किस्मत वाली सासु माँ ******************
परिणिता जब छोटी थी अपने माता पिता के साथ ननिहाल जाती थी ।वहां उसके पिता दामाद वाला मुखोटा ओढ़े रहते थे ।सबसे बहुत कम बातचीत । नानी तो दामाद का घूंघट करती थीं लेकिन उसके पिता नानाजी और मामाजी से भी कम ही बात करते ।खुलकर हंसते तो उन्हें कभी देखा नहीं।शायद मुस्कुराहट भी एक अहसान थी।
समय के साथ परिणिता बड़ी हुई ।समय पर उसकी शादी हो गई। उसने पाया कि दामादगिरी में उसके पति ,पिता से दस कदम आगे थे ।उन्हें हरवक्त लगता , कोई भी उन्हें तवज्जो नहीं दे रहा। उन्हें शिकायत रहती ,आज तुम्हारे भाई ने मुझसे ढंग से बात नहीं की और भाभी तो बिना देखे निकल गई। खाना खाने का आग्रह करने पर ,एक कॉमन डायलॉग ,अभी मेरा समय नहीं हुआ है ।अंतहीन उलाहने चलते जिसे परिणिता हंस कर टाल देती।
परिणिता के लिए अब तीसरे दामाद के अनुभव की बारी थी। जी हां ! परिणिता की बेटी नेहा की शादी तय हो गई ।शादी के बाद पहली दामाद घर आए ।परिणिता ने आरती उतार कर उन्हें गृहप्रवेश करवाया लेकिन डरते हुए ! न जाने किस बात पर नाराज़ हो जाएं !
किन्तु आश्चर्य ! यहां ऐसा नहीं हुआ।घर मे सभी से ऐसे घुलमिल कर बातचीत जैसे सालों से जान -पहचान हो। यही नहीं अपने शहर में बेटी नेहा और दामाद जब भी शॉपिंग करते , दामाद अपने ससुराल वालों के लिए कुछ गिफ्ट जरूर लेते ।
और एकदिन एक अनहोनी हो गई । नेहा के पिता का अचानक हृदयाघात से देहांत हो गया।
उस दिन से वो दामाद ,दामाद न रहकर बेटा बन गया है। सारा घर ही नहीं ,सारा नगर जानता है ,परिणिता का दामाद उनका दामाद नही बेटा ….नहीं बेटे से कहीं ज्यादा है।
और परिणिता अपनी किस्मत पर रश्क करते हुए सोचती है ,मैं किस्मत वाली सासुमां !!!!! तीसरी पीढ़ी के दामाद का एकदम नया अनुभव ।अच्छा वाला !!!!
ज्योति अप्रतिम
।
Day: August 5, 2022
किशोर कुमार
किशोर कुमार से नफ़रत करने वाले नौशाद
एक दिन पहले किशोर दा की जन्मवार्षिकी थी। मैं किशोर दा पर पहले लिख चुका हूं। उनके अलग-अलग गानों पर भी भाव व्यक्त करता रहा हूं। वह लिखे जाने का अच्छा सा वैविध्यपूर्ण गायन-वितान छोड़ कर गए हैं। आज किशोर कुमार के लिए अलग विषय चुना है।हम में से अधिकांश संगीत प्रेमी इस सत्य से परिचित नहीं हैं कि नौशाद ने अपने जीवन में किशोर दा से कोई गाना नहीं गवाया था। 1975 की एक फिल्म में उन्होंने किशोर-आशा का एक युगल गीत रिकॉर्ड करवाया था। जिसे सिनेमा में शामिल नहीं किया गया। फिल्म के शो रील में गायक किशोर कुमार का नाम भी नहीं आता है। उसे कथित महान संगीतकार नौशाद ने प्रोड्यूसर को यह कह कर हटवा दिया था कि रिकार्ड ठीक नहीं हुआ।
