यह हमारे नाई (हज्जाम) हैं। इनका नाम छोटे है। सारे गांव के यही नाउ हैं। घर पर आकर दाढ़ी बनाते हैं। जिनके पास अधिक जमीन है वो इन्हें हर साल फसल कटने पर 50 किलो अनाज, जिनके पास कम जमीन है वो उसके अनुसार 25-40 किलो अनाज देते हैं।
जिनके पास जमीन नहीं है वो इनको पैसे देते हैं। अभी इनकी बड़ी बेटी का विवाह हुआ, उसमें समूचे गांव ने अपनी सुविधानुसार धन, कपड़े, अनाज एवं अन्य व्यवस्था से मदद की। बहुत अच्छे से बेटी का विवाह संपन्न हो गया।
इनके बिना किसी ब्राहण, भूमिहार, राजपूत अर्थात किसी सवर्ण के घर में बच्चे का जन्म/ मुंडन/ उपनयन/विवाह/मृत्यु आदि का संस्कार संपन्न नहीं हो सकता। जाति व्यवस्था में इनकी शुद्धता और इनकी भूमिका ब्राह्मणों के बराबर है। जिनके भी यहां संस्कार कर्म होता है, वो इनकी हर मांग को इच्छानुरूप पूरा करते हैं।
यह थी हमारी जाति व्यवस्था, जो समाज के अन्नयोनाश्रित संबंधों पर आधारित था, न कि शोषण पर। इनका शोषण मुगलों/ब्रिटाशर्स और स्वतंत्रता के बाद के आरक्षणवादी नेताओं व राजनीतिक पार्टियों ने किया है, कैसे सुनिए इन्हीं की जुबानी।
परंतु उससे पहले 10वीं-11वीं सदी में महमूद गजनवी के साथ आए अल बरूनी ने जो लिखा है, उसे पढ़िए ताकि आप जान जाएं कि आक्रांताओं से पूर्व भारत की जाति व्यवस्था कैसी थी? अलबरूनी ने लिखा है, “हिंदुओं में चार जातियां थीं, किंतु कोई अस्पृश्यता नहीं थी।” अल बरूनी के शब्दों में, ‘इन जातियों में जो विभिन्नताएं हों, किंतु वे नगरों और गांवों में, समान घरों, बस्तियों में साथ-साथ रहते हैं।’
अब छोटे नाई पर लौटते हैं। छोटे के अनुसार ‘इनका व्यवसाय तो अब छिन ही रहा है, इनके परिवार को आरक्षण का कोई लाभ भी नहीं मिला है।’ इनके अनुसार ‘आरक्षण का लाभ भी जाति के संपन्न और मजबूत लोगों को ही मिलता है।’ अर्थात् आरक्षणवादी व्यवस्था ने अभी तक छोटे जैसे लोगों और उनके परिवार को ठीक से शिक्षित तक नहीं किया, लाभ देना तो दूर की बात है! हां आरक्षणवादी नेता जरूर इनके वोट से सत्ता की मलाई खाते और सुख-सुविधा संपन्न VIP बनते और विद्वेष आधारित एक नये कल्चर का निर्माण करते चलते गये।
बाबा साहेब आंबेडकर को यह आशंका थी, इसीलिए उन्होंने आरक्षण व्यवस्था में तीन शर्तें जोड़ी थी:- १) 10 साल में यह समीक्षा हो कि जिन्हें आरक्षण दिया गया, क्या उनकी स्थिति में कोई सुधार हुआ या नहीं? २) यदि आरक्षण से किसी वर्ग का विकास हो जाता है तो उसके आगे की पीढ़ी को आरक्षण का लाभ नहीं देना चाहिए। ३) आरक्षण को वैशाखी न समझा जाए। यह केवल सहारा है।
क्या आज का कोई नेता या राजनीति पार्टी जो आंबेडकर की मूर्तियां बनाकर लोगों को मूर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं, बाबा साहब के कहे एक भी शर्त को माना है कभी? भीमराव अम्बेडकर के विचारों के सबसे बड़े हत्यारे तो भारत के नेता और राजनीतिक पार्टियां हैं!
अब देखिए क्या-क्या इन पोलिटिकल हत्यारों ने हिंदू समाज के साथ किया?
जाति व्यवस्था को तोड़ कर हमारे सभी जातिगत व्यवसाय म्लेच्छों को सौंपने और हिंदुओं को लड़ाने का बड़ा षड्यंत्र किया। आज हमारे छोटे नाई के पूरे व्यवसाय पर म्लेच्छों का कब्जा है। दिल्ली जैसे महानगर में एक भी हिंदू नाई नहीं मिलता! ऐसे ही अन्य जातिगत व्यवसायों के साथ भी हुआ है।
इसका प्रभाव क्या पड़ा?
हिंदू लड़ते रहे, अपना जातिगत व्यवसाय खोते रहे, जाति के VIP नेता, नौकरशाह, सामंत व लठैत आरक्षण का असीमित लाभ लेते रहे, प्रतिभा का पलायन होता रहा, IIM/IIT का ड्रॉप आउट रेट बढ़ता रहा, म्लेच्छों को फायदा मिलता रहा, हमारे प्रतिभा पलायन से विदेशी कंपनियां आगे बढ़ती रहीं, हम अब विदेशी विश्वविद्यालय यहां खोलते के लिए कतार लगाते रहे, धर्मांतरण का धंधा बढ़ता रहा, एक दिन पूरा हिंदू समाज समाप्त हो जाएगा, फिर हमारे नेता चिल्लाएंगे, देखो ‘वन वर्ल्ड-वन रिलीजन’ के रूप में हमने शोषण समाप्त कर समानता स्थापित कर दिया।
…और मूर्ख हिंदू आज की ही तरह पुनः इनका दरी बिछाने, झंडा उठाने और नारा लगाने के धंधे पर लगा दिए जाएंगे!
#sandeepdeo
Category: आरक्षण
रविदास जी तो कृष्ण भक्त थे, रविदास जी के गुरु ब्राह्मण और रविदास की शिष्य राजपूत मीराबाई अब बताओ किधर से जातिवाद????
प्राचीन काल में मनुष्य के जात-पात का निर्धारण
मनुष्य के गुण और कर्म के आधार पर होता था।जैसा कि शास्त्रों में वर्णित है।
जैसे कि —–
#कोई भी मनुष्य कुल और जाति के कारण ब्राह्मण नहीं हो सकता। यदि चंडाल भी सदाचारी है तो ब्राह्मण है। [महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 226]
#जो ब्राह्मण दुष्ट कर्म करता है, वो दम्भी पापी और अज्ञानी है उसे शुद्र समझना चाहिए। और जो शुद्र सत्य और धर्म में स्थित है उसे ब्राह्मण समझना चाहिए। [महाभारत वन पर्व अध्याय 216/14]
#शुद्र यदि ज्ञान सम्पन्न हो तो वह ब्राह्मण से भी श्रेष्ठ है और आचार भ्रष्ट ब्राह्मण शुद्र से भी नीच है। [भविष्य पुराण अध्याय 44/33]
#ब्राह्मणी_के गर्भ से उत्पन्न होने से, संस्कार से, वेद श्रवण से अथवा ब्राह्मण पिता कि संतान होने भर से कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता ।
अपितु सदाचार से ही मनुष्य ब्राह्मण बनता है। [महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 143]
#इसके_अतिरिक्त —
शूद्रों के पठन-पाठन के विषय में लिखा है कि
दुष्ट कर्म न करने वाले का उपनयन अर्थात (विद्या ग्रहण) करना चाहिए। [गृहसूत्र कांड 2 हरिहर भाष्य]।
#कूर्म पुराण में शुद्र कि वेदों का विद्वान बनने का वर्णन इस प्रकार से मिलता है। वत्सर के नैध्रुव तथा रेभ्य दो पुत्र हुए तथा रेभ्य वेदों के पारंगत विद्वान शुद्र पुत्र हुए। [कूर्मपुराण अध्याय 19]
#इसके_अलावा मैं आपको वैदिक-शास्त्रो से ऐसे हजारो सूक्त श्लोक मंत्र दे सकती हूँ जो ये सिद्ध करते है कि शूद्र कोई एक जाति नहीं।
वरन कर्म के आधार पर एक वर्गीकरण था ।।
#अब_प्रश्न_ये आता है कि फिर शूद्र है कौन ??अस्पृश्यता क्यों ??
