कौन है तीस्ता जावेद सेतलवाड
अंग्रेजो के नौकर जस्टिस “आगा हुसैन” ने भगत सिंह के पूरे केस की सुनवाई की थी और सजा लिखी थी.
लेकिन सजा सुनाने के समय छुट्टी पर चले गए थे और सजा सुनाने का काम अंग्रेजों के एक और नौकर जस्टिस शादीलाल ने किया था. जस्टिस आगा हुसैन और जस्टिस शादीलाल दोनों कांग्रेस से जुड़े हुए थे.
इससे पहले वीर सावरकर को भी कालापानी की सजा किसी अंग्रेज ने नहीं बल्कि अंग्रेजों के एक नौकर जस्टिस नारायण गणेश चंदावरकर खरे ने सुनाई थी जो कांग्रेस का पूर्व अध्यक्ष था.
आप गूगल पर सर्च कर सकते हैं नारायण गणेश चंद्राकर की मूर्ति मुंबई यूनिवर्सिटी में लगी है
जब जलियांवाला बाग का आदेश देने वाले जनरल डायर पर पूरे विश्व की मीडिया में पूछूं हुआ तब अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग़ की जांच के लिए एक हंटर कमेटी बनाया
लॉर्ड विलियम हंटर इस कमेटी के अध्यक्ष थे और इस कमेटी में सिर्फ दो भारतीय थे पंडित जगत नारायण मूल्ला और दूसरे थे सर चिमनलाल हीरालाल सेतलवाड
पं. जगत नारायण मुल्ला मोती लाल नेहरू के घनिष्ठ मित्र और उनके छोटे भाई नन्दलाल नेहरू के समधी थे.
अंग्रेजों ने विश्व के सामने यह दिखाने के लिए दो भारतीयों पंडित जगत नारायण मुल्ला और सर चिमनलाल हीरालाल सेतलवाड को हंटर आयोग का सदस्य बनाया था लेकिन यह दोनों अंग्रेजों के पाले हुए गुलाम थे
और जिसकी उम्मीद थी वही हुआ यानी हंटर आयोग ने सर्वसम्मति से जनरल डायर को जलियांवाला बाग के से बरी कर दिया
इसका इनाम अंग्रेजों ने चमन लाल हीरा लाल सेतलवाड को सर की उपाधि देकर नवाजा
जगत नारायण मुल्ला तो नेहरु के सगे रिश्तेदार थे और सर चिमन लाल हीरा लाल सेतलवाड नेहरू के बहुत अच्छे मित्र थे
देश आजाद होने के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनके पुत्र एम. सी. सीतलवाड़ को भारत का पहला अटार्नी जनरल (1950 से 1963) बनाया था.
चिमन सीतलवाड़ तीस्ता चिमन सीतलवाड़ के सगे परदादा थे.
एमसी सीतलवाड़ का बेटा था अतुल सेतलवाड जो मुंबई हाई कोर्ट का वकील था और घोर सेकुलर था
इसी अतुल की बेटी है तीस्ता जावेद सेतलवाड
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दरअसल इसके घर एक कट्टर जिहादी जावेद आनंद का आना जाना था और इस तरह से तीस्ता जावेद लव जिहाद में फंसकर इस्लाम कबूल कर ली और जावेद आनंद से निकाह कर ली।
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Category: भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas
तुर्की का
सैन्य कमांडर बख्तियार खिलजी गंभीर रूप से बीमार पड़ गया।
सारे हकीम हार गए परंतु बीमारी का पता नहीं चल पाया खिलजी दिनों दिन कमजोर पड़ता गया और उसने बिस्तर पकड़ लिया ।उसे लगा कि अब उसके आखिरी दिन आ गए हैं ।
एक दिन उससे मिलने आए एक बुज़ुर्ग ने सलाह दी कि दूर भारत के मगध
साम्राज्य में अवस्थित
नालंदा महावीर के एक ज्ञानी राहुल शीलभद्र को एक बार दिखा लें ,वे आपको ठीक कर देंगे।
खिलजी तैयार नहीं हुआ। उसने कहा कि मैं किसी काफ़िर के हाथ की दवा नहीं ले सकता हूं चाहे मर क्यों न जाऊं!!
मगर बीबी बच्चों की जिद के आगे झुक गया। राहुल शीलभद्र जी तुर्की आए।
खिलजी ने उनसे कहा कि दूर से ही देखो मुझे छूना मत क्योंकि तुम काफिर हो और दवा मैं लूंगा नहीं।राहुल शीलभद्र जी ने उसका चेहरा देखा,शरीर का मुआयना किया,बलगम से भरे बर्तन को देखा,सांसों के उतार चढ़ाव का अध्ययन किया और बाहर चले गए
फिर लौटे और पूछा कि कुरान पढ़ते हैं?
खिलजी ने कहा दिन रात पढ़ते हैं
पन्ने कैसे पलटते हैं?
उंगलियों से जीभ को छूकर सफे पलटते हैं!!
शीलभद्र जी ने खिलजी को एक कुरान भेंट किया और कहा कि आज से आप इसे पढ़ें और राहुल शीलभद्र जी वापस भारत लौट आए
उधर दूसरे दिन से ही खिलजी की तबीयत ठीक होने लगी
और एक हफ्ते में वह भला चंगा हो गया
दरअसल राहुल शीलभद्र जी ने कुरान के पन्नों पर दवा लगा दी थी जिसे उंगलियों से जीभ तक पढ़ने के दौरान पहुंचाने का अनोखा तरीका अपनाया गया था
खिलजी अचंभित था मगर उससे भी ज्यादा ईर्ष्या और जलन से मरा जा रहा था कि आखिर एक काफिर मुस्लिम से ज्यादा काबिल कैसे हो गया?
