पौराणिक हिन्दू पण्डित बहुल क्षेत्र होने के कारण प्रारम्भ में जम्मू कश्मीर में आर्य समाज और उसकी सभी प्रकार की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा हुआ था। जो ई. सन् १८९२ तक जारी रहा।
प्रसंग ईसवी सन् १९५६ से सम्बन्धित है, जो इस प्रकार है कि आर्य समाज के भजनोपदेशक व प्रचारक ओमप्रकाश वर्मा जी उस वर्ष आर्यसमाज हजूरी बाग, श्रीनगर जम्मू-कश्मीर में वेद प्रचार-सप्ताह के सम्बन्ध में गये हुए थे। इस कार्यक्रम में उनके साथ अन्य चार आर्य समाजी भी पधारे थे।
एक दिन आर्यसमाज मन्दिर में ओमप्रकाश वर्मा जी के कार्यक्रम के समय पर ब्रिग्रेडियर राजेन्द्र सिंह भी श्रोताओं में विराजमान थे। ओमप्रकाश वर्मा जी के भजन, गीत तथा उपदेशों को सुनकर बिग्रेडियर बोले कि कल कृष्ण जन्माष्टमी है। यहां के सैनिक मन्दिर में यह त्यौहार मनाया जायेगा। क्या कल वहां यही भजन, गीत व उपदेश उनके सैनिकों को भी आप सायं सात बजे सुनायेंगे?
वर्मा जी ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। अगले दिन सैनिक मंदिर में वर्मा जी का आगमन हुआ। यह मन्दिर डा. कर्णसिंह (राजा हरिसिंह के पुत्र, जो अब प्रदेश के राज्यपाल थे) की कोठी के पास ही था। वर्मा जी ने वहां योगेश्वर श्री कृष्ण जी के विषय में गीत, भजन व विचार प्रस्तुत किये। वर्मा जी के कार्यक्रम को सुनकर सैनिकों व उनके उच्चाधिकारियों में अद्भुत उत्साह का संचार हुआ। वापसी के लिये वर्मा जी जब ब्रिगेडियर साहब की गाड़ी के भीतर बैठे ही थे कि दो व्यक्ति सामने की सड़क से उनके पास आए तथा बोले – ‘क्या पं. ओम प्रकाश वर्मा आप ही हैं?’ वर्मा जी ने “हा” में उत्तर दिया।
उन दो व्यक्तियों में से एक व्यक्ति कश्मीर के राज्यपाल डॉ कर्णसिंह के मामा ओंकार सिंह थे। वर्मा जी ने उनसे पूछा – ‘मेरे योग्य सेवा बताइए’।
उन्होंने कहा कि यहां आपने जो उपदेश सुनाए हैं, हमने सड़क पार उस कोठी में बैठकर पूरी तरह सुने हैं। क्या आप यही विचार वहां आकर भी सुनाएंगे?
वर्मा जी ने उनका निमंत्रण स्वीकार्य करते हुए कल का दिन निश्चित किया और आर्य समाज मंदिर में लौट आए।
आर्यसमाज मन्दिर लौटकर वर्मा जी ने पूरा वृत्तान्त आर्यसमाज के अपने साथी विद्वानों को सुनाया जो वहां उनके साथ पधारे हुए थे। वह सभी विद्वान् वर्मा जी की इन बातों को सुन कर बहुत प्रसन्न हुए। उन विद्वानों ने कहा कि ऋषि दयानन्द सरस्वती के तीन ग्रन्थ ‘सत्यार्थप्रकाश’, ‘संस्कारविधि’ तथा ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ कर्णसिंह को अवश्य भेंट कीजिएगा।
महाराजा हरिसिंह के पुत्र कर्ण सिंह अपनी माताजी के नाम पर बने ‘तारादेवी निकेतन’ में तब सपरिवार रहते थे। उन दिनों कर्ण सिंह जम्मू व कश्मीर के राज्यपाल थे। वह शासकीय बंगले में न रहकर ‘तारादेवी निकेतन’ में ही रहते थे।
अगले दिन निर्धारित समय पर वर्मा जी उक्त स्थान पर पहुंच गए। वहां एक श्वेत वस्त्रधारी महानुभाव को भी उन्होंने देखा। (वह जनरल करिअप्पा थे)
उन्होंने वर्मा जी से पूछा आपका परिचय?
वर्मा जी ने कहा कि मैं आर्यसमाज का एक उपदेशक व प्रचारक ओमप्रकाश वर्मा हूं।
उन्होंने पूछा कि आजकल आर्यसमाज क्या कर रहा है? वर्मा जी ने बताया कि आजकल आर्यसमाज हिन्दी रक्षा आन्दोलन चलाने की तैयारी में है।
उन दोनों कि वार्ता में कर्णसिंह ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि – आजकल आर्यसमाज की गतिविधियां तो हम पढ़ते रहते हैं, परन्तु यह बताइए कि आर्यसमाज को स्थापित हुये लगभग अस्सी वर्ष बीत गये हैं, इन अस्सी वर्षों में आर्यसमाज ने क्या किया है?….
“आप जैसे राजाओं को ईसाई बनने से बचाया है”
(वर्मा जी ने बिना समय गंवाए सहज और निडर भाव से उत्तर दिया)
कर्णसिंह जी बोले क्यों गलत बात बोलते हो, हमें आर्यसमाज ने ईसाई होने से बचाया है? हम यह कदापि नहीं मान सकते।
आगे पं. ओमप्रकाश वर्मा जी ने कहा कि आपको नहीं, आपके दादा महाराज प्रताप सिंह को ईसाई बनने से बचाया है। यदि वे तब ईसाई बन गये होते तो आज आप भी अवश्य ईसाई ही होते।
कर्ण सिंह जी ने पूछा कि आप कैसे कहते हैं कि मेरे दादा जी को ईसाई बनने से आर्यसमाज ने बचाया?
वर्मा जी ने कहा, सुनिए, डा. साहब! आपके दादा प्रताप सिंह के शासनकाल में जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं के पौराणिक पंडितों के दबाव के कारण आर्यसमाज पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा हुआ था।
सन् 1892 में राजस्थान के आर्य समाज के विद्वान गणपति शर्मा लाहौर स्यालकोट के मार्ग से जम्मू पधारे और फिर बाद में श्रीनगर से 23 किमी. दूर स्थित नीचे एक हाऊस बोट में वह रहने लगे।
उन्हीं दिनों में एक ईसाई पादरी जॉनसन श्रीनगर में पहुंचा। उसने महाराजा प्रताप सिंह से उनके हिंदू पण्डितों से शास्त्रार्थ कराने को कहा। पादरी जॉनसन ने कहा कि यदि मै शास्त्रार्थ में पराजित हो गया तो आपका धर्म स्वीकार करूंगा, किन्तु यदि आपके हिन्दू पण्डित हार गये तो आपको ईसाई बनना होगा।
महाराजा प्रताप सिंह ने उसका कहना स्वीकार्य कर लिया।
निश्चित तिथि पर राज-दरबार में शास्त्रार्थ हुआ। विषय था ‘मूर्तिपूजा’। पादरी जॉनसन द्वारा मूर्तिपूजा पर किए गए अक्षेपो का हिंदुओ के पौराणिक पंडितो के पास कोई उत्तर नहीं था। कोई भी पौराणिक पण्डित इसे सिद्ध न कर सका।
पूर्व निर्धारित शर्त अनुसार महाराजा प्रताप सिंह हिंदू पण्डितों का पक्ष कमजोर पड़ता देखकर बपतिस्मा पढ़कर ईसाई बनने को तैयार हो रहे थे। किन्तु, तभी आर्य समाज के विद्वान पं. गणपति शर्मा, (जो बहुत देर से सभा में शांत बैठे हुए थे) अब खड़े हो गये। खड़े होकर गणपति शर्मा जी ने महाराज प्रतापसिंह को सम्बोधित करते हुए कहा – महाराज! यदि आप मुझे आज्ञा दें, तो मैं जॉनसन से शास्त्रार्थ करूंगा।
चूंकि महाराज की पराजय हो रही थी, अतः उन्होंने तुरन्त आज्ञा दे दी।
परन्तु पराजित हिन्दू पण्डितों व पादरी जॉनसन ने एक स्वर में यह कहकर गणपति शर्मा जी का शास्त्रार्थ हेतु विरोध किया कि यह तो एक ‘आर्यसमाजी’ है, अतः ये शास्त्रार्थ नहीं कर सकता। महाराज ने यह सोचकर कि ये आर्य समाजी कदाचित इस जॉनसन को तो ठीक कर ही देगा इसलिए महाराज ने पण्डितों व जॉनसन की आपत्तियो को निरस्त कर दिया और गणपति शर्मा जी को जॉनसन से शास्त्रार्थ करने को स्वीकृति देते हुए उन्हें आमन्त्रित किया।
पं. गणपति जी बोले – पादरी जी आप प्रश्न करें, मैं उत्तर देता हूं।
जॉनसन बोले, आप हमसे शास्त्रार्थ करिए।
पंण्डित गणपति शर्मा ने पादरी से कहा कि पहले यह बताएं कि शास्त्रार्थ शब्द का अर्थ क्या है? क्या शास्त्र से आपका आशय छः शास्त्रों – योग, सांख्य, न्याय, वैशेषिक, वेदान्त तथा मीमांसा से है? यदि इनसे ही आपका आशय है तो बताइये कि इन दर्शन शास्त्रों में से किस का अर्थ करने आप यहां आए हैं? क्या आपको ज्ञान है कि अर्थ शब्द भी अनेकार्थक है। अर्थ का एक अर्थ ‘धन’ होता है। दूसरा अर्थ प्रयोजन होता है जबकि तीसरा अर्थ द्रव्य, गुण व कर्म (वैशेषिक दर्शनानुसार) भी है। आप कौन-सा अर्थ समझने-समझाने आये हैं? शास्त्र भी केवल छः नहीं हैं। धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र व नीतिशास्त्र आदि कई शास्त्र विषयों की दृष्टि से भी हैं।
अतः अब आप ‘शास्त्रार्थ’ शब्द का अर्थ समझायेंगे तो हम अपनी बात आगे बढ़ाएंगे।
जॉनसन ने लड़खड़ाते हुए शब्दो में उत्तर दिया कि हम इसका उत्तर देने में असमर्थ है। तब पं. जी ने कहा, महाराज! जॉनसन तो उत्तर नहीं दे रहा है। इस पर प्रतापसिंह जी बोले, यह तो आपके पहले ही प्रश्न का उत्तर नहीं दे पा रहा है व मौन खड़ा हुआ है, अत: अब ये पादरी अपने घर को चला जाएं।
आगे महाराज ने कहा कि प. गणपति जी! आपने केवल मुझे ही नहीं, बल्कि पूरे जम्मू-कश्मीर की प्रतिष्ठा को बचाया है। हम आप पर प्रसन्न हैं। बताईये, आपको क्या भेंट दे?
