Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

सबसे बड़ी समस्या


सबसे बड़ी समस्या*

बहुत समय पहले की बात है एक महा ज्ञानी पंडित हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहते थे । लोगों के बीच रह कर वह थक चुके थे और अब ईश्वर भक्ति करते हुए एक सादा जीवन व्यतीत करना चाहते थे . लेकिन उनकी प्रसिद्धि इतनी थी कि लोग दुर्गम पहाड़ियों , सकरे रास्तों , नदी-झरनो को पार कर के भी उससे मिलना चाहते थे , उनका मानना था कि यह विद्वान उनकी हर समस्या का समाधान कर सकता है ।

इस बार भी कुछ लोग ढूंढते हुए उसकी कुटिया तक आ पहुंचे . पंडित जी ने उन्हें इंतज़ार करने के लिए कहा .

तीन दिन बीत गए , अब और भी कई लोग वहां पहुँच गए , जब लोगों के लिए जगह कम पड़ने लगी तब पंडित जी बोले ,” आज मैं आप सभी के प्रश्नो का उत्तर दूंगा , पर आपको वचन देना होगा कि यहाँ से जाने के बाद आप किसी और से इस स्थान के बारे में नहीं बताएँगे , ताकि आज के बाद मैं एकांत में रह कर अपनी साधना कर सकूँ …..चलिए अपनी -अपनी समस्याएं बताइये “

यह सुनते ही किसी ने अपनी परेशानी बतानी शुरू की , लेकिन वह अभी कुछ शब्द ही बोल पाया था कि बीच में किसी और ने अपनी बात कहनी शुरू कर दी . सभी जानते थे कि आज के बाद उन्हें कभी पंडित जी से बात करने का मौका नहीं मिलेगा ; इसलिए वे सब जल्दी से जल्दी अपनी बात रखना चाहते थे . कुछ ही देर में वहां का दृश्य मछली -बाज़ार जैसा हो गया और अंततः पंडित जी को चीख कर बोलना पड़ा ,” कृपया शांत हो जाइये ! अपनी -अपनी समस्या एक पर्चे पे लिखकर मुझे दीजिये . “

सभी ने अपनी -अपनी समस्याएं लिखकर आगे बढ़ा दी . पंडित जी ने सारे पर्चे लिए और उन्हें एक टोकरी में डाल कर मिला दिया और बोले , ” इस टोकरी को एक-दूसरे को पास कीजिये , हर व्यक्ति एक पर्ची उठाएगा और उसे पढ़ेगा . उसके बाद उसे निर्णय लेना होगा कि क्या वो अपनी समस्या को इस समस्या से बदलना चाहता है ?”

हर व्यक्ति एक पर्चा उठाता , उसे पढता और सहम सा जाता . एक -एक कर के सभी ने पर्चियां देख ली पर कोई भी अपनी समस्या के बदले किसी और की समस्या लेने को तैयार नहीं हुआ; सबका यही सोचना था कि उनकी अपनी समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो बाकी लोगों की समस्या जितनी गंभीर नहीं है . दो घंटे बाद सभी अपनी-अपनी पर्ची हाथ में लिए लौटने लगे , वे खुश थे कि उनकी समस्या उतनी बड़ी भी नहीं है जितना कि वे सोचते थे ।

https://nationalthoughts.com/

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

हार में जीत


हार में जीत

बहुत समय पहले की बात है। भारत के सुदूर दक्षिण में एक छोटा सा राज्य स्थित था। राजा द्वारा राज्य का संचालन शांतिपूर्ण रीति से किया जा रहा था। एक दिन अचानक उसे ख़बर मिली कि एक बड़े राज्य की सेना की एक बड़ी टुकड़ी उसके राज्य पर आक्रमण के लिए आगे बढ़ रही है। वह घबरा गया, क्योंकि उसके पास उतना सैन्य बल नहीं था, जो उतनी बड़ी सेना का सामना कर सके।
उसने मंत्रणा हेतु सेनापति को बुलाया। सेनापति ने पहले ही हाथ खड़े कर दिए। वह बोला: महाराज! इस युद्ध में हमारी हार निश्चित है। इतनी बड़ी सेना के सामने हमारी सेना टिक नहीं पायेगी। इसलिए इस युद्ध को लड़ने का कोई औचित्य नहीं है। हमें अपने सैनिकों के प्राण गंवाने के बजाय पहले ही हार स्वीकार कर लेनी चाहिए।
सेनापति की बात सुनकर राजा बहुत निराश हुआ। उसकी चिंता और बढ़ गई। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे और क्या न करे? अपनी चिंता से छुटकारा पाने के लिए वह राज्य के संत के पास गया। संत को उसने पूरी स्थिति से अवगत कराया और बताया कि सेनापति ने तो युद्ध के पहले ही हाथ खींच लिए हैं। ये सुनकर संत बोले: राजन! ऐसे सेनापति को तो तुरंत उसके पद से हटाकर कारागृह में डाल देना चाहिए। ऐसा सेनापति जो बिना लड़े हार मान रहा है, उसे सेना का नेतृत्व करने का कोई अधिकार नहीं है।
किंतु गुरुवर, यदि मैंने उसे कारागृह में डाल दिया, तो सेना का नेतृत्व कौन करेगा। राजा चिंतित होकर बोला!
राजन! तुम्हारी सेना का नेतृत्व मैं करूंगा। संत बोले.
राजा सोच में पड़ गया कि संत युद्ध कैसे लड़ेंगे? उन्होंने तो कभी कोई युद्ध नहीं किया है। किंतु कोई विकल्प न देख उसने संत की बात मान ली और उन्हें अपनी सेना का सेनापति बना दिया।
सेनापति बनने के बाद संत ने सेना की कमान संभाल ली और सेना के साथ युद्ध के लिए कूच कर दिया। रास्ते में एक मंदिर पड़ा। मंदिर के सामने संत ने सेना को रोका और सैनिकों से बोले: यहाँ कुछ देर रुको! मैं मंदिर में जाकर ईश्वर से पूछकर आता हूँ कि हमें युद्ध में विजय प्राप्त होगी या नहीं?
ये सुन सैनिकों ने चकित होकर पूछा: मंदिर में तो भगवान की पत्थर की मूर्ति है. वह कैसे बोलेगी?
इस पर सेना की कमान संभाल रहे संत ने कहा: मैंने अपनी सारी उम्र दैवीय शक्तियों से वार्तालाप किया है। इसलिए मैं ईश्वर से बात कर लूंगा? तुम लो यहीं रूककर मेरी प्रतीक्षा करो।
यह कहकर संत मंदिर में चले गए. कुछ देर बार जब वे वापस लौटे तो सैनिकों ने पूछा: ईश्वर ने क्या कहा?
संत ने उत्तर दिया: ईश्वर ने कहा कि यदि रात में इस मंदिर में प्रकाश दिखाई पड़े, तो हमारी विजय निश्चित है!
पूरी सेना रात होने की प्रतीक्षा करने लगी। रात हुई तो मंदिर में उन्हें प्रकाश दिखाई पड़ा। ये देख सेना ख़ुशी से झूम उठी। उन्हें विश्वास हो गया कि अब वे युद्ध जीत लेंगे। उनका मनोबल बढ़ गया और वे जीत के मंसूबे से युद्ध के मैदान में पहुँचे।
युद्ध २१ दिन चला। सैनिक जी-जान से लड़े। फलस्वरूप उनकी विजय हुई। विजयी सेना के वापस आते समय फिर वही मंदिर पड़ा। तब सैनिकों ने संत से कहा कि ईश्वर के कारण हमारी विजय हुई है। आप जाकर उन्हें धन्यवाद दे आयें।
संत ने उतर दिया: इसकी कोई आवश्यकता नहीं है!
यह सुन सैनिक कहने लगे: आप कितने कृतघ्न हैं. जिस ईश्वर ने मंदिर में रौशनी कर हमें जीत दिलाई, आप उनका धन्यवाद भी नहीं कर रहे।
तब संत ने उन्हें बताया: उस रात मंदिर से आने वाली रौशनी एक दिए की थी और वह दिया मैं वहाँ जलाकर आया था। दिन में तो वो रौशनी दिखाई नहीं पड़ी. किंतु रात होते ही दिखाई देने लगी। दिए की रौशनी देखकर तुम सबने मेरी बात पर विश्वास कर लिया कि युद्ध में विजय हमारी होगी. इस तरह तुम सबका मनोबल बढ़ गया और तुम जीत के विश्वास के साथ युद्ध के मैदान में गए और असंभव लगने वाली विजय तुमने प्राप्त की।

