वृंदावन का एक साधू अयोध्या की गलियों में राधे कृष्ण – राधे कृष्ण जप रहा था।
अयोध्या का एक साधू वहां से गुजरा तो राधे कृष्ण राधे कृष्ण सुनकर उस साधू को बोला – अरे जपना ही है तो सीता राम जपो, क्या उस टेढ़े का नाम जपते हो ?
वृन्दावन का साधू भड़क कर बोला – जरा जबान संभाल कर बात करो, हमारी जबान पान खिलाती हैं तो लात भी खिलाती है । तुमने मेरे इष्ट को टेढ़ा कैसे बोला ?
अयोध्या वाला साधू बोला इसमें गलत क्या है ? तुम्हारे कन्हैया तो हैं ही टेढ़े । कुछ भी लिख कर देख लो-
उनका नाम टेढ़ा – कृष्ण
उनका धाम टेढ़ा – वृन्दावन
वृन्दावन वाला साधू बोला चलो मान लिया, पर उनका काम भी टेढ़ा है और वो खुद भी टेढ़ा है, ये तुम कैसे कह रहे हो ?
अयोध्या वाला साधू बोला – अच्छा अब ये भी बताना पडेगा ? तो सुन –
माक्खन चुराना – ये कौन से सीधे लोगों के काम हैं ? और बता आज तक किसी ने उसे सीधे खडे देखा है क्या कभी ? ………
वृन्दावन के साधू को बड़ी बेईज्जती महसूस हुई ,
और सीधे जा पहुंचा बिहारी जी के मंदिर अपना डंडा डोरिया पटक कर बोला – इतने साल तक खूब उल्लू बनाया लाला तुमने।
ये लो अपनी लकुटी, कमरिया और पटक कर बोला ये अपनी सोटी भी संभालो
हम तो चले अयोध्या राम जी की शरण में और सब पटक कर साधू चल दिया।
अब बिहारी जी मंद मंद मुस्कुराते हुए उसके पीछे पीछे ।
साधू की बाँह पकड कर बोले अरे ” भई तुझे किसी ने गलत भड़का दिया है ”
पर साधू नही माना तो बोले, अच्छा जाना है तो तेरी मरजी ,
पर यह तो बता राम जी सीधे और मै टेढ़ा कैसे ?
कहते हुए बिहारी जी कुए की तरफ नहाने चल दिये ।
वृन्दावन वाला साधू गुस्से से बोला –
” नाम आपका टेढ़ा- कृष्ण,
धाम आपका टेढ़ा- वृन्दावन,
काम तो सारे टेढ़े- कभी किसी के माखन चुरा लिए,
कभी गोपियों की छाछ की मटकीयाँ तोड़ देना और सीधे तुझे कभी किसी ने खड़े होते नहीं देखा, तेरा सीधा है क्या ?
अयोध्या वाले साधू से हुई सारी झैं झैं और बेइज्जती
की सारी भड़ास निकाल दी।
बिहारी जी मुस्कुराते रहे और चुपके से अपनी बाल्टी कूँए में गिरा दी ।
फिर साधू से बोले अच्छा चले जाना पर जरा मदद तो
कर तनिक एक सरिया ला दे तो मैं अपनी बाल्टी निकाल लूं ।
साधू सरिया ला देता है और श्रीकृष्ण सरिये से बाल्टी निकालने की कोशिश करने लगते हैं ।
साधू बोला इतनी अक्ल नही है क्या कि सीधे सरिये से भला बाल्टी कैसे निकलेगी ?
सरिये को तनिक टेढ़ा कर, फिर देख कैसे एक बार में बाल्टी निकल आएगी !
बिहारी जी मुस्कुराते रहे और बोले – जब सीधेपन से इस छोटे से कूंए से एक छोटी सी बाल्टी नहीं निकाल पा रहा, तो तुम्हें इतने बडे़ भवसागर से कैसे पार लगाउंगा !
अरे आज का इंसान तो इतने गहरे पापों के भवसागर में डूब चुका है कि इस से निकाल पाना मेरे जैसे टेढ़े के ही बस की बात है !
