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ज़िन्दगी में ठक-ठक


सिपाही ने तो अपने पास रखे पानी से प्यास बुझा ली पर बेचारे घोड़े के लिए कहीं पानी नहीं दिख रहा था।

पानी की तलाश में दोनों आगे बढ़ गए. थोड़ी देर चलने के बाद कुछ दूर पर एक बूढ़ा किसान अपने बैल के साथ दिखा।

वह खेतों की सींचाई करने के लिए रहट चला रहा था।

सिपाही उसके समीप पहुँच कर बोला, “काका, मेरा घोड़ा बड़ा प्यासा है इसे जरा पानी पिलाना था.”

“पिला दो बेटा!”, किसान बोला.

सिपाही घोड़े को रहट के पास ले गया ताकि वो उससे गिरता हुआ पानी पी सके.

पर ये क्या घोड़ा चौंक कर पीछे हट गया.

“अरे! ये पानी क्यों नहीं पी रहा?”, किसान ने आश्चर्य से पूछा.

सिपाही कुछ देर सोचने के बाद बोला, “काका! रहट चलने से ठक-ठक की जो आवाज़ आ रही है उससे यह चौंक कर पीछे हट गया.”

“आप थोड़ी देर अपने बैल को रोक देते तो घोड़ा आराम से पानी पी लेता.”

किसान मुस्कुराया,

बेटा ये ठक-ठक तो चलती रहेगी… अगर मैंने बैल को रोक दिया तो कुंएं से पानी कैसे उठेगा…यदि घोड़े को पानी पीना है तो उसे इस ठक-ठक के बीच ही अपनी प्यास बुझानी होगी…।

सिपाही को बात समझ आ गयी, उसने फिर से घोड़े को पानी पिलाने का प्रयास किया, घोड़ा फिर पीछे हट गया…पर दो-चार बार ऐसा करने के बाद घोड़ा भी समझ गया कि उसे इस ठक-ठक के बीच ही पानी पीना होगा और उसने इस विघ्न के बावजूद अपनी प्यास बुझा ली।

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बदले की आग


बहुत समय पहले की बात है, किसी कुँए में मेढ़कों का राजा गंगदत्त अपने परिवार व कुटुम्बियों के साथ रहता था। वैसे तो गंगदत्त एक अच्छा शाषक था और सभी का ध्यान रखता था, पर उसमे एक कमी थी, वह किसी भी कीमत पर अपना विरोध सहन नहीं कर सकता था।

लेकिन एक बार गंगदत्त के एक निर्णय को लेकर कई मेंढकों ने उसका विरोध कर दिया। गंगदत्त को ये बात सहन नहीं हुई कि एक राजा होते हुए भी कोई उसका विरोध करने की हिम्मत जुटा सकता है। वह उन्हें सजा देने की सोचने लगा। लेकिन उसे भय था कि कहीं ऐसा करने पर जनता उसका विरोध ना कर दे और उसे अपने राज-पाठ से हाथ धोना पड़ जाए।

फिर एक दिन उसने कुछ सोचा और रात के अँधेरे में चुपचाप कुँए से बाहर निकल आया।

बिना समय गँवाए वह फ़ौरन प्रियदर्शन नामक एक सर्प के बिल के पास पहुंचा और उसे पुकारने लगा।

एक मेढक को इस तरह पुकारता सुनकर प्रियदर्शन को बहुत आश्चर्य हुआ। वह बाहर निकला और बोला, “कौन हो तुम? क्या तुम्हे इस बात का भय नहीं कि मैं तुम्हे खा सकता हूँ?”

