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धैर्य


एक बार एक व्यक्ति अकेला उदास बैठा कुछ सोच रहा था कि उसके पास भगवान आये. भगवन को अपने समक्ष देख उस व्यक्ति ने पुछा मुझे ज़िन्दगी में बहुत असफलताएं मिली, अब मैं निराश हो चूका हूँ. हे भगवन, मुझे बताओ कि मेरे इस जीवन की क्या कीमत है?

भगवान ने उस व्यक्ति को एक लाल रंग का चमकदार पत्थर दिया और कहा “जाओ इस पत्थर की कीमत का पता लगा लो, तुम्हे अपनी ज़िन्दगी की कीमत का भी पता चल जाएगा. लेकिन ध्यान रहे कि इस पत्थर को बेचना नहीं है”

वो व्यक्ति उस लाल चमकदार पत्थर को लेकर सबसे पहले एक फल वाले के पास गया और कहा “भाई..ये पत्थर कितने का खरीदोगे?”

फल वाले ने पत्थर को ध्यान से देखा और कहा “मुझसे 10 संतरे ले जाओ और ये पत्थर मुझे दे दो”

उस व्यक्ति ने कहा कि नहीं मैं ये पत्थर बेच नहीं सकता. फिर वो आदमी एक सब्ज़ी वाले के पास गया और उसे कहा “भाई …ये लाल पत्थर कितने का खरीदोगे?”

सब्ज़ी वाले ने कहा कि मुझसे एक बोरी आलू की ले जाओ और ये पत्थर मुझे बेच दो लेकिन भगवान् के कहे अनुसार उस व्यक्ति ने कहा कि नहीं मैं ये बेच नहीं सकता.

फिर वो व्यक्ति उस पत्थर को लेकर एक सुनियार की दूकान में गया जहाँ कई तरह-तरह के आभूषण पड़े हुए थे. उस व्यक्ति ने सुनियार को वो पत्थर दिखाया और उस सुनियार ने बड़े गौर से उस पत्थर को देखा और फिर कहा “मैं तुम्हे 1 करोड़ रुपये दूंगा, ये पत्थर मुझे बेच दो.” फिर उस व्यक्ति ने सुनियार से माफ़ी मांगी और कहा कि ये पत्थर मैं बेच नहीं सकता। सुनियार ने फिर कहा “अच्छा चलो ठीक है, मैं तुम्हे 2 करोड़ दूंगा, ये पत्थर मुझे बेच दो”

सुनियर की बात सुनकर वो व्यक्ति चौंक गया लेकिन सुनियार को मना कर वो आगे बढ़ गया और एक हीरे बेचने वाले की दूकान में गया.

हीरे के व्यापारी ने उस लाल चमकदार पत्थर को पूरे 10 मिनट तक देखा और फिर एक मलमल का कपडा लिया और उस पत्थर को उस पे रख दिया। फिर उस व्यापारी ने अपना सर उस पत्थर पर लगा कर माथा टेका और कहा “तुम्हे ये कहा मिला, ये इस दुनिया में सबसे अनमोल रत्न है. अगर इस दुनिया की पूरी दौलत भी लगा दी जाए तो इस पत्थर को नहीं खरीद सकता.”

ये सुन वो व्यक्ति बहुत हैरान हुआ और सीधा भगवान के पास गया और उन्हें आप बीती बताई और फिर उसने भगवान से पुछा “हे भगवन अब मुझे बताईये कि मेरे इस जीवन की क्या कीमत है?”

भगवान ने कहा “फल वाले ने, सब्ज़ी वाले ने, सुनियार ने और हीरे के व्यापारी ने तुम्हे जीवन की कीमत बता दी थी. हे मनुष्य, किसी के लिए तुम एक पत्थर के टुकड़े सामान हो और किसी के लिए बहुमूल्य रत्न समान।

हर किसी ने अपनी जानकारी के अनुसार तुम्हे उस पत्थर की कीमत बताई लेकिन उस हीरे के व्यापारी ने इस पत्थर को पहचान लिया। ठीक उसी तरह कुछ लोग तुम्हारी कीमत नहीं पहचानते इसलिए ज़िन्दगी में कभी निराश मत हो.