उन्हें वैदिक कर्मों से दूर रखने को क्यों कहा गया है ??–
#यजुर्वेद_में आता है “तपसे शूद्रं [यजुर्वेद 30/5]” अर्थात श्रम अर्थात मेहनत से अन्न आदि को उत्पन्न करने वाला तथा शिल्प आदि कठिन कार्य आदि का अनुष्ठान करने वाला शुद्र है। तप शब्द का प्रयोग अनंत सामर्थ्य से जगत के सभी पदार्थों कि रचना करने वाले ईश्वर के लिए वेद मंत्र में हुआ है।
#शूद्र_नहीं_शूद्र_अवस्था –
वेदों में स्पष्ट रूप से पाया गया कि शूद्रों को वेद अध्ययन का अधिकार स्वयं वेद ही देते है। वेदों में ‘शूद्र’ शब्द लगभग बीस बार आया है। कहीं भी उसका अपमानजनक अर्थों में प्रयोग नहीं हुआ है ।और वेदों में किसी भी स्थान पर शूद्र के जन्म से अछूत होने ,उन्हें वेदाध्ययन से वंचित रखने, अन्य वर्णों से उनका दर्जा कम होने या उन्हें यज्ञादि से अलग रखने का उल्लेख नहीं है।
#शूद्र_अवस्था की यदि बात करे तो —
ब्राह्मण भी बिना संस्कार कर्म के शूद्र है।
उसे कोई भी धार्मिक अनुष्ठान की अनुमति नहीं है …
#जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत द्विजः।
वेद पाठात् भवेत् विप्रःब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।।
अर्थात् –
व्यक्ति जन्मतः शूद्र है। संस्कार से वह द्विज बन सकता है। वेदों के पठन-पाठन से विप्र हो सकता है। किंतु जो ब्रह्म को जान ले, वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।
#मांस_खाने वाले लोग बेहद ही घृणित माने जाते थे ।
इस कर्म को करने या उससे जुड़ने वाले लोग भी घृणित माने जाते थे —
अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी
संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातकाः
मनुस्मृति 5/51
अर्थात् –
मारने की आज्ञा देने वाला, पशु को मारने के लिए लेने वाला, बेचने वाला, पशु को मारने वाला,
मांस को खरीदने और बेचने वाला, मांस को पकाने वाला और मांस खाने वाला यह सभी हत्यारे हैं |
#इसके_अलावा रजस्वला स्त्री को चाहे वो ब्राह्मणी क्यों न हो,,
उसे वैदिक कर्म करना निषेध माना गया है । हालांकि, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है।
#उपरोक्त_सभी बातें सिद्ध करती है कि शूद्र एक कर्म आधारित वर्गीकरण था और शूद्र अवस्था सब पर लागू थी।
चाहे वो ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, वैश्य हो या फिर शूद्र ।।
शूद्र अवस्थाओं में निम्न कर्म करते हुए ,,आप कोई वैदिक कर्म नहीं कर सकते थे …. उदहारण जैसे आज भी बिना नहाए हम कोई पूजा नहीं करते या बिना हाथ धुले भोजन नहीं करते।।
#विशेष – विद्वान लोग भली प्रकार से जानते हैं कि जिस प्रकार से शरीर का कोई एक अंग प्रयोग में न लाने से बाकि अंगों को भली प्रकार से कार्य करने में व्यवधान डालता हैं ।।
उसी प्रकार से समाज का कोई भी व्यक्ति बेकार होने से सम्पूर्ण समाज को दुखी करता है। सब भली प्रकार से जानते हैं कि भिखारी, चोर, डाकू, लूटमार आदि करने वाले समाज पर किस प्रकार से बोझ है??
इससे यही सिद्ध होता है कि वर्ण व्यवस्था का मूल उद्देश्य समाज में गुण, कर्म और स्वभाव के अनुसार विभाजन है।
वर्ण- परिवर्तन के कुछ उदहारण –
(1) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे ।परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की। ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है।
(2) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे । जुआरी और हीन चरित्र भी थे । परन्तु बाद मेंउन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये।ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया । (ऐतरेय ब्राह्मण 2.19)
(3) सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे ।परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए ।
(4) राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे।
प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया । (विष्णु पुराण 4/1/14)
(5) राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए । पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया । (विष्णु पुराण 4/1/13)
(6) धृष्ट नाभाग के पुत्र थे।।
परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया । (विष्णु पुराण 4/2/2)
(7) आगे उन्हीं के वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए । (विष्णु पुराण 4/2/2)
(8) भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए ।
(9) विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने ।
(10) हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मण हुए । (विष्णु पुराण 4/3/4)
(11) क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया । (विष्णु पुराण 4/8/1) वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए। इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्यके उदाहरण हैं ।
(12) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने ।
(13) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना ।
( 14) राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ ।
(15) त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे ।
(16) विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्रवर्ण अपनाया ।
विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे ,,
परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया ।
(17) विदुर दासी पुत्र थे । तथापि वे ब्राह्मण हुए
और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया ।
ऐसे बहुत से उदाहरण है ।
जो यह प्रमाणित करता है कि प्राचीन काल में मनुष्य के जात-पात का निर्धारण मनुष्य के गुण, व्यवहार, आचरण और उत्तम और निकृष्ट कोटि के कर्म के अनुसार निर्धारित होता था।
किन्तु, सैकड़ों वर्षों तक मुस्लिमों तथा अंग्रेजों की गुलामी करते करते भारतवासी
गुलामी-मानसिकता के रोग से ग्रस्त हो चुके हैं।
इसलिए अब जन्म के आधार पर मनुष्य के जात-पात का निर्धारण करके अपने ही सत्य शाश्वत सनातन धर्म इतिहास और संस्कृति अर्थात् हिन्दू धर्म का नाश करने पर तुले हुए हैं।।
जय जय श्री राम
सौजन्य :
अभिषेक कुमार
एक जमाना था .. कानपुर की “कपड़ा मिल” विश्व प्रसिद्ध थीं कानपुर को “ईस्ट का मैन्चेस्टर” बोला जाता था।
लाल इमली जैसी फ़ैक्टरी के कपड़े प्रेस्टीज सिम्बल होते थे. वह सब कुछ था जो एक औद्योगिक शहर में होना चाहिए।
मिल का साइरन बजते ही हजारों मज़दूर साइकिल पर सवार टिफ़िन लेकर फ़ैक्टरी की ड्रेस में मिल जाते थे। बच्चे स्कूल जाते थे। पत्नियाँ घरेलू कार्य करतीं । और इन लाखों मज़दूरों के साथ ही लाखों सेल्समैन, मैनेजर, क्लर्क सबकी रोज़ी रोटी चल रही थी।
__________________________
फ़िर “कम्युनिस्टो” की निगाहें कानपुर पर पड़ीं..
तभी से….बेड़ा गर्क हो गया।
“आठ घंटे मेहनत मज़दूर करे और गाड़ी से चले… मालिक।”
यह बर्दास्त नही होगा।
ढेरों हिंसक घटनाएँ हुईं,
मिल मालिक तक को मारा पीटा भी गया।
नारा दिया गया
“काम के घंटे चार करो, बेकारी को दूर करो”
अलाली किसे नहीं अच्छी लगती है. ढेरों मिडल क्लास भी कॉम्युनिस्ट समर्थक हो गया। “मज़दूरों को आराम मिलना चाहिए, ये उद्योग खून चूसते हैं।”
कानपुर में “कम्युनिस्ट सांसद” बनी सुभाषिनी अली । बस यही टारगेट था, कम्युनिस्ट को अपना सांसद बनाने के लिए यह सब पॉलिटिक्स कर ली थी ।
________________________
अंततः वह दिन आ ही गया जब कानपुर के मिल मज़दूरों को मेहनत करने से छुट्टी मिल गई। मिलों पर ताला डाल दिया गया।
मिल मालिक आज पहले से शानदार गाड़ियों में घूमते हैं (उन्होंने अहमदाबाद में कारख़ाने खोल दिए।) कानपुर की मिल बंद होकर भी ज़मीन के रूप में उन्हें (मिल मालिकों को) अरबों देगी। उनको फर्क नहीं पड़ा ..( क्योंकि मिल मालिकों कभी कम्युनिस्ट के झांसे में नही आए !)