अगले ही साल 1193 में उसने
सेना तैयार की और जा पहुंचा नालंदा महावीर मगध क्षेत्र।पूरी दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञान और विज्ञान का केंद्र। जहां 10000 छात्र और 1000 शिक्षक एक बड़े परिसर में रहते थे।जहां एक तीन मंजिला इमारत में विशाल लायब्रेरी थी जिसमें एक करोड़ पुस्तकें,पांडुलिपियां एवं ग्रंथ थे
खिलजी जब वहां पहुंचा तो शिक्षक और छात्र उसके स्वागत में बाहर आए क्योंकि उन्हें लगा कि वह कृतज्ञता व्यक्त करने आया है
खिलजी ने उन्हें देखा और मुस्कुराया….और तलवार से भिक्षु श्रेष्ठ की गर्दन काट दी
फिर हजारों छात्र और शिक्षक गाजर मूली की तरह काट डाले गए
खिलजी ने फिर ज्ञान विज्ञान के केंद्र
पुस्तकालय में आग लगा दी
कहा जाता है कि पूरे तीन महीने तक पुस्तकें जलती रहीं
खिलजी चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि तुम काफिरों की हिम्मत कैसे हुई इतनी पुस्तकें पांडुलिपियां इकट्ठा करने की? बस एक कुरान रहेगा धरती पर बाकी सब को नष्ट कर दूंगा
पूरे नालंदा को तहस नहस कर जब वह लौटा तो
रास्ते में विक्रम शिला विश्वविद्यालय को भी जलाते हुए लौटा
मगध क्षेत्र के बाहर बंगाल में वह रूक गया और वहां खिलजी साम्राज्य की स्थापना की
जब वह लद्दाख क्षेत्र होते हुए तिब्बत पर आक्रमण करने की योजना बना रहा था तभी एक रात उसके एक कमांडर ने उसकी सोए में हत्या कर दी
आज भी बंगाल के
पश्चिमी दिनाजपुर में उसकी कब्र है जहां उसे दफनाया गया था
और सबसे हैरत की बात है कि उसी दुर्दांत हत्यारे के नाम पर बिहार में बख्तियार पुर नामक जगह है जहां रेलवे जंक्शन भी है जहां से नालंदा की ट्रेन जाती है।..साभार
मथुरा में 70 ठाकुरों को धोखे से बुलाकर यहाँ सामूहिक रूप से दी गयी थी फाँसी
मथुरा। 1857 की क्रांति की झलक आज भी मथुरा में देखने को मिल जाएगी यहीं से शुरू हुआ था सन् 57 का विद्रोह और यहां के 70 ठाकुरों ने दिया था बलिदान। मथुरा से उठी क्रांति की चिंगारी ने पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया और देश से अंग्रजों को भागना पड़ा।
अडींग की मिट्टी में आज भी ब्रजभूमि के रणबांकुरों की शौर्यगाथा की खुशबू आती है। अंग्रेजी हुकूमत ने ब्रज क्षेत्र में 1857 की क्रांति को कुचलने के लिए 70 ठाकुर ग्रामीणों को फांसी पर चढ़ा दिया था। महीनों तक ग्रामीणों पर बर्बर जुल्म ढाए गए खंडहर के रूप में मौजूद भरतपुर में नरेश सूरजमल की हवेली हंसते-हंसते मौत को गले लगाने वाले आजादी के दीवानों की आज भी गवाह बनी हुई है। मथुरा गोवर्धन मार्ग पर बसा गांव अडींग आजादी के शिल्पकारों की भूमि रहा है यहां के लोगों का स्वाधीनता आंदोलन में योगदान इतिहास के पन्नों पर अंकित है। अडींग में आजादी के आंदोलनों की बढ़ती संख्या के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने यहां पुलिस चौकी की स्थापना कर दी थी। 1857 के गदर के समय एक सिपाही अख्तियार ने बैरकपुर छावनी में कंपनी कमांडर को गोली से उड़ा दिया। इतिहास खंगालें तो बैरकपुर छावनी से मेरठ होते हुए देश में जगह जगह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की पुकार सुनाई देने लगी। मथुरा में भी क्रांति की चिंगारी सुलग उठी।
ठाकुर पदम सिंह बताते है कि 30 मई 1857 को घटी इस घटना के बाद इस वीर ने अपने साथियों के साथ आगरा जा रहे राजकोष के साढ़े चार लाख रूपए को लूट लिया। तांबे के सिक्के और आभूषण छोड़ दिए गए। लूटने के लिए सिपाही और शहरवासी दिन भर जूझते रहे। इन फैक्ट्री विद्रोही सिपाहियों ने जेल तोड़कर क्रांतिकारियों को निकाला और दिल्ली की ओर कूच कर गए। इतिहास बताता है कि 31 मई को इन लोगों ने कोसी पुलिस स्टेशन पर पुलिस बंगले में जमकर लूटपाट की। उन्होंने अंग्रेजों की मुखबिरी के संदेह में हाथरस के राजा गोविंद सिंह को भी वृंदावन स्थित केसी घाट पर मौत की नींद सुला दिया।
विद्रोह की गूंज के कारण तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर जर्नल आगरा ने विद्रोह को दबाने के लिए विशेष सैनिक टुकड़ी बुलाई। इन लोगों ने सराय में 22 जमीदारों को गोलियों से भून दिया। अडींग के क्रांतिकारियों ने भी खजाना लूटने का प्रयास किया, यहां के 70 ठाकुर जाति के लोगों को बाद में अंग्रेजों ने ऐतिहासिक किले पर फांसी दे दी। वही अब यहां स्थानीय लोग औरश्री राष्ट्रीय राजपूत करनी सेना ने शहीद स्मारक बनवाने की सरकार से मांग की है।

जालियाँ वाला बाग हत्याकांड भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 (बैसाखी के दिन) हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं जिसमें 400 से अधिक व्यक्ति मरे और 2000 से अधिक घायल हुए। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था। माना जाता है कि यह घटना ही भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी।विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि “ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी l
अमर शहीदों को कोटि-कोटि प्रणाम l

विजय राठौर
सम्राट विक्रमदित्य के अरब देशों में किए गए राज के दस्तावेज
टर्की’ देश में एक बहुत पुराना और मशहूर पुस्तकालय है जिसका नाम मकतब-ए-सुल्तानिया है. इस पुस्तकालय के पास पश्चिम एशियाई साहित्य से सम्बंधित सबसे बड़ा पुस्तक संग्रह है. इसी संग्रह में एक किताब संरक्षित रखी गई है.
