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इन्द्राक्षी कवच एवं स्तोत्र, प्रयोग सम्पूर्ण विधीIndrakshi stotra in fatal disease….


इन्द्राक्षी कवच एवं स्तोत्र, प्रयोग सम्पूर्ण विधी
Indrakshi stotra in fatal disease….

इन्द्राक्षी-कवच को सिद्ध करने का सर्वोत्तम समय चैत्र मास का नवरात्र या आश्विन मास का नवरात्र है। नवरात्रों के समय प्रतिदिन व्रत रखकर ताम्रपत्र पर अंकित इन्द्राक्षी-यंत्र का विधिवत पूजन करके विनियोग-न्यास-ध्यान सहित इन्द्राक्षी-कवच-स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। सूर्यग्रहण या चन्द्र ग्रहण दौरान भी सिद्धिकरण प्रक्रिया सम्पादित करना चाहिये।
फिर इन्द्राक्षी देवी के मन्त्र { ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं इन्द्राक्ष्ये [ये के स्थान पर ‘ यै ‘ का प्रयोग करें] नम:} का १०८ रुद्राक्ष के दानों की एक माला जप करना चाहिये! नावें दिन नवमी को १०१ इन्द्राक्षी देवी के मन्त्र से हवं करके मन्त्र सिद्ध कर लेना चाहिये! हवं में आहुति देते समय इन्द्राक्षी देवी के मन्त्र के अंत में “स्वाहा” शब्द और जोड़ लेना चाहिये!
प्रतिदिन पाठ करनेवाले सज्जन को ताम्रपत्र अंकित इन्द्राक्षी-यंत्र का पूजन करके विनियोग-न्यास-ध्यान सहित इन्द्राक्षी-कवच-स्तोत्र का पाठ करना चाहिये! फिर इन्द्राक्षी देवी के मन्त्र से एक आहुति दे देनी चाहिये।

👉 विनियोग और न्यास की विधि
विनियोग का रथ है—मन्त्र-जप के प्रयोजन का निर्देश! विनियोग करते समय दाहिने हाथ की हथेली में जल लेकर { ॐ अस्य श्री इन्द्राक्षी स्तोत्रम महामंत्रस्य शची पुरन्दर ऋषि :! अनुष्टुपछन्द:! इन्द्राक्षीदुर्गा देवता! लक्ष्मीर्बीजम ! भुवनेश्वरी शक्ति:, भवानीति कीलकम, मम इन्द्राक्षीप्रसाद सिद्धयर्ये जपे विनियोग! } यह विनियोग है! इसका पाठ करके मनोकामना को कहते हुए जल को पृथ्वी पर छोड़ देना चाहिये।

👉 करन्यास
करन्यास में हाथ की विभिन्न अँगुलियों, हथेलियों और हाथों के पृष्ठभाग में मन्त्रों का न्यास [स्थापन] किया जाता है! इसी प्रकार अंगन्यास में हृदयादि अंगों में मन्त्रों की स्थापना होती है! मन्त्रों को चेतन और मूर्तिमान मानकर उन-उन अंगों के नाम लेकर उनपर उन मंत्रमय देवताओं का ही स्पर्श और वंदन किया जाता है! ऐसा करने से पाठ या जप करने वाला स्वयं मंत्रमय होकर मन्त्र देवताओं द्वारा सर्वथा सुरक्षित हो जाता है! उसके बाहर-भीतर की शुद्धि होती है, उसे दिव्य बल प्राप्त होता है और साधना निर्विघ्नता पूर्वक पूर्ण तथा परम लाभदायक होता है!
ॐ इन्द्राक्षीत्यन्गुष्ठाभ्यां नम:!
[दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अन्गूँठों का स्पर्श]
ॐ महालक्ष्मीरिति तर्जनीभ्यां नम:!
[दोनों हाथों के अंगूठों से तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श!]
ॐ माहेश्वरिति मध्यमाभ्यां नम:!
[ अंगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श]
ॐ अम्बुजाक्षीत्यनामिकाभ्यां नम:!
[अनामिका अँगुलियों का स्पर्श]
ॐ कात्यायनीति कनिष्ठिकाभ्यां नम:!
[ कनिष्ठिका अँगुलियों का स्पर्श]
ॐ कौमारिती करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:!
[हथेलियों और उनके पृष्ठ भागों का परस्पर स्पर्श ]

👉 हृदयादिन्यास
इसमें दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से “ह्रदय” आदि अंगों का स्पर्श किया जाता है!
ॐ इन्द्राक्षीति हृदयाय नम:!
[दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से ह्रदय का स्पर्श]
ॐ महालक्ष्मीरिती शिरसे स्वाहा!
[सिरका स्पर्श]
ॐ माहेश्वरीती शिखायै वषट!
[ शिका का स्पर्श]
ॐ अम्बुजाक्षीति कवचाय हुम!
[ दाहिने हाथ की अँगुलियों से बायें कंधे और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिने कंधे का साथ ही स्पर्श]
ॐ कात्यायनीति नेत्रत्रयाय वौषट !
[ दाहिने हाथ की अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्य भाग का स्पर्श]
ॐ कौमारीत्यस्त्राय फट !
[ यह वाक्य पढ़ कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर बायीं ओर से पीछे की ओर काकर दाहिनी ओरसे आगे की ओर ले आये और तर्जनी तथा मध्यमा अन्गुलियोंन से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजायें!]
विनियोग, करन्यास और हृदयादिन्यास करने के बाद भगवती इन्द्राक्षी का ध्यान करना चाहिये।

👉 इद्राक्षी-यंत्र
यंत्र लिखना——-यंत्र को विभूति में लिखाकर निम्नलिखित प्रकार से जप करें!——
ॐ अस्य श्री इन्द्राक्षी स्तोत्र महामंत्रस्य शचीपुरन्दर ऋषि:! इन्द्राक्षी दुर्गा देवता! लक्ष्मीर्बीजम ! भुवनेश्वरी शक्ति:, भवानीति कीलकम. मम इन्द्राक्षी प्रसाद सिद्धयर्ये जपे विनियोग!
ॐ इन्द्राक्षीत्यन्गुष्ठाभ्यां नम:! ॐ महालक्ष्मीरिति मध्यमाभ्यां नम:! ॐ माहेश्वरीति शिखायै वषट! ॐ अम्बुजाक्षीति कवच हुम! ॐ कात्यायनीति नेत्रायाय वौषट! ॐ कौमारीत्यस्त्राय फट ! ॐ भूर्भुवस्स्वरोमिति दिगबंध:।

👉 भगवती इन्द्राक्षी का ध्यान
नेत्राणां दशभिश्शतै: परिवृता मत्युग्र चर्माम्बरां
हेमाभां महतीं विलम्बित शिखामा मुक्तकेशान्विताम!
घन्टामण्डितपादपद्मयुगलां नागेन्द्रकुम्भस्तनी —
मिन्द्राक्षीं परिचिन्तयामि मनसा कल्पोक्त सिद्धि प्रदाम!!
इन्द्राक्षीं द्विभुजां देवीं पीतवस्त्रद्वयान्विताम !
वाम हस्ते वज्रधरां दक्षिणेन वर! प्रदाम!!
इन्द्रादिभि: सुरैर्वन्द्यां वन्दे शंकरवल्लभाम!
एवं ध्यात्वा महादेवीं जपत सर्वार्थसिद्धये !!
इन्द्राक्षीं नौमि युवतीं नानालंकारभूषिताम !
प्रसन्नवदनाम्भोमप्सरोगणसेविताम!!

👉 इंद्र उवाच
इन्द्राक्षी पूर्वत: पातु पात्वागनेय्यां दशेश्वरी!
कुमारी दक्षिणे पातु नैर्त्रित्यां [पश्चिम और दक्षिण कोण] पातु पार्वती!!
बाराही पश्चिमे पातु वायव्ये नारसिंह्यपि !
उदाच्यां कालरात्री मामैशान्यां सर्वशक्तय:!!
भैरव्यूर्ध्वे सदा पातु पात्वधो वैष्णवी सदा!
एवं दश दिशो रक्षेत सर्वांग भुवनेश्वरी !

