…. किस्सा ए वजीफा….
एक शाम चार लड़के घूमते-घामते एक लम्बे-चौड़े चने के खेत में चने उखाड़ कर खा रहे थे.
इतने में खेत का रखवाला आ पहुँचा.
लड़कों को चना उखाड़ कर खाते देख उस रखवाले को गुस्सा तो बहुत आया…..
लेकिन, चार नौजवानों को इकट्ठा देख उसकी हिम्मत कुछ कहने की नहीं हुई.
इसीलिए, उसने चारों लड़कों से बारी बारी पूछा:-
👉रखवाला: आप का परिचय ?
पहला लड़का: मैं दुर्गेश सिंह का लड़का हूँ.
रखवाला: अच्छा-अच्छा दुर्गेश मालिक के लड़के हैं आप ?
और चना खाना हो तो… उखाड़ लीजिए.
👉दूसरे लड़के से: आप?
दूसरा लड़का: मैं पुजारी जी का लड़का हूँ.
रखवाला : ओहो..!
पंडित जी, अरे आप कहे होते तो मैं खुद चने दे देता.
👉तीसरे लड़के से: आप ?
तीसरा लड़का: मैं मोती साहू का लड़का हूँ.
रखवाला: अच्छा-अच्छा.
मोती साहू ?
कोई बात नहीं दो पेड़ चना खा लिया तो क्या हुआ.
👉चौथे से: आप का परिचय ?
चौथा लड़का: मैं नाऊ हूँ.
यह सुनते ही रखवाला बोला… “नाई कहीं का…
बाबू साहब, पण्डित जी या साहू समझता है क्या खुद को….
जो तुमने भी चना उखाड़ा ?
यह कह उसे पीटना शुरू कर दिया.
बाकी के तीनों लड़के खुश थे कि चलो हमें छोड़ दिया.
इधर नाई छूटते ही भागा.
अब वह साहू की तरफ घूमा और बोला… बनिया की जाति…!
तू क्या अपने को पण्डित या ठाकुर समझता है, और फिर उसे भी पिटाई कर भगा दिया..!
अब वह पण्डित जी की ओर घूमा और बोला… ओ भीखमंगन की जाति…
बाबू साहब तो मेरे मालिक हैं, वे चाहे जो करें…
तो ,क्या तुम भी चना उखाड़ेगा ?
इतना कह कर उसे भी पीटा और भगा दिया.
अब एक पेड़ चना उखाड़ा और बाबू साहब के लड़के को दिखाते हुए बोला….हरामी की औलाद..!
यह खेत तेरे बाप का है क्या जो तुम लफंगों को लेकर यहाँ आ गए ???
इतना कह के उसकी भी जमकर पिटाई कर दी.
इस तरह वे चारों पिटते रहे.. और, दूर खड़े हो कर एक दूसरे की पिटाई देखते रहे.
👉 👉 ये कहानी 2014 से पहले की है.
लेकिन, 2014 के बाद तख्त बदला.. ताज बदला और साथ ही परिस्थिति भी बदल गई…!
इस बार चना का झाड़ उखाड़कर खाने वाले 4 नहीं बल्कि 18 लोग थे और वे भी एक ही वर्ण के..
इसीलिए… यहाँ बाबू साहब और नाऊ वाली कहानी नहीं चलनी थी..!
ऊपर से मुसीबत ये कि… एक को भी छुओ तो सारे लोग हल्ला मचाने लगते थे पड़ते थे कि वर्ण खतरे में है.
इसीलिए… खेत के रखवाले ने एक युक्ति निकाली…!
उसने प्रचार करना शुरू कर दिया… “सबका खेत, सबका अनाज”.
उसने न सिर्फ ऐसा कहना शुरू कर दिया बल्कि सबके घर में वजीफा के तौर पर थोड़े थोड़े चने के झाड़ भिजवाने भी लगा.
उनके घर की लड़कियों के लिए भी न सिर्फ 1-2 भुट्टे भिजवाने लगा बल्कि उनकी शादी में आधा किलो आम भी देने का वादा किया.
साथ ही बताया कि… “तुम्हारे बिना तो हमारी कोई अस्तित्व ही नहीं है क्योंकि हम सबका DNA एक है”.
ये सब देख सुन कर खेत का मालिक मन ही मन कुढ़ रहा था एवं रखवाले को गालियां दे रहा था कि…. इसको साला पता ही नहीं है कि… ये लोग पक्के चोर है..
और, इनको कितना भी दे दो… चोरी करबे करेंगे.
साथ ही खेत मालिक को लग रहा था कि ये रखवाला.. अपनी इस दरिया दिली के चक्कर में कहीं खेत की सारी फसल न लुटा दे.
खैर… आखिर में रखवाले/चौकीदार की ही चली एवं वजीफा बदस्तूर जारी रहा.
हालांकि… खेत के मालिक से ज्यादा रखवाले/ चौकीदार को मालूम था कि ये कुत्ते के दुम हैं और इनको चाहे घर में कितना भी चने की झाड़ भिजवाओ..
