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अमरूद वाली अम्मा का एन जी ओ


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अमरुद ले लो ताजे मीठे अमरुद बाहर किसी की आवाज सुनकर मधु की 4 वर्षीय बेटी बोली मम्मी मुझे अमरूद खाने हैं!
हां बेटा जरूर! इतना कहकर मधु ने गेट खोल कर देखा, तो एक लगभग 80 वर्षीय बूढ़ी अम्मा सर पर टोकरी रखकर अमरुद बेच रही थी। अम्मा इधर आ जाओ हमें अमरूद लेने हैं! मधु ने कहा।
आवाज सुनकर अम्मा गेट पर टोकरी लेकर आ गई, मधु ने ऊपर से नीचे तक अम्मा को देखा, वह पसीने से लथपथ फटी हुई सी साड़ी पहनकर तेज गर्मी में टूटी-फूटी चप्पल पहने हुए और धागे से जुड़ा हुआ चश्मा पहने हुए थी। हां बेटी बता केते किलो दूँ? इतना कहकर अम्मा ने टूटे-फूटे तराजू निकालकर उसमें बाट की जगह पत्थर रखकर ,टोकरी में से अमरूद निकालने लगी, इतने में मधु पानी और बिस्कुट ले आई और कहा अम्मा पहले पानी और बिस्कुट खा लो बाद में तोल लेना!
पहली बार किसी ग्राहक के यहां इतना सत्कार देखकर अम्मा भावुक हो गई और बोली बिटिया जुग जुग जियो बालक बने रहे, भगवान तेरी सारी इच्छा पूरी करे! काई ने ना पूछी अब तक पानी को भी इतने दिनों से अमरुद बेच रही हूँ! इतना कहकर अम्मा चुप हो गई।
मधु ने कहा कोई बात नहीं अम्मा, अच्छा यह बताओ कौन-कौन है? घर में बच्चे तो होंगे?
बच्चों का नाम सुनकर अम्मा बिलख पड़ी और बोली अरे बिटिया मेरे बालक होते तो मुझे ऐसा काम ना करने देते, दो बालक थे एक लड़का और एक लड़की दोनों बड़े होशियार थे, सयानी हुई लड़की तो गांव के दबंग छोरों ने छेड़ना शुरू कर दिया, दो-चार दिन वह सहती रही, फिर घर आकर फूट-फूट कर रोने लगी, यह सुनकर मेरे लड़के पर रहा नहीं गया, वह अकेला लड़ने पहुंच गया, फिर सब ने मार-मार कर अधमरा कर दिया मेरे छोरा को, फिर सब लोगों ने कही पुलिस में रपट लिखवा दो, हम पुलिस के यहां गए वहां बड़ी मुश्किल से पुलिस रपट लिखी, हम रपट लिखवा कर लौट रहे थे, तो काई ने उन दबंगों को बता दी और वह 30-40 लोगों को लेकर हमारे पीछे पड़ गए और हमें मारन को दौड़े मेरे छोरा छोरी को पकड़ लओ और पेड़ से बांध दियों, बाद में मेरे सामने ही मेरे छोरा छोरी को इतना कहकर अम्मा फूट-फूट कर रोने लगी।
मधु ने ढांढस बंधाया और कहा अम्मा उन दुष्टों को सजा जरूर मिलेगी!
बेटा सजा तो मिली उन्हें, लेकिन कोई गवाही देने को ना आया आगे और घूस खिलाके छूट गए, फ़िर वो मोय मारन को मौका ढूंढने लगे तो कुछ अच्छे लोगों ने शहर की रेल में बिठाकर मोय यहां भेज दियों, फिर जीवन यापन को तो कछु करना ही तो, भीख मैं मांग ना सकती, आत्मा ने गवाही ना दी ,जे काम करण की!
मधू बोली कोई बात नही आप रोज अमरूद दे जाया करो!
ठीक है बेटा ऐसे ही पीस 25-30 दिन रोजाना अम्मा मधु को अमरुद दे जाती मधु भी कभी साड़ी कभी चप्पल और मधु ने उनका चश्मा भी ठीक करा दिया था।बएक बार दो-चार दिन तक अम्मा नहीं आई अब मधु को चिंता होने लगी थी उसकी बेटी भी बोली अमरूद वाली अम्मा जी क्यों नहीं आ रही?
फिर मधु अपने पति के साथ अम्मा द्वारा बताए गए झुग्गी में पहुंची, वहां अम्मा मरणासन्न अवस्था में पड़ी थी पास में 2-4 औरतें बैठी थी! मधु अम्मा के किनारे जाकर बैठी तो मधु को देखकर जैसे अम्मा में प्राण आ गए और लड़खड़ाती आवाज में बोली बेटी तेरे अमरुद न पहुंचा पाई फिर टोकरी की तरफ इशारा करके सदा के लिए चिर निद्रा में सो गई। मधु ने टोकरी में देखा तो वह टोकरी अमरूदों से भरी थी मधु के मुंह से रोते हुए निकल गया अमरुद वाली अम्मा तुम तो जाते-जाते भी मुझे खिला कर ही गई! मधु के कहने पर मधु के पति ने लोगों के साथ मिलकर अम्मा का क्रिया कर्म कराया और उसके बाद इस तरह के लोगों के लिए एक एनजीओ खोला उसका नाम मधु ने ए बी ए एन जी ओ रखा अर्थात अमरुद वाली अम्मा एन जी ओ