Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

रामतीर्थ गणित के प्रोफेसर थे, बड़े विद्वान, पर अंदर से परमात्मा को पाने की इतनी प्यास कि रावी के किनारे बैठकर रोते थे। उनके परम शिष्य सरदार पूर्णसिंह ने लिखा है कि रात को उनके तकिया-चादर आँसुओं से भीग जाते थे।
पत्नी बार-बार पूछती कि क्या कष्ट है ? कहते संन्यास लेना है। पत्नी उन्हें ऋषि के पास लेकर आईं। साथ में इकलौता बेटा भी था। नाव में गंगा पार कर रहे थे। पत्नी से बोले “तुम हमारे कहने से गंगा में बेटे को डाल सकती हो ?”
पत्नी आज्ञाकारिणी थी, तुरंत बेटे को डाल दिया। रामतीर्थ ने तुरंत उसे गंगा की उद्दाम लहरों से निकाला। नाव में बैठाया। फिर कहा, बिना संन्यास के हम जी नहीं सकेंगे। हमारा जन्म ही कुछ और करने के लिए हुआ है। पत्नी बोली हम व बेटा साथ रह लेंगे। आपके मार्ग में विघ्न नहीं बनेंगे। हम आपको संन्यास की स्थिति में जीने के लिए मुक्त करते हैं। रामतीर्थ (तीर्थराम) का वैराग्य अद्भुत एवं उससे भी बड़ा उनकी पत्नी का त्याग। क्या भारत की स्त्रियां अद्भुत नहीं इस त्याग से भी बड़ा त्याग भला और कुछ हो सकता है, लेकिन हम उस दृष्टि से कभी देखते ही नहीं स्त्रियों को और उनका त्याग। 😊

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रामतीर्थ गणित के प्रोफेसर थे, बड़े विद्वान, पर अंदर से परमात्मा को पाने की इतनी प्यास कि रावी के किनारे बैठकर रोते थे। उनके परम शिष्य सरदार पूर्णसिंह ने लिखा है कि रात को उनके तकिया-चादर आँसुओं से भीग जाते थे।
पत्नी बार-बार पूछती कि क्या कष्ट है ? कहते संन्यास लेना है। पत्नी उन्हें ऋषि के पास लेकर आईं। साथ में इकलौता बेटा भी था। नाव में गंगा पार कर रहे थे। पत्नी से बोले “तुम हमारे कहने से गंगा में बेटे को डाल सकती हो ?”
पत्नी आज्ञाकारिणी थी, तुरंत बेटे को डाल दिया। रामतीर्थ ने तुरंत उसे गंगा की उद्दाम लहरों से निकाला। नाव में बैठाया। फिर कहा, बिना संन्यास के हम जी नहीं सकेंगे। हमारा जन्म ही कुछ और करने के लिए हुआ है। पत्नी बोली हम व बेटा साथ रह लेंगे। आपके मार्ग में विघ्न नहीं बनेंगे। हम आपको संन्यास की स्थिति में जीने के लिए मुक्त करते हैं। रामतीर्थ (तीर्थराम) का वैराग्य अद्भुत एवं उससे भी बड़ा उनकी पत्नी का त्याग। क्या भारत की स्त्रियां अद्भुत नहीं इस त्याग से भी बड़ा त्याग भला और कुछ हो सकता है, लेकिन हम उस दृष्टि से कभी देखते ही नहीं स्त्रियों को और उनका त्याग। 😊

