सुनीता की छोटी ननद रेखा की शादी हुए 3 वर्ष हो चुके थे।नंदोई सुरेश जी की शहर में बड़ी पंसारी की दुकान और शुद्ध सरसों के कच्चे तेल की अलग से दुकान थी।घर में पैसे की कोई कमी नहीं थी और उस छोटे शहर के रईसों में उनके परिवार का नाम भी आता था।सुरेश का दिमाग पढ़ने लिखने में ज़्यादा नहीं लगा था।बड़ी मुश्किल से बारहवीं पास करके अपने पिता की दोनों दुकानें संभालने लगा था।सुनीता की छोटी ननद रेखा भी पढ़ाई लिखाई में औसत ही निकली और बस किसी तरह ग्रेजुएशन ही कर पाई।
सुनीता के सास श्वसुर ने रेखा के लिए इंजीनियर,बैंक ऑफिसर जैसे लड़के ढूंढने की बहुत कोशिश की पर कहीं बात न बनी। रेखा दी देखने में भी ज़्यादा आकर्षक नहीं थीं।किसी तरह सुरेश से बात चलाने पर उनसे रेखा दी का रिश्ता तै हो पाया और कुछ दिन बाद शादी भी हो गई।
सुनीता के सास श्वसुर को यह तसल्ली थी कि पैसे वाले परिवार में गई है बेटी।सुख से रहेगी।
सुनीता ने सुरेश जी को पहली बार उनकी शादी में ही देखा।दूल्हा बने हुए सुरेश पान से रंगे दांत दिखा कर अपने दोस्तों के साथ डांस करने में मगन थे।
फेरों के समय भी जूता चुराई की रस्म के समय रिश्ते की सालियों के साथ बड़े अभद्र मज़ाक कर रहे थे।कुल मिला के सुरेश के व्यक्तित्व का ज़्यादा अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा था सुनीता के ऊपर।
सुरेश और उसके घर वाले जब रेखा दी को पसन्द करने घर आए थे तब सुनीता अपने भाई की शादी में मायके गई हुई थी,वरना वह यह रिश्ता न होने देती।
रेखा दी और सुरेश जी एक ही शहर में होने के कारण अक्सर उससे और उसके पति संजय से मिलने उसके घर आते रहते थे।उसकी बेटी आशिमा के लिए सुरेश जी चॉकलेट्स,टॉफी ,आइसक्रीम इत्यादि लाते रहते थे और उसको गोद में बैठा के खूब प्यार करते थे।सुरेश जी की बेतुकी स्तरहीन बातों और मज़ाक को बड़ी मुश्किल से बर्दाश्त कर पाती थी सुनीता।पर नंदोई होने के कारण रिश्ते को सम्मान देने के कारण कुछ बोल नहीं पाती थी।
बेटी आशिमा भी अब नौ वर्ष की हो चुकी थी।कुछ समय से सुनीता देख रही थी कि जब कभी सुरेश जी अकेले ही उन लोगों से मिलने उनके घर आते तो आशिमा उनके सामने जाने से कतराती थी। मन का वहम समझ कर सुनीता ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया इस बात पर।
सुनीता कहती ” बेटा,फूफा जी से जाकर नमस्ते तो कर आओ,”तो बड़ी मुश्किल से बाहर आकर उनको नमस्ते करके अपने कमरे में भाग जाती थी।
” अरे,हमारी आशी गुड़िया कहां जा रही है,इधर आ,मेरे पास बैठ। मेरी आशी गुड़िया बड़ी हो रही है तो शर्मा रही है” ,सुरेश आशिमा के गाल पे थपकी देते हुए कहते।
दिवाली आने वाली थी।धनतेरस के दिन सुनीता को संजय के साथ दिवाली की खरीदारी करने बाज़ार जाना था।
आशिमा को हल्की हरारत सी लगी तो उसको साथ न ले जाने का निर्णय लिया दोनों ने।तभी सुरेश जी का फोन आ गया कि उस दिन जो सरसों के तेल के कुछ कनस्तर उन्होंने रिक्शेवाले से इनके घर ही उतरवा दिए थे( क्योंकि आगे किसी जुलूस के कारण बहुत बड़ा जाम लगा था),वो कनस्तर लेने आज वो उनके यहां आएंगे।पिछले कुछ महीनों से सुनीता नोटिस कर रही थी कि सुरेश जी अकसर किसी न किसी बहाने उनके यहां आ धमकते थे।
शाम तक आते आते आशिमा का बुखार बढ़ गया तो सुनीता ने संजय को यह कह कर बाज़ार भेज दिया कि अभी ज़रूरी सामान वह ले आएं,बाकी खरीदारी कल सब मिल कर करेंगे । कल तक शायद आशिमा का बुखार भी उतर जाए।
संजय शाम को मार्केट चले गए और सुनीता आशिमा के पास आके लेट गई।
” मम्मी,आज भी फूफा जी आ रहे हैं क्या”,अचानक आशिमा ने उससे पूछा।
” हां बेटा,क्यों ,क्या हुआ?”