नोट—–इन्द्राक्षीति हृदय नम: से अप्सरोगण से विताम तक दो बार जप करना चाहिये।

👉 इन्द्राक्षी-कवच
और भस्म – विधि यंत्र शेष
माता जी के आगे स्तोत्र का पढ़ना भी बहुत-२ शुभ कहा गया है! यदि कोई पूर्ण विधि नहीं कर सकता तो माता इन्द्राक्षी जी का नित्य स्तोत्र का पाठ ही करें।

👉 इन्द्राक्षी–स्तोत्र
इन्द्राक्षी नाम सा देवी देवतै: समुदाहृता!
गौरी शाकम्बरी देवी दुर्गानाम्नीति विश्रुता!!
कात्यायनी महादेवी चन्द्रघण्टा महातपा:!
सावित्री सा च गायत्री ब्राह्माणी ब्रह्मवादिनी!!
नारायणी भद्रकाली रूद्राणी कृष्णपिंगला !
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्री तपस्विनी !!
मेघस्वना सहस्नाक्षी विकटांगी जलोदरी!
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला!!
अजिता भाद्रदाsनन्दा रोगहत्रीं शिवप्रिया!
शिवदूती कराली च प्रत्यक्षपरमेश्वरी !!
इन्द्रानी इन्द्ररूपा च इन्द्रशक्ति: परायणा!
सदा सम्मोहिनी देवी सुन्दरी भुवनेश्वरी !!
एकाक्षरी परा ब्राह्मी स्थूलसूक्ष्मप्रवर्तिनी!
नित्यं सकलकल्याणी भोगमोक्षप्रदायनी !!
महिषासुरसन्हत्रीं चामुण्डा सप्तमातृका!
वाराही नारसिंही च भीमा भैरवनादिनी!!
श्रुति: स्म्रितिर्धृतिर्मेधा विद्या लक्ष्मी: सरस्वती !
अनंता विजयापर्णा मानस्तोकापराजिता!!
भवानी पार्वती दुर्गा हैमवत्यम्बिका शिवा!
शिवा भवानी रुद्राणी शंकरार्द्धशरीरिणी!!
ऐरावतगजारुढा वज्रहस्ता वरप्रदा!
भ्रामरी कन्चिकामाक्षी क्कणन्माणिक्यनूपुरा!!
त्रिपादभस्मप्रहरणा त्रिशिरा रक्तलोचना!
शिवा च सिवारूपा च शिवभक्तिपरायणा!!
मृत्युंजया महामाया सर्वरोगनिवारिणी !
ऐन्द्री देवी सदा कालं शान्तिमाशु करोतु मे!!
भस्मायुधाय विद्महे रक्तनेत्राय धीमहि तन्नो ज्वहर: प्रचोदयात!!
एतत स्तोत्रं जपेन्नित्यं सर्वज्याधिनीवारणम!
रणे राजभये शौर्ये सर्वत्र विजयी भवेत्!!
एतैर्नामपदैर्दिव्यै स्तुता शक्रेण धीमता!
सा मे परित्या दद्यात सर्वा पत्ति निवारिणी !!
ज्वरं भूतज्वरं चैव शीतोष्णज्वरमेव च!
ज्वरं ज्वरातिसारं च अतिसारज्वरं हर !!
शतमावर्तयेद यस्तु मुच्यते व्याधिबंधनात!
आवर्त्तयन सहस्त्रं तु लभते वांछितं फलम!!
एतत्स्तोत्रमिदं पुण्यं जपेदायुष्यवर्द्धनम!
विनाशाय च रोगाणापमृत्युहराय च!!
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके!
शरण्ये त्र्यंबके देवी नारायणी नमोsस्तु ते !!

यह बहुत ही शक्तिशाली स्तोत्र है अत: अतिगोपिनीय भी है। प्रत्येक मनुष्य को इस स्तोत्र का पाठ आवश्य करना चाहिये। जीवन में हर प्रकार के असाध्यरोग जैसे लकवा, कैंसर या HIV का नाश करने वाला और सर्व सिद्धि देनेवाला है। खुद करें या ब्राह्मणों द्वारा अनुष्ठान कऱाने पर सामान रूप से शुभफल प्रदाता है।
ॐ शिव पार्वती नमः

सत्य है शिव है सुन्दर है

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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र


सिद्ध कुंजिका स्तोत्र विशेष
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जीवन में सफलता की कुंजी है “सिद्ध कुंजिका”

दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारिक और तीव्र प्रभाव दिखाने वाला स्तोत्र है। जो लोग पूरी दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते वे केवल कुंजिका स्तोत्र का पाठ करेंगे तो उससे भी संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का फल मिल जाता है। जीवन में किसी भी प्रकार के अभाव, रोग, कष्ट, दुख, दारिद्रय और शत्रुओं का नाश करने वाले सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ नवरात्रि में अवश्य करना चाहिए। लेकिन इस स्तोत्र का पाठ करने में कुछ सावधानियां भी हैं, जिनका ध्यान रखा जाना आवश्यक है।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ की विधि
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कुंजिका स्तोत्र का पाठ वैसे तो किसी भी माह, दिन में किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि में यह अधिक प्रभावी होता है। कुंजिका स्तोत्र साधना भी होती है, लेकिन यहां हम इसकी सर्वमान्य विधि का वर्णन कर रहे हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन से नवमी तक प्रतिदिन इसका पाठ किया जाता है। इसलिए साधक प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर अपने पूजा स्थान को साफ करके लाल रंग के आसन पर बैठ जाए। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। सामान्य पूजन करें।

अपनी सुविधानुसार तेल या घी का दीपक लगाए

अपनी सुविधानुसार तेल या घी का दीपक लगाए और देवी को हलवे या मिष्ठान्न् का नैवेद्य लगाएं। इसके बाद अपने दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प, एक रुपए का सिक्का रखकर नवरात्रि के नौ दिन कुंजिका स्तोत्र का पाठ संयम-नियम से करने का संकल्प लें। यह जल भूमि पर छोड़कर पाठ प्रारंभ करें। यह संकल्प केवल पहले दिन लेना है। इसके बाद प्रतिदिन उसी समय पर पाठ करें।

कुंजिका स्तोत्र के लाभ
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धन लाभ👉 जिन लोगों को सदा धन का अभाव रहता हो। लगातार आर्थिक नुकसान हो रहा हो। बेवजह के कार्यों में धन खर्च हो रहा हो उन्हें कुंजिका स्तोत्र के पाठ से लाभ होता है। धन प्राप्ति के नए मार्ग खुलते हैं। धन संग्रहण बढ़ता है।

शत्रु मुक्ति👉 शत्रुओं से छुटकारा पाने और मुकदमों में जीत के लिए यह स्तोत्र किसी चमत्कार की तरह काम करता है। नवरात्रि के बाद भी इसका नियमित पाठ किया जाए तो जीवन में कभी शत्रु बाधा नहीं डालते। कोर्ट-कचहरी के मामलों में जीत हासिल होती है।

रोग मुक्ति👉 दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जीवन से रोगों का समूल नाश कर देते हैं। कुंजिका स्तोत्र के पाठ से न केवल गंभीर से गंभीर रोगों से मुक्ति मिलती है, बल्कि रोगों पर होने वाले खर्च से भी मुक्ति मिलती है।

कर्ज मुक्ति👉 यदि किसी व्यक्ति पर कर्ज चढ़ता जा रहा है। छोटी-छोटी जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है, तो कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ जल्द कर्ज मुक्ति करवाता है।

सुखद दांपत्य जीवन👉 दांपत्य जीवन में सुख-शांति के लिए कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ किया जाना चाहिए। आकर्षण प्रभाव बढ़ाने के लिए भी इसका पाठ किया जाता है।

इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक
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देवी दुर्गा की आराधना, साधना और सिद्धि के लिए तन, मन की पवित्रता होना अत्यंत आवश्यक है। साधना काल या नवरात्रि में इंद्रिय संयम रखना जरूरी है। बुरे कर्म, बुरी वाणी का प्रयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इससे विपरीत प्रभाव हो सकते हैं।

कुंजिका स्तोत्र का पाठ बुरी कामनाओं, किसी के मारण, उच्चाटन और किसी का बुरा करने के लिए नहीं करना चाहिए। इसका उल्टा प्रभाव पाठ करने वाले पर ही हो सकता है।

