नेहरू के कारनामे:
इटली भक्ति नेहरू द्वारा ही आरम्भ हो गयी थी। कलकत्ता की सोनाली दासगुप्ता अपने एक बच्चे को साथ ले कर इटली के फिल्म निर्माता राबर्टो रोसेलिनी के साथ भाग कर बम्बई के ताज होटल चली आयी। उसके पति ने केस भी किया था, पर नेहरू ने रातोंरात सोनाली को पासपोर्ट दिलवा दिया जिससे वह बिना तलाक के इटली में विवाह कर रहने लगी। इटली का नागरिक होने पर भी भारतीय मूल का होने के कारण उसे चुनाव नहीं लड़ने दिया गया। इसका उदाहरण दे कर शरद पवार ने सोनिया गान्धी द्वारा भारत में चुनाव लड़ने का विरोध किया था। नेहरू भारत के अतिरिक्त सभी अन्य देशों के भक्त था। कश्मीर पर आक्रमण के लिए पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुपये गान्धी से मिल कर दिलवाये। जब तक पाकिस्तान की सेना जीतती रही, वे प्रसन्न थे। जैसे ही पाकिस्तान की सेना भागने लगी, युद्ध बन्द करवा कर मामला राष्ट्रसंघ में लटका दिया। चीन को पूरा तिब्बत तथा आधा लद्दाख सौंप दिया। रूस की भक्ति १९३० से कर रहे थे जब उनको परिवार सहित रूसी कम्यूनिस्ट पार्टी ने ६ मास के लिए आमन्त्रित किया था (सन्दर्भ-उनकी आत्मकथा)। ब्रिटेन को आश्वासन दिया था कि राजद्रोही सुभास चन्द्र बोस को पकड़ कर ब्रिटेन को सौंप देंगे।
Category: नहेरु परिवार – Nehru Family
गुजरात के एक जैन व्यापारी वालचंद हीराचंद ने 1940 में मैसूर के राजा के साथ पार्टनरशिप करके बेंगलुरु में एरोप्लेन बनाने की एक फैक्ट्री डाली जिसका नाम उन्होंने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स रखा। कंपनी काफी फायदे में जा रही थी।
1940 में पूरी दुनिया में सिर्फ अमेरिका और ब्रिटेन में ही प्लेन बनते थे और उस समय भारत जैसे देश में विमान का बनना दुनिया के लिए एक बेहद चौंकाने वाली बात थी।
कंपनी के बनाए जहाज दुनिया की कई एयरलाइन ने खरीदें कंपनी काफी मुनाफे में जा रही थी और एक दिन नेहरू की नजर इस कंपनी पर पड़ी और उन्होंने इस कंपनी को नियमों के खिलाफ जाकर सरकारीकरण कर दिया। फिर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स का नाम बदलकर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड कर दिया गया और सरकारी दस्तावेज में यह दिखा दिया गया किस कंपनी की स्थापना नेहरू ने की।
कभी दिल पर हाथ रख कर सोचिए गा यदि कोई व्यक्ति अपनी दूर दृष्टि से अपनी सूझबूझ से कोई कंपनी खड़ी करें और फिर किसी की गिद्ध दृष्टि भले ही वह सरकार क्यों ना हो उसकी आपकी कंपनी पर पड़े तो क्या यह उचित है और हां कांग्रेसी कहते हैं हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड तो हमारे नेहरू ने बनाया🤣

#आर्य_सन्यासी_की_वीर_गाथा… जब नेहरु को गाल पर पडा था एक चांटा..!!
