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सुभाष बोस की वापसी


  1. ………………………………………1960

सुभाष बोस की वापसी

इतिहास का उतार—चढ़ाव देखें। साथ में वक्त की करवट भी।

पांच दशक बीते, नयी दिल्ली के हृदय स्थल इंडिया गेट से अपने विशाल भारत साम्राज्य को निहारती रही ब्रिटिश बादशाह जॉर्ज पंचम की पथरीली मूर्ति। अब उसके हटने से रिक्त पटल पर (23 मार्च 2022) उनकी 125वीं जयंती पर अंग्रेज राज के महानतम सशस्त्र बागी सुभाष चन्द बोस की प्रतिमा स्थापित होगी। नरेन्द्र मोदी करेंगे। शायद बागी बोस फिर अपने हक से वंचित रह जाते क्योंकि वहां इंदिरा गांधी की प्रतिमा लगाने की बेसब्र योजना रची गयी थी। स्वाधीन भारत के दो दशकों (नेहरु राज के 17वर्ष मिलाकर) यह गुलामी का प्रतीक सम्राट का बुत राजधानी को ”सुशोभित” करता रहा। मानों गोरे अबतक दिल्ली में ही रहे! वह बादशाह जिसके विश्वव्यापी राज में सूरज कभी नहीं डूबता था, (किसी न किसी गुलामदेश में दिखता था) को अस्त कराने में नेताजी बोस की भूमिका का सम्यक वर्णन अभी बाकी है। इतिहास की दरकार है। युग का न्याय भी कितना वाजिब रहा! आज दिल्ली का कोरोनेशन पार्क (जहां जॉर्ज पंचम का पुतला 1968 से पड़ा है।) उत्तरी दिल्ली में खाली पड़ा एक मैदान मात्र है। इस जॉर्ज पंचम का वैभवी पुतला गत अर्ध सती से इस मैदान के जंगली झांड़ियों से आच्छादित वीरान कोने में पड़ा है। हर मौसम के थपेड़े खाता रहा। लंदन अजायबघर भी इसे लेने में दिलचस्पी नहीं रखता। कभी निपुण ब्रिटिश शिल्पियों की हस्तकला का यह नायाब नमूना रहा होगा। जब शरीर में प्राण थे यह जॉर्ज पंचम अपनी महारानी मैरी के साथ दिसम्बर 1911 में भारतीय उपनिवेश में आये थे। कोहिनूर जो गुलाम भारत से छीन कर ले जाया गया था, ब्रिटिश मुकुट की शोभा बढ़ा रहा था। नयी दिल्ली में राजकीय दरबार लगा। तब दो ऐतिहासिक घोषणायें हुयीं। बंग भंग (बंगाल का पूर्वी—पश्चिमी भूभाग में विभाजन) वाला निर्णय निरस्त कर फिर से संयुक्त बंगाल बना। भारत की नयी राजधानी कलकत्ता से दिल्ली लायी गयी। इसी राजतिलक के पर्व पर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपना जानामाना गीत ''जनगण मन अधिनायक'' इस गोरे सम्राट के लिये पेश किया था। इस जलसे में प्रत्येक शासक (राजकुमार, महाराजा एवं नवाब) तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति, भारत इस शोषक को अपना सलाम करने पहुंचे। सम्राट—युगल अपनी शाही राजतिलक वेशभूषा में आये थे। सम्राट ने आठ मेहराबों युक्त भारत का इम्पीरियल मुकुट पहना, जिसमें छः हजार एक सौ सत्तर उत्कृष्ट तराशे हीरे थे, जिनके साथ नीलम, पन्ना और माणिक्य जड़े थे। साथ ही एक शनील और मिनिवर टोपी भी थी, जिन सब का भार 965 ग्राम था। फिर वे लाल किले के एक झरोखे में दर्शन के लिये आये, जहां दस लाख से अधिक लोग दर्शन हेतु उपस्थित थे। दिल्ली दरबार मुकुट के नाम से सम्राज्ञी का एक भव्य मुकुट था। उन्हें पटियाला की महारानी की ओर से गले का खूबसूरत हार भेंट किया गया था। यह भारत की सभी स्त्रियों की ओर से महारानी की पहली भारत यात्रा के स्मारक स्वरूप था। सम्राज्ञी की विशेष आग्रह पर, यह हार, उनकी दरबार की पन्ने युक्त वेशभूषा से मेल खाता बनवाया गया था। 1912 में गेरार्ड कम्पनी ने इस हार में एक छोटा सा बदलाव किया, जिससे कि पूर्व पन्ने का लोलक (पेंडेंट) लगा था। उसके स्थान पर एक दूसरा हटने योग्य हीरे का लोलक लगाया गया। यह एक 8.8 कैरेट का मार्क्यूज़ हीरा था। गरीब भारत की सब संपत्ति थी। दिल्ली दरबार 1911 में लगभग 26,800 पदक दिये गये, जो कि अधिकांशतः ब्रिटिश रेजिमेंट के अधिकारी एवं सैनिकों को मिले थे। भारतीय रजवाड़ों के शासकों और उच्च पदस्थ अधिकारियों को भी एक छोटी संख्या में स्वर्ण पदक दिये गये थे।