गणपति जी ने उत्तर दिया – महाराज! मुझे अपने लिये कुछ भी नहीं चाहिये। देना ही है तो दो काम कर दीजिए। प्रथम तो यह कि जम्मू कश्मीर में आर्यसमाज पर लगा प्रतिबन्ध हटा दीजिए तथा दूसरा काम यह करें कि यहां पर आर्यसमाज की स्थापना भी हो जाये।
गणपति जी की यह घटना वर्मा जी ने राज्यपाल कर्णसिंह को पूरी सुनाई और उन्हें यह भी बताया कि श्रीनगर में हजूरी बाग का आर्यसमाज मन्दिर आपके दादा प्रतापसिंह जी द्वारा दी गई भूमि पर ही स्थापित हुआ था। इस शास्त्रार्थ के बाद प्रताप सिंह जी ने पौराणिक हिंदू पंडितो के दबाव के चलते अपने पिता महाराजा रणवीर सिंह द्वारा आर्यसमाज पर लगाए गए प्रतिबन्धों को तुरन्त हटा दिया था। ओमप्रकाश वर्मा जी की बातें सुनकर कर्णसिंह मौन हो गये। वर्मा जी ने उन्हें यह भी बताया कि यह घटना इतिहासकार पण्डित इन्द्र विद्यावाचस्पति जी (स्वामी श्रद्धानंद के पुत्र) की इतिहास की पुस्तक में वर्णित है।
इसके बाद कर्णसिंह के घर पर वर्मा जी के भजन, गीत व उपदेश हुये तथा कार्यक्रम के पश्चात उनकी गाड़ी उन्हें हजूरी बाग आर्यसमाज मन्दिर, श्रीनगर में वापिस छोड़ गई। वर्मा जी ने आर्यसमाज में उनके साथ पधारे अन्य चारों उपदेशकों को उक्त पूरी घटना विस्तारपूर्वक सुनाई तो वे सभी भी बहुत प्रसन्न हुये और उन्होंने ओमप्रकाश वर्मा जी की खूब प्रशंसा की।
॥ओ३म्॥
Category: काश्मीर – Kashmir
*The Kashmir Files*
विवेक बाबू दिल चीरकर कोई रखता है क्या ? आपने कश्मीर के दर्द को सुना नहीं है बल्कि उसके सीने से दर्द बाहर खींच लिया है। जो पिछले 30 सालों से दफन था ।
कश्मीर की उस काली रात के रहस्य व कश्मीरी पंडितों के दर्द को लेखक-निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने अपने सहयोगी लेखक सौरभ एम पांडे के साथ मिलकर झंकझोर देने वाला और सच को खींचकर बाहर लाने वाली स्क्रिप्ट व स्क्रीन प्ले दिया है । हर फ्रेम चीख रही है। सीधे दिल से कनेक्ट कर रही है।
विवेक की कहानी कृष्णा पंडित को केंद्र में रखकर कश्मीर जाती है और ब्रह्म दत्त, विष्णु राम, डीजीपी हरि नरेन, डॉक्टर, राधिका मेनन आदि महत्वपूर्ण किरदारों को उठाती है। इत्मीनान से पुष्कर पंडित को सुनती है। इतने सालों से दफन तर्क व असल सच को पटक कर रख देती है ।
पुष्कर पंडित की सच्चाई का अंत इतना भयावह है कि कमज़ोर दिल वाले दर्शक आँखें बंद कर लेंगे। देखा न जाएगा।
विवेक ने जनवरी 1990 से अगस्त 2019 तक के सफर को अच्छे से समेटा है। उनकी कहानी वर्तमान और अतीत में कैद कश्मीरी पंडितों के अश्रुओं की ‘डल’ में गोते लगाती निकलती है। विवेक ने कहानी व किरदारों को डायलॉग भी काफ़ी इम्प्रेसिव दिए है। कुछ डायलॉग तो अपने आस-पास सुने होंगे।
वाक़ई डायलॉग दिल से निकले है बल्कि पूरी दास्तां।
*कश्मीर को जन्नत कहते है और वे लोग कश्मीर को जहन्नुम बनाकर जन्नत के लिए जिहाद करते है*
*जो सच को न दिखा सके। उन्हें जर्नलिस्ट नहीं, पोस्टमैन बोला करते है*
*मीडिया आतंकवादियों की रखैल है*
*जब तक सच जूते पहनता है तब तक झूठ दुनिया घूम आता है*
कहानी ऐसे ऐसे सीक्वेंस से सामने आती है। उन्हें देखकर रूह कांप उठती है। पति के खून से सने गेंहू खिलाना हो। इसे देखकर तो बीजीएम भी थम जाता है। उससे भी न देखा गया। एयरफोर्स के अधिकारियों को सरेआम गोली मार देना हो। क्लाइमैक्स ओह्ह….😥
अनुपम खेर ! ब्रिलियंट…. अद्भुत…सॉलिड। इतने वर्षों तक खुद के अंदर से कश्मीरी पंडित को दबाकर रखा था। लेकिन जब पुष्कर पंडित से मिले है न ! सबकुछ सरका दिया है। कुछ न रखा। चेहरे पर जो भाव रहे, बॉडी लेंग्वेज और आंखों के सामने पूरा घटनाक्रम घटते देखते हुए, कुछ न कर पाने की बेबसी…पहली फ्रेम से जुड़ते है। शिव के गेटअप में कमाल…
मिथुन चक्रवर्ती ! ब्रह्म दत्त कश्मीर घाटी में सरकार के मुलाजिम लेकिन लाचार दादा ने रौब दिखलाया है लेकिन दर्दनाक रौब, कुछ न कर पाने का एटीट्यूड…. अपने दोस्त पुष्कर के हालातों को देख जो भाव उठते है। शानदार है।
पुनीत इस्सर ! डीजीपी हरि नरेन से मिले है। ऐसा डीजीपी जो अपने दोस्त को न बचा सका। हालतों को खड़े होकर देखने की तिलमिलाहट गज़ब।
पल्लवी जोशी ! इनकी मुलाकात कॉमरेड राधिका मेनन से हुई है जो जेनएयू में प्रोफेसर है और कश्मीर की आजादी की हिमायती है। जेएनयू में कैसे न्यूट्रल स्टूडेंट्स का ब्रेन वाश किया जाता है और उन्हें भारत के खिलाफ भड़काया जाता है। पल्लवी ने राधिका के साथ मिलकर अच्छे से समझाया है। जो उन लोगों ने इतिहास न पढा है। वो हिस्ट्री है ही नहीं। कश्मीर में सिर्फ़ भटके हुए नौजवान है।
बाक़ी अन्य कलाकारों ने भी अच्छे से किरदारों को पकड़ा है।
सिनेमेटोग्राफी-एडिटिंग- दोनों चुमेश्वरी है। दिल करता है खत्म न हो।
निर्देशन- विवेक….विवेक….आपका अतीत बैक ग्राउंड क्या रहा। कैसा रहा। मुझे कोई फर्क न पड़ता है। इस फाइल्स के लिए ग्रैंड सैल्यूट और स्टैंडिंग ओवेशन….आपकी मेहनत और रिसर्च साफ़ दिखाई दी है। जिन तथ्यों को आपने कुरेदा है न ! इन लोगों की जलनी तय है। साथ ही जेएनयू को अच्छे से दिखलाया है। इनके औद्योगिक क्षेत्रों में बवाल काटेगी। सिर्फ़ ट्रैलर से जलन हुई थी। पूरे कंटेंट का दर्द बर्दास्त न होगा। तभी सब एक सुर में चिल्लाने लगे, प्रोपगैंडा… प्रोपगैंडा…. इस कंटेंट को सिल्वर स्क्रीन पर उतारने के लिए जिगरा चाहिए। जो एक गैर कश्मीरी पंडित में है उसने दिखला दिया। वरना तो सो कोल्ड कश्मीरी पंडित भी कश्मीर जा चुके है और उस दर्द और काली रात को भुलाने की नसीहत दे गए।
सबसे अव्वल आपने जो प्रमोशन डिजाइन किया है। स्मार्ट रणनीति अपनाई है यक़ीन मानिए…. ये कंटेंट कहर काट देगा। इसके रेस्पॉन्स में वर्ड ऑफ माउथ जो है ना ! रिपीट वेल्यू ले चुका है। इसकी गवाही दर्शक दे रहे थे। कि अच्छी फिल्म है दोबारा आएंगे।
सोचकर देखो। केंद्र में गृहमंत्री आंखे बंद करके बैठ गया। राज्य में मुख्यमंत्री चुप रहा। तो ऐसे हालतों में कौन साथ देगा। धर्म बदलो, या भाग जाओ, या फिर मरो। जब सरकारें मौन धारण कर ले। तो इतिहास की क्या मजाल कि वे अपने रहनुमाओं से कलम उठाने को कह दे। इतिहास भी चीखता रहा। कहता रहा। कि कोई तो कुछ लिख दो। इन मासूम कश्मीरी पंडितों की दास्तां। ताकि आने वाली कश्मीरी नस्ले और दुनिया पढ़ सके। कि कैसे इंसानियत शर्मसार हुई थी।
जिन लोगों ने घाटी में कत्लेआम मचाया था। उन्हें पिछली सरकारों ने गले लगाया।
विवेक की जो चिंगारी है ना ! धीरे धीरे बहुत बड़ा धमाका करने जा रही है। वाक़ई ऑस्कर अगर निष्पक्ष है तो इसे अकेडमी हॉल में गूँजने से कोई नहीं रोक सकता है।
हर भारतीय को कश्मीर फाइल्स देखनी/ पढ़नी चाहिए।
*🌹🙏🏻जय जिनेन्द्र🙏🏻🌹*
*🌹पवन जैन🌹*
कश्मीरी हिन्दू
कश्मीरी हिन्दू 😭
आज फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती दहाड़े मार मार कर रो रहे हैं कि मोदी ने कश्मीर को बर्बाद कर दिया। कश्मीरी नोंजवानों पर सेना गोली बरसा रही है। हमारे लोगो को हिन्दू- मुस्लिम में बांटा जा रहा है। भाई चारा खत्म कर दिया इस सरकार ने।
फारुख अब्दुल्ला जी दिलीप कुमार कौल वह शख्स हैं जिन्होंने बांदीपोरा,कश्मीर के एक चौराहे पर 25.6.1990 को गिरिजा टिक्कू की आरे से काटी गई सिर से लेकर ‘नीचे’ तक दो हिस्सों में बटी देह देखी थी।
पोस्टमार्टम के बाद गिरिजा टिक्कू की देह को फिर से चमड़े के धागे से सिला गया था उम्र थी सिर्फ 23 वर्ष ज़िंदा शरीर को दो हिस्सों में काटने से पहले गिरिजा को हिन्दू होने की सज़ा दी गई थी, दर्जनों जेहादियों ने उनके साथ बर्बर बलात्कार भी किया था ।
कश्मीरी पंडितों को ”काफिर हिन्दू’ जा रहा है” कहकर राह चलते गालियां दी जाती थीं। सरला भट्ट नामक कश्मीरी हिन्दू नर्स के साथ मेडिकल कालेज में बर्बर बलात्कार हुआ था, फिर हत्या हुई शरीर पर सैकड़ों ज़ख्म थे। एक हिन्दू नारी देशभक्त होने की सज़ा दी गई थी। मृत शरीर के साथ अत्याचार लगभग हर हिन्दू को घाटी में 12-24 घंटे भीषणतम अत्याचार और सता कर मारा गया था ।
1989 भारतीय जीवन निगम के बिहार से सम्बद्ध दो डायरेक्ट रिक्रूट ऑफिसर्स को निशात बाग,श्रीनगर में एक लकड़ी की हट में बंद कर आग लगा दी गई एक की हट में ही जलकर मृत्यु हो गई दूसरा बामुश्किल गंभीर हालत में बचाया जा सका लेकिन सुनते हैं कि वह मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गए दोनों ने देशभक्त हिन्दू होने की सज़ा भुगती।
अनुपम खेर के मामा और मामी रैनाबाड़ी, श्रीनगर मोहल्ले में रहते थे मामा-मामी ने रिटायर होने के बाद शानदार घर बनवाया था। गृहप्रवेश की पूजा के चंद दिन बाद एक मौलाना प्रकट हुए अनुपम खेर की मामी से कहा कि “यह घर हम खरीदना चाहते हैं ” अनुपम खेर की मामी हतप्रभ रह गईं मौलाना को डांट लगाई कि एकदम नए घर को उन्होंने खरीदने (कब्ज़ा) की इच्छा कैसे ज़ाहिर की मौलाना चला गया धमकी देकर।
अगले दिन ब्रह्ममहूर्त में जब खेर की मामी घर के पिछवाड़े में स्थित अपने घर के आंगन में तुलसी को पानी देने गईं तो वह बेहोश होकर गिर पड़ीं घर के आंगन के बीचों-बीच पड़ोसी कश्मीरी पंडित का कटा सिर पड़ा था मौलाना ने धमकी को कार्यरूप दे दिया था चंद रोज़ बाद मामा-मामी घर बन्द कर हमेशा के लिए जम्मू भाग आये।
सुरक्षाबलों पर 40 साल से जूते-चप्पल फेंकें जा रहे हैं आर्मी के जवान के मुंह पर कश्मीरी अलगाववादी बच्चा कहता है “गाय तुम्हारी माता है.. हम उसको खाता है “। 70 साल से हमारे सुरक्षाबल खून का घूंट पीकर घाटी में अपना खून बहा रहे हैं कब तक खून बहाएंगे कुछ पता नहीं। बिट्टा कराटे टीवी स्क्रीन पर कहता है कि 40 कश्मीरी पंडितों की हत्या के बाद उसने लाशें गिनना छोड़ दिया था!
यासीन मलिक ने एयरफोर्स के 4 अधिकारियों पर हैंडग्रेनेड फेंक कर हत्या की स्वीकारोक्ति एक विदेशी चैनल पर की थी। आज तक 1500 कश्मीरी पंडितों के हत्यारों पर एक भी FIR नहीं हुई कोई मुकदमा नहीं चला जेल की बात कौन करें l।
कितने लोग जानते हैं कि भारतीय राजनयिक रवींद्र म्हात्रे की हत्या मकबूल बट्ट ने क्यों की थी। कश्मीरी पंडितों की हत्या होती रहीं सभी राजनीतिक पार्टियां क्यों खामोश रहीं श्रीनगर में स्थित संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षक और एमनेस्टी इंटरनेशनल कश्मीरी पंडितों की लाशों की ओर देखने तक से इनकार क्यों करते रहे।
दरअसल हिन्दू ने कभी किसी दूसरे हिन्दू को अपना भाई आत्मीय माना ही कब ? सैकड़ों सदियों का इतिहास है यह घाटी से हिन्दू भागता नहीं तो क्या करता? जब सब साथ छोड़ चुके थेl।
खैर इन सब बातों को बंगाली हिन्दू अभी नही समझेगा, जब समझ आएगी तब तक बोरिया बिस्तर बाँध कर पलायन करना होगा ।
कुछ कायर लोग शायद इस पोस्ट को भारतीय जनता पार्टी के आई टी सैल निकली पोस्ट कहकर पल्ला झाड़ लेंगे और कुछ कार्यवाही करना तो दूर आगे फाॅर्वरड तक नहीं करेंगे।
खैर हम तो दूसरे प्रदेश में रहते हैं, मुझे क्या फर्क पड़ता है, इन सब बातों से?
👆
यही मानसिकता हम हिन्दुओं के पतन का कारण बनी।। पर अब समय बदल गया है। डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय विचार मंच भारत बड़ी तेज़ी से छल कपट कूटनीति को जड़ मूल से खत्म करने की दिशा में निर्णायक भूमिका में राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सुशील कुमार सरावगी जिंदल के नेतृत्व में भारत में 85 लाख युवा शक्ति शस्त्र और शास्त्र से निपुण कर हिंदू राष्ट्र निर्माण शिल्पी का संचालन कर रहे है। अब हिंदू जागृत हो गया है। जम्मू कश्मीर में भारी पर्व्रतन देख रहे हैं। राष्ट्र द्रोही नेताओं का जीवन अन्तिम निर्णायक भूमिका में हैं। देश में जितने भी फिरकाप्रस्ति लोग जो देश के लिऐ नासूर है उनका पुख्ता प्रबंध डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय विचार मंच भारत कर है।
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आखिर भारत ने पाकिस्तान को गिलगित, बाल्टिस्तान खाली करने का नोटिस दे ही दिया,
परन्तु क्या आप जानते हैं इस क्षेत्र की विशेषता क्या है?
तो आंखे खुली रखकर, एकाग्रचित्त होकर पढिए…
लेख थोड़ा लंबा है, पर आंखों को खोल कर रख देगा..