साधना काल में मांस, मदिरा का सेवन न करें। मैथुन के बारे में विचार भी मन में न लाएं।

श्री दुर्गा सप्तशती में से हम आपको एक एसा पाठ बता रहे हैं, जिसके करने से आपकी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। इस पाठ को करने के बाद आपको किसी अन्य पाठ की आवश्यकता नहीं होगी। यह पाठ है..सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्। समस्त बाधाओं को शांत करने, शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, करियर, विद्या, शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो सिद्धकुंजिकास्तोत्र का पाठ अवश्य करें। श्री दुर्गा सप्तशती में यह अध्याय सम्मिलित है। यदि समय कम है तो आप इसका पाठ करके भी श्रीदुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जैसा ही पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। नाम के अनुरूप यह सिद्ध कुंजिका है। जब किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा हो, समस्या का समाधान नहीं हो रहा हो, तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करिए। भगवती आपकी रक्षा करेंगी।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की महिमा
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भगवान शंकर कहते हैं कि सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है। केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है।

क्यों है सिद्ध
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इसके पाठ मात्र से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि उद्देश्यों की एक साथ पूर्ति हो जाती है। इसमें स्वर व्यंजन की ध्वनि है। योग और प्राणायाम है।

संक्षिप्त मंत्र
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ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ( सामान्य रूप से हम इस मंत्र का पाठ करते हैं लेकिन संपूर्ण मंत्र केवल सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में है)

संपूर्ण मंत्र यह है
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ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।

कैसे करें
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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए। प्रतिदिन की पूजा में इसको शामिल कर सकते हैं। लेकिन यदि अनुष्ठान के रूप में या किसी इच्छाप्राप्ति के लिए कर रहे हैं तो आपको कुछ सावधानी रखनी होंगी।
1👉 संकल्प: सिद्ध कुंजिका पढ़ने से पहले हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें। मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें।
2👉 जितने पाठ एक साथ ( 1, 2, 3, 5. 7. 11) कर सकें, उसका संकल्प करें। अनुष्ठान के दौरान माला समान रखें। कभी एक कभी दो कभी तीन न रखें।
3👉 सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान जमीन पर शयन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
4👉 प्रतिदिन अनार का भोग लगाएं। लाल पुष्प देवी भगवती को अर्पित करें।
5👉 सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में दशों महाविद्या, नौ देवियों की आराधना है।

सिद्धकुंजिका स्तोत्र के पाठ का समय
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👉 रात्रि 9 बजे करें तो अत्युत्तम।
2👉 रात को 9 से 11.30 बजे तक का समय रखें।

आसन
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लाल आसन पर बैठकर पाठ करें

दीपक
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घी का दीपक दायें तरफ और सरसो के तेल का दीपक बाएं तरफ रखें। अर्थात दोनों दीपक जलाएं

किस इच्छा के लिए कितने पाठ करने हैं
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1👉 विद्या प्राप्ति के लिए….पांच पाठ
( अक्षत लेकर अपने ऊपर से तीन बार घुमाकर किताबों में रख दें)
2👉 यश-कीर्ति के लिए…. पांच पाठ
( देवी को चढ़ाया हुआ लाल पुष्प लेकर सेफ आदि में रख लें)
3👉 धन प्राप्ति के लिए….9 पाठ
( सफेद तिल से अग्यारी करें)
4👉 मुकदमे से मुक्ति के लिए…सात पाठ
( पाठ के बाद एक नींबू काट दें। दो ही हिस्से हों ध्यान रखें। इनको बाहर अलग-अलग दिशा में फेंक दें)
5👉 ऋण मुक्ति के लिए….सात पाठ
( जौं की 21 आहुतियां देते हुए अग्यारी करें। जिसको पैसा देना हो या जिससे लेना हो, उसका बस ध्यान कर लें)
6👉 घर की सुख-शांति के लिए…तीन पाठ ( मीठा पान देवी को अर्पण करें)
7👉 स्वास्थ्यके लिए…तीन पाठ
( देवी को नींबू चढाएं और फिर उसका प्रयोग कर लें)
8👉 शत्रु से रक्षा के लिए…, 3, 7 या 11 पाठ ( लगातार पाठ करने से मुक्ति मिलेगी)
9👉 रोजगार के लिए…3,5, 7 और 11 ( एच्छिक) ( एक सुपारी देवी को चढाकर अपने पास रख लें)
10👉 सर्वबाधा शांति- तीन पाठ ( लोंग के तीन जोड़े अग्यारी पर चढ़ाएं या देवी जी के आगे तीन जोड़े लोंग के रखकर फिर उठा लें और खाने या चाय में प्रयोग कर लें)।

श्री सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्
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शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत् ॥१॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥२॥

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥३॥

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।

पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥४॥

अथ मन्त्रः
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ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
इति मन्त्रः॥
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥१॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥२॥

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ॥३॥

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ॥४॥

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥५॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥६॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥७॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे ॥
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥
इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती
संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्ण।

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सूर्योपासना के नियम


सूर्योपासना के नियम
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भगवान् सूर्य परमात्मा के ही प्रत्यक्ष स्वरूप है। ये आरोग्य के अधिष्ठातृ देवता है। मत्स्यपुराण (67971) का वचन है कि ‘आरोग्यं भास्करादिच्छेत्’ अर्थात् आरोग्य की कामना भगवान सूर्य से करनी चाहिए, क्योंकि इनकी उपासना करने से मनुष्य नीरोग रहता है। वेद के कथनानुसार परमात्मा की आँखों से सूर्य की उत्पत्ति मानी जाती है-चक्षोः सूर्योऽजायत । श्रीमद्भगवतगीता के कथनानुसार ये भगवान् की आँखें है-शशिसूर्यनेत्रम्। (11/16)

श्रीरामचरित मानस में भी कहा है-नयन दिवाकर कच घन माला (6/15/3) आँखों के सम्पूर्ण रोग सूर्य की उपासना से ठीक हो जाते हैं। भगवान सूर्य में जो प्रभा है, वह परमात्मा की ही प्रभा है वह परमात्मा की ही विभूति है प्रभास्मि शशिसूर्ययोः

(गीता 718)

यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् । यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ।।

(गीता 15/12)

भगवान् कहते हैं- ‘जो सूर्यगत तेज समस्त जगत् को प्रकाशित करता है तथा चन्द्रमा एवं अग्नि में है, उस तेज को तू मेरा ही तेज जान इससे सिद्ध होता है कि परमात्मा और सूर्य- ये दोनों अभिन्न हैं। सूर्य की उपासना करने वाला परमात्मा की ही उपासना करता है। अतः नियमपूर्वक सूर्योपासना करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। ऐसा करने से जीवन में अनेक लाभ होते हैं। आयु, विद्या, बुद्धि, बल, तेज और मुक्ति तक की प्राप्ति सुलभ हो जाती है। इसमें संदेह नहीं करना चाहिए। सूर्योपासना में निम्न नियमों का पालन करना परम आवश्यक है।

  1. प्रतिदिन सूर्योदय के पूर्व ही शय्या त्यागकर शौच स्नान करना चाहिये।
  2. स्नानोपरान्त श्री सूर्य भगवान् को अर्घ्य देकर प्रणाम करें।
  3. सन्ध्या-समय भी अर्घ्य देकर प्रणाम करना चाहिये।
  4. प्रतिदिन सूर्य के 21 नाम, 108 नाम या 12 नाम से युक्त स्तोत्र का पाठ करें। सूर्यसहस्र नाम का पाठ भी महान लाभकारक है।
  5. आदित्य हृदय का पाठ प्रतिदिन करें।
  6. नेत्र रोग से बचने एवं अंधापन से रक्षा के लिये नेत्रोपनिषद (चाक्षुषोपनिषद्) का पाठ करके प्रतिदिन भगवान सूर्य को प्रणाम करें।
  7. रविवार को तेल, नमक और अदरख का सेवन नहीं करें और न किसी को करायें।

रविवार को एक ही बार भोजन करें। हविष्यान्न खाकर रहे। ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करें। उपासक स्मरण रखें कि भगवान श्रीराम ने आदित्य हृदय का पाठ करके ही रावण पर विजय पायी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने सूर्य के एक सौ आठ नामों का जप करके ही अक्षयपात्र प्राप्त किया था। समर्थ श्रीरामदास जी भगवान सूर्य को प्रतिदिन एक सौ आठ बार साष्टांग प्रणाम करते थे। संत श्रीतुलसीदास जी ने सूर्य का स्तवन किया था। इसलिये सूर्योपासना सबके लिये लाभप्रद है।
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ओली अमित

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हनुमान चालीसा


गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा के लाभ ?????

