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पेड़ का इंकार


💐💐 पेड़ का इंकार💐💐



एक बड़ी सी नदी के किनारे कुछ पेड़ थे जिसकी टहनियां नदी के धारा के ऊपर तक भी फैली हुई थीं।
एक दिन एक चिड़ियों का परिवार अपने लिए घोसले की तलाश में भटकते हुए उस नदी के किनारे पहुंच गया।
चिड़ियों ने एक अच्छा सा पेड़ देखा और उससे पूछा, “हम सब काफी समय से अपने लिए एक नया मजबूत घर बनाने के लिए वृक्ष तलाश रहे हैं, आपको देखकर हमें बड़ी प्रसन्नता हुई, आपकी मजबूत शाखाओं पर हम एक अच्छा सा घोंसला बनाना चाहते हैं ताकि बरसात शुरू होने से पहले हम खुद को सुरक्षित रख सकें। क्या आप हमें इसकी अनुमति देंगे?”
पेड़ ने उनकी बातों को सुनकर साफ इनकार कर दिया और बोला-
मैं तुम्हे इसकी अनुमति नहीं दे सकता…जाओ कहीं और अपनी तलाश पूरी करो।

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चिड़ियों को पेड़ का इनकार बहुत बुरा लगा, वे उसे भला-बुरा कह कर सामने ही एक दूसरे पेड़ के पास चली गयीं।
उस पेड़ से भी उन्होंने घोंसला बनाने की अनुमति मांगी।
इस बार पेड़ आसानी से तैयार हो गया और उन्हें ख़ुशी-ख़ुशी वहां रहने की अनुमति दे दी।
चिड़ियों ने उस पेड़ की खूब प्रशंसा की और अपना घोंसला बना कर वहां रहने लगीं।
समय बीता… बरसात का मौसम शुरू हो गया। इस बार की बारिश भयानक थी…नदियों में बाढ़ आ गयी…नदी अपने तेज प्रवाह से मिटटी काटते-काटते और चौड़ी हो गयी…और एक दिन तो ईतनी बारिश हुई कि नदी में बाढ़ सा आ गयी तमाम पेड़-पौधे अपनी जड़ों से उखड़ कर नदी में बहने लगे।
और इन पेड़ों में वह पहला वाला पेड़ भी शामिल था जिसने उस चिड़ियों को अपनी शाखा पर घोंसला बनाने की अनुमति नही दी थी।
उसे जड़ों सहित उखड़कर नदी में बहता देख चिड़ियों कर परिवार खुश हो गया, मानो कुदरत ने पेड़ से उनका बदला ले लिया हो।
चिड़ियों ने पेड़ की तरफ उपेक्षा भरी नज़रों से देखा और कहा, “एक समय जब हम तुम्हारे पास अपने लिए मदद मांगने आये थे तो तुमने साफ इनकार कर दिया था, अब देखो तुम्हारे इसी स्वभाव के कारण तुम्हारी यह दशा हो गई है।”
इसपर इस पेड़ ने मुस्कुराते हुए उन चिड़िया से कहा-
मैं जानता था कि मेरी उम्र हो चली है और इस बरसात के मौसम में मेरी कमजोर पड़ चुकी जडें टिक नहीं पाएंगी…
और मात्र यही कारण था कि मैंने तुम्हें इनकार कर दिया था क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हारे ऊपर विपत्ति आये।
फिर भी तुम्हारा दिल दुखाने के लिए मुझे क्षमा करना… और ऐसा कहते-कहते पेड़ पानी में बह गया।
चिड़ियाँ अब अपने व्यवहार पर पछताने के अलावा कुछ नही कर सकती थीं।

दोस्तों, अक्सर हम दूसरों के रूखे व्यवहार या ‘ना’ का बुरा मान जाते हैं, लेकिन कई बार इसी तरह के व्यवहार में हमारा हित छुपा होता है। खासतौर पे जब बड़े-बुजुर्ग या माता-पिता बच्चों की कोई बात नहीं मानते तो बच्चे उन्हें अपना दुश्मन समझ बैठते हैं जबकि सच्चाई ये होती है कि वे हमेशा अपने बच्चों की भलाई के बारे में ही सोचते हैं।
इसलिए, यदि आपको भी कहीं से कोई ‘इनकार’ मिले तो उसका बुरा ना माने क्या पता उन चिड़ियों की तरह एक ‘ना’ आपके जीवन से भी विपत्तियों को दूर कर दे!

