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विश्व की सबसे समृद्ध भाषा कौन सी है!


विश्व की सबसे समृद्ध भाषा कौन सी है!
अंग्रेजी में ‘THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG’ एक प्रसिद्ध वाक्य है। जिसमें अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर समाहित कर लिए गए, मज़ेदार बात यह है की अंग्रेज़ी वर्णमाला में कुल 26 अक्षर ही उप्लब्ध हैं जबकि इस वाक्य में 33 अक्षरों का प्रयोग किया गया जिसमे चार बार O और A, E, U तथा R अक्षर का प्रयोग क्रमशः 2 बार किया गया है। इसके अलावा इस वाक्य में अक्षरों का क्रम भी सही नहीं है। जहां वाक्य T से शुरु होता है वहीं G से खत्म हो रहा है।

अब ज़रा संस्कृत के इस श्लोक को पढिये-

क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोSटौठीडढण:।

तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।

अर्थात: पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन? राजा मय! जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।

श्लोक को ध्यान से पढ़ने पर आप पाते हैं की संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस श्लोक में दिखाये दे रहे हैं वो भी क्रमानुसार। यह खूबसूरती केवल और केवल संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा में ही देखने को मिल सकती है!

पूरे विश्व में केवल एक संस्कृत ही ऐसी भाषा है जिसमें केवल एक अक्षर से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है, किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल “न” व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है और गजब का कौशल्य प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने थोडे में बहुत कहा है-

न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।

नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥

अर्थात: जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है। वंदेसंस्कृतम्!

एक और उदहारण है।-

दाददो दुद्द्दुद्दादि दादादो दुददीददोः

दुद्दादं दददे दुद्दे ददादददोऽददः।।

अर्थात: दान देने वाले, खलों को उपताप देने वाले, शुद्धि देने वाले, दुष्ट्मर्दक भुजाओं वाले, दानी तथा अदानी दोनों को दान देने वाले, राक्षसों का खण्डन करने वाले ने, शत्रु के विरुद्ध शस्त्र को उठाया।

है ना खूबसूरत? इतना ही नहीं, क्या किसी भाषा में केवल 2 अक्षर से पूरा वाक्य लिखा जा सकता है? संस्कृत भाषा के अलावा किसी और भाषा में ये करना असम्भव है। माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल “भ” और “र ” दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है। देखिये –

भूरिभिर्भारिभिर्भीराभूभारैरभिरेभिरे

भेरीरे भिभिरभ्राभैरभीरुभिरिभैरिभा:।

अर्थात- निर्भय हाथी जो की भूमि पर भार स्वरूप लगता है, अपने वजन के चलते, जिसकी आवाज नगाड़े की तरह है और जो काले बादलों सा है, वह दूसरे दुश्मन हाथी पर आक्रमण कर रहा है।

एक और उदाहरण-

क्रोरारिकारी कोरेककारक कारिकाकर।

कोरकाकारकरक: करीर कर्करोऽकर्रुक॥

अर्थात- क्रूर शत्रुओं को नष्ट करने वाला, भूमि का एक कर्ता, दुष्टों को यातना देने वाला, कमलमुकुलवत, रमणीय हाथ वाला, हाथियों को फेंकने वाला, रण में कर्कश, सूर्य के समान तेजस्वी [था]।

पुनः क्या किसी भाषा मे केवल तीन अक्षर से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है? यह भी संस्कृत भाषा के अलावा किसी और भाषा में असंभव है!

उदहारण-

देवानां नन्दनो देवो नोदनो वेदनिंदिनां

दिवं दुदाव नादेन दाने दानवनंदिनः।।

अर्थात- वह परमात्मा [विष्णु] जो दूसरे देवों को सुख प्रदान करता है और जो वेदों को नहीं मानते उनको कष्ट प्रदान करता है। वह स्वर्ग को उस ध्वनि नाद से भर देता है, जिस तरह के नाद से उसने दानव [हिरण्यकशिपु] को मारा था।

अब इस छंद को ध्यान से देखें इसमें पहला चरण ही चारों चरणों में चार बार आवृत्त हुआ है, लेकिन अर्थ अलग-अलग हैं, जो यमक अलंकार का लक्षण है। इसीलिए ये महायमक संज्ञा का एक विशिष्ट उदाहरण है –

विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जतीशमार्गणा:।

विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा:॥

अर्थात- पृथ्वीपति अर्जुन के बाण विस्तार को प्राप्त होने लगे, जबकि शिवजी के बाण भंग होने लगे। राक्षसों के हंता प्रथम गण विस्मित होने लगे तथा शिव का ध्यान करने वाले देवता एवं ऋषिगण (इसे देखने के लिए) पक्षियों के मार्गवाले आकाश-मंडल में एकत्र होने लगे।

जब हम कहते हैं की संस्कृत इस पूरी दुनिया की सभी प्राचीन भाषाओं की जननी है तो उसके पीछे इसी तरह के खूबसूरत तर्क होते हैं। यह विश्व की अकेली ऐसी भाषा है, जिसमें “अभिधान- सार्थकता” मिलती है अर्थात् अमुक वस्तु की अमुक संज्ञा या नाम क्यों है, यह प्रायः सभी शब्दों में मिलता है। जैसे इस विश्व का नाम संसार है तो इसलिये है क्यूँकि वह चलता रहता है, परिवर्तित होता रहता है-

संसरतीति संसारः गच्छतीति जगत् आकर्षयतीति कृष्णः रमन्ते योगिनो यस्मिन् स रामः इत्यादि।…
निवेदक
विपूलभाई ( सुरत , गुजरात )

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WONDERS OF SANSKRIT LANGUAGE:

क: खगीघाङ्चिच्छौजा झाञ्ज्ञोSटौठीडडण्ढण:।
तथोदधीन् पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह ॥

पक्षीओं का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दुसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु।संहारको में अग्रणी, मनसे निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन? राजा मय कि जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं ।

आप देख सकते हैं कि संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजनों इस पद्य में आ जाते हैं इतना ही नहीं, उनका क्रम भी योग्य है ।

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संस्कृत

संस्कृत में 1700 धातुएं, 70 प्रत्यय और 80 उपसर्ग हैं, इनके योग से जो शब्द बनते हैं, उनकी संख्या 27 लाख 20 हजार होती है। यदि दो शब्दों से बने सामासिक शब्दों को जोड़ते हैं तो उनकी संख्या लगभग 769 करोड़ हो जाती है।
संस्कृत इंडो-यूरोपियन लैंग्वेज की सबसे #प्राचीनभाषा है और सबसे वैज्ञानिकभाषा भी है। इसके सकारात्मक तरंगों के कारण ही ज्यादातर श्लोक संस्कृत में हैं। #भारत में संस्कृत से लोगों का जुड़ाव खत्म हो रहा है लेकिन विदेशों में इसके प्रति रुझाान बढ़ रहा है।