हनुमानजी सर्वशक्तिमान और एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनका नाम जपने से ही संकट, शरीर और मन से दूर हटने शुरू हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि एक हनुमान जी इस युग के जीवित देवता हैं और सभी बाधाओं को हरने वाले हैं। जो इनका नित ध्यान करता है वह हर तरह के संकट से मुक्त हो जाता है। आज हम यहाँ उन्हीं चमत्कारी लाभों के बारे में बात करने जा रहे हैं जो हनुमान चालीसा के पाठ से हमें प्राप्त होते हैं।

क्यों करते हैं हम हनुमान चालीसा का पाठ?:-
शास्त्रों अनुसार कलयुग में हनुमानजी की भक्ति को सबसे जरूरी, प्रथम और उत्तम बताया गया है। मंदिर, दरगाह, बाबा, गुरु, देवी-देवता आदि सभी जगहों पर भटकने के बाद भी कोई शांति और सुख नहीं मिलता और संकटों का जरा भी समाधान नहीं होता है। साथ ही मृत्युतुल्य कष्ट हो रहा हो तो सिर्फ हनुमान जी की भक्ति ही बचा सकती है।

हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। यह भक्ति जहां हमें भूत-प्रेत जैसी न दिखने वाली आपदाओं से बचाती है, वहीं यह ग्रह-नक्षत्रों के बुरे प्रभाव से भी बचाती है। जो व्यक्ति‍ प्रतिदिन हनुमान चालीसा पाठ करता है उसके साथ कभी भी घटना-दुर्घटना नहीं होती।

श्रीराम के अनन्य भक्त श्रीहनुमान अपने भक्तों और धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों की हर कदम पर मदद करते हैं, इसीलिए हनुमान चालीसा पाठ में कहा है कि “और देवता चित्त न धरहीं”( किसी अन्य देवता की आवश्यकता नहीं)।

हनुमानजी को मनाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ। हनुमानजी की यह स्तुति सबसे सरल और सुरीली है। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा बहुत प्रभावकारी है। इसकी सभी चौपाइयां मंत्र ही हैं। जिनके निरंतर जप से ये सिद्ध हो जाती हैं और पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो जाती है। यही सब कारण हैं जिनकी वजह से हमें हनुमान चालीसा का पाठ नित्य ही करना चाहिए।

क्या है हनुमान चालीसा के पाठ का रहस्य? क्यों हमें इस पाठ से चमत्कारी लाभ प्राप्त होते हैं? आइए चर्चा करते हैं।

धार्मिक उपदेशों, ग्रंथों में वह ताकत है जो हमारे दुःखों का निवारण करती है। जब भी हम परेशान होते हैं तो अपनी समस्या का हल पाने के लिए शास्त्रीय उपायों का इस्तेमाल जरूर करते हैं। इसे आप चमत्कार ही कह लीजिए, लेकिन शास्त्रों में हमारी हर समस्या का समाधान है।

यदि हम निर्देशों के अनुसार उपाय करते चले जाएं, तो सफल जरूर होते हैं। इसलिए आज हम आपको हनुमान चालीसा के माध्यम से कुछ ऐसे उपाय बताएंगे जो आपके जीवन को सुखी बना देने में सक्षम सिद्ध होंगे।

भगवान हनुमान को समर्पित हनुमान चालीसा के बारे में कौन नहीं जानता, गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रची गई हनुमान चालीसा में वह चमत्कारी शक्ति है जो हमारे दुखों को हर लेती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस चमत्कार का रहस्य क्या है?

इसका जवाब हम आपको एक पौराणिक कथा के द्वारा देते हैं।

बचपन में जब हनुमानजी को काफी भूख लगी थी तो उन्होंने आसमान में चमकते हुए सूरज को एक फल समझ लिया था।उनके पास तब ऐसी शक्तियां थीं जिसके द्वारा वे उड़कर सूरज को निगलने के लिए आगे बढ़े, लेकिन तभी देवराज इन्द्र ने हनुमानजी पर शस्त्र से प्रहार कर दिया जिसके कारण वे मूर्छित हो गए।

हनुमानजी के मूर्छित होने की बात जब वायु देव को पता चली तो वे काफी नाराज हुए। लेकिन जब सभी देवताओं को पता चला कि हनुमानजी भगवान शिव के रुद्र अवतार हैं, तब सभी देवताओं ने हनुमानजी को कई शक्तियां दीं।

कहते हैं कि सभी देवतागण ने जिन मंत्रों और हनुमानजी की विशेषताओं को बताते हुए उन्हें शक्ति प्रदान की थी, उन्हीं मंत्रों के सार को गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा में वर्णित किया है। इसलिए हनुमान चालीसा पाठ को चमत्कारी माना गया है।

हनुमान चालीसा में मंत्र ना होकर हनुमानजी की पराक्रम की विशेषताएं बताई गईं हैं। कहते हैं इन्हीं का जाप करने से व्यक्ति सुख प्राप्त करता है।

इन 5 चौपाइयों को यदि नियमित सच्चे मन से वाचन किया जाए तो यह परम फलदायी सिद्ध होती हैं।

हनुमान चालीसा का वाचन मंगलवार या शनिवार को करना परम शुभ होता है। ध्यान रखें हनुमान चालीसा की इन चौपाइयों को पढ़ते समय उच्चारण में कोई गलती ना हो।

  1. भूत-पिशाच निकट नहीं आवे। महावीर जब नाम सुनावे।।

इस चौपाइ का निरंतर जाप उस व्यक्ति को करना चाहिए जिसे किसी का भय सताता हो। इस चौपाइ का नित्य रोज प्रातः और सायंकाल में 108 बार जाप किया जाए तो सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है।

  1. नासै रोग हरै सब पीरा।
    जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

यदि कोई व्यक्ति बीमारियों से घिरा रहता है, अनेक इलाज कराने के बाद भी वह सुख नही पा रहा, तो उसे इस चौपाइ का जाप करना चाहिए। इस चौपाइ का जाप निरंतर सुबह-शाम 108 बार करना चाहिए। इसके अलावा मंगलवार को हनुमान जी की मूर्ति के सामने बैठकर पूरी हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए, इससे जल्द ही व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है।

  1. अष्ट-सिद्धि नवनिधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।

यह चौपाइ व्यक्ति को समस्याओं से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है। यदि किसी को भी जीवन में शक्तियों की प्राप्ति करनी हो, ताकि वह कठिन समय में खुद को कमजोर ना पाए तो नित्य रोज, ब्रह्म मुहूर्त में आधा घंटा इन पंक्तियों का जप करे, लाभ प्राप्त हो जाएगा।

  1. विद्यावान गुनी अति चातुर। रामकाज करिबे को आतुर।।

यदि किसी व्यक्ति को विद्या और धन चाहिए तो इन पंक्तियों के जप से हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है। प्रतिदिन 108 बार ध्यानपूर्वक जप करने से व्यक्ति के धन सम्बंधित दुःख दूर हो जाते हैं।

  1. भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्रजी के काज संवारे।।

जीवन में ऐसा कई बार होता है कि तमाम कोशिशों के बावजूद कार्य में विघ्न प्रकट होते हैं। यदि आपके साथ भी कुछ ऐसा हो रहा है तो इस चौपाइ का कम से कम 108 बार जप करने से लाभ होगा।

किंतु हनुमान चालीसा का महत्त्व केवल इन पांच चौपाइयों तक सीमित नहीं है। पूर्ण हनुमान चालीसा का भी अपना एक महत्त्व एवं इस पाठ को पढ़ने का लाभ है।

बहुत कम लोग जानते हैं कि हिन्दू धर्म में हनुमान जी की आराधना हेतु ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ सर्वमान्य साधन है। इसका पाठ सनातन जगत में जितना प्रचलित है, उतना किसी और वंदना या पूजन आदि में नहीं दिखाई देता।

तो इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए हम जानते हैं कि सम्पूर्ण हनुमान चालीसा किस तरह से लाभप्रद है, क्या क्या है जो हम हनुमान चालीसा का पाठ करके प्राप्त कर सकते हैं?