अब हम सभी देशवासियों को संपूर्ण जम्मू कश्मीर के इतिहास और भूगोल की सत्यता के बारे में बातचीत करने की जरूरत है विशेषकर पाक अधिकृत कश्मीर और अक्साई चीन (सी ओ के) के बारे में । गिलगित जो अभी POK के रुप में है वह विश्व में एकमात्र ऐसा स्थान है जो कि 5 देशों की सीमा से जुड़ा हुआ है , अफगानिस्तान, तजाकिस्तान (जो कभी Russia का हिस्सा था), पाकिस्तान, भारत और तिब्बत-चाइना ।
“वास्तव में जम्मू कश्मीर की Importance जम्मू के कारण नहीं, कश्मीर के कारण नहीं, लद्दाख के कारण नहीं वास्तव में अगर इसकी Importance है तो वह है गिलगित-बाल्टिस्तान के कारण (pok)
अब तक ज्ञात इतिहास में भारत पर जितने भी आक्रमण हुए यूनानियों से लेकर आजतक (शक , हूण, कुषाण , मुग़ल ) वह सारे गिलगित मार्ग से ही हुए । हमारे पूर्वज जम्मू-कश्मीर के महत्व को समझते थे उनको पता था कि अगर भारत को सुरक्षित रखना है तो दुश्मन को हिंदूकुश अर्थात गिलगित-बाल्टिस्तान उस पार ही रखना होगा । किसी समय इस गिलगित में अमेरिका बैठना चाहता था, ब्रिटेन अपना base गिलगित में बनाना चाहता था , Russia भी गिलगित में बैठना चाहता था यहां तक कि पाकिस्तान ने सन 1965 में गिलगित क्षेत्र को Russia को देने का वादा तक कर लिया था आज चाइना भी इसी गिलगित में बैठना चाहता है और वह अपने पैर पसार भी चुका है और पाकिस्तान तो बैठना चाहता ही था ।
“दुर्भाग्य से जिस गिलगित के महत्व को सारी दुनिया जानती समझती है, जबकि एक ही देश के नेता उसको अपना नहीं मानते थे , जिसका वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान है और वह है भारत देश । क्योंकि हमको इस बात की कल्पना तक नहीं है भारत को अगर सुरक्षित रहना है तो हमें गिलगित-बाल्टिस्तान किसी भी हालत में चाहिए ।
आज जब हम आर्थिक शक्ति बनने की सोच रहे हैं क्या आपको पता है गिलगित से By Road आप विश्व के अधिकांश कोनों में जा सकते हैं गिलगित से By Road 5000 Km दुबई है, 1400 Km दिल्ली है, 2800 Km मुंबई है, 3500 Km RUSSIA है, चेन्नई 3800 Km है लंदन 8000 Km है , जब हम सोने की चिड़िया थे तब हमारा सारे देशों से व्यापार इसी सिल्क मार्ग से चलता था 85 % जनसंख्या इन मार्गों से जुड़ी हुई थी Central Asia, यूरेशिया, यूरोप, अफ्रीका सब जगह हम By Road जा सकते है अगर गिलगित-बाल्टिस्तान हमारे पास हो ।
आज हम पाकिस्तान के सामने IPI (Iran-Pakistan-India) गैस लाइन बिछाने के लिए गिड़गिड़ाते हैं ये तापी की परियोजना है जो कभी पूरी नहीं होगी अगर हमारे पास गिलगित होता तो गिलगित के आगे तज़ाकिस्तान था हमें किसी के सामने हाथ नहीं फ़ैलाने पड़ते ।
हिमालय की 10 बड़ी चोटियों है जो कि विश्व की 10 बड़ी चोटियों में से है और ये सारी हमारी सम्पदा है और इन 10 में से 8 गिलगित-बाल्टिस्तान में है l तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के बाद जितने भी पानी के वैकल्पिक स्त्रोत(Alternate Water Resources) हैं वह सारे गिलगित-बाल्टिस्तान में है ।
आप हैरान हो जाएंगे वहां बड़ी -बड़ी 50-100 यूरेनियम और सोने की खदाने हैं आप POK के मिनरल डिपार्टमेंट की रिपोर्ट को पढ़िए आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे । वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान का महत्व हमको मालूम नहीं है और सबसे बड़ी बात गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग Strong Anti PAK है ।
दुर्भाग्य क्या है हम हमेशा कश्मीर ही बोलते हैं, जम्मू- कश्मीर नहीं बोलते हैं , कश्मीर कहते ही जम्मू, लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान हमारे मस्तिष्क से निकल जाता है । ये पाकिस्तान के कब्जे में जो POK है उसका क्षेत्रफल 79000 वर्ग किलोमीटर है उसमें कश्मीर का हिस्सा तो सिर्फ 6000 वर्ग किलोमीटर है और 9000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा जम्मू का है और 64000 वर्ग किलोमीटर हिस्सा लद्दाख का है जो कि गिलगित-बाल्टिस्तान है । यह कभी कश्मीर का हिस्सा नहीं था यह लद्दाख का हिस्सा था वास्तव में सच्चाई यही है । तभी भारत सरकार दो संघशासित राज्य जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का उचित निर्माण किया इसलिए पाकिस्तान जो बार-बार कश्मीर का राग अलापता रहता है तो उससे कोई यह पूछे तो सही क्या गिलगित-बाल्टिस्तान और जम्मू का हिस्सा जिस पर तुमने कब्ज़ा कर रखा है क्या ये भी कश्मीर का ही भाग है ?? कोई उत्तर नहीं मिलेगा ।
क्या आपको पता है कि गिलगित -बाल्टिस्तान , लद्दाख के रहने वाले लोगो की औसत आयु विश्व में सर्वाधिक है यहाँ के लोग विश्व अन्य लोगो की तुलना में ज्यादा जीते है ।
भारत में आयोजित एक सेमिनार में गिलगित-बाल्टिस्तान के एक बड़े नेता को बुलाया गया था उसने कहा कि “we are the forgotten people of forgotten lands of BHARAT” उसने कहा कि देश हमारी बात ही नहीं जानता । जब किसी ने उससे सवाल किया कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं ?? तो उसने कहा कि 60 साल बाद तो आपने मुझे भारत बुलाया और वह भी अमेरिकन टूरिस्ट वीजा पर और आप मुझसे सवाल पूछते हैं कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं !! उसने कहा कि आप गिलगित-बाल्टिस्तान के बच्चों को IIT , IIM में दाखिला दीजिए AIIMS में हमारे लोगों का इलाज कीजिए हमें यह लगे तो सही कि भारत हमारी चिंता करता है हमारी बात करता है । गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान की सेना कितने अत्याचार करती है लेकिन आपके किसी भी राष्ट्रीय अखबार में उसका जिक्र तक नहीं आता है । आप हमें ये अहसास तो दिलाइये की आप हमारे साथ है ।
और मैं खुद आपसे यह पूछता हूं कि आप सभी ने पाकिस्तान को हमारे कश्मीर में हर सहायता उपलब्ध कराते हुए देखा होगा । वह बार बार कहता है कि हम कश्मीर की जनता के साथ हैं, कश्मीर की आवाम हमारी है । लेकिन क्या आपने कभी यह सुना है कि किसी भी भारत के नेता, मंत्री या सरकार ने यह कहा हो कि हम POK – गिलगित-बाल्टिस्तान की जनता के साथ हैं, वह हमारी आवाम है, उनको जो भी सहायता उपलब्ध होगी हम उपलब्ध करवाएंगे ,आपने यह कभी नहीं सुना होगा ।
कांग्रेस सरकार ने कभी POK गिलगित-बाल्टिस्तान को पुनः भारत में लाने के लिए कोई बयान तक नहीं दिया प्रयास करनि तो बहुत दूर की बात है । हालाँकि पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार के समय POK का मुद्दा उठाया गया फिर 10 साल पुनः मौन धारण हो गया और अब फिर से नरेंद्र मोदी जी की सरकार आने पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में ये मुद्दा उठाया ।
आज अगर आप किसी को गिलगित के बारे में पूछ भी लोगे तो उसे यह पता नहीं है कि यह जम्मू कश्मीर का ही भाग है !वह सीधे ही यह पूछेगा क्या यह कोई चिड़िया का नाम है ?? वास्तव में हमारा जम्मू कश्मीर के बारे में जो गलत नजरिया है उसको बदलने की जरूरत है ।
अब करना क्या चाहिए ??
तो पहली बात है सुरक्षा में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होना चाहिए जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा का मुद्दा बहुत संवेदनशील है इस पर अनावश्यक वाद-विवाद नहीं होना चाहिए , वहीं एक अनावश्यक वाद विवाद चलता है कि जम्मू कश्मीर में इतनी सेना क्यों है ??
तो उन तथाकथित बुद्धिजीवियों को बता दिया जाए कि जम्मू-कश्मीर का 2800 किलोमीटर का बॉर्डर है जिसमें 2400 किलोमीटर पर LOC है, आजादी के बाद भारत ने पांच युद्ध लड़े वह सभी जम्मू-कश्मीर से लड़े भारतीय सेना के 18 लोगों को परमवीर चक्र मिला और वह सभी 18 के 18 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं ।
इनमें 14000 भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं जिनमें से 12000 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं, अब सेना बॉर्डर पर नहीं तो क्या मध्यप्रदेश में रहेगी क्या यह सब जो सेना की इन बातों को नहीं समझते वही यह सब अनर्गल चर्चा करते हैं ।
वास्तव में जम्मू कश्मीर पर बातचीत करने के बिंदु होने चाहिए- POK , वेस्ट पाकिस्तान से आए रिफ्यूजी, कश्मीरी हिंदू समाज, आतंक से पीड़ित लोग , धारा 370 और 35A का हुआ दुरूपयोग, गिलगित-बाल्टिस्तान का वह क्षेत्र जो आज पाकिस्तान व चाइना के कब्जे में है । जम्मू- कश्मीर के गिलगित- बाल्टिस्तान में अधिकांश जनसंख्या शिया मुसलमानों की है और वह सभी पाकिस्तान विरोधी है वह आज भी अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं, पर भारत उनके साथ है ऐसा हमें उनको महसूस कराना चाहिए, देश कभी उनके साथ खड़ा नहीं हुआ वास्तव में पूरे देश में इसकी चर्चा खुलकर होनी चाहिए ।
वास्तव में जम्मू-कश्मीर के विमर्श का मुद्दा बदलना चाहिए, जम्मू कश्मीर को लेकर सारे देश में सही जानकारी देने की जरूरत है l इसके लिए एक इंफॉर्मेशन कैंपेन चलना चाहिए , पूरे देश में वर्ष में, सबसे बड़ी बात है जम्मू कश्मीर को हमें राष्ट्रवादियों की नजर से देखना होगा जम्मू कश्मीर की चर्चा हो तो वहां के राष्ट्रभक्तों की चर्चा होनी चाहिए।
इस जम्मू कश्मीर लेख श्रृंखला माध्यम से मैंने आपको पूरे जम्मू कश्मीर की पृष्ठभूमि और परिस्थितियों से अवगत करवाया और मेरा मुख्य उद्देश्य सिर्फ यही है जम्मू कश्मीर के बारे में देश के प्रत्येक नागरिक को यह सब जानकारियां होनी चाहिए ।
तो अब आप इतने समर्थ हैं कि जम्मू कश्मीर को लेकर आप किसी से भी वाद-विवाद या तर्क-वितर्क कर सकते हैं, किसी को आप समझा सकते हैं कि वास्तव में जम्मू-कश्मीर की परिस्थितियां क्या है, वैसे तो जम्मू कश्मीर पर एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है लेकिन मैंने जितना हो सका उतने संछिप्त रूप में इसे आपके सामने रखा है ।
🙏🏼इस श्रृंखला को केवल लाइक करने से कुछ भी नहीं होगा चाहे आप पढ़कर लाइक कर रहे हो या बिना पढ़े लाइक कर रहे हो उसका कोई भी मतलब नहीं है । अगर आप इस श्रृंखला को अधिक से अधिक जनता के अंदर प्रसारित करेंगे तभी हम जम्मू कश्मीर के विमर्श का यह मुद्दा बदल सकते हैं अन्यथा नहीं । इसलिए मेरा आप सभी से यही अनुरोध है श्रृंखला को अधिक से अधिक लोगों की जानकारी में लाया जाए ताकि देश की जनता को जम्मू कश्मीर के संदर्भ में सही तथ्यों का पता लग सके ।
धन्यवाद ।@
#Gilgit #Laddakh #Baltistan #NSA
POK
POK गिलगित बल्तिस्तान के भारतीय क्षेत्र को खाली करने की सूचना…..
