Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक बार की बात है स्वामी विवेकानंद विदेश यात्रा की तैयारी कर रहे थे। इससे ठीक पहले अलवर के महाराजा ने अपने बेटे के जन्मदिन पर उन्हें आमंत्रित किया। स्वामीजी अलवर गए। वहां कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। तभी उन्हें ख्याल आया कि मां शारदा से विदेश जाने की अनुमति तो ली ही नहीं। मां की अनुमति के बगैर यह काम कैसे होगा?
यह विचार आते ही विवेकानंद सारे काम छोड़कर तुरंत जयराम वाटी (बंगाल) पहुंचे। वहां मां शारदा सब्जी साफ कर रही थीं। स्वामीजी मां के पास आते हैं और कहते हैं, ‘मां विदेश जा रहा हूं। गुरुदेव का संदेश पूरी दुनिया में फैलाऊंगा।’
इस पर मां शारदा ने कहा, अच्छा जाओ, लेकिन वो वहां पड़ा चाकू मुझे दे जाओ। विवेकानंद चाकू उठाते हैं और धार वाला हिस्सा खुद पकड़ते हुए हत्थे वाला हिस्सा मां की ओर बढ़ाते हैं।
मां शारदा चाकू लेती हैं और कहती हैं, ‘नरेंद्र अब तू जरूर विदेशों में जा सकता है, क्योंकि तेरी सोच ऐसी है कि तू कठिनाइयां स्वयं झेलता है और दूसरों के भले की सोचता है तो तू परमहंस देव का संदेश दुनिया में फैलाने में सफल होगा।’ इसके बाद मां शारदा का आशीर्वाद लेकर विवेकानंद विदेश गये और भारते के ज्ञान को दुनिया में फैलाया

मुनिंद्राई मिश्रा

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पारसी धर्मगुरु रवि मेहर के तीन पुत्र थे। दुर्भाग्य से एक समय ऐसा आया कि वे तीनों एक दिन महामारी की चपेट में आ गए। अच्छी देखरेख व दवा के अभाव में वे जीवित न रह सके। मेहर उस समय किसी काम से बाहर गए हुए थे। शाम के समय जब वे घर लौटकर आए तो उन्हें बच्चे दिखाई नहीं दिए। उन्होंने सोचा, शायद सो गए होंगे। भोजन करते समय उन्होंने पत्नी से पूछा,’क्या बात है, आज बच्चे जल्दी क्यों सो गए?’
पत्नी ने उनकी इस बात का उत्तर दिए बिना उनसे कहा,’स्वामी! कल हमने पड़ोसी से जो बर्तन लिए थे, उन्हें मांगने के लिए पड़ोसी आ गए थे।’ मेहर ने कहा,’बर्तन उनके थे, इसीलिए वे लेने को आए थे। पराई वस्तु का मोह हम क्यों करें?’ पत्नी कहा,’आप बिलकुल ठीक कहते हैं। मैंने उन्हें वे बर्तन लौटा दिए।’भोजन के बाद संत को फिर अपने बच्चों की याद आ गई। उन्होंने पत्नी से उनके बारे में पूछताछ शुरू कर दी। तब पत्नी उन्हें भीतर के कमरे में लेकर गई।
वहां उसने चारपाई के नीचे रखे तीनों बच्चों के शव दिखा दिए। यह देखते ही संत फूट-फूटकर रोने लगे। तब पत्नी उनसे बोली,’स्वामी! आप अभी-अभी तो मुझसे कह रहे थे कि यदि कोई अपनी वस्तु वापस लेना चाहे, तो हमें वह वस्तु लौटा देनी चाहिए और उसके लिए दुःख भी नहीं करना चाहिए। लेकिन अब आप स्वयं ही यह भूले जा रहे हैं। बच्चे भगवान के यहां से आए थे, सो उन्होंने ले लिए। फिर हम उनके लिए क्यों बेवजह शोक करें?’ इन शब्दों से संत का चित्त कुछ हलका हो गया और वे भगवद्-भजन में लीन हो गए।

मुनिन्द्र मिश्रा

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…. किस्सा ए वजीफा….

