એક મધ્યમ વર્ગીય સજ્જન વ્યક્તિ નામ મુકેશભાઈ પટેલ જે એક સફળ ઉદ્યોગ સાહસિક હતા. સંતાનમાં તેને એક દીકરો હતો જે વેલ એજ્યુકેટેડ થઈને બિઝનેસમાં પીતાની સાથે હતો. જે દીકરાની ઉંમર હવે લગ્ન કરવા જેવી થઈ ચૂકી હતી. સામાજસેવી કાર્યકરો દ્વારા ચલાવાતા ગ્રુપનાં માધ્યમથી થોડા સમયમાં દીકરા નો સંબંધ નક્કી કર્યો. દિકરા-દિકરી બંનેની એકબીજા સાથે મુલાકાત અને વાતચીત બાદ સંબંધ નક્કી કર્યો હતો.
થોડા દિવસો પછી બંનેની સગાઇ કરી દેવામાં આવી અને લગ્ન એકાદ વર્ષ પછી કરીશું તેવો નિર્ણય લેવામાં આવ્યો હતો. સગાઈ થયા પછી થોડા દિવસો પછી મુકેશભાઈ કોઈ કામ અર્થે તેના વેવાઈ ના ઘરે ગયા, ત્યારે તેના વેવાણ રસોઈ કરી રહ્યા હતા બીજા બાળકો ટીવી જોઈ રહ્યા હતા અને તેની થનારી વહુ પણ ટીવી જોઈ રહી હતી.
તેના વેવાઈ સાથે બેસીને ચા પાણી પીધા એકબીજાના ખબર અંતર પૂછ્યા અને થોડા સમય પછી મુકેશભાઈ પાછા પોતાના ઘરે જવા રવાના થઈ ગયા.
આ વાતને લગભગ 20-25 દિવસ જેટલો સમય વિતી ગયો. ફરી પાછું એક વખત મુકેશભાઇને કોઇ કામ અર્થે પોતાના વેવાઈ ના ઘરે જવાનું થયું. ત્યાં જઈને જોયું તો સાંજનો સમય હતો વેવાણ કચરો સાફ કરી રહ્યા હતા, તેની થનારી વહુ સૂઇ રહી હતી મૂકેશભાઈને તેના વેવાઈ ના ઘરે માત્ર પાંચ મિનિટ નું જ કામ હોવાથી ત્યાંથી તે ફરી પાછા નીકળી ગયા.
એ જ દિવસે ફરી પાછું વેવાઈનું કંઈક કામ પડ્યું હોવાથી તેઓ ફરી પાછા રાત્રે વેવાઈની ઘરે ગયા અને જોયું તો બધા લોકો જમીને બેઠા હતા, બાળકો જમીને ટીવી જોઈ રહ્યા હતા. તેઓના વેવાણ રસોડામાં વાસણ સાફ કરી રહ્યા હતા. અને તેના દીકરાની થનારી વહુ ફળિયા પાસે બેસી ને પોતાના હાથમાં નેલ પોલીસ કરી રહી હતી.
મુકેશભાઈ ને પોતાનું કામ પૂરું થઈ થયું કે તુરંત ઘરે જવા નીકળી ગયા..
મૂકેશભાઈ એક દિવસ બે દિવસ એમ કરતા કરતા પાંચ દિવસ સુધી અત્યંત ઊંડાણ પૂર્વક વિચાર કરતા રહ્યા. પછી ખૂબ જ સમજી-વિચારીને તેઓએ દીકરી વાળા ના ઘરે સમાચાર પહોંચાડ્યા કે તેઓને આ સંબંધ મંજૂર નથી.
એટલે સ્વાભાવિક છે કે સામે તેનું કારણ પૂછે, કારણ પૂછતા મૂકેશભાઈએ જવાબમાં કહ્યું કે મારી દીકરા ની સગાઈ થયા પછી હું મારા વેવાઈ ના ઘરે અંદાજે ત્રણ વખત ગયો હતો. એક વખત લગભગ એકાદ મહિના પહેલાં ગયો હતો અને હમણાં પાંચ સાત દિવસ પહેલાં જ મારે કામ હોવાથી એક જ દિવસમાં બે વખત વેવાઈ ના ઘરે જવાનું થયું.
