“अमेरिका में रसोई में भोजन बनाना छोड़ने का दुष्परिणाम”
अमेरिका में क्या हुआ जब घर में खाना बनाना बंद हो गया ?
1980 के दशक के प्रसिद्ध अमेरिकी अर्थशास्त्रियों ने अमेरिकी लोगों को चेतावनी कि यदि वे परिवार में आर्डर देकर बाहर से भोजन मंगवाऐंगे तो देश मे परिवार व्यवस्था धीरे धीरे समाप्त हो जाएगी।
साथ ही दूसरी चेतावनी दी कि यदि उन्होंने बच्चों का पालन पोषण घर के सदस्यो के स्थान पर बाहर से पालन पोषण की व्यवस्था की तो यह भी बच्चो के मानसिक विकास व परिवार के लिए घातक होगा।
लेकिन बहुत कम लोगों ने उनकी सलाह मानी। घर में खाना बनाना लगभग बंद हो गया है, और बाहर से खाना मंगवाने की आदत (यह अब नॉर्मल है), अमेरिकी परिवारों के विलुप्त होने का कारण बनी है जैसा कि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी।
घर मे खाना बनाना मतलब परिवार के सदस्यों के साथ प्यार से जुड़ना।
पाक कला मात्र अकेले खाना बनाना नहीं है। बल्कि केंद्र बिंदु है, पारिवारिक संस्कृति का।
घर मे अगर कोई किचन नहीं है , बस एक बेडरूम है, तो यह घर नहीं है, यह एक हॉस्टल है।
अब उन अमेरिकी परिवारों के बारे में जाने जिन्होंने अपनी रसोई बंद कर दी और सोचा कि अकेले बेडरूम ही काफी है?
1-1971 में, लगभग 72% अमेरिकी परिवारों में एक पति और पत्नी थे, जो अपने बच्चों के साथ रह रहे थे।
2020 तक, यह आंकडा 22% पर आ गया है।
2-पहले साथ रहने वाले परिवार अब नर्सिंग होम (वृद्धाश्रम) में रहने लगे हैं।
3-अमेरिका में, 15% महिलाएं एकल महिला परिवार के रुप में रहती हैं।
4-12% पुरुष भी एकल परिवार के रूप में रहते हैं।
5-अमेरिका में 19% घर या तो अकेले रहने वाले पिता या माता के स्वामित्व में हैं।
6-अमेरिका में आज पैदा होने वाले सभी बच्चों में से 38% अविवाहित महिलाओं से पैदा होते हैं।उनमें से आधी लड़कियां हैं, जो बिना परिवारिक संरक्षण के अबोध उम्र मे ही शारीरिक शोषण का शिकार हो जाती है ।
7-संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 52% पहली शादियां तलाक में परिवर्तित होती हैं।
8- 67% दूसरी शादियां भी समस्याग्रस्त हैं।
अगर किचन नहीं है और सिर्फ बेडरूम है तो वह पूरा घर नहीं है।
संयुक्त राज्य अमेरिका विवाह की संस्था के टूटने का एक उदाहरण है।
हमारे आधुनिकतावादी भी अमेरिका की तरह दुकानों से या आनलाईन भोजन ख़रीदने की वकालत कर रहे हैं और खुश हो रहे हैं कि भोजन बनाने की समस्या से हम मुक्त हो गए हैं।
इस कारण भारत में भी परिवार धीरे-धीरे अमेरिकी परिवारों की तरह नष्ट हो रहे हैं।
जब परिवार नष्ट होते हैं तो मानसिक और शारीरिक दोनों ही स्वास्थ्य बिगड़ते हैं।
बाहर का खाना खाने से अनावश्यक खर्च के अलावा शरीर मोटा और संक्रमण के प्रति संवेदनशील और बिमारीयों का घर हो जाता है।
शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है।
इसलिए हमारे घर के बड़े-बूढ़े लोग, हमें बाहर के खाने से बचने की सलाह देते थे
लेकिन आज हम अपने परिवार के साथ रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं…”,
स्विगी और ज़ोमैटो के माध्यम से अजनबियों द्वारा पकाए गए( विभिन्न कैमिकल युक्त) भोजन को ऑनलाइन ऑर्डर करना और खाना, उच्च शिक्षित, मध्यवर्गीय लोगों के बीच भी फैशन बनता जा रहा है।
दीर्घकालिक आपदा होगी ये आदत…
आज हमारा खाना हम तय नही कर रहे उलटे ऑनलाइन कंपनियां विज्ञापन के माध्यम से मनोवैज्ञानिक रूप से तय करती हैं कि हमें क्या खाना चाहिए…
हमारे पूर्वज निरोगी और दिर्घायु इस लिए थे कि वो घर क्या …यात्रा पर जाने से पहले भी घर का बना ताजा खाना बनाकर ही ले जाते थे ।
इसलिए घर में ही बनाएं और मिल-जुलकर खाएं । पौष्टिक भोजन के अलावा, इसमें प्रेम और स्नेह निहित है।
