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भगवान श्रीगणेश के 8 अवतार
– श्रीगणेश के अवतारों के बारे में-

  1. वक्रतुंड (Vakratunda)-
    वक्रतुंड का अवतार राक्षस मत्सरासुर के दमन के लिए हुआ था। मत्सरासुर शिव भक्त था और उसने शिव की उपासना करके वरदान पा लिया था कि उसे किसी से भय नहीं रहेगा। मत्सरासुर ने देवगुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से देवताओं को प्रताडि़त करना शुरू कर दिया। उसके दो पुत्र भी थे सुंदरप्रिय और विषयप्रिय, ये दोनों भी बहुत अत्याचारी थे। सारे देवता शिव की शरण में पहुंच गए। शिव ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे गणेश का आह्वान करें, गणपति वक्रतुंड अवतार लेकर आएंगे। देवताओं ने आराधना की और गणपति ने वक्रतुंड अवतार लिया। वक्रतुंड भगवान ने मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का संहार किया और मत्सरासुर को भी पराजित कर दिया। वही मत्सरासुर कालांतर में गणपति का भक्त हो गया।
  2. एकदंत (Ekadanta)-
    महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद की रचना की। वह च्यवन का पुत्र कहलाया। मद ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली। शुक्राचार्य ने उसे हर तरह की विद्या में निपुण बनाया। शिक्षा होने पर उसने देवताओं का विरोध शुरू कर दिया। सारे देवता उससे प्रताडि़त रहने लगे। मद इतना शक्तिशाली हो चुका था कि उसने भगवान शिव को भी पराजित कर दिया। सारे देवताओं ने मिलकर गणपति की आराधना की। तब भगवान गणेश एकदंत रूप में प्रकट हुए। उनकी चार भुजाएं थीं, एक दांत था, पेट बड़ा था और उनका सिर हाथी के समान था। उनके हाथ में पाश, परशु और एक खिला हुआ कमल था। एकदंत ने देवताओं को अभय वरदान दिया और मदासुर को युद्ध में पराजित किया।
  3. महोदर (Mahodar)-
    जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को संस्कार देकर देवताओं के खिलाफ खड़ा कर दिया। मोहासुर से मुक्ति के लिए देवताओं ने गणेश की उपासना की। तब गणेश ने महोदर अवतार लिया। महोदर का उदर यानी पेट बहुत बड़ा था। वे मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में पहुंचे तो मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया।
  4. गजानन (Gajanan)-
    एक बार धनराज कुबेर भगवान शिव-पार्वती के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचा। वहां पार्वती को देख कुबेर के मन में काम प्रधान लोभ जागा। उसी लोभ से लोभासुर का जन्म हुआ। वह शुक्राचार्य की शरण में गया और उसने शुक्राचार्य के आदेश पर शिव की उपासना शुरू की। शिव लोभासुर से प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसे सबसे निर्भय होने का वरदान दिया। इसके बाद लोभासुर ने सारे लोकों पर कब्जा कर लिया और खुद शिव को भी उसके लिए कैलाश को त्यागना पड़ा। तब देवगुरु ने सारे देवताओं को गणेश की उपासना करने की सलाह दी। गणेश ने गजानन रूप में दर्शन दिए और देवताओं को वरदान दिया कि मैं लोभासुर को पराजित करूंगा। गणेश ने लोभासुर को युद्ध के लिए संदेश भेजा। शुक्राचार्य की सलाह पर लोभासुर ने बिना युद्ध किए ही अपनी पराजय स्वीकार कर ली।
  5. लंबोदर (Lambodar)-
    समुद्रमंथन के समय भगवान विष्णु ने जब मोहिनी रूप धरा तो शिव उन पर काम मोहित हो गए। उनका शुक्र स्खलित हुआ, जिससे एक काले रंग के दैत्य की उत्पत्ति हुई। इस दैत्य का नाम क्रोधासुर था। क्रोधासुर ने सूर्य की उपासना करके उनसे ब्रह्मांड विजय का वरदान ले लिया। क्रोधासुर के इस वरदान के कारण सारे देवता भयभीत हो गए। वो युद्ध करने निकल पड़ा। तब गणपति ने लंबोदर रूप धरकर उसे रोक लिया। क्रोधासुर को समझाया और उसे ये आभास दिलाया कि वो संसार में कभी अजेय योद्धा नहीं हो सकता। क्रोधासुर ने अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़कर पाताल लोक में चला गया।
  6. विकट (Vikata)-
    भगवान विष्णु ने जलंधर के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया। उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ, उसका नाम था कामासुर। कामासुर ने शिव की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान पा लिया। इसके बाद उसने अन्य दैत्यों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। तब सारे देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया। तब भगवान गणपति ने विकट रूप में अवतार लिया। विकट रूप में भगवान मोर पर विराजित होकर अवतरित हुए। उन्होंने देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित किया।
  7. विघ्नराज (Vighnaraj)-
    एक बार पार्वती अपनी सखियों के साथ बातचीत के दौरान जोर से हंस पड़ीं। उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई। पार्वती ने उसका नाम मम (ममता) रख दिया। वह माता पार्वती से मिलने के बाद वन में तप के लिए चला गया। वहीं उसकी मुलाकात शम्बरासुर से हुई। शम्बरासुर ने उसे कई आसुरी शक्तियां सीखा दीं। उसने मम को गणेश की उपासना करने को कहा। मम ने गणपति को प्रसन्न कर ब्रह्मांड का राज मांग लिया।

शम्बर ने उसका विवाह अपनी पुत्री मोहिनी के साथ कर दिया। शुक्राचार्य ने मम के तप के बारे में सुना तो उसे दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया। ममासुर ने भी अत्याचार शुरू कर दिए और सारे देवताओं के बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया। तब देवताओं ने गणेश की उपासना की। गणेश विघ्नराज के रूप में अवतरित हुए। उन्होंने ममासुर का मान मर्दन कर देवताओं को छुड़वाया।

  1. धूम्रवर्ण (Dhoomvarna)-
    एक बार भगवान ब्रह्मा ने सूर्यदेव को कर्म राज्य का स्वामी नियुक्त कर दिया। राजा बनते ही सूर्य को अभिमान हो गया। उन्हें एक बार छींक आ गई और उस छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई। उसका नाम था अहम। वो शुक्राचार्य के समीप गया और उन्हें गुरु बना लिया। वह अहम से अहंतासुर हो गया। उसने खुद का एक राज्य बसा लिया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिए।

उसने भी बहुत अत्याचार और अनाचार फैलाया। तब गणेश ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया। उनका वर्ण धुंए जैसा था। वे विकराल थे। उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं। धूम्रवर्ण ने अहंतासुर का पराभाव किया। उसे युद्ध में हराकर अपनी भक्ति प्रदान की।

श्री गुरु गणेशाय नमः
गाइए गाइए गणपति जगबन्दन।
शंकर सुवन भवानी नन्दन।।
जय श्री गणेश प्रात वन्दन अभिनंदन भैया जी