किताबों में दर्ज है कि अपनी रियासत के रक्त पिपासु राजेमहाराजे बेगैरत रीति से सम्राट के कृपापात्र बनने की होड़ में रहते थे। सन 1857 के गोरे हत्यारों की मिन्नत में। अब बारी आ गयी नेताजी की। नेहरु वंश की हर कोशिश, बल्कि साजिश के बावजूद सुभाष चन्द्र बोस को नैसर्गिक अधिकार हासिल हो ही गया। हालांकि बोस की रहस्यात्मक मृत्यु की अभी तक गुत्थी सुलझी नहीं। नेताजी की मृत्यु के विषय में प्रधानमंत्री कार्यालय से सूचना कई बार मांगी गयी, पर कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला। जवाहरलाल नेहरु से लेकर मनमोहन सिंह सरकारों से पूछा जा चुका है। एक रपट के अनुसार ढाई दशक पूर्व (1995) में मास्को अभिलेखागार में तीन भारतीय शोधकर्ताओं ने चंद ऐसे दस्तावेज थे जिनसे अनुमान होता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस कथित वायुयान दुर्घटना के दस वर्ष बाद तक जीवित थे। वे स्टालिन के कैदी के नाते साइबेरिया के श्रम शिविर में नजरबंद रहे होंगे। सुभाष बाबू के भतीजे सुब्रत बोस ने प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव से इसमें तफ्तीश की मांग भी की थी। इसी आधार पर टोक्यो के रेणकोटी मंदिर में नेताजी की अनुमानित अस्थियां कलकत्ता लाने का विरोध होता रहा।

सुभाषचंद्र बोस पर मिली इन अभिलेखागार वाली सूचनाओं पर खुले दिमाग से गौर करने की तलब होनी चाहिए थी। प्रधानमंत्री से राष्ट्र की मांग है। यह भारत के साथ द्रोह और इतिहास के साथ कपट होगा यदि नेहरू युग से चले आ रहे सुभाष के प्रति पूर्वाग्रहों और छलभरी नीतियों से मोदी सरकार के सदस्य और जननायक भी ग्रसित रहेंगे और निष्पक्ष जांच से कतराते रहेंगे। संभव है कि यदि विपरीत प्रमाण मिल गए तो जवाहलाल नेहरू का भारतीय इतिहास में स्थान बदल सकता है, पुनर्मूल्यांकन हो सकता है। एक खोजपूर्ण दृष्टि तो अब भी डाली जा सकती है। भारत की स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों की राजनीतिक स्थिति और संघर्ष के दौरान की घटनाओं का विश्लेषण करें तो पूरा दृश्य कुछ स्पष्ट होता लगेगा। जैसे आजाद भारत के कांग्रेसी नेताओं का सुभाषचंद्र बोस की जीवित वापसी से बड़ा खतरा महसूस करना। यह इस परिवेश में भी समचीन लगता है कि राज्य सत्ता हासिल करने की लिप्सा में तब के राष्ट्रीय कर्णधारों ने राष्ट्रपिता को ही दरकिनार कर जल्दबाजी में देश का विभाजन स्वीकार कर लिया था। फिर वे सत्ता में सुभाष बोस की भागीदारी कैसे बर्दाश्त करते? देश कृतज्ञ है नरेन्द्र मोदी का कि सरदार पटेल के बाद सुभाष बोस को राष्ट्र के समक्ष पेश कर, उनकी भव्य प्रतिमा लगवाकर एक परिवार द्वारा ढाये जुल्म का अंत हो रहा है। मूर्ति लगाने से नेताजी को न्याय दिलाने की प्रक्रिया की शुरुआत हो गयी है। अब इसका तार्किक अंत भी हो।

अरुण सिंह

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक, Netaji Subhash Chandra Bose