नौशाद ने किशोर कुमार की यह उपेक्षा क्यों की? या एक गाना रिकॉर्ड कर उसे फिल्म से हटा देने तक का अतिवादी कार्य क्यों किया? इसलिए कि किशोर दा अक्षम गायक थे? इसलिए कि नौशाद की बनाई धुनों में किशोर के लिए स्पेस नहीं थी? नहीं! इसलिए कि नौशाद किशोर से बेइंतहा घृणा करते थे। इस घृणा का कारण बताना आवश्यक नहीं है। स्वत: स्पष्ट है। अपने प्रिय साहब के सामने उनके ही कद का दूसरा गायक उन्हें स्वीकार न था। ध्यान रहे, नौशाद ने मन्ना दा जैसे शास्त्रीय संगीत में सिद्ध गायक को भी बहुत कम अवसर दिए। कुछ गानों के लिए मन्ना दा को बुलाना उनकी विवशता थी।
किशोर कुमार के प्रति नौशाद की कुंठा के चरम का भी पता चलता है। १९८५ में मध्यप्रदेश सरकार ने संस्कृति सम्मान के लिए एक ज्यूरी गठित की। जिसमें प्रीतीश नंदी, महान गायक कुमार गंधर्व और नौशाद आदि शामिल थे। मंच से जैसे ही खंडवा के किशोर कुमार को चुने जाने का निर्णय हुआ। तमतमाए हुए नौशाद मियां मंच छोड़कर चले गए। यह बात प्रीतीश नंदी ने स्वयं लिखी है। जबकि कुमार गंधर्व जैसे महान गायक किशोर दा के नाम पर प्रसन्न थे। आप कल्पना कीजिए– कोई लब्धप्रतिष्ठ संगीतकार कितना नीचे गिर सकता है। उसमें इतना धैर्य, इतनी शिष्टता भी नहीं थी कि वह एक सरकारी सार्वजनिक फोरम की गरिमा का सम्मान करता।
नौशाद की इस कुंठा का एक ही उत्तर है मेरे पास। वह एक अत्यंत खराब मनुष्य थे। संकुचित और धर्मान्ध। एक दो वर्ष पहले भी मैंने इस पटल पर लिखा था कि जरा पता कीजिए–कथित महान नौशाद ने मन्ना दा जैसे समर्थ गायक को कितने मौके दिए। और मैं अपने इस प्राचीन मत पर आज तक कायम हूं कि नौशाद ने साहब के लिए जो भी चीखने चिल्लाने वाले महान गाने रचे थे, वो गाने परिशुद्ध सांगीतिक आभामंडल को नहीं रच पाते। एक सनसनी पैदा कर बुझ जाते हैं। सुर ना सजे में मन्ना दा गायन की जिस ऊंचाई को छूते हैं, वह साहब के लिए अलभ्य ही रही। हां, उन्होंने हाथ पांव खूब मारे। मैं इस सत्य से इन्कार नहीं करता कि उन्होंने कुछ गाने बहुत बढ़िया गाए हैं।
पुनः मूल विषय पर लौटता हूं। हिन्दी सिनेमा में यह भेदभाव या सूक्ष्म और खुला हिन्दू विरोध कोई नयी घटना नहीं है। नौशाद ने अपने झूठे व्यक्तित्व को कितने आवरण से छुपाए रखा। हालांकि नौशाद के द्वारा किशोर कुमार की उपेक्षा या किशोर-घृणा से किशोर दा के करियर पर कोई फर्क नहीं पड़ा। वह अपनी सारी सीमाओं के साथ एक विस्तृत हृदयभूमि पर विजय प्राप्त करते हैं। पुरुष गायकों में से कोई भी उतनी बड़ी हृदयभूमि का स्वामी नहीं है। किशोर की आवाज दौर और युग का संतरण करती है। उसमें बुढ़ापा नहीं है। वह उनके अंतिम वर्षों में कुछ बोझिल अवश्य हो जाती है किन्तु उसमें जैसा मेल हीरोइक गुणधर्म और कोमलता एक साथ है, वैसा किसी और गायक की आवाज में नहीं।
देवांशु झा
હાથીના દાંત..
***************
ચંદ્રકાન્ત.જે.સોની
(મોડાસા)
નિવૃત્ત થયા પછી, મહેશભાઈ, રેડકૉસની સેવાકીય પ્રવૃત્તિમાં જોડાયા. અને રેડક્રોસની એક કોન્ફરન્સ અર્થે એમને એક જાણીતી સંસ્થામાં જવાનું થયું. સવારથી સાંજ કોન્ફરન્સ હતી. બપોરે બે.કલાક જમવાની રીશેષ..