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भक्त रांका-बांका


पंढरपुर में लक्ष्मीदत्त नाम के ऋग्वेदी ब्राह्मण रहते थे। ये संतो की बड़े प्रेम से सेवा किया करते थे। एक बार इनके यहाँ साक्षात नारायण संत रूप से पधारे और आशीर्वाद दे गए कि तुम्हारे यहां एक परम विरक्त भगवतभक्त पुत्र होगा। मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया गुरुवार संवत् १३४७ वि० को धनलग्न में इनकी पत्नी रूपदेवी ने एक पुत्र प्राप्त किया। यही इनके पुत्र महाभागवत राँकाजी हुए। पंढरपुर में ही वैशाख कृष्ण सप्तमी बुधवार संवत् १३५१ वि० को कर्क लग्न में श्रीहरिदेव ब्राह्मण के घर एक कन्या ने जन्म लिया। इसी कन्या का विवाह समय आने पर राँकाजी से हो गया। राँका जी की इन्ही पतिव्रता पत्नी का नाम उनके प्रखर वैराग्य के कारण बाँका हुआ। राँका जी का भी ‘राँका’ नाम उनकी अत्यंत कंगाली रंकता के कारण ही पड़ा था।
राँका जी रंक तो थे ही, फिर दुनिया की दृष्टि उनकी ओर क्यो जाती। इस कंगाली को पति-पत्नी दोनों ने भगवान की कृपा रूप में बड़े हर्ष से स्वीकार किया; क्योकि दयामय प्रभु अपने प्यारे भक्तों को अनर्थो की जड़ धन से दूर ही रखते हैं। दोनों जंगल से चुनकर रोज सुखी लकड़ियां लाते और उन्हें बेचकर जो कुछ मिल जाता, उसी से भगवान की पूजा करके प्रभु के प्रसाद से जीवन-निर्वाह करते थे। उनके मन मे कभी किसी सुख-आराम या भोग की कल्पना ही नही जागती थी।

श्री राँकाजी जैसा भगवान् का भक्त इस प्रकार दरिद्रता के कष्ट भोगे, यह देखकर नामदेव जी को बड़ा विचार होता था। राँका जी किसी का दिया कुछ लेते भी नही थे। नामदेव जी ने श्री पाण्डुरंग से राँकाजी की दरिद्रता दूर करने के लिये प्रार्थना की। भगवान ने कहा― ‘नामदेव! राँका तो मेरा हृदय ही है। वह तनिक भी इच्छा करे तो उसे क्या धन का अभाव रह सकता है? परंतु धन के दोषों को जानकर वह उससे दूर ही रहना चाहता है। देने पर भी वह कुछ लेगा नहीं। तुम देखना ही चाहो तो कल प्रातःकाल वन के रास्ते मे छिपकर देखना।’
दूसरे दिन भगवान् ने सोने की मुहरों से भरी थैली जंगल के मार्ग में डाल दी। कुछ मुहरें बाहर बिखेर दीं और छिप गये अपने भक्त का चरित देखने। राँकाजी नित्य की भाँति भगवन्नाम का कीर्तन करते चले आ रहे थे। उनकी पत्नी कुछ पीछे थीं। मार्ग में मुहरों की थैली देखकर पहले तो आगे जाने लगे, पर फिर कुछ सोचकर वही ठहर गये और हाथों में धूल लेकर थैली तथा मुहरों को ढंकने लगे। इतने में उनकी पत्नी समीप आ गयी। उन्होंने पूछा―’आप यह क्या ढंक रहे है?’
राँका जी ने उत्तर नही दिया। दुबारा पूछने पर बोले―’यहां सोने की मुहरों से भरी थैली पड़ी है। मैनें सोचा कि तुम पीछे आ रही हो, कही सोना देखकर तुम्हारे मन मे लोभ न आ जाये, इसलिए इसे धूल से ढक देता हूँ। धन का लोभ मन मे आ जाये तो फिर भगवान् का भजन नही होता।’
पत्नी यह बात सुनकर हँस पड़ी और बोली―’स्वामी ! सोना भी तो मिट्टी ही है। आप धूल से धूल को क्यों ढक रहे हैं।’ राँका जी झट उठ खड़े हुए। पत्नी की बात सुनकर प्रसन्न होकर बोले― ‘तुम धन्य हो ! तुम्हारा ही वैराग्य बॉका है। मेरी बुद्धि में तो सोने और मिट्टी में भेद भरा हैं। तुम मुझसे बहुत आगे बढ़ गयी हो।’
नामदेव जी राँका-बाँका का यह वैराग्य देखकर भगवान् से बोले― ‘प्रभो! जिस पर आपकी कृपा दृष्टि होती है, उसे तो आपके सिवा त्रिभुवन का राज्य भी नही सुहाता। जिसे अमृत का स्वाद मिल गया, वह भला, सड़े गुड़ की ओर क्यो देखने लगा? ये दंपत्ति धन्य हैं।’
भगवान् ने उस दिन राँका-बाँका के लिये जंगल की सारी सूखी लकड़ियाँ गट्ठे बांध-बांधकर एकत्र कर दीं। दंपत्ति ने देखा कि वन में तो कहीं आज लकड़ियाँ ही नही दिखतीं। गट्ठे बांधकर रखी लकड़ियाँ उन्होंने किसी दूसरे की समझीं। दूसरे की वस्तु की ओर आँख उठाना पाप है। दोनों खाली हाथ लौट आये। राँका जी ने कहा― ‘देखो सोने को देखने का ही यह फल है कि आज उपवास करना पड़ा। उसे छू लेते तो पता नही कितना कष्ट मिलता।’ अपने भक्त की यह निष्ठा देखकर भगवान् प्रकट हो गये। दंपत्ति उन सर्वेश्वर के दर्शन करके चरणों मे गिर पड़े।

