ज़्यादातर भारतीयों को जानकारी नहीं है कि होली जैसे मदनोत्सव का उद्गमस्थल मुल्तान है जो भारत के विभाजन के बाद #पाकिस्तान में है और जिसे आर्यों का बतौर मूलस्थान भी कभी जाना जाता था. आज वह प्रहलाद पुरी है..नरसिंह अवतार की.
खंडहर में तब्दील हो चुकी प्रहलाद पुरी में स्थित विशाल किले के भग्नावशेष चीख चीख कर उसकी प्राचीन ऐतिहासिकता के प्रमाण दे रहे हैं. वहां इस समय मदरसे चला करते हैं।
देवासुर संग्राम के दौरान दो ऐसे अवसर भी आए जब सुर- असुर ( आर्य- अनार्य ) के बीच संधि हुई थी.. एक भक्त ध्रुव के समय और दूसरी प्रहलाद के साथ. जब हिरण्यकश्प का वध हो गया तब वहां एक विशाल यज्ञ हुआ और बताते हैं कि हवन कुंड की अग्नि छह मास तक धधकती रही थी और इसी अवसर पर मदनोत्सव का आयोजन हआ…जिसे हम होली के रूप में जानते हैं.
यह समाजसमता का त्यौहार है, क्योंकि प्रह्लाद के माध्यम से असभ्य-अनपढ़- निर्धन असुरों को पूरा मौका मिला आर्यों के समीप आने का. टेसू के फूल का रंग तो था ही, पानी, धूल और कीचड़ के साथ ही दोनों की हास्य से ओतप्रोत छींटाकशी भी खूब चली.. उसी को आज हम गालियों से मनाते हैं. लेकिन बड़ों के चरणों की धूल भी मस्तक पर लगाते हैं. इसी लिए इस त्यौहार को धूलिवंदन भी कहते हैं.
मुल्तान की वो ऐतिहासिक विरासत बावरी ध्वंस के समय जला दी गयी. बचा है सिर्फ वह खंभा जिसे फाड़ कर नरसिंह निकले थे. गूगल में प्रहलादपुरी सर्च करने पर सिर्फ खंभे का ही चित्र मिलेगा.
यह कैसी विडंबना है कि हमको कभी यह नहीं बताया गया और न ही पाठ्यक्रम में इसे रखा गया. प्राचीन भारत के उस भूभाग ,जो अब पाकिस्तान में है ,उसमें तो विरासतें बिखरी पड़ी हैं पर हम बहुत कम जानते हैं.
साभार निरंजन सिंह जी