कानपुर के वो 8 घंटे यूनिफॉर्म में काम करने वाला मज़दूर 12 घंटे रिक्शा चलाने पर विवश हुआ .. !! (जब खुद को समझ नही थी तो कम्युनिस्ट के झांसे में क्यों आ जाते हो ??)
स्कूल जाने वाले बच्चे कबाड़ बीनने लगे…
और वो मध्यम वर्ग जिसकी आँखों में मज़दूर को काम करता देख खून उतरता था, अधिसंख्य को जीवन में दुबारा कोई नौकरी ना मिली। एक बड़ी जनसंख्या ने अपना जीवन “बेरोज़गार” रहते हुए “डिप्रेशन” में काटा।
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“कॉम्युनिस्ट अफ़ीम” बहुत “घातक” होती है, उन्हें ही सबसे पहले मारती है, जो इसके चक्कर में पड़ते हैं..!
कॉम्युनिज़म का बेसिक प्रिन्सिपल यह है :
“दो क्लास के बीच पहले अंतर दिखाना, फ़िर इस अंतर की वजह से झगड़ा करवाना और फ़िर दोनों ही क्लास को ख़त्म कर देना”

एक प्रश्न ….सोच समझ कर उत्तर दीजियेगा… ..
अच्छा बताइए ब्राह्मणों के अत्याचार काल में शूद्र कहाँ से पानी पीते थे ???
और अगर उनके कुएं थे तो उन्हें ब्राह्मणो के कुएं से पानी क्यों पीना था ???
यदि कुएं नहीं थे तो उन्होंने खोदे क्यों नही ???
और ब्राह्मणों के कुएं किसने खोदे ???
यदि ब्राह्मणों ने खोदे तो ये झूठ फैलाया गया है कि सिर्फ दलितों से मेहनत कराई जाती थी…..!
और यदि दलितों ने खोदे तो भला दलितों ने अपने कुएं क्यों नहीं खोद लिए ???
यदि इतना ही छुआछूत का प्रभाव था तो दलितों द्वारा खोदे कुओं से ब्राह्मण कैसे पानी पी लेते थे ???
उधेड़बुन में न फंसिए इस वामपंथी इतिहास में ……अपनी अक्ल लगाइए !
अंग्रेंजो की नीति थी ‘फूट डालो शासन करो’
और देश का दुर्भाग्य है भाषा से लेकर शिक्षा तक उन्ही की दी जा रही है ….!
किसी दूसरे के बरगलाने में मत आईये … भटकिये मत हम हमेशा से एक दूसरे के पूरक रहे हैं…..जब से ये विदेशी आए हैं तभी से यह भेदभाव साजिशन बढ़ाया गया है ‘फूट डालो राज करो’ की नीति के तहत …!
हम सब हिन्दू एक है….. सभी एकजुट होकर देश व अपने बच्चों का भविष्य बचाने के लिए कार्य करें …..और उस प्राचीन गरिमामयी “भारत देश ” को पुनः जीवंत करें …..!! 👍👍💕💕
हैमिलटन बुचनन की ये पुस्तक 1807 में पब्लिश हुई थी।
हैमिलटन बुचनन की ये पुस्तक 1807 में पब्लिश हुई थी।
1799 में टीपू को हराने के बाद 1800 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनको ईस्ट इंडिया के अधिकार क्षेत्र में दौरा करके उस क्षेत्र की कृषि, मैन्युफैक्चरिंग, जलवायु , जियोग्राफी, का विस्तार पूर्वक वर्णन करने का कॉन्ट्रैक्ट दिया था।
अभी प्रथम वॉल्यूम का 52 पेज तक पढा है।
वर्ण को वो pure Caste के नाम से संबोधित करते हैं।
पेज 29 पर वेलोर से पिलिगोंडा नामक स्थान की यात्रा का वर्णन है। जहां 1 मई 1800 को पिलिगोंडा मंदिर में एक शोभा यात्रा निकाली गई, बुचनन की आंख के सामने, जिसमे उज़को सीखने को मिला कि उस शोभायात्रा में ब्राम्हण वैश्य और शूद्र वर्ण (Pure Caste) के लोग सम्मिलित हुए। क्षत्रिय उस शोभा यात्रा में नही थे क्योंकि वे समूल नष्ट हो चुके थे। ( हेमिल्टन ने उनको messanger, robbers, और warriors) में बांटा है)
पेज 29 पर लिखा कि इस्पात का निर्माण Malawanalu समुदाय द्वारा किया जाता है, जिनको मद्रास के निवासी उनके तिलंग भाषा में पेरियार कहते हैं।
पेज 35 पर क्षारीय मिट्टी से नमक बनाने की तकनीक का वर्णन है। ( आधुनिक नमक निर्माता इस तकनीक को आज तक नही खोंज पाये)।
पेज 39 और 40 में वलुरु नामक साप्ताहिक बाजार में गांव गांव में बनने वाले कपड़ो के निर्माण का वर्णन है। जिसमें दो किस्म के कपड़े बनाये जाते थे। मोटे कपड़े देश मे प्रयोग हेतु , और महीन कपड़े विदेश में एक्सपोर्ट करने हेतु, जो व्यापारियों से एडवांस मिलने पर निर्मित किय्ये जाते थे।
पेज 52 पर लिखता है कि हुक्का सिर्फ मुसलमान पीते थे। बीड़ी लोग पीते हैं, लेकिन यदि किसी ब्राम्हण ने बीड़ी पिया तो उसको जात बाहर कर दिया जाएगा।
और धनी शूद्रों में भी यह अच्छा नही माना जाता है।
अभी तक अछूतपन का वर्णन एक बार भी नही आया है।
छोटे तबके, और बड़े तबके की बात अवश्य लिखी है।
लेकिन वो तो अनादिकाल से हर देश और समुदाय में रहे हैं और रहेंगे।
दलित चिन्तक #Karls #बॉयज एंड #गर्ल्स इस रहस्य को समझाएं।
इकॉनोमिक हिस्ट्री तो सबको मुंहजबानी याद ही है।
भारत के बुद्धुजीवियों जिन कारणों से संविधान में कास्ट को समाहित किया गया वह तुम जानते ही होंगे।
संविधान के निर्माता ब्रिटिश एडुकेटेड इनोसेंट इडियट इंडियन बरिस्टर्स (BEIIBS) यदि इन तथ्यों को पढ़ लेते तो आत्महत्या कर लेते।
क्या महर्षि मनु जातिवाद के पोषक थे?