भारत की चीन से हार के बाद… अजमेर के एक कार्यक्रम मे PM नेहरू आए… वेद संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए.. नेहरू ने कहा, “इस देश में हमेशा से ही शरणार्थियो का स्वागत किया गया हैं। यहां शक आए, हूण आए, मुस्लिम आए, अंग्रेज आए, आर्य आए और यहा की संस्कृति मे घुलमिल गए।”
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मुख्य अतिथि आर्य संन्यासी स्वामी विद्यानन्द विदेह अपने मंच से उठे और नेहरू को जोरदार थप्पड जड दिया..!! और माइक अपनी ओर करके संन्यासी बोले… “आर्य कही से आए नही, यही के मूल निवासी है। सबूत मे हूं… मेरे बाप-दादा सब यही पैदा हुए… उनके बाप- दादा सब यही पैदा हुए,इस राष्ट्र का नाम ही आर्यावर्त है, लेकिन आप इस देश के मूल निवासी नही… आपकी रगो मे हिन्दुस्तानी नही अरबी ख़ून हैं। आपकी जगह पटेल प्रधनमंत्री होते तो हम चीन से हारते नहीं, वरन तिब्बत भी भारत का अभिन्न अंग होता।”
(विदेह गाथा: एक आर्य संन्यासी की डायरी, पृष्ठ 637 संस्करण भाद्रपद 2037 विक्रमी…से साभार)
(बाद मे इन आर्य संन्यासी ने एक किताब लिखी नेहरू : उत्थान और पतन… जो 1963 मे बैन हो गई थी।)

डालमिया

अरुण सिंग
टाटा, बिड़ला और डालमिया ये तीन नाम बचपन से सुनते आए है मगर डालमिया घराना कही व्यापार में नजर नहीं आया ,
डालमिया घराने के बारे में जानने की बहुत इच्छा थी। लीजिए आप भी पढ़िए की नेहरू के जमाने मे भी 1 लाख करोड़ के मालिक डालमिया को साजिशो में फंसा के नेहरू ने कैसे बर्बाद कर दिया
येतस्वीर है राष्ट्रवादी खरबपति सेठ रामकृष्ण डालमिया की ,जिसे नेहरू ने झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेज दिया तथा कौड़ी-कौड़ी का मोहताज़ बना दिया ।
दरअसल डालमिया जी ने स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ मिलकर गौहत्या एवम हिंदू कोड बिल पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे पर नेहरू से कड़ी टक्कर ले ली थी । लेकिन नेहरू ने हिन्दू भावनाओं का दमन करते हुए गौहत्या पर प्रतिबंध भी नही लगाई तथा हिन्दू कोड बिल भी पास कर दिया और प्रतिशोध स्वरूप हिंदूवादी सेठ डालमिया को जेल में भी डाल दिया तथा उनके उद्योग धंधों को बर्बाद कर दिया ।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस व्यक्ति ने नेहरू के सामने सिर उठाया उसी को नेहरू ने मिट्टी में मिला दिया.
देशवासी प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद और सुभाष बाबू के साथ उनके निर्मम व्यवहार के बारे में वाकिफ होंगे मगर इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने अपनी ज़िद के कारण देश के उस समय के सबसे बड़े उद्योगपति सेठ रामकृष्ण डालमिया को बड़ी बेरहमी से मुकदमों में फंसाकर न केवल कई वर्षों तक जेल में सड़ा दिया बल्कि उन्हें कौड़ी-कौड़ी का मोहताज कर दिया.
जहां तक रामकृष्ण डालमिया का संबंध है, वे राजस्थान के एक कस्बा चिड़ावा में एक गरीब अग्रवाल घर में पैदा हुए थे और मामूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने मामा के पास कोलकाता चले गए थे.
वहां पर बुलियन मार्केट में एक salesman के रूप में उन्होंने अपने व्यापारिक जीवन का शुरुआत किया था. भाग्य ने डटकर डालमिया का साथ दिया और कुछ ही वर्षों के बाद वे देश के सबसे बड़े उद्योगपति बन गए.
उनका औद्योगिक साम्राज्य देशभर में फैला हुआ था जिसमें समाचारपत्र, बैंक, बीमा कम्पनियां, विमान सेवाएं, सीमेंट, वस्त्र उद्योग, खाद्य पदार्थ आदि सैकड़ों उद्योग शामिल थे.
डालमिया सेठ के दोस्ताना रिश्ते देश के सभी बड़े-बड़े नेताओं से थी और वे उनकी खुले हाथ से आर्थिक सहायता किया करते थे.
इसके बाद एक घटना ने नेहरू को डालमिया का जानी दुश्मन बना दिया. कहा जाता है कि डालमिया एक कट्टर सनातनी हिन्दू थे और उनके विख्यात हिन्दू संत स्वामी करपात्री जी महाराज से घनिष्ट संबंध थे.
करपात्री जी महाराज ने 1948 में एक राजनीतिक पार्टी राम राज्य परिषद स्थापित की थी. 1952 के चुनाव में यह पार्टी लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी और उसने 18 सीटों पर विजय प्राप्त की.
हिन्दू कोड बिल और गोवध पर प्रतिबंध लगाने के प्रश्न पर डालमिया से नेहरू की ठन गई. पंडित नेहरू हिन्दू कोड बिल पारित करवाना चाहते थे जबकि स्वामी करपात्री जी महाराज और डालमिया सेठ इसके खिलाफ थे.
हिन्दू कोड बिल और गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए स्वामी करपात्रीजी महाराज ने देशव्यापी आंदोलन चलाया जिसे डालमिया जी ने डटकर आर्थिक सहायता दी.