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पिताजी की सीख



एक किसान था उसके दो बेटे थे दोनों बहुत आलसी थे| किसान जब मरने वाला था तब उसने अपने दोनों आलसी बेटों को अपने पास बुलाया|

किसान ने अपने बेटों से कहा कि मेरे मरने के बाद तीन बातें हमेशा मेरी याद रखना| पहली बात की धूप में कभी भी दुकान पर नहीं जाना और दुकान से धूप में कभी भी वापस मत आना| दूसरी बात किसी को उधार दो तो वापस कभी मत मांगना|

जब तुम्हारे पास कुछ ना मिले तो तीसरी बात मेरी याद रखना कुएं के पास जाना और वह कुआं जो गांव के बाहर है उससे मांगना| अगर कुआं तुम्हें कुछ ना दे तब बीरबल के पास जाना और मेरी यह तीनों बातें बीरबल को बताना| इतना कहकर किसान मर गया|

अब किसान के दोनों बेटे किसान की तीनों बातों पर अमल करने लगे पहली बात धूप में दुकान पर नहीं जाना और धूप में दुकान से वापस नहीं आना इसलिए दोनों बेटे छतरी लेकर दुकान पर जाते और छतरी लेकर दुकान से वापस आ जाते|


दूसरी बात उन्होंने जब भी उधार दिया तो वापस किसी से नहीं लिया तो उधार मांगने वालों का उनके यहां तांता लग गया|

लोगों को यह बात पता लग गई थी कि यह दोनों अगर किसी को उधार देते हैं तो वापस नहीं मांगते और धीरे-धीरे इनका पैसा उधारी देते देते खत्म हो गया|

अब उन दोनों को किसान की तीसरी बात याद आएगी जब कुछ ना बचे तब कुएं से मांगना| वे दोनों गांव के बाहर कुएं में गए और जोर-जोर से पैसे मांगने लगे लेकिन कुएं ने उन्हें कुछ नहीं दिया।

फिर वे दोनों बीरबल के पास गए और सारी बात बताई|

बीरबल ने उनकी बात ध्यान से सुनी और कहा कि तुम अपने पिताजी की बातों का मतलब नहीं समझे मैं तुम्हें एक एक करके तीनों बातों का मतलब समझाता हूं|

बीरबल ने कहा कि पहली बात का मतलब कि धूप में दुकान में नहीं जाना और धूप में दुकान से वापस नहीं आना इसका मतलब यह था कि सूरज उगने के पहले दुकान पर जाओ और सूरज ढलने के बाद दुकान से वापस आओ|

दूसरी बात का मतलब यह था कि तुम किसी को उधार पैसे ना दो अगर तुम किसी को उधार पैसे दोगे ही नहीं तो वापस मांगने की नौबत ही नहीं आएगी| और तीसरी बात का मतलब समझाता हूं इतना बोल कर वह दोनों को कुएं के पास ले गया और एक आदमी को कुएं के अंदर उतारा|

वहां से सोने चांदी जेवरात पैसों का भरा संदूक मिला जो उन दोनों को बीरबल ने दे दिया और कहा कि आप अपने पिताजी के तीनों उपदेश का अच्छे से पालन करो|

वे दोनों अपने पिताजी की बात समझ चुके थे और अब वह किसी को उधार नहीं देते थे सूरज उगने के पहले काम पर जाते हो सूरज ढलने के बाद काम से वापस आते खूब मेहनत करते और उन्होंने खूब पैसा कमाया|


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अच्छे काम का पुरस्कार




एक बूढ़ा रास्ते से कठिनता से चला जा रहा था। उस समय हवा बड़े जोरों से चल रही थी। अचानक उस बूढ़े की टोपी हवा से उड़ गई।

उसके पास होकर दो लड़के स्कूल जा रहे थे। उनसे बूढ़े ने कहा- मेरी टोपी उड़ गई है, उसे पकड़ो। नहीं तो मैं बिना टोपी का हो जाऊंगा।

वे लड़के उसकी बात पर ध्यान न देकर टोपी के उड़ने का मजा लेते हुए हंसने लगे। इतने में लीला नाम की एक लड़की, जो स्कूल में पढ़ती थी, उसी रास्ते पर आ पहुंची।
उसने तुरंत ही दौड़कर वह टोपी पकड़ ली और अपने कपड़े से धूल झाड़कर तथा पोंछकर उस बूढ़े को दे दी। उसके बाद वे सब लड़के स्कूल चले गए।

गुरुजी ने टोपी वाली यह घटना स्कूल की खिड़की से देखी थी। इसलिए पढ़ाई के बाद उन्होंने सब विद्यार्थियों के सामने वह टोपी वाली बात कही और लीला के काम की प्रशंसा की तथा उन दोनों लड़कों के व्यवहार पर उन्हें बहुत धिक्कारा।

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समस्या का दूसरा पहलु




पिताजी कोई किताब पढने में व्यस्त थे , पर उनका बेटा बार-बार आता और उल्टे-सीधे सवाल पूछ कर उन्हें डिस्टर्ब कर देता .

पिता के समझाने और डांटने का भी उस पर कोई असर नहीं पड़ता.