Category: खाना खजाना – રસોઈ
વિવિધ સુકવણીઓ
अमेरिका में रसोई में भोजन बनाना छोड़ने का दुष्परिणाम
पान
#मिथिला में पान की परंपरा के बारे में कहा जाता है –
माछ-पान-मखान
मिथिलाक तीन पहिचान।
इसी तरह #देवघर (झारखंड) के मैथिल ब्राह्मणों में एक व्यंग कहावत है –
सौव्वें सुपाड़ी, लाखें पान
बेसि होवै तै गांजा टान।
वैसे तो आर्य और द्रविड़ों से पान को जोड़कर देखा जाता है। मगर सम्पूर्ण भारतीय प्रायद्वीप (साउथ ईस्ट एशिया) में पान की परंपरा होने का प्रमाण मिलता है। श्रीलंका में तीसरी शताब्दी ईसापूर्व के इसके प्रमाण मिले हैं। समय के साथ सम्पूर्ण विश्व में यह फैल गया। मुग़लिया दरबार भी इससे अछूता नहीं रहा। बौद्ध तंत्रयान में भी इसके प्रयोग की जानकारी मिलती है।
मिथिला में पान की परंपरा अति प्राचीन है। ऋषि #जमदग्नि का कौशिकी तीर के आश्रम में माँ मृगावती के साथ अज्ञातवास में रह रहे बालक उदयन (राजा सहस्रानीक पुत्र) ने सर्वप्रथम ‘पान’ का पौधा देखा था। ये वही यमदग्नि हैं जिन्होंने #सामवेद की कुछ ऋचाएं रचे हैं। इनकी ससुराल कौशिकी (कोशी क्षेत्र) में थी। यह क्षेत्र मिथिला का अंग रहा है।
इसी उदयन ने वासवदत्ता से विवाह के पश्चात मगध नरेश की भगिनी (बहन) और अंग नरेश दृढ़वर्मा की पुत्री प्रियदर्शिका से भी विवाह किया। राजा #हर्षवर्धन ने ‘प्रियदर्शिका’ में इसे विस्तार दिया है।
#गर्ग_संहिता में मिथिला के नरेश उग्रसेन के राजसूय यज्ञ के लिए प्रद्युम्न द्वारा पान का बीड़ा उठाये जाने की चर्चा मिलती है।
#स्कंद_पुराण में चर्चा मिलती है कि समुद्र मंथन के क्रम में पान का बेल निकला था। मंथन की धुरी #मंदार_पर्वत आज भले ही प्राचीन अंग जनपद का भूभाग रहा हो मगर यह मिथिला का पड़ोसी राज्य था।
#महाभारत में चर्चा है कि युद्ध के पश्चात जब पांडव राजसूय यज्ञ करने को उद्यत हुए तब याज्ञिक ऋषियों ने पान लाने का अनुरोध किया। इसके लिए #अर्जुन को नागों के क्षेत्र में जाना पड़ा।
‘महाभारत’ के एक अन्य प्रकरण में चर्चा मिलती है कि #विदुर के घर #कृष्ण को भोजन के उपरांत पान भी परोसा गया।
13वीं-14 वीं सदी के मिथिला के प्रख्यात लेखक #ज्योतिरीश्वर_ठाकुर ‘वर्ण रत्नाकर’ में मिथिला में पान की परंपरा के बारे में जानकारी देते हैं। पान की पत्तियों तथा इसमें प्रयुक्त चूना और मसालों के प्रकार के बारे में वे अन्य लेखकों से अव्वल लिखते हैं।
13 प्रकार के पान तथा मसालों की लंबी सूची वे प्रस्तुत तो करते ही हैं। वे यह भी बताते हैं कि विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों से लाई सुपाड़ी और चूना इसे विशिष्ट बनाते हैं। ज्योतिरीश्वर कहते हैं कि पान और मखाना स्वर्ग में भी नहीं मिलते। यह मिथिला में ‘मुखशुद्धि’ है।
13वीं सदी में आये तिब्बती यात्री #धर्मस्वामिन कहते हैं कि यहां पान के पत्तों पर सूखे गोबर को जलाकर बनाए गए राख का पेस्ट तथा सुगंधित कत्था लगाकर बीड़ा बनाया जाता है जिसे गीले कपड़ों में दो दिनों तक रखकर खाया जा सकता है।
16वीं सदी के महाकवि #विद्यापति अपने पदों में काकेर, बेलहरी, मगही, बंगला जैसे पान के पत्तों की चर्चा करते हैं। उस समय के मिथिला की परंपराएं बिना पान के संपन्न नहीं होती थी। ऐसा आज भी है।
इतिहासकार #जदूनाथ_सरकार कहते हैं कि बंगाल के सोनारगांव के लोग प्राचीन काल से नदी में मिलनेवाले सीप के कवच (प्रवाल भस्म) को जलाकर चूना बनाते हैं। इसे बिहार और बंगाल में बेचा भी जाता है मगर अब ‘खान-ए-पुरनियमत’ के आधार पर सोनारगांव के मदरसे में इसे अधार्मिक बताकर बहिष्कार किया गया है।