जय महादेव
🚩
Day: December 10, 2022
गौ सेवा का फल
गौ सेवा का फल*
आज से लगभग 8 हजार वर्ष पूर्व त्रेता युग में अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज दिलीप के कोई संतान नहीं थी। एक बार वे अपनी पत्नी के साथ गुरु वसिष्ठ के आश्रम गए। गुरु वसिष्ठ ने उनके अचानक आने का प्रयोजन पूछा। तब राजा दिलीप ने उन्हें अपने पुत्र पाने की इच्छा व्यक्त की और पुत्र पाने के लिए महर्षि से प्रार्थना की।
महर्षि ने ध्यान करके राजा के निःसंतान होने का कारण जान लिया। उन्होंने राजा दिलीप से कहा – “राजन! आप देवराज इन्द्र से मिलकर जब स्वर्ग से पृथ्वी पर आ रहे थे तो आपने रास्ते में खड़ी कामधेनु को प्रणाम नहीं किया। शीघ्रता में होने के कारण आपने कामधेनु को देखा ही नहीं, कामधेनु ने आपको शाप दे दिया कि आपको उनकी संतान की सेवा किये बिना आपको पुत्र नहीं होगा।”
महाराज दिलीप बोले – “गुरुदेव! सभी गायें कामधेनु की संतान हैं। गौ सेवा तो बड़े पुण्य का काम है, मैं गायों की सेवा जरुर करूँगा।”
गुरु वसिष्ठ ने कहा – राजन! मेरे आश्रम में जो नंदिनी नाम की गाय है, वह कामधेनु की पुत्री है। आप उसी की सेवा करें।”
महाराज दिलीप सबेरे ही नंदिनी के पीछे- पीछे वन में गए, वह जब खड़ी होती तो राजा दिलीप भी खड़े रहते, वह चलती तो उसके पीछे चलते, उसके बैठने पर ही बैठते और उसके जल पीने पर ही जल पीते। संध्या के समय जब नंदिनी आश्रम को लौटती तो उसके ही साथ लौट आते। महारानी सुदाक्षिणा उस गौ की सुबह शाम पूजा करती थीं। इस तरह से महाराज दिलीप ने लगातार एक महीने तक नंदिनी की सेवा की।
सेवा करते हुये एक महीना पूरा हो रहा था, उस दिन महाराज वन में कुछ सुन्दर पुष्पों को देखने लगे और इतने में नंदिनी आगे चली गयी। दो – चार क्षण में ही उस गाय के रंभाने की बड़ी करूँ ध्वनि सुनाई पड़ी। महाराज जब दौड़कर वहां पहुंचे तो देखते हैं कि उस झरने के पास एक विशालकाय शेर उस सुन्दर गाय को दबोचे बैठा है।
शेरकर मारकर गाय को छुडाने के लिए राजा दिलीप ने धनुष उठाया और तरकश से बाण निकालने लगे तो उनका हाथ तरकश से ही चिपक गया। आश्चर्य में पड़े राजा दिलीप से उस विशाल शेर ने मनुष्य की आवाज में कहा – “राजन! मैं कोई साधारण शेर नहीं हूँ। मैं भगवान शिव का सेवक हूँ। अब आप लौट जाइए। मैं भूखा हूँ। मैं इसे खाकर अपनी भूख मिटाऊंगा।”
महाराज दिलीप बड़ी नम्रता से बोले – ”आप भगवान शिव के सेवक हैं, इसलिए मैं आपको प्रणाम करता हूँ। आपने जब कृपा करके अपना परिचय दिया है तो आप इतनी कृपा और कीजिये कि आप इस गौ को छोड़ दीजिये और अगर आपको अपनी क्षुधा ही मिटानी है तो मुझे अपना ग्रास बना लीजिये।”
उस शेर ने महाराज को बहुत समझाया, लेकिन राजा दिलीप नहीं माने और अंततः अपने दोनों हाथ जोड़कर शेर के समीप यह सोच कर नतमस्तक हो गए कि शेर उनको अभी कुछ ही क्षणों में अपना ग्रास बना लेगा।
तभी नंदिनी ने मनुष्य की आवाज में कहा – ” महाराज! आप उठ जाइए। यहं कोई शेर नहीं है। सब मेरी माया थी। मैं तो आपकी परीक्षा ले रही थी। मैं आपकी सेवा से अति प्रसन्न हूँ।”
इस घटना के कुछ महीनो बाद रानी गर्भवती हुई और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उनके पुत्र का नाम रघु था। महाराज रघु के नाम पर ही रघुवंश की स्थापना हुई। कई पीढ़ियों के बाद इसी कुल में भगवान श्री राम का अवतार हुआ।
न माया मिली न राम
किसी गाँव में दो दोस्त रहते थे। एक का नाम हीरा था और दूसरे का मोती. दोनों में गहरी दोस्ती थी और वे बचपन से ही खेलना-कूदना, पढना-लिखना हर काम साथ करते आ रहे थे।
जब वे बड़े हुए तो उनपर काम-धंधा ढूँढने का दबाव आने लगा. लोग ताने मारने लगे कि दोनों निठल्ले हैं और एक पैसा भी नही कमाते।
एक दिन दोनों ने विचार-विमर्श कर के शहर की ओर जाने का फैसला किया. अपने घर से रास्ते का खाना पीना ले कर दोनों भोर होते ही शहर की ओर चल पड़े।