ब्रह्मांड में सर्वत्र गति है। गति के होने से ध्वनि प्रकट होती है । ध्वनि से शब्द परिलक्षित होते हैं और शब्दों से भाषा का निर्माण होता है। आज अनेकों भाषायें प्रचलित हैं । किन्तु इनका काल निश्चित है कोई सौ वर्ष, कोई पाँच सौ तो कोई हजार वर्ष पहले जन्मी। साथ ही इन भिन्न भिन्न भाषाओं का जब भी जन्म हुआ, उस समय अन्य भाषाओं का अस्तित्व था। अतः पूर्व से ही भाषा का ज्ञान होने के कारण एक नयी भाषा को जन्म देना अधिक कठिन कार्य नहीं है। किन्तु फिर भी साधारण मनुष्यों द्वारा साधारण रीति से बिना किसी वैज्ञानिक आधार के निर्माण की गयी सभी भाषाओं मे भाषागत दोष दिखते हैं । ये सभी भाषाए पूर्ण शुद्धता,स्पष्टता एवं वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। क्योंकि ये सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे की बातों को समझने के साधन मात्र के उद्देश्य से बिना किसी सूक्ष्म वैज्ञानिकीय चिंतन के बनाई गयी। किन्तु मनुष्य उत्पत्ति के आरंभिक काल में, धरती पर किसी भी भाषा का अस्तित्व न था।

तो सोचिए किस प्रकार भाषा का निर्माण संभव हुआ होगा?
शब्दों का आधार #ध्वनि है, तब ध्वनि थी तो स्वाभाविक है #शब्द भी थे। किन्तु व्यक्त नहीं हुये थे, अर्थात उनका ज्ञान नहीं था।
प्राचीन ऋषियों ने मनुष्य जीवन की आत्मिक एवं लौकिक उन्नति व विकास में शब्दो के महत्व और शब्दों की अमरता का गंभीर आकलन किया । उन्होने एकाग्रचित्त हो ध्वानपूर्वक, बार बार मुख से अलग प्रकार की ध्वनियाँ उच्चारित की और ये जानने में प्रयासरत रहे कि मुख-विवर के किस सूक्ष्म अंग से ,कैसे और कहाँ से ध्वनि जन्म ले रही है। तत्पश्चात निरंतर अथक प्रयासों के फलस्वरूप उन्होने परिपूर्ण, पूर्ण शुद्ध,स्पष्ट एवं अनुनाद क्षमता से युक्त ध्वनियों को ही भाषा के रूप में चुना । सूर्य के एक ओर से 9 रश्मिया निकलती हैं और सूर्य के चारो ओर से 9 भिन्न भिन्न रश्मियों के निकलने से कुल निकली 36 रश्मियों की ध्वनियों पर संस्कृत के 36 #स्वर बने और इन 36 रश्मियो के पृथ्वी के आठ वसुओ से टकराने से 72 प्रकार की #ध्वनि उत्पन्न होती हैं । जिनसे संस्कृत के 72 व्यंजन बने। इस प्रकार ब्रह्माण्ड से निकलने वाली कुल 108 ध्वनियों पर संस्कृत की #वर्णमाला आधारित है। ब्रह्मांड की इन ध्वनियों के रहस्य का ज्ञान वेदों से मिलता है। इन ध्वनियों को नासा ने भी स्वीकार किया है जिससे स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन ऋषि मुनियों को उन ध्वनियों का ज्ञान था और उन्ही ध्वनियों के आधार पर उन्होने पूर्णशुद्ध भाषा को अभिव्यक्त किया। अतः प्राचीनतम #आर्यभाषा जो #ब्रह्मांडीय_संगीत थी उसका नाम “संस्कृत” पड़ा। संस्कृत – संस् + कृत् अर्थात

श्वासोंसेनिर्मित अथवा साँसो से बनी एवं स्वयं से कृत , जो कि ऋषियों के ध्यान लगाने व परस्पर संपर्क से अभिव्यक्त हुयी*।

कालांतर में #पाणिनी ने नियमित #व्याकरण के द्वारा संस्कृत को परिष्कृत एवं सर्वम्य प्रयोग में आने योग्य रूप प्रदान किया। #पाणिनीय_व्याकरण ही संस्कृत का प्राचीनतम व सर्वश्रेष्ठ व्याकरण है*। दिव्य व दैवीय गुणों से युक्त, अतिपरिष्कृत, परमार्जित, सर्वाधिक व्यवस्थित, अलंकृत सौन्दर्य से युक्त , पूर्ण समृद्ध व सम्पन्न , पूर्णवैज्ञानिक #देववाणी *संस्कृत – मनुष्य की आत्मचेतना को जागृत करने वाली, सात्विकता में वृद्धि , बुद्धि व आत्मबलप्रदान करने वाली सम्पूर्ण विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा है*। अन्य सभी भाषाओ में त्रुटि होती है पर इस भाषा में कोई त्रुटि नहीं है। इसके उच्चारण की शुद्धता को इतना सुरक्षित रखा गया कि सहस्त्रों वर्षो से लेकर आज तक वैदिक मन्त्रों की ध्वनियों व मात्राओं में कोई पाठभेद नहीं हुआ और ऐसा सिर्फ हम ही नहीं कह रहे बल्कि विश्व के आधुनिक विद्वानों और भाषाविदों ने भी एक स्वर में संस्कृत को पूर्णवैज्ञानिक एवं सर्वश्रेष्ठ माना है।

संस्कृत की सर्वोत्तम शब्द-विन्यास युक्ति के, गणित के, कंप्यूटर आदि के स्तर पर नासा व अन्य वैज्ञानिक व भाषाविद संस्थाओं ने भी इस भाषा को एकमात्र वैज्ञानिक भाषा मानते हुये इसका अध्ययन आरंभ कराया है और भविष्य में भाषा-क्रांति के माध्यम से आने वाला समय संस्कृत का बताया है। अतः अंग्रेजी बोलने में बड़ा गौरव अनुभव करने वाले, अंग्रेजी में गिटपिट करके गुब्बारे की तरह फूल जाने वाले कुछ महाशय जो संस्कृत में दोष गिनाते हैं उन्हें कुँए से निकलकर संस्कृत की वैज्ञानिकता का एवं संस्कृत के विषय में विश्व के सभी विद्वानों का मत जानना चाहिए।
नासा की वेबसाईट पर जाकर संस्कृत का महत्व पढ़ें।