तब उन्होंने सोचा कि अगर बच्चे को किसी और काम में उलझा दिया जाए तो बात बन सकती है. उन्होंने पास ही पड़ी एक पुरानी किताब उठाई और उसके पन्ने पलटने लगे. तभी उन्हें विश्व मानचित्र छपा दिखा , उन्होंने तेजी से वो पेज फाड़ा और बच्चे को बुलाया – ” देखो ये वर्ल्ड मैप है , अब मैं इसे कई पार्ट्स में कट कर देता हूँ , तुम्हे इन टुकड़ों को फिर से जोड़ कर वर्ल्ड मैप तैयार करना होगा.”
और ऐसा कहते हुए उन्होंने ये काम बेटे को दे दिया.

बेटा तुरंत मैप बनाने में लग गया और पिता यह सोच कर खुश होने लगे की अब वो आराम से दो-तीन घंटे किताब पढ़ सकेंगे .

लेकिन ये क्या, अभी पांच मिनट ही बीते थे कि बेटा दौड़ता हुआ आया और बोला , ” ये देखिये पिताजी मैंने मैप तैयार कर लिया है .”

पिता ने आश्चर्य से देखा , मैप बिलकुल सही था, – ” तुमने इतनी जल्दी मैप कैसे जोड़ दिया , ये तो बहुत मुश्किल काम था ?”

” कहाँ पापा, ये तो बिलकुल आसान था , आपने जो पेज दिया था उसके पिछले हिस्से में एक कार्टून बना था , मैंने बस वो कार्टून कम्प्लीट कर दिया और मैप अपने आप ही तैयार हो गया.”, और ऐसा कहते हुए वो बाहर खेलने के लिए भाग गया और पिताजी सोचते रह गए .

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कुंदन काका की कुल्हाड़ी


कुंदन काका एक फैक्ट्री में पेड़ काटने का काम करते थे. फैक्ट्री मालिक उनके काम से बहुत खुश रहता और हर एक नए मजदूर को उनकी तरह कुल्हाड़ी चलाने को कहता। यही कारण था कि ज्यादातर मजदूर उनसे जलते थे।

एक दिन जब मालिक काका के काम की तारीफ कर रहे थे तभी एक नौजवान हट्टा-कट्टा मजदूर सामने आया और बोला, “मालिक! आप हमेशा इन्ही की तारीफ़ करते हैं, जबकि मेहनत तो हम सब करते हैं… बल्कि काका तो बीच-बीच में आराम भी करने चले जाते हैं, लेकिन हम लोग तो लगातार कड़ी मेहनत करके पेड़ काटते हैं।”

इस पर मालिक बोले, “भाई! मुझे इससे मतलब नहीं है कि कौन कितना आराम करता है, कितना काम करता है, मुझे तो बस इससे मतलब है कि दिन के अंत में किसने सबसे अधिक पेड़ काटे….और इस मामले में काका आप सबसे 2-3 पेड़ आगे ही रहते हैं…जबकि उनकि उम्र भी हो चली है.”
मजदूर को ये बात अच्छी नहीं लगी।

वह बोला-
अगर ऐसा है तो क्यों न कल पेड़ काटने की प्रतियोगिता हो जाए. कल दिन भर में जो सबसे अधिक पेड़ काटेगा वही विजेता बनेगा।

मालिक तैयार हो गए।

अगले दिन प्रतियोगिता शुरू हुई. मजदूर बाकी दिनों की तुलना में इस दिन अधिक जोश में थे और जल्दी-जल्दी हाथ चला रहे थे।

लेकिन कुंदन काका को तो मानो कोई जल्दी न हो. वे रोज की तरह आज भी पेड़ काटने में जुट गए।

सबने देखा कि शुरू के आधा दिन बीतने तक काका ने 4-5 ही पेड़ काटे थे जबकि और लोग 6-7 पेड़ काट चुके थे. लगा कि आज काका हार जायेंगे.
ऊपर से रोज की तरह वे अपने समय पर एक कमरे में चले गए जहाँ वो रोज आराम करने जाया करते थे।

सबने सोचा कि आज काका प्रतियोगिता हार जायेंगे।

बाकी मजदूर पेड़ काटते रहे, काका कुछ देर बाद अपने कंधे पर कुल्हाड़ी टाँगे लौटे और वापस अपने काम में जुट गए।

तय समय पर प्रतियोगिता ख़त्म हुई.

अब मालिक ने पेड़ों की गिनती शुरू की।

बाकी मजदूर तो कुछ ख़ास नहीं कर पाए थे लेकिन जब मालिक ने उस नौजवान मजदूर के पेड़ों की गिनती शुरू की तो सब बड़े ध्यान से सुनने लगे…।

1..2…3…4…5…6..7…8…9..10…और ये 11!