नेहरू के दबाव पर लोकसभा में हिन्दू कोड बिल पारित हुआ जिसमें हिन्दू महिलाओं के लिए तलाक की व्यवस्था की गई थी. कहा जाता है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद हिन्दू कोड बिल के सख्त खिलाफ थे इसलिए उन्होंने इसे स्वीकृति देने से इनकार कर दिया.
ज़िद्दी नेहरू ने इसे अपना अपमान समझा और इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पुनः पारित करवाकर राष्ट्रपति के पास भिजवाया. संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रपति को इसकी स्वीकृति देनी पड़ी.
इस घटना ने नेहरू को डालमिया का जानी दुश्मन बना दिया. कहा जाता है कि नेहरू ने अपने विरोधी सेठ राम कृष्ण डालमिया को निपटाने की एक योजना बनाई.
नेहरू के इशारे पर डालमिया के खिलाफ कंपनियों में घोटाले के आरोपों को लोकसभा में जोरदार ढंग से उछाला गया. इन आरोपों के जांच के लिए एक विविन आयोग बना. बाद में यह मामला स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिसमेंट को जांच के लिए सौंप दिया गया.
नेहरू ने अपनी पूरी सरकार को डालमिया के खिलाफ लगा दिया. उन्हें हर सरकारी विभाग में प्रधानमंत्री के इशारे पर परेशान और प्रताड़ित करना शुरू किया. उन्हें अनेक बेबुनियाद मामलों में फंसाया गया.
नेहरू की कोप दृष्टि ने एक लाख करोड़ के मालिक डालमिया को दिवालिया बनाकर रख दिया. उन्हें टाइम्स ऑफ़ इंडिया और अनेक उद्योगों को औने-पौने दामों पर बेचना पड़ा. अदालत में मुकदमा चला और डालमिया को तीन साल कैद की सज़ा सुनाई गई.
तबाह हाल और अपने समय के सबसे धनवान व्यक्ति डालमिया को नेहरू की वक्र दृष्टि के कारण जेल की कालकोठरी में दिन गुज़ारने पड़े.
व्यक्तिगत जीवन में डालमिया बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे. उन्होंने अच्छे दिनों में करोड़ों रुपये धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए दान में दिये. इसके अतिरिक्त उन्होंने यह संकल्प भी लिया था कि जबतक इस देश में गोवध पर कानूनन प्रतिबंध नहीं लगेगा वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे. उन्होंने इस संकल्प को अंतिम सांस तक निभाया. गौवंश हत्या विरोध में 1978 में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
ये तस्वीर है राष्ट्रवादी खरबपति सेठ रामकृष्ण डालमिया की ,जिसे नेहरू ने झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेज दिया तथा कौड़ी-कौड़ी का मोहताज़ बना दिया ।
देश के पहले राष्ट्रपति की मौत का सच पढ़ेगें तो चौक जाएंगे
सोमनाथ मंदिर के लिए डा. राजेंद्र प्रसाद व सरदार पटेल को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी
ये जगजाहिर है कि जवाहर लाल नेहरू सोमनाथ मंदिर के पक्ष में नहीं थे
महात्मा गांधी जी की सहमति से सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का काम शुरु किया था.
पटेल की मौत के बाद मंदिर की जिम्मेदारी के एम मुंशी पर आ गई.
मुंशी नेहरू की कैबिनेट के मंत्री थे.
गांधी और पटेल की मौत के बाद नेहरू का विरोध और तीखा होने लगा था.
एक मीटिंग में तो उन्होंने मुंशी की फटकार भी लगाई थी.
उन पर हिंदू-रिवाइवलिज्म और हिंदुत्व को हवा देने का आरोप भी लगा दिया.
लेकिन, मुंशी ने साफ साफ कह दिया था कि सरदार पटेल के काम को अधूरा नहीं छोड़ेगे.
के एम मुंशी भी गुजराती थे इसलिए उन्होंने सोमनाथ मंदिर बनवा के ही दम लिया.
फिर उन्होंने मंदिर के उद्घाटन के लिए देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद को न्यौता दे दिया.
उन्होंने इस न्यौते को बड़े गर्व से स्वीकार किया लेकिन जब जवाहर लाल नेहरू की इसका पता चला तो वे नाराज हो गए.
उन्होंने पत्र लिख कर डा. राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ जाने से मना कर दिया.
राजेंद्र बाबू भी तन गए.
नेहरू की बातों को दरकिनार कर वो सोमनाथ गए और जबरदस्त भाषण दिया था.
जवाहर लाल नेहरू को इससे जबरदस्त झटका लगा.
