नवग्रहों की पौराणिक सुंदर प्रार्थना
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नवग्रहों को एक साथ प्रसन्न करना थोड़ा मुश्किल है। आप अपनी कुंडली के कमजोर ग्रहों को पहले प्रसन्न कीजिए। प्रस्तुत है वेदों में वर्णित नवग्रह प्रार्थना। ग्रहों के नाम-मंत्रों से बनी यह प्रार्थना तुरंत असरकारी और चमत्कारी है-
🌹सूर्यदेव-
पद्मासन: पद्मकरो द्विबाहु:
पद्मद्युति: सप्ततुरङ्गवाह:।
दिवाकरो लोकगुरु: किरीटी
मयि प्रसादं विदधातु देव।।
हे सूर्यदेव! आप रक्तकमल के आसन पर विराजमान रहते हैं, आपके दो हाथ हैं तथा आप दोनों हाथों में रक्तकमल लिए रहते हैं। रक्तकमल के समान आपकी आभा है। आपके वाहन-रथ में सात घोड़े हैं, आप दिन में प्रकाश फैलाने वाले हैं। लोकों के गुरु हैं तथा मुकुट धारण किए हुए हैं, आप प्रसन्न होकर मुझ पर अनुग्रह करें।
🌹चन्द्रमा-
श्वेताम्बर: श्वेतविभूषणश्च
श्वेतद्युतिर्दण्डधरो द्विबाहु:।
चन्द्रोऽमृतात्मा वरद: किरीटी
श्रेयांसि मह्यं विदधातु देव।।
हे चन्द्रदेव! आप श्वेत वस्त्र तथा श्वेत आभूषण धारण करने वाले हैं। आपके शरीर की कांति श्वेत है। आप दंड धारण करते हैं, आपके दो हाथ हैं, आप अमृतात्मा हैं, वरदान देने वाले हैं तथा मुकुट धारण करते हैं, आप मुझे कल्याण प्रदान करें।
🌹मंगल-
रक्ताम्बरो रक्तवपु: किरीटी
चतुर्भुजो मेषगमो गदाभृत्।
धरासुत: शक्तिधरश्च शूली
सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।
जो रक्त वस्त्र धारण करने वाले, रक्त विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, मेष वाहन, गदा धारण करने वाले, पृथ्वी के पुत्र, शक्ति तथा शूल धारण करने वाले हैं, वे मंगल मेरे लिए सदा वरदायी और शांत हों।
🌹बुध-
पीताम्बर: पीतवपु: किरीटी
चतुर्भुजो दण्डधरश्च हारी।
चर्मासिधृक् सोमसुत: सदा मे
सिंहाधिरूढो वरदो बुधश्च।।
जो पीत वस्त्र धारण करने वाले, पीत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, दंड धारण करने वाले, माला धारण करने वाले, ढाल तथा तलवार धारण करने वाले और सिंहासन पर विराजमान रहने वाले हैं, वे चंद्रमा के पुत्र बुध मेरे लिए सदा वरदायी हों।
🌹बृहस्पति-
पीताम्बर: पीतवपु: किरीटी
चतुर्भुजो देवगुरु: प्रशान्त:।
दधाति दण्डञ्च कमण्डलुञ्च
तथाक्षसूत्रं वरदोऽस्तु मह्यम्।।
जो पीला वस्त्र धारण करने वाले, पीत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, अत्यंत शांत स्वभाव वाले हैं तथा जो दंड, कमण्डलु एवं अक्षमाला धारण करते हैं, वे देवगुरु बृहस्पति मेरे लिए वर प्रदान करने वाले हों।
🌹शुक्र-
श्वेताम्बर: श्वेतवपु: किरीटी
चतुर्भुजो दैत्यगुरु: प्रशान्त:।
तथाक्षसूत्रञ्च कमण्डलुञ्च
जयञ्च बिभ्रद्वरदोऽस्तु मह्मम्।।
जो श्वेत वस्त्र धारण करने वाले, श्वेत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, शांत स्वरूप, अक्षसूत्र तथा जयमुद्रा धारण करने वाले हैं, वे देत्यगुरु शुक्राचार्य मेरे लिए वरदायी हों।
🌹शनिदेव-
नीलद्युति: शूलधर: किरीटी
गृध्रस्थितस्त्राणकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रशान्तो