सब ताली बजाने लगे क्योंकि बाकी मजदूरों में से कोई 10 पेड़ भी नहीं काट पाया था।

अब बस काका के काटे पेड़ों की गिनती होनी बाकी थी…।

मालिक ने गिनती शुरू कि…1..2..3..4..5..6..7..8..9..10 और ये 11 और आखिरी में ये बारहवां पेड़….मालिक ने ख़ुशी से ऐलान किया…।

कुंदन काका प्रतियोगिता जीत चुके थे…उन्हें 1000 रुपये इनाम में दिए गए…तभी उस हारे हुए मजदूर ने पूछा, “काका, मैं अपनी हार मानता हूँ..लेकिन कृपया ये तो बताइये कि आपकी शारीरिक ताकत भी कम है और ऊपर से आप काम के बीच आधे घंटे विश्राम भी करते हैं, फिर भी आप सबसे अधिक पेड़ कैसे काट लेते हैं?”

इस पर काका बोले-
बेटा बड़ा सीधा सा कारण है इसका जब मैं आधे दिन काम करके आधे घंटे विश्राम करने जाता हूँ तो उस दौरान मैं अपनी कुल्हाड़ी की धार तेज कर लेता हूँ, जिससे बाकी समय में मैं कम मेहनत के साथ तुम लोगों से अधिक पेड़ काट पाता हूँ।

सभी मजदूर आश्चर्य में थे कि सिर्फ थोड़ी देर धार तेज करने से कितना फर्क पड़ जाता है।

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માછીમારીના વ્યવસાય સાથે સંકળાયેલી એક જાપાનીઝ કંપની થોડી મુશ્કેલીમાં હતી. મુશ્કેલીનું કારણ માત્ર એટલુ જ હતું કે એ જે પ્રકારની માછલીઓનું વેચાણ કરતી હતી એવી માછલીઓ હવે જાપાનના સમુદ્રકિનારાથી ખુબ દુર હતી. આથી માછીમારી કરવા માટે દુર જવુ પડતુ હતુ અને દુરથી માછીમારી કરીને જ્યારે પરત ફરે ત્યારે આ વાસી માછલીનો સ્વાદ પણ ફરી જતો હતો અને લોકો તે ખરિદવાનું પસંદ કરતા ન હતા.

માછલીને વાસી થતી અટકાવવા માટે કંપનીએ એક મોટુ ડીપ-ફ્રિઝર લીધુ. માછીમારી કરવા જતી વખતે આ ડીપ-ફ્રિઝર પણ સાથે લઇ જવાનું અને માછલીને પકડીને આ ફ્રિઝરમાં મુકી દેવાની જેથી તે એવીને એવી તાજી રહે. થોડા સમયમાં જ કંપનીને સમજાઇ ગયુ કે લોકોને ફ્રિઝ કરેલી આ માછલી પણ પસંદ પડતી નથી કારણકે એને ફ્રીઝ કરવાથી તાજી માછલી જેવો સ્વાદ નથી આવતો.

કંપની પોતાના ગ્રાહકોને જાળવી રાખવા માંગતી હતી આથી હવે એક બીજો રસ્તો અપનાવ્યો. વહાણમાં જ પાણીની ટેંક બનાવી અને માછલીને પકડીને આ ટેંકમાં નાખવામાં આવે આથી માછલી જીવતી રહે અને કાંઠા સુધી જીવતી જ લાવી શકાય અને તાજી માછલીઓ ગ્રાહકને પુરી પાડી શકાય. કંપનીની આ તરકીબ પણ નિષ્ફળ રહી કારણકે માછલીઓ જીવતી તો હતી પરંતું નાની ટેંકમાં પડી રહેવાના કારણે એ સાવ જીવવગરની થઇ જતી એનામાં કોઇ તરવરાટ જોવા ન મળતો જેની તેના સ્વાદ પર પણ અસર થતી.

કોઇ એક કર્મચારીએ કંપનીને એક સુચન કર્યુ કે “ જે ટેંકમાં માછલીઓ રાખવામાં આવે છે એ ટેંકમાં એક નાની શાર્ક પણ રાખવી.” . મેનેજમેન્ટે કહ્યુ , “ પણ આનાથી શું ફેર પડશે?” . કર્મચારીએ જવાબ આપ્યો કે “ માછલીઓ ટેંકમાં નિષ્ક્રિય પડી રહે છે એટલે એની તાજગી જતી રહે છે. જો ટેંકમાં તેની સાથે નાની શાર્ક હશે તો એણે શાર્ક સાથે પોતાના અસ્તિત્વ માટે સતત લડાઇ કરવી પડશે અને એની આ સંઘર્ષયાત્રા જ માછલીને છેક સુધી તાજી રાખશે.” આ સુચન સ્વિકારવામાં આવ્યુ અને કંપની પોતાની મુશ્કેલીમાંથી બહાર પણ આવી ગઇ.

શાંત સમુદ્ર ક્યારેય સારા નાવિકો તૈયાર કરી શક્તો નથી તેવી જ રીતે સંઘર્ષ વગરનુ જીવન માણસને જીવતી લાશ જ બનાવી દે છે. પડકારો અને પ્રશ્નો જ માણસને સતત જીવંત રાખે છે.