गंगदत्त बोला,” हे सर्पराज! मैं मेढ़कों का राजा गंगदत्त हूँ और मैं यहाँ आपसे मैत्री करने के लिए आया हूँ।”

“यह कैसे हो सकता है। क्या दो स्वाभाविक शत्रु आपस में मित्रता कर सकते हैं?”, प्रियदर्शन ने आश्चर्य से कहा।

गंगदत्त बोला, “आप ठीक कहते हैं, आप हमारे स्वाभाविक शत्रु हैं। लेकिन इस समय मैं अपने ही लोगों द्वारा अपमानित होकर आपकी शरण में आया हूँ, और शाश्त्रों में कहा भी तो गया है- सर्वनाश की स्थिति में अथवा अपने प्राणों की रक्षा हेतु शत्रु की अधीनता स्वीकार करने में ही समझदारी है… कृपया मुझे अपनी शरण में लें। मेरे दुश्मनों को मारकर मेरी मदद करें।”

प्रियदर्शन अब बूढ़ा हो चुका था, उसने मन ही मन सोचा कि यदि इस मेंढक की वजह से मेरा पेट भर पाए तो इसमें बुराई ही क्या है।

वह बोला, “बताओ, मैं तुम्हारी मदद कैसे कर सकता हूँ?”

सर्प को मदद के लिए तैयार होता देख गंगदत्त प्रसन्न हो गया और बोला, “आपको मेरे साथ कुएं में चलना होगा, और वहां मैं जिस मेंढक को भी आपके पास लेकर आऊंगा उसे मारकर खाना होगा। और एक बार मेरे सारे दुश्मन ख़तम हो जाएं तो आप वापस अपने बिल में आकर रहने लगिएगा”

“पर कुएं में मैं रहूँगा कैसे मैं तो अपने बिल में ही आराम से रह सकता हूँ?”, प्रियदर्शन ने चिंता व्यक्त की।

उसकी चिंता आप छोड़ दीजिये आप हमारे मेहमान हैं, मैं आपके रहने का पूरा प्रबंध पहले ही कर आया हूँ. परन्तु वहां जाने से पहले आपको एक वचन देना होगा।

“वह क्या?” प्रियदर्शन बोला।

“वह यह कि आपको मेरी, मेरे परिवार वालों और मेरे साथियों की रक्षा करनी होगी!”, गंगदत्त ने कहा।

प्रियदर्शन बोला- “निश्चितं रहो तुम मेरे मित्र बन चुके हो। अत: तुमको मुझसे किसी भी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए। मैं तुम्हारे कहे अनुसार ही मेंढ़कों को मार-मार कर खाऊँगा।”

बदले की आग में जल रहा गंगदत्त प्रियदर्शन को लेकर कुएं में उतरने लगा।

पानी की सतह से कुछ ऊपर एक बिल था, प्रियदर्शन उस बिल में जा घुसा और गंगदत्त चुपचाप अपने स्थान पर चला गया।

अगले दिन गंगदत्त ने एक सभा बुलाई और कहा कि आप सबके लिए खुशखबरी है, बड़े प्रयत्न के बाद मैंने एक ऐसा गुप्त मार्ग ढूंढ निकाला है जिसके जरिये हम यहाँ से निकल कर एक बड़े तालाब में जा सकते हैं, और बाकी की ज़िन्दगी बड़े आराम से जी सकते हैं। पर ध्यान रहे मार्ग कठिन और अत्यधिक सकरा है, इसलिए मैं एक बार में बस एक ही मेंढक को उससे लेकर जा सकता हूँ।

अगले दिन गंगदत्त एक दुश्मन मेंढक को अपने साथ लेकर आगे बढ़ा और योजना अनुसार सांप के बिल में ले गया।

प्रियदर्शन तो तैयार था ही, उसने फ़ौरन उस मेंढक को अपना निवाला बना लिया।

अगले कई दिनों तक यह कार्यक्रम चलता रहा और वो दिन भी आ गया जब गंगदत्त का आखिरी दुश्मन प्रियदर्शन के मुख का निवाला बन गया।

