Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

आप सभी ने यह कहानी कई बार पढ़ी होगी। इस तरह की कहानियां हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाती हैं और हमें नेक राह पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। हमारे जीवन में अच्छी संगत का बहुत महत्व है। अच्छी संगत ऊँचाई तक ले जाती है और बुरी संगत विनाश की ओर ले जाती है। कभी – कभी छोटी सी बुरी संगत भी पतन का कारण बन जाती है। प्रस्तुत है इसी पर आधारित एक कहानी 🙏🙏

संगत का असर
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एक बार एक शिकारी शिकार करने के लिए निकला पर उसे कोई शिकार नहीं मिला तो वह थक कर एक पेड़ के नीचे जाकर सो गया। रह -रह कर धूप पड़ने के कारण वह ठीक तरह से सो नहीं पा रहा था। उधर से उड़ते हुए एक हंस ने जब यह स्थिति देखी तो उसने दया करके अपने पंख फैलाए और उस डाली पर बैठ गया जिस के नीचे शिकारी सो रहा था। छांव पड़ते ही शिकारी आराम से सो गया । कुछ देर बाद वहाँ पर एक कौआ उसी डाली पर आकर बैठ गया जहाँ पर हंस बैठा हुआ था। कौआ ने इधर-उधर देखा और बिना कुछ सोचे -समझे मल विसर्जन कर उड़ गया। शिकारी की नींद खुल गई और गुस्से में उसने डाली पर बैठे हंस पर बाण चला दिया। हंस डाली से नीचे गिर पड़ा और मरने से पहले उसने शिकारी से कहा, “मैं तो आप को छांव दे रहा था और आप ने मुझे ही मार दिया? मेरा कोई दोष नहीं था।”

शिकारी को अपनी गलती का एहसास तो हो गया था पर उसने हंस से कहा, ” तुम्हारे संस्कार अच्छे हैं और तुम अच्छे इरादे से मेरी सेवा कर रहे थे पर तुम से एक छोटी सी गलती हो गई जिसके कारण तुम्हारी यह हालत हुई।”

कातर दृष्टि से हंस ने शिकारी को देखा और पूछा, “क्या ग़लती?”
शिकारी ने कहा ,”जब तुम्हारे पास कौआ आकर बैठा था तो तुम्हें उसी समय उड़ जाना चाहिए था। उस कौए की संगत ने तुम्हें मृत्यु तक पहुँचा दिया।”

संकलन/प्रस्तुति
आभा दवे

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एक पार्क मे दो बुजुर्ग बातें कर रहे थे….

पहला :- मेरी एक पोती है, शादी के लायक है… BEd किया है, नौकरी करती है, कद – 5″2 इंच है.. सुंदर है
कोई लडका नजर मे हो तो बताइएगा..
दूसरा :- आपकी पोती को किस तरह का परिवार चाहिए…??
पहला :- कुछ खास नही.. बस लडका ME /M.TECH किया हो, अपना घर हो, कार हो, घर मे एसी हो, अपने बाग बगीचा हो, अच्छा job, अच्छी सैलरी, कोई लाख रू. तक हो…
दूसरा :- और कुछ…
पहला :- हाँ सबसे जरूरी बात.. अकेला होना चाहिए..
मां-बाप,भाई-बहन नही होने चाहिए..
वो क्या है लडाई झगड़े होते है…
दूसरे बुजुर्ग की आँखें भर आई फिर आँसू पोछते हुए बोला – मेरे एक दोस्त का पोता है उसके भाई-बहन नही है, मां बाप एक दुर्घटना मे चल बसे, अच्छी नौकरी है, डेढ़ लाख सैलरी है, गाड़ी है बंगला है, नौकर-चाकर है..
पहला :- तो करवाओ ना रिश्ता पक्का..
दूसरा :- मगर उस लड़के की भी यही शर्त है की लडकी के भी मां-बाप,भाई-बहन या कोई रिश्तेदार ना हो…
कहते कहते उनका गला भर आया..
फिर बोले :- अगर आपका परिवार आत्महत्या कर ले तो बात बन सकती है.. आपकी पोती की शादी उससे हो जाएगी और वो बहुत सुखी रहेगी….
पहला :- ये क्या बकवास है, हमारा परिवार क्यों करे आत्महत्या.. कल को उसकी खुशियों मे, दुःख मे कौन उसके साथ व उसके पास होगा…
दूसरा :- वाह मेरे दोस्त, खुद का परिवार, परिवार है और दूसरे का कुछ नही… मेरे दोस्त अपने बच्चो को परिवार का महत्व समझाओ, घर के बडे ,घर के छोटे सभी अपनो के लिए जरूरी होते है… वरना इंसान खुशियों का और गम का महत्व ही भूल जाएगा, जिंदगी नीरस बन जाएगी…