किताब का नाम है ‘सयर-उल-ओकुल’. इस किताब में इस्लाम के पहले के कवियों और इस्लाम के आने के तुरंत बाद के कवियों का वर्णन किया गया है.
इसीग्रंथ में है ‘सम्राट विक्रमादित्य’ पर आधारित एक कविता.
कविता ‘अरबी’ में है लेकीन उस कविता का हिंदी अनुवाद हम आपके सामने पप्रस्तुत करते हैं.
कविता में मौजूद ये कुछ पंक्तियाँ हैं.
“खुशनसीब हैं वे लोग जो राजा विक्रम के राज में जन्मे,
उदारता और कर्ताव्यप्रायाणता के प्रतीक हैं राजा विक्रमादित्य.
हम, ‘अरबी’ और हमारी ज़मीन अंधकार में फँसी हुई थी लेकिन राजा विक्रम ने हमारी ज़मीन पर अपने दूतों को भेज कर यहाँ फिर से रौशनी का आगमन किया है”.
यह कविता इस बात का सबूत है कि विक्रमादित्य भारत के पहले राजा थे जिन्होंने अरबस्थान में विजय प्राप्त की, राज्य पर और लोगों के दिल पर.
भारत इतिहास का महत्वपूर्ण दस्तावेज ।
अरब देशों में उज्जयिनी-नरेश शकारि विक्रमादित्य का राज्य था
इस्तांबुल, तुर्की के प्रसिद्ध राजकीय पुस्तकालय ‘मक्तब-ए-सुल्तानिया’ (सम्प्रति मक्तब-ए-ज़म्हूरिया), जो प्राचीन पश्चिम एशियाई-साहित्य के विशाल भण्डार के लिए प्रसिद्ध है, के अरबी विभाग में प्राचीन अरबी-कविताओं का संग्रह ‘शायर-उल्-ओकुल’ हस्तलिखित ग्रन्थ के रूप में सुरक्षित है। इस ग्रन्थ का संकलन एवं संपादन बग़दाद के ख़लीफ़ा हारून-अल्-रशीद के दरबारी एवं सुप्रसिद्ध अरबी-कवि अबू-अमीर अब्दुल अस्मई ने किया था,
उन्हीं में से एक में अरब पर पितृसदृश शासन के लिए उज्जयिनी-नरेश शकारि विक्रमादित्य का यशोगान किया गया है—
इत्रश्शफ़ाई सनतुल बिकरमातुन फ़हलमिन क़रीमुन यर्तफ़ीहा वयोवस्सुरू ।।1।।
बिहिल्लाहायसमीमिन इला मोतक़ब्बेनरन, बिहिल्लाहा यूही क़ैद मिन होवा यफ़ख़रू।।2।।
फज़्ज़ल-आसारि नहनो ओसारिम बेज़ेहलीन, युरीदुन बिआबिन क़ज़नबिनयख़तरू।।3।।
यह सबदुन्या कनातेफ़ नातेफ़ी बिज़ेहलीन, अतदरी बिलला मसीरतुन फ़क़ेफ़ तसबहू।।4।।
क़ऊन्नी एज़ा माज़करलहदा वलहदा, अशमीमान, बुरुक़न क़द् तोलुहो वतस्तरू।।5।।
बिहिल्लाहा यकज़ी बैनना वले कुल्ले अमरेना, फ़हेया ज़ाऊना बिल अमरे बिकरमातुन।।6।।’
अर्थात्, वे लोग धन्य हैं, जो राजा विक्रमादित्य के साम्राज्य में उत्पन्न हुए, जो दानवीर, धर्मात्मा और प्रजावत्सल था ।।1।।
उस समय हमारा देश (अरब) ईश्वर को भूलकर इन्द्रिय-सुख में लिप्त था। छल-कपट को ही हमलोगों ने सबसे बड़ा गुण मान रखा था। हमारे सम्पूर्ण देश पर अज्ञानता ने अन्धकार फैला रखा था।।2।।
जिस प्रकार कोई बकरी का बच्चा किसी भेडि़ए के चंगुल में फँसकर छटपटाता है, छूट नहीं सकता, उसी प्रकार हमारी मूर्ख जाति मूर्खता के पंजे में फँसी हुई थी।।3।।
अज्ञानता के कारण हम संसार के व्यवहार को भूल चुके थे, सारे देश में अमावस्या की रात्रि की तरह अन्धकार फैला हुआ था। परन्तु अब जो ज्ञान का प्रातःकालीन प्रकाश दिखाई देता है, यह कैसे हुआ?।।4।।
यह उसी धर्मात्मा राजा की कृपा है, जिन्होंने हम विदेशियों को भी अपनी कृपा-दृष्टि से वंचित नहीं किया और पवित्र धर्म का सन्देश देकर अपने देश के विद्वानों को भेजा, जो हमारे देश में सूर्य की तरह चमकते थे।।5।।
जिन महापुरुषों की कृपा से हमने भुलाए हुए ईश्वर और उसके पवित्र ज्ञान को समझा और सत्पथगामी हुए; वे महान् विद्वान्, राजा विक्रमादित्य की आज्ञा से हमारे देश में ज्ञान एवं नैतिकता के प्रचार के लिए आए थे।।6।।
कुमार गुंजन अग्रवाल के मूल लेख के अंश
1669 ईसवी ।
औरंगज़ेब ने समस्त वैष्णव मन्दिरों को तोड़ने का आदेश दिया ।
मथुरा के श्रीनाथ जी मंदिर के पुजारी श्री कृष्ण की मूर्ति लेकर राजस्थान की ओर निकल गए ।
जयपुर व जोधपुर के राजाओं ने औरंगजेब से बैर लेना उचित नहीं समझा । पुजारी मेवाड़ की पुष्यभूमि पर महाराणा राजसिंह के पास गए ।
एक क्षण के विलम्ब के बिना राज सिंह ने यह कहा –
“ जब तक मेरे एक लाख राजपूतों का सर नहीं कट जाए , आलमगीर भगवान की मूर्ति को हाथ नहीं लगा सकता । आपको मेवाड़ में जो स्थान जंचे चुन लीजिए , मैं स्वयं आकर मूर्ति स्थापित करूँगा । “