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मीराबाई की माला के 564 साल पुराने 1008 मनके


मीराबाई की माला के 564 साल पुराने 1008 मनके,
इनसे ही कृष्ण की भक्ति कर उन्हें पाया।
*
जानकारी व्यास उज्जैन
मीरा की माला के 564 साल पुराने 1008 मनके,इनसे ही कृष्ण की भक्ति कर उन्हें पाया था। कहते हैं भगवान से बड़े उनके भक्त हाेते हैं। इसलिए👉 आज आपकाे 564 साल पुराने उन 1008 मनकाें के दर्शन करवा रहे हैं जाे श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मीराबाई की माला के हैं। अपने भजनाें व इन्हीं मनकाें से बनी माला के जाप से उन्हाेंने भक्ति का ऐसा सूत्रपात किया कि श्रीकृष्ण भी उन्हीं के हाे गए। रुद्राक्ष के ये मनके रेशम की डोरी में पिरोए हुए थे।
कालचक्र में रेशम की डोरी ताे खंडित हो गई, लेकिन मनके आज भी मीरा के पीहर पक्ष के वंशजाें के पास सहेज कर रखे हुए हैं। 22वीं पीढ़ी के वंशज पुष्पेंद्रसिंह कुड़की ने बताया हैं कि राेज राजपरिवार द्वारा मनकाें की पूजा की जाती है। ये मनके किसी काे दिखाए नहीं जाते, लेकिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर पाठकाें काे इन दिव्य मनकाें के दर्शन होते हैं।
मीराबाई की जन्मस्थली कुड़की में महल के ठीक सामने श्रीकृष्ण का मंदिर है। बताया जाता है कि कुड़की गढ़ स्थित यह मंदिर मीराबाई ने खुद बनवाया था। यहीं पर मीराबाई ने श्रीकृष्ण की भक्ति की थी। इस मंदिर में आज भी रोजाना पूजा होती है और हर शाम यहां दीपक की रोशनी से महल की दीवारें जगमगाती हैं।
कुड़की राजपरिवार के पास एक👉 लकड़ी का ऐसा कूलर भी, जिसमें खस की टाट को खिड़की पर लगाकर हाथ के हैंडल से उसे चलाना पड़ता था, यह दावा है कि कृष्ण भक्ति के दौरान यह कूलर भी लगातार चलता रहता था, ताकि तेज गर्मी में भी भक्ति में खलल नहीं पड़े। यहां पर मीराबाई के समय का शंख व उनका रथ भी माैजूद है।

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पिता पुत्र के प्यार का अंतर


पापा पापा मुझे चोट लग गई खून आ रहा है 5 साल के बच्चे के मुँह से सुनना था कि पापा सब कुछ छोड़ छाड़ कर गोदी में उठाकर एक किलोमीटर की दूरी पर क्लिनिक तक भाग-भाग कर ही पहुँच गए !

दुकान कैश काउंटर सब नौकर के भरोसे छोड़ आये !

सीधा डाक्टर के केबिन में दाखिल होते हुए।

डॉक्टर को बोले, देखिये डॉक्टर साहब मेरे बेटे को क्या हो गया है ??

डॉक्टर साहब ने देखते हुए कहा, अरे भाई साहब घबराने की कोई बात नहीं है मामूली चोट है….

ड्रेसिंग कर दी है जल्दी ठीक हो जायेगी !डॉक्टर साहब कुछ पेन किलर लिख देते तो दर्द कम हो जाता ! अच्छी से अच्छी दवाईया लिख देते ताकि जल्दी ठीक हो जाये घाव जल्दी भर जाये !!

डाक्टर-अरे भाई साहब क्यों इतने परेशान हो रहे हो कुछ नहीं हुआ है 3-4 दिन में ठीक हो जायेगा !!

बच्चे को लेकर लौटे तो नौकर बोला सेठ जी, आपका ब्रांडेड महंगा शर्ट खराब हो गया,खून लग गया अब ये दाग नही निकलेंगे !

कोई नहीं ऐसे शर्ट बहुत आएंगे जायेंगे मेरे बेटे का खून बह गया वो चिंता खाये जा रही है,कमजोर नहीं हो जाये, तू जा एक काम कर,थोड़े सूखे मेवे फ्रूट ले आ इसे खिलाना पड़ेगा, और मैं इसको लेकर घर चलता हूँ !!

40 साल बाद

दुकान शोरूम में तब्दील हो गई थी !भाई साहब का बेटा व्यापार बखूबी संभाल रहा था !

भाई साहब रिटायर्ड हो चुके हैं घर पर ही रहते थे !तभी घर से बेटे की बीवी का फोन आता है !

बीवी📞अजी सुनते हो ?

ये आपके पापा पलंग से गिर गए हैं सर पर से काफी खून आ रहा है !!

लड़का-अरे यार ये पापा भी न इनको बोला है जमीन पर सो जाया करो पर मानते हीे नही पलंग पर ही सोते है !