वरप्रदो मेऽस्तु स मन्दगामी।।
जो नीली आभा वाले, शूल धारण करने वाले, मुकुट धारण करने वाले, गृध्र पर विराजमान, रक्षा करने वाले, धनुष को धारण करने वाले, चार भुजा वाले, शांत स्वभाव एवं मंद गति वाले हैं, वे सूर्यपुत्र शनि मेरे लिए वर देने वाले हों।
🌹राहु-
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी
करालवक्त्र: करवालशूली।
चतुर्भुजश्चर्मधरश्च राहु:
सिंहासनस्थो वरदोऽस्तु मह्यम्।।
नीला वस्त्र धारण करने वाले, नीले विग्रह वाले, मुकुटधारी, विकराल मुख वाले, हाथ में ढाल-तलवार तथा शूल धारण करने वाले एवं सिंहासन पर विराजमान राहु मेरे लिए वरदायी हों।
🌹केतु-
धूम्रो द्विबाहुर्वरदो गदाभृत्
गृध्रासनस्थो विकृताननश्च।
किरीटकेयूरविभूषिताङ्ग
सदास्तु मे केतुगण: प्रशान्त:।।
धुएं के समान आभा वाले, दो हाथ वाले, गदा धारण करने वाले, गृध्र के आसन पर स्थित रहने वाले, भयंकर मुख वाले, मुकुट एवं बाजूबन्द से सुशोभित अंगों वाले तथा शांत स्वभाव वाले केतुगण मेरे लिए सदा वर प्रदान करने वाले हों।
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Day: August 10, 2022
कागज बनाना
कागज बनाना पूरी दुनिया को भारत ने शिखाया | कागज बनाना सबसे पहले भारत मे शुरू हुआ | हमारे भारत मे एक घास होती है उसको सन कहते है और एक घास होती है उसको मुंज कहती है | मुंज घास बहुत तीखी होती है ऊँगली को काट सकती है और खून निकाल सकती है | सन वाली घास थोड़ी नरम होती है ऊँगली को काटती नही है | भारत के हर गाँव मे फ़ोकट मे ये घास होती है | पूर्वी भारत और मध्य भारत मे हर गाँव मे होती है, बंगाल मे, बिहार मे, झाड़खंड मे, ओड़िसा मे, असम मे कोई गाँव नही जहाँ सन न हो और मुंज न हो | तो जिन इलाके मे सन और मुंज सबसे जादा होती रही है इसी इलाके मे सबसे पहले कागज बनना शुरू हुआ | वो सन की घास से और मुंज की घास से हमने सबसे पहले कागज बनाया | सबसे पहले कागज बनाके हमने दुनिया को दिया | और वो कागज बनाने की तकनीक आज से २००० साल पुराणी है | चीन के दस्ताबेजों से ये बात पता चली है | चिनिओं के दस्ताबेजों मे ये लिखा हुआ है के उन्होंने जो कागज बनाना सिखा वो भारत से सिखा, सन और मुंज की रस्सी से |
कागज निर्माता सन के पौधों से बने पुराने रस्से, कपडे़ और जाल खरीदते हैं। उन्हें टुकडों में काटकर फिर पानी में कुछ दिनों के लिए डुबोते हैं। आमतौर पर पानी में डुबोने का काम पांच दिनों तक किया जाता है। उसके बाद इन चीजों को एक टोकरी में नदी में धोया जाता है और उन्हें जमीन में लगे पानी के एक बर्तन में डाला जाता है। इस पानी में सेड़गी मिट्टी का घोल छह हिस्सा और खरितचूना सात हिस्सा होता है। इन चीजों को उस हाल में आठ या दस दिनों तक रखने के बाद उन्हें फिर गिले अवस्था में ही इसे पीट-पीट कर इसके रेशे अलग कर दिए जाते है। चित्रा संख्या एक उसके बाद इसे साफ छत पर धूप में सुखाया जाता है, फिर उसे पहले की तरह ताजे पानी में डुबोया जाता है। यह प्रक्रिया तीन बार हो जाने के बाद सन मोटा भूरा कागज बनाने के लिए तैयार हो जाता है इस तरह की सात या आठ धुलाई के बाद वह ठीक-ठाक सफेदी वाला कागज बनाने लायक हो जाता है।