हनुमान चालीसा के लाभ :-

  1. हनुमान चालीसा को डर, भय, संकट या विपत्ति आने पर पढ़ने से सारे कष्‍ट दूर हो जाते हैं।
  2. अगर किसी व्‍यक्ति पर शनि का संकट छाया है तो उस व्‍यक्ति का हनुमान चालीसा पढ़ना चाहिए। इसस उसके जीवन में शांति आती है
  3. अगर किसी व्‍यक्ति को बुरी शक्तियां परेशान करती हैं तो उसे चालीसा पढ़ने से मुक्ति मिल जाती है।
  4. कोई भी अपराध करने पर अगर आप ग्‍लानि महसूस करते हैं और क्षमा मांगना चाहते है तो हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  5. भगवान गणेश की तरह हनुमान जी भी कष्‍ट हरते हैं। ऐसे में हनुमान चालीसा का पाठ करने से भी लाभ मिलता है।
  6. हनुमान चालीसा पढ़ने से मन शांत होता है तनाव मुक्‍त हो जाता है।
  7. सुरक्षित यात्रा के लिए हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ें। इससे लाभ मिलता है और भय नहीं लगता है।
  8. किसी भी प्रकार की इच्‍छा होने पर भगवन हनुमान के चालीसा का पाठ पढ़ने से लाभ मिलता है।
  9. हनुमान चालीसा के पाठ से दैवीय शक्ति मिलती है। इससे सुकुन मिलता है।
  10. हनुमान जी बुद्धि और बल के ईश्‍वर हैं। उनका पाठ करने से यह दोनों ही मिलते हैं।
  11. हनुमान चालीसा का पाठ करने से कुटिल से कुटिल व्‍यक्ति का मन भी अच्‍छा हो जाता है।
  12. हनुमान चालीसा का पाठ करने से एकता की भावना में विकास होता है।
  13. हनुमान चालीसा का पाठ करने से नकरात्‍मक भावनाएं दूर हो जाती है और मन में सकारात्‍मकता आती है।

हनुमान चालीसा का पाठ मंगलवार या शनिवार के दिन किया जा सकता है। इसके अलावा आप किसी भी शुभ मुहूर्त में तथा विपत्ति के समय में हनुमान जी की साधना कर सकते हैं। या हर रोज भी आप हनुमान चालीसा पाठ कर सकते हैं। लेकिन मंगलवार और शनिवार और उसमें भी मंगलवार विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण होता है इसलिए जो साधक हर रोज हनुमान चालीसा नहीं पढ़ पाते या जपते वो मंगलवार को अवश्य ही हनुमान चालीसा का पाठ करें।

भक्तों का अनुभव है कि हनुमान चालीसा पढ़ने से परेशानियों से लड़ने की शक्ति प्राप्त होती है।यदि आप भी दिल से, पवनपुत्र हनुमान जी की भावपूर्ण वंदना करते हैं, तो आपको ना केवल बजरंग बलि का अपितु साथ ही श्रीराम का भी आशीर्वाद प्राप्त होगा।–

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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र


सिद्ध कुंजिका स्तोत्र विशेष
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जीवन में सफलता की कुंजी है “सिद्ध कुंजिका”

दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारिक और तीव्र प्रभाव दिखाने वाला स्तोत्र है। जो लोग पूरी दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते वे केवल कुंजिका स्तोत्र का पाठ करेंगे तो उससे भी संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का फल मिल जाता है। जीवन में किसी भी प्रकार के अभाव, रोग, कष्ट, दुख, दारिद्रय और शत्रुओं का नाश करने वाले सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ नवरात्रि में अवश्य करना चाहिए। लेकिन इस स्तोत्र का पाठ करने में कुछ सावधानियां भी हैं, जिनका ध्यान रखा जाना आवश्यक है।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ की विधि
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कुंजिका स्तोत्र का पाठ वैसे तो किसी भी माह, दिन में किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि में यह अधिक प्रभावी होता है। कुंजिका स्तोत्र साधना भी होती है, लेकिन यहां हम इसकी सर्वमान्य विधि का वर्णन कर रहे हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन से नवमी तक प्रतिदिन इसका पाठ किया जाता है। इसलिए साधक प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर अपने पूजा स्थान को साफ करके लाल रंग के आसन पर बैठ जाए। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। सामान्य पूजन करें।

अपनी सुविधानुसार तेल या घी का दीपक लगाए

अपनी सुविधानुसार तेल या घी का दीपक लगाए और देवी को हलवे या मिष्ठान्न् का नैवेद्य लगाएं। इसके बाद अपने दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प, एक रुपए का सिक्का रखकर नवरात्रि के नौ दिन कुंजिका स्तोत्र का पाठ संयम-नियम से करने का संकल्प लें। यह जल भूमि पर छोड़कर पाठ प्रारंभ करें। यह संकल्प केवल पहले दिन लेना है। इसके बाद प्रतिदिन उसी समय पर पाठ करें।

कुंजिका स्तोत्र के लाभ
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धन लाभ👉 जिन लोगों को सदा धन का अभाव रहता हो। लगातार आर्थिक नुकसान हो रहा हो। बेवजह के कार्यों में धन खर्च हो रहा हो उन्हें कुंजिका स्तोत्र के पाठ से लाभ होता है। धन प्राप्ति के नए मार्ग खुलते हैं। धन संग्रहण बढ़ता है।

शत्रु मुक्ति👉 शत्रुओं से छुटकारा पाने और मुकदमों में जीत के लिए यह स्तोत्र किसी चमत्कार की तरह काम करता है। नवरात्रि के बाद भी इसका नियमित पाठ किया जाए तो जीवन में कभी शत्रु बाधा नहीं डालते। कोर्ट-कचहरी के मामलों में जीत हासिल होती है।

रोग मुक्ति👉 दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जीवन से रोगों का समूल नाश कर देते हैं। कुंजिका स्तोत्र के पाठ से न केवल गंभीर से गंभीर रोगों से मुक्ति मिलती है, बल्कि रोगों पर होने वाले खर्च से भी मुक्ति मिलती है।

कर्ज मुक्ति👉 यदि किसी व्यक्ति पर कर्ज चढ़ता जा रहा है। छोटी-छोटी जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है, तो कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ जल्द कर्ज मुक्ति करवाता है।

सुखद दांपत्य जीवन👉 दांपत्य जीवन में सुख-शांति के लिए कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ किया जाना चाहिए। आकर्षण प्रभाव बढ़ाने के लिए भी इसका पाठ किया जाता है।

इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक
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देवी दुर्गा की आराधना, साधना और सिद्धि के लिए तन, मन की पवित्रता होना अत्यंत आवश्यक है। साधना काल या नवरात्रि में इंद्रिय संयम रखना जरूरी है। बुरे कर्म, बुरी वाणी का प्रयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इससे विपरीत प्रभाव हो सकते हैं।

कुंजिका स्तोत्र का पाठ बुरी कामनाओं, किसी के मारण, उच्चाटन और किसी का बुरा करने के लिए नहीं करना चाहिए। इसका उल्टा प्रभाव पाठ करने वाले पर ही हो सकता है।

साधना काल में मांस, मदिरा का सेवन न करें। मैथुन के बारे में विचार भी मन में न लाएं।

श्री दुर्गा सप्तशती में से हम आपको एक एसा पाठ बता रहे हैं, जिसके करने से आपकी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। इस पाठ को करने के बाद आपको किसी अन्य पाठ की आवश्यकता नहीं होगी। यह पाठ है..सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्। समस्त बाधाओं को शांत करने, शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, करियर, विद्या, शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो सिद्धकुंजिकास्तोत्र का पाठ अवश्य करें। श्री दुर्गा सप्तशती में यह अध्याय सम्मिलित है। यदि समय कम है तो आप इसका पाठ करके भी श्रीदुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जैसा ही पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। नाम के अनुरूप यह सिद्ध कुंजिका है। जब किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा हो, समस्या का समाधान नहीं हो रहा हो, तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करिए। भगवती आपकी रक्षा करेंगी।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की महिमा
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भगवान शंकर कहते हैं कि सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है। केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है।