अरे रामू काका जाओ तो घर पर पापा को,डॉक्टर अंकल के पास ले कर आओ !

मैं आता हूँ सीधा हॉस्पिटल वहीँ पर !!

बूढ़े हो चुके रामू काका धीरे चल कर घर जाते है !तब तक सेठजी का काफी खून बह चुका था !!

बहु मुँह चढ़ा कर बोली ले जाओ जल्दी,पूरा महंगा कालीन खराब हो गया है !!

काका जैसे तैसे जल्दी से रिक्शा में सेठजी को डाल कर क्लीनिक ले गए !

बेटा अब तक नही पंहुचा था काका ने फोन किया तो बोला अरे यार वो कार की चाबी नही मिल रही थी अभी मिली है !

थोड़े कस्टमर भी है आप लेकर बैठो मैं आता हूँ !

जो दूरी 40 साल पहले एक बाप ने बेटे के सर पर खून देखकर बेटे को गोदी में उठा कर भाग कर 10 मिनिट में तय कर ली थी !

उतनी दूरी बेटा 1 घन्टे में कार से भी तय नही कर पाया था !

डाक्टर ने जैसे ही भाई साहब को देखा, उनको अंदर ले जाकर इलाज चालू किया !

तब तक बेटा भी पहुँच गया

डॉक्टर अंकल बोले,बेटे खून बहुत बह गया है एडमिट करना पड़ेगा !

बेटा-अरे कुछ नही डाक्टर साहब,आप ड्रेसिंग कर दो ठीक हो जायेगा 2-4 दिन में !!

डाक्टर अंकल बोले ठीक है, कुछ दवाईया लिख देता हूँ थोड़ी महंगी है, लेकिन आराम जल्दी हो जायेगा !!

लड़का-अरे डॉक्टर अंकल चलेगा 4-5 दिन ज्यादा लगेंगे तो अब इतनी महंगी दवाइयो की क्या जरूरत ?

चलो मुझे निकलना पड़ेगा शोरूम पर कोई नहीं है !

ये सुनते ही डॉक्टर अंकल के सब्र का बांध टूट गया और 40 साल पहले की उसे पूरी घटना सुनाई

उसे अहसास करवाया की वो तुमसे कितना स्नेह करते हैं और तुम——-?

सज्जनों ये आज की सच्चाई है आज हमारे अंदर का इंसान मर चुका है।

माँ बाप अकेलेपन का जीवन जी रहे हैं और बच्चे कामयाबी और दौलत की चकाचौंध में खो कर सब कुछ भूल चुके हैं !!

जरूरी नही की कोई आपको बचपन की बाते याद दिलाए। बस थोड़ी कोशिश जरूर करना ओर माँ बाप का मजबूत कंधा जरूर बनना, वरना जैसा कर्म करोगे, आगे आपकी औलाद अगर वैसा आपको दे। तो आपको कैसा लगेगा। बस यह सोच लेना।

हो सकता है कि कुछ सोच में बदलाव आ जाये।

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एक बार एक प्रोफेसर अपनी क्लास में बच्चों को एक कहानी सुना रहे थे………

एक बार समुद्र के बीच एक बड़े जहाज पर भयानक दुर्घटना हो गयी. कप्तान ने तुरंत जहाज को खाली करने का आदेश दिया.

उस जहाज पर यात्रियों के साथ एक युवा दम्पति भी सफ़र कर रहे थे. जब लाइफबोट पर चढ़ने का उनका नम्बर आया तो देखा गया कि नाव पर अब केवल एक व्यक्ति के लिए ही पर्याप्त जगह है.

अब इस स्थिति में कुछ सोच विचार कर आदमी ने औरत को जोर से धक्का दिया और ख़ुद उस नाव पर कूद गया.

डूबते हुए जहाज पर बिलकुल मौत के मुँह में खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर कुछ कहा…..

अब प्रोफेसर ने रुककर स्टूडेंट्स से पूछा – तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा ?

ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये – स्त्री ने कहा होगा – मैं तुमसे नफरत करती हूँ ! I hate you ! धोखेबाज ।

प्रोफेसर ने देखा एक स्टूडेंट एकदम शांत बैठा हुआ था, प्रोफेसर ने उससे पूछा कि तुम बताओ तुम्हे क्या लगता है ?

वो लड़का बोला – मुझे लगता है, औरत ने कहा होगा – हमारे बच्चे का बहुत ख़याल रखना !

प्रोफेसर को आश्चर्य हुआ, उन्होंने लडके से पूछा – क्या तुमने यह कहानी पहले सुन रखी थी ?

लड़का बोला- जी नहीं, लेकिन यही बात बीमारी से मरती हुई मेरी माँ ने मेरे पिता से कही थी.

प्रोफेसर ने दुखपूर्वक कहा – तुम्हारा उत्तर सही है !