सुभाष चंद्र बोस ने जब आईसीएस का पद ठुकरा दिया तो उनके पिता बहुत नाराज हुए। उन्हें सुभाष के किए की वजह ही समझ में नहीं आ रही थी। पिता की हालत देखकर उनके बड़े भाई शरतचंद्र बोस ने सुभाष को एक खत लिखा और बताया कि उनके पिता इस फैसले से बहुत नाराज हैं। पत्र पढ़कर सुभाष असमंजस में पड़ गए। लौटती डाक से उन्होंने बड़े भाई को लिखा, ‘इंग्लैंड के राजा के लिए वफादारी की कसम खाना मेरे लिए मुश्किल था। मैं खुद को देश सेवा में लगाना चाहता था। मैं देश के लिए कठिनाइयां झेलने को तैयार हूं, यहां तक कि अभाव, गरीबी और मां-पिता की नाखुशी तक सहने को तैयार हूं।’

पत्र पढ़कर शरतचंद्र समझ गए कि सुभाष पर दबाव डालना बेकार है। फिर उन्होंने सुभाष को एक और खत लिखा कि, ‘पिता रात-रात भर सोते नहीं हैं। तुम्हारे भारत लौटते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। वे ब्रिटिश राज के निशाने पर हैं। भारत सरकार उन्हें स्वतंत्र नहीं रहने देगी।’ सुभाष चंद्र बोस के मित्र दिलीप राय ने जब यह पढ़ा तो वह बोले, ‘सुभाष, अब तुम क्या करोगे? अभी भी वक्त है। तुम चाहो तो इस्तीफा वापस ले सकते हो?’

यह सुनकर सुभाष गुस्से से लाल हो गए। वह बोले, ‘तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो?’ दिलीप राय ने शांत स्वर में कहा, ‘इसलिए, क्योंकि तुम्हारे पिता बीमार हैं।’ मित्र की बात काटकर सुभाष बोले, ‘मैं जानता हूं, पर अगर हम अपने परिवार की प्रसन्नता के आधार पर अपने आदर्श निर्धारित करते हैं तो क्या ऐसे आदर्श वास्तव में आदर्श होंगे?’ सुभाष चंद्र बोस की यह बात सुनकर दिलीप राय उन्हें देखते रह गए। उनके मुंह से सिर्फ यही निकल पाया, ‘धन्य हैं तुम्हारे माता-पिता, जिन्होंने ऐसे पुत्र को जन्म दिया है जो पिता की खुशी से भी ऊंचा स्थान मातृभूमि की सेवा को देता है।’

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आज़ाद हिन्द फौज के स्थापना की घोषणा हो चुकी थी…….. सैनिकों की नियुक्ति चालू थी…….सेना के कपडे, भोजन, हथियार, दवा आदि के लिए धन की सख्त जरूरत थी…… कुछ धन जापानियों ने दिया लेकिन वो जरूरत के जितना नहीं था……… नेताजी ने आह्वान किया…………

लोग नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सिक्को और गहनों में तौल रहे थे………एक महिला आई जिसने फोटो फ्रेम तोड़ा, फ्रेम सोने का था और अंदर मृत पुत्र का फोटो था…… फ्रेम तराजू पर रख दिया……..!!

एक ग्वाला आया और उसने सारी गाय आज़ाद हिन्द फौज को दे दिया जिससे सैनिकों को दूध मिल सके….
कुछ जवान आये जिन्होंने पुछा वर्दी कहाँ है और बन्दूक कहाँ है……….. कुछ बुजुर्ग आए और अपने इकलोते पुत्र को नेताजी के छाया में रख दिया……..!!!

बुजुर्ग घायल सैनिकों की सेवा और कुली के काम करने को प्रवेश ले लिए…….

कुछ युवतियाँ आईं और उन्होंने रानी झाँसी रेजिमेंट में प्रवेश लिया………………

कुछ 45 पार महिलाऐं आई और रानी झाँसी रेजिमेंट में सीधे प्रवेश नहीं पाने के जगह पर रसोइया और नर्स बन गईं……….!!
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आखिर कौन थे ये लोग…….?? यही थे आम लोग….!! मलेशिया, सिंगापुर, बर्मा, फिजी, थाईलैंड और अन्य दक्षिणी एशिया में रहने वाले भारतीय थे……. जिन्होंने भारत के बारे में अपने उन बुजुर्गों से सुना था जिनको अँगरेज़ गुलाम बनाकर लाए थे……..!! जो कुली, मजदूर, जमादार आदि के रूप में काम करते थे……! जो वर्षों से अपने देश नहीं जा सके थे……. लेकिन अपने बच्चों – पीढ़ियों के दिल में भारत बसा दिया था उन्होंने अपने गाँव, कसबे शहर की कहानियाँ बताकर…..!

