह में रखी और

गटक कर पानी पी लिया…

 

बगल में एक नींद ले चुके बाबूजी ने कहा ” आ गई”

“हाँ, आज तो कोई काम ही नहीं था”

माँ ने जवाब दिया ।

 

और…

लेट गई, कल की चिन्ता में

पता नहीं नींद आती होगी या नहीं पर सुबह वो थकान रहित होती हैं, क्यों कि

वो माँ है ।

 

सुबह का अलार्म बाद में बजता है

माँ की नींद पहले खुलती है

याद नहीं कि कभी भरी सर्दियों में भी

माँ गर्म पानी से नहायी हो

उन्हे सर्दी नहीं लगती, क्यों कि

वो माँ है ।

 

अखबार पढ़ती नहीं, मगर उठा कर लाती है

चाय पीती नहीं, मगर बना कर लाती है

जल्दी खाना खाती नहीं, मगर बना देती है….

क्यों कि वो माँ है ।

 

माँ पर बात जीवनभर खत्म ना होगी..

शेष अगली बार…

 

और हाँ, अगर पढ़ते पढ़ते आँखों में आँसु आ जाये तो कृपया खुलकर रोइये और आंसू पोछ कर एक बार अपनी माँ को जादू की झप्पी जरूर दीजिये,

क्योंकि वो किसी और की नही आपकी ही माँ है🙂😌 माँ।।