गंगदत्त का बदला पूरा हो चुका था। उसने चैन की सांस ली और प्रियदर्शन को धन्यवाद देते हुए बोला, “सर्पराज, आपके सहयोग से आज मेरे सारे शत्रु ख़त्म हो गए हैं, मैं आपका यह उपकार जीवन भर याद रखूँगा, कृपया अब अपने घर वापस लौट जाएं।”

प्रियदर्शन ने कुटिलता भरी वाणी में कहा, “कौन-सा घर मित्र? प्राणी जिस घर में रहने लगता है, वही उसका घर होता है। अब मैं वहाँ कैसे जा सकता हूं? अब तक तो किसी और ने उस पर अपना अधिकार कर लिया होगा। मैं तो यही रहूंगा।”

“पर… आपने तो वचन दिया था।”, गंगदत्त गिड़गिड़ाया।

“वचन? कैसा वचन? अपने ही कुटुम्बियों की हत्या करवाने वाला नीच आज मुझसे मेरे वचन का हिसाब मांगता है! हा हा हा!” प्रियदर्शन ठहाका मारकर हंसने लगा।

और देखते ही देखते गंगदत्त को अपने जबड़े में जकड़ लिया।”

आज गंगदत्त को अपनी गलती का एहसास हो रहा था, बदले की आग में सिर्फ उसके दुश्मन ही नहीं जले… आज वो खुद भी जल रहा था।

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ज्ञान की पहचान !!



किसी जंगल में एक संत महात्मा रहते थे. सन्यासियों वाली वेशभूषा थी और बातों में सदाचार का भाव, चेहरे पर इतना तेज था कि कोई भी इंसान उनसे प्रभावित हुए नहीं रह सकता था.

एक बार जंगल में शहर का एक व्यक्ति आया और वो जब महात्मा जी की झोपड़ी से होकर गुजरा तो देखा बहुत से लोग महात्मा जी के दर्शन करने आये हुए थे. वो महात्मा जी के पास गया और बोला कि आप अमीर भी नहीं हैं, आपने महंगे कपडे भी नहीं पहने हैं, आपको देखकर मैं बिल्कुल प्रभावित नहीं हुआ फिर ये इतने सारे लोग आपके दर्शन करने क्यों आते हैं?
महात्मा जी ने उस व्यक्ति को अपनी एक अंगूठी उतार कर दी और कहा कि आप इसे बाजार में बेच कर आएं और इसके बदले एक सोने की माला लेकर आना.
अब वो व्यक्ति बाजार गया और सब की दुकान पर जा कर उस अंगूठी के बदले सोने की माला मांगने लगा. लेकिन सोने की माला तो क्या उस अंगूठी के बदले कोई पीतल का एक टुकड़ा भी देने को तैयार नहीं था.
थक हार के व्यक्ति वापस महात्मा जी के पास पहुंचा और बोला कि इस अंगूठी की तो कोई कीमत ही नहीं है.
महात्मा जी मुस्कुराये और बोले कि अब इस अंगूठी को सुनार गली में जौहरी की दुकान पर ले जाओ. वह व्यक्ति जब सुनार की दुकान पर गया तो सुनार ने एक माला नहीं बल्कि अंगूठी के बदले पांच माला देने को कहा.
वह व्यक्ति बड़ा हैरान हुआ कि इस मामूली सी अंगूठी के बदले कोई पीतल की माला देने को तैयार नहीं हुआ, लेकिन ये सुनार कैसे 5 सोने की माला दे रहा है!
व्यक्ति वापस महात्मा जी के पास गया और उनको सारी बातें बतायीं.
अब महात्मा जी बोले कि चीजें जैसी ऊपर से दिखती हैं, अंदर से वैसी नहीं होती. ये कोई मामूली अंगूठी नहीं है बल्कि ये एक हीरे की अंगूठी है जिसकी पहचान केवल सुनार ही कर सकता था. इसलिए वह 5 माला देने को तैयार हो गया. ठीक वैसे ही मेरी वेशभूषा को देखकर तुम मुझसे प्रभावित नहीं हुए, लेकिन ज्ञान का प्रकाश लोगों को मेरी ओर खींच लाता है. व्यक्ति महात्मा जी की बातें सुनकर बड़ा शर्मिंदा हुआ.