आज उन कहानियों ने चमत्कार कर दिया था……! वो कहानियाँ नहीं थी – देश की माटी का बुलावा था जो सीने में छिपा था….! आज नेताजी के आह्वान ने उस जवालामुखी को फोड़ दिया है…………………………..
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किसी की कोई जात नहीं थी…..!! बस सब भारतीय थे…..! दासता का दंश झेलते हुए….! अपने देश से पानी के जहाज़ में ठूँस कर जबरदस्ती यहाँ लाए गए थे…………… जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया था…………………… बस भारत और अपने माटी को जिन्दा रखा था दिल में…….!!

भारत को आज़ादी दिलाने में हज़ारों उन भारतोयों का लहू शामिल है जो कभी लौट नहीं पाए………….वहीँ वीरगति को प्राप्त हो गए………..जिनके भारत में रहे वाले परिवारों को आज तक नहीं पता कि उनका एक लाल देश के लिए बलिदान हो गया था कब का……….!!

जिनका नाम हमें आपको पता ही नहीं……!! जिनको अन्तिम संस्कार भी नसीब नहीं हुआ…………. जो न ही उन विदेश की धरती पर अपना घर या छाप बना पाए थे कि उनका कोई रिकॉर्ड रखता………………….!!!!!

ये पोस्ट समर्पित है उन अनाम आज़ादी पाने के दीवाने, बलिदानी और महान सैनिकों को…….! उनके ऋणी हैं हम…….! न उनका नाम पता है, न जात पता है……………………..तो हे आज़ाद भारत के लोगों एक हो जाओ……..!

आओ नेता जी के सपनो का भारत बनाए………. आओ उन अनाम बलिदानियों के लहू का ऋण चुकाएँ……….!!!

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नेताजी सुभाषचंद्र बोस


नेताजी सुभाषचंद्र बोस भारत के महान नेता थे। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए आजाद हिंद फौज(भारत की आर्मी) की स्थापना की थी, जिसके भय से ब्रिटिश हुकुमत भारत को छोड़ने के अपने दिन गिनने लगी थी। नेताजी प्रखर वक्ता भी थे, उनके भाषण उस समय भी युवाओं का जोश भरते थे और आज भी हमारे लिए प्रेरणा का महान स्रोत हैं। जानिए कौन सा भाषण था नेताजी का जो ऐतिहासक माना जाता है।।

सन् 1941 में कोलकाता से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अपनी नजरबंदी से भागकर ठोस स्थल मार्ग से जर्मनी पहुंचे, जहां उन्होंने भारत सेना का गठन किया। जर्मनी में कुछ कठिनाइयां सामने आने पर जुलाई 1943 में वे पनडुब्बी के जरिए सिंगापुर पहुंचे। सिंगापुर में उन्होंने आजाद हिंद सरकार (जिसे नौ धुरी राष्ट्रों ने मान्यता प्रदान की) और इंडियन नेशनल आर्मी का गठन किया। मार्च एवं जून 1944 के बीच इस सेना ने जापानी सेना के साथ भारत-भूमि पर ब्रिटिश सेनाओं का मुकाबला किया। यह अभियान अंत में विफल रहा, परंतु बोस ने आशा का दामन नहीं छोड़ा। जैसा कि यह भाषण उद्घाटित करता है, उनका विश्वास था कि ब्रिटिश युद्ध में पीछे हट रहे थे और भारतीयों के लिए आजादी हासिल करने का यही एक सुनहरा अवसर था। यह शायद बोस का सबसे प्रसिद्ध भाषण है। इंडियन नेशनल आर्मी के सैनिकों को प्रेरित करने के लिए आयोजित सभा में यह भाषण दिया गया, जो अपने अंतिम शक्तिशाली कथन “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” के लिए प्रसिद्ध है।

दोस्तों! बारह महीने पहले पूर्वी एशिया में भारतीयों के सामने ‘संपूर्ण सैन्य संगठन’ या ‘अधिकतम बलिदान’ का कार्यक्रम पेश किया गया था। आज मैं आपको पिछले साल की हमारी उपलब्धियों का ब्योरा दूंगा तथा आने वाले साल की हमारी मांगें आपके सामने रखूंगा। परंतु ऐसा करने से पहले मैं आपको एक बार फिर यह एहसास कराना चाहता हूं कि हमारे पास आजादी हासिल करने का कितना सुनहरा अवसर है। अंग्रेज एक विश्वव्यापी संघर्ष में उलझे हुए हैं और इस संघर्ष के दौरान उन्होंने कई मोर्चो पर मात खाई है। इस तरह शत्रु के काफी कमजोर हो जाने से आजादी के लिए हमारी लड़ाई उससे बहुत आसान हो गई है, जितनी वह पांच वर्ष पहले थी। इस तरह का अनूठा और ईश्वर-प्रदत्त अवसर सौ वर्षो में एक बार आता है। इसीलिए अपनी मातृभूमि को ब्रिटिश दासता से छुड़ाने के लिए हमने इस अवसर का पूरा लाभ उठाने की कसम खाई है।