प्रोफेसर ने कहानी आगे बढ़ाई – जहाज डूब गया, स्त्री मर गयी, पति किनारे पहुंचा और उसने अपना शेष जीवन अपनी एकमात्र पुत्री के समुचित लालन-पालन में लगा दिया.

कई सालों बाद जब वो व्यक्ति मर गया तो एक दिन सफाई करते हुए उसकी लड़की को अपने पिता की एक डायरी मिली.

डायरी से उसे पता चला कि जिस समय उसके माता-पिता उस जहाज पर सफर कर रहे थे, उस समय उसकी माँ एक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त थी और उनके जीवन के कुछ दिन ही शेष थे.

ऐसे कठिन मौके पर उन दोनों ने एक कड़ा निर्णय लिया जिसमे पत्नी पानी में कूद गयी और पति लाइफबोट पर कूद गया. (जबकि देखने वालों को यह लगा था कि पत्नी को धक्का दे कर पति लाइफबोट में कूदा है)।

उसके पिता ने डायरी में लिखा था – तुम्हारे बिना मेरे जीवन का कोई मतलब नहीं, मैं तो तुम्हारे साथ ही समंदर में समा जाना चाहता था. लेकिन अपनी एक मात्र संतान का ख्याल आने पर मुझे तुमको अकेले छोड़कर जाना पड़ा , मुझें माफ़ करना।

जब प्रोफेसर ने कहानी समाप्त की तो, पूरी क्लास में खामोशी थी.

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श्रीकृष्णकी अद्भुत लीला, जिसमे मानव मात्र को सिखाया,



श्रीकृष्णकी अद्भुत लीला, जिसमे मानव मात्र को सिखाया, मृत्यु का श्रेष्ठतम आदर्श!!!!!!!!!

वसुदेवसुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् ।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।

भगवान श्रीकृष्ण जगद्गुरु हैं । उनकी प्रत्येक लीला मनुष्य को कुछ-न-कुछ अवश्य सिखाती है । भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अवतारलीला का संवरण कर गोलोक जाते हुए भी मनुष्य को यह सिखाया कि मृत्यु का वरण (स्वागत) किस तरह करना चाहिए।

भगवान श्रीकृष्ण के लीला-संवरण का वह अभूतपूर्व दृश्य एक ऐसे महान और विलक्षण आदर्श को संसार के सामने प्रस्तुत करता है, जो न अब तक कभी किसी ने देखा और न सुना । श्रीमद्भागवत के ग्यारहवें स्कन्ध के ३०वें अध्याय में इसका वर्णन मिलता है।

असल में भगवान का प्रकट होना और जाना नाटक के नट की तरह है । जो गुरु-पुत्र को यमपुरी से सशरीर लौटा सकते थे, देवकी के मरे हुए बेटों को ला सकते थे, स्वयं परीक्षित को गर्भ में ब्रह्मास्त्र से बचा सकते थे, वे क्या स्वयं जीवित नहीं रह सकते थे ? अवश्य रह सकते थे; परंतु उन्होंने यह विचार किया कि अंत में मानव जाति के लिए एक आदर्श स्थापित करना चाहिए।

भगवान ने सोचा कि अगर मैंने शरीर रख लिया तो दुनिया यही कहेगी कि ज्ञानी अमर होता है, मरता नहीं; इसलिए मर्त्यलोक में मानव शरीर की गति प्रदर्शित करने के लिए भगवान ने अपना शरीर पृथ्वीलोक में नहीं रखा।

अपने अग्रज बलराम जी के परम-पद में लीन हो जाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण चतुर्भुज रूप धारण कर सारी दिशाओं में छिटकती हुई अपनी दिव्य ज्योति को समेट कर निपट अकेले नदी तट पर एक पीपल की जड़ पर सिर टेक कर लेट गए । उस समय उनके नवीन मेघ के समान श्यामवर्ण शरीर से सुवर्ण की-सी ज्योति निकल रही थी । वक्ष:स्थल पर श्रीवत्स का चिह्न था । वे धोती और चादर—दो रेशमी वस्त्र धारण किए हुए थे । उनके मुख पर सुंदर मुस्कान छाई हुई थी।

कमलदल के समान सुंदर नेत्र थे और कानों में मकराकृति कुण्डल झिलमिला रहे थे । शरीर पर यथास्थान मुकुट, यज्ञोपवीत, हार, कुण्डल, कड़े, बाजूबंद, नूपूर, करधनी, वनमाला, कौस्तुभमणि आदि सुशोभित हो रहे थे । शंख, चक्र, गदा और पद्म आदि आयुध मूर्तिमान होकर सेवा में उपस्थित थे । उस समय भगवान अपने बायें चरणारविंद को दाहिनी जंघा पर रखे हुए थे । उनके चरणारविन्द का तलवा लाल-लाल चमक रहा था।

‘जरा’ व्याध ने दूर से छाती पर मुड़े पैर को देखा और उसे मृग समझ कर तीर चला दिया, जो आकर भगवान के तलवे में लगा और रक्त की धारा फूट पड़ी । व्याध जब पास आया तो उसने भगवान का चतुर्भुज रूप देखा तो उसे अपनी भूल का अहसास हुआ।