GYLT- प्रेरक कहानियां

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

बहुत समय पहले की बात है , एक वृद्ध सन्यासी हिमालय की पहाड़ियों


बहुत समय पहले की बात है , एक वृद्ध सन्यासी हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहता था. वह बड़ा ज्ञानी था और उसकी बुद्धिमत्ता की ख्याति दूर -दूर तक फैली थी. एक दिन एक औरत उसके पास पहुंची और अपना दुखड़ा रोने लगी , ” बाबा, मेरा पति मुझसे बहुत प्रेम करता था , लेकिन वह जबसे युद्ध से लौटा है ठीक से बात तक नहीं करता .” ” युद्ध लोगों के साथ ऐसा ही करता है.” , सन्यासी बोला. ” लोग कहते हैं कि आपकी दी हुई जड़ी-बूटी इंसान में फिर से प्रेम उत्पन्न कर सकती है , कृपया आप मुझे वो जड़ी-बूटी दे दें.” , महिला ने विनती की. सन्यासी ने कुछ सोचा और फिर बोला ,” देवी मैं तुम्हे वह जड़ी-बूटी ज़रूर दे देता लेकिन उसे बनाने के लिए एक ऐसी चीज चाहिए जो मेरे पास नहीं है .” ” आपको क्या चाहिए मुझे बताइए मैं लेकर आउंगी .”, महिला बोली. ” मुझे बाघ की मूंछ का एक बाल चाहिए .”, सन्यासी बोला. अगले ही दिन महिला बाघ की तलाश में जंगल में निकल पड़ी , बहुत खोजने के बाद उसे नदी के किनारे एक बाघ दिखा , बाघ उसे देखते ही दहाड़ा , महिला सहम गयी और तेजी से वापस चली गयी. अगले कुछ दिनों तक यही हुआ , महिला हिम्मत कर के उस बाघ के पास पहुँचती और डर कर वापस चली जाती. महीना बीतते-बीतते बाघ को महिला की मौजूदगी की आदत पड़ गयी, और अब वह उसे देख कर सामान्य ही रहता. अब तो महिला बाघ के लिए मांस भी लाने लगी , और बाघ बड़े चाव से उसे खाता. उनकी दोस्ती बढ़ने लगी और अब महिला बाघ को थपथपाने भी लगी. और देखते देखते एक दिन वो भी आ गया जब उसने हिम्मत दिखाते हुए बाघ की मूंछ का एक बाल भी निकाल लिया. फिर क्या था , वह बिना देरी किये सन्यासी के पास पहुंची , और बोली ” मैं बाल ले आई बाबा .” “बहुत अच्छे .” और ऐसा कहते हुए सन्यासी ने बाल को जलती हुई आग में फ़ेंक दिया ” अरे ये क्या बाबा , आप नहीं जानते इस बाल को लाने के लिए मैंने कितने प्रयत्न किये और आपने इसे जला दिया ……अब मेरी जड़ी-बूटी कैसे बनेगी ?” महिला घबराते हुए बोली. ” अब तुम्हे किसी जड़ी-बूटी की ज़रुरत नहीं है .” सन्यासी बोला . ” जरा सोचो , तुमने बाघ को किस तरह अपने वश में किया….जब एक हिंसक पशु को धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो क्या एक इंसान को नहीं ? जाओ जिस तरह तुमने बाघ को अपना मित्र बना लिया उसी तरह अपने पति के अन्दर प्रेम भाव जागृत करो.” महिला सन्यासी की बात समझ गयी , अब उसे उसकी जड़ी-बूटी मिल चुकी थी.