शहर का रास्ता एक घने जंगल से हो कर गुजरता था. दोनों एक साथ अपनी मंजिल की ओर चले जा रहे थे. रास्ता लम्बा था सो उन्होंने एक पेड़ के नीचे विश्राम करने का फैसला किया. दोनों दोस्त विश्राम करने बैठे ही थे की इतने में एक साधु वहां पर भागता हुआ आया. साधु तेजी से हांफ रहा था और बेहद डरा हुआ था।
मोती ने साधु से उसके डरने का कारण पूछा।
साधु ने बताय कि-आगे के रास्ते में एक डायन है और उसे हरा कर आगे बढ़ना बहुत मुश्किल है, मेरी मानो तुम दोनों यहीं से वापस लौट जाओ।
इतना कह कर साधु अपने रास्ते को लौट गया।
हीरा और मोती साधु की बातों को सुन कर असमंजस में पड़ गए. दोनों आगे जाने से डर रहे थे। दोनों के मन में घर लौटने जाने का विचार आया, लेकिन लोगों के ताने सुनने के डर से उन्होंने आगे बढ़ने का निश्चेय किया।
आगे का रास्ता और भी घना था और वे दोनों बहुत डरे हुए भी थे. कुछ दूर और चलने के बाद उन्हें एक बड़ा सा थैला पड़ा हुआ दिखाई दिया. दोनों दोस्त डरते हुए उस थैले के पास पहुंचे।
उसके अन्दर उन्हें कुछ चमकता हुआ नज़र आया. खोल कर देखा तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना ही न रहा. उस थैले में बहुत सारे सोने के सिक्के थे. सिक्के इतने अधिक थे कि दोनों की ज़िंदगी आसानी से पूरे ऐश-ओ-आराम से कट सकती थी. दोनों ख़ुशी से झूम रहे थे, उन्हें अपने आगे बढ़ने के फैसले पर गर्व हो रहा था।
साथ ही वे उस साधु का मजाक उड़ा रहे थे कि वह कितना मूर्ख था जो आगे जाने से डर गया।
अब दोनों दोस्तों ने आपस में धन बांटने और साथ ही भोजन करने का निश्चेय किया।
दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गए. हीरा ने मोती से कहा कि वह आस-पास के किसी कुएं से पानी लेकर आये, ताकि भोजन आराम से किया जा सके।मोती पानी लेने के लिए चल पड़ा।
मोती रास्ते में चलते-चलते सोच रहा था कि अगर वो सारे सिक्के उसके हो जाएं तो वो और उसका परिवार हमेशा राजा की तरह रहेगा. मोती के मन में लालच आ चुका था।
वह अपने दोस्त को जान से मर डालने की योजना बनाने लगा. पानी भरते समय उसे कुंए के पास उसे एक धारदार हथियार मिला।उसने सोचा की वो इस हथियार से अपने दोस्त को मार देगा और गाँव में कहेगा की रास्ते में डाकुओं ने उन पर हमला किया था. मोती मन ही मन अपनी योजना पर खुश हो रहा था।
वह पानी लेकर वापस पहुंचा और मौका देखते ही हीरा पर पीछे से वार कर दिया. देखते-देखते हीरा वहीं ढेर हो गया।
मोती अपना सामान और सोने के सिक्कों से भरा थैला लेकर वहां से वापस भागा।
कुछ एक घंटे चलने के बाद वह एक जगह रुका। दोपहर हो चुकी थी और उसे बड़ी जोर की भूख लग आई थी. उसने अपनी पोटली खोली और बड़े चाव से खाना-खाने लगा।
लेकिन ये क्या ? थोड़ा खाना खाते ही मोती के मुँह से खून आने आने लगा और वो तड़पने लगा।
उसे एहसास हो चुका था कि जब वह पानी लेने गया था तभी हीरा ने उसके खाने में कोई जहरीली जंगली बूटी मिला दी थी. कुछ ही देर में उसकी भी तड़प-तड़प कर मृत्यु हो गयी।
अब दोनों दोस्त मृत पड़े थे और वो थैला यानी माया रूपी डायन जस का तस पड़ा हुआ था।
जी हाँ दोस्तों उस साधु ने एकदम ठीक कहा था कि आगे डायन है. वो सिक्कों से भरा थैला उन दोनों दोस्तों के लिए डायन ही साबित हुआ. ना वो डायन रूपी थैला वहां होता न उनके मन में लालच आता और ना वे एक दूसरे की जाना लेते।
एक बार दिल्ली से गोवा की उड़ान में एक सरदारजी मिले। साथ में उनकी सरदारनी भी थीं।
सरदारजी की उम्र करीब 80 साल रही होगी। मैंने पूछा नहीं लेकिन सरदारनी भी 75 पार ही रही होंगी। उम्र के सहज प्रभाव को छोड़ दें, तो दोनों फिट थे।
सरदारनी खिड़की की ओर बैठी थीं, सरदारजी बीच में और सबसे किनारे वाली सीट मेरी थी।
उड़ान भरने के साथ ही सरदारनी ने कुछ खाने का सामान निकाला और सरदारजी की ओर किया। सरदार जी कांपते हाथों से धीरे-धीरे खाने लगे।