एक शाम चार लड़के घूमते-घामते एक लम्बे-चौड़े चने के खेत में चने उखाड़ कर खा रहे थे.

इतने में खेत का रखवाला आ पहुँचा.

लड़कों को चना उखाड़ कर खाते देख उस रखवाले को गुस्सा तो बहुत आया…..
लेकिन, चार नौजवानों को इकट्ठा देख उसकी हिम्मत कुछ कहने की नहीं हुई.

इसीलिए, उसने चारों लड़कों से बारी बारी पूछा:-

👉रखवाला: आप का परिचय ?
पहला लड़का: मैं दुर्गेश सिंह का लड़का हूँ.
रखवाला: अच्छा-अच्छा दुर्गेश मालिक के लड़के हैं आप ?
और चना खाना हो तो… उखाड़ लीजिए.

👉दूसरे लड़के से: आप?
दूसरा लड़का: मैं पुजारी जी का लड़का हूँ.
रखवाला : ओहो..!
पंडित जी, अरे आप कहे होते तो मैं खुद चने दे देता.

👉तीसरे लड़के से: आप ?
तीसरा लड़का: मैं मोती साहू का लड़का हूँ.
रखवाला: अच्छा-अच्छा.
मोती साहू ?
कोई बात नहीं दो पेड़ चना खा लिया तो क्या हुआ.

👉चौथे से: आप का परिचय ?
चौथा लड़का: मैं नाऊ हूँ.
यह सुनते ही रखवाला बोला… “नाई कहीं का…

बाबू साहब, पण्डित जी या साहू समझता है क्या खुद को….
जो तुमने भी चना उखाड़ा ?

यह कह उसे पीटना शुरू कर दिया.

बाकी के तीनों लड़के खुश थे कि चलो हमें छोड़ दिया.

इधर नाई छूटते ही भागा.

अब वह साहू की तरफ घूमा और बोला… बनिया की जाति…!
तू क्या अपने को पण्डित या ठाकुर समझता है, और फिर उसे भी पिटाई कर भगा दिया..!

अब वह पण्डित जी की ओर घूमा और बोला… ओ भीखमंगन की जाति…
बाबू साहब तो मेरे मालिक हैं, वे चाहे जो करें…
तो ,क्या तुम भी चना उखाड़ेगा ?

इतना कह कर उसे भी पीटा और भगा दिया.

अब एक पेड़ चना उखाड़ा और बाबू साहब के लड़के को दिखाते हुए बोला….हरामी की औलाद..!
यह खेत तेरे बाप का है क्या जो तुम लफंगों को लेकर यहाँ आ गए ???

इतना कह के उसकी भी जमकर पिटाई कर दी.

इस तरह वे चारों पिटते रहे.. और, दूर खड़े हो कर एक दूसरे की पिटाई देखते रहे.

👉 👉 ये कहानी 2014 से पहले की है.

लेकिन, 2014 के बाद तख्त बदला.. ताज बदला और साथ ही परिस्थिति भी बदल गई…!

इस बार चना का झाड़ उखाड़कर खाने वाले 4 नहीं बल्कि 18 लोग थे और वे भी एक ही वर्ण के..
इसीलिए… यहाँ बाबू साहब और नाऊ वाली कहानी नहीं चलनी थी..!

ऊपर से मुसीबत ये कि… एक को भी छुओ तो सारे लोग हल्ला मचाने लगते थे पड़ते थे कि वर्ण खतरे में है.

इसीलिए… खेत के रखवाले ने एक युक्ति निकाली…!

उसने प्रचार करना शुरू कर दिया… “सबका खेत, सबका अनाज”.