हमारे संघर्ष की सफलता के लिए मैं इतना अधिक आशावान हूं, क्योंकि मैं केवल पूर्व एशिया के 30 लाख भारतीयों के प्रयासों पर निर्भर नहीं हूं। भारत के अंदर एक विराट आंदोलन चल रहा है तथा हमारे लाखों देशवासी आजादी हासिल करने के लिए अधिकतम दु:ख सहने और बलिदान देने के लिए तैयार हैं। दुर्भाग्यवश, सन् 1857 के महान् संघर्ष के बाद से हमारे देशवासी निहत्थे हैं, जबकि दुश्मन हथियारों से लदा हुआ है। आज के इस आधुनिक युग में निहत्थे लोगों के लिए हथियारों और एक आधुनिक सेना के बिना आजादी हासिल करना नामुमकिन है। ईश्वर की कृपा और उदार नियम की सहायता से पूर्वी एशिया के भारतीयों के लिए यह संभव हो गया है कि एक आधुनिक सेना के निर्माण के लिए हथियार हासिल कर सकें।

इसके अतिरिक्त, आजादी हासिल करने के प्रयासों में पूर्वी एशिया के भारतीय एकसूत्र में बंधे हुए हैं तथा धार्मिक और अन्य भिन्नताओं का, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने भारत के अंदर हवा देने की कोशिश की, यहां पूर्वी एशिया में नामोनिशान नहीं है। इसी के परिणामस्वरूप आज परिस्थितियों का ऐसा आदर्श संयोजन हमारे पास है, जो हमारे संघर्ष की सफलता के पक्ष में है – अब जरूरत सिर्फ इस बात की है कि अपनी आजादी की कीमत चुकाने के लिए भारती स्वयं आगे आएं। ‘संपूर्ण सैन्य संगठन’ के कार्यक्रम के अनुसार मैंने आपसे जवानों, धन और सामग्री की मांग की थी। जहां तक जवानों का संबंध है, मुझे आपको बताने में खुशी हो रही है कि हमें पर्याप्त संख्या में रंगरूट मिल गए हैं। हमारे पास पूर्वी एशिया के हर कोने से रंगरूट आए हैं – चीन, जापान, इंडोचीन, फिलीपींस, जावा, बोर्नियो, सेलेबस, सुमात्रा, मलाया, थाईलैंड और बर्मा से।

आपको और अधिक उत्साह एवं ऊर्जा के साथ जवानों, धन तथा सामग्री की व्यवस्था करते रहना चाहिए, विशेष रूप से आपूर्ति और परिवहन की समस्याओं का संतोषजनक समाधान होना चाहिए। हमें मुक्त किए गए क्षेत्रों के प्रशासन और पुनर्निर्माण के लिए सभी श्रेणियों के पुरुषों और महिलाओं की जरूरत होगी। हमें उस स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए, जिसमें शत्रु किसी विशेष क्षेत्र से पीछे हटने से पहले निर्दयता से ‘घर-फूंक नीति’ अपनाएगा तथा नागरिक आबादी को अपने शहर या गांव खाली करने के लिए मजबूर करेगा, जैसा उन्होंने बर्मा में किया था। सबसे बड़ी समस्या युद्धभूमि में जवानों और सामग्री की कुमुक पहुंचाने की है। यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम मोर्चो पर अपनी कामयाबी को जारी रखने की आशा नहीं कर सकते, न ही हम भारत के आंतरिक भागों तक पहुंचने में कामयाब हो सकते हैं।
आपमें से उन लोगों को, जिन्हें आजादी के बाद देश के लिए काम जारी रखना है, यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि पूर्वी एशिया – विशेष रूप से बर्मा – हमारे स्वातंय संघर्ष का आधार है। यदि यह आधार मजबूत नहीं है तो हमारी लड़ाकू सेनाएं कभी विजयी नहीं होंगी। याद रखिए कि यह एक ‘संपूर्ण युद्ध है – केवल दो सेनाओं के बीच युद्ध नहीं है। इसलिए, पिछले पूरे एक वर्ष से मैंने पूर्व में ‘संपूर्ण सैन्य संगठन’ पर इतना जोर दिया है। मेरे यह कहने के पीछे कि आप घरेलू मोर्चे पर और अधिक ध्यान दें, एक और भी कारण है। आने वाले महीनों में मैं और मंत्रिमंडल की युद्ध समिति के मेरे सहयोगी युद्ध के मोरचे पर-और भारत के अंदर क्रांति लाने के लिए भी – अपना सारा ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।

