Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

नाग पंचमी


नाग पंचमी की कथा । नाग पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं

एक समय में एक सेठ हुआ करते थे. उनके सात बेटे थे. सातों की शादी हो चुकी थी. सबसे छोटे बेटे की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, लेकिन उसका कोई भाई नहीं था. एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को चलने को कहा. इस पर बाकी सभी बहुएं उनके साथ चली गईं और डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगीं. तभी वहां एक नाग निकला. इससे ड़रकर बड़ी बहू ने उसे खुरपी से मारना शुरू कर दिया. इस पर छोटी बहू ने उसे रोका. इस पर बड़ी बहू ने सांप को छोड़ दिया. वह नाग पास ही में जा बैठा. छोटी बहू उसे यह कहकर चली गई कि हम अभी लौटते हैं तुम जाना मत. लेकिन वह काम में व्यस्त हो गई और नाग को कही अपनी बात को भूल गई.

अगले दिन उसे अपनी बात याद आई. वह भागी-भागी उस ओर गई, नाग वहीं बैठा था. छोटी बहू ने नाग को देखकर कहा- सर्प भैया नमस्कार! नाग ने कहा- ‘तूने भैया कहा तो तुझे माफ करता हूं, नहीं तो झूठ बोलने के अपराध में अभी डस लेता. छोटी बहू ने उससे माफी मांगी, तो सांप ने उसे अपनी बहन बना लिया.

कुछ दिन बाद वह सांप इंसानी रूप लेकर छोटी बहू के घर पहुंचा और बोला कि ‘मेरी बहन को भेज दो.’ सबने कहा कि ‘इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था. उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया.

रास्ते में नाग ने छोटी बहू को बताया कि वह वही नाग है और उसे ड़रने की जरूरत नहीं. जहां चला न जाए मेरी पूंछ पकड़ लेना. बहन ने भाई की बात मानी और वह जहां पहुंचे वह सांप का घर था, वहां धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई.

एक दिन भूलवश छोटी बहू ने नाग को ठंडे की जगह गर्म दूध दे दिया. इससे उसका मुंह जल गया. इस पर सांप की मां बहुत गुस्सा हुई. तब सांप को लगा कि बहन को घर भेज देना चाहिए. इस पर उसे सोना, चांदी और खूब सामान देकर घर भेज दिया गया.

सांप ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था. उसकी प्रशंसा खूब फैल गई और रानी ने भी सुनी. रानी ने राजा से उस हार की मांग की. राजा के मंत्रि‍यों ने छोटी बहू से हार लाकर रानी को दे दिया.

छोटी बहू ने मन ही मन अपने भाई को याद किया ओर कहा- भाई, रानी ने हार छीन लिया, तुम ऐसा करो कि जब रानी हार पहने तो वह सांप बन जाए और जब लौटा दे तो फिर से हीरे और मणियों का हो जाए. सांप ने वैसा ही किया.

रानी से हार वापस तो मिल गया, लेकिन बड़ी बहू ने उसके पति के कान भर दिए. पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर पूछा – यह धन तुझे कौन देता है? छोटी बहू ने सांप को याद किया और वह प्रकट हो गया. इसके बाद छोटी बहू के पति ने नाग देवता का सत्कार किया. उसी दिन से नागपंचमी पर स्त्रियां नाग को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं.

प्रकाश शर्मा

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बच्चो की लोरी


संस्कृत एक ऐसी भाषा है जिसको गाली देने वाले कभी उसे पढ़ते नहीं हैं,और स्वयं को तार्किक,चिंतक,बुद्धिजीवी कहते हैं,, ख़ैर आप लोग मार्कण्डेय पुराण में मदालसा के द्वारा अपने बच्चों को सुनाई गई लोरी सुनिए:–

शुद्धोसि बुद्धोसि निरंजनोऽसि,संसारमाया परिवर्जितोऽसि
संसारस्वप्नं त्यज मोहनिद्रामदालसोल्लपमुवाच पुत्रम्॥

पुत्र यह संसार परिवर्तनशील और स्वप्न के सामान है इसलिये
मॊहनिद्रा का त्याग कर क्योकि तू शुद्ध ,बुद्ध और निरंजन है।

शुद्धो sसिं रे तात न तेsस्ति नाम कृतं हि ते कल्पनयाधुनैव ।
पंचात्मकम देहमिदं न तेsस्ति नैवास्य त्वं रोदिषि कस्य हेतो: ॥

हे लाल! तू तो शुद्ध आत्मा है, तेरा कोई नाम नहीं है। यह कल्पित नाम तो तुझे अभी मिला है। वह शरीर भी पाँच भूतों का बना हुआ है। न यह तेरा है, न तू इसका है। फिर किसलिये रो रहा है?