10वीं-11वीं सदी में भारत आए ईरानी लेखक #अलबरूनी कहते हैं कि भारत में पान चबाना राष्ट्रीय आदत है। यहां के समाज में पान से लोगों की आवभगत की जाती है। मुसलमान इसे खाना नहीं जानते थे। अब सीख चुके हैं। इसे ‘देवल रानी खिज़िर खान’ में #अमीर_खुसरो भी लिखते हैं। खुसरो ने पान की बुराइयां भी बहुत की है।
पान 20वीं शताब्दी तक भारत में बहुत प्रचलन में था। 21वीं शताब्दी में आते-आते कैंसरजन्य तत्वों की पहचान विशेषज्ञों ने की और पारंपरिक पान को ग्रहण लग गया। बताया गया कि पान के पत्तों में Hydroxychavicol और Eugenol तथा सुपाड़ी में Nitrosamines नामक तत्व पाया जाता है जो कैंसर उत्पन्न कर सकता है।
प्राचीन भारतीय आरोग्य ग्रंथों में पान को कामोद्दीपक तथा अन्य दर्जनों रोगों का इलाज माना गया है।
इस मुआं कैंसर ने तो Amitabh Bachchan के ‘खाइके पान बनारस वाला…’ के धर्म-दर्शन को भी पलीता लगा दिया। बावजूद इसके विद्वान एच. व्ही. नागराजराव के अनुसार पान की महिमा निम्नलिखित है –
ताम्बूलं मुखरोगनाशि निपुणं संवर्धनं तेजसो
नित्यं जाठरवह्निवृद्धिजननं दुर्गन्धदोषापहम् ।
वक्त्रालंकरणं प्रहर्षजननं विद्वन्नृपाग्रे रणे
कामस्यायतनं समुद्भवकरं लक्षम्याः सुखस्यास्पदम् ॥
पान मुख के रोगों को नाश करने में निपुण और तेज को बढ़ाने वाला है। नित्य जठराग्नि को बढ़ाने वाला और (मुख) दुर्गन्ध के दोष को नष्ट करने वाला है। विद्वानों और राजा के सम्मुख, रण में मुख की शोभा बढ़ाने वाला हर्ष का जनक है। काम का घर और लक्ष्मी के सुख का कारण है।
– उदय शंकर झा ‘चंचल’

मित्रो आज रविवार है, आज हम आपको भगवान सूर्य के सात घोड़ों से जुड़े विज्ञान के बारे में बतायेगें!!!!!
हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं तथा उनसे जुड़ी कहानियों का इतिहास काफी बड़ा है या यूं कहें कि कभी ना खत्म होने वाला यह इतिहास आज विश्व में अपनी एक अलग ही पहचान बनाए हुए है। विभिन्न देवी-देवताओं का चित्रण, उनकी वेश-भूषा और यहां तक कि वे किस सवारी पर सवार होते थे यह तथ्य भी काफी रोचक हैं।
हिन्दू धर्म में विघ्नहर्ता गणेश जी की सवारी काफी प्यारी मानी जाती है। गणेश जी एक मूषक यानि कि चूहे पर सवार होते हैं जिसे देख हर कोई अचंभित होता है कि कैसे महज एक चूहा उनका वजन संभालता है। गणेश जी के बाद यदि किसी देवी या देवता की सवारी सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है तो वे हैं सूर्य भगवान।
सूर्य भगवान सात घोड़ों द्वारा चलाए जा रहे रथ पर सवार होते हैं। सूर्य भगवान जिन्हें आदित्य, भानु और रवि भी कहा जाता है, वे सात विशाल एवं मजबूत घोड़ों पर सवार होते हैं। इन घोड़ों की लगाम अरुण देव के हाथ होती है और स्वयं सूर्य देवता पीछे रथ पर विराजमान होते हैं।
लेकिन सूर्य देव द्वारा सात ही घोड़ों की सवारी क्यों की जाती है? क्या इस सात संख्या का कोई अहम कारण है? या फिर यह ब्रह्मांड, मनुष्य या सृष्टि से जुड़ी कोई खास बात बताती है। इस प्रश्न का उत्तर पौराणिक तथ्यों के साथ कुछ वैज्ञानिक पहलू से भी बंधा हुआ है।
सूर्य भगवान से जुड़ी एक और खास बात यह है कि उनके 11 भाई हैं, जिन्हें एकत्रित रूप में आदित्य भी कहा जाता है। यही कारण है कि सूर्य देव को आदित्य के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य भगवान के अलावा 11 भाई ( अंश, आर्यमान, भाग, दक्ष, धात्री, मित्र, पुशण, सवित्र, सूर्या, वरुण, वमन, ) सभी कश्यप तथा अदिति की संतान हैं।
पौराणिक इतिहास के अनुसार कश्यप तथा अदिति की 8 या 9 संतानें बताई जाती हैं लेकिन बाद में यह संख्या 12 बताई गई। इन 12 संतानों की एक बात खास है और वो यह कि सूर्य देव तथा उनके भाई मिलकर वर्ष के 12 माह के समान हैं। यानी कि यह सभी भाई वर्ष के 12 महीनों को दर्शाते हैं।