पहले वाले बुजुर्ग बेहद शर्मिंदगी के कारण
कुछ नही बोल पाए…

दोस्तों परिवार है तो जीवन मे हर खुशी,
खुशी लगती है अगर परिवार नही तो
किससे अपनी खुशियाँ और गम बांटोगे……. 💝💝💝💝💝💝💝💝

देव व्रत

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जंगल मे टाइगर ने एक फैक्ट्री डाली🐅

उसमे एकमात्र वर्कर एक चींटी थी जो समय से आती जाती थी और फैक्ट्री का सारा काम अकेले करती थी🐜

टाइगर का बिजनेस बहुत ही व्यवस्थित ढंग से चल रहा था।

एक दिन टाइगर ने सोचा ये अकेली चींटी इतना सुंदर काम कर रही है अगर इसको किसी एक्सपर्ट के अंडर में रख दूँ तो और बेहतर काम कर सकती है।

ये खयाल मन मे आते ही टाइगर ने एक मधुमक्खी को प्रोडक्शन मैनेजर अपॉइंट कर दिया।🐝

मधुमक्खी को कार्य का बहुत अनुभव था और वह रिपोर्ट्स लिखने में भी बहुत होशियार थी।

मधुमक्खी ने टाइगर से कहा कि सबसे पहले हमें चींटी का वर्क शेड्यूल बनाना है फिर उसका सारा रिकार्ड प्रोपरली रखने के लिए मुझे एक सेक्रेटरी चाहिए होगा।

टाइगर ने खरगोश को सेक्रेटरी के रूप में अपॉइंट कर दिया।🐇

टाइगर को मधुमक्खी का कार्य पसंद आया उसने कहा कि चींटी के अब तक कंप्लीट हुए सारे कार्य की रिपोर्ट दो और जो प्रोग्रेस हुई है उसको ग्राफ से शो करो।

मधुमक्खी ने कहा ठीक है मगर मुझे इसके लिए कंप्यूटर,लेज़र प्रिंटर और प्रोजेक्टर चाहिए होगा🖥📽🖨

इस सबके लिए टाइगर ने एक कंप्यूटर डिपार्टमेंट बना दिया और बिल्ली को वहां का हेड अपॉइंट कर दिया🐱

अब चींटी बजाय काम के रिपोर्ट पर फोकस करने लगी,जिससे उसका काम पिछड़ता गया अंततः प्रोडक्शन कम हो गया।

टाइगर ने सोचा एक टेक्निकल एक्सपर्ट रखा जाय जो मधुमक्खी की सलाहों पर ओपिनियन दे सके ऐसा सोंचकर उसने बंदर को टेक्निकल इंस्ट्रक्टर अपॉइंट कर दिय🐒

अब चींटी जो भी काम दिया जाता वह उसको पूरी सामर्थ्य से करती मगर काम कभी पूरा ही नहीं होता तो वह विवश होकर उसको अपूर्ण छोड़कर घर आ जाती।

टाइगर को नुकसान होने लगा तो वह अधीर हो उठा उसने उल्लू को नुकसान का कारण पता लगाने के लिए अपॉइंट कर दिया🦉

तीन महीने बाद उल्लू ने टाइगर को रिपोर्ट सौंप दी जिसमे उसने बताया कि फैक्ट्री में वर्कर की संख्या ज्यादा है छंटनी करनी होगी।

अब आप सोचिए किसको निकाला जाएगा….?