તે દિવસે એમને ઉપવાસ હોવાથી જમવાનું ન હતું. આ સંસ્થા અન્ય પ્રવૃત્તિઓ સાથે વૃદ્ધાશ્રમ પણ ચલાવે…સંસ્થાના કૅમ્પસ પર ત્રણ માળનું આલીશાન મકાન.. તેમાં વૃધ્ધાશ્રમ ચાલે… સમય હતો..તો એમને થયું કે “લાવ, લટાર તો મારૂ. ” .એમ વિચારી તેઓ વૃધ્ધાશ્રમ જોવા સંચાલકને વાત કરી નીકળી પડ્યા.
.દરેક રૂમમાં આલીશાન વ્યવસ્થા…અને તમામ સુખસુવિધા હતા ભૌતિક સાધનો….હતા . ટી.વી.,ફીઝ, એ.સી..ડી વી.ડી..આરામ ખૂરશીઓ..અને ડનલૉપના સુંવાળા પોચાપોચા ગાદલા…પલંગ..સોફા..બધું જ હતું
દરેક રૂમમાં કોઈને કોઈ વૃધ્ધ, પોતપોતાની પ્રવૃત્તિમાં વ્યસ્ત જણાયા.કોઈ પુસ્તક વાંચતા, તો કોઇ ટી.વી.જોતા.. કોઈ હાથમાં ગૌમુખી લઈ માળા ફેરવતા.
.મહેશભાઈ. ધીમા પગલે આ વડીલોનું નિરીક્ષણ કરતા કરતા જતા હતા.. ત્યાં એક રૂમ આગળ તેમના પગ જાણે કે થંભી ગયા..
. એક વૃધ્ધા પલંગ પર તકિયાને સહારે બારણા તરફ અનિમેષ આંખે તાકી રહ્યા હતા..
જાણે કે વર્ષોથી પોતાના કોઈ સ્વજનના આવવાની રાહ ના જોતા હોય!
મહેશભાઈ ત્યાં અટક્યા ઓરડો સર્વરીતે સાફસુફ ….હતો તમામ ભૌતિક સુખસગવડોથી સજ્જ…..પણ વૃધ્ધાની આંખોમાં ફક્ત ખાલીપો,..ખાલીપો..અને ખાલીપો…હતો.
.. મહેશભાઈને આ રૂમમાં જવાનું મન થયું. અગાઉથી પરમીશન તો હતી જ. અને રેડકૉસનુ કાર્ડ પણ હતું.. ઉપરાંત conferance શરૂ થવાની પણ હજુ વાર હતી .એમને.થયું, “લાવ, કો’કના સુખદુખ વહેચવા મળે તો લાભ લઉ”!. એવી ભાવના સાથે તેઓ આ રૂમમાં પ્રવેશ્યા
. .વૃધ્ધા ટીકીટીકીને એમની સામે જોઈ રહી. બે હાથ જોડી વંદન કરતા મહેશભાઈ એમનો પરિચય અને પ્રયોજન કહેતા તેમના પલંગ પાસેની ખુરશી પર બેઠા
વૃધ્ધા, થોડી વાર તેમને તાકી રહી..પછી મૌન તોડી બોલી,”રેડક્રોસમાં છો? સેવા કરો છો?” “ઘણું સારું”…
… આ વૃધ્ધાની વાત કરવાની ઢબ પરથી તે કોઈ સામાન્ય ઘરની મહિલા તો નહીં જ હોય ! અને પાછા “વેલ ઍજ્યુકેટેડ” હશે એમ એમણે મનોમન માની લીધું. તેમની સાથે વાત કરવાની શરૂઆત કયાંથી કરવી એમ તે વિચારતા હતા….., ત્યાં જ એમની નજર વૃધ્ધાના પલંગ પર પડેલા એક મૅગેઝીન પર પડી..
મેગેઝીન ઉઠાવી, અર્ધવાળેલુ પાનુ ખોલ્યું તો ,એમના જ પ્રિય લેખકના એક લેખ પર તેમનૅ નજર પડી..