## सेड़गी मिट्टी एक ऐसी मिट्टी है जिसमें जीवाश्म के क्षारीय गुण होते हैं। …………………..। यह इस देश में बड़ी मात्रा में पाया जाता है और इसका प्रयोग व्यापक रुप से घोने, ब्लीच करने , साबुन बनाने और तमाम तरह के अन्य कामों के लिए होता है।
इस तरह तैयार किए गए भुरकुस को हौज के पानी में भिगोया जाता है। हौज के एक तरफ संचालक बैठता है और डंडियां निकाल कर सन की परत को एक फ्रेम पर फैला देता है। इस फे्रम को वह कुंड में तब तक धोता है जब तक वह भुरकुस के तिरते कपड़ों से दूधिया सफेद न हो जाए। अब वह फ्रेम और स्क्रीन को पानी में लंबवत डुबोता है और क्षैतिज अवस्था में ऊपर लाता है। वहां वह फ्रेम को अगल-बगल फिर आगे-पीछे उलटता-पलटता है ताकि वे कण परदे पर बराबर से फैल जाएं। फिर वह उसे पानी से ऊपर उठा कर डंडियों पर एक मिनिट के लिए रख देता है। पानी में इसी तरह फिर डुबोए जाने के बाद कागज का नया पेज तैयार हो जाता है। अब वह विस्तारक — को स्क्रीन से हटाकर स्क्रीन और शीट के ऊपरी हिस्से को एक इंच भीतर की तरफ मोड़ लेता है। इसका मतलब यह है कि शीट का इतना हिस्सा स्क्रीन से अलग कर दिया जाएगा। अब स्क्रीन को पलट दिया जाता है कागज का जो हिस्सा पहले से अलग हो चुका होता है उसे चटाई पर बिछा दिया जाता है । स्क्रीन को आराम से कागज से हटा लिया जाता है। इस तरह कागज बनाने वाला एक के बाद एक शीट निकालता रहता है। वह दिन भर मं 250 शीट बनाता है, उन्हें एक के ऊपर एक करके रखने के बाद सन के मोटे कपडे़ कागज के आकार के बराबर होता है। इनके ऊपर वह लकड़ी का मोटा पटरा रख देता है जो आकार में कागजों से बड़ा होता है। यह पटरा अपने दबाव से कागज की गीली शीटों से पानी निकाल देता है। इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए कागज बनाने वाला खुद उस पर बैठ जाता है। इस गट्ठर को रात भर के लिए एक तरफ रख दिया जाता है। सुबह इनमें से एक-एक शीट निकाली जाती है उन्हें ब्रश से बराबर किया जाता है । कागज की इन शीटों को घर की प्लास्टर लगी दीवारों पर चिपका दिया जाता है। सूख जाने के बाद उन्हें छुड़ा लिया जाता है और एक साफ चटाई या कपडे़ पर बिछा दिया जाता है। इनको चावल के पानी में डूबे कंबल से रगड़ा जाता है और तुरंत बाद घर में इस उद्देश्य के लिए बनी रस्सी पर सुखाने के लिए लटका दिया जाता है। जब यह पूरी तरह से सूख जाए तो उसे चैकोट काट लिया जाता है इस आकार के लिए एक मानक शीट को रखकर चाकू चलाया जाता है । इस प्रक्रिया के बाद कागज की यह चादरें अन्य व्यक्ति के पास ले जाई जाती हैं जिसे वह दोनों हाथों में गोल मूरस्टाने ग्रेनाइट लेकर रगड़ता हैं। इसके उपरांत वह शीट को मोड़ कर बिक्री के लिए भेज देता है। ज्यादा बारीक कागज दुबारा पालिश किया जाता है। कटे हुए टुकड़ों और खराब हुई चादरों को पानी में रखकर कुचल दिया जाता है और फिर ऊपर वर्णित प्रक्रिया के मुताबिक पुननिर्मित किया जाता है।
अरुण शुक्ला
એક બાળકને સ્વર્ગ અને નરક જોવાની ખુબ જ ઇચ્છા હતી.