जाहिर सी बात है चींटी को ही निकाला जाएगा,यही सारी दुनिया के हर सेक्टर में चल रहा है,जो लोग मेहनत से कार्य कर रहे हैं परेशान हैं सताए जा रहे हैं और जो मेहनत से कोसों दूर हैं सिर्फ शो ऑफ कर रहे हैं वे मज़े में हैं।🤔

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#कार्तिक मास की कथा

दो साँस बहुए थी | कार्तिक मास आया तो सास बोली ,” मैं कार्तिक स्नान के लिए तीर्थ जाना चाहती हूं | ” बहु बोली मैं भी चलूगी | सास बोली “ तू अभी छोटी है | अभी मुझे जाने दे | ” सासु तीर्थ गई तो बहु कुम्हार के से तैतीस कुंडे ले आई | रोज एक कुंडा भर कर रखती | उधर गंगा में सांसु जी की नथ गिर गई | बहु कुंडे में नहाती हुई बोली , “ सांसु न्हावे उंडे में में न्हाऊ कुंडे “ इतने में गंगा की धारा कुंडे में आ गई | साथ में सांसुजी की नथ भी आ गई बहु ने नथ पहचान ली और अपने नाक में पहन ली | महिना पूरा हुआ सांसुजी आई बहु सा लेने लगी तो सास नथ देख बोली तू यह कहा से लाई तो बहु बोली यह तो मेरे कुंडे में गंगा की धारा के साथ आ गई | अब सास बोली मुझे ब्राह्मण भोज करना है | बहु बोली सासुजी दो ब्राह्मण मेरे भी जिमा दो | मेने भी कार्तिक स्नान किया हैं | तूने कहा कार्तिक स्नान किया तो बहु बोली , ऊपर चलो मैं आपको बताती हूँ | ऊपर गये तो देखा सारे कुंडे सोने के हो गये | बहु बोली में रोज कुंडा भर कर रखती और सुबह जल्दी उठकर नहाती और उल्टा कर के रख देती | तब सासुजी बोली बहु तू बहुत भाग्यवान जों साक्षात् गंगाजी तेरे पास आई | तूने श्रद्धा और विश्वास से कार्तिक स्नान किया तो भगवान ने तुझे फल दिया | दोनों सास बहु ने धूमधाम से ब्राह्मण जिमाकर दक्षिणा देकर विदा किया |

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“A young couple moved into a new house.

The next morning while they were eating breakfast, the young woman saw her neighbor hanging the washing outside.

“That laundry is not very clean; she doesn’t know how to wash correctly. Perhaps she needs better soap powder.

Her husband looked on, remaining silent.

Every time her neighbor hung her washing out to dry, the young woman made the same comments.

A month later, the woman was surprised to see a nice clean wash on the line and said to her husband, “Look, she’s finally learned how to wash correctly. I wonder who taught her this?”

The husband replied, “I got up early this morning and cleaned our windows.”

And so it is with life…

What we see when watching others depends on the clarity of the window through which we look.

So don’t be too quick to judge others, especially if your perspective of life is clouded by anger, jealousy, negativity or unfulfilled desires.

Judging a person does not define who they are. It defines who you are.”

Follow up Sunit blessing A.K.A Igbo Girl for more update

🖋️~ Paolo Coelho, “Dirty Laundry” ~

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The Road to Success passes through the valley of the shadow of death.

In 1998, when I travelled to the village for the first time, there was a pathway that led from my village to the next village, like a distance of 5 poles.

Passing through this pathway was one of the scariest things then to me, The light fades as you enter the path covered with long trees and overshadowing bushes, turning into a strange dark and quiet place, the sounds have all but vanished. you barely hear the sound of things moving, and you feel as if everything is watching you.

This particular day, I need to cross this path to go eat market day rice in my Auntie’s house, the thought of passing through that valley tormented me, but the feeling and hunger for rice didn’t allow me to stay put, I have to brace it.

I ran past the path with my heart in my hand, and at the end of the tunnel path, I meet people discussing, at last, I won.

The rice meant for you is on the other path of life, you must brace the courage to pass through your valley.

In that valley, you see and experience things that are meant to make you strong and prepare you to manage success on the other side.

At the valley, you learn to be bold, you learn to be smart, you learn to be disciplined, you learn diligence and the tough skin to handle life.

This is a phase everybody must pass through, it’s a process built into your success. You can’t skip it.

You can’t skip it, skipping this process is like avoiding discipline, avoiding diligence and boldness.

This Valley of Death comes in different ways and shades to different people.

You might be passing through yours now, pass it as a necessity to your success, some are about to enter, some are almost at the end of their valley.

Be strong.

It is at the valley of death that God prepares a table before you.

No valley, no table.

Cheerfulness is the antidote to this valley, go through it with all sense of joy and delight, for at the end is your breakthrough.