વાંચતા વાંચતા તેમણે પાનુ વાળ્યુ હશે એમ માની, વાત કરવાની તક મહેશભાઈએ. ઝડપી લીધી…
” આ લેખ ખૂબ જ સરસ છે નહીં? હું પણ આજ લેખકના પુસ્તકો વાંચુ છું. ” મા ” પરના એમના લેખોની તો મેં આખી ફાઈલ તૈયાર કરી છે..” મા ” વિષે કેવું સુંદર અને હ્નદય સ્પર્શી તેમનુ લખાણ હોય છે?” મા “પરના તેમના વકતવ્યો પણ અનેક વખત મેં સાંભળ્યા છે.શ્રાતાઓની આંખો ભીની થઇ જાય એવી એમની ” મા ‘ પર રજૂઆત હોય છે…”મહેશભાઈ એકી શ્ર્વાસે બોલી ઉઠ્યા
તેઓ તેમની ધૂનમાં અને અડધા ઉત્સાહમાં બોલતા હતો….ત્યાં જ પેલી વૃધ્ધાએ પોતાના પલંગના ગાદલા નીચેથી આજ લેખકના લેખોની ફાઈલો કાઢી તેમના હાથમાં મૂકી દીધી. બધી ફાઈલોમા આ લેખકના ” મા “વિષેના લેખોનો સંગ્રહ હતો…
એમને આ વૃધ્ધા પ્રત્યે માન થયું. પોતાની એકલતા ટાળવા ન કેવળ ભૌતિક સાધનો, પણ વાચનનો શોખ ,પણ કેવો રૂડો સહારો હોય છે…એમ એમને લાગ્યુ..મહેશભાઈ પ્રભાવિત થયા તેમની પ્રશંસા કર્યા વિના ન રહી શકયા
.પણ તેઓ આ વૃધ્ધાની પ્રશંસા કરવામાં વ્યસ્ત હતો..ત્યાં જ વૃધ્ધાની આંખોમાંથી બોરબોર જેવડાં આંસુ ટપકી પડ્યાં..
.મહેશભાઈએ લાગણીસભર આ વૃધ્ધાના આંસુ લુછવા પ્રયત્ન કર્યો.. તો વૃધ્ધા એટલુ જ બોલ્યા:”ભાઈ ત્રણ ત્રણ વર્ષથી લેખન,વક્તવ્યો. અને નામના મેળવવામાં વ્યસ્ત મારા આ દિકરાને, હું જ યાદ નથી આવતી?”
ચંદ્રકાન્ત. જે. સોની
(મોડાસા)
મોબાઈલ 98259 50410
एक बार गुप्ता जी को कहीं दावत पर जाना था।
जमाना पुराना था , स्ट्रीट लाइट वगैरह तब ज्यादा नहीं हुआ करती थी।
उन्होंने सोचा कि आज तो बहुत देर रात तक शेरोशायरी , मौसिकी और शराब की महफ़िल जमेगी , इसलिए अंधेरे में घर लौटने में दिक्कत हो सकती है तो क्यूँ न घर से अपना लालटेन भी साथ लेकर चलें।
फिर जैसा कि उन्होंने सोचा था , महफ़िल वैसी ही देर रात तक चली।
गुप्ता जी जैसे तैसे नशे में टुन्न होकर घर लौटे । बेचारे दोपहर तक सोते रहे।
शाम को कल रात वाले मेजबान का फोन आया तो उन्होंने गुप्ता जी से कहा… ” जनाब, हमारे फोन से नींद में कोई खलल तो नहीं पड़ा ? “
गुप्ता जी :- जी नहीं साहब , कैसे याद किया ?
मेजबान :- कैसी रही दावत ? रात को अंधेरे में घर पहुंचने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई ?
गुप्ता जी : ” साहब , कैसा अंधेरा ?? लालटेन तो थी मेरे पास , औऱ रही बात दावत की तो माशाअल्लाह वो तो बहुत ही उम्दा थी । महफ़िल तो और भी बेहतरीन थी। “
मेजबान :” जी शुक्रिया ! वो मैं कह रहा था कि आपका इस तरफ यदि आना हुआ तो अपनी लालटेन लेते जाइयेगा …..और जो कल रात नशे में आप हमारे घर से तोते का पिंजरा उठा ले गए थे , वो लेते आइयेगा…।
#दुनिया_जिसे_कहते_है🌹
#मुल्ला_नसरुद्दीन एक शराबखाने में बैठा था। एक मित्र के साथ गपशप चल रही थी, पी रहे थे। मुल्ला नसरुद्दीन ने उस मित्र से पूछा कि बड़ी देर हो गई, आज घर नहीं जाना है? मित्र ने कहा, घर जाकर क्या करूं? घर है कौन? गैर शादी शुदा हूं। घर खाली और सूना है। मुल्ला नसरुद्दीन ने हाथ सिर से मार लिया; उसने कहा, हद्द हो गई! तुम इसलिए यहां बैठे हो?