ये सुधरने वाले हैं नहीं..!
इसीलिए… वो भी निश्चिन्त था… इनको रास्ते पर लाने का सबसे बेस्ट तरीका वजीफा ही है…
क्योंकि, वर्षों पुरानी आदत कहाँ छूटती है जो इनकी छूट जाएगी.
और, इनकी ये आदत तो जन्म से ही लगी हुई है.
समय बीतता गया और एक दिन चौकीदार की आशंका सच साबित हुई….
तथा, उनलोगों ने जाकर खेत से जबरदस्ती चने के कुछ झाड़ उखाड़ लाया.
हालांकि… झाड़ उखाड़ा कुछ लोगों ने ही था..
लेकिन, इसमें मौन सहमति लगभग सभी लोगों की थी.
चौकीदार ये सब होते हुए खुद अपनी आंखों से देखा कि सब मिलकर इस चोरी की घटना को अंजाम दे रहे हैं.
लेकिन, प्लान के अनुसार… रखवाले/चौकीदार ने दल-बल के साथ जाकर सिर्फ एक को पकड़ा..
जिसके हाथ में चने का झाड़ था.
और, चिल्ला चिल्ला कर सबको बोलने लगा कि… हम जानते हैं कि आपका वर्ण चोरी नहीं सिखाता है.
बल्कि, आपका वर्ण तो ईमानदारी का पाठ पढ़ाता है.
लेकिन, ऐसे ही भाऊ श्री वाले… आपके वर्ण को बदनाम करने में लगे हैं.
परन्तु हम ऐसा होने नहीं देंगे.
आपके वर्ण को बदनाम करने वाले को हम बख्शेंगे नहीं.
रखवाले/चौकीदार ने ऐसा बोलकर एक लड़के को टांग लिया और बाकी 17 लोग कुछ नहीं बोल पाए तथा मन ही मन अपने प्लान पर खुश होते रहे कि चौकीदार को सच्चाई का पता थोड़े न है कि हम सबलोग इसमें सम्मिलित थे.
और, चौकीदार भी अनजान बनने का नाटक करते हुए सबके सामने से उनके एक लौंडे को उठा लाया कि उस वर्ण को बदनाम कर रहा था.
इसके… दो-चार दिन के बाद… NIA की गाड़ी फिर उस मुहल्ले में पहुंच गई और दूसरे लौंडे को उठा लिया.
इस बार मुहल्ले में थोड़ी कुनमुनाहट हुई लेकिन फिर चौकीदार ने मोर्चा संभाला और चिल्ला चिल्ला कर बोलने लगा कि..
साला हमलोग… “एक हाथ में चना और एक हाथ में भुट्टा” का प्लान चला रहे हैं ताकि सब खुश रह सकें.
लेकिन… ऐसे लोग प्लान में पलीता लगाकर कोशिश कर रहे हैं कि हम वर्ण का विकास नहीं होने देंगे.
ऐसे लोगों को हम नहीं बख्शेंगे जो हमारे सेम DNA वाले भाई-बहन के विकास को अवरोधित करने का प्रयास करेंगे.
फिर… कुछ दिन बाद… तीसरे को टांग लिया गया कि… यही साला सबका मास्टर माइंड था जो ईमानदारी के वर्ण को बदनाम करने पर तुला था.
ऐसे ही लोग… पूरे वर्ण के बदनामी का कारण हैं.
आगे फिर… एक आदमी टांग लिया गया कि… ये साला उन सबका फाइनेन्सर था…
जो, चोरी की घटनाओं के लिए फाइनान्स कर रहा था.
एक तरफ हमारा “चुटिया आयोग” का रिपोर्ट बताता है कि आपके वर्ण के लोगों की हालत बुरी है जिसे हम सुधारने का प्रयास कर रहे हैं…
लेकिन, ऐसे फाइनेन्सर चाहते नहीं हैं कि आप अच्छे से चना और भुट्टा खा पाओ.
तदुपरांत एक और को धर लिया… कि, यही साला चोरी करने सिखाने का मॉड्यूल चलाता था.
इस तरह… धीरे धीरे 8-10 आदमी धर लिए गए और उनकी भरपूर सेवा की गई..
क्योंकि, वे उस ईमानदारी वाले वर्ण को बदनाम करने की कोशिश कर रहे थे(😂)..
और, सेम DNA होने के बावजूद भी चोरी में लिप्त थे.
अंततः… गांव के बाकी के लोगों ने घरवापसी में ही अपनी भलाई समझी..
और, जिन्हें घर वापसी पसंद नहीं थी वो गांव छोड़ कर दूर भाग गए.
इस तरह गांव में शांति स्थापित हो गई और फिर किसी ने ऐसी जुर्रत नहीं की.
इसीलिए… हर समय ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य वाला फॉर्मूला ही काम नहीं आता है..
बल्कि, कभी कभी में “तरीका ए वजीफा” भी बहुत काम की चीज साबित होती है.
जय महाकाल….!!!
कुमार सतीश
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