सूर्य देव की दो पत्नियां – संज्ञा एवं छाया हैं जिनसे उन्हें संतान प्राप्त हुई थी। इन संतानों में भगवान शनि और यमराज को मनुष्य जाति का न्यायाधिकारी माना जाता है। जहां मानव जीवन का सुख तथा दुख भगवान शनि पर निर्भर करता है वहीं दूसरी ओर शनि के छोटे भाई यमराज द्वारा आत्मा की मुक्ति की जाती है। इसके अलावा यमुना, तप्ति, अश्विनी तथा वैवस्वत मनु भी भगवान सूर्य की संतानें हैं। आगे चलकर मनु ही मानव जाति का पहला पूर्वज बने।
सूर्य भगवान सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होते हैं। इन सात घोड़ों के संदर्भ में पुराणों तथा वास्तव में कई कहानियां प्रचलित हैं। उनसे प्रेरित होकर सूर्य मंदिरों में सूर्य देव की विभिन्न मूर्तियां भी विराजमान हैं लेकिन यह सभी उनके रथ के साथ ही बनाई जाती हैं।
विशाल रथ और साथ में उसे चलाने वाले सात घोड़े तथा सारथी अरुण देव, यह किसी भी सूर्य मंदिर में विराजमान सूर्य देव की मूर्ति का वर्णन है। भारत में प्रसिद्ध कोणार्क का सूर्य मंदिर भगवान सूर्य तथा उनके रथ को काफी अच्छे से दर्शाता है।
लेकिन इस सब से हटकर एक सवाल काफी अहम है कि आखिरकार सूर्य भगवान द्वारा सात ही घोड़ों की सवारी क्यों की जाती हैं। यह संख्या सात से कम या ज्यादा क्यों नहीं है। यदि हम अन्य देवों की सवारी देखें तो श्री कृष्ण द्वारा चालए गए अर्जुन के रथ के भी चार ही घोड़े थे, फिर सूर्य भगवान के सात घोड़े क्यों? क्या है इन सात घोड़ों का इतिहास और ऐसा क्या है इस सात संख्या में खास जो सूर्य देव द्वारा इसका ही चुनाव किया गया।
सूर्य भगवान के रथ को संभालने वाले इन सात घोड़ों के नाम हैं – गायत्री, भ्राति, उस्निक, जगति, त्रिस्तप, अनुस्तप और पंक्ति। कहा जाता है कि यह सात घोड़े एक सप्ताह के सात दिनों को दर्शाते हैं। यह तो महज एक मान्यता है जो वर्षों से सूर्य देव के सात घोड़ों के संदर्भ में प्रचलित है लेकिन क्या इसके अलावा भी कोई कारण है जो सूर्य देव के इन सात घोड़ों की तस्वीर और भी साफ करता है।
पौराणिक दिशा से विपरीत जाकर यदि साधारण तौर पर देखा जाए तो यह सात घोड़े एक रोशनी को भी दर्शाते हैं। एक ऐसी रोशनी जो स्वयं सूर्य देवता यानी कि सूरज से ही उत्पन्न होती है। यह तो सभी जानते हैं कि सूर्य के प्रकाश में सात विभिन्न रंग की रोशनी पाई जाती है जो इंद्रधनुष का निर्माण करती है।
यह रोशनी एक धुर से निकलकर फैलती हुई पूरे आकाश में सात रंगों का भव्य इंद्रधनुष बनाती है जिसे देखने का आनंद दुनिया में सबसे बड़ा है।
सूर्य भगवान के सात घोड़ों को भी इंद्रधनुष के इन्हीं सात रंगों से जोड़ा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यदि हम इन घोड़ों को ध्यान से देखें तो प्रत्येक घोड़े का रंग भिन्न है तथा वह एक-दूसरे से मेल नहीं खाता है। केवल यही कारण नहीं बल्कि एक और कारण है जो यह बताता है कि सूर्य भगवान के रथ को चलाने वाले सात घोड़े स्वयं सूरज की रोशनी का ही प्रतीक हैं।
यदि आप किसी मंदिर या पौराणिक गाथा को दर्शाती किसी तस्वीर को देखेंगे तो आपको एक अंतर दिखाई देगा। कई बार सूर्य भगवान के रथ के साथ बनाई गई तस्वीर या मूर्ति में सात अलग-अलग घोड़े बनाए जाते हैं, ठीक वैसा ही जैसा पौराणिक कहानियों में बताया जाता है लेकिन कई बार मूर्तियां इससे थोड़ी अलग भी बनाई जाती हैं।
कई बार सूर्य भगवान की मूर्ति में रथ के साथ केवल एक घोड़े पर सात सिर बनाकर मूर्ति बनाई जाती है। इसका मतलब है कि केवल एक शरीर से ही सात अलग-अलग घोड़ों की उत्पत्ति होती है। ठीक उसी प्रकार से जैसे सूरज की रोशनी से सात अलग रंगों की रोशनी निकलती है। इन दो कारणों से हम सूर्य भगवान के रथ पर सात ही घोड़े होने का कारण स्पष्ट कर सकते हैं।