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Amazing facts of GANESHA


Amazing facts of GANESHA Did you know there are 250 temples of Ganesha in Japan. In Japan, Ganesha is known as ‘Kangiten’, the God of fortune and the harbinger of happiness, prosperity and good. An Oxford publication claims that Ganesha was worshipped in the early days in Central Asia and other parts of the globe. Ganesha statues have been found in Afghanistan, Iran, Myanmar, Sri Lanka, Nepal, Thailand, Laos, Cambodia, Vietnam, China, Mongolia, Japan, Indonesia, Brunei, Bulgaria, Mexico and other Latin American countries. It means the cult of Ganesha was prevelant all over the world in ancient times. Ganesha in Europe, Canada and the USA Ganesha’s idol and paintings are exhibited in all the important museums and art galleries of all the European countries especially in the UK, Germany, France and Switzerland. Ganesha idols and paintings(as goodluck charm) are also present in thousands of houses/offices of successful business/writers/artists in all the European countries and in Canada and the USA. Recently a figure of Ganesha was unearthed in a village near Sofia, Bulgaria. Like Indians, the Romans worshipped Ganesha before any work was begun. Irish believe in Ganesha luck. The embassy of Ireland at New Delhi became the first European embassy to invoke the blessings of Ganesha by installing a statue of Ganesha at the main entrance of the embassy. Silicon Valley in USA selects Ganesha as the presiding Deity of cyberspace technology * “Ganesha is the God of knowledge and Ganesha’s vehicle is the mouse and, as you know, for software engineers the mouse is the vehicle that they use to take their ideas and innovations from one place to the other.” Hence it was decided by the computer industry association to select Ganesha as the presiding Deity of Silicon Valley. *Ganesha on Greek coin. Early images of an elephant headed Deity, including those on an Indo-Greek coin and elsewhere, dating between the first and third centuries BC, represent Ganesha as the demi God Vinayaka. Indonesia Currency notes. One of the Indonesian currency notes carries the picture of Ganesha. Vedic origin of Ganesha. 10,000 year old secret of success. Devotees of Ganesha make reference to his Vedic origin which is around 10,000 years old to push his antecedents back in time. The Vedas have invoked him as ‘namo Ganebhyo Ganapati’ (Yajurveda, 16/25), or remover of obstacles, Ganapati, we salute you. The Mahabharata has elaborated on his personal appearance and Upanishads on his immense power. “Scholars say artifacts from excavations in Luristan and Harappa and an old Indo-Greek coin from Hermaeus, present images that remarkably resemble Ganesha”. (“Robert Brown in his Book “Ganesha: Studies of an Asian God”:State University of New York Albany). Happy ganesh chaturthi

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गजाननं भूत गणाधिपति सेवितं कपित्थजंबू फल चारूभक्षणं। उमासुतं शोकविनाश कारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजं।।


गजाननं भूत गणाधिपति सेवितं

कपित्थजंबू फल चारूभक्षणं।

उमासुतं शोकविनाश कारकं

नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजं।।

आप सभी का दिवस बरस मंगलमय हो,,, समस्त मनोकामनायें पूर्ण हों,,, गणतंत्र के देवता हैं गणपति ! सर्वत्र होती है गणपति की पूजा ! विश्व भर में पूज्य भगवान गणपति गणतंत्र भारत के देवता हैं,क्योंकि भारत को स्वतन्त्रता दिलाने में भगवान गणेश का भी आशीर्वाद रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोकमान्य तिलक ने गणेश उत्सवों के माध्यम से ही स्वाधीनता का अलख जगाया था। भगवान गणेश के आशीर्वाद से भारत में गणतंत्र की स्थापना हुई। इसलिए वे देश के प्रमुख देवता हैं। भारत भर में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना गया है। कहा गया है कि गणेश की आराधना सरल है,साथ ही वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता भी हैं। उन्हें मोदक प्रिय भी कहा गया है। इसलिए उनके भोग में मोदक अवश्य रखा जाता है। विश्व भर में विराजित हैं !! श्रीगणेश प्रथम पूज्य मंगलमूर्ति गणपति की उपासना दुनिया और देश-विदेश में भी कई स्थानो पर की जाती है। जापान में स्थित गणपति की महिमा ! जापान के एक हिन्दू मंदिर में तो गणेश जी की हाथी पर सवार एक दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन होते हैं। यहां बसे हिन्दू के अलावा जापानी लोग भी इस देवता के प्रति श्रद्धा रखते हैं। यहां के भक्तगण अपनी मनौती पूर्ण करने के लिए यहां आकर अपने सिर के बाल कटवाते हैं। जापान में बसे लोग अपनी मनौती पूर्ण होने पर गरीबों को सोने-चांदी के गहनों का दान देते हैं। हाथी को मोटे-मोटे रोट और गन्ने खिलाते हैं,ताकि गणपति बाबा की सभी पर असीम कृपा सदा बनी रहे। इंडोनेशिया :- – इंडोनेशिया के सरकारी नोटों पर तो मंगलमूर्ति ‘गणेश’ का चित्र छपा है। – उसी के बगल में यहां के चर्चित राष्ट्रपुरुष का भी चित्र छपा है। – हालांकि यह एक मुस्लिम मुल्क है, परंतु हिन्दू रीति-रिवाज यहां आज भी लोकप्रिय हैं। अमेरिका : – – सन् 1968 में अमेरिका के डाक विभाग ने दो डॉलर का जो डाक टिकट जारी किया था,उसमें चूहे पर गणपति विराजमान थे। – वर्तमान में यह डाक टिकट दुर्लभ है तथा दो डॉलर के इस टिकट की कीमत सात हजार डॉलर है। अफ्रीका ;- – अफ्रीका में गजानंद की महिमा से प्रकृति इतनी प्रभावित हुई कि एक विशाल वृक्ष की शाख पर उसने गणपति की आकृति की रचना कर दी। – प्रकृति की इस दुर्लभ आकृति को यहां के आदिवासी अपना लोक देवता मानते हैं। – वोर्निया में गणपति की चार भुजाएं हैं और यह गहरे पीले रंग के आसन पर बाघ चर्म लपेट कर पालथी मारकर विराजमान हैं। – यहां गणेश चतुर्थी पर ‘गणेशजी’ की सुंदर झांकी बनती है। – लोग खूब ढोल और बांसुरी बजाते हैं और बच्चे जमकर आतिशबाजी करते हैं। श्रीलंका के हिन्दू देवालयों में गणेश चतुर्थी के दिन गणपति का नया चोला बदला जाता है तथा पुराने चोलों को पानी में प्रवाहित कर दिया जाता है। इस दिन लोगों द्वारा गणपति की पूजा जंगली फलों-फूलों से की जाती है। मलय देश में ‘गणपति’ को ‘गज्जू’ नाम से जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन यहां के खंडहर हिन्दू मंदिरों में ‘गणपति’ मंत्र जपा जाता है,फिर गणेशजी की सवारी निकाली जाती है। सुमात्रा द्वीप में गणेश चतुर्थी पर घर-आंगन को लीप-पोत कर साफ-सुथरा बनाया जाता है। फिर पेड़ों के पत्तों और फूलों से एक शानदार मंडप बनाया जाता है। इसमें माटी से निर्मित ‘गणपति’ की स्थापना शुभ-समय में की जाती है। दीप और सुगंधित बत्तियां जलाकर गणपति को प्रसन्न किया जाता है। 24 घंटे रखने के पश्चात श्रीगणेश की प्रतिमा किसी जलाशय में विसर्जित कर दी जाती है। गजाननं भूत गणाधिपति सेवितं कपित्थजंबू फल चारूभक्षणं। उमासुतं शोकविनाश कारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजं।। विघ्नेश्वराय वरदाय लंबोदराय सकलाय जगद्धिताय। नागाननाय सुरयज्ञ विभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमोस्तुते।। समस्त चराचर प्राणियों एवं सकल विश्व का कल्याण करो प्रभु श्री गणेश !! जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,, जयति पुण्य भूमि भारत,,, सदा सर्वदा सुमंगल,,, हर हर महादेव,, ॐ गं गणपतये नम:,,, ॐ वं वक्रतुण्डाय हुम जय भवानी,,, जय श्री राम,,