उसने न सिर्फ ऐसा कहना शुरू कर दिया बल्कि सबके घर में वजीफा के तौर पर थोड़े थोड़े चने के झाड़ भिजवाने भी लगा.
उनके घर की लड़कियों के लिए भी न सिर्फ 1-2 भुट्टे भिजवाने लगा बल्कि उनकी शादी में आधा किलो आम भी देने का वादा किया.

साथ ही बताया कि… “तुम्हारे बिना तो हमारी कोई अस्तित्व ही नहीं है क्योंकि हम सबका DNA एक है”.

ये सब देख सुन कर खेत का मालिक मन ही मन कुढ़ रहा था एवं रखवाले को गालियां दे रहा था कि…. इसको साला पता ही नहीं है कि… ये लोग पक्के चोर है..
और, इनको कितना भी दे दो… चोरी करबे करेंगे.

साथ ही खेत मालिक को लग रहा था कि ये रखवाला.. अपनी इस दरिया दिली के चक्कर में कहीं खेत की सारी फसल न लुटा दे.

खैर… आखिर में रखवाले/चौकीदार की ही चली एवं वजीफा बदस्तूर जारी रहा.

हालांकि… खेत के मालिक से ज्यादा रखवाले/ चौकीदार को मालूम था कि ये कुत्ते के दुम हैं और इनको चाहे घर में कितना भी चने की झाड़ भिजवाओ..
ये सुधरने वाले हैं नहीं..!

इसीलिए… वो भी निश्चिन्त था… इनको रास्ते पर लाने का सबसे बेस्ट तरीका वजीफा ही है…
क्योंकि, वर्षों पुरानी आदत कहाँ छूटती है जो इनकी छूट जाएगी.

और, इनकी ये आदत तो जन्म से ही लगी हुई है.

समय बीतता गया और एक दिन चौकीदार की आशंका सच साबित हुई….
तथा, उनलोगों ने जाकर खेत से जबरदस्ती चने के कुछ झाड़ उखाड़ लाया.

हालांकि… झाड़ उखाड़ा कुछ लोगों ने ही था..
लेकिन, इसमें मौन सहमति लगभग सभी लोगों की थी.

चौकीदार ये सब होते हुए खुद अपनी आंखों से देखा कि सब मिलकर इस चोरी की घटना को अंजाम दे रहे हैं.

लेकिन, प्लान के अनुसार… रखवाले/चौकीदार ने दल-बल के साथ जाकर सिर्फ एक को पकड़ा..
जिसके हाथ में चने का झाड़ था.

और, चिल्ला चिल्ला कर सबको बोलने लगा कि… हम जानते हैं कि आपका वर्ण चोरी नहीं सिखाता है.
बल्कि, आपका वर्ण तो ईमानदारी का पाठ पढ़ाता है.

लेकिन, ऐसे ही भाऊ श्री वाले… आपके वर्ण को बदनाम करने में लगे हैं.
परन्तु हम ऐसा होने नहीं देंगे.

आपके वर्ण को बदनाम करने वाले को हम बख्शेंगे नहीं.

रखवाले/चौकीदार ने ऐसा बोलकर एक लड़के को टांग लिया और बाकी 17 लोग कुछ नहीं बोल पाए तथा मन ही मन अपने प्लान पर खुश होते रहे कि चौकीदार को सच्चाई का पता थोड़े न है कि हम सबलोग इसमें सम्मिलित थे.

और, चौकीदार भी अनजान बनने का नाटक करते हुए सबके सामने से उनके एक लौंडे को उठा लाया कि उस वर्ण को बदनाम कर रहा था.

इसके… दो-चार दिन के बाद… NIA की गाड़ी फिर उस मुहल्ले में पहुंच गई और दूसरे लौंडे को उठा लिया.

इस बार मुहल्ले में थोड़ी कुनमुनाहट हुई लेकिन फिर चौकीदार ने मोर्चा संभाला और चिल्ला चिल्ला कर बोलने लगा कि..
साला हमलोग… “एक हाथ में चना और एक हाथ में भुट्टा” का प्लान चला रहे हैं ताकि सब खुश रह सकें.