मेवाड़ के ग्राम सिहाड़ में श्रीनाथ जी की प्रतिष्ठा धूमधाम से हुई , जिसमें स्वयं राज सिंह पधारे ।
आज जो प्रसिद्ध नाथद्वारा तीर्थस्थल है , वह सिहाड़ ग्राम ही है ।
औरंगजेब ने राज सिंह जी को पत्र लिखा कि श्रीनाथ जी की मूर्ति को शरण दी तो युद्ध होगा ।
राज सिंह जी ने कोई उत्तर ना दिया । चुपचाप मारवाड़ के वीर दुर्गादास राठौड़ के नेतृत्व में राठौडों व मेवाड़ के हिन्दुओं की सामूहिक सेना का गठन करने लगे ।
1679-80 ईसवीं । दो वर्षों तक मुग़ल मेवाड़ संघर्ष चला ।
दो बार राज सिंह जी ने औरंग को गिरफ़्तार करके दया करके छोड़ दिया ।
1680 में पूर्ण रूप से पराजित औरंगजेब अपना काला मुँह लेकर सर्वथा के लिए राजस्थान से चला गया ।
नाथद्वारा हम में से बहुत लोग गए हैं ।
हमें क्यूँ नहीं पता कि यह विग्रह मूल रूप से मथुरा के हैं ?
किसके कारण पुजारियों को पलायन करना पड़ा ?
किसने अपना सर्वस्व दाँव पर लगाकर श्रीनाथ जी की रक्षा की ?
किसी ने राज सिंह जी का नाम भी सुना है ?
हमें क्यूँ नहीं पता कि पचास सहस्त्र (हज़ार) मेवाड़ व मारवाड़ के हिन्दुओं ने शीश का बलिदान देकर मुग़लों से श्रीनाथ जी की रक्षा की थी ?
इस अभागे देश के इतिहासकार तो ठग हैं ही ( केवल शिष्टाचार के चलते माँ बहन की गालियाँ नहीं दे रहा हूँ ) , पर हम हिन्दुओं को क्या हुआ है ?
भोगविलास में हम अपने देवताओं, अपने महिमाशाली पुरखों के नाम तक विस्मृत कर चुके हैं !
अब नाथद्वारा जाएँ तो इन महान पूर्वजों की स्मृति में दो अश्रु बहाएँ व आकाश की ओर मुँह करके इन महान आत्माओं का धन्यवाद दें जिनके कारण हम आज हिन्दू हैं ।
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📩 जिन्ना का दोष यही था कि उसने मुसलमानों को सीधे क़त्ले आम कर के पाकिस्तान लेने का निर्देश दिया था ! वह चाहता तो यह क़त्ले आम रुक सकता था लेकिन उसे मुसलमानों की ताक़त दर्शानी थी !
बहुत कठोर पोस्ट है पर जानना जरूरी है,
“जिन्ना” को
16 अगस्त 1946 से दो दिन पूर्व ही जिन्ना नें “सीधी कार्यवाही” की धमकी दी थी! गांधीजी को अब भी उम्मीद थी कि जिन्ना सिर्फ बोल रहा है, देश के मुश्लिम इतने बुरे नहीं कि ‘पाकिस्तान’ के लिए हिंदुओं का कत्लेआम करने लगेंगे। पर गांधी यहीं अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल कर बैठे, सम्प्रदायों का नशा शराब से भी ज्यादा घातक होता है।
बंगाल और बिहार में मुश्लिमों की संख्या अधिक है और मुश्लिम लीग की पकड़ भी यहाँ मजबूत है।
बंगाल का मुख्यमंत्री शाहिद सोहरावर्दी जिन्ना का वैचारिक गुलाम है, जिन्ना का आदेश उसके लिए खुदा का आदेश है।
पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश ) का मुश्लिम बहुल्य नोआखाली जिला। यहाँ अधिकांश दो ही जाति के लोग हैं, गरीब हिन्दू और मुस्लिम। हिंदुओं में 95 फीसदी पिछड़ी जाति के लोग हैं, गुलामी के दिनों में किसी भी तरह पेट पालने वाले।
लगभग सभी जानते हैं कि जिन्ना का “डायरेक्ट एक्शन” यहाँ लागू होगा पर हिन्दुओं में शांति है। आत्मरक्षा की भी कोई तैयारी नहीं। कुछ गाँधी जी के भरोसे बैठे हैं। कुछ को मुस्लिम अपने भाई लगते हैं, उन्हें भरोसा है कि मुस्लिम उनका अहित नहीं करेंगे।
सुबह के दस बज रहे हैं, सड़क पर नमाजियों की भीड़ अब से ही इकट्ठी हो गयी है। बारह बजते बजते यह भीड़ तीस हजार की हो गयी, सभी हाथों में तलवारें हैं।
मौलाना मुसलमानों को बार बार जिन्ना साहब का हुक्म पढ़ कर सुना रहा है- “बिरदराने इस्लाम! हिंदुओं पर दस गुनी तेजी से हमला करो…”
मात्र पचास वर्ष पूर्व ही हिन्दू से मुसलमान बने इन मुसलमानों में घोर साम्प्रदायिक जहर भर दिया गया है, इन्हें अपना पाकिस्तान किसी भी कीमत पर चाहिए।
एक बज गया। नमाज हो गयी। अब जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन का समय है। इस्लाम के तीस हजार सिपाही एक साथ हिन्दू बस्तियों पर हमला शुरू करते हैं। एक ओर से, पूरी तैयारी के साथ, जैसे किसान एक ओर से अपनी फसल काटता है। जबतक एक जगह की फसल पूरी तरह कट नहीं जाती, तबतक आगे नहीं बढ़ता।