” मम्मी,मुझे उनका आना बिलकुल नहीं अच्छा लगता।उनसे बोल दो कि यहां न आया करें।”
“क्यों?ऐसा क्यों कह रही है आशी?वह तेरे फूफा जी हैं “,सुनीता थोड़े सशंकित मन से बोली।
” मम्मी,मैं इतनी बड़ी हो गई हूं,वो मुझे गोदी में बैठा कर जबरन पप्पी लेने की कोशिश करते हैं। उस दिन तो वो मुझे गलत जगह से छू रहे थे।मुझे बड़ा अजीब सा लगा मम्मी।मुझे वो ज़रा भी नहीं अच्छे लगते” ,आशिमा बोली।
सुनीता सन्न रह गई। क्रोध से उसका शरीर कांपने लगा।वह समझदार थी।उसको ज़रा सी भी देर न लगी यह समझने में कि सुरेश किस प्रवृत्ति का आदमी है। चाइल्ड एब्यूज के बहुत से किस्से उसने सुन रखे थे।पत्र पत्रिकाओं में भी इससे संबंधित सच्ची घटनाएं प्रकाशित होती रहती थीं।पर अपने घर में भी ऐसा हो सकता है ,यह उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था।
अचानक दरवाज़े की घंटी बजी।
” नमस्ते भाभी,वो मैं तेल के कनस्तर लेने आया था।हमारी आशी कहां है?” कहते हुए सुरेश अंदर आ गए।
” आशी अंदर है और जो हरकतें आप उसके साथ करते हैं और जो आपकी बदनीयत है उसके प्रति,वह मैं सब जान और समझ चुकी हूं।आशिमा बच्ची है तो क्या,ईश्वर ने हर नारी को यह आंतरिक शक्ति दी है कि वोह एक स्पर्श के पीछे क्या भावना छुपी है,यह पहचान सके। स्पर्श को पहचानने की यह शक्ति एक छोटी बच्ची में भी होती है। आशिमा ने मुझे आपकी हरकतों के बारे में सब बता दिया है।कुछ बच्चियां अपने साथ होने वाली गलत हरकतों( जोकि कुत्सित मानसिकता के करीब के रिश्तेदारों ,पिता के दोस्तों या भाई के दोस्तों की भी हो सकती हैं)का विरोध डर के या शर्म के कारण नहीं कर पातीं और अपने माता पिता को कुछ नहीं बतातीं और सहम के अपने नज़दीकी रिश्तेदार पुरुषों की ये कुत्सित मनोवृत्ति वाली हरकतें सहती रहती हैं।पर मैं भाग्यशाली हूं कि मेरी बेटी बहादुर और जागरूक है।जो नीच हरकतें करने की कोशिश आप उसके साथ करते हो,वो सारी उसने मुझे बता दी हैं।
” इसी समय अपना सामान लेकर आप मेरे घर से निकल जाओ।मैं चाहूं तो अपनी सीधी सादी भोली भाली रेखा दी को फोन पर सब कुछ बता सकती हूं।पर मैं उनका दिल नहीं तोड़ना चाहती और आपको उनकी नजरों में नहीं गिराना चाहती।बेहतर है आप सुधर जाएं तो अच्छा है।जब तक आप सच्चे मन से अपने किए पर प्रायश्चित नहीं करेंगे और अपनी गंदी मनोवृत्ति को नहीं बदलेंगे,तब तक मेरे घर के दरवाज़े आपके लिए बंद हैं। अपना सामान उठाइए और तुरंत यहां से दफा हो जाइए।”
” भाभी,आप गलत समझ रही हैं।” सुरेश रिरियाते हुए बोले।
” मैं गलत हो सकती हूं पर मेरी नौ वर्षीय बेटी नहीं।उसकी छठी इंद्रिय ने आपकी कुत्सित मनोभावनाओं के प्रति उसको सचेत कर दिया है।
दरवाज़ा खुला है,सामान लेकर बाहर निकलिए।”
” मुझे माफ कर दीजिए भाभी,प्लीज रेखा को कुछ न बताना”,कहते हुए सुरेश अपने कनस्तर उठा कर बाहर चला गया।
नीति सक्सेना