मनुस्मृति जो सृष्टि में नीति और धर्म (कानून) का निर्धारण करने वाला सबसे पहला ग्रंथ माना गया है उस को घोर जाति प्रथा को बढ़ावा देने वाला भी बताया जा रहा है। आज स्थिति यह है कि मनुस्मृति वैदिक संस्कृति की सबसे अधिक विवादित पुस्तक बना दी गई है | पूरा का पूरा दलित आन्दोलन मनुवाद’ के विरोध पर ही खड़ा हुआ है। ध्यान देने वाली बात यह है कि मनु की निंदा करने वाले इन लोगों ने मनुस्मृति को कभी गंभीरता से पढ़ा भी नहीं है। स्वामी दयानंद द्वारा आज से 140 वर्ष पूर्व यह सिद्ध कर दिया था की मनुस्मृति में मिलावट की गई है। इस कारण से ऐसा प्रतीत होता है कि मनुस्मृति वर्ण व्यवस्था की नहीं अपितु जातिवाद का समर्थन करती है। महर्षि मनु ने सृष्टि का प्रथम संविधान मनु स्मृति के रूप में बनाया था। कालांतर में इसमें जो मिलावट हुई उसी के कारण इसका मूल सन्देश जो वर्णव्यवस्था का समर्थन करना था के स्थान पर जातिवाद प्रचारित हो गया।
मनुस्मृति पर दलित समाज यह आक्षेप लगाता है कि मनु ने जन्म के आधार पर जातिप्रथा का निर्माण किया और शूद्रों के लिए कठोर दंड का विधान किया और ऊँची जाति विशेषरूप से ब्राह्मणों के लिए विशेष प्रावधान का विधान किया।
मनुस्मृति उस काल की है जब जन्मना जाति व्यवस्था के विचार का भी कोई अस्तित्व नहीं था | अत: मनुस्मृति जन्मना समाज व्यवस्था का कही पर भी समर्थन नहीं करती | महर्षि मनु ने मनुष्य के गुण- कर्म – स्वभाव पर आधारित समाज व्यवस्था की रचना कर के वेदों में परमात्मा द्वारा दिए गए आदेश का ही पालन किया है (देखें – ऋग्वेद-१०.१०.११-१२, यजुर्वेद-३१.१०-११, अथर्ववेद-१९.६.५-६) |
यह वर्ण व्यवस्था है। वर्ण शब्द “वृञ” धातु से बनता है जिसका मतलब है चयन या चुनना और सामान्यत: प्रयुक्त शब्द वरण भी यही अर्थ रखता है।
मनुस्मृति में वर्ण व्यवस्था को ही बताया गया है और जाति व्यवस्था को नहीं इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि मनुस्मृति के प्रथम अध्याय में कहीं भी जाति शब्द ही नहीं है बल्कि वहां चार वर्णों की उत्पत्ति का वर्णन है। यदि जाति का इतना ही महत्त्व होता तो मनु इसका उल्लेख अवश्य करते कि कौनसी जाति ब्राह्मणों से संबंधित है, कौनसी क्षत्रियों से, कौनसी वैश्यों और शूद्रों से सम्बंधित हैं।
इस का मतलब हुआ कि स्वयं को जन्म से ब्राह्मण या उच्च जाति का मानने वालों के पास इसका कोई प्रमाण नहीं है | ज्यादा से ज्यादा वे इतना बता सकते हैं कि कुछ पीढ़ियों पहले से उनके पूर्वज स्वयं को ऊँची जाति का कहलाते आए हैं | ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि सभ्यता के आरंभ से ही यह लोग ऊँची जाति के थे | जब वह यह साबित नहीं कर सकते तो उनको यह कहने का क्या अधिकार है कि आज जिन्हें जन्मना शूद्र माना जाता है, वह कुछ पीढ़ियों पहले ब्राह्मण नहीं थे ? और स्वयं जो अपने को ऊँची जाति का कहते हैं वे कुछ पीढ़ियों पहले शूद्र नहीं थे ?
मनुस्मृति ३.१०९ में साफ़ कहा है कि अपने गोत्र या कुल की दुहाई देकर भोजन करने वाले को स्वयं का उगलकर खाने वाला माना जाए | अतः मनुस्मृति के अनुसार जो जन्मना ब्राह्मण या ऊँची जाति वाले अपने गोत्र या वंश का हवाला देकर स्वयं को बड़ा कहते हैं और मान-सम्मान की अपेक्षा रखते हैं उन्हें तिरस्कृत किया जाना चाहिए |
मनुस्मृति २. १३६: धनी होना, बांधव होना, आयु में बड़े होना, श्रेष्ठ कर्म का होना और विद्वत्ता यह पाँच सम्मान के उत्तरोत्तर मानदंड हैं | इन में कहीं भी कुल, जाति, गोत्र या वंश को सम्मान का मानदंड नहीं माना गया है |
वर्णों में परिवर्तन :
मनुस्मृति १०.६५: ब्राह्मण शूद्र बन सकता और शूद्र ब्राह्मण हो सकता है | इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य भी अपने वर्ण बदल सकते हैं |
मनुस्मृति ९.३३५: शरीर और मन से शुद्ध- पवित्र रहने वाला, उत्कृष्ट लोगों के सानिध्य में रहने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला शूद्र भी उत्तम ब्रह्म जन्म और द्विज वर्ण को प्राप्त कर लेता है |
मनुस्मृति के अनेक श्लोक कहते हैं कि उच्च वर्ण का व्यक्ति भी यदि श्रेष्ट कर्म नहीं करता, तो शूद्र (अशिक्षित) बन जाता है |
उदाहरण-
२.१०३: जो मनुष्य नित्य प्रात: और सांय ईश्वर आराधना नहीं करता उसको शूद्र समझना चाहिए |
२.१७२: जब तक व्यक्ति वेदों की शिक्षाओं में दीक्षित नहीं होता वह शूद्र के ही समान है
४.२४५ : ब्राह्मण- वर्णस्थ व्यक्ति श्रेष्ट – अति श्रेष्ट व्यक्तियों का संग करते हुए और नीच- नीचतर व्यक्तिओं का संग छोड़कर अधिक श्रेष्ट बनता जाता है | इसके विपरीत आचरण से पतित होकर वह शूद्र बन जाता है | अतः स्पष्ट है कि ब्राह्मण उत्तम कर्म करने वाले विद्वान व्यक्ति को कहते हैं और शूद्र का अर्थ अशिक्षित व्यक्ति है | इसका, किसी भी तरह जन्म से कोई सम्बन्ध नहीं है |
२.१६८: जो ब्राह्मण,क्षत्रिय या वैश्य वेदों का अध्ययन और पालन छोड़कर अन्य विषयों में ही परिश्रम करता है, वह शूद्र बन जाता है | और उसकी आने वाली पीढ़ियों को भी वेदों के ज्ञान से वंचित होना पड़ता है | अतः मनुस्मृति के अनुसार तो आज भारत में कुछ अपवादों को छोड़कर बाकी सारे लोग जो भ्रष्टाचार, जातिवाद, स्वार्थ साधना, अन्धविश्वास, विवेकहीनता, लिंग-भेद, चापलूसी, अनैतिकता इत्यादि में लिप्त हैं – वे सभी शूद्र हैं |
२ .१२६: भले ही कोई ब्राह्मण हो, लेकिन अगर वह अभिवादन का शिष्टता से उत्तर देना नहीं जानता तो वह शूद्र (अशिक्षित व्यक्ति) ही है |
शूद्र भी पढ़ा सकते हैं :
शूद्र भले ही अशिक्षित हों तब भी उनसे कौशल और उनका विशेष ज्ञान प्राप्त किया जाना चाहिए |
२.२३८: अपने से न्यून व्यक्ति से भी विद्या को ग्रहण करना चाहिए और नीच कुल में जन्मी उत्तम स्त्री को भी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए|
२.२४१ : आवश्यकता पड़ने पर अ-ब्राह्मण से भी विद्या प्राप्त की जा सकती है और शिष्यों को पढ़ाने के दायित्व का पालन वह गुरु जब तक निर्देश दिया गया हो तब तक करे |
ब्राह्मणत्व का आधार कर्म :
मनु की वर्ण व्यवस्था जन्म से ही कोई वर्ण नहीं मानती | मनुस्मृति के अनुसार माता- पिता को बच्चों के बाल्यकाल में ही उनकी रूचि और प्रवृत्ति को पहचान कर ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य वर्ण का ज्ञान और प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए भेज देना चाहिए |
कई ब्राह्मण माता – पिता अपने बच्चों को ब्राह्मण ही बनाना चाहते हैं परंतु इस के लिए व्यक्ति में ब्रह्मणोचित गुण, कर्म,स्वभाव का होना अति आवश्यक है| ब्राह्मण वर्ण में जन्म लेने मात्र से या ब्राह्मणत्व का प्रशिक्षण किसी गुरुकुल में प्राप्त कर लेने से ही कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता, जब तक कि उसकी योग्यता, ज्ञान और कर्म ब्रह्मणोचित न हों