जिन्ना की सेना पूरे व्यवस्थित तरीके से काम कर रही है। पुरुष, बूढ़े और बच्चे काटे जा रहे हैं, स्त्रियों-लड़कियों का बलात्कार किया जा रहा है।
हाथ जोड़ कर घिसटता हुआ पीछे बढ़ता कोई बुजुर्ग, और छप से उसकी गर्दन उड़ाती तलवार…
माँ माँ कर रोते छोटे छोटे बच्चे, और उनकी गर्दन उड़ा कर मुस्कुरा उठती तलवारें…
अपने हाथों से शरीर को ढंकने का असफल प्रयास करती बिलखती हुई एक स्त्री, और राक्षसी अट्टहास करते बीस बीस मुसलमान… उन्हें याद नहीं कि वे मनुष्य भी हैं। उन्हें सिर्फ जिन्ना याद है, उन्हें बस पाकिस्तान याद है।
शाम हो आई है। एक ही दिन में लगभग 15000 हिन्दू काट दिए गए हैं और लगभग दस हजार स्त्रियों का बलात्कार हुआ है।
जिन्ना खुश है, उसके “डायरेक्ट एक्शन” की सफल शुरुआत हुई है।
अगला दिन, सत्रह अगस्त….
मटियाबुर्ज का केसोराम कॉटन मिल! जिन्ना की विजयी सेना आज यहाँ हाथ लगाती है। मिल के मजदूर और आस पास के स्थान के दरिद्र हिन्दू….
आज सुबह से ही तलवारें निकली हैं। उत्साह कल से ज्यादा है। मिल के ग्यारह सौ मजदूरों, जिनमें तीन सौ उड़िया हैं, को ग्यारह बजे के पहले ही पूरी तरह काट डाला गया है। मोहम्मद अली जिन्ना जिन्दाबाद के नारों से आसमान गूंज रहा है…
पड़ोस के इलाके में बाद में काम लगाया जाएगा, अभी मजदूरों की स्त्रियों के साथ खेलने का समय है।
कलम कांप रही है, नहीं लिख पाऊंगा। बस इतना जानिए, हजार स्त्रियाँ…
अगले एक सप्ताह में रायपुर, रामगंज, बेगमपुर, लक्ष्मीपुर…. लगभग एक लाख लाशें गिरी हैं। तीस हजार स्त्रियों का बलात्कार हुआ है। जिन्ना ने अपनी ताकत दिखा दी है….
हिन्दू महासभा “निग्रह मोर्चा” बना कर बंगाल में उतरी , और सेना भी लगा दी। कत्लेआम रुक गया ।
बंगाल विधान सभा के प्रतिनिधि हारान चौधरी घोष कह रहे हैं, ” यह दंगा नहीं, मुसलमानों की एक सुनियोजित कार्यवाही है, एक कत्लेआम है।
गांधीजी का घमंड टूटा, पर भरम बाकी रहा। वे वायसराय माउंटबेटन से कहते हैं, “अंग्रेजी शासन की फूट डालो और राज करो की नीति ने ऐसा दिन ला दिया है कि अब लगता है या तो देश रक्त स्नान करे या अंग्रेजी राज चलता रहे”।
सच यही है कि गांधी अब हार गए थे और जिन्ना जीत गया था।
कत्लेआम कुछ दिन के लिए ठहरा भर था या शायद अधिक धार के लिए कुछ दिनों तक रोक दिया गया था।
6 सितम्बर 1946…
गुलाम सरवर हुसैनी, मुश्लिम लीग का अध्यक्ष बनता है और शाहपुर में कत्लेआम दुबारा शुरू…
10 अक्टूबर 1946
कोजागरी लक्ष्मीपूजा के दिन ही कत्लेआम की तैयारी है। नोआखाली के जिला मजिस्ट्रेट M J Roy रिटायरमेंट के दो दिन पूर्व ही जिला छोड़ कर भाग गए हैं। वे जानते हैं कि जिन्ना ने 10 अक्टूबर का दिन तय किया है, और वे हिन्दू हैं।
जो लोग भाग सके हैं वे पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और आसाम के हिस्सों में भाग गए हैं, जो नहीं भाग पाए उनपर कहर बरसी है। नोआखाली फिर जल उठा है।
लगभग दस हजार लोग दो दिनों में काटे गए हैं। इस बार नियम बदल गए हैं। पुरुषों के सामने उनकी स्त्रियों का बलात्कार हो रहा है, फिर पुरुषों और बच्चों को काट दिया जाता है। अब वह बलत्कृता स्त्री उसी राक्षस की हुई जिसने उसके पति और बच्चों को काटा है।
एक लाख हिन्दू बंधक बनाए गए हैं। उनके लिए मुक्ति का मार्ग निर्धारित है, “गोमांस खा कर इस्लाम स्वीकार करो और जान बचा लो”।
एक सप्ताह में लगभग पचास हजार हिंदुओं का धर्म परिवर्तन हुआ है।
जिन्ना का “डायरेक्ट एक्शन” सफल हुआ ! नेहरू और पटेल मन ही मन भारत विभाजन को स्वीकार कर चुके हैं।
आज सत्तर साल बाद ……
“जिन्ना सेकुलर थे।” ऐसा कहने वाले मनी शंकर अय्यर हो या सर्वेश तिवारी, अखिलेश यादव हो या कोई अन्य हो, भारत की धरती पर खड़े हो कर जिन्ना की बड़ाई करने वाले से बड़ा गद्दार इस विश्व में दूसरा कोई नहीं हो सकता।
इतिहास पढ़ो और थोड़ा सोचो, शेयर कीजिए इस पोस्ट को ताकि सेक्युलर हिन्दुओ को पता तो चले कि कौन था जिन्ना ।।
गूगल पर नोआखाली दर्दनाक हत्याकांड लिखकर शोध कर सकते है !
