सिंधी हिसाब…
अपनी संतान को पहली कक्षा या पूर्व प्राथमिक में प्रवेश कराने के लिए इच्छुक माता पिता को आया है एक नया विचार…
हरीश मोटवानी
मैंने अपने भांजे को पूर्व प्राथमिक विद्यालय मे प्रवेश कराने के लिए बहुत सारे निजी विद्यालय में शुल्क पूछा, तो वार्षिक शुल्क ४० हजार से लेकर ₹१ लाख तक बताया गया। आगे बालक जितनी ऊंची कक्षा में जायेगा, शुल्क और बढेगा।
तब मुझे विचार आया कि १८ वर्ष तक विद्यालयों में इतना शुल्क भरने के बाद भी नोकरी की कोई संभावना नहीं है और बालक पूर्णतः योग्य हो जायेगा इसकी भी कोई निश्चिततता नहीं।
फिर वह यदि विदेशों मे नोकरी ढूंढेगा और सफल रहा तो आपको छोड़ कर विदेश में जा बसेगा।
तो मुझे लगा कि यदि हर वर्ष जितना शुल्क ये विद्यालय मांगते हैं, उतनी फी के रिलायंस, एचडीएफसी, कोटक, बिरला नीपोन, यूटीआई, केनेरा आदि किसी भी अच्छी कंपनी के म्यूच्यूअल फंड स्कीम में, हर वर्ष एक लाख के यूनिट खरीद लिये जायें और अपने बच्चों को शासकीय सरकारी विद्यालय में प्रवेश दिला दें। वहां पर भी योग्य शिक्षक होते हैं और विद्यार्थी यदि बुद्धिमान है तो वहां से भी वह श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
तो हम मिशनरी के काॅन्वेंट में, विधर्मियों के और दूसरे तड़क भड़क वाले नामी गिरामी विद्यालयों में इतना शुल्क क्यों दें ?
यदि यह शुल्क हर वर्ष एक लाख रुपये म्यूचुअल फंड में जमा किये जाय, तो १८ वर्ष बाद उस बालक के खाते में कम से कम डेढ़ करोड़ और अधिक से अधिक २१ करोड़ की रकम जमा होगी और उसे कहीं नोकरी करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी । अपितु वह इतना सक्षम होगा कि अपना स्वयं का उद्योग स्थापित कर लोगों को नोकरी दे सकेगा।
प्रत्येक माता-पिता इस पर गंभीरता से विचार करें और यदि अच्छा लगे तो इसको अपने बच्चों के भविष्य हेतु यह उपाय प्रत्यक्ष में लावें।
व्यवहारिक बनो।
नोकरी का विचार छोडो।
अपने संतान को स्वावलंबी बनाओ।
धन्यवाद 🙏🏻
Day: March 9, 2023
एक बार मैं स्कूल के खेल मैदान में लोकल फुटबॉल मैच देखने गया था।
बैठने के बाद मैंने कुछ लड़कों में से एक से पूछा कि स्कोर क्या था?
मुस्कुराहट के साथ, उसने जवाब दिया; वे (विपक्षी टीम) 3-0 से हमसे आगे हैं।
मैंने कहा, वास्तव में,
मेरा मतलब है कि आप निराश नहीं दिखते!
“निराश” लड़के ने हैरान नज़र से पूछा?
जब तक रेफरी अंतिम सीटी नहीं बजा देता तब तक मुझे निराश क्यों होना चाहिए ?
मुझे टीम और मैनेजर्स पर पूरा भरोसा है; हम निश्चित रूप से जीतेंगे।
सचमुच, मैच उस लड़के की टीम के पक्ष में 5-4 से खत्म हुआ।
मैच खत्म होने के बाद उसने सुंदर मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा! मैं चकित था! मेरा मुंह खुला रह गया!!!
ऐसा आत्मविश्वास; ऐसा सुन्दर विश्वास।
जब मैच समाप्त होने के बाद रात को घर वापस आया,उसका सवाल मेरे कानों में गूंज रहा था ….।
जब तक रेफरी ने अंतिम सीटी नहीं दी है तब तक मुझे क्यों निराश होना चाहिए!
सच में, जीवन एक खेल की तरह है …क्यों हतोत्साहित होना, जब अभी भी जीवन है ? जब तक आपकी अंतिम सीटी नहीं बजती है तो निराश क्यों हों?
सच तो यह है कि बहुत से लोग अंतिम सीटी खुद बजाते हैं …।
હીરબાઇ

एक समय था जब भगत सिंह पर फ़िल्म बनी थी #शहीद
मनोज कुमार ने इसके लिए उनके जीवित साथी बटुकेश्वर दत्त से काफ़ी जानकारी ली थी।
जब फ़िल्म रिलीज़ हुई तो पटकथा लेखन में उनका नाम था।
वे यह देख कर रो पड़े थे।
भगत सिंह की माता ने फ़िल्म देखी तो वे तो वे भी रो पड़ीं थीं। उनके मुख से निकला, “इतनी अच्छी तो मैं असली जीवन में कभी न थी।”
भारत के प्रधान मंत्री शास्त्री जी ने फ़िल्म देखी तो मनोज कुमार से निवेदन किया…..एक फ़िल्म देश के जवान और किसान पर भी बनाइए।
मनोज कुमार ने फ़िल्म बनायी #उपकार
जिसमें जय जवान जय किसान को जीवंत दिखाया गया!