अजित कुमार पाण्डेय एकौनी वालें

Read more at: https://www.mymandir.com/p/czrpKb

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

નવરાત્રી આરતી


*આરતી ગાઈએ છીએ પણ તેનો અર્થ જાણીએ છીએ ?*🤔

નવરાત્રિ કે અન્ય શુભપ્રસંગે જ્યાં માતાજીની અર્ચના પૂજા કરવામાં આવે છે, ત્યાં મા અંબેની આરતી *‘જય આદ્યાશક્તિ મા…’*નું ગાન અવશ્ય કરવામાં આવે છે. મોટાભાગના લોકો, અરે … નાના નાના ભૂલકાં પણ આ આરતીનું ગાન કરે છે. નાના ભૂલકાંઓ પણ વડીલોનું જોઈને આરતી કાલીઘેલી ભાષામાં ગાય છે. મારી કોલેજમાં અને પડોશમાં આ અંગે પૂછતા માલૂમ પડયું કે, આરતીમાં વપરાયેલ શબ્દો કે શબ્દસમૂહોના અર્થની બધાં લોકોને જાણકારી નથી. આ બાબતે જ આ લેખ લખવાની પ્રેરણા મળી કે, સર્વત્ર ગુજરાત, ભારત અને વિદેશમાં ગવાતી આ આરતીનું રસદર્શન નહીં પણ અર્થઘટન ભાવિકો સુધી પહોંચાડવું. જેથી હવે પછી તેઓ જ્યારે આરતીનું ગાન કરશે ત્યારે તેમનામાં શ્રદ્ધા, ઉત્સાહ અને આનંદમાં વધારો થશે.

માતાજીની આ આરતી *‘જય આદ્યાશક્તિ…’ ની રચના આજથી ૧૫૦ વર્ષ પૂર્વે સુરતના નાગર ફળિયામાં રહેતા શિવાનંદ પંડયાએ કરેલી છે.* તેઓ લગભગ ૮૫ વર્ષ જીવ્યા હતાં અને ઘણી આરતીની રચના કરી હતી. આ આરતીમાં સમયાંતરે ફેરફાર થતો જોવા મળે છે. આ ફેરફાર શબ્દો અને ઢાળમાં જોવા મળે છે, અર્થ એનો એ જ જોવા મળે છે. આમ છતાં પૂનમ પછીની પંક્તિઓ પછીથી ઉમેરાઈ છે.

🚩*પ્રથમ પંક્તિ*

*‘જ્ય આદ્યાશક્તિ મા જય આદ્યાશક્તિ, અખંડ બ્રહ્માંડ દિપાવ્યા, પડવે પ્રગટ થયાં’*
એટલે કે અખંડ બ્રહ્માંડ જેના દિવ્ય તેજથી પ્રકાશિત છે અને જેઓ નોરતાંની સુદ એકમે પ્રગટ થયાં છે. એવા મા શક્તિ અંબાનો જય હો.

🚩*બીજી પંક્તિ*

*‘દ્વિતીયા બેય સ્વરૂપ શિવશક્તિ જાણું, બ્રહ્મા ગણપતિ ગાયે, હર ગાયે હર મા’*
બે સ્વરૂપ એટલે પુરૂષ અને પ્રકૃતિ, શિવ અને શક્તિ બંને તારાં જ સ્વરૂપો છે. હે મા, બ્રહ્મા,ગણપતિ અને શિવ તારો મહિમા ગાય છે.

🚩 *ત્રીજી પંક્તિ*

*‘તૃતીયા ત્રણ સ્વરૂપ ત્રિભુવનમાં બેઠાં, ત્રયા થકી તરવેણી, તું તરવેણીમાંં`*
ત્રણ સ્વરૂપ એટલે મહાસરસ્વતી, મહાલક્ષ્મી અને મહાકાલી. આપ ત્રણ ભુવન પાતાળ, આકાશ અને પૃથ્વી પર બિરાજમાન છો. ગંગા, યમુના તથા સરસ્વતી અને જ્ઞાન, ભક્તિ અને મોક્ષનો ત્રિવેણી સંગમ છો.

🚩*ચોથી પંક્તિ*

*‘ચોથે ચતુરા મહાલક્ષ્મી મા સચરાચર વ્યાપ્યાં, ચારભૂજા ચહું દિશા, પ્રગટયાં દક્ષિણમાં’*
એટલે કે મહાલક્ષ્મીને સૌથી વધારે ચતુર ગણ્યા છે. આ મહાલક્ષ્મી વિવિધ સ્વરૂપે સચરાચરમાં વ્યાપેલાં છે. તેમની ચારભૂજા ચાર દિશા સમાન છે અને તેમનો ભક્તિપંથ દક્ષિણમાં પ્રગટ થયેલો છે.

🚩*પાંચમી પંક્તિ*

*‘પંચમી પંચ ઋષિ પંચમી ગુણ પદમા, પંચ સહસ્ત્ર ત્યાં સોહિયે, પંચે તત્ત્વોમાં’*
અહીં પ્રથમ પંક્તિમાં પ્રાસ બેસાડવા રચેયતાએ કેટલીક છૂટ લીધી છે. હકીકતમાં પંચ ઋષિની જગ્યાએ સર્પ્તિષ જોઈએ અને ગુણ પાંચ નહીં ત્રણ છે. સત્વ, રજસ અને તમસ. હે મા, પાંચ તત્ત્વો પૃથ્વી, જળ, આકાશ, પ્રકાશ અને વાયુમાં આપ છો.

🚩*છઠ્ઠી પંક્તિ*

*‘ષષ્ઠી તું નારાયણી, મહિષાસુર માર્યો, નરનારીનાં રૂપે, વ્યાપ્યાં સઘળે મા’*
મહિષાસુર રાક્ષસને મારનારી મા તું નર-નારીના સ્વરૂપે સમગ્ર વિશ્વમાં વ્યાપેલી છે.

🚩*સાતમી પંક્તિ*

*‘સપ્તમી સપ્ત પાતાળ સાવિત્રી સંધ્યા, ગૌ, ગંગા, ગાયત્રી, ગૌરી ગીતા મા’*
સાતે પાતાળમાં આપ બિરાજમાન છો, પ્રાતઃ સંધ્યા (સાવિત્રી) અને સાયંસંધ્યા આપ છો. પાંચ માતાના સ્વરૂપો ગાય, ગંગા, ગાયત્રી, ઉમિયા અને ગીતા આપ જ છો.