२.१५७ : जैसे लकड़ी से बना हाथी और चमड़े का बनाया हुआ हरिण सिर्फ़ नाम के लिए ही हाथी और हरिण कहे जाते हैं वैसे ही बिना पढ़ा ब्राह्मण मात्र नाम का ही ब्राह्मण होता है |
२.२८: पढने-पढ़ाने से, चिंतन-मनन करने से, ब्रह्मचर्य, अनुशासन, सत्यभाषण आदि व्रतों का पालन करने से, परोपकार आदि सत्कर्म करने से, वेद, विज्ञान आदि पढने से, कर्तव्य का पालन करने से, दान करने से और आदर्शों के प्रति समर्पित रहने से मनुष्य का यह शरीर ब्राह्मण किया जाता है |
शिक्षा ही वास्तविक जन्म :
मनु के अनुसार मनुष्य का वास्तविक जन्म विद्या प्राप्ति के उपरांत ही होता है | जन्मतः प्रत्येक मनुष्य शूद्र या अशिक्षित है | ज्ञान और संस्कारों से स्वयं को परिष्कृत कर योग्यता हासिल कर लेने पर ही उसका दूसरा जन्म होता है और वह द्विज कहलाता है | शिक्षा प्राप्ति में असमर्थ रहने वाले शूद्र ही रह जाते हैं |
यह पूर्णत: गुणवत्ता पर आधारित व्यवस्था है, इसका शारीरिक जन्म या अनुवांशिकता से कोई लेना-देना नहीं है|
२.१४८ : वेदों में पारंगत आचार्य द्वारा शिष्य को गायत्री मंत्र की दीक्षा देने के उपरांत ही उसका वास्तविक मनुष्य जन्म होता है | यह जन्म मृत्यु और विनाश से रहित होता है |ज्ञानरुपी जन्म में दीक्षित होकर मनुष्य मुक्ति को प्राप्त कर लेता है| यही मनुष्य का वास्तविक उद्देश्य है| सुशिक्षा के बिना मनुष्य ‘ मनुष्य’ नहीं बनता|
इसलिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य होने की बात तो छोडो जब तक मनुष्य अच्छी तरह शिक्षित नहीं होगा तब तक उसे मनुष्य भी नहीं माना जाएगा |
२.१४६ : जन्म देने वाले पिता से ज्ञान देने वाला आचार्य रूप पिता ही अधिक बड़ा और माननीय है, आचार्य द्वारा प्रदान किया गया ज्ञान मुक्ति तक साथ देता हैं | पिताद्वारा प्राप्त शरीर तो इस जन्म के साथ ही नष्ट हो जाता है|
२.१४७ : माता- पिता से उत्पन्न संतति का माता के गर्भ से प्राप्त जन्म साधारण जन्म है| वास्तविक जन्म तो शिक्षा पूर्ण कर लेने के उपरांत ही होता है|
अत: अपनी श्रेष्टता साबित करने के लिए कुल का नाम आगे धरना मनु के अनुसार अत्यंत मूर्खतापूर्ण कृत्य है | अपने कुल का नाम आगे रखने की बजाए व्यक्ति यह दिखा दे कि वह कितना शिक्षित है तो बेहतर होगा |
१०.४: ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, ये तीन वर्ण विद्याध्ययन से दूसरा जन्म प्राप्त करते हैं | विद्याध्ययन न कर पाने वाला शूद्र, चौथा वर्ण है | इन चार वर्णों के अतिरिक्त आर्यों में या श्रेष्ट मनुष्यों में पांचवा कोई वर्ण नहीं है |
इस का मतलब है कि अगर कोई अपनी शिक्षा पूर्ण नहीं कर पाया तो वह दुष्ट नहीं हो जाता | उस के कृत्य यदि भले हैं तो वह अच्छा इन्सान कहा जाएगा | और अगर वह शिक्षा भी पूरी कर ले तो वह भी द्विज गिना जाएगा | अत: शूद्र मात्र एक विशेषण है, किसी जाति विशेष का नाम नहीं |
‘नीच’ कुल में जन्में व्यक्ति का तिरस्कार नहीं :
किसी व्यक्ति का जन्म यदि ऐसे कुल में हुआ हो, जो समाज में आर्थिक या अन्य दृष्टी से पनप न पाया हो तो उस व्यक्ति को केवल कुल के कारण पिछड़ना न पड़े और वह अपनी प्रगति से वंचित न रह जाए, इसके लिए भी महर्षि मनु ने नियम निर्धारित किए हैं |
४.१४१: अपंग, अशिक्षित, बड़ी आयु वाले, रूप और धन से रहित या निचले कुल वाले, इन को आदर और / या अधिकार से वंचित न करें | क्योंकि यह किसी व्यक्ति की परख के मापदण्ड नहीं हैं|
प्राचीन इतिहास में वर्ण परिवर्तन के उदाहरण :
ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र वर्ण की सैद्धांतिक अवधारणा गुणों के आधार पर है, जन्म के आधार पर नहीं | यह बात सिर्फ़ कहने के लिए ही नहीं है, प्राचीन समय में इस का व्यवहार में चलन था | जब से इस गुणों पर आधारित वैज्ञानिक व्यवस्था को हमारे दिग्भ्रमित पुरखों ने मूर्खतापूर्ण जन्मना व्यवस्था में बदला है, तब से ही हम पर आफत आ पड़ी है जिस का सामना आज भी कर रहें हैं|
वर्ण परिवर्तन के कुछ उदाहरण –
(a) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे | परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की | ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है |
(b) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे | जुआरी और हीन चरित्र भी थे | परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये |ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया | (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९)
(c) सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए |
(d) राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.१.१४)
अगर उत्तर रामायण की मिथ्या कथा के अनुसार शूद्रों के लिए तपस्या करना मना होता तो पृषध ये कैसे कर पाए?
(e) राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए | पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण ४.१.१३)
(f) धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण ४.२.२)
(g) आगे उन्हींके वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए | (विष्णु पुराण ४.२.२)
(h) भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए |
(i) विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने |
(j) हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मण हुए | (विष्णु पुराण ४.३.५)
(k) क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.८.१) वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए| इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्य के उदाहरण हैं |
(l) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने |
(m) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना |
(n) राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ |
(o) त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे |
(p) विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्र वर्ण अपनाया | विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया |
(q) विदुर दासी पुत्र थे | तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया |
(r) वत्स शूद्र कुल में उत्पन्न होकर भी ऋषि बने (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९) |
(s) मनुस्मृति के प्रक्षिप्त श्लोकों से भी पता चलता है कि कुछ क्षत्रिय जातियां, शूद्र बन गईं | वर्ण परिवर्तन की साक्षी देने वाले यह श्लोक मनुस्मृति में बहुत बाद के काल में मिलाए गए हैं | इन परिवर्तित जातियों के नाम हैं – पौण्ड्रक, औड्र, द्रविड, कम्बोज, यवन, शक, पारद, पल्हव, चीन, किरात, दरद, खश |
(t) महाभारत अनुसन्धान पर्व (३५.१७-१८) इसी सूची में कई अन्य नामों को भी शामिल करता है – मेकल, लाट, कान्वशिरा, शौण्डिक, दार्व, चौर, शबर, बर्बर|