सरदार जी ने कोई जूस लिया था। खाना खाने के बाद जब उन्होंने जूस की बोतल के ढक्कन को खोलना शुरू किया तो ढक्कन खुले ही नहीं। सरदारजी कांपते हाथों से उसे खोलने की कोशिश कर रहे थे।
मैं लगातार उनकी ओर देख रहा था। मुझे लगा कि ढक्कन खोलने में उन्हें मुश्किल आ रही है तो मैंने कहा कि लाइए, मैं खोल देता हूं।
सरदारजी ने मेरी ओर देखा, फिर मुस्कुराते हुए कहने लगे कि बेटा ढक्कन तो मुझे ही खोलना होगा।
मैंने कुछ पूछा नहीं, लेकिन सवाल भरी निगाहों से उनकी ओर देखा।
सरदारजी ने कहा, बेटाजी, आज तो आप खोल देंगे। लेकिन अगली बार कौन खोलेगा? इसलिए मुझे खुद खोलना आना चाहिए। सरदारनी भी सरदारजी की ओर देख रही थीं। जूस की बोतल का ढक्कन उनसे भी नहीं खुला था। पर सरदारजी लगे रहे और बहुत बार कोशिश करके उन्होंने ढक्कन खोल ही दिया। दोनों आराम से जूस पी रहे थे।
कल मुझे दिल्ली से गोवा की उड़ान में ज़िंदगी का एक सबक मिला।
सरदारजी ने मुझे बताया कि उन्होंने ये नियम बना रखा है कि अपना हर काम वो खुद करेंगे। घर में बच्चे हैं, भरा पूरा परिवार है। सब साथ ही रहते हैं। पर अपनी रोज़ की ज़रूरत के लिए सरदारजी सिर्फ सरदारनी की मदद लेते हैं, बाकी किसी की नहीं। वो दोनों एक दूसरे की ज़रूरतों को समझते हैं।
सरदारजी ने मुझसे कहा कि जितना संभव हो, अपना काम खुद करना चाहिए। एक बार अगर काम करना छोड़ दूंगा, दूसरों पर निर्भर होऊंगा, तो समझो बेटा कि बिस्तर पर ही पड़ जाऊंगा। फिर मन हमेशा यही कहेगा कि ये काम इससे करा लूं, वो काम उससे। फिर तो चलने के लिए भी दूसरों का सहारा लेना पड़ेगा। अभी चलने में पांव कांपते हैं, खाने में भी हाथ कांपते हैं, पर जब तक आत्मनिर्भर रह सको, रहना चाहिए।
हम गोवा जा रहे हैं, दो दिन वहीं रहेंगे। हम महीने में एक दो बार ऐसे ही घूमने निकल जाते हैं। बेटे-बहू कहते हैं कि अकेले मुश्किल होगी, पर उन्हें कौन समझाए कि मुश्किल तो तब होगी, जब हम घूमना-फिरना बंद करके खुद को घर में कैद कर लेंगे। पूरी ज़िंदगी खूब काम किया। अब सब बेटों को दे कर अपने लिए महीने के पैसे तय कर रखे हैं और हम दोनों उसी में आराम से घूमते हैं।
जहां जाना होता है एजेंट टिकट बुक करा देते हैं, एयरपोर्ट पर टैक्सी आ जाती है, होटल में कोई तकलीफ होनी नहीं है। स्वास्थ्य एकदम ठीक है। कभी-कभी जूस की बोतल ही नहीं खुलती। पर थोड़ा दम लगाता हूं तो वो भी खुल ही जाती है।
तय किया था कि इस बार की उड़ान में लैपटॉप पर एक पूरी फिल्म देख लूंगा। पर यहां तो मैं जीवन की फिल्म देख रहा था। एक ऐसी फिल्म जिसमें जीवन जीने का संदेश छिपा था।
“जब तक हो सके, आत्मनिर्भर होना चाहिए।”…
जगन्नाथ के भात को
जगत पसारे हाथ।
बिना भाग्य मिलता नहीं
जगन्नाथ का भात।‼️💛
एक बार तुलसीदास जी महाराज को किसी ने बताया कि जगन्नाथ जी में तो साक्षात भगवान ही दर्शन देते हैं, बस फिर क्या था सुनकर तुलसीदास जी महाराज तो बहुत ही प्रसन्न हुए और अपने इष्टदेव का दर्शन करने श्रीजगन्नाथपुरी को चल दिए।
महीनों की कठिन और थका देने वाली यात्रा के उपरांत जब वह जगन्नाथ पुरी पहुंचे तो मंदिर में भक्तों की भीड़ देख कर प्रसन्न मन से अंदर प्रविष्ट हुए। जगन्नाथ जी का दर्शन करते ही उन्हें बड़ा धक्का सा लगा, वह निराश हो गये। और विचार किया कि यह हस्तपादविहीन देव हमारे जगत में सबसे सुंदर नेत्रों को सुख देने वाले मेरे इष्ट श्री राम नहीं हो सकते।
इस प्रकार दुःखी मन से बाहर निकल कर दूर एक वृक्ष के तले बैठ गये। सोचा कि इतनी दूर आना व्यर्थ हुआ। क्या गोलाकार नेत्रों वाला हस्तपादविहीन देव मेरा राम हो सकता है? कदापि नहीं।
रात्रि हो गयी, थके-माँदे, भूखे-प्यासे तुलसी का अंग टूट रहा था। अचानक एक आहट हुई। वे ध्यान से सुनने लगे। अरे बाबा! तुलसीदास कौन है?