उनके इगो को ठेंस पहुंची.
उन्होंने इसे अपनी हार मान ली.
डा. राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ जाना बड़ा महंगा पड़ा क्योंकि इसके बाद नेहरू ने जो इनके साथ सलूक किया वो हैरान करने वाला है.
सोमनाथ मंदिर की वजह से डा. राजेंद्र प्रसाद और जवाहर लाल नेहरू के रिश्ते में इतनी कड़वाहट आ गई कि जब राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति पद से मुक्त हुए तो नेहरू ने उन्हें दिल्ली में घर तक नहीं दिया.
राजेंद्र बाबू दिल्ली में रह कर किताबें लिखना चाहते थे. लेकिन, नेहरू ने उनके साथ अन्याय किया.
एक पूर्व राष्ट्रपति को सम्मान मिलना चाहिए, उनका जो अधिकार था उससे उन्हें वंचित कर दिया गया.
आखिरकार, डा. राजेंद्र प्रसाद को पटना लौटना पड़ा.
पटना में भी उनके पास अपना मकान नहीं था. पैसे नहीं थे.
नेहरू ने पटना में भी उन्हें कोई घर नहीं दिया जबकि वहां सरकारी बंगलो और घरों की भरमार है.
डा. राजेंद्र प्रसाद आखिरकार पटना के सदाकत आश्रम के एक सीलन भरे कमरे में रहने लगे.
न कोई देखभाल करने वाला और न ही डाक्टर.
उनकी तबीयत खराब होने लगी. उन्हें दमा की बीमारी ने जकड़ लिया.
दिन भर वो खांसते रहते थे. अब एक पूर्व राष्ट्रपति की ये भी तो दुविधा होती है कि वो मदद के लिए गिरगिरा भी नहीं सकता.
लेकिन, राजेंद्र बाबू के पटना आने के बाद नेहरू ने कभी ये सुध लेने की कोशिश भी नहीं कि देश का पहला राष्ट्रपति किस हाल में जी रहा है
इतना ही नहीं, जब डा. राजेंद्र प्रसाद की तबीयत खराब रहने लगी, तब भी किसी ने ये जहमत नहीं उठाई कि उनका अच्छा इलाज करा सके.
बिहार में उस दौरान कांग्रेस पार्टी की सरकार थी. आखिर तक डा. राजेन्द्र बाबू को अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलीं. उनके साथ बेहद बेरुखी वाला व्यवहार होता रहा. मानो ये किसी के निर्देश पर हो रहा हो. उन्हें कफ की खासी शिकायत रहती थी.
उनकी कफ की शिकायत को दूर करने के लिए पटना मेडिकल कालेज में एक मशीन थी. उसे भी दिल्ली भेज दिया गया.
यानी राजेन्द्र बाबू को मारने का पूरा और पुख्ता इंतजाम किया गया.
एक बार जय प्रकाश नारायण उनसे मिलने सदाकत आश्रम पहुंचे.
वो देखना चाहते थे कि देश पहले राष्ट्रपति और संविधान सभा के अध्यक्ष आखिर रहते कैसे हैं.
जेपी ने जब उनकी हालत देखी तो उनका दिमाग सन्न रह गया. आंखें नम हो गईं.
उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वो क्या कहें.
जेपी ने फौरन अपने सहयोगियों से कहकर रहने लायक बनवाया.
लेकिन, उसी कमरे में रहते हुए राजेन्द्र बाबू की 28 फरवरी,1963 को मौत हो गई.
डा. राजेंद्र प्रसाद की मौत के बाद भी नेहरू का कलेजा नहीं पसीजा.
उनकी बेरुखी खत्म नहीं हुई.
नेहरू ने उनकी अंत्येष्टि में शामिल तक नहीं हुए. जिस दिन उनकी आखरी यात्रा थी उस दिन नेहरू जयपुर चले गए. इतना ही नहीं, राजस्थान के राज्यपाल डां. संपूर्णानंद पटना जाना चाह रहे थे लेकिन नेहरू ने उन्हें वहां जाने से मना कर दिया.
जब नेहरु को मालूम चला कि संपूर्णानंद जी पटना जाना चाहते हैं तो उन्होंने संपूर्णानंद से कहा कि ये कैसे मुमकिन है कि देश का प्रधानमंत्री किसी राज्य में आए और उसका राज्यपाल वहां से गायब हो.
इसके बाद डा. संपूर्णानंद ने अपना पटना जाने का कार्यक्रम रद्द किया.