हम इसलिए बैठे हैं कि घर पत्नी है। घर जाएं तो कैसे जाएं! जितनी देर कट जाए उतना अच्छा है।
कल मैं एक #गीत पढ़ रहा था:
#दुनिया जिसे कहते हैं,जादू का #खिलौना है।
मिल जाए तो मिट्टी है,खो जाए तो सोना है।
जो मिल जाता है, वही मिट्टी हो जाता है। जिस स्त्री के पीछे दीवाने थे, मिल गई और मिट्टी हो गई। जिस पुरुष के पीछे पागल थे, मिल गया और मिट्टी हो गया। मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है। न मिले…मजनू #सौभाग्यशाली था, लैला नहीं मिली, सोना बनी ही रही। इतने सौभाग्यशाली सभी मजनू नहीं होते। मजनुओं को लैला मिल जाती है। और तब गले में फांसी लग जाती है। मजनू कभी जाग ही न सका अपने स्वप्न से, क्योंकि लैला मिली ही नहीं। मिल जाती तब बच्चू को पता चलता ! तब फिर लैला लैला न करता।
कितनी बार तो सुख मिले! या तो खो गए और नहीं खो गए तो तुम्हारे हाथ में मिट्टी हो गए। और कितनी बार तो दुख मिले! या तो खो गए या धीरे धीरे तुम उनके आदी हो गए, वे तुम्हारी आदत बन गए। सुख और दुख के पार भी कुछ है, इसीलिए जीवन में अर्थ है, गरिमा है, महिमा है, परमात्मा है। सुख दुख के पार उठना है।
#ओशो🙏🌹♥️
अजहू चेत गवांर
मिना कुमारी
मीना कुमारी …. फिल्मो में ट्रेजेडी रोल करते करते खुद की जिन्दगी भी ट्रेजेडी बना ली …..
मीना कुमारी की नानी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के छोटे भाई की बेटी थी, जो जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही प्यारेलाल नामक युवक के साथ भाग गई थीं। विधवा हो जाने पर उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया। दो बेटे और एक बेटी को लेकर बम्बई आ गईं। नाचने-गाने की कला में माहिर थीं इसलिए बेटी प्रभावती के साथ पारसी थिएटर में भरती हो गईं।
प्रभावती की मुलाकात थिएटर के हारमोनियम वादक मास्टर अली बख्श से हुई। उन्होंने प्रभावती से निकाह कर उसे इकबाल बानो बना दिया। अली बख्श से इकबाल को तीन संतान हुईं। खुर्शीद, महजबीं बानों (मीना कुमारी) और तीसरी महलका (माधुरी)।
अली बख्श रंगीन मिजाज के व्यक्ति थे। घर की नौकरानी से नजरें चार हुईं और खुले आम रोमांस चलने लगा। और मीना कुमारी का बाप अपनी नौकरानी से भी निकाह कर लिया |
मीना कुमारी को कई लोगो से प्यार हुआ .. लेकिन सबने उन्हें इस्तेमाल करके उन्हें छोड़ दिया … धर्मेंद्र, सम्पूरन सिंह उर्फ़ गुलजार, महेश भट्ट, और शौहर कमाल अमरोही … सबने मीना कुमारी का खूब इस्तेमाल किया .. यहाँ तक की मीना कुमारी का बाप भी अपनी बेटी को सिर्फ पैसे कमाने की मशीन ही समझता था और पुरे परिवार का खर्चा मीना कुमारी से ही लेता था .. यहाँ तक की उनकी सभी बहने भी मीना कुमारी से हमेशा पैसे लेती रहती थी |