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गोरखपुर के इस मुस्लिम बहुल इलाके में योगी को मिले सिर्फ 9 वोट, मीडिया के सामने योगी को बताते थे मसीहा। 🤔
योगी को गोरखनाथ मंदिर से सटे इलाके चक्सा हुसैन बूथ पर करारी हार का सामना करना पड़ा है।
यहां के बूथ संख्या 267 जनप्रिय विहार द्वितीय में कुल 1016 मतदाता थे, जिसमें से 456 ने वोट डाला था, जिसमें योगी को केवल 9 वोट मिले।
इस आकड़े को देखकर हर कोई हैरान है।
योगी के काम की तारीफ की, पर वोट नहीं दिया
चक्सा हुसैन, जनप्रिय बिहार इलाका सीएम के आवास व गोरखनाथ मंदिर से सटा इलाका है, जिसकी दूरी मंदिर से करीब 50 कदम भी नहीं है। हालांकि सीएम योगी के गोरखनाथ मंदिर के आस पास की ज्यादातर दुकानें मुस्लिम समुदाय चला रहा है और उनकी आय का मुख्य साधन गोरखनाथ पीठ ही है। सिर्फ इतना ही नहीं गोरखनाथ मंदिर के कई अहम काम मुस्लिम समुदाय के लोगों को दिए गए हैं यहां तक कि मंदिर और उससे जुड़े भवनों के कंस्ट्रक्शन का काम भी एक अल्पसंख्यक समुदाय के शख्स ही देखते हैं। अक्सर जब गोरखनाथ मंदिर के आस पास के मुस्लिम बहुल इलाकों में मीडिया जाता है तो यहां सीएम योगी की काफी तारीफ की जाती है और उनके काम गिनवाए जाते हैं लेकिन अब जब वोट का हिसाब किताब हुआ तो हकीकत कुछ और ही थी जिसे देख कर बीजेपी की स्थानीय इकाई भी हैरान है।
Lesson: इस अदा को कुरान में अल-तकिया कहते हैं।
!!!रोचक तथ्य!!!
स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में झंडा फहराने में क्या है अंतर ?
पहला अंतर
15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर *झंडे को नीचे से रस्सी द्वारा खींच कर ऊपर ले जाया जाता है, फिर खोल कर फहराया जाता है, जिसे *ध्वजारोहण* कहा जाता है क्योंकि यह 15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक घटना को सम्मान देने हेतु किया जाता है जब प्रधानमंत्री जी ने ऐसा किया था। संविधान में इसे अंग्रेजी में Flag Hoisting (ध्वजारोहण) कहा जाता है।
जबकि
26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडा ऊपर ही बंधा रहता है, जिसे खोल कर फहराया जाता है, संविधान में इसे Flag Unfurling (झंडा फहराना) कहा जाता है।
दूसरा अंतर
15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री जो कि केंद्र सरकार के प्रमुख होते हैं वो ध्वजारोहण करते हैं, क्योंकि स्वतंत्रता के दिन भारत का संविधान लागू नहीं हुआ था और राष्ट्रपति जो कि राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख होते है, उन्होंने पदभार ग्रहण नहीं किया था। इस दिन शाम को राष्ट्रपति अपना सन्देश राष्ट्र के नाम देते हैं।
जबकि
26 जनवरी जो कि देश में संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, इस दिन संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं
तीसरा अंतर
स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से ध्वजारोहण किया जाता है।
जबकि
गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर झंडा फहराया जाता है।
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▪️विश्व विजयी
भारतीय संस्कृति🚩
🔰सिन्धु घाटी की लिपि : क्यों अंग्रेज़ और कम्युनिस्ट इतिहासकार नहीं चाहते थे कि इसे पढ़ाया जाए! 🔰
▪️इतिहासकार अर्नाल्ड जे टायनबी ने कहा था – विश्व के इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़ छाड़ की गयी है, तो वह भारत का इतिहास ही है।
भारतीय इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी की सभ्यता से होता है, इसे हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है। बताया जाता है, कि वर्तमान सिन्धु नदी के तटों पर 3500 BC (ईसा पूर्व) में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी। मोहनजोदारो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि इस सभ्यता के नगर थे।
पहले इस सभ्यता का विस्तार सिंध, पंजाब, राजस्थान और गुजरात आदि बताया जाता था, किन्तु अब इसका विस्तार समूचा भारत, तमिलनाडु से वैशाली बिहार तक, आज का पूरा पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान तथा (पारस) ईरान का हिस्सा तक पाया जाता है। अब इसका समय 7000 BC से भी प्राचीन पाया गया है।
इस प्राचीन सभ्यता की सीलों, टेबलेट्स और बर्तनों पर जो लिखावट पाई जाती है उसे सिन्धु घाटी की लिपि कहा जाता है। इतिहासकारों का दावा है, कि यह लिपि अभी तक अज्ञात है, और पढ़ी नहीं जा सकी। जबकि सिन्धु घाटी की लिपि से समकक्ष और तथाकथित प्राचीन सभी लिपियां जैसे इजिप्ट, चीनी, फोनेशियाई, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई आदि सब पढ़ ली गयी हैं।
आजकल कम्प्यूटरों की सहायता से अक्षरों की आवृत्ति का विश्लेषण कर मार्कोव विधि से प्राचीन भाषा को पढना सरल हो गया है।
सिन्धु घाटी की लिपि को जानबूझ कर नहीं पढ़ा गया और न ही इसको पढने के सार्थक प्रयास किये गए।
भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद (Indian Council of Historical Research) जिस पर पहले अंग्रेजो और फिर कम्युनिस्टों का कब्ज़ा रहा, ने सिन्धु घाटी की लिपि को पढने की कोई भी विशेष योजना नहीं चलायी।
आखिर ऐसा क्या था सिन्धु घाटी की लिपि में? अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकार क्यों नहीं चाहते थे, कि सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ा जाए?
अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों की नज़रों में सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्नलिखित खतरे थे –
- सिन्धु घाटी की लिपि को पढने के बाद उसकी प्राचीनता और अधिक पुरानी सिद्ध हो जायेगी। इजिप्ट, चीनी, रोमन, ग्रीक, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई से भी पुरानी. जिससे पता चलेगा, कि यह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है। भारत का महत्व बढेगा जो अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों को बर्दाश्त नहीं होगा।
- सिन्धु घाटी की लिपि को पढने से अगर वह वैदिक सभ्यता साबित हो गयी तो अंग्रेजो और कम्युनिस्टों द्वारा फैलाये गए आर्य- द्रविड़ युद्ध वाले प्रोपगंडा के ध्वस्त हो जाने का डर है।
- अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों द्वारा दुष्प्रचारित ‘आर्य बाहर से आई हुई आक्रमणकारी जाति है और इसने यहाँ के मूल निवासियों अर्थात सिन्धु घाटी के लोगों को मार डाला व भगा दिया और उनकी महान सभ्यता नष्ट कर दी। वे लोग ही जंगलों में छुप गए, दक्षिण भारतीय (द्रविड़) बन गए, शूद्र व आदिवासी बन गए’, आदि आदि गलत साबित हो जायेगा।
कुछ फर्जी इतिहासकार सिन्धु घाटी की लिपि को सुमेरियन भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे तो कुछ इजिप्शियन भाषा से, कुछ चीनी भाषा से, कुछ इनको मुंडा आदिवासियों की भाषा, और तो और, कुछ इनको ईस्टर द्वीप के आदिवासियों की भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे। ये सारे प्रयास असफल साबित हुए।
सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में निम्लिखित समस्याए बताई जाती है –
सभी लिपियों में अक्षर कम होते है, जैसे अंग्रेजी में 26, देवनागरी में 52 आदि, मगर सिन्धु घाटी की लिपि में लगभग 400 अक्षर चिन्ह हैं। सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में यह कठिनाई आती है, कि इसका काल 7000 BC से 1500 BC तक का है, जिसमे लिपि में अनेक परिवर्तन हुए साथ ही लिपि में स्टाइलिश वेरिएशन बहुत पाया जाता है। लेखक ने लोथल और कालीबंगा में सिन्धु घाटी व हड़प्पा कालीन अनेक पुरातात्विक साक्षों का अवलोकन किया।
भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक लिपि है जिसे ब्राह्मी लिपि कहा जाता है। इस लिपि से ही भारत की अन्य भाषाओँ की लिपियां बनी। यह लिपि वैदिक काल से गुप्त काल तक उत्तर पश्चिमी भारत में उपयोग की जाती थी। संस्कृत, पाली, प्राकृत के अनेक ग्रन्थ ब्राह्मी लिपि में प्राप्त होते है।
सम्राट अशोक ने अपने धम्म का प्रचार प्रसार करने के लिए ब्राह्मी लिपि को अपनाया। सम्राट अशोक के स्तम्भ और शिलालेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए और सम्पूर्ण भारत में लगाये गए।
सिन्धु घाटी की लिपि और ब्राह्मी लिपि में अनेक आश्चर्यजनक समानताएं है। साथ ही ब्राह्मी और तमिल लिपि का भी पारस्परिक सम्बन्ध है। इस आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि को पढने का सार्थक प्रयास सुभाष काक और इरावाथम महादेवन ने किया।
सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 400 अक्षर के बारे में यह माना जाता है, कि इनमे कुछ वर्णमाला (स्वर व्यंजन मात्रा संख्या), कुछ यौगिक अक्षर और शेष चित्रलिपि हैं। अर्थात यह भाषा अक्षर और चित्रलिपि का संकलन समूह है। विश्व में कोई भी भाषा इतनी सशक्त और समृद्ध नहीं जितनी सिन्धु घाटी की भाषा।
बाएं लिखी जाती है, उसी प्रकार ब्राह्मी लिपि भी दाएं से बाएं लिखी जाती है। सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 3000 टेक्स्ट प्राप्त हैं।
इनमे वैसे तो 400 अक्षर चिन्ह हैं, लेकिन 39 अक्षरों का प्रयोग 80 प्रतिशत बार हुआ है। और ब्राह्मी लिपि में 45 अक्षर है। अब हम इन 39 अक्षरों को ब्राह्मी लिपि के 45 अक्षरों के साथ समानता के आधार पर मैपिंग कर सकते हैं और उनकी ध्वनि पता लगा सकते हैं।
ब्राह्मी लिपि के आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि पढने पर सभी संस्कृत के शब्द आते है जैसे – श्री, अगस्त्य, मृग, हस्ती, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, कामधेनु, मूषिका, पग, पंच मशक, पितृ, अग्नि, सिन्धु, पुरम, गृह, यज्ञ, इंद्र, मित्र आदि।