તેઓએ પોતાની વાત આગળ વધારતાં કહ્યું હું ત્રણ વખત ગયો તે ત્રણેય વખત માત્ર વેવાણ જ ઘરકામમાં વ્યસ્ત હતા, એક વખત પણ મેં મારા દિકરાની થનારી વહુ ને ઘરકામ કરતી ન જોઈ. પહેલાના વખતમાં તો મને સામાન્ય લાગ્યું પરંતુ જ્યારે હું પછી બે વખત ગયો ત્યારે પણ મેં આવું જોયું એટલે મને થોડું અજુગતું લાગ્યું..
પછી મેં ખૂબ જ ઊંડાણપૂર્વક વિચાર કરીને નક્કી કર્યું કે જે દીકરી પોતાની સગી માતા દરેક સમયે કામમાં વ્યસ્ત જોઈને પણ તેની મદદ કરવાનું ન વિચારે, વડીલો કરતાં નાની ઉંમરની અને જવાન થઈને પણ જો પોતે તેની માતાને ઘરકામમાં મદદ ન કરાવે એ કોઈ બીજાના ઘરે કોઈ બીજાની માતાને અથવા કોઈ અજાણ્યા પરિવાર વિશે શું કરવાની ? કે વિચારવાની?
મારે મારા દીકરા માટે એક વહુ અને મારા ઘર માટે ગ્રુહ લક્ષ્મી ની આવશ્યકતા છે, મારે કોઈ શો-પીસ નથી જોઈતો જેને સજાવીને રાખી શકાય…
એટલા માટે જ દરેક માતા-પિતાને આ વિચારવું જોઈએ અને દિકરીની નાની નાની બાબતો પણ ધ્યાનમાં લેવી જોઈએ કે દીકરી આપણને ભલે ગમે તેટલી વહાલી હોય પરંતુ તેને ઘરકામ શીખડાવવું પણ જોઈએ તેમજ તેની પાસે કરાવવું પણ જોઈએ.
સમયાંતરે જરૂર પડ્યે દીકરીને ખિજાવું પણ જોઈએ, જેનાથી તેને સાસરીમાં તકલીફ ન થાય.
સંકલિત:@Harshad joshi
Day: October 1, 2022
ખાસ વાંચજો.
જોકસ જ છે.
सलाह🖋️
🤣🤣🤣🤣🤣
जयंत बाबू सचिवालय से सेवानिवृत्त हुए हैं।
वह और उनकी पत्नी राँची के एक फ़लैट में रहते हैं।
उन्होंने दशहरा में शिमला मनाली जाने की योजना बनाई।
बाहर जाने से पहले जयंत बाबू ने सोचा कि अगर उनकी गैरमौजूदगी में कोई चोर घुस गया तो वो घर की सारी अलमारी और पेटी तोड़ कर
क्षतिग्रस्त कर देंगे क्योंकि कोई नकद नहीं मिलेगा।
इसलिए उन्होने घर को बर्बाद होने से बचाने के लिए 1000 रुपये टेबल पर रख दिए।
एक संवाद के साथ जिसमें लिखा था:
हे अजनबी, मेरे घर में प्रवेश करने के लिए आपने कड़ी मेहनत की इसके लिए मेरी हार्दिक बधाई।
लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है की हम शुरू से मध्यम वर्गीय परिवार हैं और हमारा परिवार पेंशन के थोड़े से पैसे से चलता है। इसलिए हमारे पास कोई अतिरिक्त नकदी नहीं है।
मुझे सच में बहुत शर्म आ रही है कि आपकी मेहनत और आपका कीमती समय बर्बाद हो रहा है।
इसलिए मैंने आपकी पैरों की धूल के सम्मान में यह थोड़े से पैसे मेज पर छोड़ दिए हैं।
कृपया इसे स्वीकार करें।
और मैं आपको आपके बिजनेस को बढ़ाने के कुछ तरीके बता रहा हूं।
आप कोशिश कर सकते हैं।
सफलता मिलेगी।
मेरे फ्लैट के सामने आठवीं मंजिल पर एक बहुत प्रभावशाली मंत्री रहता है।
नामी प्रॉपर्टी डीलर सातवें माले में रहता है।
सहकारी बैंक के अध्यक्ष छठे तल पर रहते हैं।
पांचवी मंजिल पर प्रमुख उद्योगपति।
चौथी मंजिल पर नामी महाराज जी हैं।
व तीसरी मंजिल पर एक भ्रष्ट राजनीतिक नेता हैं।
उनका घर गहनों और नकदी से भरा है।
मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं की आपकी व्यावसायिक सफलता उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगी और उनमें से कोई भी पुलिस को रिपोर्ट नहीं करेगा।
यात्रा के बाद जब जयंत बाबू और उनकी पत्नी वापस लौटे तो उन्हें टेबल पर एक बैग रखा मिला।
बैग में 10 लाख रुपए नकद और एक पत्र रखा देखकर वह हैरान रह गये।
पत्र पर लिखा था:
आपके निर्देश और शिक्षा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सर।🙏
मुझे इस बात का अफ़सोस है की मैं पहले क्यों आपके करीब नहीं आ पाया।
आपके निर्देशानुसार मैंने मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया।