(u) आज भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और दलितों में समान गोत्र मिलते हैं | इस से पता चलता है कि यह सब एक ही पूर्वज, एक ही कुल की संतान हैं | लेकिन कालांतर में वर्ण व्यवस्था गड़बड़ा गई और यह लोग अनेक जातियों में बंट गए |
शूद्रों के प्रति आदर :
मनु परम मानवीय थे| वे जानते थे कि सभी शूद्र जानबूझ कर शिक्षा की उपेक्षा नहीं कर सकते | जो किसी भी कारण से जीवन के प्रथम पर्व में ज्ञान और शिक्षा से वंचित रह गया हो, उसे जीवन भर इसकी सज़ा न भुगतनी पड़े इसलिए वे समाज में शूद्रों के लिए उचित सम्मान का विधान करते हैं | उन्होंने शूद्रों के प्रति कभी अपमान सूचक शब्दों का प्रयोग नहीं किया, बल्कि मनुस्मृति में कई स्थानों पर शूद्रों के लिए अत्यंत सम्मानजनक शब्द आए हैं |
मनु की दृष्टी में ज्ञान और शिक्षा के अभाव में शूद्र समाज का सबसे अबोध घटक है, जो परिस्थितिवश भटक सकता है | अत: वे समाज को उसके प्रति अधिक सहृदयता और सहानुभूति रखने को कहते हैं |
कुछ और उदात्त उदाहरण देखें –
३.११२: शूद्र या वैश्य के अतिथि रूप में आ जाने पर, परिवार उन्हें सम्मान सहित भोजन कराए |
३.११६: अपने सेवकों (शूद्रों) को पहले भोजन कराने के बाद ही दंपत्ति भोजन करें |
२.१३७: धन, बंधू, कुल, आयु, कर्म, श्रेष्ट विद्या से संपन्न व्यक्तियों के होते हुए भी वृद्ध शूद्र को पहले सम्मान दिया जाना चाहिए |
मनुस्मृति वेदों पर आधारित :
वेदों को छोड़कर अन्य कोई ग्रंथ मिलावटों से बचा नहीं है | वेद प्रक्षेपों से कैसे अछूते रहे, जानने के लिए ‘ वेदों में परिवर्तन क्यों नहीं हो सकता ? ‘ पढ़ें | वेद ईश्वरीय ज्ञान है और सभी विद्याएँ उसी से निकली हैं | उन्हीं को आधार मानकर ऋषियों ने अन्य ग्रंथ बनाए| वेदों का स्थान और प्रमाणिकता सबसे ऊपर है और उनके रक्षण से ही आगे भी जगत में नए सृजन संभव हैं | अत: अन्य सभी ग्रंथ स्मृति, ब्राह्मण, महाभारत, रामायण, गीता, उपनिषद, आयुर्वेद, नीतिशास्त्र, दर्शन इत्यादि को परखने की कसौटी वेद ही हैं | और जहां तक वे वेदानुकूल हैं वहीं तक मान्य हैं |
मनु भी वेदों को ही धर्म का मूल मानते हैं (२.८-२.११)
२.८: विद्वान मनुष्य को अपने ज्ञान चक्षुओं से सब कुछ वेदों के अनुसार परखते हुए, कर्तव्य का पालन करना चाहिए |
इस से साफ़ है कि मनु के विचार, उनकी मूल रचना वेदानुकूल ही है और मनुस्मृति में वेद विरुद्ध मिलने वाली मान्यताएं प्रक्षिप्त मानी जानी चाहियें |
शूद्रों को भी वेद पढने और वैदिक संस्कार करने का अधिकार :
वेद में ईश्वर कहता है कि मेरा ज्ञान सबके लिए समान है चाहे पुरुष हो या नारी, ब्राह्मण हो या शूद्र सबको वेद पढने और यज्ञ करने का अधिकार है |
देखें – यजुर्वेद २६.१, ऋग्वेद १०.५३.४, निरुक्त ३.८ इत्यादि और मनुस्मृति भी यही कहती है | मनु ने शूद्रों को उपनयन ( विद्या आरंभ ) से वंचित नहीं रखा है | इसके विपरीत उपनयन से इंकार करने वाला ही शूद्र कहलाता है |
वेदों के ही अनुसार मनु शासकों के लिए विधान करते हैं कि वे शूद्रों का वेतन और भत्ता किसी भी परिस्थिति में न काटें ( ७.१२-१२६, ८.२१६) |
संक्षेप में –
मनु को जन्मना जाति – व्यवस्था का जनक मानना निराधार है | इसके विपरीत मनु मनुष्य की पहचान में जन्म या कुल की सख्त उपेक्षा करते हैं | मनु की वर्ण व्यवस्था पूरी तरह गुणवत्ता पर टिकी हुई है |
प्रत्येक मनुष्य में चारों वर्ण हैं – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र | मनु ने ऐसा प्रयत्न किया है कि प्रत्येक मनुष्य में विद्यमान जो सबसे सशक्त वर्ण है – जैसे किसी में ब्राह्मणत्व ज्यादा है, किसी में क्षत्रियत्व, इत्यादि का विकास हो और यह विकास पूरे समाज के विकास में सहायक हो |
महर्षि मनु पर जातिवाद का समर्थक होने का आक्षेप लगाना मूर्खता हैं क्यूंकि दोष मिलावट करने वालो का हैं न की मनु महर्षि का।
आर्य भुवनेश्वर
वर्ण व्यवस्था
वैदिक वर्ण व्यवस्था में शूद्र किसे माना गया है
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शोचनीयः शोच्यां स्थितिमापन्नो वा सेवायां साधुर अविध्द्यादिगुणसहितो मनुष्यो वा
अर्थात शूद्र वह व्यक्ति होता है जो अपने अज्ञान के कारण किसी प्रकार की उन्नत स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाया और जिसे अपनी निम्न स्थिति होने की तथा उसे उन्नत करने की सदैव चिंता बनी रहती है अथवा स्वामी के द्वारा जिसके भरण पोषण की चिंता की जाती है |
शूद्रेण हि समस्तावद यावत् वेदे न जायते
अर्थात जब तक कोई वेदाध्ययन नहीं करता तब तक वह शूद्र के सामान है वह चाहे किसी भी कुल में उत्पन्न हुआ हो
जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात द्विज उच्यते
अर्थात प्रत्येक मनुष्य चाहे किसी भी कुल में उत्पन्न हुआ हो वह जन्म से शूद्र ही होता है | उपनयन संस्कार में दीक्षित होकर विद्याध्ययन करने के बाद ही द्विज बनता है |
जो मनुष्य अपने अज्ञान तथा अविद्ध्या के कारण किसी प्रकार की उन्नत स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाता वह शूद्र रह जाता है।
महर्षि मनु ने शूद्र के कर्म इस प्रकार बताये हैं
एकमेव तु शूद्रस्य प्रभु: कर्म समादिशत।
एतेषामेव वर्णानां शुश्रूषामनसूयया।।
अर्थात परमात्मा ने शूद्र वर्ण ग्रहण करने वाले व्यक्तियों के लिए एक ही कर्म निर्धारित किया है वो यह है कि अन्य तीनों वर्णों के व्यक्तियों के यहाँ सेवा या श्रम का कार्य करके जीविका करना | क्योंकि अशिक्षित व्यक्ति शूद्र होता है अतः वह सेवा या श्रम का कार्य ही कर सकता है इसलिए उसके लिए यही एक निर्धारित कर्म है |
अब यदि कोई यह कुतर्क दे कि शूद्र को सेवा कार्य क्यों दिया उसे अन्य कार्य क्यों नहीं दिया, यह तो शूद्र के साथ पक्षपात है; तो विचार कीजिये कि शूद्र कहा किसे है ? उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट है कि शूद्र वह व्यक्ति होता है जो अशिक्षित एवं अयोग्य होता है| जो अशिक्षित व अयोग्य है क्या उसे सेवा के अलावा अन्य कोई जिम्मेदारी दी जा सकती है ? आधुनिक प्रशासन व्यवस्था में भी चार वर्ग निश्चित किये गए हैं – प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी, तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी | यदि कुतर्क की दृष्टि से सोचा जाये तो यह भारत सरकार का चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के साथ पक्षपात है; सरकार को हर अशिक्षित व्यक्ति को डॉक्टर, इंजीनियर और जज बना देना चाहिए | अब जरा विचार कीजिये कि यदि अशिक्षित व्यक्ति डॉक्टर बना दिया जाए तो वह कैसा इलाज करेगा ? अशिक्षित व्यक्ति को जज बना दिया जाए तो वह कैसा फैसला सुनाएगा ? इसलिए वैदिक वर्ण व्यवस्था में कर्म एवं योग्यतानुसार ही वर्ण निर्धारण किया गया है क्योंकि व्यक्ति योग्यतानुसार ही अपना अपना कार्य ठीक से कर सकता है
इसीलिए यह कहावत है कि जिसका काम उसी को साजे, दूजा करे तो डंडा बाजे
