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ब्रह्मांड का पहला स्टूडेंट लीडर ..

भक्त प्रह्लाद ..

जी बिलकुल ठीक पढ़ रहे हैं , छात्र आंदोलन कि शुरूआत ढोंगी वामपंथियों के द्वारा नहीं हुयी ..

हिरण्यकस्यपु ने गुरूकुल में आदेश दे दिया था की , किसी छात्र ( शिष्य) को ईश्वर के बारे में न बताया जाये ..केवल उसके प्रभुत्व के बारे में बताया जाये ..

प्रह्लाद ने बच्चों को इकट्ठा किया और नारायण कि चर्चा करने लगे । और इस प्रकार पहला छात्र आंदोलन हुआ जो कि ईश्वर को समर्पित था । मास्टर कुछ पढ़ाते पर बच्चे ईश्वर के बारे में पढ़ते और प्रह्लाद उनका नेतृत्व करते ।

उस छात्र आंदोलन का फल क्या मिला ? कि, नारायण कृपा किसी वरदान किसी शक्ति से भी बड़ी होती है ।

पहली बात होलिका जलाने में होलिका को नहीं जलाया जाता ..
बुराई को भी नहीं जलाया जाता ..
होलिका , अग्नि से जल ही नहीं सकती थी ..

हिरण्याक्ष का अर्थ होता है जिसकी दृष्टि सदैव अर्थ पर रहे .. केवल धन कमाने में

हिरण्यकस्यपु का अर्थ होता है जिसकी दृष्टि सदैव “ काम “ पुरुषार्थ पर रहे ..

ध्यान दें , अर्थ और काम पुरुषार्थ तभी फलित होते हैं जब वे धर्म पुरुषार्थ से नियंत्रित होते हैं ..

पहले छात्र आंदोलन का फल यह हुआ कि होलिका ही जल गई और भक्त प्रह्लाद ( Student Union ke President) बच गये ..

प्रह्लाद और होलिका दोनों एक ही वर्ण के थे .. अतः भामटे दूर रहें ..

छात्र एकता ज़िंदाबाद
हमारा नेता कैसा हो ? भक्त प्रह्लाद जैसा हो ..

सनातन हिन्दू धर्मी यह याद रखें कि होली , प्रथम छात्र आंदोलन की भी प्रतीक है …..शुभ होली …
मंगलमय होली 🚩🚩

हर हर महादेव
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धर्म की जय हो अधर्मी का नाश हो🚩

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तैत्तिरीय उपनिषद के भृगुवाली में एक कथा है भृगु ब्रह्म के बारे में जानने की जिज्ञासा करता हुआ अपने पिता के पास जाता है और कहता है – ” श्रीमान! ब्रह्म की व्याख्या करें”

भृगु का प्रश्न सुन पिता उसे ब्रह्म के स्वभाव के बारे में मन्त्र बताता है- वह ,जिसमे से यंहा के प्राणी जन्म लेते हैं और जन्म लेने के पश्चात जिसके आधार पर जीवित रहते हैं , वह जिसमे मृत्यु के पश्चात विलीन हो जाते हैं और वह जिसका ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रहती है , वही ब्रह्म है।”

भृगु ने इसी के आधार पर ब्रह्म के स्वरूप का ध्यान किया ,उसके चिंतन का प्रथम परिणाम यह ज्ञान था कि ब्रह्म निश्चित ही अन्न है । वस्तुतः यंहा सभी प्राणी अन्न से उपजे हैं और जन्म लेने के पश्चात अन्न पर ही जीवित रहते है तथा मृत्यु के पश्चात अन्न में ही विलीन हो जाते हैं।

बेशक उपनिषद आत्मवाद को निषेध करते है किन्तु यह निश्चित है कि उपनिषद के कई लेखक ऐसे भी रहे होंगे जो यह सत्य जानते होंगे की आत्मा कपोल कल्पना है ,वे इस आद्यभौतिकवाद अवश्य ही प्रेरित रहे होंगे जो चार्वाक और बौद्धों का विचार रहा था।
किन्तु आत्मा का समर्थन उनके लिए करना जरुरी था …. आखिर रोजी रोटी का सवाल जो था।

– संजय

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मगध सम्राट बिंन्दुसार ने एक बार अपनी सभा मे पूछा :

देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए

सबसे सस्ती वस्तु क्या है ?

मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये ! चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी हालत में अन्न तो सस्ता हो ही नहीं सकता !

तब शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा :
राजन,

सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है,

इसे पाने मे मेहनत कम लगती है और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है । सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन प्रधान मंत्री चाणक्य चुप थे ।

तब सम्राट ने उनसे पूछा :
आपका इस बारे में क्या मत है ?

चाणक्य ने कहा : मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा !

रात होने पर प्रधानमंत्री उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर घबरा गया ।

प्रधानमंत्री ने कहा :
शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय 💓 का सिर्फ दो तोला मांस लेने आया हूं । इसके लिए आप एक लाख स्वर्ण मुद्रायें ले लें ।

यह सुनते ही सामंत के चेहरे का रंग उड़ गया, उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ कर माफी मांगी और

उल्टे एक लाख स्वर्ण मुद्रायें देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें ।

प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामंतों, सेनाधिकारियों के यहां पहुंचे और

सभी से उनके हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ, उल्टे सभी ने अपने बचाव के लिये प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख, पांच लाख तक स्वर्ण मुद्रायें दीं ।

इस प्रकार करीब दो करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री सवेरा होने से पहले वापस अपने महल पहुंचे और समय पर राजसभा में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष दो करोड़ स्वर्ण मुद्रायें रख
दीं ।

सम्राट ने पूछा :
यह सब क्या है ?
तब प्रधानमंत्री ने बताया कि दो तोला मांस खरिदने के लिए

इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई फिर भी दो तोला मांस नही मिला ।

राजन ! अब आप स्वयं विचार करें कि मांस कितना सस्ता है ?

जीवन अमूल्य है, हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी है, उसी तरह सभी जीवों को भी अपनी जान उतनी ही प्यारी है। लेकिन वो अपना जान बचाने मे असमर्थ है।

और मनुष्य अपने प्राण बचाने हेतु हर सम्भव प्रयास कर सकता है । बोलकर, रिझाकर, डराकर, रिश्वत देकर आदि आदि ।

पशु न तो बोल सकते हैं, न ही अपनी व्यथा बता सकते हैं ।

तो क्या बस इसी कारण उनसे जीने का अधिकार छीन लिया जाय ।

शुद्ध आहार, शाकाहार !
मानव आहार, शाकाहार !
जय महादेव
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