न वा भवान् रोदिति वै स्वजन्मा शब्दोsयमासाद्य महीश सूनुम् ।
विकल्प्यमाना विविधा गुणास्ते-sगुणाश्च भौता: सकलेन्द्रियेषु ॥

अथवा तू नहीं रोता है, यह शब्द तो राजकुमार के पास पहुँचकर अपने आप ही प्रकट होता है। तेरी संपूर्ण इन्द्रियों में जो भाँति भाँति के गुण-अवगुणों की कल्पना होती है, वे भी पाञ्चभौतिक ही है?

भूतानि भूतै: परि दुर्बलानि वृद्धिम समायान्ति यथेह पुंस: ।
अन्नाम्बुदानादिभिरेव कस्य न तेsस्ति वृद्धिर्न च तेsस्ति हानि: ॥

जैसे इस जगत में अत्यंत दुर्बल भूत, अन्य भूतों के सहयोग से वृद्धि को प्राप्त होते है, उसी प्रकार अन्न और जल आदि भौतिक पदार्थों को देने से पुरुष के पाञ्चभौतिक शरीर की ही पुष्टि होती है । इससे तुझ शुद्ध आत्मा को न तो वृद्धि होती है और न हानि ही होती है।

त्वं कञ्चुके शीर्यमाणे निजेsस्मिं- स्तस्मिश्च देहे मूढ़तां मा व्रजेथा:
शुभाशुभै: कर्मभिर्दहमेत- न्मदादि मूढै: कंचुकस्ते पिनद्ध: ॥

तू अपने उस चोले तथा इस देहरुपि चोले के जीर्ण शीर्ण होने पर मोह न करना। शुभाशुभ कर्मो के अनुसार यह देह प्राप्त हुआ है। तेरा यह चोला मद आदि से बंधा हुआ है, तू तो सर्वथा इससे मुक्त है ।

तातेति किंचित् तनयेति किंचि- दम्बेती किंचिद्दवितेति किंचित्
ममेति किंचिन्न ममेति किंचित् त्वं भूतसंग बहु मानयेथा: ॥

कोई जीव पिता के रूप में प्रसिद्ध है, कोई पुत्र कहलाता है, किसी को माता और किसी को प्यारी स्त्री कहते है, कोई “यह मेरा है” कहकर अपनाया जाता है और कोई “मेरा नहीं है”, इस भाव से पराया माना जाता है। इस प्रकार ये भूतसमुदाय के ही नाना रूप है, ऐसा तुझे मानना चाहिये ।

दु:खानि दु:खापगमाय भोगान् सुखाय जानाति विमूढ़चेता: ।
तान्येव दु:खानि पुन: सुखानि जानाति व

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक, भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

पाँच सौ साल पुरानी बात है, भारत के दक्षिणी तट पर एक राजा के दरबार में एक यूरोपियन आया था। मई का महीना था, मौसम गर्म था पर उस व्यक्ति ने एक बड़ा सा कोर्ट-पतलून और सिर पर बड़ी सी टोपी डाल रखी थी।

उस व्यक्ति को देखकर जहाँ राजा और दरबारी हँस रहे थे, वहीं वह आगन्तुक व्यक्ति भी दरबारियों की वेशभूषा को देखकर हैरान हो रहा था।

स्वर्ण सिंहासन पर बैठे जमोरिन राजा के समक्ष हाथ जोड़े खड़ा वह व्यक्ति वास्कोडिगामा था जिसे हम भारत के खोजकर्ता के नाम से जानते हैं।

यह बात उस समय की है जब यूरोप वालों ने भारत का सिर्फ नाम भर सुन रखा था, पर हाँ…इतना जरूर जानते थे कि पूर्व दिशा में भारत एक ऐसा उन्नत देश है जहाँ से अरबी व्यापारी सामान खरीदते हैं और यूरोपियन्स को महँगे दामों पर बेचकर बड़ा मुनाफा कमाते हैं।

भारत के बारे में यूरोप के लोगों को बहुत कम जानकारी थी लेकिन यह “बहुत कम” जानकारी उन्हें चैन से सोने नहीं देती थी…और उसकी वजह ये थी कि वास्कोडिगामा के आने के दो सौ वर्ष पहले (तेरहवीं सदी) पहला यूरोपियन यहाँ आया था जिसका नाम मार्कोपोलो (इटली) था। यह व्यापारी शेष विश्व को जानने के लिए निकलने वाला पहला यूरोपियन था जो कुस्तुनतुनिया के जमीनी रास्ते से चलकर पहले मंगोलिया फिर चीन तक गया था।