Posted in हास्यमेव जयते

સાબુ


एक REXONA नाम की लडकी थी
वह HAMAM गाव की रहने वाली थी.
जिसके parents का नाम RIN और
CINTHOL था.
एक DOVE नाम का लड़के
से LOVE हो गया
DOVE जो REXONA को बहोत
प्यार करता था और
REXONA भी DOVE को अपना
LIFEBOY बनाना चाहती थी.
दोनोँ का प्यार PEARS की
तरह बिलकुल साफ था.
1 दिन दोनों की शादी MOTI महल,
BREEZE गार्डन मेँ होती है.
शादी मेँ
DETTOL ,
MEDIMIX,
LUX, FAA ,
NIRMA ,
VIVEL,
B B
आदि रिश्तेदार भीआते हैँ.
शादी के बाद उनके जुडवाँ बच्चे होते हैँ …
JHONSON & JHONSON.
हँसो मत …
ये एक तरीका आपको बताने था
की Market मेँ बहुत types
के साबुन मिलते हैँ…
नहा भी लिया करो…
ठंड सबको लगती है !

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Time for a little laughter … You need to think around “old people”. 😅 A tale from the wild, wild West …

“An old woman walked up and tied her old mule to the hitching post.

As she stood there, brushing some of the dust from her face and clothes, a young gunslinger stepped out of the saloon with a gun in one hand and a bottle of whiskey in the other.

He looked at the woman and laughed,
“Hey old woman, have you ever danced?”

The woman looked up at the gunslinger and said, “No … I never did dance … Never really wanted to”

A crowd has gathered as the young gunslinger grinned and said, “Well you old bag, you’re gonna dance now!”, and started shooting at the old woman’s feet.

The old woman prospector – not wanting to have her toes blown off- started hopping around. Many were laughing.
When his last bullet was fired, the gunslinger, still laughing, holstered his gun and turned around to go back into the saloon.

The old woman turned to her pack mule, pulled out a double-barrelled shotgun and cocked both hammers. The loud clicks carried clearly through the desert air, and the crowd immediately stopped laughing.

The gunslinger heard the sounds too, and turned around very slowly. The silence was almost deafening. The crowd watched tensely as he stared at the woman and the large gaping holes of those twin barrels.

The barrels of the shotgun never wavered in her hands as she quietly said, “Son, have you ever kissed a mule’s ass?”

The gunslinger swallowed hard and said, “No m’am, but I’ve always wanted too”

THERE ARE FIVE LESSONS HERE FOR ALL OF US:

1 – Never be arrogant.
2 – Don’t waste ammunition.
3 – Whiskey makes you think you’re smarter than you are.
4 – Always make sure you know who has the power.
5 – Don’t mess with old people; they didn’t get old by being stupid.”