इसीलिए हम इस बात को पूरी तरह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आधार पर हमारा कार्य हमारी अनुपस्थिति में भी सुचारु रूप से और निर्बाध चलता रहे। साथियों एक वर्ष पहले, जब मैंने आपके सामने कुछ मांगें रखी थीं, तब मैंने कहा था कि यदि आप मुझे ‘संपूर्ण सैन्य संगठन’ दें तो मैं आपको एक ‘एक दूसरा मोरचा’ दूंगा। मैंने अपना वह वचन निभाया है। हमारे अभियान का पहला चरण पूरा हो गया है। हमारी विजयी सेनाओं ने निप्योनीज सेनाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर शत्रु को पीछे धकेल दिया है और अब वे हमारी प्रिय मातृभूमि की पवित्र धरती पर बहादुरी से लड़ रही हैं।

अब जो काम हमारे सामने हैं, उन्हें पूरा करने के लिए कमर कस लें। मैंने आपसे जवानों, धन और सामग्री की व्यवस्था करने के लिए कहा था। मुझे वे सब भरपूर मात्रा में मिल गए हैं। अब मैं आपसे कुछ और चाहता हूं। जवान, धन और सामग्री अपने आप विजय या स्वतंत्रता नहीं दिला सकते। हमारे पास ऐसी प्रेरक शक्ति होनी चाहिए, जो हमें बहादुर व नायकोचित कार्यो के लिए प्रेरित करें। सिर्फ इस कारण कि अब विजय हमारी पहुंच में दिखाई देती है, आपका यह सोचना कि आप जीते-जी भारत को स्वतंत्र देख ही पाएंगे, आपके लिए एक घातक गलती होगी।

यहां मौजूद लोगों में से किसी के मन में स्वतंत्रता के मीठे फलों का आनंद लेने की इच्छा नहीं होनी चाहिए। एक लंबी लड़ाई अब भी हमारे सामने है। आज हमारी केवल एक ही इच्छा होनी चाहिए – मरने की इच्छा, ताकि भारत जी सके; एक शहीद की मौत करने की इच्छा, जिससे स्वतंत्रता की राह शहीदों के खून बनाई जा सके। साथियों, स्वतंत्रता के युद्ध में मेरे साथियो! आज मैं आपसे एक ही चीज मांगता हूं, सबसे ऊपर मैं आपसे अपना खून मांगता हूं। यह खून ही उस खून का बदला लेगा, जो शत्रु ने बहाया है। खून से ही आजादी की कीमत चुकाई जा सकती है। तुम मुझे खून दो और मैं तुम से आजादी का वादा करता हूं।

“तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूँगा।”

संजय कुमार's photo.
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नेताजी सुभाषचंद्र बोस


Rajeev Singla and Pawan Kumar shared a post.
Sanjay Dwivedy's photo.
Sanjay Dwivedy with Monu Mishra and 6 others

18 hrs ·

मित्रों!अगर इन चार बातों सही जवाब दुनिया तक पहुच गया तो विश्वाश मानिये, जो बात आज सुब्रमण्यम् स्वामी कह रहे हैं वो बात कल देश का बच्चा बच्चा कहेगा और देश का इतिहास एक बार फिर से लिखा जायेगा-

नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी के साथ क्या साजिश हुई जो उन्हें उस विमान दुर्घटना में मृत घोषित किया गया जो कभी हुआ ही नहीं।

ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री जी कैसे मरे की उनका शरीर नीला पड़ गया। शास्त्री जी की पत्नी के बार बार कहने पर भी कांग्रेस ने शव का पोस्टमार्टम क्यों नहीं करने दिया और शास्त्री जी की पर्सनल डायरी कहाँ गायब हो गई।

जवाहर लाल नेहरू से मिलने के आधे घंटे बाद चंद्रशेखर आज़ाद के अल्फ्रेड पार्क में होने की खबर किसने अंग्रेजों तक पहुँचाई।

डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी कश्मीर में जेल में कैसे मरे?