इस दुनिया में हर मनुष्य के पास कोई ना कोई ऐसा हुनर होता है जो सही वक़्त पर निखार कर आता है लेकिन उसके लिए परिश्रम और धैर्य की ज़रूरत है.

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गणित का फार्मूला


गणित के एक शिक्षक घूमने गए !! शाम के समय एक रेस्टोरेंट में पिज़्ज़ा खाने चले गए !! उन्होंने मेनू देखकर एक 9 इंच के पिज़्ज़ा का आर्डर दे दिया !! कुछ देर बाद वेटर 5 – 5 इंच के दो गोल पिज़्ज़ा लेकर गुरूजी के सामने उपस्थित हुआ और कहा कि sir ! 9 इंच का पिज़्ज़ा उपलब्ध नहीं है , इसलिए आपको 5 – 5 इंच के दो पिज़्ज़ा दिए जा रहे हैं , जिससे कि आपको 1 इंच पिज़्ज़ा Extra फ्री में मिल रहा है ! गणित शिक्षक जी ने बड़े प्यार से वेटर से रेस्टोरेंट के मालिक को बुलाने के लिए कहा !!

जब रेस्टोरेन्ट का मालिक आया तो गुरूजी ने उससे बड़े प्यार से पूछा कि आप कितने पढ़े हैं ? मालिक ने कहा Sir ! I am post graduate. गुरूजी ने फिर पूछा कि Maths कहाँ तक पढ़ा है ? मालिक ने कहा – Sir ! Graduation तक !!
तब गुरूजी ने कहा कि क्या आप मुझे बता सकते हैं कि Maths में एक Circle का क्षेत्रफल निकालने का क्या फार्मूला है ?

मालिक ने कहा – Sir “πr²”
गूरूजी ने कहा – OK
आगे उन्होंने कहा – Now where π = 3.142857 and r is radius of the Circle.

मैंने आपको 9 इंच Diameter के पिज़्ज़ा का order दिया था , जिसका क्षेत्रफल फार्मूला के अनुसार 63.64 Square inch होता है ! क्या में सही हूँ ?
मालिक ने कहा – जी ! बिलकुल सहीं हैं !

अब गुरूजी ने आगे कहा कि आपने मुझे 5-5 इंच के दो पिज़्ज़ा ये कह कर दिए हैं कि आपको 1 इंच पिज़्ज़ा फ्री दिया जा रहा है , अब आप 5 इंच के एक पिज़्ज़ा का Area निकालिये !!

Area निकाला गया – जो निकला ” 19.64 Square इंच “
यानी 2 पिज़्ज़ा का एरिया 39.28 Square इंच !!

अब गुरूजी ने कहा कि अगर आप मुझे 5 इंच का एक तीसरा पिज़्ज़ा और भी देते हैं , तब भी मैं घाटे में ही रहूँगा !! और आप कह रहे हैं कि मुझे 1 इंच पिज़्ज़ा फ्री दिया जा रहा है!!

रेस्टोरेंट का मालिक नि:शब्द !! बेचारे से कोई उत्तर देते नहीं बना !! अंत में उसने गुरूजी को 5-5 इंच के 4 पिज़्ज़ा देकर सम्मान विदा किया !!

कृपया शिक्षकों को कभी भी under estimate ना करें

आदरणीय शिक्षकों को समर्पित !!

कहानी का सार: गणित के अध्यापक सभी नही बन सकते, पर अपने आस पास के मल्टी नेशनल ब्रांड्स की प्रमोशनल नीतियों में मत फसे। कभी youtube/facebook पर ted talk ओर secret marketing techniques सर्च करके देखिए।

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गुजरा हुआ जमाना आता नही दुबारा