એક બાળકને સ્વર્ગ અને નરક જોવાની ખુબ જ ઇચ્છા હતી. એ રોજ આ માટે ભગવાનને પ્રાર્થના કરતો.
એક દિવસ ભગવાન તેના પર રાજી થયા અને બાળકને સ્વર્ગ તથા નરક બતાવવાનું વચન આપ્યુ.
કોઇ એક ચોક્કસ દિવસે ભગવાનને થોડી ફુરસદ મળી એટલે એ પેલા બાળક પાસે આવ્યા અને કહ્યુ, “ચાલ બેટા, આજે તને સ્વર્ગ અને નરકની મુલાકાત કરાવું. બોલ તારે પહેલા કોની મુલાકાત લેવી છે?”
બાળકે કહ્યુ, “પ્રભુ, પહેલા નરક બતાવો. પછી સ્વર્ગમાં થોડો સમય આરામ કરવો હોઇ તો પણ વાંધો ન આવે.”
ભગવાન બાળકને લઇને નરકમાં ગયા.
દરવાજો ખોલીને અંદર પ્રવેશ્યા.
સૌ પ્રથમ ભોજનશાળાની મુલાકાતે ગયા.
બાળકે જોયુ તો ત્યાં અનેક પ્રકારના ભોજન હતા.
જાત જાતના પકવાનોના થાળ પડ્યા હતા.
આમ છતા લોકો ભુખના માર્યા તરફડીયા મારી રહ્યા હતા.
કેટલાકના મોઢામાંથી સારુ ભોજન જોઇને લાળો ટપકતી હતી પરંતું એ ભોજન લેતા ન હતા.
બાળકે ભગવાનને પુછ્યુ, “પ્રભુ આવુ કેમ ? ભોજન સામે હોવા છતા આ લોકો કેમ ખાતા નથી અને દુ:ખી થઇને રાડો પાડે છે?”
ભગવાને બાળકને કહ્યુ, “બેટા, આ તમામ લોકોના હાથ સામે જો. બધાના હાથ સીધા જ રહે છે. એને કોણીથી વાળી શકતા નથી અને એટલે એ ભોજનને હાથમાં લઇ શકે છે પણ પોતાના મુખ સુધી પહોંચાડી શકતા નથી. ભોજનને મુખ સુધી પહોંચાડવા એ હવામાં ઉંચે ઉડાડે છે અને પછી પોતાના મુખમાં ઝીલવા માટેનો પ્રયાસ કરે છે પણ એમા એ સફળ થતા નથી.”
બાળકે દલીલ કરતા કહ્યુ, “પ્રભુ આ તો નરકના લોકો માટે હળાહળ અન્યાય જ છે. ભોજન સામે હોવા છતા તમે કરેલી કરામતને કારણે હાથ વળતો નથી અને એ ખાઇ શકતા નથી.”
ભગવાને કહ્યુ, “ચાલ બેટા હવે તને સ્વર્ગની ભોજનશાળા બતાવું. એ જોઇને તને નરક અને સ્વર્ગ વચ્ચેનો ભેદ બહુ સરળતાથી સમજાઇ જશે અને હું અન્યાય કરુ છુ કે કેમ ? તે પણ તને ખબર પડી જશે.”
બાળક ભગવાનની સાથે સ્વર્ગની ભોજનશાળામાં ગયો. અહિંયા નરકમાં હતા એ જ પ્રકારના બધા ભોજન હતા અને એવી જ વ્યવસ્થાઓ હતી છતાય બધાના ચહેરા પર આનંદ હતો. બધા શાંતિથી ભોજન લઇ રહ્યા હતા.