भारत सरकार ने आधिकारिक रुप से POK गिलगित बल्तिस्तान के भारतीय क्षेत्र को खाली करने की सूचना पाकिस्तान सरकार को दे दी है ।
तो आइए POK क्षेत्र के विषय में अपनी जानकारी बढ़ाएं,
क्योंकि अब हम सभी देशवासियों को संपूर्ण जम्मू कश्मीर के इतिहास और भूगोल की सत्यता के बारे में बातचीत करने की जरूरत है विशेषकर POK और अक्साई चीन (COK) के बारे में । गिलगित जो अभी POK के रुप में है वह विश्व में एकमात्र ऐसा स्थान है जो कि 5 देशों की सीमा से जुड़ा हुआ है , अफगानिस्तान, तजाकिस्तान (जो कभी Russia का हिस्सा था), पाकिस्तान, भारत और तिब्बत-चाइना ।
“वास्तव में जम्मू कश्मीर का महत्व जम्मू के कारण नहीं, कश्मीर के कारण नहीं, लद्दाख के कारण नहीं वास्तव में अगर इसका महत्व है तो वह है गिलगित-बल्तिस्तान के कारण (POK)
अब तक ज्ञात इतिहास में भारत पर जितने भी आक्रमण हुए यूनानियों से लेकर आज तक (शक , हूण, कुषाण , मुग़ल ) वह सारे गिलगित मार्ग से ही हुए । हमारे पूर्वज जम्मू-कश्मीर के महत्व को समझते थे उनको पता था कि अगर भारत को सुरक्षित रखना है तो दुश्मन को हिंदूकुश अर्थात गिलगित-बल्तिस्तान उस पार ही रखना होगा । किसी समय इस गिलगित में अमेरिका बैठना चाहता था, ब्रिटेन अपना base गिलगित में बनाना चाहता था, रूस भी गिलगित में बैठना चाहता, यहां तक कि पाकिस्तान ने सन 1965 में गिलगित क्षेत्र को रूस को देने का वादा तक कर लिया था आज चाइना भी इसी गिलगित में बैठना चाहता है और वह अपने पैर पसार भी चुका है और पाकिस्तान तो बैठना चाहता ही था ।
“दुर्भाग्य से जिस गिलगित के महत्व को सारी दुनिया जानती समझती है, जबकि एक ही देश के नेता उसको अपना नहीं मानते थे , जिसका वास्तव में गिलगित-बल्तिस्तान है और वह है भारत देश । क्योंकि हमको इस बात की कल्पना तक नहीं है भारत को अगर सुरक्षित रहना है तो हमें गिलगित-बल्तिस्तान किसी भी हालत में चाहिए ।
आज जब हम आर्थिक शक्ति बनने की सोच रहे हैं क्या आपको पता है गिलगित से रोड मार्ग द्वारा आप विश्व के अधिकांश कोनों में जा सकते हैं गिलगित से रोड मार्ग 5000 Km दुबई है, 1400 Km दिल्ली है, 2800 Km मुंबई है, 3500 Km रूस है, चेन्नई 3800 Km है लंदन 8000 Km है , जब हम सोने की चिड़िया थे तब हमारा सारे देशों से व्यापार इसी सिल्क मार्ग से चलता था 85 % जनसंख्या इन मार्गों से जुड़ी हुई थी मध्य एशिया, यूरेशिया, यूरोप, अफ्रीका सब जगह हम रोड मार्ग जा सकते है अगर गिलगित-बल्तिस्तान हमारे पास हो ।
आज हम पाकिस्तान के सामने IPI (Iran-Pakistan-India) गैस लाइन बिछाने के लिए गिड़गिड़ाते हैं ये तापी की परियोजना है जो कभी पूरी नहीं होगी अगर हमारे पास गिलगित होता तो गिलगित के आगे तज़ाकिस्तान था हमें किसी के सामने हाथ नहीं फ़ैलाने पड़ते ।
हिमालय की 10 बड़ी चोटियों है जो कि विश्व की 10 बड़ी चोटियों में से है और ये सारी हमारी सम्पदा है और इन 10 में से 8 गिलगित-बल्तिस्तान में है l तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के बाद जितने भी पानी के वैकल्पिक स्त्रोत (Alternate Water Resources) हैं वह सारे गिलगित-बल्तिस्तान में है ।
आप हैरान हो जाएंगे वहां बड़ी -बड़ी 50-100 यूरेनियम और सोने की खदाने हैं आप POK के मिनरल डिपार्टमेंट की रिपोर्ट को पढ़िए आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे । वास्तव में गिलगित-बल्तिस्तान का महत्व हमको मालूम नहीं है और सबसे बड़ी बात गिलगित-बल्तिस्तान के लोग Strong Anti PAK है ।
दुर्भाग्य क्या है हम हमेशा कश्मीर ही बोलते हैं, जम्मू- कश्मीर नहीं बोलते हैं , कश्मीर कहते ही जम्मू, लद्दाख, गिलगित-बल्तिस्तान हमारे मस्तिष्क से निकल जाता है । ये पाकिस्तान के कब्जे में जो POK है उसका क्षेत्रफल 79000 वर्ग किलोमीटर है उसमें कश्मीर का हिस्सा तो सिर्फ 6000 वर्ग किलोमीटर है और 9000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा जम्मू का है और 64000 वर्ग किलोमीटर हिस्सा लद्दाख का है जो कि गिलगित-बल्तिस्तान है । यह कभी कश्मीर का हिस्सा नहीं था यह लद्दाख का हिस्सा था वास्तव में सच्चाई यही है । तभी भारत सरकार दो संघशासित राज्य जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का उचित निर्माण किया इसलिए पाकिस्तान जो बार-बार कश्मीर का राग अलापता रहता है तो उससे कोई यह पूछे तो सही क्या गिलगित-बल्तिस्तान और जम्मू का हिस्सा जिस पर तुमने कब्ज़ा कर रखा है क्या ये भी कश्मीर का ही भाग है ?? कोई उत्तर नहीं मिलेगा ।
क्या आपको पता है कि गिलगित -बल्तिस्तान , लद्दाख के रहने वाले लोगो की औसत आयु विश्व में सर्वाधिक है यहाँ के लोग विश्व अन्य लोगो की तुलना में ज्यादा जीते है ।
भारत में आयोजित एक सेमिनार में गिलगित-बल्तिस्तान के एक बड़े नेता को बुलाया गया था उसने कहा कि “we are the forgotten people of forgotten lands of BHARAT” उसने कहा कि देश हमारी बात ही नहीं जानता । जब किसी ने उससे सवाल किया कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं ?? तो उसने कहा कि 60 साल बाद तो आपने मुझे भारत बुलाया और वह भी अमेरिकन टूरिस्ट वीजा पर और आप मुझसे सवाल पूछते हैं कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं !! उसने कहा कि आप गिलगित-बल्तिस्तान के बच्चों को IIT , IIM में दाखिला दीजिए AIIMS में हमारे लोगों का इलाज कीजिए हमें यह लगे तो सही कि भारत हमारी चिंता करता है हमारी बात करता है । गिलगित-बल्तिस्तान में पाकिस्तान की सेना कितने अत्याचार करती है लेकिन आपके किसी भी राष्ट्रीय अखबार में उसका जिक्र तक नहीं आता है । आप हमें ये अहसास तो दिलाइये की आप हमारे साथ है ।
और मैं खुद आपसे यह पूछता हूं कि आप सभी ने पाकिस्तान को हमारे कश्मीर में हर सहायता उपलब्ध कराते हुए देखा होगा । वह बार बार कहता है कि हम कश्मीर की जनता के साथ हैं, कश्मीर की आवाम हमारी है । लेकिन क्या आपने कभी यह सुना है कि किसी भी भारत के नेता, मंत्री या सरकार ने यह कहा हो कि हम POK – गिलगित-बल्तिस्तान की जनता के साथ हैं, वह हमारी आवाम है, उनको जो भी सहायता उपलब्ध होगी हम उपलब्ध करवाएंगे ,आपने यह कभी नहीं सुना होगा ।
कांग्रेस सरकार ने कभी POK गिलगित-बल्तिस्तान को पुनः भारत में लाने के लिए कोई बयान तक नहीं दिया प्रयास करनि तो बहुत दूर की बात है । हालाँकि पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार के समय POK का मुद्दा उठाया गया फिर 10 साल पुनः मौन धारण हो गया और अब फिर से नरेंद्र मोदी जी की सरकार आने पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में ये मुद्दा उठाया ।
आज अगर आप किसी को गिलगित के बारे में पूछ भी लोगे तो उसे यह पता नहीं है कि यह जम्मू कश्मीर का ही भाग है !वह सीधे ही यह पूछेगा क्या यह कोई चिड़िया का नाम है ?? वास्तव में हमारा जम्मू कश्मीर के बारे में जो गलत दृष्टिकोण है उसको बदलने की जरूरत है ।
अब करना क्या चाहिए ??
तो पहली बात है सुरक्षा में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होना चाहिए जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा का मुद्दा बहुत संवेदनशील है इस पर अनावश्यक वाद-विवाद नहीं होना चाहिए , वहीं एक अनावश्यक वाद विवाद चलता है कि जम्मू कश्मीर में इतनी सेना क्यों है ??
तो उन तथाकथित बुद्धिजीवियों को बता दिया जाए कि जम्मू-कश्मीर का 2800 किलोमीटर का बॉर्डर है जिसमें 2400 किलोमीटर पर LOC है, आजादी के बाद भारत ने पांच युद्ध लड़े वह सभी जम्मू-कश्मीर से लड़े भारतीय सेना के 18 लोगों को परमवीर चक्र मिला और वह सभी 18 के 18 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं ।
इनमें 14000 भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं जिनमें से 12000 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं, अब सेना बॉर्डर पर नहीं तो क्या मध्यप्रदेश में रहेगी क्या यह सब जो सेना की इन बातों को नहीं समझते वही यह सब अनर्गल चर्चा करते हैं ।
वास्तव में जम्मू कश्मीर पर बातचीत करने के बिंदु होने चाहिए- POK, वेस्ट पाकिस्तान से आए रिफ्यूजी, कश्मीरी हिंदू समाज, आतंक से पीड़ित लोग , धारा 370 और 35A का हुआ दुरूपयोग, गिलगित-बल्तिस्तान का वह क्षेत्र जो आज पाकिस्तान व चाइना के कब्जे में है । जम्मू- कश्मीर के गिलगित- बल्तिस्तान में अधिकांश जनसंख्या शिया मुसलमानों की है और वह सभी पाकिस्तान विरोधी है वह आज भी अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं, पर भारत उनके साथ है ऐसा हमें उनको महसूस कराना चाहिए, देश कभी उनके साथ खड़ा नहीं हुआ वास्तव में पूरे देश में इसकी चर्चा खुलकर होनी चाहिए ।
वास्तव में जम्मू-कश्मीर के विमर्श का मुद्दा बदलना चाहिए, जम्मू कश्मीर को लेकर सारे देश में सही जानकारी देने की जरूरत है l इसके लिए एक इंफॉर्मेशन कैंपेन चलना चाहिए , पूरे देश में वर्ष में एक बार 26 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर का विलय-दिवस के रुप में मनाना चाहिए, और सबसे बड़ी बात है जम्मू कश्मीर को हमें राष्ट्रवादियों की नजर से देखना होगा जम्मू कश्मीर की चर्चा हो तो वहां के राष्ट्रभक्तों की चर्चा होनी चाहिए तो उन 5 जिलों के कठमुल्ले तो फिर वैसे ही अपंग हो जाएंगे ।
इस जम्मू कश्मीर लेख श्रृंखला के माध्यम से मैंने आपको पूरे जम्मू कश्मीर की पृष्ठभूमि और परिस्थितियों से अवगत करवाया और मेरा मुख्य उद्देश्य सिर्फ यही है जम्मू कश्मीर के बारे में देश के प्रत्येक नागरिक को यह सब जानकारियां होनी चाहिए ।
तो अब आप इतने समर्थ हैं कि जम्मू कश्मीर को लेकर आप किसी से भी वाद-विवाद या तर्क-वितर्क कर सकते हैं, किसी को आप समझा सकते हैं कि वास्तव में जम्मू-कश्मीर की परिस्थितियां क्या है, वैसे तो जम्मू कश्मीर पर एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है लेकिन मैंने जितना हो सका उतने संक्षिप्त रूप में इसे आपके सामने रखा है ।
इस श्रृंखला को केवल जोड़ने करने से कुछ भी नहीं होगा चाहे आप पढ़कर लाइक कर रहे हो या बिना पढ़े लाइक कर रहे हो उसका कोई भी मतलब नहीं है । अगर आप इस श्रृंखला को अधिक से अधिक जनता के अंदर प्रसारित करेंगे तभी हम जम्मू कश्मीर के विमर्श का यह मुद्दा बदल सकते हैं अन्यथा नहीं , इसलिए मेरा आप सभी से यही अनुरोध है श्रृंखला को अधिक से अधिक लोगों की जानकारी में लाया जाए ताकि देश की जनता को जम्मू कश्मीर के संदर्भ में सही तथ्यों का पता लग सके।
Dr.(Capt) Sikander Rizvi
Nationalist Speaker expert on Gilgit Baltistan.Capt Rizvis family roots in Gilgit – Baltistan.