रीना इस गाने को सुनते हुए खो गयी इस गाने में गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा क्योंकि आज ये गाना कौन बजा रहा है। आज की इस युवा पीढ़ी को ये गाने कहां पसंद आयेंगे । वह भी क्या दिन थे स्कूल से आते ही रेडियो चालू होता दोपहर को सुनिये ये विविध भारती है आपकी मन पसंद गानो का प्रोग्राम। जब भी यह गाना आता वह जान बूझकर कर बहुत हल्की आवाज कर देती! बस मां का बड़बड़ाना शुरू होता पर रीना की पसंद का गाना जैसे ही आता जब प्यार किसी से होता है तब दर्द सा दिल में होता है! तब आवाज फुल स्पीड पर हो जाती! भाईयों की डांट पड़ती कि पढ़ाई में दिमाग नहीं लगता। मां कभी कभी तो अपनी पसंद का गाना सुनती हैं।
सब पीछे छूट गया सब लाड़ सब प्यार साथ ही सब सपने पूरा परिवार ही बिखर गया। मां और दोनों भाईयों का असमय साथ छोड़ देना तीनों गंगा स्नान गये तो वापस ही नहीं आये गंगा मां उन्हें अपने आगोश में ही ले लिया। पापा का मानसिक अवसाद में आजाना । ये तो पापा के घनिष्ठ मित्र अनन्त अंकल ना होते तो शायद वह भी आत्म हत्या कर लेती। अंकल पापा के मित्र भी थे और व्यापार में पार्टनर भी । अंकल का बेटा रोहित उसका बचपन से मित्र था दोनों की गहरी दोस्ती थी । जब पूरा परिवार बिखर गया तब रोहित ने ही उसको हिम्मत दी। अनन्त अंकल और उसके पापा ने ही रोहित और उसको एक साथ जीवन पर्यन्त साथ रहने के लिये पूछा दोनों ने अपनी स्वीकृति देदी क्योंकि रीना को पता था रोहित से अच्छा जीवन साथी उसे नहीं मिल सकता । अब तो सब बातें, यादे बीत
गयी। अब तो घर में नयी दुल्हन यानि बेटे की बहू प्राची आ गयी उसका सारे दिन मेरे आस पास ही शरारते करना मन को उल्लासित करता है। मेरी सास यानि रोहित की मम्मी और अनन्त अंकल आज भी मै अंकल ही बोलती हूँ पापा के चले जाने के बाद तो वह और अधिक ख्याल रखते थे। जिससे उनकी बेटी बहू उदास ना हो। दोनों प्राची की इन हरकतों पर मुस्कुराते हैं। जब ये गाना सुनाई दिया तो देखा वही पुराना मेरा सीडी प्लेयर कम ट्रांजिस्टर सामने अलमारी में सजा हुआ था और गाना चल रहा था । मैंने प्यारी सी प्राची को गले लगा लिया वह बोली मां दादू ने कहा था आपको गाने सुनने का बहुत शौक था। अब मै आ गयी हूँ आपके शौक को जीवन्त करने के लिये। कैसे बलिहारी जाऊं इस गुड़िया पर जिसने मेरी यादों को और मेरे शौक को दोबारा जीवन्त कर दिया।

गर हराना है उम्र तो हर शौक जिंदा रखो
गर जीना है जिंदगी हर पल संजीदगी रखो
भले ही दोस्त कम रखो मगर चुनिन्दा रखो

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ईश्वर के अस्तित्व से आगे….

मेरे एक बहुत ही विद्वान और जानकार मित्र ने एक प्रश्न किया कि जब ईश्वर कोई इंसान या सुपरनेचुरल पावर न होकर एक अदृश्य शक्ति है तो फिर उनकी पूजा करना, घंटे बजाना, स्तुति करने, हवन करने से आखिर क्या अंतर पड़ना है…

क्योंकि, जिसके लिए हम इतना सब कर रहे हैं वो हमें ऐसा करते देख थोड़े न रहा है किसी इंसान की तरह.

अब भला एक ऊर्जा किसी की कौन सी स्तुति या घंटे की आवाज को सुनने या आशीर्वाद देने जा रही है.

प्रश्न बिल्कुल वाजिब एवं तर्कसंगत है और ऐसा प्रश्न सिर्फ मेरे मित्र ही नहीं बल्कि हर कोई तार्किक व्यक्ति करेगा ही करेगा.

लेकिन… ये प्रश्न जितना उलझाऊ है उसका जबाब उतना ही साधारण है.

असल में होता क्या है कि… हम इंसानों समेत ब्रह्मांड /दुनिया के सभी जीव जंतु प्रकृति के तत्वों से ही बने हैं और फिर अंत में उन्हीं तत्वों में विलीन हो जाते हैं.