काफी शर्म की बात है कि भारत की भूमि पर ऐसे लोग हैं जिन्हें अमृतमयी वाणी संस्कृत में दोष और विदेशी भाषाओं में गुण ही गुण नजर आते हैं वो भी तब जब विदेशी भाषा वाले संस्कृत को सर्वश्रेष्ठ मान रहे हैं

अतः जब हम अपने बच्चों को कई विषय पढ़ा सकते हैं तो संस्कृत पढ़ाने में संकोच नहीं करना चाहिए। देश विदेश में हुये कई शोधो के अनुसार संस्कृत मस्तिष्क को काफी तीव्र करती है जिससे अन्य भाषाओं व विषयों को समझने में काफी सरलता होती है , साथ ही यह सत्वगुण में वृद्धि करते हुये नैतिक बल व चरित्र को भी सात्विक बनाती है। अतः सभी को यथायोग्य संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए।

आज दुनिया भर में लगभग 6900 भाषाओं का प्रयोग किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन भाषाओं की जननी कौन है?

नहीं?

कोई बात नहीं आज हम आपको दुनिया की सबसे पुरानी भाषा के बारे में विस्तृत जानकारी देने जा रहे हैं।
दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है :- संस्कृत भाषा

आइये जाने संस्कृत भाषा का महत्व :
संस्कृत भाषा के विभिन्न स्वरों एवं व्यंजनों के विशिष्ट उच्चारण स्थान होने के साथ प्रत्येक स्वर एवं व्यंजन का उच्चारण व्यक्ति के सात ऊर्जा चक्रों में से एक या एक से अधिक चक्रों को निम्न प्रकार से प्रभावित करके उन्हें क्रियाशील – उर्जीकृत करता है :-

मूलाधार चक्र – स्वर ‘अ’ एवं क वर्ग का उच्चारण मूलाधार चक्र पर प्रभाव डाल कर उसे क्रियाशील एवं सक्रिय करता है।
स्वर ‘इ’ तथा च वर्ग का उच्चारण स्वाधिष्ठान चक्र को उर्जीकृत करता है।
स्वर ‘ऋ’ तथा ट वर्ग का उच्चारण मणिपूरक चक्र को सक्रिय एवं उर्जीकृत करता है।
स्वर ‘लृ’ तथा त वर्ग का उच्चारण अनाहत चक्र को प्रभावित करके उसे उर्जीकृत एवं सक्रिय करता है।
स्वर ‘उ’ तथा प वर्ग का उच्चारण विशुद्धि चक्र को प्रभावित करके उसे सक्रिय करता है।
ईषत् स्पृष्ट वर्ग का उच्चारण मुख्य रूप से आज्ञा चक्र एवं अन्य चक्रों को सक्रियता प्रदान करता है।
ईषत् विवृत वर्ग का उच्चारण मुख्य रूप से

सहस्त्राधार चक्र एवं अन्य चक्रों को सक्रिय करता है।
इस प्रकार देवनागरी लिपि के प्रत्येक स्वर एवं व्यंजन का उच्चारण व्यक्ति के किसी न किसी उर्जा चक्र को सक्रिय करके व्यक्ति की चेतना के स्तर में अभिवृद्धि करता है। वस्तुतः संस्कृत भाषा का प्रत्येक शब्द इस प्रकार से संरचित (design) किया गया है कि उसके स्वर एवं व्यंजनों के मिश्रण (combination) का उच्चारण करने पर वह हमारे विशिष्ट ऊर्जा चक्रों को प्रभावित करे। प्रत्येक शब्द स्वर एवं व्यंजनों की विशिष्ट संरचना है जिसका प्रभाव व्यक्ति की चेतना पर स्पष्ट परिलक्षित होता है। इसीलिये कहा गया है कि व्यक्ति को शुद्ध उच्चारण के साथ-साथ बहुत सोच-समझ कर बोलना चाहिए। शब्दों में शक्ति होती है जिसका दुरूपयोग एवं सदुपयोग स्वयं पर एवं दूसरे पर प्रभाव डालता है। शब्दों के प्रयोग से ही व्यक्ति का स्वभाव, आचरण, व्यवहार एवं व्यक्तित्व निर्धारित होता है।

उदाहरणार्थ जब ‘राम’ शब्द का उच्चारण किया जाता है है तो हमारा अनाहत चक्र जिसे ह्रदय चक्र भी कहते है सक्रिय होकर उर्जीकृत होता है। ‘कृष्ण’ का उच्चारण मणिपूरक चक्र – नाभि चक्र को सक्रिय करता है। ‘सोह्म’ का उच्चारण दोनों ‘अनाहत’ एवं ‘मणिपूरक’ चक्रों को सक्रिय करता है।

वैदिक मंत्रो को हमारे मनीषियों ने इसी आधार पर विकसित किया है। प्रत्येक मन्त्र स्वर एवं व्यंजनों की एक विशिष्ट संरचना है। इनका निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार शुद्ध उच्चारण ऊर्जा चक्रों को सक्रिय करने के साथ साथ मष्तिष्क की चेतना को उच्चीकृत करता है। उच्चीकृत चेतना के साथ व्यक्ति विशिष्टता प्राप्त कर लेता है और उसका कहा हुआ अटल होने के साथ-साथ अवश्यम्भावी होता है। शायद आशीर्वाद एवं श्राप देने का आधार भी यही है। संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता एवं सार्थकता इस तरह स्वयं सिद्ध है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत के सातों स्वर हमारे शरीर के सातों उर्जा चक्रों से जुड़े हुए हैं । प्रत्येक का उच्चारण सम्बंधित उर्जा चक्र को क्रियाशील करता है। शास्त्रीय राग इस प्रकार से विकसित किये गए हैं जिससे उनका उच्चारण / गायन विशिष्ट उर्जा चक्रों को सक्रिय करके चेतना के स्तर को उच्चीकृत करे। प्रत्येक राग मनुष्य की चेतना को विशिष्ट प्रकार से उच्चीकृत करने का सूत्र (formula) है। इनका सही अभ्यास व्यक्ति को असीमित ऊर्जावान बना देता है।

संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा है इसीलिए इसका नाम संस्कृत है। संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं बल्कि #महर्षिपाणिनि; #महर्षिकात्यायिनि और योग शास्त्र के प्रणेता महर्षि #पतंजलि हैं। इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है। यही इस भाषा का रहस्य है । जिस प्रकार साधारण पकी हुई दाल को शुध्द घी में जीरा; मैथी; लहसुन; और हींग का तड़का लगाया जाता है;तो उसे संस्कारित दाल कहते हैं। घी ; जीरा; लहसुन, मैथी ; हींग आदि सभी महत्वपूर्ण औषधियाँ हैं। ये शरीर के तमाम विकारों को दूर करके पाचन संस्थान को दुरुस्त करती है।दाल खाने वाले व्यक्ति को यह पता ही नहीं चलता कि वह कोई कटु औषधि भी खा रहा है; और अनायास ही आनन्द के साथ दाल खाते-खाते इन औषधियों का लाभ ले लेता है। ठीक यही बात संस्कारित भाषा संस्कृत के साथ सटीक बैठती है। जो भेद साधारण दाल और संस्कारित दाल में होता है ;वैसा ही भेद अन्य भाषाओं और संस्कृत भाषा के बीच है।

संस्कृत भाषा में वे औषधीय तत्व क्या है ?
यह विश्व की तमाम भाषाओं से संस्कृत भाषा का तुलनात्मक अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है। चार महत्वपूर्ण विशेषताएँ:- 1. अनुस्वार (अं ) और विसर्ग (अ:): संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक व्यवस्था है, अनुस्वार और विसर्ग। पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं -यथा- राम: बालक: हरि: भानु: आदि। नपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं-यथा- जलं वनं फलं पुष्पं आदि।

विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है। अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण करेंगे उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अनायास ही हो जाता है। जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं।उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है । भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भवरे की तरह गुंजन करना होता है और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है। अत: जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होगा , उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: हो जायेगा । जैसे हिन्दी का एक वाक्य लें- ” राम फल खाता है”इसको संस्कृत में बोला जायेगा- ” राम: फलं खादति”=राम फल खाता है ,यह कहने से काम तो चल जायेगा ,किन्तु राम: फलं खादति कहने से अनुस्वार और विसर्ग रूपी दो प्राणायाम हो रहे हैं। यही संस्कृत भाषा का रहस्य है। संस्कृत भाषा में एक भी वाक्य ऐसा नहीं होता जिसमें अनुस्वार और विसर्ग न हों। अत: कहा जा सकता है कि संस्कृत बोलना अर्थात् चलते फिरते योग साधना करना होता है ।

2.शब्द-रूप:-संस्कृत की दूसरी विशेषता है शब्द रूप। विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक ही रूप होता है,जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 25 रूप होते हैं। जैसे राम शब्द के निम्नानुसार 25 रूप बनते हैं- यथा:- रम् (मूल धातु)-राम: रामौ रामा:;रामं रामौ रामान् ;रामेण रामाभ्यां रामै:; रामाय रामाभ्यां रामेभ्य: ;रामात् रामाभ्यां रामेभ्य:; रामस्य रामयो: रामाणां; रामे रामयो: रामेषु ;हे राम ! हे रामौ ! हे रामा : ।ये 25 रूप सांख्य दर्शन के 25 तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

जिस प्रकार पच्चीस तत्वों के ज्ञान से समस्त सृष्टि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, वैसे ही संस्कृत के पच्चीस रूपों का प्रयोग करने से आत्म साक्षात्कार हो जाता है और इन 25 तत्वों की शक्तियाँ संस्कृतज्ञ को प्राप्त होने लगती है। सांख्य दर्शन के 25 तत्व निम्नानुसार हैं -आत्मा (पुरुष), (अंत:करण 4 ) मन बुद्धि चित्त अहंकार, (ज्ञानेन्द्रियाँ 5) नासिका जिह्वा नेत्र त्वचा कर्ण, (कर्मेन्द्रियाँ 5) पाद हस्त उपस्थ पायु वाक्, (तन्मात्रायें 5) गन्ध रस रूप स्पर्श शब्द,( महाभूत 5) पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश।

3.द्विवचन:- संस्कृत भाषा की तीसरी विशेषता है द्विवचन। सभी भाषाओं में एक वचन और बहुवचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है। इस द्विवचन पर ध्यान दें तो पायेंगे कि यह द्विवचन बहुत ही उपयोगी और लाभप्रद है। जैसे :- राम शब्द के द्विवचन में निम्न रूप बनते हैं:- रामौ , रामाभ्यां और रामयो:। इन तीनों शब्दों के उच्चारण करने से योग के क्रमश: मूलबन्ध ,उड्डियान बन्ध और जालन्धर बन्ध लगते हैं, जो योग की बहुत ही महत्वपूर्ण क्रियायें हैं।

  1. सन्धि:- संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। संस्कृत में जब दो शब्द पास में आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है। उस बदले हुए उच्चारण में जिह्वा आदि को कुछ विशेष प्रयत्न करना पड़ता है।ऐसे सभी प्रयत्न एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के प्रयोग हैं।”इति अहं जानामि” इस वाक्य को चार प्रकार से बोला जा सकता है, और हर प्रकार के उच्चारण में वाक् इन्द्रिय को विशेष प्रयत्न करना होता है।

यथा:- 1 इत्यहं जानामि। 2 अहमिति जानामि। 3 जानाम्यहमिति । 4 जानामीत्यहम्। इन सभी उच्चारणों में विशेष आभ्यंतर प्रयत्न होने से एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का सीधा प्रयोग अनायास ही हो जाता है। जिसके फल स्वरूप मन बुद्धि सहित समस्त शरीर पूर्ण स्वस्थ एवं निरोग हो जाता है। इन समस्त तथ्यों से सिद्ध होता है कि संस्कृत भाषा केवल विचारों के आदान-प्रदान की भाषा ही नहीं ,अपितु मनुष्य के सम्पूर्ण विकास की कुंजी है। यह वह भाषा है, जिसके उच्चारण करने मात्र से व्यक्ति का कल्याण हो सकता है। इसीलिए इसे #देवभाषा और अमृतवाणी कहते हैं। संस्कृत भाषा का व्याकरण अत्यंत परिमार्जित एवं वैज्ञानिक है।

संस्कृत के एक वैज्ञानिक भाषा होने का पता उसके किसी वस्तु को संबोधन करने वाले शब्दों से भी पता चलता है। इसका हर शब्द उस वस्तु के बारे में, जिसका नाम रखा गया है, के सामान्य लक्षण और गुण को प्रकट करता है। ऐसा अन्य भाषाओं में बहुत कम है। पदार्थों के नामकरण ऋषियों ने वेदों से किया है और वेदों में यौगिक शब्द हैं और हर शब्द गुण आधारित हैं ।
इस कारण संस्कृत में वस्तुओं के नाम उसका गुण आदि प्रकट करते हैं। जैसे हृदय शब्द। हृदय को अंगेजी में हार्ट कहते हैं और संस्कृत में हृदय कहते हैं।