🚩*આઠમી પંક્તિ*

*‘અષ્ટમી અષ્ટ ભુજા આઈ આનંદા, સુનિવર મુનિવર જન્મયા, દેવ દૈત્યો મા’*
(દૈત્યોને હણનારી મહાકાલી આઠ ભુજાવાળી ગણાવાય છે.) હે મહાકાલી તારી જ કુખે જ દૈત્યો, શુભ-અશુભ તત્ત્વો, શ્રવણ ભક્તિ કરનારા સુનિવર અને મનન ભક્તિ કરનારા મુનિવરો પ્રગટયાં છે.

🚩*નવમી પંક્તિ*

*‘નવમી નવ કુલ નાગ સેવે નવદુર્ગા, નવરાત્રિનાં પૂજન, શિવરાત્રિના અર્ચન, કીધાં હરબ્રહ્મા’*
નવેનવ કુળના નાગ આપને ભજે છે અને નવદુર્ગાનું પૂજન કરે છે. શિવ અને બ્રહ્મા પણ આપની સ્તુતિ કરે છે. નવદુર્ગા એટલે અનુક્રમે શૈલપુત્રી, બ્રહ્મચારિણી, ચંદ્રઘટા, કુષ્માંડા, સ્કંદમાતા, કાત્યાયની, કાલરાત્રિ, મહાગૌરી અને સિદ્ધિ.

🚩*દસમી પંક્તિ*

*‘દસમી દસ અવતાર વિજ્યાદસમી’, રામે રામ રમાડયાં, રાવણ રોળ્યો મા’*
દશેરાના દિવસે રામે રાવણનો વધ કરેલો એટલે જ એને વિજ્યાદશમી કહે છે. હે મા, આપની કૃપાથી જ રામે રાવણનો ધ્વંશ કરેલો.

🚩*અગીયારમી પંક્તિ*

*‘એકાદશી અગિયારસ કાત્યાયની કામા, કામદુર્ગા, કાલિકા, શ્યામને રામા’*
નોરતાની અગિયારમી રાતે કાત્યાયની માનો મહિમા ગવાય છે. (શ્રીમદ્ ભાગવતમાં એવો ઉલ્લેખ છે કે , શ્રીકૃષ્ણને વર સ્વરૂપે મેળવવા ગોપીઓએ યમુના તટે કાત્યાયની માનું વ્રત કરેલું. કાત્યાયની મા મનગમતો ભરથાર મેળવી આપે છે.) શ્યામા એટલે રાધા અને રામા એટલે સીતા બંને આપ જ છો.

🚩*બારમી પંક્તિ*

*‘બારસે બાળારૂપ, બહુચરી અંબા મા, બટુક ભૈરવ સોહિયે, કાળ ભૈરવ સોહિયે, તારાં છે તુજ મા’* બહુચર મા બારસના દિવસે બાળસ્વરૂપે પ્રગટેલા એમ મનાય છે. બટુક ભૈરવ (ક્ષેત્રપાલ) અને કાળ ભૈરવ (સ્મશાન) એ બધાં તારા સેવકો છે. જે તમારી અડખે-પડખે શોભે છે.

🚩*તેરમી પંક્તિ*

*‘તેરસે તુળજારૂપ તું તારિણી માતા, બ્રહ્મા, વિષ્ણુ, સદાશિવ, ગુણતારાં ગાતાં’*
હે મા, તારું તેરમું સ્વરૂપ તુળજા ભવાનીનું છે. (તુળજા ભવાની મહારાષ્ટ્રમાં કોલ્હાપુરમાં બિરાજેલ છે જે છત્રપતિ શિવાજીના કુળદેવી હતાં) જે સર્વજનોને તારે છે, એવી મા તારિણીના ગુણગાન બ્રહ્મા, વિષ્ણુ અને શિવ ગાય છે.

🚩*ચોદમી પંક્તિ*

*‘ચૌદસે ચૌદારૂપ ચંડી ચામુંડા’ ભાવભક્તિ કંઈ આપો, ચતુરાઈ કંઈ આપો, સિંહવાહિની માતા’*
શક્તિનું ચૌદમું સ્વરૂપ મા ચામુંડાનું છે. એ ચૌદ ભુવન અને ચૌદ વિદ્યાસ્વરૂપોમાં બિરાજમાન છે. એવા સિંહને વાહન તરીકે ધારણ કરનાર મા, અમને થોડાં ભક્તિભાવ અને ચતુરાઈ આપો.

🚩*પંદરમી પંક્તિ*

*’પૂનમે કુંભ ભર્યો, સાંભળજો કરૂણા મા, વશિષ્ઠ દેવે વખાણ્યાં, માર્કંડ દેવે વખાણ્યાં, ગાયે શુભ કવિતા.’* પૂનમ એટલે પૂર્ણત. ચંદ્ર પૂરેપૂરો ખીલેલો હોય ત્યારે અમારી વિનંતી અંતરમાં કરૂણા ધારીને સાંભળજો. વશિષ્ઠ અને માર્કંડ ઋષિએ અનેક સ્તવનો દ્વારા આપનો મહિમા ગાયો છે.

🚩*સોળમી પંક્તિ*

*‘ત્રંબાવટી નગરી આઈ, રૂપાવટી નગરી, સોળસહસ્ત્ર ત્યાં સોહિયે, ક્ષમા કરો ગૌરી, મા દયા કરો ગૌરી’* અહીં નગરીના નામ તો પ્રતીક છે. હે મા, તમે સર્વત્ર વ્યાપેલાં છો. સોળ હજાર ગોપી સ્વરૂપ પણ આપનાં છે. પૂજા ભક્તિમાં અમારી કોઈ ભૂલચૂક થઈ હોય તો અમને માફ કરજો.

🚩*અંતિમ પંક્તિ*

*‘શિવશક્તિની આરતી જે કોઈ ગાશે, ભણે શિવાનંદ સ્વામી, સુખસંપત થાશે, હર કૈલાસ જાશે, મા અંબા દુઃખ હરશે’*
આ આરતી જે કોઈ પ્રેમ-ભાવથી ગાશે અને સુખ અને સંપત્તિ પ્રાપ્ત થશે, સર્વનું સુખ દુઃખ હરશે’ આ આરતી જે કોઈ પ્રેમ-ભાવથી ગાશે એને સુખ અને સંપત્તિ પ્રાપ્ત થશે. સ્વર્ગનું સુખ મળશે. શિવપાર્વતિના ચરણમાં-કૈલાસમાં સ્થાન મળશે એવું આરતીના રચયિતા શિવાનંદ સ્વામી કહે છે.