पौराणिक तथ्यों के अनुसार सूर्य भगवान जिस रथ पर सवार हैं उसे अरुण देव द्वारा चलाया जाता है। एक ओर अरुण देव द्वारा रथ की कमान तो संभाली ही जाती है लेकिन रथ चलाते हुए भी वे सूर्य देव की ओर मुख कर के ही बैठते हैं।
रथ के नीचे केवल एक ही पहिया लगा है जिसमें 12 तिल्लियां लगी हुई हैं। यह काफी आश्चर्यजनक है कि एक बड़े रथ को चलाने के लिए केवल एक ही पहिया मौजूद है, लेकिन इसे हम भगवान सूर्य का चमत्कार ही कह सकते हैं। कहा जाता है कि रथ में केवल एक ही पहिया होने का भी एक कारण है।
यह अकेला पहिया एक वर्ष को दर्शाता है और उसकी 12 तिल्लियां एक वर्ष के 12 महीनों का वर्णन करती हैं। एक पौराणिक उल्लेख के अनुसार सूर्य भगवान के रथ के समस्त 60 हजार वल्खिल्या जाति के लोग जिनका आकार केवल मनुष्य के हाथ के अंगूठे जितना ही है, वे सूर्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा करते हैं। इसके साथ ही गांधर्व और पान्नग उनके सामने गाते हैं औरअप्सराएं उन्हें खुश करने के लिए नृत्य प्रस्तुत करती हैं।
कहा जाता है कि इन्हीं प्रतिक्रियाओं पर संसार में ऋतुओं का विभाजन किया जाता है। इस प्रकार से केवल पौराणिक रूप से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्यों से भी जुड़ा है भगवान सूर्य का यह विशाल रथ।
संजय गुप्ता
जोधपुर की गलियाँ……
नमस्कार
“जोधपुर की गलियां” ग्रुप विशुद्ध रूप से खानपान सम्बन्धी पोस्ट के लिए है…
सभी सम्मानित सदस्य कृपया इसका ख्याल रखते हुए अपनी पोस्ट करें…
आप सभी से सक्रिय योगदान की अपेक्षा है…
आभार..
जोधपुर की गलियाँ……
https://www.facebook.com/groups/453746184676345/?ref=nf_target&fref=nf
यह चावल नहीं कोदो है।
यह चावल नहीं कोदो है। जिसे आजकल सुगर फ्री चावल भी कहा जाता है क्योंकि इसमें ग्लूकोज नहीं होता। सुगर की बीमारी वाले जो चावल के बगैर रह नहीं सकते वे इसे खा सकते हैं। इसी वजह से इसकी आजकल बड़ी मांग है। किसी जमाने में इसे गरीबों का चावल कहा जाता था क्योंकि अमीर इसकी फीकी स्वाद के चलते खाते नहीं थे। इसकी फसल आसानी से ली जा सकती है। धान की फसल लेने पानी की भारी मात्रा की जरूरत होती है। वहीं कोदो कम पानी में ही उगाया जा सकता है। एक बार खेत की जुताई कर कोदो के बीज का छिड़काव कर दो, दवाइयों की भी जरूरत नहीं। छत्तीसगढ़ में 25-30 साल पहले तक भाठा या पड़त जमीन में इसे दलहन के साथ उगाया जाता था। इसे उगाने की एक वजह यह भी थी कि कम बारिश की वजह से अकाल की स्थिति आ जाए तब धान की फसल कम होने पर कोदो काम में आ जाए। सिंचाई की व्यवस्था सुधरी और दवाइयों के कारण फसल ठीक ठाक होने लगा तो कोदो की पूछ परख बीच में कम हो गई थी। किन्तु सुगर की बीमारी ने कोदो की पूछ परख अब चावल से भी बढ़ा दी है।
હોમ ટિપ્સ
[ ‘હોમ ટિપ્સ’ એ અનોખું પુસ્તક છે. આ પુસ્તકમાં રસોઈ ટિપ્સ, આરોગ્ય ટિપ્સ, હોમકેર ટિપ્સ, સૌંદર્ય ટિપ્સ, જાળવણી ટિપ્સ, સ્પેશ્યલ ટિપ્સ અને જીવન ટિપ્સ એમ સાત વિભાગોમાં આજના ઈન્સ્ટન્ટ યુગમાં અનિવાર્ય એવી સુંદર ટિપ્સ આપવામાં આવી છે. પુસ્તકના લેખક શ્રી રાકેશભાઈ વાપી નગરપાલિકામાં ફરજ બજાવે છે. આ ઉપરાંત તેઓ સુરતથી પ્રકાશિત થતા ‘ગુજરાતમિત્ર’ અખબારના કોલમિસ્ટ છે. ‘ફૂલવાડી’, ‘જન્મભૂમિ’, ‘મુંબઈ સમાચાર’ જેવા અખબારોમાં તેમનું બાળસાહિત્ય પ્રકાશિત થતું રહે છે. આજે તેમના ‘હોમ ટિપ્સ’ પુસ્તકમાંથી માણીએ પ્રત્યેક વિભાગમાંની કેટલીક ઉપયોગી ટિપ્સ ! રીડગુજરાતીને આ પુસ્તક ભેટ આપવા માટે શ્રી રાકેશભાઈનો (વાપી) ખૂબ ખૂબ આભાર. આપ તેમનો આ સરનામે rmtvapi@yahoo.co.in અથવા આ નંબર પર +91 9099095701 સંપર્ક કરી શકો છો. પુસ્તક પ્રાપ્તિની વિગતો લેખના અંતે આપવામાં આવી છે.]