जानकारी pok क्षेत्र के विषय

जानकारी pok क्षेत्र के विषय
क्योंकि अब हम सभी देशवासियों को संपूर्ण जम्मू कश्मीर के इतिहास और भूगोल की सत्यता के बारे में बातचीत करने की जरूरत है विशेषकर POK और अक्साई चीन (cok) के बारे में । गिलगित जो अभी POK के रुप में है वह विश्व में एकमात्र ऐसा स्थान है जो कि 5 देशों की सीमा से जुड़ा हुआ है , अफगानिस्तान, तजाकिस्तान (जो कभी Russia का हिस्सा था), पाकिस्तान, भारत और तिब्बत-चाइना ।
“वास्तव में जम्मू कश्मीर की Importance जम्मू के कारण नहीं, कश्मीर के कारण नहीं, लद्दाख के कारण नहीं वास्तव में अगर इसकी Importance है तो वह है गिलगित-बाल्टिस्तान के कारण (pok)
अब तक ज्ञात इतिहास में भारत पर जितने भी आक्रमण हुए यूनानियों से लेकर आजतक (शक , हूण, कुषाण , मुग़ल ) वह सारे गिलगित मार्ग से ही हुए । हमारे पूर्वज जम्मू-कश्मीर के महत्व को समझते थे उनको पता था कि अगर भारत को सुरक्षित रखना है तो दुश्मन को हिंदूकुश अर्थात गिलगित-बाल्टिस्तान उस पार ही रखना होगा । किसी समय इस गिलगित में अमेरिका बैठना चाहता था, ब्रिटेन अपना base गिलगित में बनाना चाहता था , Russia भी गिलगित में बैठना चाहता था यहां तक कि पाकिस्तान ने सन 1965 में गिलगित क्षेत्र को Russia को देने का वादा तक कर लिया था आज चाइना भी इसी गिलगित में बैठना चाहता है और वह अपने पैर पसार भी चुका है और पाकिस्तान तो बैठना चाहता ही था ।
“दुर्भाग्य से जिस गिलगित के महत्व को सारी दुनिया जानती समझती है, जबकि एक ही देश के नेता उसको अपना नहीं मानते थे , जिसका वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान है और वह है भारत देश । क्योंकि हमको इस बात की कल्पना तक नहीं है भारत को अगर सुरक्षित रहना है तो हमें गिलगित-बाल्टिस्तान किसी भी हालत में चाहिए ।
आज जब हम आर्थिक शक्ति बनने की सोच रहे हैं क्या आपको पता है गिलगित से By Road आप विश्व के अधिकांश कोनों में जा सकते हैं गिलगित से By Road 5000 Km दुबई है, 1400 Km दिल्ली है, 2800 Km मुंबई है, 3500 Km RUSSIA है, चेन्नई 3800 Km है लंदन 8000 Km है , जब हम सोने की चिड़िया थे तब हमारा सारे देशों से व्यापार इसी सिल्क मार्ग से चलता था 85 % जनसंख्या इन मार्गों से जुड़ी हुई थी Central Asia, यूरेशिया, यूरोप, अफ्रीका सब जगह हम By Road जा सकते है अगर गिलगित-बाल्टिस्तान हमारे पास हो ।
आज हम पाकिस्तान के सामने IPI (Iran-Pakistan-India) गैस लाइन बिछाने के लिए गिड़गिड़ाते हैं ये तापी की परियोजना है जो कभी पूरी नहीं होगी अगर हमारे पास गिलगित होता तो गिलगित के आगे तज़ाकिस्तान था हमें किसी के सामने हाथ नहीं फ़ैलाने पड़ते ।
हिमालय में बड़ी बड़ी चोटियां है जो कि विश्व की 10 बड़ी चोटियों में से है और ये सारी हमारी सम्पदा है और इन 10 में से 8 गिलगित-बाल्टिस्तान में है l तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के बाद जितने भी पानी के वैकल्पिक स्त्रोत(Alternate Water Resources) हैं वह सारे गिलगित-बाल्टिस्तान में है ।
आप हैरान हो जाएंगे वहां बड़ी -बड़ी 50-100 यूरेनियम और सोने की खदाने हैं आप POK के मिनरल डिपार्टमेंट की रिपोर्ट को पढ़िए आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे । वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान का महत्व हमको मालूम नहीं है और सबसे बड़ी बात गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग Strong Anti PAK है ।
दुर्भाग्य क्या है हम हमेशा कश्मीर ही बोलते हैं, जम्मू- कश्मीर नहीं बोलते हैं , कश्मीर कहते ही जम्मू, लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान हमारे मस्तिष्क से निकल जाता है । ये पाकिस्तान के कब्जे में जो POK है उसका क्षेत्रफल 79000 वर्ग किलोमीटर है उसमें कश्मीर का हिस्सा तो सिर्फ 6000 वर्ग किलोमीटर है और 9000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा जम्मू का है और 64000 वर्ग किलोमीटर हिस्सा लद्दाख का है जो कि गिलगित-बाल्टिस्तान है । यह कभी कश्मीर का हिस्सा नहीं था यह लद्दाख का हिस्सा था वास्तव में सच्चाई यही है । तभी भारत सरकार दो संघशासित राज्य जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का उचित निर्माण किया इसलिए पाकिस्तान जो बार-बार कश्मीर का राग अलापता रहता है तो उससे कोई यह पूछे तो सही क्या गिलगित-बाल्टिस्तान और जम्मू का हिस्सा जिस पर तुमने कब्ज़ा कर रखा है क्या ये भी कश्मीर का ही भाग है ?? कोई उत्तर नहीं मिलेगा ।
क्या आपको पता है कि गिलगित -बाल्टिस्तान , लद्दाख के रहने वाले लोगो की औसत आयु विश्व में सर्वाधिक है यहाँ के लोग विश्व अन्य लोगो की तुलना में ज्यादा जीते है ।
भारत में आयोजित एक सेमिनार में गिलगित-बाल्टिस्तान के एक बड़े नेता को बुलाया गया था उसने कहा कि “we are the forgotten people of forgotten lands of BHARAT” उसने कहा कि देश हमारी बात ही नहीं जानता । जब किसी ने उससे सवाल किया कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं ?? तो उसने कहा कि 60 साल बाद तो आपने मुझे भारत बुलाया और वह भी अमेरिकन टूरिस्ट वीजा पर और आप मुझसे सवाल पूछते हैं कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं !! उसने कहा कि आप गिलगित-बाल्टिस्तान के बच्चों को IIT , IIM में दाखिला दीजिए AIIMS में हमारे लोगों का इलाज कीजिए हमें यह लगे तो सही कि भारत हमारी चिंता करता है हमारी बात करता है । गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान की सेना कितने अत्याचार करती है लेकिन आपके किसी भी राष्ट्रीय अखबार में उसका जिक्र तक नहीं आता है । आप हमें ये अहसास तो दिलाइये कि आप हमारे साथ है ।
और मैं खुद आपसे यह पूछता हूं कि आप सभी ने पाकिस्तान को हमारे कश्मीर में हर सहायता उपलब्ध कराते हुए देखा होगा । वह बार बार कहता है कि हम कश्मीर की जनता के साथ हैं, कश्मीर की आवाम हमारी है । लेकिन क्या आपने कभी यह सुना है कि किसी भी भारत के नेता, मंत्री या सरकार ने यह कहा हो कि हम POK – गिलगित-बाल्टिस्तान की जनता के साथ हैं, वह हमारी आवाम है, उनको जो भी सहायता उपलब्ध होगी हम उपलब्ध करवाएंगे ,आपने यह कभी नहीं सुना होगा ।
कांग्रेस सरकार ने कभी POK गिलगित-बाल्टिस्तान को पुनः भारत में लाने के लिए कोई बयान तक नहीं दिया प्रयास करनि तो बहुत दूर की बात है । हालाँकि पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार के समय POK का मुद्दा उठाया गया फिर 10 साल पुनः मौन धारण हो गया और अब फिर से नरेंद्र मोदी जी की सरकार आने पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में ये मुद्दा उठाया ।
आज अगर आप किसी को गिलगित के बारे में पूछ भी लोगे तो उसे यह पता नहीं है कि यह जम्मू कश्मीर का ही भाग है !वह सीधे ही यह पूछेगा क्या यह कोई चिड़िया का नाम है ?? वास्तव में हमारा जम्मू कश्मीर के बारे में जो गलत नजरिया है उसको बदलने की जरूरत है ।
अब करना क्या चाहिए ??
तो पहली बात है सुरक्षा में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होना चाहिए जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा का मुद्दा बहुत संवेदनशील है इस पर अनावश्यक वाद-विवाद नहीं होना चाहिए , वहीं एक अनावश्यक वाद विवाद चलता है कि जम्मू कश्मीर में इतनी सेना क्यों है ??
तो उन तथाकथित बुद्धिजीवियों को बता दिया जाए कि जम्मू-कश्मीर का 2800 किलोमीटर का बॉर्डर है जिसमें 2400 किलोमीटर पर LOC है, आजादी के बाद भारत ने पांच युद्ध लड़े वह सभी जम्मू-कश्मीर से लड़े भारतीय सेना के 18 लोगों को परमवीर चक्र मिला और वह सभी 18 के 18 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं ।
इनमें 14000 भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं जिनमें से 12000 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं, अब सेना बॉर्डर पर नहीं तो क्या मध्यप्रदेश में रहेगी क्या यह सब जो सेना की इन बातों को नहीं समझते वही यह सब अनर्गल चर्चा करते हैं ।
वास्तव में जम्मू कश्मीर पर बातचीत करने के बिंदु होने चाहिए- POK , वेस्ट पाकिस्तान से आए रिफ्यूजी, कश्मीरी हिंदू समाज, आतंक से पीड़ित लोग , धारा 370 और 35A का हुआ दुरूपयोग, गिलगित-बाल्टिस्तान का वह क्षेत्र जो आज पाकिस्तान व चाइना के कब्जे में है । जम्मू- कश्मीर के गिलगित- बाल्टिस्तान में अधिकांश जनसंख्या शिया मुसलमानों की है और वह सभी पाकिस्तान विरोधी है वह आज भी अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं, पर भारत उनके साथ है ऐसा हमें उनको महसूस कराना चाहिए, देश कभी उनके साथ खड़ा नहीं हुआ वास्तव में पूरे देश में इसकी चर्चा खुलकर होनी चाहिए ।
वास्तव में जम्मू-कश्मीर के विमर्श का मुद्दा बदलना चाहिए, जम्मू कश्मीर को लेकर सारे देश में सही जानकारी देने की जरूरत है l इसके लिए एक इंफॉर्मेशन कैंपेन चलना चाहिए , पूरे देश में वर्ष में एक बार 26 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर का विलय-दिवस के रुप में मनाना चाहिए, और सबसे बड़ी बात है जम्मू कश्मीर को हमें राष्ट्रवादियों की नजर से देखना होगा जम्मू कश्मीर की चर्चा हो तो वहां के राष्ट्रभक्तों की चर्चा होनी चाहिए तो उन 5 जिलों के कठमुल्ले तो फिर वैसे ही अपंग हो जाएंगे ।
इस जम्मू कश्मीर लेख श्रृंखला के माध्यम से मैंने आपको पूरे जम्मू कश्मीर की पृष्ठभूमि और परिस्थितियों से अवगत करवाया और मेरा मुख्य उद्देश्य सिर्फ यही है जम्मू कश्मीर के बारे में देश के प्रत्येक नागरिक को यह सब जानकारियां होनी चाहिए ।
तो अब आप इतने समर्थ हैं कि जम्मू कश्मीर को लेकर आप किसी से भी वाद-विवाद या तर्क-वितर्क कर सकते हैं, किसी को आप समझा सकते हैं कि वास्तव में जम्मू-कश्मीर की परिस्थितियां क्या है, वैसे तो जम्मू कश्मीर पर एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है लेकिन मैंने जितना हो सका उतने संक्षिप्त रूप में इसे आपके सामने रखा है ।
इस श्रृंखला को केवल LIKE करने से कुछ भी नहीं होगा चाहे आप पढ़कर लाइक कर रहे हो या बिना पढ़े लाइक कर रहे हो उसका कोई भी मतलब नहीं है । अगर आप इस श्रृंखला को अधिक से अधिक जनता के अंदर प्रसारित करेंगे तभी हम जम्मू कश्मीर के विमर्श का यह मुद्दा बदल सकते हैं अन्यथा नहीं , इसलिए मेरा आप सभी से यही अनुरोध है श्रृंखला को अधिक से अधिक लोगों की जानकारी में लाया जाए ताकि देश की जनता को जम्मू कश्मीर के संदर्भ में सही तथ्यों का पता लगे
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देवी सिंग तोमर
19 जनवरी 1990 को काश्मीर में जो कुछ भी हुआ उसकी नींव करीब सौ साल पहले रखी गयी थी ।
सन 1889 में डोगरा शाषक प्रताप सिंह की राजकीय ताकतें छीन कर ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाई गई स्टेट काउंसिल को दे दी गयी ।
स्टेट काउंसिल ने प्रशासनिक भर्तियों की प्रकिया को इंडियन सिविल सर्विसेज के द्वारा लागू कर दिया गया और राज्य भाषा फ़ारसी से बदलकर उर्दू कर दी गयी ।
अभी तक राज्य के प्रशाषन में कश्मीरी पंडितों का बोलबाला था जो अंग्रेजी माध्यम की परीक्षा व्यवस्था के बाद बदल गया । कश्मीर के प्रशासनिक पदों में बाहरी राज्य के लोगों का दबदबा बढ़ने लगा खासकर हिन्दू पंजाबियों का ।
लगातार अपना दबदबा खो रहे पंडितों ने स्टेट कॉउन्सिल से लेकर डोगरा राजा और ब्रिटिश सरकार तक बार बार अपनी बात पहुंचाई ।
1905 में प्रताप सिंह को वापस राजा बना दिया गया और कश्मीरी पंडितों के दबाव में 1912 में सीमित बनाई गई जिसने ये माना कि हर वो व्यक्ति जिसके पास राज्य में स्थाई सम्पत्ति है या जो 20 वर्ष से राज्य में रह रहा हो उसे स्थाई निवासी माना जायेगा और प्रशासनिक पदों में उनको वरियता दी जायेगी ।
1912 के बने इस फार्मूले ने भी पंडितों में ज्यादा उत्साह नही भरा क्योंकि अधिकतर पंजाबी राज्य में बीस से अधिक वर्ष से रह रहे थे और मुस्लिम समाज ने अपने समाज की पिछड़ी स्थिति को देखकर इस दौड़ से खुद को दूर ही रखा क्योंकि वो जानते थे मेरिट के आधार पर चयन से उनका कोई फायदा नही होना है हालांकि उन्होंने मुस्लिमों की संख्या बढ़ाने के लिये दूसरे राज्य से मुस्लिमों को चुने जाने की मांग रखी जिसे डोगरा राजा द्वारा खारिज कर दिया गया ।
कश्मीरी पंडितों ने इसके बाद स्थाई निवासी की परिभाषा बदलने के लिये दबाव बनाना शुरू किया ।
संकर लाल कौल ने पहली बार कश्मीरियत को परिभाषित करने का प्रयास किया और सिर्फ उन्हें ही कश्मीरी मुल्की माना जो पाँच जनरेशन से राज्य में रह रहा हो ।