एक बालक हाथों में थाली लिए पुकार रहा था। तुलसीदास ने सोचा साथ आए लोगों में से शायद किसी ने पुजारियों को बता दिया होगा कि तुलसीदास जी भी दर्शन करने को आए हैं इसलिये उन्होने प्रसाद भेज दिया होगा। तुलसीदास उठते हुए बोले, ‘हाँ भाई! मैं ही हूँ तुलसीदास।’
बालक ने कहा, ‘अरे! आप यहाँ हैं। मैं बड़ी देर से आपको खोज रहा हूँ।’
बालक ने कहा, ‘लीजिए, जगन्नाथ जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है।’
तुलसीदास बोले, ‘भैया कृपा करके इसे वापस ले जायँ।’
बालक ने कहा, आश्चर्य की बात है, ‘जगन्नाथ का भात-जगत पसारे हाथ’ और वह भी स्वयं महाप्रभु ने भेजा और आप अस्वीकार कर रहे हैं, कारण?
तुलसीदास बोले, ‘अरे भाई ! मैं बिना अपने इष्ट को भोग लगाये कुछ ग्रहण नहीं करता। फिर यह जगन्नाथ का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने इष्ट को समर्पित न कर सकूँ, यह मेरे किस काम का?’
बालक ने मुस्कराते हुए कहा ‘अरे, बाबा! आपके इष्ट ने ही तो भेजा है।’
तुलसीदास बोले, ‘यह हस्तपादविहीन मूर्ति मेरा इष्ट नहीं हो सकता।’
बालक ने कहा कि फिर आपने अपने श्रीरामचरितमानस में यह किस रूप का वर्णन किया है…
❤️बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु कर्म करइ बिधि नाना ।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।❤️
अब तुलसीदास की भाव-भंगिमा देखने लायक थी। नेत्रों में अश्रु-बिन्दु, मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे। थाल रखकर बालक यह कहकर अदृश्य हो गया कि
🌺म ही तुम्हारा राम हूँ।
🌺मरे मंदिर के चारों द्वारों पर हनुमान का पहरा है।
🌺विभीषण नित्य मेरे दर्शन को आता है।
🌺कल प्रातः तुम भी आकर दर्शन कर लेना।’
तुलसीदास जी की स्थिति ऐसी की रोमावली रोमांचित थी, नेत्रों से अश्रु अविरल बह रहे थे और शरीर की कोई सुध ही नहीं। उन्होंने बड़े ही प्रेम से प्रसाद ग्रहण किया।
प्रातः मंदिर में जब तुलसीदास जी महाराज दर्शन करने के लिए गए तब उन्हें जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के स्थान पर श्री राम, लक्ष्मण एवं जानकी के भव्य दर्शन हुए। भगवान ने भक्त की इच्छा पूरी की।
जिस स्थान पर तुलसीदास जी ने रात्रि व्यतीत की थी, वह स्थान ‘तुलसी चौरा’ नाम से विख्यात हुआ। वहाँ पर तुलसीदास जी की पीठ ‘बड़छतामठ’ के रूप में प्रतिष्ठित है।
💛‼️जय जगन्नाथ‼️💛
एक पिता ने अपनी बेटी की सगाई करवाई,
लड़का बड़े अच्छे घर से था तो पिता बहुत खुश हुए।
लड़के ओर लड़के के माता पिता का सवभाव बड़ा अच्छा था तो पिता के सिर से बड़ा बोझ उतर गया।
एक दिन शादी से पहले लड़के वालो ने लड़की के पिता को खाने पर बुलाया।
पिता की तबीयत ठीक नहीं थी फिर भी ना न कह सके। लड़के वालो ने बड़े आदर सत्कार से उनका स्वागत किया। फिर लड़की के पिता के लिए चाय आई।
डाय्बटिज की वजह से लड़की के पिता को चीनी वाली चाय से दूर रहने को कहा गया था।
लेकिन लड़की के होने वाले घर में थे तो चुप रह कर चाय हाथ में ले ली।
चाय कि पहली चुस्की लेते ही चौन्क गये, चीनी बिल्कुल ही नहीं थी और ईलायची भी डली हुई थी सोच मे पड़ गये हमारे जैसी चाय पीते हैं ये लोग भी।
दोपहर में खाना खाया वो भी बिल्कुल उनके घर जैसा, दोपहर में आराम करने के लिए दो तकिये पतली चददर। उठते ही सौंफ का पानी पीने को दिया गया।
वहां से विदा लेते समय उनसे रहा नहीं गया तो पुछ बैठे, मुझे क्या खाना है? क्या पीना है?
मेरी सेहत के लिए क्या अच्छा है यह आपको कैसे पता है?