🖋️ ~John Mitchell~ 😎

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असली खजाना


लम्बे समय से बीमार चल रहे दादा जी की तबियत अचानक ही बहुत अधिक बिगड़ गयी. दादी का बहुत पहले ही देहांत हो चुका था, बड़ा बेटा उनकी देखभाल करता था।

अंतिम समय जानकर उन्होंने अपने चारों बहु-बेटों को पास बुलाया. पर जिस दिन सब इकठ्ठा हुए उस दिन उनकी तबियत इतनी खराब हो गयी कि वो बोल भी नहीं पा रहे थे… फिर उन्होंने इशारे से कलम मांगी और एक कागज पर कांपते हाथों से कुछ लिखने लगे…।

पर जैसे ही उन्होंने एक शब्द लिखा उनकी मौत हो गयी…।

कागज पे “आम” लिखा देख सबने सोचा कि शायद वे अंतिम समय में अपना पसंदीदा फल आम खाना चाहते थे।

उनकी आखिर इच्छा जान कर उनके मृत्यु भोज में कई क्विंटल आम बांटें गए।

कुछ समय बाद भाइयों ने पुश्तैनी प्रॉपर्टी बेचने का फैसला लिया और एक बिल्डर को अच्छे दाम में सबकुछ बेच दिया।

बिल्डर ने कुछ दिन बाद जब वहां काम लगवाया. पुरानी बिल्डिंग तोड़ी जाने लगी, बागीचे के पेड़ पौधे उखाड़े जाने लगे।

और उस दिन जब आम का पेड़ उखाड़ा गया तो मजदूरों की आँखें फटी की फटी रह गयीं… पेड़ के ठीक नीचे दशकों से गड़ा एक पुराना संदूक पड़ा हुआ था।

बिल्डर ने फ़ौरन मजदूरों को पीछे किया और संदूक खोलने लगा…

संदूक में कई करोड़ मूल्य के हीरे-जवाहरात चमचमा रहे थे।

बिल्डर मानो ख़ुशी से पागल हो गया…जितने की प्रॉपर्टी नहीं थी उसकी सौ-गुना कीमत वाले खजाने पर अब उसका हक था।

पढ़ें: आम का पेड़
भाइयों को जब इस बारे में पता चला तो उन्हें बड़ा पछतावा हुआ, कोर्ट-कचहरी के चक्कर भी लगाए पर फैसला बिल्डर के हक में गए।

चारो भाई जब एक दिन मुंह लटकाए बैठे थे तभी अचानक छोटा भाई बोला…।

“अरे…. उस दिन बाबूजी ने इसलिए कागज पर आम नहीं लिखा था क्योंकि उन्हें आम खाना था…वो तो हमें इसे खजाने का पता बताना चाहते थे।

चारों बेटे मन ही मन सोचने लगे… जीवन भर हम उस पेड़ के इर्द-गिर्द रहे, किनती बार उस पे चढ़े-उतरे, उस जमीन पर चहल कदमी की… वो खजाना तब भी वहीँ पड़ा हुआ था पर हम उसके बारे में कुछ नहीं जान पाए और अंत में वो हमारे हाथ से निकल गया।
काश बाबूजी ने पहले ही हमें उसके बारे में बता दिया होता!

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स्टील का डिब्बा


टील का डब्बा*

चिलचिलाती ज्येष्ठ की दुपहरी हो या सावन की घनघोर बारिश हो सरला अपने बेटे आलेख की स्कूल बस के इन्तेजार में समय से पहले बस स्टॉप पे आकर खड़ी हो जाती थी.पल्लु से पसीना पोछती या फिर बारिश की बूंदे हटाते हुए वो बार बार सड़क में दूर तक निगाह दौड़ाती.बस स्टॉप से आलेख को लेकर घर पहुंचने तक उसे लगभग सात आठ मिनट का समय लगता था.इसलिए साथ मे स्टील के एक छोटे डब्बे में आलेख के पसन्द की कोई मिठाई या नमकीन ले आती थी.बस से उतरते ही आलेख जब मां के हाथों से वो डब्बा झपट लेता तो सरला मुस्कुराते हुए उसे निहारते रहती.