બાળકે ધ્યાનથી જોયુ તો અહિંયા પણ દરેક લોકોની શારિરીક સ્થિતી નરક જેવી જ હતી. મતલબ કે કોઇના હાથ કોણીથી વળી શકતા નહોતો.
પરંતું લોકો ભોજન લેતી વખતે એકબીજાને મદદ કરતા હતા સામ-સામે બેસીને પોતાના હાથમાં રહેલો કોળીયો સામેવાળી વ્યક્તિના મુખમાં મુકતા હતા અને સામેવાળી વ્યક્તિના હાથમાં રહેલો કોળિયો પોતાના મુખમાં સ્વિકારતા હતા.
બાળકે ભગવાનની સામે જોઇને હસતા હસતા કહ્યુ, “પ્રભુ મને સ્વર્ગ અને નરક વચ્ચેનો તફાવત બરોબર સમજાઇ ગયો.”
સ્વર્ગ મેળવવા માટે મરવાની જરુર નથી. એકબીજાને મદદ કરવાની ભાવના હોય તો આ ધરતી પર જ સ્વર્ગની અનુભૂતિ થશે.
‘તારુ જે થવુ હોય તે થાય હું મારુ કરુ’ આવી વિચારસરણી જ્યાં છે તે નરક છે અને
‘મારુ જે થવુ હોય તે થાય પહેલા હું તારુ કરુ’ આવી ભાવના જ્યાં છે ત્યાં સ્વર્ગ છે….
एक प्रश्न जिसके उत्तर देने में ८ पीढ़ियाँ असफल रही – कक्षीवान एवं प्रियमेघ की कथा!!!!!!
पौराणिक काल में एक विद्वान ऋषि कक्षीवान हुए जो हर प्रकार के शास्त्र और वेद में निपुर्ण थे। एक बार वे ऋषि प्रियमेध से मिलने गए जो उनके सामान ही विद्वान और सभी शास्त्रों के ज्ञाता थे। दोनों सहपाठी भी थे और जब भी वे दोनों मिलते तो दोनों के बीच एक लम्बा शास्त्रार्थ होता था जिसमे कभी कक्षीवान तो कभी प्रियमेघ विजय होते थे।
उस दिन भी ऋषि कक्षीवान ने प्रियमेध से शास्त्रार्थ में एक प्रश्न पूछा कि ऐसी कौन सी चीज है जिसे यदि जलाये तो उस से ताप तो उत्पन्न हो किन्तु तनिक भी प्रकाश ना फैले?
प्रियमेध ने बहुत सोच-विचार किया परन्तु वे इस पहेली के उत्तर दे पाने असमर्थ रहे। उन्होंने उसका उत्तर बाद में देने की बात कही पर उत्तर ढूढ़ने के उधेड़बुन में उनकी जिंदगी बीत गयी। चाहे कैसा भी पदार्थ हो पर जलाने पर वो थोड़ा प्रकाश तो करता ही है।
जब प्रियमेध ऋषि का अंत समय नजदीक आया तो उन्होंने कक्षीवान ऋषि को संदेश भेजा की मैं आपकी पहेली का उत्तर ढूंढ पाने में असमर्थ रहा किन्तु मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे वंश में ऐसा विद्वान जरूर जन्म लेगा जो आपके इस प्रश्न का उत्तर दे पायेगा। किन्तु तुम मुझे वचन दो कि जब तक कोई मेरे कुल का विद्वान तुम्हारे प्रश्न का उत्तर ना दे दे, तुम इस पृथ्वी को छोड़ कर नहीं जाओगे।
ऐसा कहकर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। कक्षीवान को उनकी मृत्यु का बड़ा दुःख हुआ किन्तु उससे भी अधिक दुःख उन्हें इस बात का हुआ कि उनके प्रश्न के कारण प्रियमेघ ने असंतोष में प्राण त्यागे।
प्रियमेघ की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र ने इस प्रश्न के उत्तर का दायित्व लिया किन्तु वो भी वह इस प्रश्न का उत्तर ढूढ़ पाने में असमर्थ रहा और एक दिन उसकी भी मृत्यु हो गयी। इसी प्रकार एक के बाद एक प्रियमेघ की आठ पीढ़ियाँ कक्षीवान के उस प्रश्न के उत्तर को ढूढ़ने के प्रयास में काल के गाल में समा गयीं।