ऐसा नहीं था कि मार्कोपोलो ने कोई नया रास्ता ढूँढा था बल्कि वह प्राचीन शिल्क रूट होकर ही चीन गया था जिस रूट से चीनी लोगों का व्यापार भारत सहित अरब एवं यूरोप तक फैला हुआ था। जैसा कि नाम से ज्ञात हो रहा है चीन के व्यापारी जिस मार्ग से होकर अपना अनोखा उत्पाद ” रेशम ” तमाम देशों तक पहुँचाया था उन मार्गों को ” रेशम मार्ग ” या शिल्क रूट कहते हैं।

(आज की तारीख में यह मार्ग विश्व की अमूल्य धरोहरों में शामिल है)।

तो मार्कोपोलो भारत भी आया था, कई राज्यों का भ्रमण करते हुए केरल भी गया था। यहाँ के राजाओं की शानो शौकत, सोना-चाँदी जड़ित सिंहासन, हीरों के आभूषण सहित खुशहाल प्रजा, उन्नत व्यापार आदि देखकर वापस अपने देश लौटा था। भारत के बारे में यूरोप को यह पहली पुख्ता जानकारी मिली थी।

इस बीच एक गड़बड़ हो गई, अरब देशों में पैदा हुआ इस्लाम तब तक इतना ताकतवर हो चुका था कि वह आसपास के देशों में अपना प्रभुत्व जमाता हुआ पूर्व में भारत तक पहुँच रहा था तो वहीं पश्चिम में यूरोप तक।
कुस्तुनतुनीया (वर्तमान टर्की )जो कभी ईसाई रोमन साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी, उसके पतन के बाद वहाँ मुस्लिमों का शासन हो गया….और इसी के साथ यूरोप के लोगों के लिए एशिया का प्रवेश का मार्ग बंद हो गया क्योंकि मुस्लिमों ने इसाईयों को एशिया में प्रवेश की इजाजत नहीं दी।

अब यूरोप के व्यापारियों में बेचैनी शुरू हुई, उनका लक्ष्य बन गया कि किसी तरह भारत तक पहुँचने का मार्ग ढूँढा जाए।

तो सबसे पहले क्रिस्टोफर कोलंबस निकले भारत को खोजने (1492 में) पर वे बेचारे रास्ता भटक कर अमेरिका पहुँच गए। परंतु उन्हें यकीन था कि यही इंडिया है और वहाँ के लोगों का रंग गेहुँआ – लाल देखकर उन्हें “रेड इंडियन” भी कह डाला। वे खुशी खुशी अपने देश लौटे, लोगों ने जब पूछा कि इंडिया के बारे में मार्कोपोलो बाबा की बातें सच है ना? तब उन्होंने कहा कि – अरे नहीं, कुछ नहीं है वहाँ ..सब जंगली हैं वहाँ।

अब लोगों को शक हुआ।

बात पुर्तगाल पहुँची, एक नौजवान और हिम्मती नाविक वास्कोडिगामा ने अब भारत को खोजने का बीड़ा उठाया। अपने बेड़े और कुछ साथियों को लेकर निकल पड़ा समुद्र में और आखिरकार कुछ महीनों बाद भारत के दक्षिणी तट कालीकट पर उसने कदम रखा।

इस बीच इटली के एक दूसरे नाविक के माइंड में एक बात कचोट रही थी कि आखिर कोलंबस पहुँचा कहाँ था , जिसने आकर ये कहा था कि इंडिया के लोग लाल और जंगली हैं ? उसकी बेचैनी जब बढ़ने लगी तो वह निकल पड़ा कोलंबस के बताये रास्ते पर! उसका नाम था अमेरिगो वेस्पुसी। जब वो वहाँ पहुँचा (1501ई.में) तो देखा कि ये तो वाकई एक नई दुनिया है, कोलंबस तो ठीक ही कह रहा था। पर इसने उसे इंडिया कहने की गलती नहीं की। वापस लौटकर जब इसने बताया कि वो इंडिया नहीं बल्कि एक “नई दुनिया” है तो यूरोपियन्स को दोहरी खुशी मिली। इंडिया के अलावे भी एक नई दुनिया मिल चुकी थी। लोग अमेरिगो वेस्पुसी की सराहना करने लगे, सम्मानित करने लगे, लगे हाथों उस ऩई दुनिया का नामकरण भी इन्हीं महाशय के नाम पर “अमेरिका” कर दिया गया।

यह बात कोलंबस तक पहुँची तो वह हैरान हुआ कि ढूँढा उसने और नाम हुआ दूसरे का, इंडिया कहने की गलती जो की थी उसने।

खैर, अब यूरोप के व्यापारियों के लिए भारत का दरवाजा खुल चुका था, नये समुद्री मार्ग की खोज हो चुकी थी जो यूरोप और भारत को जोड़ सकता था।