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देव शर्मा
ब्राह्मण
सवर्णों में एक जाति आती है ब्राह्मण जिस पर सदियों से राक्षस, पिशाच, दैत्य, यवन, मुगल, अंग्रेज, कांग्रेस, सपा, बसपा, वामपंथी, भाजपा, सभी राजनीतिक पार्टियाँ, विभिन्न जातियाँ आक्रमण करते आ रहे है। आरोप ये लगे कि ब्राह्मणों ने जाति का बटवारा किया! उत्तर:- सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद जो अपौरुषेय जिसका संकलन वेदव्यास जी ने किया। जो मल्लाहिन के गर्भ से उत्पन्न हुए। १८-पुराण, महाभारत, गीता सब व्यास विरचित है जिसमें वर्णव्यवस्था और जाति व्यवस्था दी गई है। रचनाकार व्यास ब्राह्मण जाति से नही थे। ऐसे ही कालीदासादि कई कवि जो वर्णव्यवस्था और जाति-व्यवस्था के पक्षधर थे और जन्मजात ब्राह्मण नहीं थे। मेरा प्रश्न:- कोई एक भी ग्रन्थ का नाम बतलाइए जिसमें जातिव्यवस्था लिखी गई हो और ब्राह्मण ने लिखा हो? शायद एक भी नही मिलेगा। मुझे पता है आप मनु स्मृति का ही नाम लेंगे, जिसके लेखक मनु महाराज थे, जोकि क्षत्रिय थे, मनु स्मृति जिसे आपने कभी पढ़ा ही नहीं और पढ़ा भी तो टुकड़ों में! कुछ श्लोकों को जिसके कहने का प्रयोजन कुछ अन्य होता है और हम समझते अपने विचारानुसार है। मनु स्मृति पूर्वाग्रह रहित होकर सांगोपांग पढ़ें।छिद्रान्वेषण की अपेक्षा गुणग्राही बनकर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। अब रही बात कि ब्राह्मणों ने क्या किया? तो सुनें! यंत्रसर्वस्वम् (इंजीनियरिंग का आदि ग्रन्थ)-भरद्वाज, वैमानिक शास्त्रम् (विमान बनाने हेतु)-भरद्वाज, सुश्रुतसंहिता (सर्जरी चिकित्सा)-सुश्रुत, चरकसंहिता (चिकित्सा) -चरक, अर्थशास्त्र(जिसमें सैन्यविज्ञान, राजनीति, युद्धनीति, दण्डविधान, कानून आदि कई महत्वपूर्ण विषय हैं)- कौटिल्य, आर्यभटीयम् (गणित)-आर्यभट्ट। ऐसे ही छन्दशास्त्र, नाट्यशास्त्र, शब्दानुशासन, परमाणुवाद, खगोल विज्ञान, योगविज्ञान सहित प्रकृति और मानव कल्याणार्थ समस्त विद्याओं का संचय अनुसंधान एवं प्रयोग हेतु ब्राह्मणों ने अपना पूरा जीवन भयानक जंगलों में, घोर दरिद्रता में बिताए। उसके पास दुनियाँ के प्रपंच हेतु समय ही कहाँ शेष था? कोई बताएगा समस्त विद्याओं में प्रवीण होते हुए भी, सर्वशक्तिमान् होते हुए भी ब्राह्मण ने पृथ्वी का भोग करने हेतु गद्दी स्वीकारा हो…? विदेशी मानसिकता से ग्रसित कमनिष्ठों (वामपंथियों) ने कुचक्र रचकर गलत तथ्य पेश किए ।आजादी के बाद इतिहा संरचना इनके हाथों सौपी गई और ये विदेश संचालित षड़यन्त्रों के तहत देश में जहर बोने लगे। ब्राह्मण हमेशा से यही चाहता रहा है कि हमारा राष्ट्र शक्तिशाली हो अखण्ड हो, न्याय व्यवस्स्था सुदृढ़ हो। सर्वे भवन्तु सुखिन:सर्वे सन्तु निरामया: सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत्। का मन्त्र देने वाला ब्राह्मण, वसुधैव कुटुम्बकम् का पालन करने वाला ब्राह्मण सर्वदा काँधे पर जनेऊ कमर में लंगोटी बाँधे एक गठरी में लेखनी, मसि, पत्ते, कागज, और पुस्तक लिए चरैवेति-चरैवेति का अनुशरण करता रहा। मन में एक ही भाव था लोक कल्याण! ऐसा नहीं कि लोक कल्याण हेतु मात्र ब्राह्मणों ने ही काम किया। बहुत सारे ऋषि, मुनि, विद्वान्, महापुरुष अन्य वर्णों के भी हुए जिनका महत् योगदान रहा है। किन्तु आज ब्राह्मण के विषय में ही इसलिए कह रहा हूँ कि जिस देश की शक्ति के संचार में ब्राह्मणों के त्याग तपस्या का इतना बड़ा योगदान रहा। जिसने मुगलों यवनों, अंग्रेजों और राक्षसी प्रवृत्ति के लोंगों का भयानक अत्याचार सहकर भी यहाँ की संस्कृति और ज्ञान को बचाए रखा। वेदों, शास्त्रों को जब जलाया जा रहा था तब ब्राह्मणों ने पूरा का पूरा वेद और शास्त्र कण्ठस्थ करके बचा लिया और आज भी वे इसे नई पीढ़ी में संचारित कर रहे हैं वे सामान्य कैसे हो सकते हैं..? उन्हें सामान्य जाति का कहकर आरक्षण के नाम पर सभी सरकारी सुविधाओं से रहित क्यों रखा जाता है? ब्राह्मण अपनी रोजी रोटी कैसे चलाए???? _*ब्राह्मण को देना पड़ता है:-* पढ़ाई के लिए सबसे ज्यादा फीस! काम्प्टीशन के लिए सबसे ज्यादा फीस! नौकरी मांगने के लिए लिए सबसे ज्यादा फीस! और सरकारी सारी सुविधाएँ OBC, SC, ST, अल्पसंख्यक के नाम पर पूँजीपति या गरीब के नाम पर अयोग्य लोंगों को दी जाती हैं। इस देश में गरीबी से नहीं जातियों से लड़ा जाता है। एक ब्राह्मण के लिए सरकार कोई रोजगार नही देती कोई सुविधा नही देती। एक ब्राह्मण बहुत सारे व्यवसाय नहीं कर सकता जैसेः- पोल्ट्रीफार्म, अण्डा, मांस, मुर्गीपालन, कबूतरपालन, बकरी, गदहा, ऊँट, सुअरपालन, मछलीपालन, जूता, चप्पल, शराब आदि, बैण्डबाजा और विभिन्न जातियों के पैतृक व्यवसाय। क्योंकि उसका धर्म एवं समाज दोनों ही इसकी अनुमति नही देते! ऐसा करने वालों से उनके समाज के लोग सम्बन्ध नहीं बनाते व निकृष्ट कर्म समझते हैं। वो शारीरिक परिश्रम करके अपना पेट पालना चाहे तो उसे मजदूरी नही मिलती। क्योंकि लोग ब्राह्मण से सेवा कराना पाप समझते है। हाँ उसे अपना घर छोड़कर दूर मजदूरी, दरवानी आदि करने के लिए जाना पड़ता है। कुछ को मजदूरी मिलती है कुछ को नहीं मिलती। अब सवाल उठता है कि ऐसा हो क्यों रहा है? जिसने संसार के लिए इतनी कठिन तपस्या की उसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों? जिसने शिक्षा को बचाने के लिए सर्वस्व त्याग दिया उसके साथ इतनी भयानक ईर्ष्या क्यों? मैं ब्राह्मण हूँ अत: मुझे किसी जाति विशेष से द्वेष नही है। मैने शास्त्रों को जीने का प्रयास किया है अत: जातिगत छुआछूत को पाप मानता हूँ। मैंने शास्त्रों को पढ़ा है अत: परस्त्रियों को मातृवत्, पराये धन को लोष्ठवत् और सबको आत्मवत् मानता हूँ! लेकिन मेरा सबसे निवेदन:- गलत तथ्यों के आधार पर हमें क्यों सताया जा रहा है? हमारे धर्म के प्रतीक शिखा और यज्ञोपवीत, वेश भूषा का मजाक क्यों बनाया जा रहा हैं? हमारे मन्त्रों और पूजा पद्धति का उपहास होता है और आप सहन कैसे करते हैं? विश्व की सबसे समृद्ध और एकमात्र वैज्ञानिक भाषा संस्कृत को हम भारतीय हेय दृष्टि से क्यों देखते हैं। हमें पता है आप कुतर्क करेंगें! आजादी के बाद भी ७४ साल से अत्याचार होता रहा है, हमारा हक मारकर खैरात में बाँट दिया गया है किसी सरकार ने हमारा सहयोग तो नही किया किन्तु बढ़चढ़ के दबाने का प्रयास जरूर किया फिर भी हम जिन्दा है और जिन्दा रहेंगे, हर युग में ब्राह्मण के साथ भेदभाव, अत्याचार होता आया है, ब्राह्मण युवाओं की फौज तैयार हो रही है,, हर Point से ब्राह्मण विरोधियों को जबाब दिया जाएगा | #जागो ब्राह्मणों, समाज पुकारे आपको! “”””जयति ब्राह्मण””” 🕉जय श्री परशुराम🔯
खुली चुनौती
खुली चुनौती
वो कहते है हमे जाति कि वजह से मंदिर नही जाने दिया जाता । मै कहेता भारत के कौन से मंदीर मे दर्शन के लिए जातिगत प्रमाण पत्र लगता है ?