क्यों है सिद्ध
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इसके पाठ मात्र से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि उद्देश्यों की एक साथ पूर्ति हो जाती है। इसमें स्वर व्यंजन की ध्वनि है। योग और प्राणायाम है।

संक्षिप्त मंत्र
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ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ( सामान्य रूप से हम इस मंत्र का पाठ करते हैं लेकिन संपूर्ण मंत्र केवल सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में है)

संपूर्ण मंत्र यह है
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ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।

कैसे करें
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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए। प्रतिदिन की पूजा में इसको शामिल कर सकते हैं। लेकिन यदि अनुष्ठान के रूप में या किसी इच्छाप्राप्ति के लिए कर रहे हैं तो आपको कुछ सावधानी रखनी होंगी।
1👉 संकल्प: सिद्ध कुंजिका पढ़ने से पहले हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें। मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें।
2👉 जितने पाठ एक साथ ( 1, 2, 3, 5. 7. 11) कर सकें, उसका संकल्प करें। अनुष्ठान के दौरान माला समान रखें। कभी एक कभी दो कभी तीन न रखें।
3👉 सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान जमीन पर शयन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
4👉 प्रतिदिन अनार का भोग लगाएं। लाल पुष्प देवी भगवती को अर्पित करें।
5👉 सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में दशों महाविद्या, नौ देवियों की आराधना है।

सिद्धकुंजिका स्तोत्र के पाठ का समय
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👉 रात्रि 9 बजे करें तो अत्युत्तम।
2👉 रात को 9 से 11.30 बजे तक का समय रखें।

आसन
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लाल आसन पर बैठकर पाठ करें

दीपक
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घी का दीपक दायें तरफ और सरसो के तेल का दीपक बाएं तरफ रखें। अर्थात दोनों दीपक जलाएं

किस इच्छा के लिए कितने पाठ करने हैं
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1👉 विद्या प्राप्ति के लिए….पांच पाठ ( अक्षत लेकर अपने ऊपर से तीन बार घुमाकर किताबों में रख दें)
2👉 यश-कीर्ति के लिए…. पांच पाठ ( देवी को चढ़ाया हुआ लाल पुष्प लेकर सेफ आदि में रख लें)
3👉 धन प्राप्ति के लिए….9 पाठ ( सफेद तिल से अग्यारी करें)
4👉 मुकदमे से मुक्ति के लिए…सात पाठ ( पाठ के बाद एक नींबू काट दें। दो ही हिस्से हों ध्यान रखें। इनको बाहर अलग-अलग दिशा में फेंक दें)
5👉 ऋण मुक्ति के लिए….सात पाठ ( जौं की 21 आहुतियां देते हुए अग्यारी करें। जिसको पैसा देना हो या जिससे लेना हो, उसका बस ध्यान कर लें)
6👉 घर की सुख-शांति के लिए…तीन पाठ ( मीठा पान देवी को अर्पण करें)
7👉 स्वास्थ्यके लिए…तीन पाठ ( देवी को नींबू चढाएं और फिर उसका प्रयोग कर लें)
8👉 शत्रु से रक्षा के लिए…, 3, 7 या 11 पाठ ( लगातार पाठ करने से मुक्ति मिलेगी)
9👉 रोजगार के लिए…3,5, 7 और 11 ( एच्छिक) ( एक सुपारी देवी को चढाकर अपने पास रख लें)
10👉 सर्वबाधा शांति- तीन पाठ ( लोंग के तीन जोड़े अग्यारी पर चढ़ाएं या देवी जी के आगे तीन जोड़े लोंग के रखकर फिर उठा लें और खाने या चाय में प्रयोग कर लें।

श्री सिद्धकुंजिकास्तोत्रम् विनियोग
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विनियोग👉 ॐ अस्य श्री कुन्जिका स्त्रोत्र मंत्रस्य सदाशिव ऋषि: अनुष्टुपूछंदः श्रीत्रिगुणात्मिका देवता ॐ ऐं बीजं ॐ ह्रीं शक्ति: ॐ क्लीं कीलकं मम सर्वाभीष्टसिध्यर्थे जपे विनयोग: ॥

श्री सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्
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शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत् ॥१॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥२॥

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥३॥

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।

पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥४॥

अथ मन्त्रः
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ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
इति मन्त्रः॥
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥१॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥२॥

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ॥३॥

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ॥४॥

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥५॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥६॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥७॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे ॥
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥
इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती
संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्ण।
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ओली अमित

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ज्योतिष वास्तु संस्कार ग्रुप की सादर प्रस्तुति
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हंस जैन रामनगर खंडवा
9827214427
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क्या आप जानते हैं सूर्य
पूजा के लाभ
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सूर्य देव हमारे “पितातुल्य” हैं।
सूर्य देव “आत्मा” हैं।

सूर्य को “विश्व सम्राट” कहा जाता है इनके पास “प्रकाश का अधिकार” रहता है। प्रखरतेजोमय एवं अग्नि के समान ज्वालारूप लिए हुए हैं।

हम जानते हैं अग्नि देवता “अलग” हैं परन्तु सूर्यदेव भी प्रखर उत्ताप एवं अत्यधिक तेज के कारण अग्नि जैसे ही प्रदीप्त होते हैं।

वेदों में सूर्य को “आदिदेव” मानकर सूर्यदेव की पूजा वंदना की जाती है। सूर्य देव पर अनेकों श्लोक प्राप्त होते हैं जिसकी स्तुति करके हम दीर्घ जीवन एवं आरोग्य , समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।

ज्ञान , विवेक , यश की प्राप्ति , विद्व्ता , सम्मान की प्राप्ति , पारिवारिक – सौख्य एवं श्रीसमृद्धि का प्रदाता “सूर्य देव” ही हैं।

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॥ सूर्याष्टकम् ॥
॥ श्री गणेशाय नमः ॥

साम्ब उवाच ॥

आदिदेवं नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ॥ १॥

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ २॥

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ३॥

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्माविष्णुमहेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ४॥

बृंहितं तेजःपुंजं च वायुमाकाशमेव च ।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ५॥

बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुंडलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ६॥

तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेजःप्रदीपनम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ७॥

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ८॥

सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडाप्रणाशनम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं दरिद्रो धनवान्भवेत् ॥ ९॥

आमिशं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने ।
सप्तजन्म भवेद्रोगी प्रतिजन्म दरिद्रता ॥ १०॥

स्त्रीतैलमधुमांसानि यस्त्यजेत्तु रवेर्दिने ।
न व्याधिः शोकदारिद्र्यं सूर्यलोकं स गच्छति ॥ ११॥

इति श्री सूर्याष्टकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

हिंदी अनुवाद
💥💥💥💥💥

हे ! आदिदेव भास्कर आपको प्रणाम है, आप मुझ पर प्रसन्न हो, हे! दिवाकर आपको नमस्कार है, हे प्रभाकर आपको प्रणाम है ।

सात घोड़ों वाले रथ पर आरुढ़, हाथ में श्वेत कमल धारड़ किये हुए, प्रचंड तेजस्वी, कश्यप कुमार सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ ।

लोहितवर्ण रथारूढ़ सर्वलोक के पिता, महापापहारी सूर्य देव को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो त्रिगुणमय जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव स्वरुप है मैं उन महापापहारी सूर्य देव को प्रणाम करता हूँ ।

जो बडे़ हुए तेज के पुंज है जो वायु तथा आकाश व समस्त लोकों के अधिपति है मैं उन सूर्य देव को प्रणाम करता हूँ ।

जो बन्धु यानि दोपहरीया के पुष्प समान, रक्त वर्ण और हार तथा कुण्डलों से सुशोभित एक चक्रधारीं सूर्य देव को मैं प्रणाम करता हूँ ।

महान तेज के प्रकाशक, जगत के कर्ता मैं उन महापापहारी सूर्य देव को प्रणाम करता हूँ ।

उन सूर्य देव को जगत के नायक है, ज्ञान विज्ञान तथा मोक्ष को भी देते है मैं उन महापापहारी सूर्य देव को प्रणाम करता हूँ ।