कश्मीरियत के इस फार्मूले से काश्मीरी पंडितों ने काश्मीरी मुसलमानों को भी अपनी मुहिम में जोड़ने की कोसिस शुरू की जो अभी तक मेरिट के सवाल पर चयन के विरुद्ध थे ।
प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद राजा हरि सिंह ने शाषन सम्भाला और 31 जनवरी 1927 को नये स्टेट ऑर्डर द्वारा कश्मीरी मुल्की होने को फिर से डिफाइन किया गया और प्रथम दर्जे का नागरिक उन्हें माना गया जो प्रथम डोगरा राजा के समय से राज्य में बसे हुये थे और इन्हें प्रशसनिक पदों में उच्च वरीयता दी गयी ।
जन्हा एक ओर इस कानून के बाद पंडितो का बोलबाला प्रशासन में फिर से बढ़ने लगा मुसलमानों की स्थिति में शिक्षा की कमी की वजह से ज्यादा सुधार ना हुआ और उन्होंने जनसँख्या के आधार पर रिजर्वेशन की मांग की जिसे सिरे से नकार दिया गया ।
मुसलमानों ने इसके बाद राजा हरि सिंह और कश्मीरी पंडितों के खिलाफ मुहिम शुरू कर दी जिसका परिणीति हुई 13 जुलाई 1931 को भयानक दंगो के रूप ने जिसमे मुसलमानों ने कश्मीरी पंडितों पर हमले कर घरो को जलाना शुरू कर दिया जिसका अंतिम विस्तार 19 जनवरी 1990 को कश्मीरी पंडितों के निर्वासन के रूप में हुआ ।
आज सीएए और एनसीआर का विरोध करने वाले हिंदुओं खासकर असमिया हिंदुओं के तर्क आज वही नजर आते हैं जो 1912 में कश्मीरी पंडितों के थे ।
इतिहास पढ़ने का कोई फायदा नही अगर उससे कुछ सीखा ना जाय
कश्मीर का शब्दार्थ है :—
वह भू-भाग जहाँ से पानी को निकाल दिया गया हो।
ब्रह्मा के पौत्र और मरीचि के पुत्र कश्यप ऋषि ने इस भूमि से वराहमूल (आज का बारामुल्ला) की पहाड़ियों को काटकर स्थिर जल को रास्ता देकर यहाँ ब्राह्मणों को बसाया था। कश्मीर के मुख्य शहर को कश्यपपुर भी कहा जाता था जिसका रिकॉर्ड हेकेटेइयस और हेरोडोटस के लेखन में क्रमशः कसपेपीरोस और कसपातायरोस, एवम् टोल्मी के समय में ‘कस्पेरिया’ के नाम से मिल जाता है।
यूँ तो कश्मीर में मानवीय सभ्यता आज से लगभग 5,000 वर्ष पूर्व से शुरु हो जाती है, जिसके पौराणिक, वैदिक और प्रागौतिहैसिक प्रमाण उपलब्ध हैं जहाँ वैदिक काल में उत्तर कुरुओं को कश्मीर में बसने का जिक्र आता है। अगर ऐतिहासिक तथ्यों की बात करें तो कल्हण की ‘राज-तरंगिनी’ में पौराणिक काल से ले कर बारहवीं शताब्दी तक के शासकों की चर्चा है।
सिकंदर के समकालीन, 326 ईसा पूर्व में अभिसार कश्मीर का राजा था। उसके बाद यह मौर्य साम्राज्य का हिस्सा बना और बौद्ध स्तूप और शिव मंदिरों ने कश्मीर में जगह बनाई। फिर कनिष्क का शासनकाल आया, जब बौद्ध और हिन्दू धर्म की शिक्षा का केन्द्र बन कर कश्मीर की ख्याति चीन तक पहुँच चुकी थी। उसके बाद हूणों ने कश्मीर को जीत लिया, फिर कारकोटा साम्राज्य आया, तत्पश्चात उत्पलों का शासन चला। नवीं से 11वीं शताब्दी तक शैव दर्शन पर यहाँ खूब कार्य हुआ ।
उसके बाद लोहार वंश के जनविरोधी शासन के कारण वहाँ पहली बार मुसलमानों के आगमन का रास्ता खुला। चौदहवीं शताब्दी आते-आते इस्लाम कश्मीर घाटी का बहुसंख्यक मजहब बन चुका था। संस्कृत साहित्य गायब कर दिया गया और सुल्तान सिकंदर ने ‘बुतशिकन’ की उपाधि ले कर इस्लामी आतंक की नींव रख दी थी। फारसी ने लगभग आधिकारिक भाषा की जगह ले ली।
16वीं शताब्दी में हुमायूँ के सेनापति ने हमला बोल कर कश्मीर को कब्जे में लिया, लेकिन अकबर के काल तक इसे सीधे तौर पर मुगलों ने शासन में नहीं लिया था। शिया, शाफी और सूफियों की प्रताड़ना का सिलसिला हुमायूँ के दौर में खूब चला। बाद में औरंगजेब ने मुसलमान आतंकी शासकों की परंपरा कायम रखी और मजहबी भेदभाव के साथ-साथ हिन्दुओं और बौद्धों से मुगलिया जजिया उगाही जारी रखी।
लगभग चार सौ सालों के मुसलमानी शासन के बाद 19वीं शताब्दी में कुछ समय तक कश्मीर सिखों के शासन में रहा जब पंजाब के रंजीत सिंह ने इसे अपने साम्राज्य का हिस्सा बनाया। 1846-1947 तक डोगरा राजाओं ने कश्मीर पर राज किया। 1901 में कश्मीर घाटी में मुसलमानों का प्रतिशत 93.6 था, हिन्दू 5.4% थे। कहने को तो मुसलमानों का यह प्रतिशत सौ सालों में बहुत बदला नहीं है, जो कि अब 95% से ज्यादा है, लेकिन कश्यप ऋषि के द्वारा वराहमुला की पहाड़ी को काट कर ब्राह्मणों को बसाने वाले कश्मीर में तीस साल पहले जो हुआ, वो धार्मिक नरसंहार हिन्दुओं को भूलना नहीं चाहिए।
….. अब तीस साल पहले 1990 के कुछ किस्से !!
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25 जून 1990 गिरिजा टिकू नाम की कश्मीरी पंडित की हत्या के बारे में आप जानेंगे तो सिहर जाएँगे। सरकारी स्कूल में लैब असिस्टेंट का काम करती थी। मुसलमान आतंकियों के डर से वो कश्मीर छोड़ कर जम्मू में रहने लगी। एक दिन किसी ने उसे बताया कि स्थिति शांत हो गई है, वो बांदीपुरा आ कर अपनी तनख्वाह ले जाए। वो अपने किसी मुस्लिम सहकर्मी के घर रुकी थी। मुसलमान आतंकी आए, उसे घसीट कर ले गए। वहाँ के स्थानीय मुसलमान चुप रहे क्योंकि किसी काफ़िर की परिस्थितियों से उन्हें क्या लेना-देना। गिरिजा का सामूहिक बलात्कार किया गया, बढ़ई की आरी से उसे दो भागों में चीर दिया गया, वो भी तब जब वो जिंदा थी। ये खबर कभी अखबारों में नहीं दिखी।
4 नवंबर 1989 को जस्टिस नीलकंठ गंजू को दिनदहाड़े हायकोर्ट के सामने मार दिया गया। उन्होंने मुसलमान आतंकी मकबूल भट्ट को इंस्पेक्टर अमरचंद की हत्या के मामले में फाँसी की सजा सुनाई थी। 1984 में जस्टिज नीलकंठ के घर पर बम से भी हमला किया गया था। उनकी हत्या कश्मीरी हिन्दुओं की हत्या की शुरुआत थी।
7 मई 1990 को प्रोफेसर के एल गंजू और उनकी पत्नी को मुसलमान आंतंकियों ने मार डाला। पत्नी के साथ सामूहिक बलात्कार भी किया। 22 मार्च 1990 को अनंतनाग जिले के दुकानदार पी एन कौल की चमड़ी जीवित अवस्था में शरीर से उतार दी गई और मरने को छोड़ दिया गया। तीन दिन बाद उनकी लाश मिली।
उसी दिन श्रीनगर के छोटा बाजार इलाके में बी के गंजू के साथ जो हुआ वो बताता है कि सिर्फ मुसलमान आतंकी ही इस लम्बे चले धार्मिक नरसंहार की चाहत नहीं रखते थे, बल्कि स्थानीय मुसलमानों का पूरा सहयोग उन्हें मिलता रहा। कर्फ्यू हटा था तो बी के गंजू, टेलिकॉम इंजीनियर, अपने घर लौट रहे थे। उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनका पीछा किया जा रहा है, हालाँकि घर के पास आने पर उनकी पत्नी ने यह देख लिया। उनके घर में घुसते ही पत्नी ने दरवाजा बंद कर दिया। दोनों ही घर के तीसरे फ्लोर पर चावल के बड़े डब्बों में छुप गए।
आतंकियों ने छान मारा, वो नहीं मिले। जब वो लौटने लगे तो मुसलमान पड़ोसियों ने उन मुसलमान आतंकियों को वापस बुलाया और बताया कि वो कहाँ छुपे थे। आतंकियों ने उन्हें बाहर निकाला, गोलियाँ मारी, और जब खून चावल में बह कर मिलने लगा, तो जाते हुए मुसलमान आतंकियों ने कहा, “इस चावल में खून को मिल जाने दो, और अपने बच्चों को खाने देना। कितना स्वादिष्ट भोजन होगा वो उनके लिए।”
12 फरवरी 1990 को तेज कृष्ण राजदान को उनके एक पुराने सहकर्मी ने पंजाब से छुट्टियों में उनके श्रीनगर आने पर भेंट की इच्छा जताई। दोनों लाल चौक की एक मिनि बस पर बैठे। रास्ते में मुसलमान मित्र ने जेब से पिस्तौल निकाली और छाती में गोली मारी। इतने पर भी वो नहीं रुका, उसने राजदान जी को घसीट कर बाहर किया और लोगों से बोला कि उन्हें लातों से मारें। फिर उनके पार्थिव शरीर को पूरी गली में घसीटा गया और नजदीकी मस्जिद के सामने रख दिया गया ताकि लोग देखें कि हिन्दुओं का क्या हश्र होगा।
24 फरवरी 1990 को अशोक कुमार काज़ी के घुटनों में गोली मारी गई, बाल उखाड़े गए, थूका गया और फिर पेशाब किया गया उनके ऊपर। किसी भी मुसलमान दुकानदार ने, जो उन्हें अच्छे से जानते थे, उनके लिए एक शब्द तक नहीं कहा। जब पुलिस का सायरन गूंजा तो भागते हुए उन्होंने बर्फीली सड़क पर उनकी पीड़ा का अंत कर दिया। पाँच दिन बाद नवीन सप्रू को भी इसी तरह बिना किसी मुख्य अंग में गोली मारे, तड़पते हुए छोड़ा गया, मुसलमानों ने उनके शरीर के जलने तक जश्न मनाया, नाचते और गाते रहे।
30 अप्रैल 1990 को कश्मीरी कवि और स्कॉलर सर्वानंद कौल प्रेमी और उनके पुत्र वीरेंदर कौल की हत्या बहुत भयावह तरीके से की गई। उन्होंने सोचा था कि ‘सेकुलर’ कश्मीरी उन्हें नहीं भगाएँगे, इसलिए परिवार वालों को लाख समझाने पर भी वो ‘कश्मीरी सेकुलर भाइयों’ के नाम पर रुके रहे। एक दिन तीन ‘सेकुलर’ आतंकी आए, परिवार को एक जगह बिठाया, और कहा कि सारे गहने-जेवर एक खाली सूटकेस में रख दें।
उन्होंने प्रेमी जी को कहा कि वो सूटकेस ले लें, और उनके साथ आएँ। घरवाले जब रोने लगे तो उन्होंने कहा, “अरे! हम प्रेमी जी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाएँगे। हम उन्हें वापस भेज देंगे।” 27 साल के बेटे वीरेन्द्र ने कहा कि पिता को अँधेरे में वापसी में समस्या होगी, तो वो साथ जाना चाहता है। “आ जाओ, अगर तुम्हारी भी यही इच्छा है तो!” दो दिन बाद दोनों की लाशें मिलीं। तिलक करने की जगह को छील कर चमड़ी हटा दी गई थी। पूरे शरीर पर सिगरेट से जलाने के निशान थे, हड्डियाँ तोड़ दी गईं थीं। पिता-पुत्र की आँखें निकाल ली गईं थीं। फिर दोनों को रस्सी से लटकाया गया था, और उनकी मृत्यु सुनिश्चित हो, इसके लिए गोली भी मारी गई थी।
मुजू और दो अन्य लोगों को मुसलमान आतंकियों ने किडनैप किया और कहा कि कुछ लोगों को खून की जरूरत है, तो उन्हें चलना होगा। आतंकियों ने उनके शरीर का सारा खून बहा दिया और उनकी मृत्यु हो गई। 9 जुलाई 1990 को हृदय नाथ और राधा कृष्ण के सर कटे हुए मिले। 26 जून 1990 को बी एल रैना जब अपने परिवार को जम्मू लाने के लिए कश्मीर जा रहे थे, तो मुसलमान आतंकियों ने घेर कर मार दिया। 3 जून को, आतंकियों ने उनके पिता दामोदर सरूप रैना की हत्या घर में घुस कर की थी। उन्होंने पड़ोसियों से मदद माँगी, मुसलमान ही थे, नहीं आए।
अशोक सूरी के भाई को गलती से मुसलमान आतंकियों ने उठा लिया। उसे खूब पीटा, टॉर्चर किया और पूरे शरीर को सिगरेट से जलाने के बाद, अधमरे हो जाने पर, बताया कि वो तो उसके भाई के मारना चाहते थे। उसे छोड़ दिया गया। वो किसी तरह घर पहुँच कर भाई को भाग जाने की सलाह देने लगे। भाई ने सलाह नहीं मानी। आधी रात को वो आतंकी घर में आए, लम्बे चाकू से गर्दन काटी और मरने छोड़ कर चले गए।
सोपोर के चुन्नी लाल शल्ला इंस्पेक्टर थे। कुपवाड़ा में पोस्टिंग होने पर उन्होंने दाढ़ी बढ़ा रखी थी कि उन्हें आतंकी पहचान न सकें। एक दिन आतंकी खोजते हुए आए और उन्हें पहचान नहीं पाए, और वापस जाने लगे। उनके साथ ही एक मुसलमान सिपाही भी काम करता था। उसने आतंकियों को वापस बुलाया और बताया कि दाढ़ी वाला ही शल्ला हैं। आतंकी कुछ करते उस से पहले उनके मुसलमान सहकर्मी ने छुरा निकाला और पूरा दाहिना गाल चमड़ी सहित छील दिया। चुन्नी लाल अवाक् रह गए। तब मुसलमान सिपाही ने कहा, “अबे सूअर! तेरे दूसरे गाल पर भी जमात-ए-इस्लामी वाली दाढ़ी नहीं रखने दूँगा।” फिर छुरे से दूसरी तरफ भी काट दिया गया। उसके बाद आतंकियों के साथ मिल कर चुन्नी लाल के चेहरे पर हॉकी स्टिक से ताबड़तोड़ प्रहार किया गया और फिर आतंकियों ने कहा, “दोगले, तेरे ऊपर गोली बर्बाद नहीं करेंगे हम।” रक्त बहते रहने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
28 अप्रैल 1990 को भूषण लाल रैना के साथ जो हुआ वो मुसलमान आतंकियों की क्रूरता सटीक तरीके से बयान करता है। अगले दिन अपनी माँ के साथ घाटी छोड़ने की योजना थी, सामान बाँध रहे थे। मुसलमान आतंकियों की एक टोली आई और रैना के सर में नुकीला छड़ घोंप कर हमला किया। उसके बाद उन्हें खींच कर बाहर निकाला गया, कपड़े उतार कर एक पेड़ पर कीलें ठोंक कर लटकाने के बाद वो उन्हें तड़पाते रहे। भूषण बार-बार कहते रहे कि वो उन्हें गोली मार दें, आतंकियों ने इंतजार किया, गोली नहीं मारी।
25 जनवरी 1998 की रात को वन्धामा गाँव के 23 कश्मीरी हिन्दुओं की हत्या पूर्वनिर्धारित तरीके से की गई। एक बच्चा जो बच गया, उसने बताया कि मुसलमान आतंकी आर्मी की वर्दी में आए, चाय पिया, और अपने वायरलेस सेट पर संदेश का इंतजार करने लगे। जब खबर आ गई कि सारे कश्मीरी पंडितों के परिवार को एक साथ फँसा लिया गया है, तब एक साथ क्लासनिकोव रायफलों से उनकी नृशंस हत्या कर दी गई। उसके बाद हिन्दुओं के मंदिर तोड़ दिए गए और घरों में आग लगा दी गई।
अगर सिक्खों की बात करें तो कई सिक्खों को उनके परिवार के साथ 1990 से 1992 के बीच इसी क्रूरता से मारा गया। इनमें कई जम्मू कश्मीर पुलिस के सिपाही या अफसर भी शामिल थे। ऐसे ही 1989 से 1992 के बीच छः बार ईसाई मिशनरी स्कूलों पर मुसलमान आतंकियों ने बम धमाके किए।
ये कहानियाँ आज क्यों?