*💐આશાપુરા માતા કી જય. 🌹*

Posted in ૧૦૦૦ જીવન પ્રેરક વાતો

ક્ષણ બે ક્ષણ નું જીવન….


ક્ષણ બે ક્ષણ નું જીવન….

 રાજસ્થાનનો એક રાજા શિકાર કરવા જંગલમાં ગયો હતો. ત્યાં તેણે પગથિયાં પર પાણી પીધું. પાણી પીતી વખતે તેની નજર નજીકમાં પડેલી એક ઈંટ પર પડી અને તેના પર લખેલું હતું – ‘અમે અહીં બે કલાક જીવિત રહ્યા’.

 રાજા ઈંટ લઈને મહેલમાં પાછો આવ્યો અને પંડિતોને એ ઈંટ પર લખેલી લીટીનો અર્થ પૂછ્યો. કોઈ કહી શક્યું નહીં.

સંજોગવશાત એક ભ્રમણ કરતા સંત રાજ્યમાં પહોંચ્યા અને આખી વાત જાણીને તેણે રાજાને કહ્યું કે આ વાક્ય તે ઈંટ પર તેના દ્વારા લખવામાં આવ્યું છે.

તે જંગલમાં પગથિયાં પર એક બીજા સંતને મળ્યો હતો અને બે કલાકનો સત્સંગ થયો, ભગવાનની ચર્ચા થઈ. સાથે જ તેણે ત્યાં પડેલી ઈંટ પર લખ્યું હતું કે અમે અહીં બે કલાક જીવિત રહ્યા છીએ. કારણ બાકીનું ભગવાનના સત્સંગ વગરનું જીવન મૃત જ છે.

વાસ્તવમાં જીવનનો સાર્થકતા સત્સંગમાં રહેલી છે અને સત્સંગ પ્રયત્નો કે નસીબથી નહીં પણ આપણી પ્રબળ ઈચ્છા અને ભગવાનની કૃપાથી જ પ્રાપ્ત થાય છે.

विद्या कर्म च शौचं च ज्ञानं च बहुविस्तरम्।
अर्थार्थमनुसार्यन्ते सिद्धार्थष्च विमुच्यते।।

પરમાત્માની પ્રાપ્તિ માટે જ વિદ્યા, કર્મ, પવિત્રતા તથા વિસ્તૃત જ્ઞાન નો આશ્રય ગ્રહણ કરવામાં આવે છે. જ્યારે કાર્ય ની સિદ્ધિ એટલે કે પરમાત્માની પ્રાપ્તિ થાય છે, ત્યારે મનુષ્ય મુક્ત થાય છે.

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

सर्मपण और अहंकार


सर्मपण और अहंकार

पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर लटक रहा नारियल रोज नीचे नदी मेँ पड़े पत्थर पर हंसता और कहता।

तुम्हारी तकदीर मे बस एक जगह पड़े रह कर, नदी की धाराओँ के प्रवाह को सहन करना ही लिखा है, देखना एक दिन यूं ही पड़े पड़े घिस जाओगे।

मुझे देखो कैसी शान से उपर बैठा हूँ..? पत्थर रोज उसकी अहंकार भरी बातोँ को अनसुना कर देता।

समय बीता एक दिन वही पत्थर घिस घिस कर गोल हो गया और विष्णु प्रतीक शालिग्राम के रूप मेँ जाकर एक मन्दिर मेँ प्रतिष्ठित हो गया।

एक दिन वही नारियल उन शालिग्राम जी की पूजन सामग्री के रूप मेँ मन्दिर मेँ लाया गया।

शालिग्राम ने नारियल को पहचानते हुए कहा “भाई” देखो घिस घिस कर परिष्कृत होने वाले ही प्रभु के प्रताप से इस स्थिति को पहुँचते है।

सबके आदर का पात्र भी बनते है, जबकि अहंकार के मतवाले अपने ही दंभ के डसने से नीचे आ गिरते हैँ।

तुम जो कल आसमान मे थे, आज से मेरे आगे टूट कर, कल से सड़ने भी लगोगे पर मेरा अस्तित्व अब कायम रहेगा।

*भगवान की द्रष्टि मेँ मूल्य.. समर्पण का है – अहंकार का नहीं।*

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

देवराज इंद्र और धर्मात्मा तोते की कथा


देवराज इंद्र और धर्मात्मा तोते की कथा

देवराज इंद्र और धर्मात्मा तोते की यह कथा महाभारत से है। कहानी कहती है, अगर किसी के साथ ने अच्छा वक्त दिखाया है तो बुरे वक्त में उसका साथ छोड़ देना ठीक नहीं। एक शिकारी ने शिकार पर तीर चलाया। तीर पर सबसे खतरनाक जहर लगा हुआ था। पर निशाना चूक गया। तीर हिरण की जगह एक फले-फूले पेड़ में जा लगा। पेड़ में जहर फैला। वह सूखने लगा। उस पर रहने वाले सभी पक्षी एक-एक कर उसे छोड़ गए। पेड़ के कोटर में एक धर्मात्मा तोता बहुत बरसों से रहा करता था। तोता पेड़ छोड़ कर नहीं गया, बल्कि अब तो वह ज्यादातर समय पेड़ पर ही रहता। दाना-पानी न मिलने से तोता भी सूख कर कांटा हुआ जा रहा था। बात देवराज इंद्र तक पहुंची। मरते वृक्ष के लिए अपने प्राण दे रहे तोते को देखने के लिए इंद्र स्वयं वहां आए।