यही नहीं, नेहरु ने राजेन्द्र बाबू के उतराधिकारी डा. एस. राधाकृष्णन को भी पटना न जाने की सलाह दी. लेकिन, राधाकृष्णन ने नेहरू की बात नहीं मानी और वो राजेन्द्र बाबू के अंतिम संस्कार में भाग लेने पटना पहुंचे.
जब भी दिल्ली के राजघाट से गुजरता हूं तो डा. राजेंद्र प्रसाद के साथ नेहरू के रवैये को याद करता हूं.
अजीब देश है, महात्मा गांधी के बगल में संजय गांधी को जगह मिल सकती है
लेकिन देश के पहले राष्ट्रपति के लिए इस देश में कोई इज्जत ही नहीं है.
सोमनाथ मंदिर के पक्ष में होनें के कारण सरदार बल्लभ भाई पटेल को भी कांग्रेसियों ने कोई सम्मान आज तक नहीं दिया,. जबकि मस्जिद क प्रेमियों को बडे बडे मंत्रालय दिये गए ၊
पूरे देश में बस गांधी परिवार के नाम पर ही स्मारक और योजनाएं बनाई गई,
ऐसा लगता है कि इस देश में महानता और बलिदान की कॉपी राइट सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार के पास है.
सच ईश्वर है
सच का साथ देना ही ईश्वर भक्ति है
आप कौन हैं,
यह आपके कर्म ही तय करेंगें
आप स्वयं नहीं ၊
डा० पवन त्यागी
पत्रकार
साहिबाबाद
फोन : 99683 04099
शेयर तो वही करेंगे जो देश भक्त या ईश्वर भक्त होंगें !!!
अरुण सुक्ला
आप लोगों ने लगान फिल्म अवश्य देखी होगी। एक अँगरेज़ अधिकारी उन गंवारों से क्रिकेट मैच जीतने की शर्त लगाता है जिन्हे क्रिकेट की ए, बी, सी, डी तक नहीं आती थी। दुष्ट अँगरेज़ मैच जीतने पर लगान माफ़ करने का प्रलोभन देता है और मैच हारने पर तिगुना लगान वसूलने की बात कहता है। उस अँगरेज़ की बहन दयालु प्रकृति की है और वो ग्रामीणों को चोरी छिपे क्रिकेट के नियम बताने से लेकर उन्हें क्रिकेट के उपकरण भी उपलब्ध कराती है और अंत में यही गंवार विजयी होते हैं जिसका पूरा श्रेय उस अँगरेज़ लड़की को जाता है।
ऐसा ही एक दयालु था पीटर विली जो एक अँगरेज़ था। छोटे, मोटे अख़बार का पत्रकार होने के साथ साथ वो एक चित्रकार भी था। उसे भारतीयों से बड़ी सहानुभूति थी। सन 1962 में वो भारत ये देखने के लिए आया कि आजादी के बाद का भारत कैसा है? पर उसे भारतीयों की दशा देखकर कोई विशेष ख़ुशी नहीं हुई। दुर्भाग्य से उसी समय चीन से युद्ध भी छिड़ गया। सेना के जवानों को देखकर वो हैरत में आ गया। हिमालय की भीषण ठंड में कुछ लोग चप्पल में तो कुछ नँगे पैर। कुछ लोग स्वेटर में तो कुछ केवल शर्ट में और शर्ट के अंदर रुई के टुकड़े। गोलियां भी गिनकर दी जा रही थी। उसने एक बेहद गरीब जवान को अपनी जैकेट देनी चाही, पर उसने ये कहकर लेने से मनाकर दिया कि उसके अन्य साथी भी उसके जैसी स्थिति में लड़ रहे हैं। पीटर विली ने फौरन एक तैल चित्र बनाया जिसमे एक जवान एक हाथ में बन्दूक और एक हाथ में गिनती की गोलियां लिए हुए दीन दरिद्र अवस्था में हिम्मत और स्वाभिमान से लबरेज पर्वतीय क्षेत्र में खड़ा हुआ था।
उस चित्रकार महाशय ने वो तैल चित्र नेहरू जी को भेंट करने की सोचा। पर नेहरू जी से उसकी मुलाकात न हो सकी। पता लगता नेहरू जी अपने स्टडी रूम में कभी कोई नॉवेल लिख रहे हैं तो कभी इधर उधर मीटिंग में व्यस्त रहते। चीन युद्ध को भी वो अपने रक्षा मंत्री मेनन के जिम्मे डालकर पूर्ण निश्चिन्त थे और वैसे भी उनका मानना था कि चीन एक पुराना दोस्त है जो फिलहाल कुछ समय के लिए नाराज़ चल रहा है, शीघ्र ही वो रूठे हुए दोस्त को मना लेंगे।
उस पत्रकार को लगा कि वो अपना दुर्लभ चित्र एक अयोग्य व्यक्ति को भेंट कर रहा है। भारतीय जवान इस हिमालय की हाड़ कँपाती ठंड में नँगे पैर युद्ध लड़ने जा रहे हैं और ये साहब नॉवेल पूरा कर रहे हैं। वो अँगरेज़ महाशय उस चित्र को अपने साथ इंग्लैण्ड ले गये, जहां कई लोगों ने उस चित्र को मुंहमांगे दामों पर लेने की पेशकश की पर उन्होंने वो चित्र किसी को नहीं बेचा। उनके मरने के बाद वो चित्र भी चोरी हो गया। उनकी डॉयरी के एक पन्ने पर लिखा था भारतीय सेना दुनिया की सबसे महान सेना है पर उनकी महानता को समझने वाले लोग भारत में नहीं हैं।
Forwarded as received..