मैंने इस छोटी सी राशि को धन्यवाद के रूप में छोड़ दिया है।
भविष्य में भी मैं आपके आशीर्वाद और मार्गदर्शन की कामना करता हूँ
भवदीय – चोर
😀😀😀😀😀
. *एक श्रेष्ठ सोच*
एक बुज़ुर्ग शिक्षिका भीषण गर्मियों के दिन में बस में चढ़ी, पैरों के दर्द से बेहाल थी, लेकिन बस में सीट न देख कर जैसे – तैसे खड़ी हो गई।
कुछ दूरी ही तय की थी बस ने, इतने में एक उम्रदराज औरत ने बड़े सम्मानपूर्वक आवाज़ दी, “आ जाइए मैडम जी, आप यहाँ बैठ जाएं” कहते हुए उसे अपनी सीट पर बैठा दिया। खुद वो गरीब सी औरत बस में खड़ी हो गई। मैडम ने दुआ दी, “बहुत-बहुत धन्यवाद, मेरी बुरी हालत थी सच में।”
उस गरीब महिला के चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान फैल गई।
कुछ देर बाद शिक्षिका के पास वाली सीट खाली हो गई। लेकिन महिला ने एक और महिला को, जो एक छोटे बच्चे के साथ यात्रा कर रही थी और मुश्किल से बच्चे को ले जाने में सक्षम थी, उस को सीट पर बिठा दिया।
अगले पड़ाव पर बच्चे के साथ महिला भी उतर गई, सीट फिर खाली हो गई, लेकिन नेकदिल महिला ने बैठने का लालच नहीं किया ।
बस में चढ़े एक कमजोर बूढ़े आदमी को बैठा दिया जो अभी – अभी बस में चढ़ा था।
सीट फिर से खाली हो गई। बस में अब गिनी – चुनी सवारियां ही रह गईं थीं। अब उस अध्यापिका ने महिला को अपने पास बिठाया और पूछा, “सीट कितनी बार खाली हुई है लेकिन आप लोगों को ही बैठाते रहे, खुद नहीं बैठे, क्या बात है?”
महिला ने कहा, “मैडम, मैं एक मजदूर हूं, मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं कुछ दान कर सकूं।” तो मैं क्या करती हूं कि कहीं रास्ते से पत्थर उठाकर एक तरफ कर देती हूं, कभी किसी जरूरतमंद को पानी पिला देती हूं, कभी बस में किसी के लिए सीट छोड़ देती हूं, फिर जब सामने वाला मुझे दुआएं देता है तो मैं अपनी गरीबी भूल जाती हूं । दिन भर की थकान दूर हो जाती है । और तो और, जब मैं दोपहर में रोटी खाने के लिए बैठती हूं ना, बाहर बेंच पर, तो ये पंछी – चिड़ियां पास आ के बैठ जाते हैं, रोटी डाल देती हूं छोटे-छोटे टुकड़े करके । जब वे खुशी से चिल्लाते हैं, तो उन भगवान के जीवों को देखकर मेरा पेट भर जाता है। पैसा धेला न सही, सोचती हूं दुआएं तो मिल ही जाती है ना मुफ्त में। फायदा ही है ना और हमने लेकर भी क्या जाना है यहां से ।
शिक्षिका अवाक रह गई, एक अनपढ़ सी दिखने वाली महिला इतना बड़ा पाठ जो पढ़ा गई थी उसे ।
अगर दुनिया के आधे लोग ऐसी सोच को अपना लें तो धरती स्वर्ग बन जाएगी।
राकेशगिरी रामदाट्टी
मंत्र क्यों सिद्ध नहीं होते
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माधवाचार्य गायत्री के घोर उपासक थे। वृंदावन मे उन्होंने तेरह वर्ष तक गायत्री के समस्त अनुष्ठान विधिपूर्वक किये। लेकिन उन्हे इससे न भौतिक, न आध्यायत्मिकता लाभ दिखा। वो निराश हो कर काशी गये। वहां उन्हें एक आवधूत मिला जिसने उन्हें एक वर्ष तक काल भैरव की उपासना करने को कहा।
उन्होंने एक वर्ष से अधिक ही कालभैरव की आराधना की। एक दिन उन्होंने आवाज सुनी “मै प्रस्ंन्न हूं वरदान मांगो”। उन्हें लगा कि ये उनका भ्रम है। क्योंकि सिर्फ आवाज सुनायी दे रही थी कोइ दिखाई नहीं दे रहा था।
उन्होंने सुना अनसुना कर दिया। लेकिन वही आवाज फिर से उन्हें तीन बार सुनायी दी। तब माधवाचार्य जी ने कहा
आप सामने आ कर अपना परिचय दे मै अभी काल भैरव की उपासना मे व्यस्त हूं।
सामने से आवाज आयी “तूं जिसकी उपासना कर रहा है वो मै ही काल भैरव हूँ”।
माधवाचार्य जी ने कहा “तो फिर सामने क्यो नहीं आते?”