इस दुर्घटना के लिए आंसू बहाते हुए चीत्कार करता हुआ वह भगवान के चरणों में दण्डवत् गिर पड़ा । वह अपने-आप को शाप देते हुए निकृष्टतम महापापी घोषित करने लगा।

उसने कहा—‘मधुसूदन ! मुझसे अनजान में यह अपराध हो गया, मैं महापापी हूँ । आप परम यशस्वी और निष्पाप हैं । कृपापूर्वक मुझे क्षमा कीजिए । हे विष्णो ! जिन आपके स्मरण मात्र से मनुष्यों का अज्ञानान्धकार नष्ट हो जाता है, हाय ! उन्हीं आपका मैंने अनिष्ट कर दिया ।’
अमर्षरहित भगवान ने उठ कर तुरंत व्याध को छाती से लगा लिया और उसे ऐसे सांन्त्वना देने लगे, जैसे उसने कोई अपराध ही न किया हो ।

किसने सिखाया श्याम, तुम्हें मीठा बोलना।
मीठी तुम्हारी वाणी, चितवन का चोरना।।
जामा तेरो लाख का है, पटका करोरना ।
शीश मुकुट लकुट हाथ, लट का मरोरना।।

भगवान ने कहा—‘अरे ! उठ, उठ, तू डर मत ! यह तो तूने मेरे मन का काम किया है—मेरी इच्छा की पूर्ति की है । मैंने यदुवंश में जन्म लिया, ऋषि के शाप का एक टुकड़ा मुझे भी लगना था, उससे पहले यह देह नहीं छूटती । जा, मेरी आज्ञा से स्वर्ग में निवास कर, जिसकी प्राप्ति बड़े-बड़े पुण्यवानों को होती है ।’
‘मेरी इच्छा की पूर्ति’ शब्दों का आशय है कि भगवान यही चाहते थे कि उनके लौकिक शरीर का तिरोभाव उसी विधि से हो, जिसे जरा व्याध ने अपनाया था । चूंकि व्याध के बाण ने भगवान की इच्छा की पूर्ति की है, इसलिए उसे पुरस्कार मिल रहा है और उसे स्वर्ग का अधिकारी बनाया जा रहा है।

मृत्यु का जो आदर्श इस प्रसंग में स्थापित किया गया है, उससे अधिक उदार, शांतिप्रद, महिमावान, सान्त्वना-प्रदायी कोई दूसरा इतिहास में देखने को नहीं मिलता है । यह एक ऐसा आदर्श है, जहां एक बाणविद्ध एवं मृत्यु के द्वार पर पहुंचा हुआ मानव क्रोध आदि समस्त प्रतिशोध की भावना से मुक्त होकर अपने पर घातक प्रहार करने वाले व्यक्ति को सान्त्वना ही नहीं देता; बल्कि उसे प्रेम से भुजाओं में भर कर पुरस्कार भी देता है ।
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा स्थापित आदर्श में क्रोध, प्रतिशोध और कलह के सारे भाव लुप्त हो जाते हैं और समाज को क्षमा और प्रेम का आदर्श मिलता है।

अत्याचार का शिकार होकर भी प्रतिशोध की सामर्थ्य रखते हुए भी सभी अपराधों को क्षमा कर देना और अपराधी की मंगलकामना करना यही सर्वश्रेष्ठ क्षमा है। यही गुण मनुष्य को देवत्व प्रदान करते हैं।

इससे भगवान ने यह शिक्षा भी दी है कि— यह संसार एक रंगमंच है । जहां सभी को खेलना (अपना कर्त्तव्य कर्म करना) है। खेल की चीजों को ‘अपना’ मान लेने से ही अशान्ति आ जाती है । अपनापन छोड़ा और शान्ति मिली । (२।७१)

जैसे कठपुतली के नाच में कठपुतली और उसका नाच तो दर्शकों को दिखायी देता है परन्तु कठपुतलियों को नचाने वाला सूत्रधार पर्दे के पीछे रहता है, जिसे दर्शक देख नहीं पाते; उसी प्रकार यह संसार तो दिखता है किन्तु इस संसार का सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता भगवान दिखायी नहीं देता है; इसीलिए मनुष्य स्वयं को ही कर्ता मानकर अहंकार में रहता है।

परन्तु यह विराट् विश्व परमात्मा की लीला का रंगमंच है । विश्व रंगमंच पर हम सब कठपुतली की तरह अपना पात्र अदा कर रहे हैं । भगवान की इस लीला में कुछ भी अनहोनी बात नहीं होती । जो कुछ होता है, वही होता है जो होना है और वह सब भगवान की शक्ति ही करती है । और जो होता है मनुष्य के लिए वही मंगलकारी है ।

जय श्री कृष्ण।
(संकलित)