अंग्रेजी वाला शब्द इसके लक्षण प्रकट नहीं कर रहा, लेकिन संस्कृत शब्द इसके लक्षण को प्रकट कर इसे परिभाषित करता है। बृहदारण्यकोपनिषद 5.3.1 में हृदय शब्द का अक्षरार्थ इस प्रकार किया है- तदेतत् र्त्यक्षर हृदयमिति, हृ इत्येकमक्षरमभिहरित, द इत्येकमक्षर ददाति, य इत्येकमक्षरमिति।
अर्थात हृदय शब्द हृ, हरणे द दाने तथा इण् गतौ इन तीन धातुओं से निष्पन्न होता है। हृ से हरित अर्थात शिराओं से अशुद्ध रक्त लेता है, द से ददाति अर्थात शुद्ध करने के लिए फेफड़ों को देता है और य से याति अर्थात सारे शरीर में रक्त को गति प्रदान करता है। इस सिद्धांत की खोज हार्वे ने 1922 में की थी, जिसे हृदय शब्द स्वयं लाखों वर्षों से उजागर कर रहा था ।

संस्कृत में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया के कई तरह से शब्द रूप बनाए जाते, जो उन्हें व्याकरणीय अर्थ प्रदान करते हैं। अधिकांश शब्द-रूप मूल शब्द के अंत में प्रत्यय लगाकर बनाए जाते हैं। इस तरह यह कहा जा सकता है कि संस्कृत एक बहिर्मुखी-अंतःश्लिष्टयोगात्मक भाषा है। संस्कृत के व्याकरण को महापुरुषों ने वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया है। संस्कृत भारत की कई लिपियों में लिखी जाती रही है, लेकिन आधुनिक युग में देवनागरी लिपि के साथ इसका विशेष संबंध है। #देवनागरी_लिपि वास्तव में संस्कृत के लिए ही बनी है! इसलिए इसमें हरेक चिन्ह के लिए एक और केवल एक ही ध्वनि है।

देवनागरी में 13 स्वर और 34 व्यंजन हैं। *संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं, बल्कि संस्कारित भाषा भी है, अतः इसका नाम संस्कृत है। केवल संस्कृत ही एकमात्र भाषा है, जिसका नामकरण उसके बोलने वालों के नाम पर नहीं किया गया है। संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद नहीं, बल्कि महर्षि पाणिनि, महर्षि कात्यायन और योगशास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं।

विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का प्रायः एक ही रूप होता है, जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 27 रूप होते हैं। सभी भाषाओं में एकवचन और बहुवचन होते हैं, जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है। संस्कृत भाषा की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है संधि। संस्कृत में जब दो अक्षर निकट आते हैं, तो वहां संधि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है। इसे शोध में कम्प्यूटर अर्थात कृत्रिम बुद्धि के लिए सबसे उपयुक्त भाषा सिद्ध हुई है और यह भी पाया गया है कि संस्कृत पढ़ने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।

संस्कृत ही एक मात्र साधन है, जो क्रमशः अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाती है। इसके अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएं ग्रहण करने में सहायता मिलती है। वैदिक ग्रंथों की बात छोड़ भी दी जाए, तो भी संस्कृत भाषा में साहित्य की रचना कम से कम छह हजार वर्षों से निरंतर होती आ रही है। संस्कृत केवल एक भाषा मात्र नहीं है, अपितु एक विचार भी है। संस्कृत एक भाषा मात्र नहीं, बल्कि एक संस्कृति है और संस्कार भी है। संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है और वसुधैव कुटुंबकम् की भावना भी ! 🙏🕉

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“`
अमेरिका को English में America
ही बोलते.

जापान को भी English में Japan बोलते

भूटान को भी English में Bhutan ही बोलते

श्रीलंका को भी English में
Sri Lanka ही बोलते.

बांग्लादेश को भी English में Bangladesh ही बोलते

नेपाल को भी English में Nepal ही बोलते.

इतना ही नहीं अपने पडोसी मुल्क पाकिस्तान को भी
English में Pakistan ही बोलते.

फिर सिर्फ भारत को ही English में India क्यों बोलते ?

तो

Oxford Dictionary के अनुसार

India यह शब्द कैसे आया यह ९९% लोगो को भी पता तक नहीं होगा…
*
I – Independent

N- Nation

D- Declared

I – In

A- August

इसीलिए इंडिया (India)

दोस्तों

इस पोस्ट को कृपया इतना शेयर करो की, ज्यादा से ज्यादा भारतीयों को यह पता चल सके…“`

👌👍👏👏👏👏👏👏👏

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संस्कृतं देवभाषास्ति वेदभाषास्ति संस्कृतम् प्राचीनज्ञानभाषा च संस्कृतं भद्रमण्डनम्


संस्कृतं देवभाषास्ति वेदभाषास्ति संस्कृतम् प्राचीनज्ञानभाषा च संस्कृतं भद्रमण्डनम् II Sanskrit is the language of the Gods, sanskrit is the language of the vedas, it is also the language (which gives) our ancient knowledge, sanskrit adorns prosperity. The word संस्कृत (saMskRutam) is derived as सम्यक् कृतम् इति संस्कृतम् (samyak kRutam iti saMskRutam). It literally means – ‘well done’, ‘refined’, ‘perfected’! The basics of the language are so well defined that it has been declared as the most unambiguous language ever, the best suited even for the modern inventions like computers. Sanskrit propagates prosperity. जयतु संस्कृतम् (jayatu saMskRutam) – hail Sanskrit. May it live for ever.

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કયાંક એવું તો નહી બને ને કે


કયાંક એવું તો નહી બને ને કે

વીસ પચ્ચીસ વરસ પછી

આપણે માતૃભાષા ગુજરાતી

બચાવવાની ચર્ચા પણ

અંગ્રેજીમાં કરવી પડશે,,,?

 

કમ્પ્યુટરના કાળઝાળ યુગમાં

કકાનો સ્વાદ સુકકો

થાતો જાય છે, બારખડી

રીતસર પોતાના અસ્તિત્વને

ટકાવવા માટે લડી રહી છે.

 

કલમનો ‘ક’

ખરેખર ઘાયલ થઇ ગયો છે

કોઇ તો મલમ ચોપડો,,

 

ખડીયાનાં ‘ખ’

ની શ્યાહી ખૂટી ગઈ છે.

 

ગણપતિને બદલે ગુગલનો

‘ગ’ગોખાતો જાય છે.

 

અમે બે અને અમારા એક

ઉપર ઘરનો ‘ઘ’

પૂર્ણવિરામ પામી ગયો છે.

 

ચકલીનો ‘ચ’ખોવાઇ

ગયો છે મોબાઇલના

ટાવરો વચ્ચે….

