*बचपन से ही हमलोग एक कथा सुनते आ रहे हैं कि….*
एक बिच्छू जल में छटपटा रहा था और एक महात्मा उसे बचा रहे थे…!
लेकिन, जैसे ही महात्मा उसे उठाते थे… बिच्छू उन्हें डंक मार कर काट लेता था.
ये देख कर… लोगों ने महात्मा को समझाया कि….
महात्मा… ऐसे जीव को क्यों बचाना, जो खुद को बचाने वाले को ही काट रहा है ???
जाने दो न…!
लेकिन, ये सुनते ही महात्मा जी पर “महात्मागीरी” हावी हो गई…
और, वे कहने लगे… “जब यह छोटा सा जीव अपना स्वभाव नहीं छोड़ता…
तो, फिर मैं क्यों छोड़ दूँ ???”
‘पंचतंत्र’ में इतनी कथा के बाद विराम लग गया…!
पर, असलियत में ये कथा आगे भी चलती रही.
लोगों ने उस नदी वाली बात को भुला दिया….
पर, महात्मा अपनी “महात्मागीरी” में लगे रहे…
और, ढेरों बिच्छू बचा बचा कर अपने इर्द-गिर्द जमा कर लिए …
चूंकि, बिच्छुओं की प्रजनन दर भी बहुत तेज थी तो जल्द ही हर तरफ बिच्छू ही नजर आने लगे.
अब वे सारे बिच्छू…. जो पहले सिर्फ छूने पर ही डंक मारते थे,
अब, बिना छुए ही खुद से पहल कर महात्मा को “काटने” लगे.
यहाँ तक कि… उन्हें “ध्यान-साधना” भी न करने दें.
तब तंग आकर महात्मा बोले…
“अरे…!
मुझे मेरी पूजा तो करने दो,
वरना मैं महात्मा कैसे बना रह पाऊंगा ??”
इस पर बिच्छू कहते हैं….
“अब हमारी गिनती ज्यादा है.
इसीलिए, अब रहना है तो हम जैसा बन के रहो,
वरना हम तेरा जीवन ही समाप्त कर देंगे।”
यह देखकर… हैरान- परेशान महात्मा ने “डंडा” लेकर बिच्छुओं की खातिरदारी करनी शुरू की..
तो झट से…. सारी “बिच्छू जमात” चिल्लाने लगी कि…
तुम तो महात्मा हो,
तुम्हें हिंसा नहीं करनी चाहिए,
तुम तो वसुधैव कुटुम्बकम वाले लोग हो..
तुम अपना स्वभाव कैसे बदल सकते हो ???
तुम असहिष्णु कैसे हो गये ???”
पहले यही गुजरात में हुआ…
फिर up में हुआ…
और, अब यही असम और तिरिपुरा में हो रहा है.
असल में इसमें गलती बिच्छुओं की नहीं है बल्कि महात्मा की ही है..
क्योंकि, सांप और बिच्छू का स्वभाव ही है काटना…!
और, सांप की वो प्रवृति कभी बदल नहीं सकती…!
उसे तो एक दिन डसना ही है…
फिर चाहे… उसे दूध पिलाओ अथवा न पिलाओ…
ठीक यही प्रवृति दाढ़ी वाले हरे बिच्छुओं में भी पाई जाती है…
पहले तो वे आपके मुहल्ले अथवा घर के बाहर जमीन पर असहाय और लाचार से पड़े रहेंगे…
लेकिन, अगर आप