विजय कृष्णा पांडेय

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Ganesh


Ganesh has several meanings and concepts. Knowledge is of 2 broad types-countable is Ganesh (Ganana = to count, to calculate). KaNa = particle, gaNa = collection of particles or a group). Abstract or non-countable knowledge is Sarasvati. Rasa = abstract, essence. Filled with Rasa is Sarasvati. There are 2 types of nouns- countable, abstract. Space as collection of bodies is GaNesh. Spread of rare matter in space or the space itself is Sarasvati. Visible universe is collection of 100 billion galaxies. So, this number is called Kharva (100 billions). Only one fourth of source material was used for creating universe. Remaining unused material is Uchchhisht Ganapati ( Purush Sukta-3, 4). Aa image of visible universe, our galaxy has 100 billion stars and our brains have 100 billion neurons (Shatapath Brahmana, 12/1/1/1). Galaxy is Ganapati. Its measure in ahargan unit is 48. 49 is boundary of galaxy. Motion in each zone is 1 Marut. There are 49 Marut zones in galaxy. Visible universe is Maha-ganapti. Discrete mathematics is Ganesh, abstract or field theory is Sarasvati. Digital computer is GaNesh, analogue is Sarasvati. I had discussed it with prof Abdus Salam in 1981. He remarked that control of digital computer should be called mouse which is vehicle of Ganesh. This name could have been on his suggestion. As opposite ends of knowledge, Ganesh Puja on Bhadra Shukla 4th and Saraswati puja on Magh Shukla 5th are on opposite sides of year cycle. As collection of people, a country or its head is Ganesh. As collector of tax, he has been called Karat in Taittiriya Samhita. Land itself is Parvati with 52 Shakti Pithas. Arun Upadhyay

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श्री गणेश की मूर्ति के विषय में सारगर्भित वर्णन


श्री गणेश की मूर्ति के विषय में सारगर्भित वर्णन— 1-श्री गणेश की मूर्ति 1फुट से अधिक बड़ी (ऊंची) नहीं होना चाहिए. 2-एक व्यक्ति के द्वारा सहजता से उठाकर लाई जा सके ऐसी मूर्ति हो. 3-सिंहासन पर बैठी हुई, लोड पर टिकी हुई प्रतिमा सर्वोत्तम है 4-सांप,गरुड,मछली आदि पर आरूढ अथवा युद्ध करती हुई या चित्रविचित्र आकार प्रकार की प्रतिमा बिलकुल ना रखें. 5-शिवपार्वती की गोद में बैठे हुए गणेश जी कदापि ना लें. क्येंकि शिवपार्वती की पूजा लिंगस्वरूप में ही किये जाने का विधान है. शास्त्रों में शिवपार्वती की मूर्ति बनाना और उसे विसर्जित करना निषिद्ध है. 6-श्रीगणेश की मूर्ति की आंखों पर पट्टी बांधकर घरपर ना लाएं. 7-श्रीगणेश की जबतक विधिवत प्राणप्रतिष्ठा नहीं होती तब तक देवत्व नहीं आता. अत: विधिवत् प्राणप्रतिष्ठा करें. 8-परिवार मेंअथवा रिश्तेदारी में मृत्युशोक होने पर, सूतक में पडोसी या मित्रों द्वारा पूजा, नैवेद्य आदि कार्य करायें. विसर्जित करने की शीघ्रता ना करें. 9-श्रीगणेश की प्राणप्रतिष्ठा होने के बाद घर में वादविवाद, झगड़ा, मद्यपान, मांसाहार आदि ना करें. 10-श्रीगणेशजी को ताजी सब्जीरोटी का भी प्रसाद नैवेद्य के रूप में चलता है केवल उसमें खट्टा, तीखा, मिर्चमसाले आदि ना हों. 11-दही+शक्कर+भात यह सर्वोत्तम नैवेद्य है. 12-विसर्जन के जलूस में झांज- मंजीरा,भजन आदि गाकर प्रभु को शांति पूर्वक विदा करें. डी. जे. पर जोर जोर से अश्लील नाच, गाने, होहल्ला करके विकृत हावभाव के साथ श्रीगणेश की बिदाई ना करें. ध्यान रहे कि इस प्रकार के अश्लील गाने अन्यधर्मावलंबियों केउत्सवों पर नहीं बजाते. 13-यदि ऊपर वर्णित बातों पर अमल करना संभव ना हो तो श्रीगणेश की स्थापना कर उस मूर्ति का अपमान ना करें. अंत में-जो लोग 10दिनों तक गणेशाय की झांकी के सामने रहते हैं, अगर वो नहीं सुधर सकते, तो हम आप भीड़ में धक्के खाकर 2,4 सेकिंड का दर्शन कर सुघर जायेंगे??? कितने अंधेरे में हैं हम लोग.!! इस अंधेरे में क्षणिक प्रकाश ढूंढने की अपेक्षा, घर में रखी हुई गणेशमूर्ति के सामने 1घंटे तक शांत बैठे. अपना आत्मनिरीक्षण करें, अच्छा व्यवहार करें.. घरपर ही गणेश आपपर कृपा बरसायेंगे. श्रीगणेशजी एक ही हैं…. उनकी अलग अलग कंपनियां नहीं होती… अपनी सोच अलग हो सकती है. एकाग्रचित्त हों, शांति प्राप्त करें…