 

છત્રીના ‘છ’ઉપર જ

માતૃભાષાને પ્રેમ કરનારા

લોકોનો વરસાદ

ઓછો થઇ ગયો છે.

 

જમરૂખનો ‘જ’જંકફૂડમાં

ફુગાઇ ગયેલા ખમણ જેવા

બચ્ચાઓ જન્માવી રહ્યો છે.

 

ટપાલીનો ‘ટ’તો ટેબ્લેટ

અને ટવીટરના યુગમાં

ટીંગાય ગયો છે.,,,,

એક જમાનામાં ટપાલીની

રાહ આખુ ગામ જોતુ હતુ,

હવે આખા ગામની રાહ

ટપાલી જોવે છે કે કોક તો

ટપાલ લખશે હજુ,,,?

 

– ઠળિયા થૂંકી થૂંકીને

બોર ખાતી આખી પેઢીને

બજારમાંથી કોઇ

અપહરણ કરી ગ્યુ છે.

 

ડગલા તરફ કોઇએ ધ્યાન

નથી દીધુ એટલે ઇ

મનોચિકિત્સકની દવા

લઇ રહ્યો છે.

 

એ.સી.સ્કૂલોમાં ભણતા

આજના બચ્ચાઓને

પાણાના ઢગલાના ‘ઢ’

ની સ્હેજ પણ કિંમત નથી.

 

ની ફેણ લોહી લુહાણ

થઇ ગઇ છે પણ કોઇને

લૂંછવાનો સમય કયાં,,?

 

વીરરસનો લોહી તરસ્યો

તલવાનો ‘ત’હવે માત્ર

વાર્ષિકોત્સવના રાસમાં

કયાંક કયાંક દેખાય છે,,

 

થડનો ‘થ’ થપ્પાદામાં

રીસાઇને સંતાઇ ગયો છે

કારણ કે એ સંતાનો થડ

મુકીને કલમની ડાળુએ

ચોંટયા છે,,,

 

દડાનો ‘દ’માં કોઇએ

પંચર પાડી દીધુ છે એટલે

બિચાકડો દડો દવાખાનામાં

છેલ્લાશ્ર્વાસ પર છે,,

 

ધજાનો ‘ધ’ધરમની

ધંધાદારી દુકાનોથી અને

ધર્મના નામે થતા હુલ્લડો

જોઇને મોજથી નહી પણ

ડરી ડરીને ફફડી રહ્યો છે.,,

 

ઇલેકટ્રોનિક આરતીની વચ્ચે

નગારાના ‘ન’ નો અવાજ

સંભળાય છે કોને,,?

 

પતંગનો ‘પ’તો બહુ મોટો

માણસ થઇ ગયો છે અને

હવે પાંચસો કરોડના

કાઇટ ફેસ્ટીવલ નામે

ઓળખાય છે.,,

 

L.E.D. લાઇટના

અજવાળામાં ફાનસનો ‘ફ’

માત્ર ફેસબુક પર દેખાય છે.

 

બુલફાઇટના ક્રેઝની વચ્ચે

બકરીના ‘બ’ને બધાયે

બેન્ડ વાળી દીધો છે.,,

 

મોબાઇલ અને કમ્પ્યુટરની

અધતન રમતો,

ભમરડાના‘ભ’ને

ભરખી ગઇ છે.

 

મરચાનો ‘મ’ હવે કેપ્સીકમ

થઇ ગયો છે ને મોબાઇલના

સ્ક્રીન સેવર પર ડોકાયા કરે છે.

 

ગાયને ગાયનો ‘ય’ બંને

બિચારા થઇને કત્તલખાને

રોજ કપાયા કરે છે.

 

રમતનો ‘ર’ તો સિમેન્ટના

જંગલો જેવા શહેરોની સાંકડી

ગલીઓમાં અને ઉંચા ઉંચા

ફલેટની સીડીઓ ઉતરતાં-

ઉતરતાં જ ગુજરી ગયો છે.,,

 

લખોટીનો ‘લ’ તો ભેદી રીતે

ગુમ છે, કોઇને મળે તો કહેજો.,,

 

વહાણના ‘વ’ એ તો કદાચ

હાજી કાસમની વીજળી સાથે જ

જળ સમાધિ લઇ લીધી છે.

 

સગડીનો ‘સ’માં કોલસા

ખૂટી જવાની અણી માથે છે.,,

 

એટલે જ કદાચ શકોરાના

‘શ’ને નવી પેઢી પાસે

માતૃભાષા બચાવવાની

ભીખ માંગવા નોબત આવી છે.

 

ફાડીયા ‘ષ’એ તો ભાષાવાદ,

કોમવાદ અ પ્રદેશવાદના

દ્રશ્યો જોઇને છાનો મૂનો

આપઘાત કરી લીધો છે.,,

 

હળનો ‘હ’ તો વેચાય ગ્યો છે

અને એની જમીન ઉપર

મોટા મોટા મોંઘા

મોલ ખડકાય ગ્યા છે.,,

 

પહેલા એમ લાગતું હતું કે

એક ‘ળ’જ કોઇનો નથી.

પરંતુ હવે એમ લાગે છે કે

જાણે આખી બારખડી જ

અનાથ થઇ ગઇ છે.,,

 

ક્ષ/જ્ઞ

ક્ષાત્રત્વની જેમ માતૃભાષાના

રખોપા કરવાનો જ્ઞાનયજ્ઞ

કયા ચોઘડીયે

શરૂ કરીશું આપણે સૌ ,,,?

 

 

સ્કર્ટ મીડી પહેરેલી

અંગ્રેજી માસીએ ઘર

પચાવી પાડયું છે. અને

સાડી પહેરેલી ગુજરાતી મા

ની આંખ્યુ રાતી છે.

 

પોતાના જ ફળિયામાં

ઓરમાન થઇને ગુજરાતી મા

કણસતા હૈયે રાહ જોવે છે

કોઇ દિવ્ય ૧૦૮ ના ઇંતજારમાં..!

 

આવો ઘાયલ થઇ ગયેલી

ગુજરાતીને ફરી સજીવન કરીએ,

બેઠી કરીએ, પ્રેમથી પોંખીએ.

 

ગુજરાતી બોલીએ,

ગુજરાતી વાંચીએ,

નવી પેઢીને ગુજરાતીમાં

ભણાવીએ અને એક સાચા

ગુજરાતી તરીકે જીવીએ….

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शायद उस दिन.