[ક] રસોઈ ટિપ્સ :
[1] લીલા ચણા અથવા વટાણા બાફતી વખતે તેમાં ખાંડ નાખવાથી તેનો લીલો રંગ યથાવત રહે છે.
[2] રોટલી માટે લોટ ગૂંદતી વખતે બે ચમચી દૂધ, ઘી કે મલાઈ મેળવી દેવાથી રોટલી એકદમ પાતળી બનશે.
[3] ભીંડાનું શાક બનાવતી વખતે તેમાં એક ચમચી દહીં નાખવાથી તેની ચીકાશ ઓછી થશે.
[4] મેળવણ ન હોય તો ગરમ દૂધમાં લીલા મરચાં નાખવાથી પણ દહીં જમાવી શકાય છે.
[5] ભાત બનાવતી વખતે તેમાં લીંબુના રસના ટીપાં નાખવાથી ભાત એકદમ સફેદ રંગનો બનશે. અને તેમાં એક ચમચી તેલ કે ઘી નાખવાથી દાણા અલગ-અલગ રહેશે.
[6] ફલાવરનું શાક બનાવતી વખતે એમાં બે ચમચી દૂધ ઉમેરવાથી ફલાવર ચડી ગયા પછી પણ સફેદ રહે છે.
[7] પૂરીનો લોટ પાણીથી બાંધવાને બદલે દહીંથી બાંધવાથી પૂરી પોચી થશે.
[8] મીઠા સક્કરપારા બનાવવાના મેંદામાં થોડું મીઠું ભેળવવાથી સક્કરપારા સ્વાદિષ્ટ લાગશે.
[9] ચણા પલાળતાં ભૂલી ગયા હોવ તો તેને બાફતી વખતે તેની સાથે કાચા પપૈયાના બે-ચાર ટૂકડા મૂકી દો તો ચણા જલ્દી બફાશે.
[10] બિસ્કિટ પર દૂધ લગાવી ધીમા તાપે ઓવનમાં રાખવાથી બિસ્કિટ કડક, તાજા અને કરકરા થશે.
[11] વેફરને છૂટી કરવા કેળાં-બટાટાની કાતરી પર મીઠાના પાણીનો છંટકાવ કરવો અને પછી તળવી.
[12] દાળ-ઢોકળી બનાવતી વખતે ઢોકળીને કાચી-પાકી શેકીને દાળમાં નાખવાથી તે ચોંટશે નહિ.
[13] પાણીપૂરીની પૂરી બનાવતી વખતે ઝીણા રવામાં પીવાનો સોડા લોટ બાંધવા માટે લેવાથી પૂરી ફૂલશે.
[14] ઈડલીનું ખીરું જો વધારે પડતું પાતળું થઈ ગયું હોય તો તેમાં શેકેલો રવો નાખવાથી જાડું બનશે અને ખીરાથી ઈડલી મુલાયમ પણ બને છે.
[15] સાબુદાણાને બનાવતા પહેલાં એને દૂધમાં પલાળીને મૂકવાથી એ એકદમ ફૂલેલાં બનશે..
[ખ] આરોગ્ય ટિપ્સ
[1] વરિયાળી સાથે આદું અથવા જીરાનું સેવન કરવાથી પેટની બળતરા તથા પાચન ક્રિયામાં લાભ થાય છે.
[2] હાલતા દાંત અટકાવવા મોંમાં તલના તેલના કોગળા ભરી રાખવાથી ચાર-છ મહિનાના પ્રયોગ બાદ દાંત બરાબર ચોંટી જાય છે.
[3] ઘઉંના લોટમાં શક્કરિયાંનો લોટ મેળવીને રોટલી ખાવામાં આવે તો થોડા દિવસોમાં જ શરીરનું વજન વધવા લાગે છે.
[4] શેરડીના રસમાં આદુંનો રસ નાખી પીવાથી કફ થતો નથી અને કફની તકલીફ મટે છે.
[5] એક ગ્લાસ ઠંડા પાણીમાં થોડો લીંબુનો રસ મેળવી પ્રાત:કાળે પીવાથી કબજિયાતમાં ખૂબ જ ફાયદો થાય છે.
[6] ખોરાક પચતો ન હોય તેમણે જીરું શેકીને સંતરાના રસમાં ભેળવી પીવું જોઈએ. પેટનો ગેસ તથા અપચો દૂર થશે.
[7] ત્રણ ચમચી નાળિયેરના તેલમાં કપૂર મેળવીને રાત્રે વાળના મૂળમાં ઘસીને સવારે વાળ ધોવાથી જૂ-લીખ સાફ થઈ જાય છે.
[8] નાળિયેરના પાણીમાં લીંબુનો રસ મેળવીને પીવાથી પથરીની તકલીફમાં રાહત થાય છે.
[9] રાત્રે ભારે ખોરાક લીધા પછી છાસમાં જીરું, લીમડો અને આદુનો ઘીમાં વઘાર કરીને પીવાથી ફાયદો થશે.
[10] ઊલટી થતી હોય કે ઊબકા આવતા હોય તો તુલસીના રસમાં એલચીનો પાઉડર મિક્સ કરીને પીવાથી રાહત થશે.