लष्मीकांत वर्शनय

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गणेश चतुर्थी-


गणेश चतुर्थी- पूजन मुहूर्त,सामग्री, विधी, आरती। पूजा की तिथि गणेश चतुर्थी 25 अगस्त 2017 को है। -चतुर्थी 24 अगस्त 2017 को रात 20:27 बजे शुरू होगी। -चतुर्थी 25 अगस्त 2017 को रात 20:31 बजे समाप्त होगी। पूजन मुहूर्त गणेश जी की मुर्ति लाने का समय: प्रातः 07:38 से 08:32 तक । -गणेश पूजन का शुभ समय प्रातः 09:15 से 10:28 बजे तक , दोपहर 12:16 से 01:17 तक है। पूजा की सामग्री। गणेश जी की पूजा करने के लिए चौकी या पाटा, जल कलश, लाल कपड़ा, पंचामृत, रोली, मोली, लाल चन्दन, जनेऊ गंगाजल, सिन्दूर चांदी का वर्क लाल फूल या माला इत्र मोदक या लडडू धानी सुपारी लौंग, इलायची नारियल फल दूर्वा, दूब पंचमेवा घी का दीपक धूप, अगरबत्ती और कपूर की आवस्यकता होती है। पूजा की विधि भगवान गणेश की पूजा करने लिए सबसे पहले सुबह नहा धोकर शुद्ध लाल रंग के कपड़े पहने। क्योकि गणेश जी को लाल रंग प्रिय है। पूजा करते समय आपका मुंह पूर्व दिशा में या उत्तर दिशा में होना चाहिए। सबसे पहले गणेश जी को पंचामृत से स्नान कराएं। उसके बाद गंगा जल से स्नान कराएं। गणेश जी को चौकी पर लाल कपड़े पर बिठाएं। ऋद्धि-सिद्धि के रूप में दो सुपारी रखें। गणेश जी को सिन्दूर लगाकर चांदी का वर्क लगाएं। लाल चन्दन का टीका लगाएं। अक्षत (चावल) लगाएं। मौली और जनेऊ अर्पित करें। लाल रंग के पुष्प या माला आदि अर्पित करें। इत्र अर्पित करें। दूर्वा अर्पित करें। नारियल चढ़ाएं। पंचमेवा चढ़ाएं। फल अर्पित करें। मोदक और लडडू आदि का भोग लगाएं। लौंग इलायची अर्पित करें। दीपक, अगरबत्ती, धूप आदि जलाएं इससे गणेश जी प्रसन्न होते हैं। गणेश जी की प्रतिमा के सामने प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष व संकट नाशन गणेश आदि स्तोत्रों का पाठ करे यह मंत्र पढ़ें गणेश मन्त्र उच्चारित करें ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभः। निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।। ऐसे कपूर जलाकर करें आरती करें जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।। जय गणेश जय गणेश… एक दन्त दयावंत चार भुजाधारी। माथे सिन्दूर सोहे मूष की सवारी।। जय गणेश जय गणेश… अंधन को आँख देत कोढ़िन को काया। बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।। जय गणेश जय गणेश… हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लडूवन का भोग लगे संत करे सेवा।। जय गणेश जय गणेश… दीनन की लाज राखी शम्भु सुतवारी। कामना को पूरा करो जग बलिहारी।। जय गणेश जय गणेश… श्री कृष्ण मित्रविंदा धाम भैरवगढ़ रोड उज्जैन मध्य प्रदेश

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Ganesha (गणेश)


Ganesha (गणेश): The elephant god, son of Shankar (भगवान शंकर) and Parvati (देवी पार्वती). He is the God of wisdom and good judgement. He is worshipped as the remover of obstacles (विघ्नहर्ता) that stand in the way of good deeds. He is also known to plants obstacles in the path of evil activities (दुष्टदलन). Though neither human nor animal, Ganesha combines human intelligence with the physical strength of an Elephant. He is considered to be the supreme embodiment of knowledge and divine wisdom (बुद्धी रिद्धि सिद्धि प्रदायक). He is said to have written the Mahabharata from the dictation of sage Vyasa. He is a charming though odd looking deity. He is represented as short, fat and with a protruding belly. His skin has an orangish hue and his appearance reflects prosperity. He has four hands, the head of an elephant (गजानन) and only one tusk (एकदंत). In one hand he holds a shell, in another a discus, a club in the third and a water lily in the fourth. He is shown as riding on a rat. He is said to possess a third eye like his parents. But unlike them, it is not there to display anger. On the contrary, it is a symbol of his wisdom. He is also a dancer, and his dancing is joyous and not destructive.
‪#‎Ganesha‬ ‪#‎Ekadanta‬ ‪#‎Gajanana‬ ‪#‎Lambodara‬ ‪#‎Vighnahartata‬

Kamal Nandlal – http://KamalNandlal.com – +919310203939

Ganesha (गणेश): The elephant god, son of Shankar (भगवान शंकर) and Parvati (देवी पार्वती). He is the God of wisdom and good judgement. He is worshipped as the remover of obstacles (विघ्नहर्ता) that stand in the way of good deeds. He is also known to plants obstacles in the path of evil activities (दुष्टदलन). Though neither human nor animal, Ganesha combines human intelligence with the physical strength of an Elephant. He is considered to be the supreme embodiment of knowledge and divine wisdom (बुद्धी रिद्धि सिद्धि प्रदायक). He is said to have written the Mahabharata from the dictation of sage Vyasa. He is a charming though odd looking deity. He is represented as short, fat and with a protruding belly. His skin has an orangish hue and his appearance reflects prosperity. He has four hands, the head of an elephant (गजानन) and only one tusk (एकदंत). In one hand he holds a shell, in another a discus, a club in the third and a water lily in the fourth. He is shown as riding on a rat. He is said to possess a third eye like his parents. But unlike them, it is not there to display anger. On the contrary, it is a symbol of his wisdom. He is also a dancer, and his dancing is joyous and not destructive. 
#Ganesha #Ekadanta #Gajanana #Lambodara #Vighnahartata
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क्यों बना मूषक गणेश की सवारी, क्यों टूटा दांत