कमाल अमरोही मीना कुमारी से २७ साल बड़े थे | मीना कुमारी का पूना में एक्सीडेंट हुआ और वो अस्पताल में भर्ती थी ..कमाल अमरोही ने उनकी खूब सेवा की जिससे मीना कुमारी का दिल उस पर आ गया .. और दोनों ने निकाह कर लिया … मजे की बात ये की कमाल अमरोही की पहले से ही दो बेगमे थी ..एक उनके साथ मुंबई में और दूसरी उनके शहर यूपी के अमरोहा में रहती थी .और कमाल के आठ बच्चे थे | मीना कुमारी मुंबई की जिन्दगी से तंग आ गयी थी और कमाल अमरोही से बार बार कहती थी की कमाल तुम मुझे अपने गाँव अमरोहा ले चलो .मै वही रहना चाहती हूँ .. एक बार कमाल उन्हें साथ लेकर गये तो कमाल के घर वालो ने मीना कुमारी से बहुत दुर्व्यवहार किया और कहा कमाल तुमने तो किसी वेश्या से निकाह किया है |
बाद में उनका कमाल अमरोही से तलाक हो गया … फिर उन्होने कमाल से दुबारा निकाह किया …. इस्लामिक नियमो के अनुसार यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी को तलाक देता है तो वो दुबारा उस महिला से निकाह नही कर सकता ..पहले उस महिला को किसी अन्य पुरुष से निकाह करना होगा फिर वो पुरुष उसे तलाक देगा फिर वो महिला अपने पूर्व पति से दुबारा निकाह कर सकती है ..
मीना कुमारी ने जीनत अमान के पिता के साथ निकाह किया फिर उनसे तलाक लेकर कमाल अमरोही से दुबारा निकाह किया …लेकिन कमाल निकाह के बाद अपनी जिन्दगी में चला गया |
लेकिन बाद में उन्होंने अपने आपको शराब में डुबो लिया था .. वो हर वक्त शराब पीती रहती थी .. शराब ने उनके लीवर को खत्म कर दिया था और वो मानसिक रूप से एकदम टूट गयी थी ..उन्हें कैंसर हो गया और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा |
अस्पताल में ही उनकी मौत हो गयी .. और किसी ने भी उनके ईलाज पर १ रूपये भी नही खर्च किया ..
इसी सभ्य समाज में मशहूर फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी की लाश को लावारिश घोषित करने की नौबत आ गयी थी …उन्हें कैंसर हो गया था कई अंतिम समय में कई महीनों तक अस्पताल में रहना पड़ा था ..और उनकी अस्पताल में ही मौत हो गयी थी
मीना कुमारी के पति कमाल अमरोही ने अस्पताल में कहा की मैंने तो उन्हें तलाक दे दिया था … उसने सौतेले पुत्र ताजदार अमरोही ने कहा की मेरा उनसे कोई वास्ता नही है … उनके छोटी बहन के पति मशहूर कामेडियन महमूद ने कहा की मै क्यों ८०००० दूँ ?
और तो और जिस धर्मेन्द्र को फगवाडा से मुंबई बुलाकर स्टार बनाया वो भी बिल का नाम सुनते ही खिसक गया |
फिर जिस सम्पूरन सिंह कालरा को मीना कुमारी ने झेलम की गलियों से मुंबई बुलाकर “गुलज़ार” बनाया उस गुलज़ार ने कहा की मै तो कवि हूँ और कवि के पास इतना पैसा कहा …जबकि उसी गुलज़ार ने एक मुशायरे में जिसमे मीना कुमारी भी थी कहा था “ये तेरा अक्स है तो पड़ रहा है मेरे चेहरे पर ..वरना अंधेरो में कौन पहचानता मुझे “
हर टीवी चैनेल पर आकर मुस्लिम हितों पर बड़ी बड़ी बाते करने वाला महेश भट्ट बोला मै पैसे क्यों दूँ ?
. जिससे अस्पताल वालो को कहना पड़ा की अब हमे मीना कुमारी जी की लाश को लावारिश घोषित करके बीएमसी वालो को देना पडेगा … जब ये खबर अखबारों में छपी तबएक अनजान पारसी व्यक्ति अस्पताल आया और बिल चुकाकर मीना कुमारी के शव को सम्मान के साथ इस्लामिक विधि से कब्रिस्तान में दफन करवाया
अरुण शुक्ला