इन कहानियों को अभी कहने का मतलब क्या है? इन कहानियों को अभी कहने का मतलब मात्र यह है कि इसमें से 99% कहानियों के पात्रों का नाम आपको याद भी नहीं होगा। इसलिए, इन्हें इनके शीशे की तरह साफ दृष्टिकोण में मैं आपको बताना चाहता हूँ कि शाब्दिक भयावहता जब इतनी क्रूर है तो उनकी सोचिए जिनके साथ ऐसा हुआ होगा। ये किसी फिल्म के दृश्य नहीं हैं जहाँ नाटकीयता के लिए आरी से किसी को काटा जाता है, किसी की खोपड़ी में लोहे का रॉड ठोक दिया जाता है, किसी की आँखें निकाल ली जाती हैं, किसी के दोनों गाल चाकू से चमड़ी सहित छील दिए जाते हैं, किसी के तिलक लगाने वाले ललाट को चाकू से उखाड़ दिया जाता है…
ये सब हुआ है, और लम्बे समय तक हुआ है। इसमें वहाँ के वो मुसलमान भी शामिल थे, जो आतंकी नहीं थे, बल्कि किसी के सहकर्मी थे, किसी के पड़ोसी थे, किसी के जानकार थे। सर्वानंद कौल सोचते रहे कि उन्होंने तो हमेशा उदारवादी विचार रखे हैं, उन्हें कैसे कोई हानि पहुँचाएगा, लेकिन पुत्र समेत ऐसी हालत में मरे जिसे सोच कर रीढ़ की हड्डियों में सिहरन दौड़ जाती है।
ये आतंकी बनाम हिन्दू नहीं था, बल्कि ये मुसलमान बनाम गैर-मुसलमान था। आतंकी ही होते तो बाजार में घसीटे जा रहे लाश पर कोई मुसलमान कुछ बोलता, आतंकियों को घेरता, पत्थर ही फेंक देता। ऐसा नहीं हुआ। चार सौ सालों के इस्लामी शासन के बाद कश्मीर के गैर-मुसलमान सिमट कर 6% रह गए थे। 1990 की जनवरी से जो धार्मिक नरसंहारों का दौर चला और विभिन्न स्रोतों के मुताबिक तीन से आठ लाख कश्मीरी हिन्दू पलायन को मजबूर हुए।
आज शाहीन बाग के कुछ मुसलमान तख्तियाँ लिए उनके प्रति सहानुभूति जता रहे हैं। यह सहानुभूति नहीं है, यह अपने मतलब के लिए तिरंगे से ले कर राष्ट्रगान और संविधान पर थूकने वाले लोगों द्वारा चली गई एक बारीक चाल है। इनकी धूर्तता देखिए कि इनके पोस्टरों में कश्मीरी हिन्दुओं के लिए कथित सहानुभूति तो है, लेकिन जिन्होंने ऐसी नृशंस हत्याएँ की, उन मुसलमानों के लिए एक भी शब्द नहीं?
क्या कश्मीरी हिन्दू किसी उल्कापिंड के गिरने से कश्मीर छोड़ आए थे? क्या उनके मंदिरों पर उत्तरी कोरिया के इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइलों के नाभिकीय हथियारों से हमला हुआ था! क्या उनके घर दीवाली की पटाखेबाजी में जल गए थे? क्या उनके सिर में घुसा लोहे का रॉड किसी कश्मीरी भालाफेंक एथलीट का जैवलिन था? क्या भूषण रैना को पेड़ में कीलों से टाँगने की कोशिश रोम के लोगों ने की थी कि यह देखा जाए कि तीन दिन बाद पुनर्जीवित होता है कि नहीं?
तो वो लोग, जो स्वार्थ के कारण, आज कश्मीरी हिन्दुओं की पीड़ा बाँटने की कोशिश कर रहे हैं, कम से कम अपने गिरेबान में तो झाँके कि ये सब वो बस इसलिए कर रहे हैं क्योंकि शाहीन बाग से पहले एक खास विचारधारा के लोगों ने देश के कई हिस्सों में तो आगजनी और पत्थरबाजी की है, पेट्रोल बम फेंके हैं और कट्टे चला कर 19 लोगों की जानें ली हैं, उनसे देश का ध्यान हट जाए।
वो जानते हैं कि शाहीन बाग की नौटंकी करते रहने से जामिया नगर के बसों में लगाई गई आग को लोग भूल जाएँगे। लोग यह भी भूल जाएँगे कि वहाँ इस्लामी कट्टरपंथी संगठन PFI के 150 मुसलमान घुस आए थे। लोग यह भी भूल जाएँगे कि वहाँ ‘हिन्दुओं से आज़ादी’ के नारे लगे थे। लेकिन उन्हें भूलना नहीं चाहिए। वो तुम्हें ‘शाहीन बाग में आज ये हुआ’ दिखाते रहेंगे, लेकिन तुम जामिया नगर की आग, उत्तर प्रदेश में 19 मौतें, बंगाल में 250 करोड़ की प्रॉपर्टी के नुकसान, लखनऊ के परिवर्तन चौक की आगजनी, मस्जिदों से बाहर निकल कर पत्थरबाजी और पेट्रोल बम पर सवाल पूछते रहना। नहीं पूछोगे, तो ये वामपंथी मीडिया तुम्हें ही आतंकी बना कर भुना लेगी।
आपको इनकी दोगलई की दाद देनी चाहिए कि कश्मीर के दो-तीन नारे, जो विशुद्ध रूप से हिन्दुओं को भगाने के लिए ही बने थे, वो जामिया में लगते रहे, शाहीन बाग में लगते रहे, और इनकी हिम्मत इतनी बढ़ गई कि उन्होंने कश्मीरी हिन्दुओं की पीड़ा बाँटने के पोस्टर हाथ में ले लिए! ‘ला इलाहा इल्लिल्लाह’ और ‘आज़ादी‘ तो हिन्दुओं से घृणा दर्शाने के कश्मीरी नारे हैं। तुम वो नारे भी लगा रहे हो, और कश्मीरी हिन्दुओं का दुख बाँटने का भी दावा करते हो?
हम वापस आएँगे
आज हजारों कश्मीरी हिन्दुओं ने ये कहा है कि ‘हम वापस आएँगे’। लेकिन उनके ऐसा कहने भर से उनकी वापसी संभव नहीं हो जाती। वो अगर यह सोच रहे हैं कि शाहीन बाग के धूर्त प्रपंचियों की तरह उनके स्वागत में घाटी के मुसलमान तख्तियाँ ले कर खड़े मिलेंगे, तो यह उनकी मूर्खता है। सरकार ने कैम्प तो लगाए थे न इन हिन्दुओं के लिए, उस पर पत्थरबाजी किसने की?
ये वही मुसलमान हैं जिन्होंने अपने पड़ोसी बी के गंजू के चावल के कंटेनर में छिपे होने की बात घर छोड़ कर वापस जाते आतंकियों को बताई थी। और ऐसे पड़ोसियों ने एक बार नहीं, कई बार अपने पड़ोसी होने के इस धर्म को निभाया जब हिन्दुओं की हत्या करने आए मुसलमान आतंकियों को इन्होंने प्रत्यक्ष सहयोग से ले कर, मौन सहमति तक दी। इसलिए आप यह तो भूल ही जाएँ कि इस्लामी शासन के शुरुआत से ही गायब हुए संस्कृत को फारसी से बदल देने वाले लोगों की संतानें ‘स्वागतम्-स्वागतम्’ करती लाल चौक पर आएँगीं।
इनकी वापसी का रास्ता इतना आसान नहीं है। मुसलमानों का इतिहास और वर्तमान बड़ा ही स्पष्ट रहा है, जिस भी इलाके में ये बहुसंख्यक हैं, वहाँ अल्पसंख्यकों के लिए इनके पास घृणा के अलावा और कुछ नहीं। अगर सिर्फ मुसलमान ही रहे, तो भी इसी कश्मीर ने 16वीं शताब्दी में इन्हीं मुसलमानों को आपस ही में शिया, शाफी, और सूफी को प्रताड़ित करते देखा है। म्याँमार में बौद्धों को वहाँ के मुसलमानों ने हथियार उठाने पर मजबूर कर दिया! उदाहरण असंख्य हैं, इसलिए 95% से ज़्यादा मुस्लिम जनसंख्या वाले इस इलाके में हिन्दुओं को पुनर्स्थापित करना लगभग असंभव कार्य है।
अगर ये हिन्दू वापस जा कर, सर्वानंद कौल की तरह ‘सेकुलर’ राग गा कर, ये सोचने लगेंगे कि तीस साल में वहाँ के मुसलमानों में बदलाव आ गया होगा, और वो उनकी कविताएँ सुन कर भावुक हो जाएँगे, तो वो भूल जाएँ। भूल इसलिए जाएँ कि हिन्दुओं की सहिष्णुता और उदारवाद को इस्लामी आतंकियों ने सदियों से रौंदा है, उसका फायदा उठाया है। जैसा कि के के मुहम्मद कहते हैं कि भारत अगर एक धर्मनिरपेक्ष और शांत समाज है, जिसमें बीस करोड़ मुसलमान भी हैं, तो ये सिर्फ हिन्दुओं की वजह से है।
हिन्दुओं को वहाँ बसने के लिए पुराने तरीके त्यागने होंगे। उन्हें यह याद रखना होगा कि उनके मंदिरों पर जब लाउडस्पीकर लगे थे, और वहाँ से न सिर्फ इस्लामी शब्द कहे गए थे, बल्कि यह भी गूँज रहा था कि इनके मर्दों को जाने दो, हमें सिर्फ हिन्दू औरतें चाहिए। इन्होंने उन लड़कियों और स्त्रियों के साथ हर बार एक ही दुष्कृत्य किया है, और उसका पाप वहाँ के हर उस मुसलमान को ढोना ही पड़ेगा जो इस त्रासदी पर चुप रहता है।
शाहीन बाग की नौटंकीबाज़ मुसलमान औरतों को हर उस हिन्दू का नाम, उनकी हत्या की तारीख, उनकी हत्या का पूर्ण विवरण, हत्या का कारण और उनकी बहू-बेटियों की स्थिति के पोस्टर हाथ में ले कर पूरी दिल्ली में फैल जाना चाहिए और कहना चाहिए कि मुसलमानों के इन कुकर्मों के लिए उनका पूरा समुदाय शर्मिंदा है। अगर इससे एक डिग्री कम भी कुछ कर रहे हैं ये लोग, तो ये बस स्टंट है अपने पिछले पापों को छुपाने का।
मैं नहीं जानता कश्मीरी हिन्दू वापस कब जाएँगे, कैसे जाएँगे। लेकिन मैं यह बात अवश्य जानता हूँ कि कश्यप ऋषि की धरती पर, शारदा और शिव की भूमि पर, जबरन बसे हुए मुसलमान इन हिन्दुओं के लिए पलक-पाँवड़े तो नहीं बिछाएँगे। अगर ये सत्ता के संरक्षण में उस धरती पर कदम रख कर, अपने काष्ठगृहों को दोबारा उठाने की कोशिश करेंगे, तो हाथ में पेट्रोल बम और माचिस ले कर घूमते मुसलमान आतंकियों का कोई जत्था, उसे जलाने से बिलकुल नहीं हिचकेगा।
उन्हें यह याद रखना चाहिए कि जब उनकी बेटी को कोई खींच कर ले जाएगा, सामूहिक बलात्कार करने को बाद, बढ़ई की आरी से दो हिस्सों में काट देगा, और लाश दो जगह मिलेगी, तब सेना या पुलिस ये सब होने के बाद मदद को आएगी। क्योंकि सरकारी और न्यायिक प्रक्रिया तो इसी तरह से चलती है। लेकिन ऐसा होने ही न पाए, उसके लिए कश्मीरी हिन्दू क्या करेगा?