सिंहासन पर बैठे जमोरिन राजा से वास्कोडिगामा ने हाथ जोड़कर व्यापार की अनुमति माँगी, अनुमति मिली भी पर कुछ सालों बाद हालात बदल गए।

बहुत सारे पुर्तगाली व्यापारी आने लगे, इन्होंने अपनी ताकत बढ़ाई, साम दाम दंड की नीति अपनाते हुए राजा को कमजोर कर दिया गया और अन्ततः राजा का कत्ल भी इन्हीं पुर्तगालियों के द्वारा करवा दिया गया।

70 – 80 वर्षों तक पुर्तगालियों द्वारा लूटे जाने के बाद फ्रांसीसी आए। इन्होंने भी लगभग 80 वर्षों तक भारत को लूटा। इसके बाद डच (हालैंड वाले) आए श, उन्होंने भी खूब लूटा और सबसे अंत में अँगरेज आए पर ये लूट कर भागने के लिए नहीं बल्कि इन्होंने तो लूट का तरीका ही बदल डाला।

इन्होंने पहले तो भारत को गुलाम बनाया फिर तसल्ली से लूटते रहे। 20 मई 1498 को वास्कोडिगामा भारत की धरती पर पहला कदम रखा था और राजा के समक्ष अनुमति लेने के लिए हाथ जोड़े खड़ा था। उसके बाद उस लूटेरे और उनके साथियों ने भारत को जितना बर्बाद किया वो इतिहास बन गया।

आज जिसे हम भारत का खोजकर्ता कहते नहीं अघाते हैं, दरअसल वह एक लूटेरा था जिसने सिर्फ भारत को लूटा ही नहीं था बल्कि यहाँ रक्तपात भी बहुत l #JaiRajputana

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♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️


*👉 छुपी हुई शक्तियां* 🏵️
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एक बार देवताओं में चर्चा हो रहो थी, चर्चा का विषय था मनुष्य की हर मनोकामनाओं को पूरा करने वाली गुप्त चमत्कारी शक्तियों को कहाँ छुपाया जाये। सभी देवताओं में इस पर बहुत वाद- विवाद हुआ। एक देवता ने अपना मत रखा और कहा कि इसे हम एक जंगल की गुफा में रख देते हैं। दूसरे देवता ने उसे टोकते हुए कहा नहीं- नहीं हम इसे पर्वत की चोटी पर छिपा देंगे। उस देवता की बात ठीक पूरी भी नहीं हुई थी कि कोई कहने लगा , “न तो हम इसे कहीं गुफा में छिपाएंगे और न ही इसे पर्वत की चोटी पर हम इसे समुद्र की गहराइयों में छिपा देते हैं यही स्थान इसके लिए सबसे उपयुक्त रहेगा।”
सबकी राय खत्म हो जाने के बाद एक अन्य देवता ने कहा क्यों न हम मानव की चमत्कारिक शक्तियों को मानव -मन की गहराइयों में छिपा दें। चूँकि बचपन से ही उसका मन इधर -उधर दौड़ता रहता है, मनुष्य कभी कल्पना भी नहीं कर सकेगा कि ऐसी अदभुत और विलक्षण शक्तियां उसके भीतर छिपी हो सकती हैं । और वह इन्हें बाह्य जगत में खोजता रहेगा अतः इन बहुमूल्य शक्तियों को हम उसके मन की निचली तह में छिपा देंगे। बाकी सभी देवता भी इस प्रस्ताव पर सहमत हो गए। और ऐसा ही किया गया , मनुष्य के भीतर ही चमत्कारी शक्तियों का भण्डार छुपा दिया गया, इसलिए कहा जाता है मानव मवन में अद्भुत शक्तियां निहित हैं।

*💐💐शिक्षा💐💐*

दोस्तों इस कहानी का सार यह है कि मानव मन असीम ऊर्जा का कोष है। इंसान जो भी चाहे वो हासिल कर सकता है। मनुष्य के लिए कुछ भी असाध्य नहीं है। लेकिन बड़े दुःख की बात है उसे स्वयं ही विश्वास नहीं होता कि उसके भीतर इतनी शक्तियां विद्यमान हैं। अपने अंदर की शक्तियों को पहचानिये, उन्हें पर्वत, गुफा या समुद्र में मत ढूंढिए बल्कि अपने अंदर खोजिए और अपनी शक्तियों को निखारिए। हथेलियों से अपनी आँखों को ढंककर अंधकार होने का शिकायत मत कीजिये। आँखें खोलिए , अपने भीतर झांकिए और अपनी अपार शक्तियों का प्रयोग कर अपना हर एक सपना पूरा कर डालिये।


*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*

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