सूर्याष्टक पढ़ने से गृहपीडा़ का नाश होता है, पुत्रहीनों को पुत्र की प्राप्ति तथा निर्धनों को धन लाभ होता है ।

जो व्यक्ति रविवार के दिन मांसभक्षण करते है तथा मधुपान करते है वे सात जन्मों तक प्रति क्षण रोग एवं दरिद्रता को प्राप्त करते है ।

जो व्यक्ति रविवार को स्त्री, तेल, मांस और शराब का त्याग करते है उनको कोई रोग, शोक तथा दरिद्रता नहीँ सताती है और ये लोग सीधे सूर्य लोक को प्रस्थान करते है ।।

।। इति श्री सूर्याष्टकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

ज्योतिष वास्तु संस्कार ग्रुप की सादर सप्रेम भेंट

हँस जैन रामनगर खण्डवा
98272 14427

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सुनील त्रिवेदी अन्नपूर्णा प्रयोग:-
करवा चौथ , गोवर्धन पूजा , छठ पूजा और भी सैकड़ो व्रत और त्यौहार जो हमारी मातायें बहिने पूरे वर्ष करतीं जो पूर्ण शुद्धता और विधि विधान से करने पर अगर फल अवश्य देतीं हैं तो भूल चूक होने पर अनिष्ट भी नहीं करतीं हैं। यही कारण है कि मैं गृहस्थ लोगों को इसी तरह के उपाय बताता हूँ। यहाँ आज में जो प्रयोग बताने जा रहा हूँ उससे घर में सदैव सुख और समृद्धि का वास रहता है। अन्नपूर्णा प्रयोग :-
प्रयोग किसी भी शुक्रवार की रात्रि 10 के बाद करे । अथवा ब्रह्म मुहूर्त में करे । आपके पास जो भी आसन वस्त्र हो उसका प्रयोग करे । पीला हो तो अति उत्तम है । उत्तर की और मुख कर बैठ जाये । सामने भूमि पर एक लाल वस्त्र बिछा दे । उस पर एक मिटटी की मटकी रखे । मटकी पर कुमकुम की 7 बिंदी लगाये । और मटकी का सामान्य पूजन करे । घी का दीपक लगाये । कोई मीठी चीज़ भोग में अर्पण करे । माँ अन्नपूर्णा से प्रार्थना करे की वो आपके जीवन में अन्न, धन आदि के भंडार भरे तथा आपको गृहस्थी का पूर्ण सुख प्रदान करे । अब निम्न मंत्र को पड़ते जाये और मटकी में थोड़े थोड़े अक्षत डालत जाये । स्मरण रखे आपको मटकी अक्षत से पूरी भरनी होगी । जब तक मटकी भर न जाये साधना बिच में न छोड़े । और आपको अक्षत भी थोड़े थोड़े ही डालने है । जल्दी समाप्त करने के चक्कर में मुट्ठी भर भर कर न डाले । जिस तरह हम अंगुष्ठ मध्यमा और अनामिका से यज्ञ में आहुति डालते है उसी प्रकार आपको अक्षत डालना है । जब ये क्रिया पूर्ण हो जाये तब माँ से पुनः प्रार्थना करे । तथा दंडवत प्रणाम करे । यदि क्रिया रात्रि में की है तो अगले दिन और यदि प्रातः की है तो उसी दिन ये मटकी किसी देवी मंदिर में रख आये साथ ही कुछ दक्षिणा भी रख दे । प्रसाद घर के सभी सदस्य ले सकते है । लाल वस्त्र भी मंदिर में ही रख कर आना है। मंत्र :-
॥ ॐ ह्रीं अन्नपूर्णेश्वरि ह्रीं नमः ॥ ये एक दिवसीय प्रयोग आपके जीवन के कई संकट दूर कर देगा । घर से रोग दूर हो जाते है । धन आदि में वृद्धि होती है । तथा घर में रात दिन होने वाले कलह शांत हो जाते है । तथा माँ अन्नपूर्णा की कृपा से साधक की गृहस्थी में पूर्ण सुख लौट आता है । आवश्यकता है इसे पूर्ण विश्वास से करने की ॥
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॥ श्री कृष्णाश्रय स्तुति ॥


॥ श्री कृष्णाश्रय स्तुति ॥

सर्वमार्गेषु नष्टेषु कलौ च खलधर्मिणि।
पाषण्डप्रचुरे लोके कृष्ण एव गतिर्मम॥ (१)

भावार्थ : हे प्रभु! कलियुग में धर्म के सभी रास्ते बन्द हो गए हैं, और दुष्ट लोग धर्माधिकारी बन गये हैं, संसार में पाखंड व्याप्त है, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (१)

म्लेच्छाक्रान्तेषु देशेषु पापैकनिलयेषु च।
सत्पीडाव्यग्रलोकेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥ (२)

भावार्थ : हे प्रभु! देश में दुष्ट लोगों का भय व्याप्त है और सभी लोग पाप कर्मों में लिप्त हैं, संसार में संत लोग अत्यन्त पीड़ित हैं, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (२)

गंगादितीर्थवर्येषु दुष्टैरेवावृतेष्विह।
तिरोहिताधिदेवेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥ (३)

भावार्थ : हे प्रभु! गंगा आदि प्रमुख नदियों पर स्थित तीर्थों का भी दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों ने अतिक्रमण कर लिया हैं और सभी देवस्थान लुप्त होते जा रहें हैं, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (३)

अहंकारविमूढेषु सत्सु पापानुवर्तिषु।
लोभपूजार्थयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥ (४)

भावार्थ : हे प्रभु! अहंकार से ग्रसित होकर संतजन भी पाप-कर्म का अनुसरण कर रहे हैं और लोभ के वश में होकर ही ईश्वर की पूजा करते हैं, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (४)

अपरिज्ञाननष्टेषु मन्त्रेष्वव्रतयोगिषु।
तिरोहितार्थवेदेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥ (५)

भावार्थ : हे प्रभु! वास्तविक ज्ञान लुप्त हो गया है, योग में स्थित व्यक्ति भी वैदिक मन्त्रों का ठीक प्रकार से उच्चारण नहीं करते हैं और व्रत नियमों का उचित प्रकार से पालन भी नहीं करते हैं, वेदों का सही अर्थ लुप्त होता जा रहा है, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (५)

नानावादविनष्टेषु सर्वकर्मव्रतादिषु।
पाषण्डैकप्रयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥ (६)

भावार्थ : हे प्रभु! अनेकों प्रकार की विधियों के कारण सभी प्रकार के व्रत आदि उचित कर्म नष्ट हो रहें है, पाखंडता पूर्वक कर्मों का ही आचरण किया जा रहा है, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (६)

अजामिलादिदोषाणां नाशकोऽनुभवे स्थितः।
ज्ञापिताखिलमाहात्म्यः कृष्ण एव गतिर्मम॥ (७)

भावार्थ : हे प्रभु! आपका नाम अजामिल आदि जैसे दुष्ट व्यक्तियों के दोषों का नाश करने वाला है, ऐसा अनुभवी संतो द्वारा गाया गया है, अब मैं आपके संपूर्ण माहात्म्य को जान गया हूँ, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (७)

प्राकृताः सकल देवा गणितानन्दकं बृहत्।
पूर्णानन्दो हरिस्तस्मात्कृष्ण एव गतिर्मम॥ (८)

भावार्थ : हे प्रभु! समस्त देवतागण भी प्रकृति के अधीन हैं, इस विराट जगत का सुख भी सीमित ही है, केवल आप ही समस्त कष्टों को हरने वाले हैं और पूर्ण आनंद प्रदान करने वाले हैं, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (८)

विवेकधैर्यभक्त्यादिरहितस्य विशेषतः।
पापासक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम॥ (९)

भावार्थ : हे प्रभु! मुझमें सत्य को जानने की सामर्थ्य नहीं है, धैर्य धारण करने की शक्ति नहीं है, आप की भक्ति आदि से रहित हूँ और विशेष रूप से पाप में आसक्त मन वाले मुझ दीनहीन के लिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (९)

सर्वसामर्थ्यसहितः सर्वत्रैवाखिलार्थकृत्।
शरणस्थमुद्धारं कृष्णं विज्ञापयाम्यहम्॥ (१०)