तो बेटी कि सास ने कहा कि कल रात को ही आपकी बेटी का फ़ोन आ गया था ओर कहा कि मेरे पापा स्वभाव से बड़े सरल हैं बोलेंगे कुछ नहीं प्लीज आप उनका ध्यान रखियेगा।
पिता की आंखों मे वहीं पानी आ गया। लड़की के पिता जब आपने घर पहुँचॆ तो घर के हाल में लगी अपनी स्वर्गवासी माँ की फोटो से हार निकाल दिया, तो पत्नी ने पूछा कि ये कया कर रहे हो?
तो लड़की का पिता बोला मेरा ध्यान रखने वाली मेरी माँ इस घर से गयी नहीं मेरी बेटी के रुप में इस घर में ही रहती है और फिर पिता की आंखों से आँसू झलक गये।
सब कहते हैं कि बेटी है एक दिन इस घर को छोड़कर चली जायेगी, बेटी कभी भी अपने माँ बाप के घर से नहीं जाती, वो हमेशा उनके दिल में रहती है।
🌷🌷 નિંદ્રા નો કુદરતી ક્રમ 😴😴
રાત્રી ના ૧૧ થી ૩ સુધી લોહી નો મહત્તમ પ્રવાહ લીવર તરફ હોય છે.
આ એ મહત્વ નો સમય છે જયારે શરીર લીવર ની મદદ થી, વિષરહિત થવાની પ્રક્રિયા માં થી, પસાર થાય છે,
એનો આકાર મોટો થઈ જાયે છે,
પણ આ પ્રક્રિયા આપ ગાઢ નિદ્રા માં, પોહચો પછીજ શરૂ થાયે છે.
😌😌😲😲😴😲😲🤔
તમે ૧૧ વાગે ગાઢ નિંદ્રા ની અવસ્થા માં પોહચો પછીજ
આ પ્રક્રિયા શરૂ થાય
અને તો શરીર ને, પુરા
૪ કલાક મળે વિષમુક્ત થવા માટે.
🐞🦀🕸🕷🐍
હવે તમે જો ૧૨ વાગે ગાઢ નિંદ્રા ની અવસ્થા માં પહોંચો તો
તમારા શરીર ને ૩ કલાક જ મળે.
જો, ૧ વાગે ગાઢ નિંદ્રા ની અવસ્થા માં પહોંચો તો
તમારા શરીર ને 2 કલાક જ મળે.
અને જો, ..🐸2 વાગે ગાઢ નિંદ્રા ની અવસ્થા માં પહોંચો તો
તમારા શરીર ને ૧ જ કલાક મળે. 🐽🙈🌚⚡⚡🧐☹🙁
જ્યાં ૪ કલાક ની તાતી જરૂર હોય ત્યાં ઓછા કલાક મળવા થી વિષ મુક્તિ નું કાર્ય સંપૂર્ણ રીતે ના થઈ શકે.
અને શરીર વિષયુક્ત રોગો નું ઘર થતું જાયે.
થોડું વિચારી જુવો 🙄🤔 જયારે પણ તમે મોડી રાત
સુધી જાગ્યા હોવ
ત્યારે ગમે તેટલા કલાક
ઊંઘો 😴😴તમને પોતાની કાયા બીજે દિવસે થાકેલીજ લાગશે. 🤒🤢
શરીર ને વિષમુક્ત થવા પૂરતો સમય ના આપી ને, 👾🤖👻
શરીર ની બીજી અનેક ક્રિયા
ઓ માં તમે અજાણતાંજ
અવરોધ ઉત્પન્ન કરો છો. 😷🤧
બ્રહ્મા મુરત એટલે સવારે ૩ થી ૫ ના સમય માં લોહી નું સંચરણ ફેફસાં તરફ થતું હોય છે. ☄🎇
જે અત્યંત જરૂરી ક્રિયા નું
સ્થાન છે તે વખતે 😇
તમે મન અને તન
ને સ્વચ્છ કરી, ધ્યાન જેવી સુક્ષ્મા પ્રકિર્યા માં જાત ને પરોવી જોઈએ
જેથી બ્રહ્માંડીય ઉર્જા જે તે સમય એ વિપુલ માત્રા માં સહજ ઉપલબ્ધ હોય તે તમને પ્રાપ્ત થાય, 🤩😇🙌🎅🏼
તે પછી ખુલ્લી હવા માં, વ્યાયામ કરવો જોઈએ હવા માં
આ સમયે લાભપ્રદ આયન ની માત્રા ખૂબજ વધારે હોય છે. 🤽🏼♀⛹🏻♂🤼♀🤸🏻♀🚴🏼♀🚴🏾♂
૫ થી ૭ શુદ્ધ થયેલા રક્ત નો સંચાર તમારા મોટા આંતરડા તરફ હોય છે.
જે પાછલો મળ કાઢવાની પ્રક્રિયા માં સક્રિય ભાગ લે છે અને શરીર ને આખા દિવસ દરમિયાન લેવાતા પોષક તત્વો ગ્રહણ કરવા માટે તૈયાર કરે છે
પછી સૂર્યોદય ના સમય એ, 7- 9 શુદ્ધ રક્ત સ્વચ્છ શરીર ના પેટ અને આમાશય તરફ વહે છે.