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પૂજા


મોટર સાયકલ ફ્રિ પાર્કિંગમાં એવી રીતે ફસાઈ ગયું હતું કે વિજય એને બહાર કાઢવા મથી રહ્યો હતો.
હું બહાર ઉભો હતો.
મંદિરની બહાર થોડા ભીખારીઓ ઉભા હતા.
એક વૃદ્ધા પણ રસ્તા પર આવતા જતા લોકો પાસે ભીખ માગી રહી હતી.એના એક હાથમાં ટેકણ લાકડી અને બીજા હાથમાં ભીક્ષાપાત્ર હતું.
ટુ વ્હીલર અને ફોર વ્હીલરની ભીડમાં પણ રૂપિયાનો રૂઆબ નજરે ચડતો હતો.પગે ચાલનારનું ધ્યાન તો કોઈથી અથડાઈ ન જવાય એ તરફ જ રહેતું હતું.
કોઈ આપે, ન આપે, હડધૂત કરે તોયે એ વૃધ્ધા તો આશીર્વાદ આપતી રહેતી હતી:-” ભગવાન તમારું ભલું કરે.હોય એનાથી બમણું કરે.”
એ મારાથી થોડે છેટે પાર્કિંગ બહાર કોઈ દાતાએ મૂકેલા બાંકડા પર આવીને બેઠી.ઉંમરનો બધો થાક એના ચહેરાની કરચલીઓમાં ડોકિયાં કરતો હતો.એમાંય, ભીક્ષાપાત્રમાં રહેલી થોડી પરચૂરણ તરફ જોઈને નિરાશાનાં પંખી પણ એની આસપાસ ઉડતાં હોય તેમ લાગતું હતું.
વિજય હજુ આવ્યો નહોતો.
વૃધ્ધા મારી પાસે આવી ઉભી રહી.ત્યાંજ વિજય પણ બાઈક લઈને આવ્યો.એણે ખિસ્સામાંથી પચાસની નોટ કાઢી પેલી વૃધ્ધાના ભીક્ષાપાત્રમાં મૂકી.
એ સમયે મંદિર બાજુથી થોડાં પક્ષી એમની પેટપૂજા થઈ ગઈ હોય તેમ ઉડીને બાંકડાની બાજુના ઝાડ પર આવીને ગોઠવાઈ ગયાં.
પેલી વૃધ્ધાએ પચાસની નોટ વિજયને પાછી આપતાં કહ્યું:-” વીસ જ જોઈએ છે,સાહેબ !”
વિજયે મારી સામે જોયું.મેં ખિસ્સામાંથી વીસની નોટ કાઢીને એ વૃધ્ધાના ભીક્ષાપાત્રમાં મૂકી એટલે એ
” ભગવાન તમારું ભલું કરે.હોય એનાથી બમણું કરે.” બોલીને એક લારી બાજુ ચાલી ગઈ જ્યાં વીસ રૂપિયાનો એક વડાપાઉં મળતો હતો.

માણેકલાલ પટેલ

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कर्मो का फल


अपनी ज़िंदगी में बहुत से लोगों को बजुर्गों की सेवा करते और उनका आशीर्वाद लेते और फिर बजुर्गों के दिल से निकली दुआओं को फलते फूलते तो बहुत देखा लेकिन जो लोग बजुर्गों की सेवा तो क्या करनी उनको तंग करते हैं उनका क्या हाल होता है इस को घटित होते हुए भी बहुत करीब से देखा है।

कुछ दिन पहले की बात है मैं अपने भाई के घर यानी अपने मायके गयी।वहां अपनी मम्मी और भाभी के साथ बैठ कर बातें कर रही थी।कि बाहर की घण्टी बजी देखा तो एक औरत अंदर आयी बड़ी दीन हीन सी लग रही थी। सादे से कपड़े, कैंची चप्पल, मैं एक दम से तो उसको पहचान ही नही पायी।
भाभी ने जब उसको पानी दिया तब मम्मी ने बताया कि ये नीलिमा है पहचाना नही तुमने?