धर्मात्मा तोते ने उन्हें पहली नजर में ही पहचान लिया। इंद्र ने कहा, ‘देखो भाई इस पेड़ पर न पत्ते हैं, न फूल, न फल। अब इसके दोबारा हरे होने की कौन कहे, बचने की भी कोई उम्मीद नहीं है। जंगल में कई ऐसे पेड़ हैं, जिनके बड़े-बड़े कोटर पत्तों से ढके हैं। पेड़ फल-फूल से भी लदे हैं। वहां से सरोवर भी पास है। तुम इस पेड़ पर क्या कर रहे हो, वहां क्यों नहीं चले जाते?’ तोते ने जवाब दिया, ‘देवराज, मैं इसी पर जन्मा, इसी पर बढ़ा, इसके मीठे फल खाए। इसने मुझे दुश्मनों से कई बार बचाया। इसके साथ मैंने सुख भोगे हैं। आज इस पर बुरा वक्त आया तो मैं अपने सुख के लिए इसे त्याग दूं? जिसके साथ सुख भोगे, दुख भी उसके साथ भोगूंगा, मुझे इसमें आनंद है। आप देवता होकर भी मुझे ऐसी बुरी सलाह क्यों दे रहे हैं?’ यह कह कर तोते ने तो जैसे इंद्र की बोलती ही बंद कर दी। तोते की दो-टूक सुन कर इंद्र प्रसन्न हुए, बोल, ‘मैं तुमसे प्रसन्न हूं, कोई वर मांग लो।’ तोता बोला, ‘मेरे इस प्यारे पेड़ को पहले की तरह ही हरा-भरा कर दीजिए।’ देवराज ने पेड़ को न सिर्फ अमृत से सींच दिया, बल्कि उस पर अमृत बरसाया भी। पेड़ में नई कोंपलें फूटीं। वह पहले की तरह हरा हो गया, उसमें खूब फल भी लग गए। तोता उस पर बहुत दिनों तक रहा, मरने के बाद देवलोक को चला गया। युधिष्ठिर को यह कथा सुना कर भीष्म बोले, ‘अपने आश्रयदाता के दुख को जो अपना दुख समझता है, उसके कष्ट मिटाने स्वयं ईश्वर आते हैं। बुरे वक्त में व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाता है। जो उस समय उसका साथ देता है, उसके लिए वह अपने प्राणों की बाजी लगा देता है। किसी के सुख के साथी बनो न बनो, दुख के साथी जरूर बनो। यही धर्मनीति है और कूटनीति भी।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक महात्माजी रात्रि के समय में


“एक महात्माजी रात्रि के समय में ‘श्रीराम’ नाम का जाप करते हुए अपनी मस्ती में चले जा रहे थे। जाप करते हुए वे एक गहन जंगल से गुजर रहे थे। विरक्त होने के कारण वे महात्मा बार-बार देशाटन करते रहते थे। वे किसी एक स्थान में अधिक समय नहीं रहते थे। वे ईश्वर नाम प्रेमी थे। इसलिये दिन-रात उनके मुख से राम नाम जप चलता रहता था। स्वयं राम नाम का जाप करते तथा औरों को भी उसी मार्ग पर चलाते थे।महात्माजी गहन जंगल में मार्ग भूल गये थे पर अपनी मस्ती में चले जा रहे थे कि जहाँ राम ले चले वहाँ। दूर अँधेरे के बीच में बहुत सी दीपमालाएँ प्रकाशित थीं। महात्माजी उसी दिशा की ओर चलने लगे। निकट पहुँचते ही देखा कि वटवृक्ष के पास अनेक प्रकार के वाद्ययंत्र बज रहे हैं, नाच -गान और शराब की महफ़िल जमी है। कई स्त्री पुरुष साथ में नाचते-कूदते-हँसते तथा औरों को हँसा रहे हैं। उन्हें महसूस हुआ कि वे मनुष्य नहीं प्रेतात्मा हैं।महात्माजी को देखकर एक प्रेत ने उनका हाथ पकड़कर कहाः ओ मनुष्य ! हमारे राजा तुझे बुलाते हैं, चल। वे मस्तभाव से राजा के पास गये जो सिंहासन पर बैठा था। वहाँ राजा के इर्द-गिर्द कुछ प्रेत खड़े थे।
प्रेतराज ने कहाः तुम इस ओर क्यों आये ?! हमारी मंडली आज मदमस्त हुई है, इस बात का तुमने विचार नहीं किया ?! तुम्हें मौत का डर नहीं है ?!
अट्टहास करते हुए महात्माजी बोलेः मौत का डर ?!और मुझे ?! राजन् ! जिसे जीने का मोह हो उसे मौत का डर होता हैं। हम साधु लोग तो मौत को आनंद का विषय मानते हैं। यह तो देहपरिवर्तन हैं जो प्रारब्धकर्म के बिना किसी से हो नहीं सकता।
प्रेतराजः तुम जानते हो हम कौन हैं ?!
महात्माजीः मैं अनुमान करता हूँ कि आप प्रेतात्मा हो।
प्रेतराजः तुम जानते हो, लोग समाज हमारे नाम से काँपता हैं।
महात्माजीः प्रेतराज ! मुझे मनुष्य में गिनने की गलती मत करना। हम जिन्दा दिखते हुए भी जीने की इच्छा से रहित, मृततुल्य हैं। यदि जिन्दा मानो तो भी आप हमें मार नहीं सकते। जीवन-मरण कर्माधीन हैं। मैं एक प्रश्न पूछ सकता हूँ ?!
महात्माजी की निर्भयता देखकर प्रेतों के राजा को आश्चर्य हुआ कि प्रेत का नाम सुनते ही मर जाने वाले मनुष्यों में एक इतनी निर्भयता से बात कर रहा हैं। सचमुच, ऐसे मनुष्य से बात करने में कोई हर्ज नहीं।
प्रेतराज बोलाः पूछो, क्या प्रश्न है ?!
महात्माजीः प्रेतराज ! आज यहाँ आनंदोत्सव क्यों मनाया जा रहा है ?!
प्रेतराजः मेरी इकलौती कन्या, योग्य पति न मिलने के कारण अब तक कुँवारी हैं। लेकिन अब योग्य जमाई मिलने की संभावना हैं। कल उसकी शादी हैं इसलिए यह उत्सव मनाया जा रहा हैं।
महात्माजी (हँसते हुए): “तुम्हारा जमाई कहाँ है ?! मैं उसे देखना चाहता हूँ।”
प्रेतराजः जीने की इच्छा के मोह के त्याग करने वाले महात्मा ! अभी तो वह हमारे पद (प्रेतयोनी) को प्राप्त नहीं हुआ हैं। वह इस जंगल के किनारे एक गाँव के श्रीमंत (धनवान) का पुत्र है। महादुराचारी होने के कारण वह इस समय भयानक रोग से पीड़ित है। कल संध्या के पहले उसकी मौत होगी। फिर उसकी शादी मेरी कन्या से होगी। इस लिये रात भर गीत-नृत्य और मद्यपान करके हम आनंदोत्सव मनायेंगे।
महात्माजी वहाँ से विदा होकर श्रीराम नाम का अजपाजाप करते हुए जंगल के किनारे के गाँव में पहुँचे। उस समय सुबह हो चुकी थी। एक ग्रामीण से महात्मा नें पूछा “इस गाँव में कोई श्रीमान् का बेटा बीमार हैं?!”
ग्रामीणः हाँ, महाराज ! नवलशा सेठ का बेटा सांकलचंद एक वर्ष से रोगग्रस्त हैं। बहुत उपचार किये पर उसका रोग ठीक नहीं होता। महात्माजी नवलशा सेठ के घर पहुँचे सांकलचंद की हालत गंभीर थी। अन्तिम घड़ियाँ थीं फिर भी महात्माजी को देखकर माता-पिता को आशा की किरण दिखी। उन्होंने महात्मा का स्वागत किया।सेठ पुत्र के पलंग के निकट आकर महात्माजी रामनाम की माला जपने लगे। दोपहर होते-होते लोगों का आना-जाना बढ़ने लगा।
महात्मा: क्यों, सांकलचंद ! अब तो ठीक हो ?!….!