આ સમય છે જયારે પૌષ્ટિક નાસ્તો એટલે શિરામણ આરોગવો
જોઈએ. 🥥🍌🍇🥦🥕🍊🍎🧀🥗🥙🍜🍱
તમારા દિવસ નો તે સહુથી જરૂરી આહાર છે. 🤩🙋🏼♂🤷🏻♀
સવારે પૌષ્ટિક નાસ્તો
ના કરતા લોકો ને ભવિષ્ય માં ઘણી બધી આરોગ્ય-લક્ષી સમસ્યા નો સામનો કરવો
પડે છે. 🤥😱😓🤒😷
આ કુદરત એ તમારા શરીર માટે બનાવેલી આરોગ્ય ઘડિયાળ છે.
એને અનુસરવા થી ચિતા સુધી ચાલતા જઈ શકાય.
હવે તમે પૂછશો કે ક્યારેક કોઈ
કાર્ય મોડી રાત સુધી કરવું પડે
તો શું કરવાનું?
હું તો વિનંતી કરીશ ke kem જલદી સૂઈ ને વહેલા ઉઠી ને ના કરી શકાય ?
બસ તમારા મોડી રાત ના કાર્યો ને વહેલા ઉઠી ને કરવાની આદત પાડો સમય તો સરખોજ મળશે.
પણ સાથે સાથે સ્વસ્થ શરીર પ્રાપ્ત થશે. 🤩😇👍🙏🏻
🍀🍀🍀***✨✨✨***🍀🍀🍀
🔔☀️ 🕉 🌹 🙏 જય શ્રી કૃષ્ણ 🙏 🌹 ☀️🔔
उम्मीद का दिया हमारा सदा जलता रहे
🪔 🪔 🪔 🪔 🪔
एक घर मे पाँच दीये जल रहे थे !
एक दिन पहले एक दीये ने कहा –
इतना जल कर भी मेरी रोशनी की
लोगो को कोई कदर नही है…
तो बेहतर यही होगा कि मैं बुझ जाऊँ !
वह दीया खुद को व्यर्थ समझ कर बुझ गया !
जानते है वह दिया कौन था ❓
वह दिया था उत्साह का प्रतीक !
यह देख दूसरा दिया जो शान्ति का प्रतीक था,
कहने लगा –
मुझे भी बुझ जाना चाहिए !
निरन्तर शान्ति की रोशनी देने के बावजूद भी
लोग हिंसा कर रहे हैं !
और शान्ति का दीया बुझ गया !
उत्साह और शान्ति के दीये के बुझने के बाद,
जो तीसरा दीया हिम्मत का था,
वह भी अपनी हिम्मत खो बैठा और बुझ गया !
उत्साह, शान्ति और अब हिम्मत के न रहने पर
चौथे दीए ने भी बुझना ही उचित समझा !
चौथा दीया समृद्धि का प्रतीक था !
सभी दीये बुझने के बाद केवल पाँचवाँ दीया
अकेला ही जल रहा था !
हालाँकि पाँचवाँ दीया सबसे छोटा था
मगर फिर भी वह निरन्तर जल रहा था !
तब उस घर में एक किसी एक समझदार आदमी ने प्रवेश किया !
उसने देखा कि
उस घर में सिर्फ एक ही दीया जल रहा है !
वह ख़ुशी से झूम उठा !
चार दीये बुझने की वजह से वह दुःखी नहीं हुआ
बल्कि ख़ुश हुआ !
यह सोच कर कि कम से कम एक दीया तो जल रहा है !
उसने तुरन्त पाँचवाँ दीया उठाया
और बाकी के चार दीये फ़िर फिर से जला दिये !
जानते हैं वह पाँचवाँ अनोखा दीया कौन सा था ?
वह था उम्मीद का दीया..
इसलिए अपने घर में अपने मन में
हमेशा उम्मीद का दीया जलाये रखें !
यह एक ही दीया काफी है
बाकी सब दीयों को जलाने के लिए ….