मैं तो एक दम से हैरान ही रह गयी देख कर के ये वो ही नीलिमा भाभी है जिसके कभी शाही ठाठ हुआ करते थे।मेरी शादी से पहले नीलिमा भाभी का और हमारा परिवार एक ही गली में रहते थे। एक दूसरे के घर आना जाना भी था क्योंकि दूर की रिश्तेदारी भी थी। मेरी शादी के बाद मेरे दोनो भाईयों ने वो मोहल्ला छोड़ दिया और अपने अपने घर दूसरी जगह पर बना लिए।

नीलिमा की शादी तो मेरे सामने ही हुई थी ।उसकी सास कितने चाव से बहु ले कर आई थी ।बेटे की शादी के कितने ही सपने देखे होंगे उसने।बहु के आने से ऐसा लग रहा था कि जैसे उसको जमाने भर की खुशियाँ मिल गयी हों। लेकिन ईशवर की मर्जी थी या शायद उसके भाग्य में ये खुशियां थोड़े दिन के लिए ही थी कि शादी के दो ही महीने बाद वो रात को सोई तो सुबह उठी ही नही। तब तो सबको लग रहा था कि बहु को बहुत दुख हुआ है सासु माँ के जाने का ,बहुत जोर जोर से रो रही थी।

लेकिन सास के जाते ही बहु ने अपने असली रंग दिखाने शुरू कर दिए। घर की मालकिन तो वो बन ही गयी थी लेकिन उसके अंदर जो गरूर था वो भी अब बाहर आने लगा। बात बात पर सब से लड़ पड़ती। ससुर का तो उसने जीना हराम कर दिया। वो बेचारे एक तो असमय जीवन साथी का बिछोह, ऊपर से बहु के जुल्म बुढ़ापे में सहने को मजबूर हो गए थे। एक समय पर बहुत खुशदिल इंसान अब बेचारे को देखकर ही तरस आता था। बहु ने घर के मालिक होते हुए भी उन्हें तीसरी मंजिल पर एक छोटे से कमरे में रहने को मजबूर कर दिया था। फिर येभी सुना कि बहु उन्हें पेटभर खाना भी नही देती और न ही उनके कपड़े धो कर देती है। बेचारे मैले कुचैले कपड़ों में कभी गली में आते तो ही दिखते लेकिन किसी से ज्यादा बात नही करते। जैसे ज़िन्दगी से रूष्ट हो गए हों।लेकिन बहु बिना बात के ही उन पर चिल्लाती रहती। कब तक सहते बेचारे। एक दिन वो भी चुपचाप चल दिये इस दुनिया को अलविदा कह कर।

नीलिमा को मेरी भाभी ओर मम्मी ने कुछ कपड़े और खाने पीने का समान दिया ।चाय पिलाई और वो चुपचाप चली गयी। जितनी देर वो बैठी एक अक्षर भी नही बोली उसने जितनी भी बात की इशारे से ही की।

उसके जाने के बाद मम्मी ने बताया कि ससुर के जाने के कुछ समय बाद ही नीलिमा की उल्टी गिनती शुरू हो गयी। पहले तो उसके पति को बिज़नेस में घाटा पड़ गया और उस पर कर्जा चढ़ गया।और इसी के चलते उन्हें अपनी दुकान ओर मकान दोनो बेचने पड़े। पति ने कही नोकरी कर ली और किराये के घर मे आ गए।नीलिमा के तीन बेटे थे। बड़ा बेटा अभी कॉलेज में था और उससे छोटा बारहवीं कक्षा में कि एक दिन उसके पति अपने आफिस गए और अचानक से चक्कर आया और गिर गए और फिर उठे ही नही। मुसीबतों का जैसे उन पर पहाड़ टूट पड़ा। किसी तरह किसी पहचान वाले को बोल कर बड़े बेटे की पढ़ाई छुड़ा कर नोकरी लगवाई ओर फिर दूसरे बेटे को भी पढ़ाई छोड़नी पड़ी क्योंकि एक की तनख्वाह से घर का गुजारा ही नही हो रहा था तो पढ़ाई का खर्चा कैसे पूरा होता।