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Netaji files


NaMo govt moves ahead on Netaji files, declassification to begin on January 23rd – 14 October 2015 The Narendra Modi government has begun moving towards declassifying the Netaji Subhas Chandra Bose files.
The files related to Subhas Chandra Bose, which have been kept secret hitherto, will be declassified by the government beginning January 23 next year, Subhas Chandra Bose’s birthday. Prime Minister Narendra Modi announced this today, saying, “there is no need to strangle history”. The PM was meeting Netaji’s family members.

Prime Minister Modi also promised to urge foreign governments to declassify files on Netaji available with them by writing to them and personally taking up the issue with foreign leaders. The government’s move is set to commence with Russia in December.

His announcement regarding an issue that has been hanging fire for seven decades came when he received 35 family members of Bose at his official residence in New Delhi and interacted with them for an hour.

“Process of declassification of files relating to Netaji will begin on 23rd January 2016, Subhas Babu’s birth anniversary,” Modi tweeted later.

“Will also request foreign governments to declassify files on Netaji available with them. Shall begin this with Russia in December,” he said in another tweet.

Declaring that “There is no need to strangle history”, he said “Nations that forget their history lack the power to create it”.
There have been demands by Netaji’s family and several others for declassification of secret files as they hope that it will help answer questions regarding his mysterious disappearance in 1945.

“I told Subhas Babu’s family members — please consider me a part of your family. They shared their valuable suggestions with me,” the Prime Minister said, while remarking that “it was a privilege to welcome” them to 7, Race Course Road, his official residence.

Netaji Subhas’ family members have requested the declassification of the files available with the Government of India. They suggested that the government of India initiate the process to get the files on Netaji available with foreign governments to also be declassified, a PMO statement said.

The Narendra Modi government has begun moving towards declassifying the Netaji Subhas Chandra Bose files.
INDIATOMORROW.CO|BY INDIA TOMORROW BUREAU
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Subhas Chandra Bose


<img alt=”American intelligence agency CIA had cast doubt on the reported death of Subhas Chandra Bose in a plane crash in 1945 and was tipped off that Netaji would return from exile in 1964, according to declassified documents. </p>
<p>”A search of our files indicates that there is no information available regarding subject’s death that would shed any light on the reliability of the reports,” documents released by CIA said. </p>
<p>A document, dated February 1964, released by CIA said, “The ..<br />
—————————————————————-<br />
Read more at:<br />
http://economictimes.indiatimes.com/articleshow/29999550.cms?utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppst<br />
—————————————————————-<br />
@[107229389416718:274:Dr. Subramanian Swamy] talks about Neta Ji Subash Chandra Bose in Tokiyo. Dr Swamy says Subash Bose represented a person who liberated India.<br />
http://www.youtube.com/watch?v=nZK2SMoTWh8<br />
—————————————————————-” src=”https://fbcdn-sphotos-h-a.akamaihd.net/hphotos-ak-prn1/t1/s403x403/1010960_365692360237085_1882428093_n.jpg&#8221; width=”403″ height=”302″ />

American intelligence agency CIA had cast doubt on the reported death of Subhas Chandra Bose in a plane crash in 1945 and was tipped off that Netaji would return from exile in 1964, according to declassified documents.

“A search of our files indicates that there is no information available regarding subject’s death that would shed any light on the reliability of the reports,” documents released by CIA said.

A document, dated February 1964, released by CIA said, “The ..
—————————————————————-
Read more at:
http://economictimes.indiatimes.com/articleshow/29999550.cms?utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppst
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Dr. Subramanian Swamy talks about Neta Ji Subash Chandra Bose in Tokiyo. Dr Swamy says Subash Bose represented a person who liberated India.
http://www.youtube.com/watch?v=nZK2SMoTWh8

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आपको शायद मालूम न हो लेकिन बंगाल भारत का पहला राज्य था


आपको शायद मालूम न हो लेकिन बंगाल भारत का पहला राज्य था जिसे अंग्रेजो से आजादी मिल गयी थी! जिसके पश्चात अंग्रेजो ने बंगाल के टुकड़े किये 1905 में ! पश्चिम बंगाल एक ऐसा प्रदेश था जो अकेले ही हमे आज़ादी दिला सकता था पर अँग्रेज़ों ने महात्मा गाँधी को ऐसा पटाया की महात्मा गाँधी भी मान गये की पश्चिम बंगाल से हिंदू ख़त्म हो जाए और मुसलमान बस जाए !
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फिर क्या महात्मा गाँधी ने अंग्रेज़ो द्वारा अनाज सप्लाई बंद करवा दी क्यूँ की वहाँ सुभाष चंद्र बोस का वजन कम करना था और इस समय मतलब १९३७ मे जब सुभाष कॉंग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव महात्मा गाँधी के विरुद्ध लड़ रहे थे तब इसी हरामात्मा गाँधी ने बंगाल की फुड सप्लाइ बंद करवा दी उसके बावजूद सुभाष जीत गये ! पर गाँधी ने सुभाष को ब्लाककमेल किया की अगर बंगाल को अनाज चाहिए तो अपनी जीत नकार दे और बंगाल को अनाज मिल जाएगा सुभाष ना चाहते हुए कॉंग्रेस के अध्यक्ष पद को छोड़ दिए और बंगाल मे अनाज आया
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ये चित्र उसी समय का है बेचारे हिंदू बंगाली आज मछली खाते है ये उसी घटना का बड़ा परिणाम है अनाज नही तो किसी तरह मछली खाकर पेट भरें!
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उसके बाद सुभाष की घूम गयी और उन्होने आज़ाद हिंद सेना बनाई
फिर इतिहास सब को पता है की नेहरू ने सुभाष की हत्या कैसे की
जय माँ भवानी