कक्षीवान अपने पहेली का हल पाने के लिए जिन्दा रहे। कक्षीवान को वरदान स्वरुप देवराज इंद्र से एक थैली मिली थी जो नेवले के चमड़े से बनी थी। उसमे चावल के दानें भरे थे और उन्हें वरदान था कि जब तक चावल के दानें समाप्त ना हो जाएँ, वे जीवित रहेंगे।
प्रत्येक वर्ष वे उसमे से एक दाना निकालकर फेक देते थे और अपने प्रश्न के उत्तर के लिए जिए जा रहे थे।
प्रियमेघ की नवीं पीढ़ी में साकमश्व नाम का बालक पैदा हुआ जो बचपन से ही बहुत विद्वान था। बालपन में ही उसने असंख्य शास्त्राथों में भाग लिया था और सदैव विजय रहा था। साकमश्व जब बड़ा हुआ तो उसे एक बात चुभने लगी की एक पहेली का उत्तर उसकी पूरी ८ पीढ़िया देने में असमर्थ रही हैं और ऋषि कक्षीवान अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए ही जीवित हैं।
उसने निश्चय किया की वह इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ कर अपने परिवार के कलंक को मिटाएगा और ऋषि कक्षीवान को इस जीवन चक्र से मुक्त करवाएगा। एक दिन वो इस प्रश्न के विषय में सोच रहा था कि उसे सामवेद का एक श्लोक याद आया और वो भाव-विभोर होकर उसे मधुर स्वर में गाने लगा। इसी के साथ ही उसे अपने प्रश्न का उत्तर भी मिल गया।
वह तुरंत कक्षीवान के आश्रम की ओर भागा और वहाँ पहुँच कर उन्हें प्रणाम किया। कक्षीवान उसे देखते ही जान गए की उन्हें आज उनके प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा। साकमश्व ने कहा कि हे गुरुदेव, जो मनुष्य ऋग्वेद की ऋचा के बाद सामवेद का साम का भी गायन करता हो वो गायन उस अग्नि के सामान होता है जिससे ताप भी उत्पन्न होता है और प्रकाश भी।
किन्तु जो मनुष्य केवल ऋग्वेद की ऋचा गाता है, सामवेद का साम नही, वह गायन साक्षात अग्नि के समान ही है किन्तु ये वो अग्नि है जिससे ताप तो उत्पन्न होता है किन्तु प्रकाश नहीं।
साकमश्व का उत्तर सुनकर कक्षीवान की आँखों से आँसू बहने लगे। उन्होंने भरे स्वर में कहा कि “हे पुत्र! तुम धन्य हो। मेरे द्वारा अनजाने में पूछे गए एक प्रश्न ने मेरे प्रिय मित्र प्रियमेघ को मुझसे छीन लिया। ये नहीं, उसकी अनेक पीढ़ियों को भी मैं अपने सामने काल के गाल में समाते देखता रहा।
किन्तु आज तुमने इस प्रश्न का उत्तर देकर ना केवल अपने पूर्वजों का कल्याण किया बल्कि मुझे भी इस जीवन रूपी चक्र से मुक्त कर दिया।” ऐसा कह कर उन्होंने साकमश्व को अपनी थैली दी और कहा कि वो बचे हुए चावल के दाने बिखरा दे ताकि वे परलोक गमन कर सकें।
उनकी आज्ञा पाकर साकमश्व ने सारे चावल के दानों को पृथ्वी पर फेंक दिया और फिर कक्षीवान ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।
अरुण शुक्ला