ओर एक दिन नीलिमा को इन्ही सब टेंशनो के चलते पैरालिसिस का अटैक आया। मायके वालों की मदद से दवाईयों ओर इलाज से वो थोड़ी बहुत ठीक तो हो गयी लेकिन उसकी जुबान चली गयी।

अब ये हाल है कि बेटे भी उसको नही पूछते ना ही कुछ खर्चादेते हैं।एक कमरे में अलग से रखा हुआ है जहां वोअकेली पड़ी रहती है। कभी कभी मेरे भाई के घर आ कर जरूरत का समान ले जाती है। वहां आने के लिए भी ऑटो वाले को समझाने के लिए घर से लिख कर ले आती है। मम्मी कहते कि जब रोती है तो सिर्फ आंसू ही बहते है क्योंकि आवाज तो भगवान ने छीन ही ली।

जिस मुँह से उसने ससुर को गालियां दी होंगी आज उसमे बोलने की शक्ति भी नही बची। सच मे घर के बजुर्गों का दिल दुखाने वाला इन्सान कभी न कभी तो अपने कर्मो का भुगतान अवश्य करता है ये तो आंखों से देख लिया

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आजकल के फिल्मी भांड तबलची और नगरवधू कहते हैं कि उन्हें बोलने नहीं दिया जाता भारत में डर लगता है भारत में अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला..

एक जमाने में कांग्रेस ने इन फिल्मी भांड नगरवधुओं तबलचियों बाजा पेटी वालों का क्या हाल किया था वह आप खुद शबाना आजमी के मुंह से सुनिए ।

शबाना आजमी इंटरव्यू दे रही हैं बातों बातों में इंटरव्यू लेने वाले इरफान ने कहा कि हमने आपके वहां विजुअल्स देखे हैं जो दूरदर्शन की लाइब्रेरी में है जब आप दिल्ली में जीनत अमान के साथ एक कार्यक्रम में खूब डांस कर रही थी और जानबूझकर बार-बार अपनी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा रही थी ।

फिर शबाना आजमी ने कहा कि उन्हें ऐसी कोई कार्यक्रम के बारे में नहीं पता तभी दूरदर्शन की लाइब्रेरी से वहविजुअल प्ले होता है तब शबाना आजमी कहती हैं हां यह संजय गांधी द्वारा कांग्रेस पार्टी के लिए फंडरेजिंग कार्यक्रम में मैं डांस कर रही थी । शबाना आजमी न सिर्फ डांस कर रही थी बल्कि जानबूझकर साड़ी का पल्लू नीचे गिरा रहीं थी ताकि संजय गांधी खुश हो जाए ।

वह जमाना था जब कांग्रेस पार्टी के गुंडे जब चाहते थे तब इन फिल्मी भांडो नचनियों को उठा लाते थे और जब चाहते थे तब अपने निजी कार्यक्रम में किसी कोठे की नर्तकी की तरंह रात भर नचाते थे और यह फिल्मी भांड नाचते-नाचते अपनी साड़ी का पल्लू गिरा कर अपने वक्षस्थल दिखाकर कांग्रेस के गुंडों को खुश करती थी ।