*शायद उस दिन…!* मेरे परदादा, संस्कृत और हिंदी जानते थे। माथे पे तिलक, और सर पर पगड़ी बाँधते थे।। फिर मेरे दादा जी का, दौर आया। उन्होंने पगड़ी उतारी, पर जनेऊ बचाया।। मेरे दादा जी, अंग्रेजी बिलकुल नहीं जानते थे। जानना तो दूर, अंग्रेजी के नाम से कन्नी काटते थे।। मेरे पिताजी को अंग्रेजी, थोड़ी थोड़ी समझ में आई। कुछ खुद समझे, कुछ अर्थ चक्र ने समझाई।। पर वो अंग्रेजी का प्रयोग, मज़बूरी में करते थे। यानि सभी सरकारी फार्म, हिन्दी में ही भरते थे।। जनेऊ उनका भी, अक्षुण्य था। पर संस्कृत का प्रयोग, नगण्य था।। वही दौर था, जब संस्कृत के साथ, संस्कृति खो रही थी। इसीलिए संस्कृत, मृत भाषा घोषित हो रही थी।। धीरे धीरे समय बदला, और नया दौर आया। मैंने अंग्रेजी को पढ़ा ही नहीं, अच्छे से चबाया।। मैंने खुद को, हिन्दी से अंग्रेजी में लिफ्ट किया। साथ ही जनेऊ को, पूजा घर में सिफ्ट किया।। मै बेवजह ही दो चार वाक्य, अंग्रेजी में झाड जाता हूँ। शायद इसीलिए समाज में, पढ़ा लिखा कहलाता हूँ।। और तो और, मैंने बदल लिए कई रिश्ते नाते हैं। मामा, चाचा, फूफा, अब अंकल नाम से जाने जाते हैं।। मै टोन बदल कर वेद को वेदा, और राम को रामा कहता हूँ। और अपनी इस तथा कथित, सफलता पर गर्वित रहता हूँ।। मेरे बच्चे, और भी आगे जा रहे हैं। मैंने संस्कार चबाया था, वो अंग्रेजी में पचा रहे हैं।। यानि उन्हें दादी का मतलब, ग्रैनी बताया जाता है। रामा वाज ए हिन्दू गॉड, गर्व से सिखाया जाता है।। जब श्रीमती जी उन्हें, पानी मतलब वाटर बताती हैं। और अपनी इस प्रगति पर, मंद मंद मुस्काती हैं।। जाने क्यों मेरे पूजा घर की, जीर्ण जनेऊ चिल्लाती है। और मंद मंद, कुछ मन्त्र यूँ ही बुदबुदाती है।। कहती है – ये विकास, भारत को कहाँ ले जा रहा है। संस्कार तो गल गए, अब भाषा को भी पचा रहा है।। *संस्कृत की तरह हिन्दी भी,* *एक दिन मृत घोषित हो जाएगी*। *शायद उस दिन भारत भूमि,* *पूर्ण विकसित हो जाएगी॥* 🙏🙏 _इसके दोषी सिर्फ हम और हम ही हैं_

R K Nakeera

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संस्कृत : कुछ रोचक तथ्य


*संस्कृत : कुछ रोचक तथ्य* ================ संस्कृत के बारे में ये 20 तथ्य जान कर आपको भारतीय होने पर गर्व होगा। आज हम आपको संस्कृत के बारे में कुछ ऐसे तथ्य बता रहे हैं,जो किसी भी भारतीय का सर गर्व से ऊंचा कर देंगे;; .1. संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी माना जाता है। 2. संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक भाषा है। 3. अरब लोगो की दखलंदाजी से पहले संस्कृत भारत की राष्ट्रीय भाषा थी। 4. NASA के मुताबिक, संस्कृत धरती पर बोली जाने वाली सबसे स्पष्ट भाषा है। 5. संस्कृत में दुनिया की किसी भी भाषा से ज्यादा शब्द है। वर्तमान में संस्कृत के शब्दकोष में 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्द है। 6. संस्कृत किसी भी विषय के लिए एक अद्भुत खजाना है। जैसे हाथी के लिए ही संस्कृत में 100 से ज्यादा शब्द है। 7. NASA के पास संस्कृत में ताड़पत्रो पर लिखी 60,000 पांडुलिपियां है जिन पर नासा रिसर्च कर रहा है। 8. फ़ोबर्स मैगज़ीन ने जुलाई,1987 में संस्कृत को Computer Software के लिए सबसे बेहतर भाषा माना था। 9. किसी और भाषा के मुकाबले संस्कृत में सबसे कम शब्दो में वाक्य पूरा हो जाता है। 10. संस्कृत दुनिया की अकेली ऐसी भाषा है जिसे बोलने में जीभ की सभी मांसपेशियो का इस्तेमाल होता है। 11. अमेरिकन हिंदु युनिवर्सिटी के अनुसार संस्कृत में बात करने वाला मनुष्य बीपी, मधुमेह,कोलेस्ट्रॉल आदि रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीरका तंत्रिका तंत्र सदा सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश (PositiveCharges) के साथ सक्रिय हो जाता है। 12. संस्कृत स्पीच थेरेपी में भी मददगार है यह एकाग्रता को बढ़ाती है। 13. कर्नाटक के मुत्तुर गांव के लोग केवल संस्कृत में ही बात करते है। 14. सुधर्मा संस्कृत का पहला अखबार था, जो 1970 में शुरू हुआ था। आज भी इसका ऑनलाइन संस्करण उपलब्ध है। 15. जर्मनी में बड़ी संख्या में संस्कृतभाषियो की मांग है। जर्मनी की 14 यूनिवर्सिटीज़ में संस्कृत पढ़ाई जाती है। 16. नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब वो अंतरिक्ष ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तोउनके वाक्य उलट हो जाते थे। इस वजह से मैसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंले कई भाषाओं का प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मैसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उल्टे हो जाने पर भी अपना अर्थ नही बदलते हैं। जैसे अहम् विद्यालयं गच्छामि। विद्यालयं गच्छामि अहम्। गच्छामिअहम् विद्यालयं । उक्त तीनो के अर्थ में कोई अंतर नहीं है। 17. आपको जानकर हैरानी होगी कि Computer द्वारा गणित के सवालो को हल करने वाली विधि यानि Algorithms संस्कृत में बने है ना कि अंग्रेजी में। 18. नासा के वैज्ञानिको द्वारा बनाए जा रहे 6th और 7th जेनरेशन Super Computers संस्कृतभाषा पर आधारित होंगे जो 2034 तक बनकर तैयार हो जाएंगे। 19. संस्कृत सीखने से दिमाग तेज हो जाता है और याद करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए London और Ireland के कई स्कूलो में संस्कृत को Compulsory Subject बना दिया है। 20. इस समय दुनिया के 17 से ज्यादा देशो की कम से कम एक University में तकनीकी शिक्षा के कोर्सेस में संस्कृत पढ़ाई जाती है। संस्कृत के बारे में ये 20 तथ्य जान कर आपको भारतीय होने पर गर्व होगा। *संस्कृत दिवस की शुभकामना* *ग्रहदृष्टी सूर्यसिद्धांतीय पंचांग नागपूर*