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नेहरू की….
१ गलती—सन १९५१ में नेपाल के राजा गिरिभुवन ने नेपाल को भारत में बिलय करने की प्रस्ताव दिया था। चाचा ने इन्कार कर दिया था।
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नेहरू की….
२ नम्बर गलती — बलुचिस्तान के नवाब खान ने चाचा को पत्र लिखकर बाकायदा अनुरोध किया था कि बलुचिस्तान को भारत के साथ शामिल करने की कृपा करें।
हम भारत के साथ रहना चाहते हैं।शुअर ने इन्कार कर दिया।
नतीजा पाकिस्तान ने बंदुक के बल पर बलुचिस्तान को कब्जा कर लिया। सोचिए कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी हमें।
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नेहरू की….
३ नम्बर गलती—- सन् १९४७ में ओमान देश ने ग्वादर पोर्ट को भारत देश को लेने के लिए ओफर दिया था। नेहरू ने यह ओफर ठुकरा दिया था।
नतीजा पाकिस्तान ने ले लिया, फिर चीन को दे दिया।आज चीन हमारे ऊपर डन्डा घुमा रहा है।
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नेहरू की….
४ नम्बर — सन् १९५० में चाचा नेहरू ने कोको आइलैंड को बर्मा को दान में दे दिया। जैसे कि उसके बाप की सम्पत्ति है।
बर्मा ने चीन को बेच दिया।
नतीजा आज चीन हमारे नौसेना की जासूसी करता है।
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नेहरू की….
५ नम्बर — १९५२ में चाचा ने अपने स्वार्थ में २२३२७ बर्ग किलोमीटर का एरिया बर्मा को दान कर दिया था। इस स्थान का नाम है कावाओ valley. ये कश्मीर के जैसा ही सुंदर और रमणीक स्थल था।बाद में बर्मा ने चीन को बेच दिया।
नतीजा आज चीन वहां से हमारे ऊपर जासूसी करता है और आंखें दिखाता है।
सोचिए कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।
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नेहरू की….
७ नम्बर गलती—- देश की आजादी के तुरंत बाद में अमेरिका के राष्ट्रपति ने नेहरू को कहा था कि आप न्युक्लियर पावर का देश बनने के लिए प्लांट लगाए UNO का स्थाई सदस्य बन जाओगे चाचा गद्दार ने इन्कार कर दिया और चीन को सदस्य बनाया। कितनी बड़ी क्षति हुई है अंदाजा लगाइए।
इसने केवल भारत को क्षतिग्रस्त ही किया है।
अफसोस होता है।
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नेहरू की….😡
6 no गलती—- सन् ६२ के चीन के साथ युद्ध में भारत के वायुसेना के प्लान के मुताबिक युद्ध लड़ने के लिए मना कर दिया और आत्मसमर्पण कर दिया। और चीन को १४००० बर्ग किलोमीटर का एरिया चीन को सौंप दिया भेंट स्वरूप। इस युद्ध में ३००० से अधिक भारत के जवान शहीद हुए थे।
इसी एरिया को अक्साई चिन कहते हैं। सोचिए इस गद्दार नेहरू ने हमारे देश को कितना क्षतिग्रस्त किया है।
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આજે હું નવરો હતો. વિચાર્યું કે રાજીવ ગાંધી ને ચોર કહેવાની હિમ્મત કેમ ચાલી મોદીજી ની???
ગૂગલ પર થોડું સર્ચ કર્યું. ૧૦ જ મિનિટમાં ૨ વસ્તુ મળી.