क्यों बना मूषक गणेश की सवारी, क्यों टूटा दांत
भगवान गणेश की शारीरिक बनावट के मुकाबले उनका वाहन छोटा सा चूहा है। गणेश जी ने आखिर छोटे से जीव को ही अपना वाहन क्यों चुना? उनकी ध्वजा पर भी मूषक विराजमान है। चूहे का काम किसी भी चीज को कुतर डालना है,जो भी वस्तु चूहे को नजर आती है वह उसकी चीरफाड़ कर उसके अंग प्रत्यंग का विश्लेषण सा कर देता है।
गणेश जी बुद्धि और विद्या के अधिष्ठाता देवता हैं। तर्क-वितर्क में उनका सानी कोई नहीं। एक-एक बात या समस्या की तह में जाना,उसकी मीमांसा करना और उसके निष्कर्ष तक पहुंचना उनका शौक है। मूषक भी तर्क-वितर्क में पीछे नहीं हैं। हर वस्तु को काट-छांट कर रख देता है और उतना ही फुर्तीला भी है। जागरूक रहने का संदेश देता है।
गणेश जी ने कदाचित चूहे के इन्हीं गुणों को देखते हुए उसे अपना वाहन चुना होगा। फिर भी भगवान गणेश के वाहन मूषक के बारे में कई प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं।
गजमुखासुर नामक दैत्य ने अपने बाहुबल से देवताओं को बहुत परेशान कर दिया। सभी देवता एकत्रित होकर भगवान गणेश के पास पहुंचे। तब भगवान श्रीगणेश ने उन्हें गजमुखासुर से मुक्ति दिलाने का भरोसा दिलाया।
तब श्रीगणेश का गजमुखासुर दैत्य से भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में श्रीगणेश का एक दांत टूट गया। तब क्रोधित होकर श्रीगणेश ने टूटे दांत से गजमुखासुर पर ऐसा प्रहार किया कि वह घबराकर चूहा बनकर भागा लेकिन गणेशजी ने उसे पकड़ लिया। मृत्यु के भय से वह क्षमायाचना करने लगा। तब श्रीगणेश ने मूषक रूप में ही उसे अपना वाहन बना लिया।

एक अन्य कथा के अनुसार
एक महा बलवान मूषक ने पराशर ऋषि के आश्रम में भयंकर उत्पात मचा दिया, आश्रम के सारे मिट्टी के पात्र तोड़कर सारा अन्न समाप्त कर दिया, आश्रम की वाटिका उजाड़ डाली, ऋषियों के समस्त वल्कल वस्त्र और ग्रंथ कुतर दिए। आश्रम की सभी उपयोगी वस्तुएं नष्ट हो जाने के कारण पराशर ऋषि बहुत दुखी हुए और अपने पूर्व जन्म के कर्मों को कोसने लगे कि किस अपकर्म के फलस्वरूप मेरे आश्रम की शांति भंग हो गई है। अब इस चूहे के आतंक से कैसे निजात मिले?
तब गणेश जी ने पराशर जी को कहा कि मैं अभी इस मूषक को अपना वाहन बना लेता हूं। गणेश जी ने अपना तेजस्वी पाश फेंका, पाश उस मूषक का पीछा करता पाताल तक गया और उसका कंठ बांध लिया और उसे घसीट कर बाहर निकाल गजानन के सम्मुख उपस्थित कर दिया। पाश की पकड़ से मूषक मूर्छित हो गया। मूर्छा खुलते ही मूषक ने गणेश जी की आराधना शुरू कर दी और अपने प्राणों की भीख मांगने लगा।
गणेश जी मूषक की स्तुति से प्रसन्न तो हुए लेकिन उससे कहा कि तूने ब्राह्मणों को बहुत कष्ट दिया है। मैंने दुष्टों के नाश एवं साधु पुरुषों के कल्याण के लिए ही अवतार लिया है, लेकिन शरणागत की रक्षा भी मेरा परम धर्म है, इसलिए जो वरदान चाहो मांग लो।
ऐसा सुनकर उस उत्पाती मूषक का अहंकार जाग उठा, बोला, ‘मुझे आपसे कुछ नहीं मांगना है, आप चाहें तो मुझसे वर की याचना कर सकते हैं।’ मूषक की गर्व भरी वाणी सुनकर गणेश जी मन ही मन मुस्कराए और कहा, ‘यदि तेरा वचन सत्य है तो तू मेरा वाहन बन जा।
मूषक के तथास्तु कहते ही गणेश जी तुरंत उस पर आरूढ़ हो गए। अब भारी भरकम गजानन के भार से दबकर मूषक को प्राणों का संकट बन आया। तब उसने गजानन से प्रार्थना की कि वे अपना भार उसके वहन करने योग्य बना लें। इस तरह मूषक का गर्व चूर कर गणेश जी ने उसे अपना वाहन बना लिया।

क्यों बना मूषक गणेश की सवारी, क्यों टूटा दांत
भगवान गणेश की शारीरिक बनावट के मुकाबले उनका वाहन छोटा सा चूहा है। गणेश जी ने आखिर छोटे से जीव को ही अपना वाहन क्यों चुना? उनकी ध्वजा पर भी मूषक विराजमान है। चूहे का काम किसी भी चीज को कुतर डालना है,जो भी वस्तु चूहे को नजर आती है वह उसकी चीरफाड़ कर उसके अंग प्रत्यंग का विश्लेषण सा कर देता है। 
गणेश जी बुद्धि और विद्या के अधिष्ठाता देवता हैं। तर्क-वितर्क में उनका सानी कोई नहीं। एक-एक बात या समस्या की तह में जाना,उसकी मीमांसा करना और उसके निष्कर्ष तक पहुंचना उनका शौक है। मूषक भी तर्क-वितर्क में पीछे नहीं हैं। हर वस्तु को काट-छांट कर रख देता है और उतना ही फुर्तीला भी है। जागरूक रहने का संदेश देता है। 
गणेश जी ने कदाचित चूहे के इन्हीं गुणों को देखते हुए उसे अपना वाहन चुना होगा। फिर भी भगवान गणेश के वाहन मूषक के बारे में कई प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं। 
गजमुखासुर नामक दैत्य ने अपने बाहुबल से देवताओं को बहुत परेशान कर दिया। सभी देवता एकत्रित होकर भगवान गणेश के पास पहुंचे। तब भगवान श्रीगणेश ने उन्हें गजमुखासुर से मुक्ति दिलाने का भरोसा दिलाया। 
तब श्रीगणेश का गजमुखासुर दैत्य से भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में श्रीगणेश का एक दांत टूट गया। तब क्रोधित होकर श्रीगणेश ने टूटे दांत से गजमुखासुर पर ऐसा प्रहार किया कि वह घबराकर चूहा बनकर भागा लेकिन गणेशजी ने उसे पकड़ लिया। मृत्यु के भय से वह क्षमायाचना करने लगा। तब श्रीगणेश ने मूषक रूप में ही उसे अपना वाहन बना लिया।