निष्कर्ष यह है कि –
- सिन्धु घाटी की लिपि ब्राह्मी लिपि की पूर्वज लिपि है।
- सिन्धु घाटी की लिपि को ब्राह्मी के आधार पर पढ़ा जा सकता है।
- उस काल में संस्कृत भाषा थी जिसे सिन्धु घाटी की लिपि में लिखा गया था।
- सिन्धु घाटी के लोग वैदिक धर्म और संस्कृति मानते थे।
- वैदिक धर्म अत्यंत प्राचीन है।
हिन्दू सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन व मूल सभ्यता है, हिन्दुओं का मूल निवास सप्त सैन्धव प्रदेश (सिन्धु सरस्वती क्षेत्र) था जिसका विस्तार ईरान से सम्पूर्ण भारत देश था।वैदिक धर्म को मानने वाले कहीं बाहर से नहीं आये थे और न ही वे आक्रमणकारी थे। आर्य – द्रविड़ जैसी कोई भी दो पृथक जातियाँ नहीं थीं जिनमे परस्पर युद्ध हुआ हो।
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जब जब होय धरम कै हानी, बाढहिं असुर अधम अभिमानी,।
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा,
हरहि सदा भव सज्जन पीरा,।।
अपने धर्म पर विश्वास बनाए रखना,
कण कण में विष्णु बसें जन जन में श्रीराम,
प्राणों में माँ जानकी मन में बसे हनुमान।
श्रीकाशी विश्वनाथ
नौशाद भाई को अस्सलाम वालेकुम..नौशाद भाई आप बंगाल से उत्तर प्रदेश आये हैं तो हमारे मेहमान हुए..आपका दर्द सुना मैंने…महसूस भी किया..और हम हिंदू किसी धर्मस्थल से जुड़ा दर्द महसूस न करेंगे तो क्या अरब वाले करेंगे? नौशाद भाई , अब काशी की ट्रिप तो आपकी बेकार हो गई..आप मेरे साथ चलो घूमने..बनारस से हम लोग दिल्ली चलेंगे..वहाँ मैं तुम्हें अपने पुरखों के बनाये विष्णु स्तंभऔर जैन मंदिर कॉम्प्लेक्स दिखवाऊंगा… एक इस्लामी शासक ने उन्हें तोड़कर उनका नाम कुतुबमीनार रख दिया …वहीं एक बहुत प्राचीन मंदिर है कालका जी मंदिर…पुराना वाला तो एक इस्लामी शासक ने तुड़वा दिया था..ये वाला हमने उसके मरने के तुरंत बाद बनवा लिया था…वहां से हम मथुरा चलेंगे..वहां मेरे कृष्ण भगवान की जन्मभूमि है.. एक बहुत सुंदर मंदिर है वहां हालांकि जन्मभूमि वाली जगह पर जो ओरिजिनल मंदिर था उसे इस्लामी शासक औरंगजेब ने तुड़वा दिया था और मस्जिद बनवा दी थी. ..वहीं पास में वृंदावन है…वहां गोविंद देव मंदिर है..सात मंजिले इस मंदिर की चोटी पर जो दीपक जलते थे वे आगरा से देखे जा सकते थे..पर अब केवल 2 ही मंज़िल बची हैं क्योंकि बाकी की उसी इस्लामिक शासक औरंगजेब ने तुड़वा दी थीं. इस्लाम के नाम पर… फिर तुम मेरे शहर चलना..मेरे पुरखे बताते थे वहाँ की जामा मस्जिद को मेरा एक मंदिर तोड़कर उसके ऊपर बनाया गया है..तुम देखना उसे..वहीँ से हम जगन्नाथपुरी चलेंगे.. बहुत भव्य मंदिर है पर दिल्ली के एक इस्लामी शासक ने उसे 1670 के आस पास तुड़वा दिया था …अब तो फिर से बहुत सुंदर बन चुका है..वहीँ मैं तुम्हें एक मूर्ति दिखाउंगा.. मूर्ति माने बुत. ..जिसकी नाक उन्हीं लोगों ने तोड़ दी थी जो मंदिर तोड़ने आये थे..वहीँ पास में कोणार्क का सूर्य मंदिर देखने भी चलेंगे.. बहुत भव्य मंदिर है..बहुत विशाल..सैंकडों मूर्तियां है..सब मूर्तियों की एक खासियत है…पता है क्या? इन सब में से कोई एक भी ऐसी न है जिसकी आँख /नाक/मुंह/कान न तोड़े दिए गये हों.. ये भी इस्लाम के नाम ही टूटे थे..नौशाद भाई.. आप बताना मुझे पूछकर कि वो कौन सा खुदा है जो एक बेजुबान मूर्ति से इतना डरता है कि तुड़वा देता है? खैर कोई न ..यहां से हम नगरकोट/कांगड़ा देवी चलेंगे..ये हिमाचल प्रदेश में है..बहुत सिद्ध पीठ है..ग़ज़नवी से लेकर अकबर तक सबने लूटा है इसे..पहले बहुत बड़ा मंदिर था..200 गाये बंधी रहती थीं प्रांगड़ में…मज़हबी आक्रमणकारियों ने मंदिर लूटा.. फिर गाये काटीं.. उनका रक्त जूतों में भरकर वो जूते मंदिर की दीवारों पर फेंक दिए..खैर..फिर कश्मीर चलेंगे.. वहां अनन्त नाग जिले में हमारा मार्तण्ड सूर्य मंदिर है..मंदिर क्या है बस कुछ दीवारें हैं बची हुई..मंदिर को एक इस्लामी शासक ने तुड़वा दिया..पूरा टूट न सका तो उसमें आग लगवा दी थी…सिकन्दर बुतशिकन नाम था उसका.. और भी बहुत कुछ है दिखाने को..लंबा टूर है..नौशाद भाई आप चलोगे न मेरे साथ?सजल गुप्ता जी की वाल से