सांकलचंद ने आँखें खोलते ही अपने सामने एक प्रतापी सन्त को देखा तो रो पड़ा। बोला “बाबाजी ! आप मेरा अंत सुधारने के लिए पधारे हो। मैंने बहुत पाप किये हैं। भगवान के दरबार में क्या मुँह दिखाऊँगा ?! फिर भी आप जैसे सन्त के दर्शन हुए हैं, यह मेरे लिए शुभ संकेत हैं।” इतना बोलते ही उसकी साँस फूलने लगी, वह खाँसने लगा। “बेटा ! निराश न हो भगवान राम पतित पावन है। तेरी यह अन्तिम घड़ी है। अब काल से डरने का कोई कारण नहीं। खूब शांति से चित्तवृत्ति के तमाम वेग को रोककर श्रीराम नाम के जप में मन को लगा दे। जाप में लग जा। शास्त्र कहते हैं- चरितम् रघुनाथस्य शतकोटिम् प्रविस्तरम्। एकैकम् अक्षरम् पूण्या महापातक नाशनम्।।
अर्थातः सौ करोड़ शब्दों में भगवान राम के गुण गाये गये हैं। उसका एक-एक अक्षर ब्रह्महत्या आदि महापापों का नाश करने में समर्थ है।दिन ढलते ही सांकलचंद की बीमारी बढ़ने लगी। वैद्य-हकीम बुलाये गये। हीरा भस्म आदि कीमती औषधियाँ दी गयीं। किन्तु अंतिम समय आ गया यह जानकर महात्माजी ने थोड़ा नीचे झुककर उसके कान में रामनाम लेने की याद दिलायी।
राम बोलते ही उसके प्राण पखेरू उड़ गये। लोगों ने रोना शुरु कर दिया। शमशान यात्रा की तैयारियाँ होने लगीं। मौका पाकर महात्माजी वहाँ से चल दिये। नदी तट पर आकर स्नान करके नामस्मरण करते हुए वहाँ से रवाना हुए। शाम ढल चुकी थी। फिर वे मध्यरात्रि के समय जंगल में उसी वटवृक्ष के पास पहुँचे। प्रेत समाज उपस्थित था।
प्रेतराज सिंहासन पर हताश होकर बैठे थे। आज गीत, नृत्य, हास्य कुछ न था। चारों ओर करुण आक्रंद हो रहा था, सब प्रेत रो रहे थे। महात्मा ने पूछा “प्रेतराज ! कल तो यहाँ आनंदोत्सव था, आज शोक-समुद्र लहरा रहा हैं। क्या कुछ अहित हुआ है?!”
प्रेतराजः हाँ भाई ! इसीलिए रो रहे हैं। हमारा सत्यानाश हो गया। मेरी बेटी की आज शादी होने वाली थी। अब वह कुँवारी रह जायेगी।
महात्मा: प्रेतराज ! तुम्हारा जमाई तो आज मर गया हैं। फिर तुम्हारी बेटी कुँवारी क्यों रही ?! प्रेतराज ने चिढ़कर कहाः तेरे पाप से ! मैं ही मूर्ख हूँ कि मैंने कल तुझे सब बता दिया। तूने हमारा सत्यानाश कर दिया।
महात्मा ने नम्रभाव से कहाः मैंने आपका अहित किया यह मुझे समझ में नहीं आता। क्षमा करना, मुझे मेरी भूल बताओगे तो मैं दुबारा नहीं करूँगा।
प्रेतराज ने जलते हृदय से कहाः यहाँ से जाकर तूने मरने वाले को नाम स्मरण का मार्ग बताया और अंत समय भी राम नाम कहलवाया। इससे उसका उद्धार हो गया और मेरी बेटी कुँवारी रह गयी।
महात्माजीः क्या ?! केवल एक बार नाम जप लेने से वह प्रेतयोनि से छूट गया ?!आप सच कहते हो ?!
प्रेतराजः हाँ भाई ! जो मनुष्य राम नामजप करता हैं वह राम नामजप के प्रताप से कभी हमारी योनि को प्राप्त नहीं होता। भगवन्नाम जप में नरकोद्धारिणी शक्ति हैं। प्रेत के द्वारा रामनाम का यह प्रताप सुनकर महात्माजी प्रेमाश्रु बहाते हुए भाव समाधि में लीन हो गये। उनकी आँखे खुलीं तब वहाँ प्रेत-समाज नहीं था, बाल सूर्य की सुनहरी किरणें वटवृक्ष को शोभायमान कर रही थीं।”

💐💐💐💐“जय श्री राम”💐💐💐💐

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

ईश्वर बहुत दयालु है


*ईश्वर बहुत दयालु है*

एक राजा का एक विशाल फलों का बगीचा था. उसमें तरह-तरह के फल होते थे और उस बगीचा की सारी देखरेख एक किसान अपने परिवार के साथ करता था. वह किसान हर दिन बगीचे के ताज़े फल लेकर राजा के राजमहल में जाता था.