दिल्ली में उस जमाने में एक दो बार की तलाकशुदा महिला थी जिसका नाम था रुखसाना सुल्तान वह बेहद खूबसूरत थी एक बार संजय गांधी से मिली संजय गांधी ने उसे दिल्ली महिला युवा कांग्रेस का प्रमुख बना दिया उसने चांदनी चौक और तुर्कमानपुर गेट पर बूटीक खोल दिया एक दुकानदार से उसका पार्किंग को लेकर विवाद हुआ अगले ही पल 50 बुलडोजर गए और पूरे तुर्कमानपुर के बाजार को गिरा दिया ।

रुखसाना सुल्तान का ऐसा जलवा था कि वह जिसके घर को चाहती थी बुलडोजर से गिरा देती थी उस जमाने में उसे बुलडोजर वूमेन कहा जाता था ।

आज हमारे जो मिलार्ड कहते हैं कि बुलडोजर से न्याय देने की परंपरा गलत है उस जमाने में मिलार्ड एकदम चुप रहते थे किसी के मुंह से बोली नहीं निकलती थी ।

कुछ समय बाद वह रुकसाना सुल्तान गर्भवती हुई एक लड़की पैदा हुई जिसका नाम अमृता सिंह रखा गया हालांकि आप अमृता सिंह का चेहरा देखेंगे तब आपको पता चल जाएगा कि वह किसकी बेटी हो सकती है ।

कांग्रेस पार्टी के निजी कार्यक्रम में किशोर कुमार ने भांड की तरंह गाना गाने से इनकार कर दिया तब ऑल इंडिया रेडियो के कार्यक्रम से संजय किशोर कुमार का बहिष्कार कर दिया गया उस जमाने में गाना बजने का मनोरंजन का सिर्फ एक ही साधन होता था और वह था ऑल इंडिया रेडियो उस पर से किशोर कुमार को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया सभी फिल्म निर्माताओं को आदेश दे दिए गए कि आपको किशोर कुमार से गाना नहीं गवाना है ।

किशोर कुमार को झुकना पड़ा और दिल्ली आ कर किशोर कुमार नाईट करनी पड़ी, जिसमें मुख्य अतिथि संजय गांधी थे ।

और तो और जब नेहरू जी प्रधानमंत्री थे तब मजरूह सुल्तानपुरी ने एक कविता मुंबई के श्रमिक मीटिंग में पढ़ी थी और वह कविता थी ।

मन में ज़हर डॉलर के बसा के,
फिरती है भारत की अहिंसा ।
खादी की केंचुल को पहनकर,
ये केंचुल लहराने न पाए ।
ये भी है हिटलर का चेला,
मार लो साथी जाने न पाए ।
कॉमनवेल्थ का दास है नेहरू,
मार लो साथी जाने न पाए ।

बस इस कविता पाठ पर मजनू सुल्तानपुरी को ढाई साल तक आर्थर रोड जेल में सड़ा दिया गया हमारे सारे जज साहब चुप थे सारे अभिव्यक्ति की आजादी के परोपकार चुप थे ।

मैं बार-बार कहता हूं शासन चलाना कांग्रस को आता है जजों को रगड़ दो कोई भी जज पैजामे से बाहर हो जाए उसके पूरे खानदान की कुंडली निकाल कर उसे जेल में सड़ा दो कोई भी तबलची फिल्मी भांड अंट संट बोले उसे जेल में डाल दो कोई मीडिया अखबार वाला कुछ लिखें तुरंत इमरजेंसी लगाकर जेल में डाल दो ।

और मजे की बात यह आज यही कांग्रेसी अभिव्यक्ति की आजादी की बात करते हैं और उसी शबाना आजमी का दूसरा पति जावेद अख्तर कहता है आज हमें आजादी से जीने नहीं दिया जाता जिस जावेद अख्तर के दूसरी पत्नी को संजय गांधी किसी तबायफ की तरंह बुलाकर ना सिर्फ रात भर न नचाते थे बल्कि कहते थे नाचते-नाचते अपनी साड़ी का पल्लू नीचे करो ।