Posted in भारतीय उत्सव - Bhartiya Utsav

नाग पंचमी की व्रत कथा


#नाग_पंचमी_की_व्रत_कथा
🌹🙏🌹 #हर_हर_महादेव 🌹🙏🌹
प्राचीन काल में किसी नगर में एक सेठ जी रहा करते थे। उनके 7 पुत्र थे और सबका विवाह हो चुका था। सेठ जी के सबसे छोटे पुत्र की पत्नी काफी सुशील थी लेकिन उसका कोई भाई नहीं था।

एक दिन घर की बड़ी बहू ने सभी बहुओं को घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए कहा। जब मिट्टी लाने के लिए उन्होंने खुरपी से खुदाई शुरू की तो एक सांप वहां निकल आया। यह देखकर बड़ी बहू घबरा गई और खुरपी से उस सांप को मारने लगी।

इसे देखकर सबसे छोटी बहू ने कहा कि यह जीव तो निर्दोष है, आप कृप्या करके इसकी हत्या न करें।
छोटी बहू की बात सुनकर बड़ी बहू ने उस सांप को छोड़ दिया और छोटी बहू ने सर्प से एक जगह बैठकर उसका इंतज़ार करने के लिए कहा।

छोटी बहू इसके बाद घर के कामों में व्यस्त हो गई और सांप को बोली हुई बात भूल गई। अगले दिन जब उसे याद आया तो वह सांप के पास दूध लेकर गई और बोली, “मुझे माफ कर दो भैया, मुझसे भूल हो गई”। यह सुनकर सांप बोला कि “तूमने मुझे भैया बोला है, इसलिए मैं तुम्हे छोड़ रहा हूं, वरना झूठ बोलने के लिए अभी डस लेता”।

ऐसा कहकर सांप ने दूध पिया और बोला कि आज से तुम मेरी बहन हुई, तुम्हें जो चाहिए मांग लो। छोटी बहू बोली, “भैया मेरा कोई भाई नहीं है, आपने मुझे अपनी बहन बना लिया, यही मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार है, मुझे कुछ और नहीं चाहिए। बस मैं जब भी आपको मन से याद करूं, आप मेरे पास आ जाना”।

कुछ दिनों के बाद सावन का महीना आया और सेठ जी की सभी बहुएं अपने-अपने मायके जाने लगीं। जाने से पहले वह छोटी बहू से बोलीं कि तेरा तो कोई पीहर नहीं है, तू कहां जाएगी?

इस बात से छोटी बहू को बहुत दुख हुआ और रोते हुए उसने अपने सर्प भाई को याद किया। सर्पदेव ने अपने कहे अनुसार, मनुष्य का रूप धारण किया और उसके घर पहुंच गए। वहां पहुंचकर सर्प ने छोटी बहू के ससुराल वालों से आग्रह किया कि वे छोटी बहू को उसके साथ भेज दें। इस पर सेठ जी बोले, लेकिन इसका तो कोई भी भाई नहीं है, तुम कहां से आए हो?

इस पर सर्पदेव ने कहा कि मैं इसका दूर का भाई हूं और इसे घर ले जाने आया हूं। यह सुनकर घरवालों ने छोटी बहू को सर्पदेव के साथ भेज दिया।

रास्ते में सर्पदेव ने छोटी बहू को बताया कि वह उसे नागलोक ले जा रहा है, अगर उसे डर लगे तो वह उसकी पूंछ पकड़ ले। इस तरह वह दोनों नाग लोक पहुंच गए। नाग लोक में धन, ऐश्वर्य और रत्नों को देखकर छोटी बहू चकित रह गई।वहां सर्पदेव ने उसका परिचय अपनी माँ से करवाया और कहा, माँ इसने मेरी जान बचाई थी और मैंने इसे अपनी छोटी बहन माना है, यह हमारे साथ यहां कुछ दिनों तक रहेगी। यह जानकर सर्पदेव की माँ ने छोटी बहू का स्वागत सत्कार किया और छोटी बहू वहां आरामपूर्वक रहने लगी।

नागलोक में शेषनाग के छोटे-छोटे बच्चे भी रहते थे, जिन्हें सर्प की माँ रोज़ दूध पिलाया करती थीं। वह पहले दूध को ठंडा करती थीं और फिर घंटी बजाकर उन नन्हें-नन्हें सापों को दूध पीने के लिए बुलाती थीं।

एक दिन छोटी बहू ने माँ से कहा कि वो उन छोटे सांपों को दूध पिला देगी। उसने एक पात्र में दूध डाला और जल्दबाज़ी में दूध के ठंडा होने से पहले ही घंटी बजा दी, घंटी की आवाज़ सुनते ही छोटे सांप दूध पीने आ गए और गरम दूध पीने से उनके फन जल गए। इस पर वह क्रोधित हो गए और बोले हम इसे डसेंगे, यह सुनकर छोटी बहू ने उनसे माफी मांगी और सर्पदेव की माँ ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया।

इसके पश्चात् जब छोटी बहू का वहां रहने का समय पूरा हो गया तो सर्पदेव और उसकी माँ ने उसे बहुत सारा धन, दौलत, रत्न और आभूषण देकर विदा कर दिया।

जब इतना सारा धन लेकर वह अपने ससुराल पहुंची तो उसकी जेठानियों को जलन होने लगी। बड़ी बहू ने उससे कहा कि तुम्हारे भाई ने इतना कुछ दिया तो साथ में सोने का झाड़ू भी देता।