तब सवाल यह उठता है कि अगर वो इस बार भी पेट्रोल बम, माचिस, सरिया, क्लासनिकोव, चाकू और बमों से तुम्हारा स्वागत करते हैं, तो हिन्दू इस बार क्या करेगा ? मेरे ख्याल से वापस जाने वाले हिन्दुओं को इज़रायल के यहूदियों की कहानी पढ़नी चाहिए। विशेषत: द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वाली।
Photo from Harshad Ashodiya
કાશ્મીરનો ઇતિહાસ પંદર કે સોળમી સદીથી શરૃ થતો નથી, પરંતુ તે ઇતિહાસ ઓછામાં ઓછો ૭,૦૦૦ વર્ષ જૂનો છે
કવર સ્ટોરી – જયેશ શાહ
આજે એક એવી માન્યતા પ્રવર્તે છે કે કાશ્મીર પહેલેથી જ ઇસ્લામના પ્રભાવ અને પ્રભુત્વમાં હતું, પરંતુ એ વાત ઇતિહાસ સાથે બંધબેસતી નથી. આપણે હિન્દુઓ ઋષિપંચમીના દિવસે પ્રાચીન ભારતના સાત સર્વશ્રેષ્ઠ મહાન ઋષિઓની પૂજા-અર્ચના કરીએ છીએ. આ સાત મહાન ઋષિઓને આકાશના તારાસમૂહમાં ‘સપ્તર્ષિ‘નું સ્થાન આપીને આપણે કાયમ માટે અમર બનાવ્યા છે. તેઓમાંના એક એટલે કે ‘સર્વમાં શ્રેષ્ઠ‘ એવા મહર્ષિ કશ્યપ હતા જેઓ બ્રહ્માના માનસપુત્ર એવા મરીચિના પુત્ર હતા અને જટિલ ધર્મશાસ્ત્રોના માંધાતા હતા. તેઓ દક્ષ પ્રજાપતિની કન્યાઓને પરણ્યા હતા. તેમાંથી તેઓને સૌથી વધુ પ્રિય એવી અદિતિ હતી અને એમનાથી તેમને બાર આદિત્ય અને ઇન્દ્ર વગેરે દેવતાઓ થયા હતા.
ભૂગર્ભશાસ્ત્રીઓના મત પ્રમાણે તથા પ્રસિદ્ધ ઇતિહાસકારોના મત પ્રમાણે પૂર્વકાળમાં કાશ્મીરની ભૂમિ જળમય હતી જેને મહર્ષિ કશ્યપે પોતાના તેજથી સૂકવી નાખી હતી. નીલમત પુરાણમાં પણ ઉલ્લેખ મળે છે કે કાશ્મીરની ભૂમિ પહેલાં જળમાં ડૂબેલી હતી અને મહર્ષિ કશ્યપે તેને બહાર કાઢી હતી. અન્ય પુરાણોમાં એવો ઉલ્લેખ મળે છે કે એક વખત કાશ્મીરની ઘાટી જળમગ્ન થઈ ગઈ. તેણે એક મોટા સરોવરનું સ્વરૃપ લઈ લીધું. જગતનાં પ્રાણીઓની રક્ષા કાજે મહર્ષિ કશ્યપે આ પાણીને અનેક નદીઓ અને નાના-નાના જળસ્ત્રોતો દ્વારા વહાવી દીધું અને કાશ્મીરની ઘાટીને બચાવી લીધી હતી. બારમી સદીમાં થઈ ગયેલા કાશ્મીરના વિખ્યાત ઇતિહાસકાર કલ્હણે પણ ઈ.સ. ૧૧૪૮થી ૧૧૫૦ દરમિયાન તેમના દ્વારા સર્જન થયેલા ‘રાજતરંગિણી‘ નામના ગ્રંથમાં કાશ્મીરના આરંભથી લઈને અનેક રાજકીય અને ઊથલપાથલનો ઇતિહાસ દર્શાવ્યો છે. આ ઇતિહાસકારની નોંધમાંથી પ્રાપ્ત માહિતી મુજબ કાશ્મીર ઘાટીમાં સૌથી મોટું ઝરણું વહેતું હતું. અહીં મહર્ષિ કશ્યપનો નિવાસ હતો. કાશ્મીરના બારામુલા શબ્દ વરાહમૂલ પરથી ઉતરી આવ્યો છે. ચોથી-પાંચમી સદીમાં થઈ ગયેલ મહાકવિ કાલિદાસે પણ તેમના ગ્રંથોમાં કાશ્મીરની નૈસર્ગિક સમૃદ્ધિનો ખૂબ જ સુંદર રીતે ઉલ્લેખ કરેલો છે.
ગ્રીક ભૂગોળશાસ્ત્રી હેકાતાઓસીસે તેના લખાણમાં કાશ્મીર માટે તે સમયે ‘Kaspapyros‘ શબ્દ વાપર્યો હતો તથા ગ્રીક વિદ્વાન હેરોડોટસે એવું દર્શાવ્યું હતું કે ઇન્ડસ નદીના માર્ગને શોધતા શોધતા હું ‘Kaspapyros‘માં પહોંચી ગયો હતો. ‘Kaspapyros‘ એટલે ‘Kaspa-pyrus‘ એટલે કે કશ્યપપુર – આ શબ્દો કાશ્મીર માટે અન્ય ઇતિહાસકારો અને ભૂગોળશાસ્ત્રીઓએ તેમના લખાણમાં ઉલ્લેખ્યા છે.
આ તમામ હકીકતો જોતાં એક વાત તો સ્પષ્ટ થાય છે કે કાશ્મીરનો ઇતિહાસ પંદર કે સોળમી સદીથી શરૃ થતો નથી, પરંતુ તે ઇતિહાસ ઓછામાં ઓછો ૭,૦૦૦ વર્ષ જૂનો છે. ઇન્ડસવેલી સિવિલાઇઝેશનની શરૃઆતથી જ કાશ્મીરનું અસ્તિત્વ રહેલું છે એટલું તો સાબિત થઈ શકે તેમ છે. આજથી ૨૫૦૦ વર્ષ પૂર્વે કાશ્મીરમાં નીઓ-લિથીક સંસ્કૃતિ હતી તેવો ઉલ્લેખ ઇતિહાસકારોના ગ્રંથમાં મળી આવે છે. કાશ્મીરમાં હિન્દુઓના ઘણા ધર્મસ્થાનો એવા છે કે જેમનું અસ્તિત્વ ઇસ્લામની સ્થાપના થઈ તે પહેલાંનું છે. ઉદાહરણ તરીકે અનંતનાગ નજીક આવેલ માર્તન્ડ સૂર્ય મંદિર કે જેની સ્થાપના આજથી લગભગ ૧૩૦૦ વર્ષ પહેલાં થઈ હોવાના પુરાવા મળી આવે છે. તેવી જ રીતે પહેલગામ પાસે આવેલ મમલેશ્વર મહાદેવ મંદિરની સ્થાપના લગભગ ૧૬૦૦ વર્ષ પહેલાં થઈ હોવાની સાબિતીઓ ઇતિહાસકારોના ગ્રંથમાંથી મળી આવે છે. એટલે જે માન્યતા પ્રવર્તે છે કે કાશ્મીરમાં ઇસ્લામનું પ્રભુત્વ પહેલેથી જ છે તે વાત માત્ર માન્યતા જ છે. ભાટ, પંડિત અને રાઝદાન – આ ત્રણ મૂળ કાશ્મીરી અટકો છે. તેમાંથી વધુ ઊતરી આવી છે. આજે કાશ્મીરી હિન્દુઓમાં લગભગ ૧૯૯ ગોત્ર છે, પરંતુ તેમાં મહર્ષિ કશ્યપ ગોત્ર તથા દત્તાત્રેય અને ભારદ્વાજ મુખ્ય છે. આજની તારીખે મોટા ભાગના કાશ્મીરી મુસ્લિમો મૂળ કાશ્મીરી પંડિતો જ છે જેઓ મૂળ આ ત્રણ ગોત્રમાંથી જ ઊતરી આવે છે. કાશ્મીરી પંડિતોની અટકો જેવી કે ભાટ, ઝુત્સી, રૈના, ધાર કાશ્મીરી મુસ્લિમો ધરાવે છે તે એવું સ્પષ્ટ રીતે સૂચવે છે કે તેઓ મૂળ કાશ્મીરી પંડિતો જ હતા.
કાશ્મીરમાં હિન્દુઓનું સૌથી પ્રથમ સ્થળાંતર આજથી લગભગ ૭૦૦ વર્ષ અગાઉ થયું હતું. તે સમયે તુર્કિશ તાર્તાર દ્વારા કાશ્મીરમાં બેફામ લૂંટ ચલાવાઈ હતી અને હજારો લોકોની કતલ કરીને મહિલાઓ સાથે દુર્વ્યવહાર કરવામાં આવ્યો હતો. એવું કહેવાય છે કે તે તેની સાથે ૨૦,૦૦૦ હિન્દુઓને લઈ ગયો હતો, પરંતુ તુર્કસ્તાન પહોંચતા પહેલાં સખત ઠંડીના કારણે તમામ મૃત્યુ પામ્યાં હતાં. ત્યાર બાદ બીજું સ્થળાંતર ઈ.સ. ૧૩૭૫ની આસપાસ થયું હતું. તે સમયે કુતબુદ્દીને લગભગ ૫૦,૦૦૦ કાશ્મીરી પંડિતોને ઇસ્લામ અંગીકાર કરવા ફરજ પાડી હતી. ઈ.સ. ૧૩૭૫થી ૧૪૧૫ના સમયગાળામાં હિન્દુઓને બહુ જ સહન કરવું પડ્યું હતું અને આ સમયગાળા દરમિયાન બહુ મોટા પ્રમાણમાં અત્યાચાર ગુજારીને હિન્દુઓને ઇસ્લામ સ્વીકારવા મજબૂર કરી દીધા હતા. ઘણા હિન્દુઓ કાશ્મીરમાંથી સ્થળાંતર કરીને દેશના અન્ય પ્રાંતોમાં સ્થાયી થયા હતા. આ સમયગાળાથી કાશ્મીર ખીણમાં ઇસ્લામનો દબદબો થવા માંડ્યો હતો.
ઈ.સ. ૧૪૧૫ પછી થોડાં વર્ષો ખીણમાં શાંતિ રહી અને સૌહાર્દ જળવાઈ રહ્યો, પરંતુ સો વર્ષ પછી ઈ.સ. ૧૫૧૫ પછી ફરી એક વખત હિન્દુઓ ઉપર વ્યાપક અત્યાચાર શરૃ થયા અને તે સમયે લગભગ ૨૫,૦૦૦ કાશ્મીરી પંડિતોને ઇસ્લામ અંગીકાર કરવા ફરજ પાડવામાં આવી હતી. આ સમય દરમિયાન જેઓ ઇસ્લામ અંગીકાર ન કરે તેઓને અન્ય પ્રાંતમાં ભાગી જવા દેવામાં નહોતા આવતા અને તેઓના માથા ધડથી અલગ કરી દેવામાં આવતા હતા. દરરોજ ૧૦૦૦ ગાયોની કતલ કરવામાં આવતી હતી કારણ એક જ હતું કે ગાયો હિન્દુઓ માટે ખૂબ જ પવિત્ર હતી.
ત્યાર બાદ મોગલ સમ્રાટ અકબરના સમયમાં (ઈ.સ. ૧૫૫૬-૧૬૦૫) શાંતિ અને સૌહાર્દ જળવાયા, પરંતુ તે બહુ લાંબો સમય ન ટક્યા. ઈ.સ. ૧૬૭૧થી ૧૬૭૫ના પાંચ વર્ષ દરમિયાન ફરી એક વખત કાશ્મીરી પંડિતો ઉપર ખૂબ જ અત્યાચાર ગુજારવામાં આવ્યા અને ઇસ્લામ અંગીકાર કરાવવામાં આવ્યો. આ સમય દરમિયાન કાશ્મીરી પંડિતોનું તથા અન્ય હિન્દુઓનું ત્રીજું સ્થળાંતર થયું. અફઘાન શાસન દરમિયાન એટલે કે ઈ.સ. ૧૭૫૩થી ૧૮૨૦ દરમિયાન ચોથું સ્થળાંતર થયું. ૧૮૪૬થી ડોગરા શાસન શરૃ થયું અને કાશ્મીરમાં હિન્દુઓ માટે મોગલ સમ્રાટ અકબર બાદ શાંતિના દિવસો ફરી એક વખત શરૃ થયા. ત્યાર પછીનો ઇતિહાસ આપણે સૌ જાણીએ છીએ.
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અભિયાન મેગેઝીન
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख होंगे देश के दो सबसे बड़े केंद्र शासित प्रदेश..
जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव के लागू होने पर क्षेत्रफल के लिहाज से जम्मू-कश्मीर के बाद लद्दाख देश का दूसरा सबसे बड़ा केंद्र शासित प्रदेश होगा। जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के कई प्रावधानों को केंद्र सरकार द्वारा निष्प्रभावी घोषित किए जाने के साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने संबंधी विधेयक को राज्यसभा में मंजूरी मिल गई। केंद्र शासित प्रदेश बनने के साथ ही अब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या भी बढ़कर 107 से 114 हो जाएगी।
लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने की मांग काफी समय से चल रही थी। केंद्र शासित प्रदेशों की फेहरिस्त में दो नए राज्य जुड़ने का मार्ग प्रशस्त होने के बाद अब केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या 9 हो जाएगी। इनमें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के अलावा दिल्ली, पुदुचेरी, दमन और दीव, दादर एवं नगर हवेली, चंडीगढ़, लक्षद्वीप और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं।
मौजूदा समय में सिर्फ दिल्ली और पुदुचेरी में विधानसभा हैं, लेकिन अब जम्मू-कश्मीर भी विधानसभा वाला तीसरा केंद्र शासित प्रदेश हो जाएगा। विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल की जगह उपराज्यपाल होते हैं। वहीं, केंद्र शासित प्रदेशों से संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के लिए सदस्य भी चुने जाते हैं। वह बात अलग है कि इनकी संख्या हर राज्य में अलग-अलग होती है। सांसदों की संख्या के लिहाज से दिल्ली नबंर एक पर है। संसद में दिल्ली का प्रतिनिधित्व 7 लोकसभा और 3 राज्यसभा सदस्य करते हैं।
संजय द्विवेदी