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सेठ रामदास जी गुड़वाले


सेठ रामदास जी गुड़वाले –
1857 के महान क्रांतिकारी,
दानवीर जिन्हें फांसी पर चढ़ाने से पहले अंग्रेजों
ने उन पर शिकारी कुत्ते छोड़े

जिन्होंने जीवित ही उनके शरीर को नोच खाया!

सेठ रामदास जी गुडवाला दिल्ली के अरबपति सेठ, बेंकर थे,
इनका जन्म दिल्ली में एक अग्रवाल परिवार में हुआ था,
इनके परिवार ने दिल्ली में पहली कपड़े की मिल की स्थापना की थी!

उनकी अमीरी की एक कहावत थी
“रामदास जी गुड़वाले के पास इतना सोना चांदी जवाहरात है की उनकी दीवारो से वो गंगा जी का पानी भी रोक सकते है”

जब 1857 में मेरठ से आरम्भ होकर क्रांति की चिंगारी जब दिल्ली पहुँच,

तो दिल्ली से अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेनाओं ने दिल्ली में डेरा डाल दिया।

उनके भोजन, वेतन की समस्या पैदा हो गई! रामजीदास गुड़वाले बादशाह के गहरे मित्र थे!

रामदास जी को बादशाह की यह अवस्था देखी नहीं गई!

उन्होंने अपनी करोड़ों की सम्पत्ति बादशाह के हवाले कर दी,

“मातृभूमि की रक्षा होगी
तो धन फिर कमा लिया जायेगा “

रामजीदास ने केवल धन ही नहीं दिया,
सैनिकों को सत्तू,
आटा,
अनाज बैलों,
ऊँटों व घोड़ों के लिए चारे की व्यवस्था तक की!

सेठ जी जिन्होंने अभी तक केवल व्यापार ही किया था,

सेना व खुफिया विभाग के संघठन का कार्य भी प्रारंभ कर दिया

उनकी संघठन की शक्ति को देखकर अंग्रेज़ सेनापति भी हैरान हो गए!

सारे उत्तर भारत में उन्होंने जासूसों का जाल बिछा दिया,
अनेक सैनिक छावनियों से गुप्त संपर्क किया!

उन्होंने भीतर ही भीतर एक शक्तिशाली सेना व गुप्तचर संघठन का निर्माण किया!

देश के कोने कोने में गुप्तचर भेजे व छोटे से छोटे मनसबदार, राजाओं से प्रार्थना की इस संकट काल में सभी सँगठित हो!

देश को स्वतंत्र करवाएं!

रामदास जी की इस प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधयिओं से अंग्रेज़ शासन व अधिकारी
बहुत परेशान होने लगे,

कुछ कारणों से दिल्ली पर अंग्रेजों का पुनः कब्जा होने लगा!

एक दिन उन्होंने चाँदनी चौक की दुकानों के आगे जगह-जगह जहर मिश्रित शराब की बोतलों की पेटियाँ रखवा दीं,

अंग्रेज सेना उनसे प्यास बुझाती,
वही लेट जाती ।

अंग्रेजों को समझ आ गया की भारत पे शासन करना है
तो रामदास जी का अंत बहुत ज़रूरी है!!

सेठ रामदास जी गुड़वाले को धोखे से पकड़ा गया
जिस तरह से मारा गया,,
वो क्रूरता की मिसाल है!!

पहले उन्हें रस्सियों से खम्बे में बाँधा गया
फिर उन पर शिकारी कुत्ते छुड़वाए गए
उसके बाद उन्हें उसी अधमरी अवस्था में दिल्ली के चांदनी चौक की कोतवाली के सामने फांसी पर लटका दिया गया!!

सुप्रसिद्ध इतिहासकार ताराचंद ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट’ में लिखा है –

“सेठ रामदास गुड़वाला उत्तर भारत के सबसे धनी सेठ थे!!

अंग्रेजों के विचार से उनके पास असंख्य मोती, हीरे व जवाहरात व अकूत संपत्ति थी!!

सेठ रामदास जैसे अनेकों क्रांतिकारी इतिहास के पन्नों से गुम हो गए,,

क्या सेठ रामदास जैसे क्रांतिकारियों की शहादत का ऋण हम चुका पाए!!