Sanjay Dwivedy's photo.
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एक लाख रुपये का नोट जारी करने वाले ” आजाद हिन्द बैंक ” की स्थापना सन १९४३ में हुई थी ।


राकेश कुमार's photo.
राकेश कुमार's photo.
राकेश कुमार's photo.
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एक लाख रुपये का नोट जारी करने वाले ” आजाद हिन्द बैंक ” की स्थापना सन १९४३ में
हुई थी । तव इस बैंक को १० देशों बर्मा , क्रोएशिया , नानकिंग , मंचूको , इटली , थाईलैंड ,
फिलीपीन्स व आयरलैण्ड के बैंकों ने इसकी करेंसी को मान्यता दी थी ।

इस बैंक ने १० रु. के सिक्के से लेकर , एक लाख रु. तक के नोट जारी किये थे ।
इसके पूर्व तक ५००० रु. तक के जारी किये गये नोट की जानकारी ही सार्वजनिक थी ।
पांच हजार का एक नोट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (B.H.U ) के भारत कला-भवन में रखा है।
जबकि शनिवार ३०-जून-२०१५ , को एक लाख रुपये के नोट की तस्वीर नेताजी की प्रपौत्री
राज्यश्री चौधरी नें ” विशाल भारत संस्थान को उपलब्ध कराई !

यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि ०५-जून से , विशाल भारत संस्थान की तरफ से , नेताजी श्री
सुभाष चन्द्र बोस के बारे में खोज को लेकर एक राष्ट्र-व्यापी कार्यक्रम का शुभारम्भ किया जा
रहा है । इसमें समस्त विश्व से ” सुभाषवादियों ” को आमंत्रित किया गया है ।

इस अभियान के केंन्द्र-बिन्दू बनेंगे , नेताजी के चालक रहे श्री कर्नल निजामुद्दीन जी ,
जो अपने स्वास्थ्य संबंधी उपचार हेतु , इस समय वाराणसी में ही रह रहे हैं ।
उनहोंने बताया कि जब नेताजी रंगून के जुबली हाल में भाषण दिया था ,
तो उन्हें सुनने के लिए एशिया भर से लोग आये थे ।

उस समय नेताजी को , लोगों नें सोने चाँदी के आभूषणों से भरे २७ बोरियों से
उन्हें तोला था , और उन बोरियों को वह स्वयं और कुछ अन्य साथियों ने भी अपने कंधों
से ढोकर , आजाद हिन्द फौज के राजकोष में जमा किया था ।

सुभाषवादियों का यह भी दावा है कि उस समय आजाद हिन्द बैंक में ,
करीब ७० हजार करोड़ रु. जमा थे ।
इस बैंक ने बर्मा को दस लाख रुपये ऋण देने का एक प्रस्ताव भी पारित किया था।

आरोप यह भी है कि श्री नेताजी की हत्या या गुमनामी के पीछे , इतनी बड़ी धनराशि का
मामला होना भी , एक प्रमुख कारण था ।
जिसे बाद में भारतीय और इंग्लैण्ड के राजनेताओं ने बंदर-बांट कर लिया होगा।

विशाल भारत संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष श्री राजीव श्रीवास्तव कहते हैं ,
कि आजाद हिन्द सरकार नें , फौज और बैंक की स्थापना के बाद ,
श्री नेताजी को जनवरी में हुए एक कार्यक्रम में , उन्हें आजाद-भारत का पहला
राष्ट्रपति बनाने की माँग भी की गई थी ।
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आजाद हिन्द सरकार का अपना रेडियो स्टेशन , अपना अखबार और
एक बड़ी फौज भी थी , जो कई देशों में फैली हुई थी ।
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