बचपन में मेरे घर के पास एक नीम का पेड़ था, उस पेड़ पर कौवों के दो-तीन जोड़ो ने घौंसला बनाया हुआ था जिनमे उनके छोटे बच्चे भी थे।
कौवे सारा दिन कांव कांव करते रहते थे, बड़ा शोर मचता था। एक दिन मैंने उनके घौंसले में पत्थर मार दिया , कौवे ससुरे बहुत गुस्सा हो गए। तब से मुझे पहचान गए थे,उन्हें लगता कि मैं उनके बच्चो का दुश्मन हूँ। जंहा भी मैं जाता मेरे ऊपर मंडराते हुए उड़ते रहते, कई बार मौका मिलते ही चोंच भी मार देते। डर के मारे में टोपी पहन के घर से निकलता था।
मैं घर से निकला नही की कौवे कांव कांव करते हुए मेरे पीछे , कुछ सामान लेने जाओ , खेलने जाओ यंहा तक कि स्कूल जाते भी मेरा पीछा करते।
छत पर तो जाना ही मुश्किल कर दिया था, कौवे छत पर ही बैठे रहते जैसे मेरा ही इन्तेजार करते हों कि कब मैं आऊं और वो कब मुझे चोंच मारें।।डर के मारे मैं दिन में कभी छत पर नही जाता था चाहे कितना ही जरूरी काम हो।
मेरे दोस्त या दूसरे लोग पूछते की ये कौवे तेरे साथ साथ क्यों रहते हैं? मैं उनसे बड़े रौब से कहता कि ये मेरे दोस्त हैं!!मुझे पहचानते हैं! मुझ से बहुत प्यार करते हैं, मैने इन्हें पाल रखा है।
मेरी बात सुन के दोस्त और दूसरे लोग अचंभा मानते ,मुझे बड़ा वाला पक्षी प्रेमी समझते।
कौवे की मेरे से दुश्मनी कई महीनों तक चली, जब तक कि उनके बच्चे बड़े होके उस पेड़ से उड़ नही गए थे।
अफ़सोस इस बात का है कि उस समय मोबाइल नही था और न सोशल मीडिया…. वरना मैं भी पक्षी प्रेमी बन के मशहूर हो गया होता😏
संजय कुमार