एक अन्य कथा के अनुसार
एक महा बलवान मूषक ने पराशर ऋषि के आश्रम में भयंकर उत्पात मचा दिया, आश्रम के सारे मिट्टी के पात्र तोड़कर सारा अन्न समाप्त कर दिया, आश्रम की वाटिका उजाड़ डाली, ऋषियों के समस्त वल्कल वस्त्र और ग्रंथ कुतर दिए। आश्रम की सभी उपयोगी वस्तुएं नष्ट हो जाने के कारण पराशर ऋषि बहुत दुखी हुए और अपने पूर्व जन्म के कर्मों को कोसने लगे कि किस अपकर्म के फलस्वरूप मेरे आश्रम की शांति भंग हो गई है। अब इस चूहे के आतंक से कैसे निजात मिले? 
तब गणेश जी ने पराशर जी को कहा कि मैं अभी इस मूषक को अपना वाहन बना लेता हूं। गणेश जी ने अपना तेजस्वी पाश फेंका, पाश उस मूषक का पीछा करता पाताल तक गया और उसका कंठ बांध लिया और उसे घसीट कर बाहर निकाल गजानन के सम्मुख उपस्थित कर दिया। पाश की पकड़ से मूषक मूर्छित हो गया। मूर्छा खुलते ही मूषक ने गणेश जी की आराधना शुरू कर दी और अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। 
गणेश जी मूषक की स्तुति से प्रसन्न तो हुए लेकिन उससे कहा कि तूने ब्राह्मणों को बहुत कष्ट दिया है। मैंने दुष्टों के नाश एवं साधु पुरुषों के कल्याण के लिए ही अवतार लिया है, लेकिन शरणागत की रक्षा भी मेरा परम धर्म है, इसलिए जो वरदान चाहो मांग लो। 
ऐसा सुनकर उस उत्पाती मूषक का अहंकार जाग उठा, बोला, ‘मुझे आपसे कुछ नहीं मांगना है, आप चाहें तो मुझसे वर की याचना कर सकते हैं।’ मूषक की गर्व भरी वाणी सुनकर गणेश जी मन ही मन मुस्कराए और कहा, ‘यदि तेरा वचन सत्य है तो तू मेरा वाहन बन जा। 
मूषक के तथास्तु कहते ही गणेश जी तुरंत उस पर आरूढ़ हो गए। अब भारी भरकम गजानन के भार से दबकर मूषक को प्राणों का संकट बन आया। तब उसने गजानन से प्रार्थना की कि वे अपना भार उसके वहन करने योग्य बना लें। इस तरह मूषक का गर्व चूर कर गणेश जी ने उसे अपना वाहन बना लिया।
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गणेश देवताओं में सबसे अधिक बुद्धिमान हैं।


गणेश देवताओं में सबसे अधिक बुद्धिमान हैं। इसीलिए बच्चों का अध्ययन आरम्भ कराते समय उनसे ‘ऊँ गणेशाय नमः’ लिखवाया जाता है।
गणेश अपनी बुद्धिमानी के कारण ही, देवताओं में सबसे पहले पूजे जाते हैं। असल में इनकी बुद्धि इनके विचित्र सिर के कारण है। हाथी का सिर है इनका। शरीर मनुष्य का है। है न विचित्र बात ? हाथी, सभी जीवों में बुद्धिमान है इसीलिए हाथी के सिर वाले गणेश बुद्धिमान हो गए।
इनके साथ एक दुर्घटना घट गई और इन्हें हाथी का सिर धारण करना पड़ा।
जब ये बालक थे, तभी इनकी माता पार्वती ने अपने दरवाजे पर एक दिन उन्हें प्रहरी के रूप में खड़ा कर दिया। वह अन्दर कुछ कार्य कर रही थी। वह नहीं चाहती थी कि इस बीच कोई अन्दर आए। इसलिए उसने गणेश को आदेश दिया कि वह किसी को अन्दर नहीं आने दे। सबको दरवाजे के पास से वापस कर दे।
गणेश ने कइयों को अन्दर जाने से लौटा दिया। सभी अपना-सा मुँह लिये चले गए।
अब आए साक्षात् शिव। सिर पर जटा, कमर में व्याघ्र-चर्म, एक हाथ में डमरू, दूसरे में त्रिशूल। पूरे शरीर में लिपटा भस्म।
अन्दर जाना चाहा। गणेश ने रोक दिया।
‘‘क्यों ?’’ भोले शंकर क्रोधित हुए।
‘‘माँ का आदेश है, अभी कोई भीतर नहीं जा सकता।’’ गणेश अच्छी तरह दरवाजा रोककर खड़े हो गए।
‘‘छोड़ते हो कि नहीं द्वार ?’’ भगवान आशुतोष का क्रोध बढ़ता जा रहा था।
‘‘नहीं छोड़ता। उतने लोगों के लिए नहीं छोड़ा तो आपके लिए क्यों छोड़ूँगा ? आपमें कौन ऐसी बात है ?’’
‘‘मैं तुम्हारा बाप हूँ। अन्दर माता हैं तो बाहर पिता। पिता को रोकने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं।’’
‘‘यह अधिकार माता ने ही दिया है। अन्दर नहीं जाने का आदेश सबके लिए है। आपको उससे छूट नहीं मिली है। मुक्ति। नियम सब पर समान रूप से लागू है।’’ गणेश अड़ गए।

‘‘बहुत हठी बालक को। उद्दंड भी।’’ शिव गुर्राए।
‘‘माँ का आदेश-पालक हूँ।’’
‘‘पिता माता से बड़ा होता है।’’ भगवान पशुपति ने तर्क दिया।
‘‘माता की समानता कोई नहीं कर सकता। पिता भी नहीं। मैं आपको किसी मूल्य पर अन्दर जाने की अनुमति नहीं दे सकता।’’
‘‘तो इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा।’’ शिव का क्रोध प्रचण्ड हुआ।
‘‘मैं माँ की आज्ञा के पालन में किसी परिणाम की चिन्ता नहीं करता।’’ गणेश अपनी बात पर अड़े थे।
‘‘मृत्यु को भी नहीं ?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘तो मुझे पुत्र-हत्या का भागी बनना पड़ेगा। मैं तुम्हें धक्का देकर अन्दर जा सकता था पर आपने आदेश का अनुपालन नहीं करने के कारण मुझे अन्दर जाने के लिए तुम्हारी गर्दन उतारनी पड़ेगी।’’ शिव और कुपित हुए।
‘‘कोई चिन्ता नहीं।’’ गणेश निर्भीक बोले, ‘‘मातृ-आज्ञा-पालन में प्राणों से भी हाथ धोना पड़े तो यह मेरा सौभाग्य ही होगा।’’
‘‘फिर यही हो।’’ कहकर भगवान शिव ने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया।
कैलास पर चारों ओर हाहाकार मच गया। ‘गणेश मारे गए’, ‘गणेश मारे गए, यह बात जंगल की आग की तरह चारों तरफ फैल गई। पार्वती को भी यह सूचना उनके गणों ने दी। शिव अन्दर पहुँच चुके थे। उनके स्वागत-सत्कार की चिन्ता किए बिना गणेश-माता पार्वती द्वार के बाहर भागी।
गणेश को घेरकर कई शिव-गण, आँखों में आँसू भरे, खड़े थे। पार्वती को देखते ही सबने उनके लिए मार्ग दे दिया।
अपने पुत्र को मृत पाकर माँ की ममता सारे बाँध तोड़कर उमड़ पड़ी। उनकी आँखों से अश्रु की नदियाँ प्रवाहित होने लगीं। वह गणेश के मृत शरीर को गोद में रखकर ज़ोर-ज़ोर से विलाप करने लगीं।
उनके विलाप का स्वर अन्दर बैठे सदा शिव के कानों में भी पड़ा। उनका क्रोध काफूर हो गया और अपने कृत्य पर पश्चाताप करते हुए वह बाहर आए। पार्वती को मनाने का प्रयास किया पर गणेश-माता भगवती पार्वती का रुदन जारी रहा। वह भगवान शंकर के लाख समझाने पर भी समझने को प्रस्तुत नहीं थी।
अन्ततः शिव ने हथियार डाल दिए और पार्वती से पूछा, ‘‘तुम कैसे चुप रहोगी ?’’
पार्वती ने कहा, ‘‘मेरे पुत्र के प्राण ले लिये। इसे जीवित कीजिए तभी मैं यहाँ से उठूँगी और अन्न-जल ग्रहण करूँगी।’’
‘‘यह तुम्हारा लड़का बहुत उद्दंड था, इसने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया। ऐसे भी जो मर गया उसे जीवित कैसे किया जा सकता है ?’’