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स्वामी विवेकानंद और महान जर्मन दार्शनिक ड्यूसेन की भेंट


यह पहली बार था जब ड्यूसेन को किसी हिन्दू योगी की एकाग्रता, बोध क्षमता और संयम की शक्ति का परिचय हुआ था। बात उस वक़्त की है जब स्वामी विवेकानंद जर्मनी गए थे। अपने प्रवास के दौरान वे पॉल ड्यूसेन नाम के अत्यंत प्रभावशाली दार्शनिक और विद्वान के घर मेहमान थे। स्वामी विवेकानंद पॉल ड्यूसेन के अध्ययन कक्ष में बैठे हुए थे और दोनों में कुछ बातचीत हो रही थी। वहीं टेबल पर जर्मन भाषा में लिखी हुई एक किताब पड़ी हुई थी जो संगीत के बारे में थी। इस किताब के बारे में ड्यूसेन ने विवेकानंद से काफी तारीफ़ें की थीं। स्वामीजी ने ड्यूसेन से वह किताब केवल एक घंटे के लिए देने के लिए कहा ताकि वे इसे पढ़ सकें। लेकिन विवेकनद की इस बात पर उस दार्शनिक को बहुत आश्चर्य हुआ। उनके आश्चर्य का कारण यह था कि एक तो वह किताब जर्मन भाषा में थी जो स्वामी विवेकानंद जानते नहीं थे। दूसरे वह किताब इतनी मोटी थी कि उसे पढ़ने में कई हफ्तों का समय चाहिए था। पॉल ड्यूसेन को विवेकानंद की इस बात का बुरा लगा क्योंकि वो खुद इस किताब को कई दिनों से पढ़ रहे थे और अभी आधा भी नहीं पढ़ पाये थे। उन्होने विवेकानंद से कहा- “क्या केवल एक घंटे में आप इस किताब को पूरा पढ़ लेंगे?” “मैं इस को अभी तक सही से समझ नहीं पा रहा हूँ जबकि मुझे इसे पढ़ते हुए कई हफ्ते बीत चुके हैं। यह बहुत ही उच्च स्तर की किताब है और इसे समझना बहुत कठिन है।” ड्यूसेन की इन बातों पर स्वामीजी ने उनसे कहा कि “ मैं विवेकानंद हूँ पॉल ड्यूसेन नहीं।“ इसके बाद पॉल ने वह पुस्तक देना स्वीकार कर लिया। “स्वामी विवेकानंद ने बिना खोले ही किताब को पूरा याद कर लिया” उस पुस्तक को स्वामी विवेकानंद ने कुछ देर तक अपनी दोनों हथेलियों के बीच दबा कर रखा और फिर पॉल ड्यूसेन के पास लौट आए। विवेकानन्द ने जर्मन दार्शनिक से कहा कि “इस किताब में कुछ खास नहीं है।” फिर क्या था! उस महाशय के आश्चर्य का ठीकाना न रहा। उन्हे लगा कि विवेकानंद या तो झूठ बोल रहे हैं या उन्हे अपने ज्ञान का घमंड हो गया है। उन्हे यकीन नहीं हुआ कि एक घंटे में ही विवेकानंद उस पुस्तक के बारे में अपनी राय कैसे दे सकते हैं। और वो भी तब जब उन्हे जर्मन भाषा आती भी नहीं है। अब जर्मन दार्शनिक ने विवेकानंद कि परीक्षा लेने के लिए एक एक कर के स्वामी विवेकानंद से उस किताब के अलग-अलग पन्नों में से पुछना शुरू किया। किन्तु पॉल ड्यूसेन के जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य हुआ जब विवेकानंद ने न केवल उन सभी पन्नों की जानकारियों के बारे में सही-सही बता दिया बल्कि उससे संबन्धित अलग-अलग विचारों को भी उनके सामने रख दिया। विवेकानंद की मानसिक शक्ति ने उस जर्मन दार्शनिक को अंदर से झकझोर दिया। डरो मत ! स्वामी विवेकानंद प्रेरक प्रसंग वे पूछ उठे “ यह कैसे संभव है?” इस पर विवेकानंद ने उत्तर दिया- इसीलिए लोग मुझे स्वामी विवेकानंद कहते हैं। उन्होने उस पॉल ड्यूसेन को ब्रह्मचर्य, त्याग और संयम के पालन से मिलने वाली शक्ति के बारे में बताया और कहा कि यदि मनुष्य एक संयमित जीवन जिये तो उसके मन की मेधा, स्मरण और अन्य शक्तियाँ जागृत हो सकती हैं। बाद में पॉल ड्यूसेन ने सनातन संस्कृति अपना कर अपना नाम देव-सेन रख लिया था।