एक दिन किसान ने पेड़ों पे देखा नारियल अमरुद, बेर, और अंगूर पक कर तैयार हो रहे हैं, किसान सोचने लगा आज कौन सा फल महाराज को अर्पित करूँ, फिर उसे लगा अँगूर करने चाहिये क्योंकि वो तैयार हैं और बोहत जल्द दूसरे फलों की अपेक्षा ओह्राब भी हो जायेंगे इसलिये उसने अंगूरों की टोकरी भर ली और राजा को देने चल पड़ा! किसान जब राजमहल में पहुचा, राजा किसी दूसरे ख्याल में खोया हुआ था और नाराज भी लग रहा था किसान रोज की तरह मीठे रसीले अंगूरों की टोकरी राजा के सामने रख दी और थोड़े दूर बेठ गया, अब राजा उसी खयालों-खयालों में टोकरी में से अंगूर उठाता एक खाता और एक खींच कर किसान के माथे पे निशाना साधकर फेंक देता।

राजा का अंगूर जब भी किसान के माथे या शरीर पर लगता था किसान कहता था, ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’ राजा फिर और जोर से अंगूर फेकता था किसान फिर वही कहता था ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’

थोड़ी देर बाद राजा को एहसास हुआ की वो क्या कर रहा है और प्रत्युत्तर क्या आ रहा है वो सम्भल कर बैठा , उसने किसान से कहा, मै तुझे बार-बार अंगूर मार रहा हूँ , और ये अंगूर तुंम्हे लग भी रहे हैं, फिर भी तुम यह बार-बार क्यों कह रहे हो की ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’

*किसान ने नम्रता से बोला, महाराज, बागान में आज नारियल, बेर और अमरुद भी तैयार थे पर मुझे भान हुआ क्यों न आज आपके लिये अंगूर् ले चलूं लाने को मैं अमरुद और बेर भी ला सकता था पर मैं अंगूर लाया। यदि अंगूर की जगह नारियल, बेर या बड़े बड़े अमरुद रखे होते तो आज मेरा हाल क्या होता ? इसीलिए मैं कह रहा हूँ कि ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’!!*

कथा सार–

*इसी प्रकार ईश्वर भी हमारी कई मुसीबतों को बहुत हल्का कर के हमें उबार लेता है पर ये तो हम ही नाशुकरे हैं जो शुकर न करते हुए उसे ही गुनहगार ठहरा देते हैं, मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ , मेरा क्या कसूर, आज जो भी फसल हम काट रहे हैं ये दरअसल हमारी ही बोई हुई है, बोया बीज बबूल का तो आम कहाँ से होये।। और बबुल से अगर आम न मिला तो गुनहगार भी हम नहीं हैं , इसका भी दोष हम किसी और पर मढेंगे ,, कोई और न मिला तो ईश्वर तो है ही ।*

*आज हमारे पास जो कुछ भी है अगर वास्तविकता के धरातल पर खड़े होकर देखेंगे तो वास्तव में हम इसके लायक भी नही हैं पर उसके बावजूद मेरे ईश्वर ने मुझे जरूरत से ज़्यादा दिया है और बजाय उसका शुकर करने के हम उसे हमेशा दोष ही देते रहते हैं। पर वो तो हमारा पिता है हमारी माता है किसी भी बात का कभी बुरा नहीं मानता और अपनी नेमतें हम पर बरसाता रहता है। अगर एक बार उसकी बख्शिसों की तरफ देखेंगे तो सारी उम्र के भी शुकराने कम पड़ेंगे. *

अनुपमा की राधे राधे जी …

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

परख


किसी जंगल में एक संत महात्मा रहते थे। सन्यासियों वाली वेश भूषा थी और बातों में सदाचार का भाव। चेहरे पर इतना तेज था कि कोई भी इन्सान उनसे प्रभावित हुए नहीं रह सकता था।

एक बार जंगल में शहर का एक व्यक्ति आया, और वो जब महात्मा जी की झोपड़ी से होकर गुजरा तो देखा- बहुत से लोग महात्मा जी के दर्शन करने आये हुए थे। वो महात्मा जी के पास गया और बोला कि, “आप अमीर भी नहीं हैं, आपने महंगे कपडे भी नहीं पहने हैं। आपको देखकर मैं बिल्कुल प्रभावित नहीं हुआ। फिर ये इतने सारे लोग आपके दर्शन करने क्यों आते हैं ?”

महात्मा जी ने उस व्यक्ति को अपनी एक अंगूठी उतार के दी और कहा- कि “आप इसे बाजार में बेच कर आयें और इसके बदले एक सोने माला लेकर आना।” अब वो व्यक्ति बाजार गया और सब की दुकान पर जाकर उस अंगूठी के बदले सोने की माला माँगने लगा, लेकिन सोने की माला तो क्या उस अंगूठी के बदले कोई पीतल का एक टुकड़ा भी देने को तैयार नहीं था। थकहार के व्यक्ति वापस महात्मा जी के पास पहुँचा और बोला कि- “इस अंगूठी की तो कोई कीमत ही नहीं है।” महात्मा जी मुस्कुराये और बोले कि- “अब इस अंगूठी को पीछे वाली एक गली में सुनार की दुकान पर ले जाओ।”

व्यक्ति जब सुनार की दुकान पर गया तो सुनार ने एक माला नहीं बल्कि पांच माला अँगूठी के बदले देने को कहा। व्यक्ति बड़ा हैरान हुआ कि इस मामूली सी अँगूठी के बदले कोई पीतल की माला देने को तैयार नहीं हुआ, लेकिन ये सुनार कैसे 5 सोने की माला दे रहा है। व्यक्ति वापस महात्मा जी के पास गया और उनको सारी बातें बतायीं।

महात्मा जी बोले कि चीजें जैसी ऊपर से दिखती हैं, अंदर से वैसी नहीं होती। ये कोई मामूली अँगूठी नहीं है बल्कि ये एक हीरे की अँगूठी है। जिसकी पहचान केवल जौहरी (सुनार)ही कर सकता था। इसलिए वह 5 माला देने को तैयार हो गया। ठीक वैसे ही मेरी वेशभूषा को देखकर तुम मुझसे प्रभावित नहीं हुए। लेकिन ज्ञान का प्रकाश लोगों को मेरी ओर खींच लाता है।

व्यक्ति महात्मा जी की बातें सुनकर बड़ा शर्मिंदा हुआ। कपड़ों से व्यक्ति की पहचान नहीं होती। बल्कि आचरण और ज्ञान से व्यक्ति की पहचान होती है।

अनुपमा की राधे राधे जी….