[11] સંધિવામાં આવતા સોજા પર અજમાનું તેલ લગાવવાથી ફાયદો થાય છે.
[12] મેથીના દાણાનો પાઉડર પાણીમાં ભેળવી સવાર-સાંજ તે પાણી પીવાથી ડાયાબિટીસ તેમજ બ્લડપ્રેશરમાં ફાયદો થાય છે.
[13] હાઈબ્લડપ્રેશરના દર્દી માટે પપૈયું ફાયદાકારક હોય છે. તેને રોજ ભૂખ્યા પેટે ચાવીને ખાવું.
[14] એક ચમચી તુલસીનો રસ અને બીલીના ફૂલની સાથે એક ચમચી મઘ ઉમેરી દિવસમાં બે વખત લેવાથી તાવમાં રાહત થાય છે.
[15] જે વ્યક્તિને ખાસ ઉનાળામાં ગરમી નીકળતી હોય તેમણે કારેલાનો રસ જીરું પાવડર નાખીને એક ચમચી પીવો..
[ગ] હોમકેર ટિપ્સ
[1] દૂધ ગરમ કરતાં પહેલાં તપેલીમાં થોડું પાણી રેડવાથી દૂધ ઉભરાશે નહિ. આ ઉપરાંત તપેલીમાં ચમચો રાખવાથી પણ દૂધ જલદી ઉભરાતું નથી.
[2] ફ્રિજમાં જીવાત થઈ ગઈ હોય તો એક લીંબુ સમારીને ફ્રીજમાં મુકી દો. બીજે દિવસે જીવાત આપમેળે દૂર થઈ જશે.
[3] આદુને ફૂલના કૂંડામાં કે બગીચામાં માટી નીચે દબાવી રાખવાથી તાજું રહેશે.
[4] મલાઈમાંથી ઘી બનાવતી વખતે તેમાં થોડા મીઠા લીમડાંના પાન નાખવાથી ઘીમાં સુગંધ આવશે.
[5] કાચના વાસણને ટૂથપેસ્ટ લગાવી બ્રશથી ઘસીને સાફ કરવાથી ચમક વધારે આવે છે.
[6] અરીસાને ચોખ્ખો કરવા માટે તેની પર શેવિંગ ક્રીમ લગાવી થોડીવાર રહેવા દેવું. પછી ભીના મલમલના કપડાથી લૂછી કોરા કપડાથી લૂછવું.
[7] વાસણમાંથી બળેલા ડાઘ દૂર કરવા માટે કાંદાના બે ટુકડા નાખી થોડું પાણી નાખીને ઉકાળો. થોડીવાર બાદ તેને સાફ કરો. ડાઘ તરત નીકળી જશે.
[8] ખીલીને ગરમ પાણીમાં બોળીને દીવાલમાં લગાવવાથી પ્લાસ્ટર તૂટતું નથી.
[9] બેટરીના સેલ કે મીણબત્તીને ફ્રિજમાં રાખવાથી એ લાંબો સમય ચાલે છે.
[10] પંખા અને લોખંડની બારીઓ કે ગ્રિલ પર જાળાં ન જામે એ માટે એને કેરોસીનથી સાફ કરવી..
[ચ] સોંદર્ય ટિપ્સ
[1] કાંદાનો રસ અને મધ સમાન માત્રામાં ભેળવી વાળમાં લગાડી વાળ ધોવાથી વાળ ખરતા અટકે છે.
[2] ત્વચા પર ડાઘ અને ધબ્બા હોય તો સરસિયાના તેલમાં ચપટી મીઠું નાખીને એનાથી માલિશ કરો. ડાઘા જરૂર ઓછા થશે.
[3] એક મુઠ્ઠી જેટલી અગરબત્તીની રાખમાં ખાટું દહીં ભેળવો. તેને ચહેરા પર લગાવી પંદર મિનિટ પછી ધોઈ નાખો. એથી ચહેરા પરની દૂર કરેલી રૂવાંટી ઝડપથી નહીં ઉગે.
[4] દૂધીનો રસ અને નાળિયેરનું તેલ મિક્સ કરી એનાથી માથામાં સારી રીતે માલિશ કરો. વાળની ચમક વધી જશે.
[5] ચહેરા પરની રૂંવાટી દૂર કરવા માટે ત્રણ ચમચી રવામાં થોડોક ઘઉંનો લોટ, થોડોક ચણાનો લોટ તથા દૂધ મિક્સ કરીને લગાવો. સૂકાઈ જાય એટલે એને વાળની ઊલટી દિશામાં હળવેથી ઘસો. પછી ધોઈ નાખો.
[6] લીમડાની લીંબોડીને છાસમાં વાટી તેને ખીલ પર લગાવવાથી ખીલ દૂર થાય છે. અને ચહેરાની ત્વચા મુલાયમ બને છે.
[7] જાયફળ વાટીને ચહેરા પર લગાડવાથી કરચલીઓ દૂર થાય છે.
[8] ચહેરા તથા ગરદન પરની કાળાશ દૂર કરવા માટે ફુદીનાના પાન વાટીને તેનો અર્ક કાઢીને રૂ વડે ચહેરા તથા ગરદન પર લગાવી 20 મિનિટ પછી ચહેરો ધોઈ નાખવો.