लेकिन… ऐसे लोग प्लान में पलीता लगाकर कोशिश कर रहे हैं कि हम वर्ण का विकास नहीं होने देंगे.

ऐसे लोगों को हम नहीं बख्शेंगे जो हमारे सेम DNA वाले भाई-बहन के विकास को अवरोधित करने का प्रयास करेंगे.

फिर… कुछ दिन बाद… तीसरे को टांग लिया गया कि… यही साला सबका मास्टर माइंड था जो ईमानदारी के वर्ण को बदनाम करने पर तुला था.
ऐसे ही लोग… पूरे वर्ण के बदनामी का कारण हैं.

आगे फिर… एक आदमी टांग लिया गया कि… ये साला उन सबका फाइनेन्सर था…
जो, चोरी की घटनाओं के लिए फाइनान्स कर रहा था.

एक तरफ हमारा “चुटिया आयोग” का रिपोर्ट बताता है कि आपके वर्ण के लोगों की हालत बुरी है जिसे हम सुधारने का प्रयास कर रहे हैं…
लेकिन, ऐसे फाइनेन्सर चाहते नहीं हैं कि आप अच्छे से चना और भुट्टा खा पाओ.

तदुपरांत एक और को धर लिया… कि, यही साला चोरी करने सिखाने का मॉड्यूल चलाता था.

इस तरह… धीरे धीरे 8-10 आदमी धर लिए गए और उनकी भरपूर सेवा की गई..

क्योंकि, वे उस ईमानदारी वाले वर्ण को बदनाम करने की कोशिश कर रहे थे(😂)..
और, सेम DNA होने के बावजूद भी चोरी में लिप्त थे.

अंततः… गांव के बाकी के लोगों ने घरवापसी में ही अपनी भलाई समझी..
और, जिन्हें घर वापसी पसंद नहीं थी वो गांव छोड़ कर दूर भाग गए.

इस तरह गांव में शांति स्थापित हो गई और फिर किसी ने ऐसी जुर्रत नहीं की.

इसीलिए… हर समय ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य वाला फॉर्मूला ही काम नहीं आता है..

बल्कि, कभी कभी में “तरीका ए वजीफा” भी बहुत काम की चीज साबित होती है.

जय महाकाल….!!!

कुमार सतीश

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चातुरवर्ण


काले द्रविड़…. गौरे आर्य

वर्षो से यह झूठ फैलाया जा रहा है कि आर्य विदेशी गौरे रंग के थे जबकि द्रविड़ (अनार्य) काले रंग के थे।

भारत में पहला उपग्रह बना. महान भारतीय गणितज्ञ के नाम पर इसका नामकरण किया गया आर्यभट्ट। तमिलनाडू के राजनेताओं ने यह कह कर विरोध किया कि आर्य भट्ट तो विदेशी ब्राह्मण था. उसके नाम को प्रयोग ना किया जाए।

लेख में दिए 2 चित्र 1725 AD के हैं जो जम्मू के संग्रहालय में हैं। बाएं चित्र में राजा बलि उनके गुरु शुक्राचार्य गौरे रंग के हैं। परन्तु भगवान वामन (पुराणों के अनुसार माता अदिति और ऋषि कश्यप के पुत्र) काले रंग के हैं।
वामपंथी इतिहासकार बलि को द्रविड़ बताते हैं इसलिए चित्रकार को उन्हें काला दिखाना चाहिए था। परन्तु सच यह है कि आर्य द्रविड़ का झूठ उत्तर और दक्षिण में मतभेद पैदा करने के लिए फैलाया गया।
दूसरे चित्र में हिरण्याक्ष और वाराह युद्ध का दृश्य है। पुराणों के अनुसार हिरण्याक्ष बलि का पूर्वज है अतः द्रविड़ है। परन्तु चित्र में हिरण्याक्ष को भी गौरा दिखाया गया है।
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कुछ दिन पहले MA की इतिहास की पुस्तक पढ़ रहा था। उसमे लिखा था प्राचीन भारत में जाति को वर्ण कहा जाता था। संस्कृत भाषा में वर्ण का अर्थ है रंग. अतः रंग के आधार पर उत्तर भारतीयों ने गौरे रंग वालों को ब्राह्मण/आर्य कहा। उत्तर भारत के काले रंग वाले व दक्षिण भारत के काले रंग वालों को भी शूद्र/दस्यु/द्रविड़ आदि नाम से कहा। यही बात UGC के इतिहास चैनल पर एक प्राध्यापिका बोल रही थी|
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रोमिला थापर ने भी अपनी पुस्तक ‘भारत का इतिहास’ में लिखा कि वर्ण व्यवस्था का मूल रंगभेद था। जाति के लिए प्रयुक्त होने वाले शब्द वर्ण का अर्थ ही रंग होता है।