पार्वती ने सिसकते हुए कहा, ‘‘यह केवल मेरा लड़का नहीं आपका भी पुत्र था। यह उद्दंड भी नहीं था, मात्र मेरी आज्ञा का पालन कर रहा था। जहाँ तक मृत को जीवित करने के प्रश्न है, आप देवाधिदेव महादेव के लिए यह कौन-सा कठिन कार्य है? मुझे भुलवाने का प्रयास नहीं कीजिए। आप चाहें तो गणेश क्षण मात्र में जीवित हो सकता है। यदि आप तत्काल जीवित नहीं करते हैं तो फिर जिस त्रिशूल से इसका सिर काटा है उसी से मेरा भी काट दीजिए।
भगवान भोले शंकर विवश हो गए और उन्होंने अपने एक प्रमुख गण को कहा, ‘‘उत्तर दिशा की ओर जाओ और जो सबसे पहला प्राणी मिले उसका सिर काट लाओ।’’
गण जब उत्तर दिशा में बढ़ा तो सबसे पहले उसे एक हाथी का बच्चा दिखाई पड़ा। उसने उसका सिर काट लिया।
सिर को लाकर उसने शिव के हाथों में पकड़ा दिया। भोले शंकर ने इस सिर को गणेश की, सिर-हीन गर्दन से जोड़ दिया और गणेश जीवित हो उठ बैठे।
पार्वती बहुत प्रसन्न हुई और इस विचित्र शिशु को उठाकर उन्होंने अपने कलेजे से लगा लिया। सभी उपस्थित गण प्रसन्नता से भरकर नृत्य करने लगे।

गणेश देवताओं में सबसे अधिक बुद्धिमान हैं। इसीलिए बच्चों का अध्ययन आरम्भ कराते समय उनसे ‘ऊँ गणेशाय नमः’ लिखवाया जाता है।
गणेश अपनी बुद्धिमानी के कारण ही, देवताओं में सबसे पहले पूजे जाते हैं। असल में इनकी बुद्धि इनके विचित्र सिर के कारण है। हाथी का सिर है इनका। शरीर मनुष्य का है। है न विचित्र बात ? हाथी, सभी जीवों में बुद्धिमान है इसीलिए हाथी के सिर वाले गणेश बुद्धिमान हो गए।
इनके साथ एक दुर्घटना घट गई और इन्हें हाथी का सिर धारण करना पड़ा।
जब ये बालक थे, तभी इनकी माता पार्वती ने अपने दरवाजे पर एक दिन उन्हें प्रहरी के रूप में खड़ा कर दिया। वह अन्दर कुछ कार्य कर रही थी। वह नहीं चाहती थी कि इस बीच कोई अन्दर आए। इसलिए उसने गणेश को आदेश दिया कि वह किसी को अन्दर नहीं आने दे। सबको दरवाजे के पास से वापस कर दे।
गणेश ने कइयों को अन्दर जाने से लौटा दिया। सभी अपना-सा मुँह लिये चले गए।
अब आए साक्षात् शिव। सिर पर जटा, कमर में व्याघ्र-चर्म, एक हाथ में डमरू, दूसरे में त्रिशूल। पूरे शरीर में लिपटा भस्म।
अन्दर जाना चाहा। गणेश ने रोक दिया।
‘‘क्यों ?’’ भोले शंकर क्रोधित हुए।
‘‘माँ का आदेश है, अभी कोई भीतर नहीं जा सकता।’’ गणेश अच्छी तरह दरवाजा रोककर खड़े हो गए।
‘‘छोड़ते हो कि नहीं द्वार ?’’ भगवान आशुतोष का क्रोध बढ़ता जा रहा था।
‘‘नहीं छोड़ता। उतने लोगों के लिए नहीं छोड़ा तो आपके लिए क्यों छोड़ूँगा ? आपमें कौन ऐसी बात है ?’’
‘‘मैं तुम्हारा बाप हूँ। अन्दर माता हैं तो बाहर पिता। पिता को रोकने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं।’’
‘‘यह अधिकार माता ने ही दिया है। अन्दर नहीं जाने का आदेश सबके लिए है। आपको उससे छूट नहीं मिली है। मुक्ति। नियम सब पर समान रूप से लागू है।’’ गणेश अड़ गए।

‘‘बहुत हठी बालक को। उद्दंड भी।’’ शिव गुर्राए।
‘‘माँ का आदेश-पालक हूँ।’’
‘‘पिता माता से बड़ा होता है।’’ भगवान पशुपति ने तर्क दिया।
‘‘माता की समानता कोई नहीं कर सकता। पिता भी नहीं। मैं आपको किसी मूल्य पर अन्दर जाने की अनुमति नहीं दे सकता।’’
‘‘तो इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा।’’ शिव का क्रोध प्रचण्ड हुआ।
‘‘मैं माँ की आज्ञा के पालन में किसी परिणाम की चिन्ता नहीं करता।’’ गणेश अपनी बात पर अड़े थे।
‘‘मृत्यु को भी नहीं ?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘तो मुझे पुत्र-हत्या का भागी बनना पड़ेगा। मैं तुम्हें धक्का देकर अन्दर जा सकता था पर आपने आदेश का अनुपालन नहीं करने के कारण मुझे अन्दर जाने के लिए तुम्हारी गर्दन उतारनी पड़ेगी।’’ शिव और कुपित हुए।
‘‘कोई चिन्ता नहीं।’’ गणेश निर्भीक बोले, ‘‘मातृ-आज्ञा-पालन में प्राणों से भी हाथ धोना पड़े तो यह मेरा सौभाग्य ही होगा।’’
‘‘फिर यही हो।’’ कहकर भगवान शिव ने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया।
कैलास पर चारों ओर हाहाकार मच गया। ‘गणेश मारे गए’, ‘गणेश मारे गए, यह बात जंगल की आग की तरह चारों तरफ फैल गई। पार्वती को भी यह सूचना उनके गणों ने दी। शिव अन्दर पहुँच चुके थे। उनके स्वागत-सत्कार की चिन्ता किए बिना गणेश-माता पार्वती द्वार के बाहर भागी।
गणेश को घेरकर कई शिव-गण, आँखों में आँसू भरे, खड़े थे। पार्वती को देखते ही सबने उनके लिए मार्ग दे दिया।
अपने पुत्र को मृत पाकर माँ की ममता सारे बाँध तोड़कर उमड़ पड़ी। उनकी आँखों से अश्रु की नदियाँ प्रवाहित होने लगीं। वह गणेश के मृत शरीर को गोद में रखकर ज़ोर-ज़ोर से विलाप करने लगीं।
उनके विलाप का स्वर अन्दर बैठे सदा शिव के कानों में भी पड़ा। उनका क्रोध काफूर हो गया और अपने कृत्य पर पश्चाताप करते हुए वह बाहर आए। पार्वती को मनाने का प्रयास किया पर गणेश-माता भगवती पार्वती का रुदन जारी रहा। वह भगवान शंकर के लाख समझाने पर भी समझने को प्रस्तुत नहीं थी।
अन्ततः शिव ने हथियार डाल दिए और पार्वती से पूछा, ‘‘तुम कैसे चुप रहोगी ?’’
पार्वती ने कहा, ‘‘मेरे पुत्र के प्राण ले लिये। इसे जीवित कीजिए तभी मैं यहाँ से उठूँगी और अन्न-जल ग्रहण करूँगी।’’
‘‘यह तुम्हारा लड़का बहुत उद्दंड था, इसने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया। ऐसे भी जो मर गया उसे जीवित कैसे किया जा सकता है ?’’