अफ़सोस फ़िल्म पूरी होने से पहले ही शास्त्री जी का निधन हो गया।
मनोज कुमार को आज तक इसका अफ़सोस है।
फ़िल्म ने सफलता के सभी रेकॉर्ड तोड़ डाले…..क्या फ़िल्म फ़ेयर, क्या राष्ट्रीय पुरस्कार सबकी लाइन लग गयी।
इस फ़िल्म में बहुत सच्चे और अच्छे गीत थे,
एक फ़िल्म के लिए चार-चार गीतकार और चार-चार ही गायक।
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती,
दीवानों से ये मत पूछो दीवानों पे क्या गुजरी है,
हर खुशी हो वहाँ, तू जहां भी रहे,
आयी झूम के बसंत नाचो और क़समें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या !
समर्पण का यह आलम था कि……
मनोज कुमार भारत कुमार हो गए
फिर न जाने क्या बिजली गिरी फ़िल्म जगत बॉलीवुड हो गया।
सारे गीत छोड़ उसने एक ही गीत अपना लिया?
कसमें वादे टूटने लगे,
सेना बलात्कारी हो गयी (दिल से),
सेना पुलिसकर्मी हत्यारे हो गए, तोड़े गए मंदिर क़ब्रिस्तान हो गए (हैदर),
शाकाहारी हिरोइन मांसाहारी बना दी गयी, हनुमान भक्त कसाई के दिए तावीज़ से जीतने लगे (दंगल),
हिंदू भगवान त्याज्य और हंसी का पात्र हो गया, प्रसाद तिरस्कृत हुआ किंतु 786 का बिल्ला रक्षक हो गया (दीवार),
स्मगलर, टेररिस्ट, गुंडे, देशद्रोही, डाकू हीरो बन गये (दीवार, रइस, Ghulam-E-Mustafa, गेंग़स्टर),
विक्टिम, देश भक़्त सभी मजहब विशेष के हो गए और भ्रष्ट पंडित, नेता, पुलिसकर्मी सभी दूसरे धर्म के हो गए।
मीर रंजन नेगी कबीर खान बना दिए गए।
आज समझ में आता है कि….
क्रीएटिव फ़्रीडम के नाम पर कोई षड्यंत्र चल रहा है।
अब यह षड्यंत्र असह्य हो गया है।
महिला पायलट के जीवन पर उन्हीं के नाम से बनी फ़िल्म में ही वायुसेना अधिकारी महिला छेड़ते हैं।
महिला चीख चीख कर कह रही है कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई। पर निर्लज्ज बॉलीवुड हंस कर कहता है, “क्रीएटिव फ़्रीडम है
भोली जनता पैसे खर्च कर फ़िल्मी से अपराधी प्रोमोट कर रही है?
इस अभियान में हिंदू , मुस्लिम, ब्राह्मण, बनिए, दलित, क्षत्रिय सब शामिल हैं।
न जाने कौन सी जादुई ड्रग है बालीवुड के पास जो भी जाता है उसे देशद्रोह प्यारा और देशभक्ति त्याज्य लगने लगती है!
जब तक बालीवुड सुधरता नहीं इसका सम्पूर्ण बहिष्कार होना चाहिए।
नेता अभिनेता और शासन कुंभकर्णी नींद में हैं।
करीना सच ही तो कहती है…..
“किसने कहा क़ि हमारी फ़िल्में देखो ?”
साभार: Munna Singh Kalhans
*लक्ष्मण जी की आनंद यात्रा……*
भगवान श्रीराम ने एक बार पूछा कि लक्ष्मण तुमने अयोध्या से लेकर लंका तक की यात्रा की परन्तु उस यात्रा में सबसे अधिक आनंद तुम्हें कब आया?
लक्ष्मणजी ने कहा कि भैया, मेरी सबसे बढ़िया यात्रा तो लंका में हुई और वह भी तब हुई जब मेघनाद ने मुझे बाण मार दिया!
प्रभु ने हंसकर कहा कि लक्ष्मण तब तो तुम मूर्छित हो गये थे, उस समय तुम्हारी यात्रा कहां हुई थी ?
तब लक्ष्मणजी ने कहा कि;
प्रभु उसी समय तो सर्वाधिक सुखद यात्रा हुई, लक्ष्मणजी का तात्पर्य था कि अन्य जितनी यात्राएं हुईं उन्हें तो मैंने चलकर पूरा किया लेकिन इस यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि;
*मूर्छित होने के बाद भी हनुमानजी ने मुझे गोद में उठा लिया और आपकी गोद में पहुंचा दिया।*
*प्रभु, सन्त की गोद से लेकर ईश्वर की गोद तक की जो यात्रा थी जिसमें रंजमात्र कोई पुरुषार्थ नहीं था।*
उस यात्रा में जितनी *धन्यता की अनुभूति हमें हुई वह तो सर्वथा वाणी से परे है!।*
लक्ष्मणजी ने कहा
*हे प्रभु, शेष के रूप में आपको गोदी में सुलाने का सुख तो मैंने देखा था पर आपकी गोदी में सोने का सुख तो सन्त की प्रेरणा से ही मुझे प्राप्त हुआ।*
इसलिए सबसे महान वही यात्रा थी जो हनुमान जी की गोद से आपकी गोदी तक हुई थी और *तब भगवान श्रीराघवेन्द्र ने लक्ष्मण को हृदय से लगा लिया !!*
*।।आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र:।।*