♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️
👉 *कर्म और भाग्य एक कहानी* 🏵️
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एक बार एक शिव भक्त धनिक शिवालय जाता है।पैरों में महँगे और नये जूते होने पर सोचता है कि क्या करूँ?यदि बाहर उतार कर जाता हूँ तो कोई उठा न ले जाये और अंदर पूजा में मन भी नहीं लगेगा; सारा ध्यान् जूतों पर ही रहेगा। उसे बाहर एक भिखारी बैठा दिखाई देता है। वह धनिक भिखारी से कहता है ” भाई मेरे जूतों का ध्यान रखोगे? जब तक मैं पूजा करके वापस न आ जाऊँ” भिखारी हाँ कर देता है। अंदर पूजा करते समय धनिक सोचता है कि ” हे प्रभु आपने यह कैसा असंतुलित संसार बनाया है? किसी को इतना धन दिया है कि वह पैरों तक में महँगे जूते पहनता है तो किसी को अपना पेट भरने के लिये भीख तक माँगनी पड़ती है! कितना अच्छा हो कि सभी एक समान हो जायें!!” वह धनिक निश्चय करता है कि वह बाहर आकर भिखारी को 100 का एक नोट देगा।*
*बाहर आकर वह धनिक देखता है कि वहाँ न तो वह भिखारी है और न ही उसके जूते ही। धनिक ठगा सा रह जाता है। वह कुछ देर भिखारी का इंतजार करता है कि शायद भिखारी किसी काम से कहीं चला गया हो। पर वह नहीं आया। धनिक दुखी मन से नंगे पैर घर के लिये चल देता है। रास्ते में फुटपाथ पर देखता है कि एक आदमी जूते चप्पल बेच रहा है। धनिक चप्पल खरीदने के उद्देश्य से वहाँ पहुँचता है, पर क्या देखता है कि उसके जूते भी वहाँ रखे हैं। जब धनिक दबाव डालकर उससे जूतों के बारे में पूछता हो वह आदमी बताता है कि एक भिखारी उन जूतों को 100 रु. में बेच गया है। धनिक वहीं खड़े होकर कुछ सोचता है और मुस्कराते हुये नंगे पैर ही घर के लिये चल देता है। उस दिन धनिक को उसके सवालों के जवाब मिल गये थे समाज में कभी एकरूपता नहीं आ सकती, क्योंकि हमारे कर्म कभी भी एक समान नहीं हो सकते। और जिस दिन ऐसा हो गया उस दिन समाज-संसार की सारी विषमतायें समाप्त हो जायेंगी। ईश्वर ने हर एक मनुष्य के भाग्य में लिख दिया है कि किसको कब और क्या और कहाँ मिलेगा। पर यह नहीं लिखा होता है कि वह कैसे मिलेगा। यह हमारे कर्म तय करते हैं। जैसे कि भिखारी के लिये उस दिन तय था कि उसे 100 रु. मिलेंगे, पर कैसे मिलेंगे यह उस भिखारी ने तय किया। हमारे कर्म ही हमारा भाग्य, यश, अपयश, लाभ, हानि, जय, पराजय, दुःख, शोक, लोक, परलोक तय करते हैं। हम इसके लिये ईश्वर को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं..!!
*🙏🙏🏽🙏🏾जय जय श्री राधे*🙏🏼🙏🏿🙏🏻
Day: August 15, 2022
शब्दशास्त्र में मूलतः तीन स्वर कहे गये हैं- अ इ उ । व्यंजनों की संख्या ३३ है – क् ख् ग् घ् ङ च् छ् ज् झ् ञ. ट् ठ् ड् ढ् ण त थ द ध न प फ ब भ म य् व् र् ल् श् ष् स् ह् । ३ स्वर + ३३ व्यञ्जन = ३६ वर्ण । प्रत्येक शब्द वा पद में ये वर्ण आदि, मध्य, अन्त में अथवा ऊर्ध्व मध्य, अधो भाग में रहते हैं। इस प्रकार प्रत्येक वर्ण की तीन स्थिति वा दिशा है। सम्पूर्ण वर्ण समुदाय की कुल ३६ x ३ = १०८ स्थितियाँ हुई। इन स्थितियों को जो सर्वतोभावेन जानता है/समझता है वही वेदार्थ का ज्ञाता है, शास्त्र का मर्मज्ञ है, दर्शन का साक्षी है, वाचस्पति है, बृहस्पति है। अतः वह निश्चय ही ‘श्री १०८’ की पदवी का अधिकारी है। श्री १०८ = शब्दशास्त्री।
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किराने की एक दुकान में एक ग्राहक आया और दुकानदार से बोला – भइया, मुझे 10 किलो बादाम दे दीजिए।
दुकानदार 10 किलो तौलने लगा।
तभी एक कीमती कार उसकी दुकान के सामने रुकी और उससे उतर कर एक सूटेड बूटेड आदमी दुकान पर आया,और बोला – भाई 1 किलो बादाम तौल दीजिये।
दुकानदार ने पहले ग्राहक को 10 किलो बादाम दी,,फिर दूसरे ग्राहक को 1 किलो दी..।
जब 10 किलो वाला ग्राहक चला गया तब कार सवार ग्राहक ने कौतूहलवश दुकानदार से पूछा – ये जो ग्राहक अभी गये है यह कोई बड़े आदमी है या इनके घर में कोई कार्यक्रम है क्योंकि ये 10 किलो लेकर गए हैं।
दुकानदार ने मुस्कुराते हुए कहा – अरे नहीं भइया, ये एक सरकारी विभाग में चपरासी हैं लेकिन पिछले साल जब से इन्होंने एक विधवा से शादी की है जिसका पति लाखों रुपये उसके लिए छोड़ गया था, तब से उसी के पैसे को खर्च कर रहे हैं.. ये महाशय 10 किलो हर माह ले जाते हैं। “
इतना सुनकर दूसरे ग्राहक ने भी 1 की बजाय 10 किलो बादाम ले ली ।
10 किलो बादाम लेकर जब घर पहुँचे तो उसकी बीवी चौंक कर बोली – ये किसी और का सामान उठा लाये क्या? 10 किलो की क्या जरूरत अपने घर में..?
भैया जी ने उत्तर दिया – पगली मेरे मरने के बाद कोई चपरासी मेरे ही पैसे से 10 किलो बादाम खाए.. तो जीते जी, मैं क्यों 1 किलो खाऊं..।”
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*निष्कर्ष: अपनी कमाई को बैंक में जमा करते रहने के बजाय अपने ऊपर भी खर्च करते रहना चाहिए। क्या पता आपके बाद आपकी गाढ़ी कमाई का दुरुपयोग ही हो।*
इन्जॉय करिये जीवन के हर पल को।
मौज करो, रोज करो, नहीं मिले तो ख़ोज करो।
😀😃😄😁😆😅😂🤣😀