૧) મિશિગન ડેઇલી નામનું અમેરિકાનું છાપું છે. ૧૧ સપ્ટેમ્બર, ૧૯૭૭ ની વાત છે. આપણા ચોખ્ખા રાજીવ ગાંધી ભાઈ સાહેબે $૯૯૦૦૦૦ ની રીશ્વત લીધી હતી. બોઇંગ ૭૩૭ જેટ ની ખરીદીમાં.
વધારે વાંચવું હોય તો મિશિગન ડેઈલીની ઓફિઝિયલ લિંક આપું છું.
https://digital.bentley.umich.edu/midaily/mdp.39015071754506/104
૨) સ્વિસ બેન્ક કે જેમાં કાળું નાણું છુપાવવામાં આવે છે તે મેગેઝીન બહાર પાડે છે. 11 નવેમ્બર 1991 ની વાત છે. મેગેઝીનમાં વિશ્વના સૌથી ભ્રષ્ટાચારી નેતાનું લિસ્ટ આવેલું. તેમાં આપણા શુદ્ધ નેતા રાજીવ ગાંધી નું પણ નામ છે. મેગેઝીનનો ફોટો મોકલું જ છું તો ચિંતા ના કરતા. શ્રી રાજીવભાઈના ખાતામાં લગભગ ૨.૫ બિલિયન ડોલર રૂપિયા હતાં.
Disclaimer
હું મોદી ભક્ત નથી. પણ ચોર ચોર ચાલે છે એટલે આપણને પણ રસ જાગ્યો છે એટલે આ વસ્તુઓ સર્ચ કરી છે.
Indira Ghandy herself created the Frankenstein monster of Khalistan
Sant Jarnail Singh Ji Bhindranwale was in fact brought into politics by Zail Singh, the absolute shoe shiner of Indira Ghandy, then CM of Punjab and a Congress agent of repute. With political and financial assistance from Indira Ghandy and Zail Singh under the then Congress (I) purpose being to destabilise Akali dal and reduce Akali Dal’s influence. Along with putting schism between Sikhs and Hindus. The active influence behind this move of Congress was Sanjay Ghandy because after fighting elections on 40 seats out of 140 seats for SGPC (Shiromani Gurudwara Prabandhak Committee) which Bhindranwale lost, he campaigned actively for Congress (I) in 1980s this was the time when Bhindranwale has totally gone out of control. Below photo is the proof of how Congress tried to divide India for its petty political gains.
Sikhs were chosen as they were a true minority, unlike muslims who were Congress vote bank. Through divisive policies the greater hindu family was divided and militancy was allowed to take roots. Pakistan took advantage of this schism to bleed us through a 1000 cuts.
Things deteriorated quicker than anticipated Op Blue Star, Consequent Militancy and Assassination of Mrs Gandhi.
Wounds were further deepened under the leadership of Late Shri Rajiv Gandhi, who purposefully closed his eyes or directly abetted the genocide from the PMO the lynching of thousands of innocent Indians whose only crime was that they were Sikhs.
Through these tragically tumultuous decades, Nehru-Gandhi dynasty held true to legacy of loot, glorification of poverty, cronyism and License/Permit Raj. Nation suffered irreparable damage to its psyche. Poverty was India’s defining character and Inferiority complex grown in every Indian citizen was our emotional status quo.
Do you know who was commanding warship INS Delhi at that time.
Commodore Ram Dass Katari who later became Chief of Naval Staff.
The first chief of Naval Staff after independence.
Later his son in law LN Ram Das too became Chief of the Naval Staff.
Lot of people may not know that Admiral LN Ramdas and his wife are extreme leftist and founder of AAP. Admiral Ramdas served as aam aadmi party’s internal lokpal too.
His wife Lalita Ramdas was a chair person of NGO Greenpeace which is banned in India as they were involved in anti india activities and thier funds were used for anti national activities.
His daughter Kavitha Ramdas also AAP founder is married to a Pakistani Zulfiqar Ahmad and is senior advisor to the Ford Foundation’s president, Darren Walker.
She assumed the position in 2015 after serving for 3 years as Ford’s India country representative, representing the office in India, Nepal, and Sri Lanka.
The entire family is at the epicentre of breaking India forces.
Now you understand how under a planned strategy AAP was founded how Anna hazare was used, how Kejriwal was awarded megasaysay award. Everything was scripted and fund arranged by Ford foundation.
That is why sir when you dig them deep you understand where lies the epicentre of breaking India forces.
It is very very difficult for a common man to understand these conspiracies of various groups / parties / lutiyan gang and are taken for granted by them by creating false Narratives.
The innocent gullible citizens who don’t know these conspiracies to break india to weaken India are used to destroy thier own beloved nation by these type of groups, NGO and parties.