पार्वती ने सिसकते हुए कहा, ‘‘यह केवल मेरा लड़का नहीं आपका भी पुत्र था। यह उद्दंड भी नहीं था, मात्र मेरी आज्ञा का पालन कर रहा था। जहाँ तक मृत को जीवित करने के प्रश्न है, आप देवाधिदेव महादेव के लिए यह कौन-सा कठिन कार्य है? मुझे भुलवाने का प्रयास नहीं कीजिए। आप चाहें तो गणेश क्षण मात्र में जीवित हो सकता है। यदि आप तत्काल जीवित नहीं करते हैं तो फिर जिस त्रिशूल से इसका सिर काटा है उसी से मेरा भी काट दीजिए।
भगवान भोले शंकर विवश हो गए और उन्होंने अपने एक प्रमुख गण को कहा, ‘‘उत्तर दिशा की ओर जाओ और जो सबसे पहला प्राणी मिले उसका सिर काट लाओ।’’
गण जब उत्तर दिशा में बढ़ा तो सबसे पहले उसे एक हाथी का बच्चा दिखाई पड़ा। उसने उसका सिर काट लिया।
सिर को लाकर उसने शिव के हाथों में पकड़ा दिया। भोले शंकर ने इस सिर को गणेश की, सिर-हीन गर्दन से जोड़ दिया और गणेश जीवित हो उठ बैठे।
पार्वती बहुत प्रसन्न हुई और इस विचित्र शिशु को उठाकर उन्होंने अपने कलेजे से लगा लिया। सभी उपस्थित गण प्रसन्नता से भरकर नृत्य करने लगे।
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ये हैं गणेशजी की सूंड, लंबे कान और बड़ा पेट का रहस्य! – See more at: http://www.patrika.com/article/three-sacred-secrets-of-lord-ganesha/50273#sthash.q6sfHkbI.dpuf


Three Sacred Secrets of Lord Ganesha
11/11/2014 6:16:06 PM
भगवान श्री गणेश जी का व्यक्तित्व बेहद आकर्षक माना गया है। उनका मस्तक हाथी का है और वाहन मूषक है। उनकी दो पत्नियां ऋद्धि और सिद्धि हैं। सभी गणों के स्वामी होने के कारण इनका नाम गणोश है। परंपरा में हर कार्य के प्रारंभ में इनका स्मरण आवश्यक है। उन्हें विघ्नहर्ता कहते हैं। गणेश में ऎसी क्या विशेषताएं हैं कि उनकी पूजा 33 कोटि देवी-देवताओं में सर्वप्रथम होती है।
जानिए, गणेश जी विशिष्टता के बारे में-

वेदों के मुताबिक, गणेश जी की पूजा के बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जाता है। गणेश जी को वैदिक देवता की उपाधि दी गई है। ॐ के उच्चारण से वेद पाठ प्रारंभ होता है। गणेश आदिदेव है। वैदिक ऋचाओं में उनका अस्तित्व हमेशा रहा है। गणेश पुराण में ब्रहा, विष्णु एवं शिव के द्वारा उनकी पूजा किए जाने का तक उल्लेख मिलता है।

गणेश जी का वाहन मूषक क्यों : भगवान गणेश की शारीरिक बनावट के मुकाबले उनका वाहन चूहा काफी छोटा है। चूहे का काम किसी चीज को कुतर डालना है। वह चीर-फाड़ कर उसके प्रत्येक अंग-प्रत्यंग का विश्लेषण करता है। गणेश बुद्धि और विद्या के अधिष्ठाता हैं। तर्क-वितर्क में वे बेजोड़ हैं। इसी प्रकार मूषक भी तर्क-वितर्क में पीछे नहीं हैं। काट छांट में उसका कोई सानी नहीं है। मूषक के इन्हीं गुणों को देखकर उन्होंने इसे वाहन चुना है।

गणेश जी की सूंड का रहस्य- : गजानन की सूंड हमेशा हिलती डुलती रहती है जो उनके सचेत होने का संकेत है। इसके संचालन से दु:ख-दारिद्रय समाप्त हो जाते हैं। अनिष्टकारी शक्तियां डरकर भाग जाती हैं। यह सूंड जहां बड़े-बड़े दिग्पालों को भयभीत करती है, वहीं देवताओं का मनोरजंन भी करती है। इस सूंड से गणोश, ब्रहाजी पर पानी एवं फूल बरसाते है। सूंड के दायीं और बायीं ओर होने का अपना महत्व है।

बड़ा पेट : गणेश जी का पेट बहुत बड़ा है। इसी कारण उन्हें लंबोदर भी कहा जाता है। लंबोदर होने का कारण यह है कि वे हर अच्छी और बुरी बात को पचा जाते हैं और किसी भी बात का निर्णय सूझबूझ के साथ लेते हैं। वे संपूर्ण वेदों के ज्ञाता है। संगीत और नृत्य आदि विभिन्न कलाओं के भी जानकार हैं। ऎसा माना जाता है कि उनका पेट विभिन्न विद्याओं का कोष है।

लंबे कान : श्री गणेश लंबे कान वाले हैं। इसलिए उन्हें गजकर्ण भी कहा जाता है। लंबे कान वाले भाग्यशाली होते हैं। लंबे कानों का एक रहस्य यह भी है कि वह सबकी सुनते हैं और अपनी बुद्धि और विवेक से ही किसी कार्य का क्रियान्वयन करते हैं। बड़े कान हमेशा चौकन्ना रहने के भी संकेत देते हैं।

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