हम इंसानों के बारे में तो बताया भी गया है कि…. हम पंच तत्वों (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी ) से बने हैं.

तो… स्वाभाविक तौर पर प्रकृति के विभिन्न ऊर्जाओं और विभिन्न स्पंदन का प्रभाव हमारे शरीर और हमारी चेतना पर भिन्न भिन्न रूप से पड़ता है.

उदाहरण के लिए …. जब कोई बहुत तेज लाइट्स आती है तो हमारी आंखें चौंधिया जाती है.
DJ की बहुत तेज आवाज से दिल असामान्य रूप से धड़कने लगता है..
जबकि, सॉफ्ट और कर्णप्रिय आवाज सुनते सुनते हमें नींद आ जाती है.

उसी तरह… गंध के विषय में भी है.

किसी चीज का गंध हमें सुगंध लगता है तो किसी चीज का गंध हमें दुर्गंध लगता है और उससे हमारा सर चकराने लगता है और उल्टी होने लगती है.

कहने का मतलब है कि…. अलग अलग ऊर्जा, स्पंदन, लाइट्स, गंध आदि का प्रभाव हमारे शरीर और हमारी चेतना पर अलग अलग पड़ता है.

और, पूजा पाठ का यही थीम है.

मेरे ख्याल से पूजा का कॉन्सेप्ट ये नहीं है कि…. ऊपर आकाश में कोई पराशक्ति अपने हाई रेज्युलेशन CC टीवी कैमरे से हमारी प्रत्येक गतिविधि को देख रही है और उसका हिसाब किताब रख रही है.

बल्कि, पूजा पाठ का कॉन्सेप्ट ये है कि हम प्रकृति के विभिन्न ऊर्जाओं को अपने खुद एवं समाज के लिए कैसे बेहतरीन ढंग से उपयोग करें…!

उदाहरण के लिए…. पूजा के दौरान हम मंत्रोच्चार करते हैं…
तो, एक रिदम और एक खास भाषा में किये मंत्रोच्चार से उत्पन्न कम्पन्न ब्रह्मांड के साथ साथ हमारे शरीर में मौजूद तत्व में एक किसी खास ऊर्जा का संचार करती है..
जो भिन्न भिन्न मंत्रों के साथ भिन्न भिन्न होते जाते हैं.

असल में…. मनुष्य के शरीर की बनावट और उसपर पड़ने वाले कम्पन्न के प्रभाव के गहन अध्ययन के बाद मंत्र और मंत्रोच्चार की शैली बनाई ही ऐसी गई है कि वो आसपास के वातावरण में एक विशिष्ट कम्पन्न उत्पन्न करे.

उसी प्रकार घंटे की आवाज से प्रकृति शुद्ध होती है या कहें तो हानिकारक विषाणु और जीवाणु को सप्रेष करने में मदद मिलती है.
और, उसके कंपन से हमारे दिमाग मे शान्ति आती है.

आगे…. यज्ञ, हवन आदि से… वातावरण शुद्ध (बैक्टेरिया वायरस फ्री) होता है जो हमें एक स्वस्थ जिंदगी जीने में सहायता प्रदान करता है.

इसी तरह…. पूजा पाठ के हर एक गतिविधि का अलग अलग प्रभाव होता है..
लेकिन, सबका लक्ष्य एक ही है कि… मानव जीवन को अच्छा बनाना.

इसीलिए…. पूजा पाठ एक अलग विषय है और ईश्वरीय सत्ता एक अलग विषय है.

क्योंकि, मेरे ख्याल से पूजा पाठ कर भगवान को खुश करने का तात्पर्य ये नहीं है कि भगवान के पास मौजूद अपने खाते में एक पुण्य लिखवा लूँ….

बल्कि, पूजा पाठ कर भगवान को खुश करने का ये तात्पर्य है कि हम उस विधि से प्रकृति में मौजूद उस विशिष्ट ऊर्जा का आह्वान कर रहे हैं, अथवा उसे जागृत कर रहे हैं… अथवा, उस ऊर्जा के उपयोग की जरूरत है.

शायद इसीलिए हमारे पूर्वजो ने विभिन्न ऊर्जा को विभिन्न देवताओं का नाम दिया है और उनके लिए स्पेसिफिक मंत्र बताए हैं ताकि हमें जिन ऊर्जा की जरूरत हो हम स्पेसिफिक रूप से उन्हीं मंत्रों का उच्चार करें एवं बताए गए विधि के अनुसार उस ऊर्जा को जागृत कर पाएं.