भावार्थ : हे प्रभु! आप ही सभी प्रकार से सामर्थ्यवान हैं, आप ही सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं और आप ही शरण में आये हुए जीवों का उद्धार करने वाले हैं इसलिए मैं भगवान श्रीकृष्ण की वंदना करता हूँ। (१०)

कृष्णाश्रयमिदं स्तोत्रं यः पठेत्कृष्णसन्निधौ।
तस्याश्रयो भवेत्कृष्ण इति श्रीवल्लभोऽब्रवीत्॥ (११)

भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण के आश्रय में रहकर और उनकी मूर्ति के सामने जो इस स्तोत्र का पाठ करता है उसके आश्रय श्रीकृष्ण हो जाते हैं, ऐसा श्रीवल्लभाचार्य जी के द्वारा कहा गया है। (११)

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प्रदक्षिणा


प्रदक्षिणा

अब तक बैठकर मन, वचन से ही मन्त्रोच्चार किया जाता रहा । हाथों का ही प्रयोग हुआ । अब यज्ञ मार्ग पर चलना शेष है । इसी पर तो भावना के परिष्कार की, यज्ञ प्रक्रिया की सफलता निर्भर है । अब यह कर्मयात्रा आरंभ होती है । यज्ञ अनुष्ठान में जिस दिशा में चलने का संकेत है, प्रदक्षिणा में उसी दिशा में चलना आरम्भ किया जाता है ।
कार्य के चार चरण हैं-
१-संकल्प,
२- प्रारम्भ,
३-पुरुषार्थ,
४-तन्मयता ।

इन चार प्रक्रियाओं से समन्वित जो भी कार्य किया जाएगा, वह अवश्य सफल होगा । यज्ञमय जीवन जीने के लिए चार कदम बढ़ाने, चार अध्याय पूरे करने का पूर्वाभ्यास-प्रदर्शन किया गया । एकता, समता, ममता, शुचिता चारों लक्ष्य पूरे करने के लिए साधना, स्वाध्याय, सेवा और संयम की गतिविधियाँ अपनाने के लिए चार परिक्रमाएँ हैं । हम इस मार्ग पर चलें, यह संकल्प प्रदक्षिणा के अवसर पर हृदयंगम किया जाना चाहिए और उस पथ पर निरन्तर चलते रहना चाहिए ।
सब लोग दायें हाथ की ओर घूमते हुए यज्ञशाला की परिक्रमा करें, स्थान कम हो, तो अपने स्थान पर खड़े रहकर चारों दिशाओं में घूमकर एक परिक्रमा करने से भी काम चल जाता है ।
परिक्रमा करते हुए दोनों हाथ जोड़कर गायत्री वन्दना एवं यज्ञ महिमा का गान करें । परिक्रमा केवल मन्त्र से करें, कोई एक स्तुति करें या दोनों करें, इसका निर्धारण समय की मर्यादा को ध्यान में रखकर कर लेना चाहिए ।

ॐ यानि कानि च पापानि, ज्ञाताज्ञातकृतानि च ।
तानि सर्वाणि नश्यन्ति, प्रदक्षिण पदे-पदे ।

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Apka whtsaap free hai aage bhej dijiye
भगवान शिव के 108 नाम —-
१- ॐ भोलेनाथ नमः
२-ॐ कैलाश पति नमः
३-ॐ भूतनाथ नमः
४-ॐ नंदराज नमः
५-ॐ नन्दी की सवारी नमः
६-ॐ ज्योतिलिंग नमः
७-ॐ महाकाल नमः
८-ॐ रुद्रनाथ नमः
९-ॐ भीमशंकर नमः
१०-ॐ नटराज नमः
११-ॐ प्रलेयन्कार नमः
१२-ॐ चंद्रमोली नमः
१३-ॐ डमरूधारी नमः
१४-ॐ चंद्रधारी नमः
१५-ॐ मलिकार्जुन नमः
१६-ॐ भीमेश्वर नमः
१७-ॐ विषधारी नमः
१८-ॐ बम भोले नमः
१९-ॐ ओंकार स्वामी नमः
२०-ॐ ओंकारेश्वर नमः
२१-ॐ शंकर त्रिशूलधारी नमः
२२-ॐ विश्वनाथ नमः
२३-ॐ अनादिदेव नमः
२४-ॐ उमापति नमः
२५-ॐ गोरापति नमः
२६-ॐ गणपिता नमः
२७-ॐ भोले बाबा नमः
२८-ॐ शिवजी नमः
२९-ॐ शम्भु नमः
३०-ॐ नीलकंठ नमः
३१-ॐ महाकालेश्वर नमः
३२-ॐ त्रिपुरारी नमः
३३-ॐ त्रिलोकनाथ नमः
३४-ॐ त्रिनेत्रधारी नमः
३५-ॐ बर्फानी बाबा नमः
३६-ॐ जगतपिता नमः
३७-ॐ मृत्युन्जन नमः
३८-ॐ नागधारी नमः
३९- ॐ रामेश्वर नमः
४०-ॐ लंकेश्वर नमः
४१-ॐ अमरनाथ नमः
४२-ॐ केदारनाथ नमः
४३-ॐ मंगलेश्वर नमः
४४-ॐ अर्धनारीश्वर नमः
४५-ॐ नागार्जुन नमः
४६-ॐ जटाधारी नमः
४७-ॐ नीलेश्वर नमः
४८-ॐ गलसर्पमाला नमः
४९- ॐ दीनानाथ नमः
५०-ॐ सोमनाथ नमः
५१-ॐ जोगी नमः
५२-ॐ भंडारी बाबा नमः
५३-ॐ बमलेहरी नमः
५४-ॐ गोरीशंकर नमः
५५-ॐ शिवाकांत नमः
५६-ॐ महेश्वराए नमः
५७-ॐ महेश नमः
५८-ॐ ओलोकानाथ नमः
५४-ॐ आदिनाथ नमः
६०-ॐ देवदेवेश्वर नमः
६१-ॐ प्राणनाथ नमः
६२-ॐ शिवम् नमः
६३-ॐ महादानी नमः
६४-ॐ शिवदानी नमः
६५-ॐ संकटहारी नमः
६६-ॐ महेश्वर नमः
६७-ॐ रुंडमालाधारी नमः
६८-ॐ जगपालनकर्ता नमः
६९-ॐ पशुपति नमः
७०-ॐ संगमेश्वर नमः
७१-ॐ दक्षेश्वर नमः
७२-ॐ घ्रेनश्वर नमः
७३-ॐ मणिमहेश नमः
७४-ॐ अनादी नमः
७५-ॐ अमर नमः
७६-ॐ आशुतोष महाराज नमः
७७-ॐ विलवकेश्वर नमः
७८-ॐ अचलेश्वर नमः
७९-ॐ अभयंकर नमः
८०-ॐ पातालेश्वर नमः
८१-ॐ धूधेश्वर नमः
८२-ॐ सर्पधारी नमः
८३-ॐ त्रिलोकिनरेश नमः
८४-ॐ हठ योगी नमः
८५-ॐ विश्लेश्वर नमः
८६- ॐ नागाधिराज नमः
८७- ॐ सर्वेश्वर नमः
८८-ॐ उमाकांत नमः
८९-ॐ बाबा चंद्रेश्वर नमः
९०-ॐ त्रिकालदर्शी नमः
९१-ॐ त्रिलोकी स्वामी नमः
९२-ॐ महादेव नमः
९३-ॐ गढ़शंकर नमः
९४-ॐ मुक्तेश्वर नमः
९५-ॐ नटेषर नमः
९६-ॐ गिरजापति नमः
९७- ॐ भद्रेश्वर नमः
९८-ॐ त्रिपुनाशक नमः
९९-ॐ निर्जेश्वर नमः
१०० -ॐ किरातेश्वर नमः
१०१-ॐ जागेश्वर नमः
१०२-ॐ अबधूतपति नमः
१०३ -ॐ भीलपति नमः
१०४-ॐ जितनाथ नमः
१०५-ॐ वृषेश्वर नमः
१०६-ॐ भूतेश्वर नमः
१०७-ॐ बैजूनाथ नमः
१०८-ॐ नागेश्वर नमःv