[9] કાંદા શેકી તેની પેસ્ટ બનાવી એડી પર લગાડવાથી એડી પરના ચીરા મહિનામાં મટી જશે.
[10] તુવેરની દાળને પાણીમાં રાતના પલાળી દેવી. સવારે તેને ઝીણી વાટી લેવી. આ મિશ્રણથી વાળ ધોવાથી વાળ ખરતા અટકાવી શકાય છે..
[છ] જાળવણી ટિપ્સ
[1] ચાંદીના વાસણોને કાળા થતા બચાવવા માટે ચાંદીનાં વાસણોની સાથે કપૂરની ગોળી રાખવી.
[2] સ્વેટરને ધોતા પહેલાં મીઠાના પાણીમાં પલાળવાથી ઊન ચોંટવાનો ભય રહેતો નથી.
[3] આમલીને લાંબો સમય તાજી રાખવા એક કપ પાણીમાં હિંગ અને મીઠું નાખી ઘોળ તૈયાર કરી આમલી પર છાંટવો અને એને ત્રણ-ચાર દિવસ સુકાવવી.
[4] અથાણાંને ફૂગથી બચાવવા માટે રૂને સરકામાં બોળીને જે બરણીમાં અથાણું ભરવાનું હોય એને સારી રીતે લૂછી નાખો. પછી અથાણું ભરવાથી ફૂગ નહીં લાગે.
[5] લીમડાના છોડમાં ખાટી છાશ કે વપરાયેલી ચાની ભૂકી નાખવાથી છોડ મોટો અને તાજો રહે છે.
[6] વધારે પ્રમાણમાં લીંબુ ખરીદી લીધાં હોય તો બગડી જવાની બીક ન રાખશો. લીંબુને મીઠાની બરણીમાં રાખી મૂકવાથી લાંબા સમય સુધી તાજાં રાખી શકાશે.
[7] સાડી પર તેલના ડાઘ પડ્યા હોય તો, એ જગ્યા પર કોઈ પણ ટેલકમ પાઉડર સારી રીતે રગડીને સાડીને બે-ત્રણ કલાક સુધી તાપમાં મૂકો પછી ધોઈ લો.
[8] નવા ચંપલને રાત્રે ઘી કે તેલ લગાડી રાખવાથી એ સુંવાળાં રહેશે અને નડશે નહિ.
[9] રાઈના પાણી વડે બોટલ ધોવાથી બોટલમાંની વાસ દૂર થાય છે.
[10] માઈક્રોવેવ ઓવનની સફાઈ કરવા માટે સફેદ દંતમંજન પાઉડર ઓવનમાં ભભરાવી કોરા કપડાંથી લૂછી સાફ કરવાથી ઓવન ચમકી ઊઠશે..
[જ] સ્પેશ્યલ ટિપ્સ
[1] દરવાજાના મિજાગરા પર તેલ નાખવા કરતાં પેન્સિલ ઘસો. એનાથી મિજાગરા અવાજ નહીં કરે અને કાટ પણ નહીં લાગે.
[2] કપડાં ધોતી વખતે શર્ટના કોલર પર પડેલા જિદ્દી ડાઘને દૂર કરવા માટે સાબુની જગ્યાએ શેમ્પુનો ઉપયોગ કરો.
[3] પુસ્તકોના કબાટમાં લીમડાના પાન રાખવાથી જીવડાં અને ઊઘઈ લાગવાની શક્યતા નથી રહેતી. થોડા-થોડા સમયે પાન બદલતા રહેવું.
[4] ચાની વપરાયેલી ભૂકીને સૂકવીને બારીનાં કાચ સાફ કરવાથી કાચ ચમકે છે.
[5] કાચના ગ્લાસ ચકચકિત કરવા પાણીમાં થોડી ગળી મિક્સ કરીને એનાથી ધોવા અને પછી સ્વચ્છ પાણીથી ધોઈ નાખવા..
[ઝ] જીવન ટિપ્સ
[1] તમારે જીવવું હોય તો ચાલવું જોઈએ, તમારે લાંબું જીવવું હોય તો દોડવું જોઈએ.
[2] સૂરજ જ્યારે આથમવાની તૈયારીમાં હોય ત્યાર સુધીમાં તમે કસરત ન કરી હોય, તો માનજો કે દિવસ ફોગટ ગયો.
[3] થાક લાગે તેના જેવી ઊંઘની ગોળીની શોધ હજી થઈ નથી.
[4] હાથ ચલાવવાથી અન્નની કોઠીઓ ભરાઈ જાય છે અને જીભ ચલાવવાથી ખાલી થાય છે.
[5] શરીર પિયાનો જેવું છે અને આનંદ એનું મધુર સંગીત છે. વાદ્ય બરાબર હોય તો જ સંગીત બરાબર વાગે છે.
[કુલ પાન : 142. કિંમત રૂ. 60. પ્રાપ્તિસ્થાન : પાટીલ બુક સ્ટોલ, અમીરસ હોટલની બાજુમાં, કોપરલી રોડ, જી.આઈ.ડી.સી., વાપી.