इसे ज्यादा आसान भाषा में समझने के लिए अपने कंप्यूटर या मोबाइल को देखें.

कम्प्यूटर या मोबाइल में बहुत सारे चीजें होती है.

लेकिन, जब आपको बैंक की जरूरत होती है तो खास बैंक या upi का ही app खोलते हैं.
और, जब सोशल मीडिया चाहिए तो सोशल मीडिया का app खोलते हैं.
कॉल करना हो तो डायलर खोलते हैं और मैसेज के लिए मैसेंजर.

तो, उसी तरह से…. पूजा पाठ का भी यही कॉन्सेप्ट है कि आप को जिस ऊर्जा (ईश्वर) की जरूरत है आप खास उसे ही आह्वाहन करो..
और, वो आह्वाहन इस मंत्रोच्चार से और इस विधि से होगा.

इसीलिए… मैं ईश्वरीय शक्ति और पूजा पाठ अथवा यज्ञ हवन के कांसेप्ट से कभी कंफ्यूज नहीं होता हूँ क्योंकि मेरे हिसाब से ईश्वर, पूजा पाठ, यज्ञ हवन आदि हर कुछ वैज्ञानिक एवं तार्किक दृष्टि से बिल्कुल फिट बैठता है.

जय महाकाल…!!! 🚩

कुमार हरीश

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*👩‍💼દીકરી👩‍💼*

એક નગરમાં રાજા એ
ફરમાન કરેલું કે
આ નગર ના કોઈ પુરુષે
કદી ખોંખારો ખાવો નહીં,
ખોંખારો ખાવો એ
મર્દનું કામ છે અને
આપણા નગર માં
મર્દ એકમાત્ર રાજા છે ?
બીજો કોઈ પણ
ખોંખારો ખાશે તો
તેણે એક સોના ની
ગીનિ નો દંડ ભરવો પડશે.
નગર માં સૌએ ખોંખારો
ખાવાનું બંધ કરી દીધું,
પણ એક મર્દ બોલ્યો
“ખોંખારો ખાવો એ તો
મર્દનો જન્મસિદ્ધ હક છે,
હું ખોંખારો ખાઈશ.”
તે મર્દ દરરોજ
રાજમહેલ પાસે થી
પસાર થાય, ખોંખારો ખાય
અને એક ગીનિનો દંડ
ચૂકવીને આગળ ચાલે,
બે-ત્રણ વરસ વીત્યાં,,
એક વખત તે મર્દ ત્યાંથી
ખોંખારો ખાધા વગર જ
ચૂપચાપ ચાલવા માંડ્યો,,
કોઈએ પૂછ્યું,
‘ભાઈ, શું થયું?
રૂપિયા ખૂટી પડ્યા કે
મર્દાનગી ઊતરી ગઈ?
આજે તમારો ખોંખારો
કેમ શાંત થઈ ગયો?’
પેલો મર્દ બોલ્યો,
‘આજે મારે ઘેર
દીકરી નો જન્મ થયો છે,
આપણા સમાજ માં
દીકરીના બાપને
*મર્દાનગી*
બતાવવાનું નથી શોભતું,
*દુનિયાના વહેવારો માં “*
*દીકરીના બાપે ખોંખારા નહીં,”*
*ખામોશી ખાવાની હોય છે,,*
મારી પાસે રૂપિયાય નથી ખૂટયા કે
મારી મર્દાનગી પણ
નથી ઊતરી ગઈ, પણ
*દીકરી ના બાપ ને “*
*ખોંખારા ન શોભે,”*
*ખાનદાની શોભે,*
મારે ઘેર દીકરી એ જન્મ લઈ ને
મારી ખુમારી ના માથે
ખાનદાનીનો મુગટ મૂક્યો છે !!
દીકરી ના બાપ થવા નું
સદભાગ્ય
*ભગવાન શંકર, “*
*રામ અને કૃષ્ણનેય નથી મળ્યું”*
કદાચ એટલે જ એમણે
*ત્રિશૂલ, ધનુષ્ય અને સુદર્શન ચક્ર “*
જેવાં હથિયારો
હાથમાં લેવાં પડ્યાં હશે,
શસ્ત્ર પણ શક્તિ છે,,
*શક્તિ સ્ત્રીલિંગ છે,*
દીકરી ની શક્તિ ન મળી હોય
તેણે શસ્ત્રથી ચલાવી લેવું પડે છે,
ભગવાન *મહાવીર* “ને
દીકરી હતી,,
એનું નામ *પ્રિયદર્શના “*
મહાવીરે શસ્ત્ર હાથ માં ન લીધું,
તેમણે જગતને
*કરુણા* નું
શાસ્ત્ર આપ્યું,,
સંસારને કાં તો
*શસ્ત્ર* જોઈએ કાં તો
*શાસ્ત્ર* જોઈએ.
*દીકરી હોય ત્યાં “*
*શસ્ત્ર ની ગરજ ટળી જાય,,,,,!!*
*🙋‍♂🌹👌🏼દીકરી મારી લાડકવાઇ♥️* આપણા પરીવારની દરેક દીકરીઓને સમર્પિત 👆🏼👑💐👏🏼( Bharuch Gujarat) thi.sufiyan mansuri.🙏🙏👍👍