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अनोखी साइकिल रेस


अमर एक Multi National Company का ग्रुप लीडर था। काम करते-करते उसे अचानक ऐसा लगा की उसके टीम में मतभेद बढ़ने लगे हैं और सभी एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं। इससे निबटने के लिए उसने एक तरकीब सोची।

उसने एक मीटिंग बुलाई और Team Member’s से कहा – रविवार को आप सभी के लिए एक साइकिल रेस का आयोजन किया जा रहा है।
कृपया सब लोग सुबह सात बजे अशोक नगर चौराहे पर इकठ्ठा हो जाइएगा।

तय समय पर सभी अपनी-अपनी साइकलों पर इकठ्ठा हो गए।

अमर ने एक-एक करके सभी को अपने पास बुलाया और उन्हें उनका लक्ष्य बता कर स्टार्टिंग लाईन पर तैयार रहने को कहा।
कुछ ही देर में पूरी टीम रेस के लिए तैयार थी, सभी काफी उत्साहित थे और रूटीन से कुछ अलग करने के लिए अमर को थैंक्स कर रहे थे।

अमर ने सीटी बजायी और रेस शुरू हो गयी।

बॉस को आकर्षित करने के लिए हर कोई किसी भी क़ीमत पर रेस जीतना चाहता था। रेस शुरू होते ही सड़क पर अफरा-तफरी मच गयी… कोई दाएं से निकल रहा था, तो कोई बाएँ से… कई तो आगे निकलने की होड़ में दूसरों को गिराने से भी नहीं चूक रहें थे।

इस हो-हल्ले में किसी ने अमर के निर्देशों का ध्यान ही नहीं रखा और भेड़ चाल चलते हुए, सबसे आगे वाले साईकिलिस्ट के पीछे-पीछे भागने लगे।

पांच मिनट बाद अमर ने फिर से सीटी बजायी और रेस ख़त्म करने का निर्देश दिया।
एका – एक सभी को रेस से पहले दिए हुए निर्देशों का ध्यान आया और सब इधर-उधर भागने लगें, लेकिन अमर ने उन्हें रोकते हुए अपने पास आने का इशारा किया।

सभी बॉस के सामने मुंह लटकाए खड़े थे और रेस पूरी ना कर पाने के कारण एक-दूसरे को दोष दे रहे थे।

अमर ने मुस्कुराते हुए अपनी टीम की ओर देखा और कहा-

“अरे क्या हुआ? इस टीम में तो एक से एक चैंपियन थे, पर भला क्यों कोई भी व्यक्ति इस अनोखी साईकिल रेस को पूरा नहीं कर सका?”

अमर ने बोलना जारी रखा- “मैं बताता हूँ क्या हुआ…. दरअसल आप में से किसी ने भी अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान ही नहीं दिया।
अगर आप सभी ने सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान दिया होता, तो आप सभी विजेता बन गये होते…. क्योंकि सभी व्यक्ति का Target अलग-अलग था। सभी को अलग-अलग गलियों में जाना था। हर किसी का लक्ष्य भिन्न था। आपस में कोई मुकाबला था ही नहीं।
लेकिन आप लोग सिर्फ एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगें रहें, जबकि आपने अपने लक्ष्य को तो ठीक से समझा ही नहीं, ठीक यहीं माहौल हमारी टीम का हो गया है।

आप सभी के अंदर वह अनोखी बात है, जिसकी वजह से टीम को आप की जरुरत है। लेकिन आपसी संघर्ष के कारण ना ही टीम और ना ही आप का विकास हो पा रहा है। आने वाला आपका कल, आपके हाथ में है।
हम या तो एक-दूसरे की ताकत बन कर एक-दूसरे को विकास के पथ पर लें जा सकते है या आपसी संघर्ष के चक्कर में अपना और दूसरों का समय व्यर्थ कर सकते है।

मेरी आप सबसे यही Request है कि एक अकेले की तरह नहीं बल्कि एक संगठन की तरह काम करिए… याद रखिये अकेला खिलाड़ी बनने से कहीं ज्यादा ज़रूरी एक Team-Player बनना है।”