सच्चाई इसके बिलकुल विपरीत है। सभी भाषाओं में अनेकार्थी शब्द होते हैं. वर्ण शब्द भी अनेकार्थी है. यहाँ वर्ण शब्द का अर्थ है चुनाव. गुण, कर्म और स्वभाव से वर्ण निश्चित होता था. जन्म से नहीं.

इस विषय में हमारे भ्रमित करने या संबंधित इतिहास का विकृतीकरण करने का कार्य मैकडानल ने विशेष रूप से किया। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘वैदिक रीडर’ में लिखा-ऋग्वेद की ऋचाओं से प्राप्त ऐतिहासिक सामग्री से पता चलता है कि ‘इण्डो आर्यन’ लोग सिंधु पार करके भी आदिवासियों के साथ युद्घ में संलग्न रहे। ऋग्वेद में उनकी इन विजयों का वर्णन है। वे अपनी तुलना में आदिवासियों को यज्ञविहीन, आस्थाहीन, काली चमड़ी वाले व दास रंग वाले और अपने आपको आर्य-गोरे रंग वाले कहते थे। मैकडानल का यही झूठ आज तक हमारे विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जा रहा है।
ग्रिफिथ ने ऋग्वेद (1/10/1) का अंग्रेजी में अनुवाद करते हुए की टिप्पणी में लिखा है-कालेरंग के आदिवासी, जिन्हेांने आर्यों का विरोध किया। ‘उन्होंने कृष्णवर्णों के दुर्गों को नष्ट किया। उन्होंने दस्युओं को आर्यों के सम्मुख झुकाया तथा आर्यों को उन्होंने भूमि दी। सप्तसिन्धु में वे दस्युओं के शस्त्रों को आर्यों के सम्मुख पराभूत करते हैं।”
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वैदिक वांग्मय और इतिहास के विशेषज्ञ स्वामी दयानंद सरस्वती जी का कथन इस विषय में मार्ग दर्शक है।
स्वामीजी के अनुसार किसी संस्कृत ग्रन्थ में वा इतिहास में नहीं लिखा कि आर्य लोग ईरान से आये और यहाँ के जंगलियों से लड़कर, जय पाकर, निकालकर इस देश के राजा हुए
(सन्दर्भ-सत्यार्थप्रकाश 8 सम्मुलास)
जो आर्य श्रेष्ठ और दस्यु दुष्ट मनुष्यों को कहते हैं वैसे ही मैं भी मानता हूँ, आर्यावर्त देश इस भूमि का नाम इसलिए है कि इसमें आदि सृष्टि से आर्य लोग निवास करते हैं इसकी अवधि उत्तर में हिमालय दक्षिण में विन्ध्याचल पश्चिम में अटक और पूर्व में ब्रहमपुत्र नदी है इन चारों के बीच में जितना प्रदेश है उसको आर्यावर्त कहते और जो इसमें सदा रहते हैं उनको आर्य कहते हैं। (सन्दर्भ-स्वमंतव्यामंतव्यप्रकाश-स्वामी दयानंद)।
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सर्वप्रथम तो हमें कुछ तथ्यों को समझने की आवश्यकता हैं:-
प्रथम तो ‘आर्य’ शब्द जातिसूचक नहीं अपितु गुणवाचक हैं अर्थात आर्य शब्द किसी विशेष जाति, समूह अथवा कबीले आदि का नाम नहीं हैं अपितु अपने आचरण, वाणी और कर्म में वैदिक सिद्धांतों का पालन करने वाले, शिष्ट, स्नेही, कभी पाप कार्य न करनेवाले, सत्य की उन्नति और प्रचार करनेवाले, आतंरिक और बाह्य शुचिता इत्यादि गुणों को सदैव धारण करनेवाले आर्य कहलाते हैं।

