Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

प्रोफेसर की सीख


प्रोफेसर की सीख💐💐

प्रोफ़ेसर साहब बड़े दिनों बाद आज शाम को घर लौटते वक़्त अपने दोस्त नवीन से मिलने उसकी दुकान पर गए।

इतने दिनों बाद मिल रहे दोस्तों का उत्साह देखने लायक था…दोनों ने एक दुसरे को गले लगाया और बैठ कर गप्पें मारने लगे।

चाय-वाय पीने के कुछ देर बाद प्रोफ़ेसर बोले, “यार एक बात बता, पहले मैं जब भी आता था तो तेरी दुकान में ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी और हम बड़ी मुश्किल से बात कर पाते थे। लेकिन आज बस इक्का-दुक्का ग्राहक ही दिख रहे हैं और तेरा स्टाफ भी पहले से कम हो गया है…”

दोस्त मजाकिया लहजे में बोला, “अरे कुछ नहीं, हम इस मार्केट के पुराने खिलाड़ी हैं…आज धंधा ढीला है…कल फिर जोर पकड़ लेगा!”

इस पर प्रोफ़ेसर साहब कुछ गंभीर होते हुए बोले, “देख भाई, चीजों को इतना हलके में मत ले…मैं देख रहा हूँ कि इसी रोड पर कपड़े की तीन-चार और दुकाने खुल गयी हैं, कम्पटीशन बहुत बढ़ गया है…और ऊपर से…”

प्रोफ़ेसर साहब अपनी बात पूरी करते उससे पहले ही, दोस्त उनकी बात काटते हुए बोला, “अरे ये दुकाने आती-जाती रहती हैं, इनसे कुछ फरक नहीं पड़ता।”

प्रोफ़ेसर साहब कॉलेज टाइम से ही अपने दोस्त को जानते थे और वो समझ गए कि ऐसे समझाने पर वो उनकी बात नहीं समझेगा।

इसके बाद उन्होंने अगले रविवार, बंदी के दिन; दोस्त को चाय पे बुलाया।

दोस्त, तय समय पर उनके घर पहुँच गया।

कुछ गपशप के बाद प्रोफ़ेसर साहब उसे अपने घर में बनी एक प्राइवेट लैब में ले गए और बोले, “देख यार! आज मैं तुझे एक बड़ा ही इंटरस्टिंग एक्सपेरिमेंट दिखता हूँ..”

प्रोफ़ेसर साहब ने एक जार में गरम पानी लिया और उसमे एक मेंढक डाल दिया। पानी से सम्पर्क में आते ही मेंढक खतरा भांप गया और कूद कर बाहर भाग गया।

इसके बाद प्रोफ़ेसर साहब ने जार से गरम पानी फेंक कर उसमे ठंडा पानी भर दिया, और एक बार फिर मेंढक को उसमे डाल दिया। इस बार मेंढक आराम से उसमे तैरने लगा।

तभी प्रोफ़ेसर साहब ने एक अजीब सा काम किया, उन्होंने जार उठा कर एक गैस बर्नर पर रख दिया और बड़ी ही धीमी आंच पर पानी गरम करने लगे।

कुछ ही देर में पानी गरम होने लगा। मेंढक को ये बात कुछ अजीब लगी पर उसने खुद को इस तापमान के हिसाब से एडजस्ट कर लिया…इस बीच बर्नर जलता रहा और पानी और भी गरम होता गया….पर हर बार मेढक पानी के टेम्परेचर के हिसाब से खुद को एडजस्ट कर लेता और आराम से पड़ा रहता….लेकिन उसकी भी सहने की एक क्षमता थी! जब पानी काफी गरम हो गया और खौलने को आया तब मेंढक को अपनी जान पर मंडराते खतरे का आभास हुआ…और उसने पूरी ताकत से बाहर छलांग लगाने की कोशिष की….पर बार-बार खुद को बदलते तापमान में ढालने में उसकी काफी उर्जा लग चुकी थी और अब खुद को बचाने के लिए न ही उसके पास शक्ति थी और न ही समय…देखते-देखते पानी उबलने लगा और मेंढक की मौत हो गयी।

एक्सपेरिमेंट देखने के बाद दोस्त बोला-

यार तूने तो मेंढक की जान ही ले ली…खैर, ये सब तू मुझे क्यों दिखा रहा है?

प्रोफ़ेसर बोले, “ मेंढक की जान मैंने नहीं ली…उसने खुद अपनी जान ली है। अगर वो बिगड़ते हुए माहौल में बार-बार खुद को एडजस्ट नहीं करता बल्कि उससे बचने का कुछ उपाय सोचता तो वो आसानी से अपनी जान बचा सकता था। और ये सब मैं तुझे इसलिए दिखा रहा हूँ क्योंकि कहीं न कहीं तू भी इस मेढक की तरह व्यवहार कर रहा है।

तेरा अच्छा-ख़ासा बिजनेस है पर तू चेंज हो रही मार्केट कंडीशनस की तरफ ध्यान नहीं दे रहा, और बस ये सोच कर एडजस्ट करता जा रहा है कि आगे सब अपने आप ठीक हो जाएगा…पर याद रख अगर तू आज ही हो रहे बदलाव के ऐकौर्डिंग खुद को नहीं चेंज करेगा तो हो सकता है इस मेंढक की तरह कल को संभलने के लिए तेरे पास ना एनर्जी हो और ना ही समय!”

प्रोफ़ेसर की सीख ने दोस्त की आँखें खोल दीं, उसने प्रोफ़ेसर साहब को गले लगा लिया और वादा किया कि एक बार फिर वो मार्केट लीडर बन कर दिखायेगा।

Author:

Buy, sell, exchange old books

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s