Jai Hind
Misuse of Power.
26th Dec 1988 and the Prime Minister and Congress President Rajiv Gandhi planned a ten-day holiday at Bangaram Island.
The Lakshwadeep Archipelago consists of 30 islands of which Bangaram is one, an uninhabited island, covering a mere half a sqkm.
*
The Indian Navy’s aircarft carrier, INS Virat picked up the holiday-goers from Mangalore & sailed them to Karavatti, the capital of the Lakshwadeep Islands.*
Let that sink in.
Not a luxury cruise ship
Not a hired, private yatch
Not a plane
But Indian Navy’s aircraft carrier.
An aircraft carrier is not an ordinary ship; alone on the seas.
It is a warship that serves as a seagoing airbase.
It is the capital ship, heading a Carrier Battle Group, requiring exceptional protection for itself.
A vulnerable aircraft carrier is a useless white elephant.
The security for an aircarft carrier is a layered, in-depth protection against all conceivable threats at sea.
An outer-most layer of aircraft on airborne early warning, surveillance & air defence tasks.
The next layer; anti-submarine patrols by ships as well as specialised
aircraft / helicopters.
Another layer of destroyers & frigates, specifically for anti-air, anti-missile, & anti-submarine tasks.
The inner-most, close-in-defence by the systems on the carrier itself are needed.
In this case, a submarine was rumoured to be lurking around too.
The holiday-goers list included:
The PM, his Italian-born wife & 2 children,4 friends of Rahul & Priyanka Sonia’s sister, husband & daughter.
Sonia’s widowed mother Sonia’s brother, Sonia’s maternal uncle.
Amitabh Bachchan’s wife & their 2 kids
His brother Ajitabh’s daughter.
Wife & daughter of *Birendra Singh, brother of former Union Minister, Arun Singh.
A total of:
6 Italian nationals
2 unknown foreigners
14 Indians (including Sonia who had surrendered Italian passport 5 years earlier)
On a joy-ride on the Indian Navy’s aircraft carrier
Bangaram is an uninhabited island.
So, everything was set-up from scratch.
An Administration helicopter ferried to the party,
The Society for the Promotion of Recreation, Tourism and Water Sports (SPORTS), a wing of the Lakshadweep administration was at their service.
A temporary farm with 100 chickens was set-up, two cooks worked full-time, under the personal supervision of the Gandhi’s personal cook.
Crates of liquor were brought from New Delhi, cold drinks and drinking water suppplied from Karavatti.
The island’s choicest fruits.
There is nothing wrong in a Prime Minister taking a break from his/her hectic schedule. The US President at Camp David and Putin’s shirtless escapades come to mind.
Contrast this with our current PM, who has never taken a holiday, sleeps on overnight long-haul flights.
It is in the manner in which virtually the entire State machinery was exploited & security compromised that raises several questions and reveals why the Gandhi parivaar, their scions feel they are entitled; that the country owes it to them to take care of all their needs.
The sight of an entitled Prince celebrating his birthday on board a Chartered Aircraft with his sis, mamma & granny, then PM, pales in comparision to the Bangaram holiday.
The sense of entitlement, that put the State machinery to be at their beck and call, is mind-boggling.
Was there an outrage on the use of an aircraft carrier for a joy-ride?
Who at Naval HQ agreed to divert an entire aircraft carrier for ten days, for private use?
Why did no one object to the presence of foreign nationals?
Who were the 2 unknown foreign nationals?
At least now, hard questions should be asked.
Admiral J G Nadkarni passed away in 2018 but Navy records should reveal how the decision came by.
What security checks were made of the foreign nationals?
What was the occupation of the foreign nationals?
Was Q among them?
After the vacation, the group dispersed separately, with Rahul & Rajiv going back from Karavatti to Mangalore on the INS Virat.
Again!
The Gandhis are entitled to an immense sense of entitlement because, we the people of India, have placed them on a pedestal based, merely because of who they are born or married to.
Till now, we have believed that it is OUR privilege & their right to be on that pedestal.
So, don’t begrudge the arrogance of Rahul & Priyanka Or their hate towards Modi & his new India.
Deprived of an India as their private jagir With its snake charmers, riverboat safaris, dinner with the natives, temple-hopping & other exquisite entitlements.
We, the people of India, have given them that exalted place.
And it is time, to change that
Our leaders MUST earn our respect,
MUST work for the privilege to represent us
And when they do, it is not a gravy train to enrichment
but an opportunity to serve
#CongressNeverAgain
For exquisite details of the vacation,
https://t.co/3ebsLAouq8