आर्य का प्रयोग वेदों में श्रेष्ठ व्यक्ति के लिए (ऋक १/१०३/३, ऋक १/१३०/८ ,ऋक १०/४९/३) विशेषण रूप में प्रयोग हुआ हैं।
अनार्य अथवा दस्यु किसे कहा गया हैं
अनार्य अथवा दस्यु के लिए ‘अयज्व’ विशेषण वेदों में (ऋग्वेद १|३३|४) आया है अर्थात् जो शुभ कर्मों और संकल्पों से रहित हो और ऐसा व्यक्ति पाप कर्म करने वाला अपराधी ही होता है। अतः यहां राजा को प्रजा की रक्षा के लिए ऐसे लोगों का वध करने के लिए कहा गया है। सायण ने इस में दस्यु का अर्थ चोर किया है।


यजुर्वेद ३०/ ५ में कहा हैं- तपसे शुद्रम अर्थात शुद्र वह हैं जो परिश्रमी, साहसी तथा तपस्वी हैं।
वेदों में अनेक मन्त्रों में शूद्रों के प्रति भी सदा ही प्रेम-प्रीति का व्यवहार करने और उन्हें अपना ही अंग समझने की बात कही गयी हैं और वेदों का ज्ञान ईश्वर द्वारा ब्राह्मण से लेकर शुद्र तक सभी के लिए बताया गया हैं।
यजुर्वेद २६.२ के अनुसार हे मनुष्यों! जैसे मैं परमात्मा सबका कल्याण करने वाली ऋग्वेद आदि रूप वाणी का सब जनों के लिए उपदेश कर रहा हूँ, जैसे मैं इस वाणी का ब्राह्मण और क्षत्रियों के लिए उपदेश कर रहा हूँ, शूद्रों और वैश्यों के लिए जैसे मैं इसका उपदेश कर रहा हूँ और जिन्हें तुम अपना आत्मीय समझते हो , उन सबके लिए इसका उपदेश कर रहा हूँ और जिसे ‘अरण’ अर्थात पराया समझते हो, उसके लिए भी मैं इसका उपदेश कर रहा हूँ, वैसे ही तुम भी आगे आगे सब लोगों के लिए इस वाणी के उपदेश का क्रम चलते रहो।
अथर्ववेद १९.६२.१ में प्रार्थना हैं की हे परमात्मा ! आप मुझे ब्राह्मण का, क्षत्रियों का, शूद्रों का और वैश्यों का प्यारा बना दें।
यजुर्वेद १८.४८ में प्रार्थना हैं की हे परमात्मन आप हमारी रुचि ब्राह्मणों के प्रति उत्पन्न कीजिये, क्षत्रियों के प्रति उत्पन्न कीजिये, विषयों के प्रति उत्पन्न कीजिये और शूद्रों के प्रति उत्पन्न कीजिये।
अथर्ववेद १९.३२.८ हे शत्रु विदारक परमेश्वर मुझको ब्राह्मण और क्षत्रिय के लिए, और वैश्य के लिए और शुद्र के लिए और जिसके लिए हम चाह सकते हैं और प्रत्येक विविध प्रकार देखने वाले पुरुष के लिए प्रिय कर।
इन सब तथ्यों को याद रखें और वामपंथी झूठ से बचें।

आर्य समाज