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Mind Blowing Facts about Sanskrit


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Mind Blowing Facts about Sanskrit

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• Sanskrit has the highest number of vocabularies than any other language in the world.
• 102 arab 78 crore 50 lakh words have been used till now in Sanskrit. If it will be used in computers & technology, then more these number of words will be used in next 100 years.
• Sanskrit has the power to say a sentence in a minimum number of words than any other language.
• America has a University dedicated to Sanskrit and the NASA too has a department in it to research on Sanskrit manuscripts.
• Sanskrit is the best computer friendly language.(Ref: Forbes Magazine July 1987).
• Sanskrit is a highly regularized language. In fact, NASA declared it to be the “only unambiguous spoken language on the planet” – and very suitable for computer comprehension.
• Sanskrit is an official language of the Indian state of Uttarakhand.
• There is a report by a NASA scientist that America is creating 6th and 7th generation super computers based on Sanskrit language. Project deadline is 2025 for 6th generation and 2034 for 7th generation computer. After this there will be a revolution all over the world to learn Sanskrit.
• The language is rich in most advanced science, contained in their books called Vedas, Upanishads, Shruti, Smriti, Puranas, Mahabharata, Ramayana etc. (Ref: Russian State University, NASA etc. NASA possesses 60,000 palm leaf manuscripts, which they are studying.)
• Learning of Sanskrit improves brain functioning. Students start getting better marks in other subjects like Mathematics, Science etc., which some people find difficult. It enhances the memory power. James Junior School, London, has made Sanskrit compulsory. Students of this school are among the toppers year after year. This has been followed by some schools in Ireland also.
• Research has shown that the phonetics of this language has roots in various energy points of the body and reading, speaking or reciting Sanskrit stimulates these points and raises the energy levels, whereby resistance against illnesses, relaxation to mind and reduction of stress are achieved.
• Sanskrit is the only language, which uses all the nerves of the tongue. By its pronunciation, energy points in the body are activated that causes the blood circulation to improve. This, coupled with the enhanced brain functioning and higher energy levels, ensures better health. Blood Pressure, diabetes, cholesterol etc. are controlled. (Ref: American Hindu University after constant study)
• There are reports that Russians, Germans and Americans are actively doing research on Hindu’s sacred books and are producing them back to the world in their name. Seventeen countries around the world have a University or two to study Sanskrit to gain technological advantages.
• Surprisingly, it is not just a language. Sanskrit is the primordial conduit between Human Thought and the Soul; Physics and Metaphysics; Subtle and Gross; Culture and Art; Nature and its Author; Created and the Creator.
• Sanskrit is the scholarly language of 3 major World religions – Hinduism, Buddhism (along with Pali) and Jainism (second to Prakrit).
• Today, there are a handful of Indian villages (in Rajasthan, Madhya Pradesh, Orissa, Karnataka and Uttar Pradesh) where Sanskrit is still spoken as the main language. For example in the village of Mathur in Karnataka, more than 90% of the population knows Sanskrit. Mathur/Mattur is a village 10 kms from Shimoga speaks Sanskrit on daily basis (day-to-day communication).
• Even a Sanskrit daily newspaper exists! Sudharma, published out of Mysore, has been running since 1970 and is now available online as an e-paper (sudharma.epapertoday.com)!
• The best type of calendar being used is hindu calendar(as the new year starts with the geological change of the solar system)

ref: german state university
• The UK is presently researching on a defence system based on Hindu’s shri chakra.
• Another interesting fact about Sanskrit language was that the process of introducing new words into the language continued for a long period until it was stopped by the great grammarian Panini who wrote an entire grammar for the language laying down rules for the derivation of each and every word in Sanskrit and disallowed the introducing of new words by giving a full list of Roots and Nouns. Even after Panini, some changes occur which were regularised by Vararuchi and finally by Patanjali. Any infringement of the rules as laid down by Patanjali was regarded as a grammatical error and hence the Sanskrit Language has remained in same without any change from the date of Patanjali (about 250 B.C.) up to this day.
• संस्कृत is the only language in the world that exists since millions of years. Millions of languages that emerged from Sanskrit are dead and millions will come but Sanskrit will remain eternal. It is truly language of Bhagwan. Wealth of information on Sanskrit language. 👌👌👌 👆👆👆 Shows how India lags behind the Americans in this matter. We Indians are reading sacred texts, performing pujas for various religious festivals throughout the year. So we will not be lying if we say Sanskrit as also one of the languages in the next Census excercise without forgetting, thus help save our own language from disappearing & doing our bit for the language

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महाराष्ट्र मराठी के साथ हिंदी बोलता है ।


महाराष्ट्र मराठी के साथ हिंदी बोलता है ।

गुजरात गुजराती के साथ हिंदी बोलता है ।

पंजाब पंजाबी के साथ हिंदी बोलता है ।

जम्मू कश्मीर में भी हिंदी में बात लोग करते हैं ।

अरुणाचल, असम में भी लोग हिंदी में बात करते हैं ।

इसके अलावा मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली आदि में अपनी क्षेत्रीय भाषाओं/ बोलियों के होते हुए भी लोग हिंदी में काम करते हैं तथा हिंदी अच्छे से समझते हैं ।

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अब दिक्कत बस तमिलनाडु, कर्नाटक, केरला और बंगाल के कुछ राजनैतिक लोगों को ही हैं क्योंकि उन्हें लगता है के उनकी जनता यदि हिंदी सीख गई तो वो अलगाववाद की राजनीति से दूर होकर बाकी के भारत के साथ एकाकार हो जाएगी , इससे क्षेत्रीय नेताओं की दुकान बंद हो जाएगी ।

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कुछ लोगो को अंग्रेजो की गुलामी की भाषा अंग्रेजी से कोई दिक्कत नही है । पर देश के अधिकतर क्षेत्रो तथा 60 % से ज्यादा लोगो द्वारा बोली जाने वाली भाषा हिंदी से इन्हें नफरत है । अजीब लोग हैं, इनमे से कुछ अभी भी कमेंट में मुझे ज्ञान बांटने आ सकते हैं । पर हिंदी का विरोध करने वाले स्वयं ही अपने आप को देश की आधी जनता से काटने का कार्य कर रहे हैं , यह एक तथ्य है जिसे नकारा नही जा सकता ।

आर्य शुभम वर्मा