काल भैरव जी ने कहा “माधवा तुमने तेरह साल तक जिन गायत्री मंत्रों का अखंड जाप किया है। उसका तेज तुम्हारे सर्वत्र चारो ओर व्याप्त है। मनुष्य रूप मै उसे मै सहन नहीं कर सकता, इसीलिए सामने नहीं आ सकता हूँ।”
माध्वाचार्य ने कहा “जब आप उस तेज का सामना नहीं कर सकते है तब आप मेरे किसी काम के नहीं। आप वापस जा सकते है।”
काल भैरव जी ने कहा “लेकिन मै तुम्हारा समाधान किये बिना नहीं जा सकता हूं।”
“तब फिर ये बताइये कि मेने पिछले तेरह वर्षों से किया गायत्री अनुष्ठान मुझे क्यों नहीं फला?”
काल भैरव ने कहा “वो अनुष्ठान निष्फल नहीं हुए है।
उससे तुम्हारे जन्म जन्मांतरो के पाप नष्ट हुए है।”
तो अब मै क्या करू “फिर से वृंदावन जा कर ओर एक वर्ष गायत्री का अनुष्ठान कर। इस से तेरे इस जन्म के भी पाप नष्ट हो जायेंगे फिर गायत्री मां प्रसन्न होगी।”
काल भैरव ने कहा “*आप या गायत्री कहां होते है हम यहीं रहते है पर अलग रुपों मे ये मंत्र जप जाप और कर्म कांड तुम्हें हमे देखने की शक्ति, सिध्दि देते है जिन्हें तुम साक्षात्कार कहते हो।”*
माधवाचार्य वृंदावन लौट आये। अनुष्ठान शुरु किया। एक दिन बृह्म मूहुर्त मे अनुष्ठान मे बैठने ही वाले थे कि उन्होंने आवाज सुनी “मै आ गयी हूँ माधव, वरदान मांगो”
“माँ” माधवाचार्य फूटफूटकर रोने लगे।
“माँ, पहले बहुत लालसा थी कि वरदान मांगू लेकिन
अब् कुछ मांगने की इच्छा रही नही, माँ, आप जो मिल गयी हो”
“माधव तुम्हें मांगना तो पडेगा ही।”
“माँ ये देह, शरीर भले ही नष्ट हो जाये लेकिन इस शरीर से की गयी भक्ति अमर रहे। इस भक्ति की आप सदैव साक्षी रहो। यही वरदान दो।”
“तथास्तू”
आगे तीन वर्षों मै माधवाचार्य जी नै माधवनियम नाम का आलौकिक ग्रंथ लिखा।
*याद रखिये आपके द्वारा शुरू किये गये मंत्र जाप पहले दिन से ही काम करना शुरू कर देतै है। लेकिन सबसे पहले प्रारब्ध के पापों को नष्ट करते है। देवताओं की शक्ति इन्हीं पापों को नष्ट करने मे खर्च हो जाती है और आप अपने जप, जाप या साधना को निष्फल जान हताश हो जाते हो। जैसे ही ये पाप नष्ट होते है आपको एक आलौकिक तेज, एक आध्यायात्मिक शक्ति और सिध्दि प्राप्त होने लगती है। अतः निराश न हो कर अनुष्ठान चालू रखे।*
संकलित पौराणिक कथाएं