इसिलिए आपके जीवन में
ये सारे दीये निरन्तन जलते रहें—–🙏
अन्नपूर्णा मंत्र
अन्नपूर्णा मंत्र
अन्नपूर्णे सदा पूर्णे
शंकर प्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्य सिद्धय
भिक्षांदेहिच पार्वती।।
इस अन्नपूर्णा मंत्र द्वारा श्रद्धा पूर्वक यह प्रार्थना करनी चाहिए कि उनके घर में कभी भी धन-धान्य की कमी ना हो।
इसके पश्चात मां अन्नपूर्णा के मंत्र स्रोत आरती और कथा का पाठ करके पूजा संपन्न करनी चाहिए।
मां अन्नपूर्णा की कृपा मिलने से घर में कभी भी अन्न की कमी नहीं होती है।मां अन्नपूर्णा की पूजा करने से समृद्धि संपन्नता और संतोष की प्राप्ति होती है।
मां अन्नपूर्णा की बात पूजा में इन बातों का ध्यान रखना है जरूरी-
मां अन्नपूर्णा की पूजा हमेशा सुबह ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:00 बजे) या संध्या काल में ही करनी चाहिए।
मां अन्नपूर्णा की पूजा करते समय लाल या पीले या सफेद रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए।
मां अन्नपूर्णा को कभी भी दूर्वा ना चढ़ाएं।
मां अन्नपूर्णा देवी के मंत्र का जाप करने के लिए कभी भी तुलसी की माला का प्रयोग ना करें।
कथा-
पौराणिक हिन्दू ग्रंथों के अनुसार प्राचीन समय में किसी कारणवश धरती बंजर हो गई, जिस वजह से धान्य-अन्न उत्पन्न नहीं हो सका, भूमि पर खाने-पीने का सामान खत्म होने लगा जिससे पृथ्वीवासियों की चिंता बढ़ गई। परेशान होकर वे लोग ब्रह्माजी और श्रीहरि विष्णु की शरण में गए और उनके पास पहुंचकर उनसे इस समस्या का हल निकालने की प्रार्थना की।
इस पर ब्रह्मा और श्रीहरि विष्णु जी ने पृथ्वीवासियों की चिंता को जाकर भगवान शिव को बताया। पूरी बात सुनने के बाद भगवान शिव ने पृथ्वीलोक पर जाकर गहराई से निरीक्षण किया।
इसके बाद पृथ्वीवासियों की चिंता दूर करने के लिए भगवान शिव ने एक भिखारी का रूप धारण किया और माता पार्वती ने माता अन्नपूर्णा का रूप धारण किया। माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगकर भगवान शिव ने धरती पर रहने वाले सभी लोगों में ये अन्न बांट दिया। इससे धरतीवासियों की अन्न की समस्या का अंत हो गया तभी से मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाने लगी।

एक दिन कॉलेज में प्रोफेसर ने विद्यर्थियों से पूछा कि इस संसार में जो कुछ भी है उसे भगवान ने ही बनाया है न?
सभी ने कहा, “हां भगवान ने ही बनाया है।“
प्रोफेसर ने कहा कि इसका मतलब ये हुआ कि बुराई भी भगवान की बनाई चीज़ ही है।
प्रोफेसर ने इतना कहा तो एक विद्यार्थी उठ खड़ा हुआ और उसने कहा कि इतनी जल्दी इस निष्कर्ष पर मत पहुंचिए सर।
प्रोफेसर ने कहा, क्यों? अभी तो सबने कहा है कि सबकुछ भगवान का ही बनाया हुआ है फिर तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?
विद्यार्थी ने कहा कि सर, मैं आपसे छोटे-छोटे दो सवाल पूछूंगा। फिर उसके बाद आपकी बात भी मान लूंगा।
प्रोफेसर ने कहा, ” पूछो।”
विद्यार्थी ने पूछा , “सर क्या दुनिया में ठंड का कोई वजूद है?”
प्रोफेसर ने कहा, बिल्कुल है। सौ फीसदी है। हम ठंड को महसूस करते हैं।
विद्यार्थी ने कहा, “नहीं सर, ठंड कुछ है ही नहीं। ये असल में गर्मी की अनुपस्थिति का अहसास भर है। जहां गर्मी नहीं होती, वहां हम ठंड को महसूस करते हैं।”
प्रोफेसर चुप रहे।
विद्यार्थी ने फिर पूछा, “सर क्या अंधेरे का कोई अस्तित्व है?”
प्रोफेसर ने कहा, “बिल्कुल है। रात को अंधेरा होता है।”
विद्यार्थी ने कहा, “नहीं सर। अंधेरा कुछ होता ही नहीं। ये तो जहां रोशनी नहीं होती वहां अंधेरा होता है।
प्रोफेसर ने कहा, “तुम अपनी बात आगे बढ़ाओ।”
विद्यार्थी ने फिर कहा, “सर आप हमें सिर्फ लाइट एंड हीट (प्रकाश और ताप) ही पढ़ाते हैं। आप हमें कभी डार्क एंड कोल्ड (अंधेरा और ठंड) नहीं पढ़ाते। फिजिक्स में ऐसा कोई विषय ही नहीं। सर, ठीक इसी तरह ईश्वर ने सिर्फ अच्छा-अच्छा बनाया है। अब जहां अच्छा नहीं होता, वहां हमें बुराई नज़र आती है। पर बुराई को ईश्वर ने नहीं बनाया। ये सिर्फ अच्छाई की अनुपस्थिति भर है।”
दरअसल दुनिया में कहीं बुराई है ही नहीं। ये सिर्फ प्यार, विश्वास और ईश्वर में हमारी आस्था की कमी का नाम है।
ज़िंदगी में जब और जहां मौका मिले अच्छाई बांटिए। अच्छाई बढ़ेगी तो बुराई होगी ही नहीं। 🙏 जय जिनेन्द्र जी 🙏