वो कहते है हम से कई हजार साल तक मैला उठाया गया मैं कहता हूं आज 2017 मे गांव के अंदर जिन लोगों के पास शौचालय नहीं है ऐसे लोग सड़क किनारे । रेलवे पटरी पर । खेत में शौच करने जाते हैं तो मैला उठवाने वाली बात कहां से आ गई ?
वो कहते हैं मनु स्मृति के हिसाब से हम पर अत्याचार किया गया । इस पर में थोड़ा विस्तृत बात करना चाहूंगा । पहली बात 1947 में आजादी के बाद भी भारत में सैकड़ों रियासते थी ऐसे सैकड़ों राजा राजवाडा थे जो अपने क्षेत्र में अपना नियम चलाते थे । किसी तरह उन्हें एक किया गया । थोड़ा पीछे चलिए तो 200 वर्ष तक लगभग अंग्रेजो ने भारत को गुलाम बनाए रखा और उससे पहले 500 वर्ष के आसपास मुगल आक्रमणकारीयो ने भारत को गुलाम बना कर रखा । अंग्रेज और मुगलो के समय भारत मे मनु स्मृती लागु थी इसका कोई प्रमाण इतिहास में है ही नहीं । अब बात करते हैं मुगलों से पहले भारत की तो उस समय भी भारत हजारों रियासतों रजवाड़ों में बॅटै हुआ था उस समय भी इस बात के प्रमाण नहीं है कि पूरे भारत में मनुस्मृति लागू थी और यह संभव ही नहीं है आज भी भारत के 29 राज्य और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में अलग अलग तरह की भाषाएं हैं तो यह कहना कदाचित उचित नहीं होगा कि एक हजार वर्ष पहले संस्कृत भाषा की मनुस्मृति को पूरे भारतवर्ष में सामाजिक स्तर पर कुछ खास लोगो पे लागु किया गया था । और एक बात मनुस्मृति की ओरिजिनल कॉपी है कहा ?किसके पास है । दूसरी बात आज जो मनुस्मृति यह लोग जलाते हैं वह मनु स्मृति छापते भी यही लोग है । अगर पूरे भारत में एक सर्वे किया जाए किस के घर में मनुस्मृति है तो मैं समझता हु किसी हिन्दु के घर से मनुस्मृति नहीं मिलेगी । मनु स्मृती मिलेगी तो सिर्फ और सिर्फ #चाइनीज #दलाल और #वामपंथियों के पास । कुल मिलाकर मनु स्मृति के नाम पर जो यह झूठ फैला रहे हैं उसमें चित और पट दोनो इनका ही है । मतलब मनुस्मृति छापते भी यही है और जलाते भी यही है । अन्य किसी को कोई मतलब नही है
वो कहते हैं हमारे साथ आज भी जाति के नाम पर भेदभाव होता है । मैं पूछता हूं आज #हॉस्पिटल #बस #रेल #होटल #स्कूल कोई एक जगह का नाम बता दो जहां पर लोगों को जाति के आधार पर व्यवस्था दी गई हो । बैठने की । उठने की । खाने की । सोने की । चलने कि । बोलने कि ?
कुल मिलाकर ये लोग गरीब हिन्दुओ को गुमराह करके अपनी रोजी-रोटी चलाते है । चाइनीज दलालों का मकसद देश मे गृह युध्द करवाना है । अगर किसी चाइनीस दलाल में हिम्मत है बहस करने का
🙏✍
*हिन्दू धर्म में सवर्ण-दलित में भेदभाव एक षड्यंत्र है, अपनी संस्कृति को समझे और इस षड्यंत्र से बचे —–*
दोस्तों आप सभी जानते हैं की भारत की प्राचीन सामाजिक व्यवस्था कर्मो पर ही आधारित थी (वेद क्या कहते हैं शूद्रों के बारे में —-
शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्।
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्या द्वैश्यात्तथैव च।—-
*अर्थात श्रेष्ठ -अश्रेष्ठ कर्मो के अनुसार शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र हो जाता है। जो ब्राह्मण ,क्षत्रिय वैश्य और शूद्र के गुणों वाला हो वह उसी वर्ण का हो जाता है।)*
और सनातन धर्म को कमजोर करने के उदेश्य से ही मुगलों ने हिन्दू लोगो को आपस में तोडना सुरु कर दिया था याद रहे दलित एक योधा जाती थी जिसने मुगलों को भारत में परवेश करने के लिए बहुत टक्कर दी थ,
आज भी इसी प्रकार हिन्दू एकता को देख बहुत से राजनितिक दल डर चुके हैं और अब वह हिन्दू वोट को तोड़ने के लिए उन्हें आपस में जाती के नाम पर लडवाना सुरु कर दिए हैं
भाइयो हमें इस षड्यंत्र को समझना होगा और जो भी लोग सवर्ण एवं दलित समुदाय में भेदभाव पैदा कर रहे हैं उनसे सावधान रहना होगा ।
आज कल सवर्ण एवं दलित समुदाय कुछ लोग रामचरितमानस की किसी चौपाई का गलत अर्थ,या किसी वेद,पुराण के श्लोक का गलत अर्थ निकाल कर हिंदुओं को आपस में लड़ा रहे हैं,
ये सब ये दिखाने में लगें हैं की पूर्व के युगों में दलितों के साथ कैसा व्यवहार होता था जबकि उसी युग में एक मछुआरन की संतान वेदव्यास ने महाभारत लिखी थी, और त्रेता युग में दलित वाल्मीकि ने रामायण लिखी थी।
हिडम्बा 1 दलित थी आज उसी हिडम्बा के पोते खांटू श्याम को भगवान की तरह पूजा जाता है । श्री राम जी ने एक दलित के झूटे बैर खायें थे, प्रभु श्री राम जी ने एक दलित को गले लगाया था ।
ध्यान रहें…
*न्याय – अन्याय हर युग में होते हैं और होते रहेंगे, अहंकार भी टकराएंगे… कभी इनका तो कभी उनका ,यह घटनायें दुर्भाग्यपूर्ण होती हैं पर उससे भी दुर्भाग्यपूर्ण होता है इनको जातिगत रंग देकर उस पर विभाजन की राजनीति करके राष्ट्र को कमजोर करना।*
यदि किसी ने भीमराव अंबेड़कर का अपमान किया तो किसी सवर्ण ने ही उनको पढाया भी । किसी एक घटना को अपने स्वार्थ के लिए बार -बार उछालना और बाकी घटनाओ पर मिट्टी डालना कौन सा चिंतन है,
यह दलित चिंतन नहीं बल्कि विश्व में अल्पसंख्यक हिन्दू समाज को खत्म करने के अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र के तहत केवल विधर्म प्रेरित राष्ट्रद्रोहियों द्वारा थोपा हुआ दोगला चिंतन है। क्योंकि सदियों की गुलामी अत्याचार के बाद भी हिन्दू न मिट पाए न धर्मांतरित हो पाए।
अतः इससे बच कर दलित-सवर्ण (हिन्दुओं) में षड्यंत्रकारियों द्वारा उपजाए जा रहे भेदभाव को नष्ट करके हिन्दू धर्म की महानता की रक्षा करने का प्रण करें और एक बने रहें। इसलिए भईया सब हिंदु भाई सावधान हो जाओं वरना पक्षताने के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा।
आप सभी से निवेदन है की राजनितिक पार्टियों व स्वार्थी व्यक्तियों के बहकावे में न आएं हिंदुत्व को एकजुट करें