गांव की पाठशाला में पांचवी तक पढ़ी सरला किताबो में लिखी बातें तो आलेख को नहीं समझा पाती थी पर जीवन मे पढ़ाई लिखाई के महत्व को वो काफी अच्छे से समझती थी.

सत्ताईस साल बीत गए थे.नन्हा आलेख बड़ा वैज्ञानिक बन चुका था.पिछले पांच सालों से वो यूरोप में था. साथ काम करने वाली मीनाक्षी को आलेख पसन्द करने लगा था.मीनाक्षी एक बड़े सरकारी अधिकारी की बेटी थी.फोन पे बताया था आलेख ने मां को मीनाक्षी के बारे में.

अब वो देश लौट रहा था .मीनाक्षी भी साथ आ रही थी.सरला हवाई अड्डे के बाहर बेटे और होने वाली बहुँ का इन्तेजार कर रही थी.उसे स्कूल के वो दिन याद आ रहे जब वो बस स्टॉप पे बस के आने का इन्तेजार करती थी .मीनाक्षी के घर वाले भी एयरपोर्ट के एग्जिट गेट में आ गए थे.उन्होंने हाथों में खूबसूरत फूलों का बुके लिया हुआ था आलेख और मीनाक्षी के स्वागत के लिए.पर बेचारी सरला को ये बुके ऊके का गणित कहाँ समझ आता था.वो तो आज भी आँचल में छुपा कर ले आयी थी स्टील का एक डब्बा और उसमे आलेख की मन पसन्द सोम पापड़ी.

जहाज उतर चुका था. एग्जिट गेट में मेहमानों का इन्तेजार कर रहे लोगो की हलचल बढ़ गयी थी.सारे लोग गेट के मुंह पे जमा हो गए थे.पर सरला जाने क्यो धीरे धीरे पीछे सरक रही थी. स्वागत के अंग्रेजी तौर तरीके ,ये बड़े बड़े लोगो का अंदाज कहाँ था उसके पास.दुनियादारी की दौड़ में बेटे को आगे कर चुकी सरला शायद खुद कही पीछे रह गयी थी.

अचानक उसके आँचल में छिपा डब्बा किसी ने झपटा तो वो एकदम से घबरा गई थी….पर अगले ही पल जैसे उसकी आंखों के समक्ष कितना सुखद पल आ खड़ा हुआ था.सामने आलेख खड़ा था बचपन वाली उसी मुस्कान के साथ.आलेख ने मां के पांव छुए और जल्दी जल्दी खोलने लगा स्टील का वो डब्बा.चारो सोम पापड़ी वो एक साथ हाथ के पंजो में समेटने लगा तो मीनाक्षी उससे अपना हिस्सा छीनने लगी.
“इसमे मांजी मेरे लिए भी लेकर आई है”
बोलते हुए आलेख और मीनाक्षी छोटे बच्चों की तरह एक दूसरे से झगड़ते झगड़ते माँ को लिपट चूंके थे.
सरला निश्चिंत हो चुकी थी कि दुनिया का नामचीन वैज्ञानिक बन चुका आलेख अन्दर से आज भी बालकपन का वही रूप लिए हुए है.
“बहन जी हो सके तो इस सोम पापड़ी में चासनी बन कर घुला आपका वात्सल्य और आपके संस्कार में एक छोटा हिस्सा मेरी बेटी मीनाक्षी को भी दे दीजिए.”
गुलदस्तों को एक तरफ रखते हुए मीनाक्षी के ताकतवर पिता हाथ जोड़ सरला के सामने खड़े थे.
🙏🙏🙏🙏