અતુલ ગાગળાની

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*👣 वेश्या बनी गुरु 🙏*

विवेकानंद अमरीका जा रहे थे, तो राजस्थान में एक राज—परिवार में मेहमान थे। राजा ने उनके स्वागत में एक समारोह कियाः अमरीका जाता है संन्यासी। राजा तो राजा! उसने काशी से एक प्रसिद्ध वेश्या भी बुलवा ली। क्योंकि समारोह और बिना वेश्या के हो, यह तो उसकी समझ के बाहर था। नहीं तो समारोह ही क्या? वह तो दीवाली हुई बिना दीयों के। वेश्या तो होनी ही चाहिए। जब विवेकानंद को पता लगा—पता लगा आखिर—आखिर में; सांझ आ गयी उत्सव की और विवेकानंद को ले जाने के लिए द्वार पर आकर गाड़ी खड़ी हो गयी, तब उनको पता लगा कि एक वेश्या भी आई है समारोह में, वह विवेकानंद के सामने नाचेगी—तो विवेकानंद ने जाने से इनकार कर दियाः कि मैं नहीं जाऊंगा। मैं संन्यासी हूं, वेश्या का नृत्य देखूं! पास ही शामियाना था जहां विवेकानंद ठहरे थे, जहां उत्सव होनेवाला था। लेकिन राजा तो राजा, राजा ने कहा अब नहीं आते तो न आएं, उत्सव तो चलेगा ही। अब वेश्या भी आ गयी, मेहमान भी आ गए, शराब भी आ गयी, अब जलसा तो बंद नहीं हो सकता; तो उनके बिना चलेगा।

जलसा शुरू हुआ। लेकिन उस वेश्या ने बड़ा अद्भुत गीत गाया। उसने नरसी मेहता का एक भजन गाया। पास ही था शामियाना, *विवेकानंद को सुनायी पड़ने लगा नरसी मेहता के भजन उस वेश्या के टपकते आंसू और नरसी मेहता का भजन! नरसी मेहता के भजन में यह कहा गया है कि पारस पत्थर को इस बात की चिंता नहीं होती कि जो लोहा वह छू रहा है, वह पूजागृह में रखा जानेवाला लोहा है या कसाई के घर जिस लोहे से जानवरों की हत्या की जाती है, वह लोहा है। पारस पत्थर तो दोनों लोहों को छूकर सोना बना देता है। तो वह वेश्या अपने गीत में कहने लगी कि तुम कैसे पारस हो? तुम्हें अभी वेश्या दिखायी पड़ती है! मैं तो कितने भाव लेकर आई थी, मैं तो कितने भजन संजोकर आई थी—वेश्या सच में भजन संजोकर आयी थी। सोचा वेश्या ने कि विवेकानंद, संन्यासी के सामने नृत्य करना, गीत गाने हैं, तो मीरां के भजन लायी थी, नरसी मेहता के भजन लाई थी; जीवन को धन्य समझा था, कि आज मेरा नृत्य भी सार्थक होगा।*

विवेकानंद को बहुत चोट लगी जब उन्होंने सुना यह नरसी मेहता का भजन। उठे और पहुंच गए समारोह में और वेश्या से क्षमा मांगी और कहा, मुझसे भूल हो गयी। मेरी गलती। मैं ही अभी पारस नहीं हूं, इसीलिए यह विचार किया कि कौन लोहा पात्र, कौन लोहा अपात्र। विवेकानंद ने कहा है कि उस दिन मेरी आंख खुल गयी। उस दिन से मैंने भेद करने छोड़ दिए पात्र—अपात्र के। वह पुरानी आदत उस वेश्या ने छुड़ा दी। वह वेश्या मेरी गुरु हो गयी।

*जीवन बहुत अनूठा है। रहस्यपूर्ण है। कहां से द्वार खुलेगा परमात्मा का, कहना मुश्किल है।*

मोहनलाल जैन

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एक बार एक ट्रेन जो दिल्ली से कानपुर जा रही थी. उस ट्रेन के फर्स्ट क्लास AC में दो लोग, एक नवयुवक और एक बुजुर्ग यात्रा कर रहे थे .
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नवयुवक की नज़र बहुत देर से सामने बैठे बुजुर्ग पर थी जो लगातार गीता पढ़ रहे थे और मंद मंद मुस्कुरा रहे थे.
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अचानक नवयुवक ने उनको चुनौती दी की भगवान तो होते नहीं हैं तो फिर आप ये सब झूठ कब तक मानते रहेंगे, जो है वो सब विज्ञान है.
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वो बुजुर्ग बहुत देर तक उस नवयुवक के भगवान के अस्तित्व और विज्ञान के चमत्कारों के सभी तर्कों को ध्यान से सुनते रहे.
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उस नवयुवक ने उनको बताया कि वो एक खगोल वैज्ञानिक है और वो सारे ग्रह के बारे में जानता है,
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कोई सूर्य चन्द्र भगवान नहीं है. और उसके इसी प्रयोगों से प्रभावित हो कर सरकार उसको एक पुरस्कार भी दे रही है।
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फिर करीब दो घंटे बाद जब वो नवयुवक को लगा कि वो बुजुर्ग उसकी बातो से प्रभावित नहीं हो रहे हैं तो उसने ये कह के बात ख़तम की जब बीमार होंगे तो विज्ञान ही काम आयेगा भगवान नहीं.
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और इतना कह कर वो सो गया और बुजुर्ग वापस गीता पढ़ने में मग्न हो गए.
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सुबह बुजुर्ग ने उस नवयुवक को जगाया और बताया कि आप को लेने के लिए लोग आये हैं कृपया तैयार हो जाये वो बाहर इंतज़ार कर रहे हैं और इतना कह कर उन्होंने मुस्कुरा के विदा ली .
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IIT कानपुर में जब पुरुस्कार वितरण कार्यक्रम शुरू हुआ तो इस नवयुवक वैज्ञानिक की खूब तारीफ हुई और उसको पुरुस्कृत करने के लिए देश से सबसे वरिष्ठ वैज्ञानिक को मंच पर बुलाया गया.
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जब वो वरिष्ठ वैज्ञानिक मंच पर आये तो उस नवयुवक की आंखे फटी की फटी रह गयी.
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अरे ये तो वही बुजुर्ग है जो कल उसके साथ यात्रा कर आ रहे थे. और वो गीता की तारीफ कर रहे थे.
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वो नवयुवक तुरंत उनके पैरो में गिर पड़ा और अपने लिए माफी मांगने लगा, और पूछा कि सर अब आप बताइए आप ने कल मेरा विरोध क्यों नहीं किया.
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बुजुर्ग ने कहा , बेटा मैं भी ठीक ऐसा ही था, पर धीरे धीरे प्रयोग करते करते मुझे अहसास हुआ कि ऐसे कुछ प्रश्न है जिनका उत्तर कभी विज्ञान नहीं खोज सकता और वो एक अदृश्य शक्ति द्वारा संचालित है.
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तभी से मुझे समझ में आया कि जब सारी विज्ञान ख़तम होती है वहा ईश्वर शुरू होता है ।

रामचंद्र आर्य