यह सुनकर सर्पदेव वहां मनुष्य के रूप में आए और अपनी बहन को सोने की झाड़ू भी दे दी। साथ में उसने अपनी बहन को मणि और हीरों से सुसज्जित एक बेहद खूबसूरत हार भी उपहार में दिया। वह हार इतना अनोखा और खूबसूरत था कि उसकी चर्चा पूरे गांव में होने लगी।

धीरे-धीरे यह बात राजा के महल में रानी तक पहुंच गई। रानी ने राजा से उस हार को मंगवाने के लिए कहा। राजा ने अपने सिपाही भेजकर वह हार मंगवा लिया। सेठ जी भी राजा के आदेश के समाने कुछ नहीं बोल पाए और इससे छोटी बहू को बहुत दुख हुआ। दुखी मन से उसने अपने भाई सर्पदेव को याद किया और उन्होंने वहां आकर यह आश्वासन दिया कि राजा स्वयं उसे वह हार लौटाएंगे।वहीं दूसरी ओर, जैसे ही रानी ने वह हार पहना, वह सांप में बदल गया। रानी ने डरकर उसे उताकर फेंक दिया। यह देखकर राजा ने छोटी बहू और सेठ जी को दरबार में बुलाया और पूछा कि तुमने इस हार पर क्या काला जादू किया है। छोटी बहू बोली, “हे राजन, यह एक विशेष प्रकार का हार है और यह मुझे मेरे भाई सर्पदेव ने दिया है।”

इतनी देर में सर्पदेव वहां खुद प्रकट हुए और बोले कि मैंने इसे अपनी बहन माना है और यह हार मैंने इसे उपहार में दिया है। यह देखकर सभी लोगों ने नाग देवता को प्रणाम किया। ऐसा माना जाता है कि उस दिन पंचमी तिथी थी, इसलिए तब से नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है और नाग देवता को भाई के रूप में पूजा जाता है।

श्रावण

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नाग पंचमी की व्रत कथा


#नाग_पंचमी_की_व्रत_कथा
🌹🙏🌹 #हर_हर_महादेव 🌹🙏🌹
प्राचीन काल में किसी नगर में एक सेठ जी रहा करते थे। उनके 7 पुत्र थे और सबका विवाह हो चुका था। सेठ जी के सबसे छोटे पुत्र की पत्नी काफी सुशील थी लेकिन उसका कोई भाई नहीं था।

एक दिन घर की बड़ी बहू ने सभी बहुओं को घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए कहा। जब मिट्टी लाने के लिए उन्होंने खुरपी से खुदाई शुरू की तो एक सांप वहां निकल आया। यह देखकर बड़ी बहू घबरा गई और खुरपी से उस सांप को मारने लगी।

इसे देखकर सबसे छोटी बहू ने कहा कि यह जीव तो निर्दोष है, आप कृप्या करके इसकी हत्या न करें।
छोटी बहू की बात सुनकर बड़ी बहू ने उस सांप को छोड़ दिया और छोटी बहू ने सर्प से एक जगह बैठकर उसका इंतज़ार करने के लिए कहा।

छोटी बहू इसके बाद घर के कामों में व्यस्त हो गई और सांप को बोली हुई बात भूल गई। अगले दिन जब उसे याद आया तो वह सांप के पास दूध लेकर गई और बोली, “मुझे माफ कर दो भैया, मुझसे भूल हो गई”। यह सुनकर सांप बोला कि “तूमने मुझे भैया बोला है, इसलिए मैं तुम्हे छोड़ रहा हूं, वरना झूठ बोलने के लिए अभी डस लेता”।

ऐसा कहकर सांप ने दूध पिया और बोला कि आज से तुम मेरी बहन हुई, तुम्हें जो चाहिए मांग लो। छोटी बहू बोली, “भैया मेरा कोई भाई नहीं है, आपने मुझे अपनी बहन बना लिया, यही मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार है, मुझे कुछ और नहीं चाहिए। बस मैं जब भी आपको मन से याद करूं, आप मेरे पास आ जाना”।

कुछ दिनों के बाद सावन का महीना आया और सेठ जी की सभी बहुएं अपने-अपने मायके जाने लगीं। जाने से पहले वह छोटी बहू से बोलीं कि तेरा तो कोई पीहर नहीं है, तू कहां जाएगी?

इस बात से छोटी बहू को बहुत दुख हुआ और रोते हुए उसने अपने सर्प भाई को याद किया। सर्पदेव ने अपने कहे अनुसार, मनुष्य का रूप धारण किया और उसके घर पहुंच गए। वहां पहुंचकर सर्प ने छोटी बहू के ससुराल वालों से आग्रह किया कि वे छोटी बहू को उसके साथ भेज दें। इस पर सेठ जी बोले, लेकिन इसका तो कोई भी भाई नहीं है, तुम कहां से आए हो?

इस पर सर्पदेव ने कहा कि मैं इसका दूर का भाई हूं और इसे घर ले जाने आया हूं। यह सुनकर घरवालों ने छोटी बहू को सर्पदेव के साथ भेज दिया।

रास्ते में सर्पदेव ने छोटी बहू को बताया कि वह उसे नागलोक ले जा रहा है, अगर उसे डर लगे तो वह उसकी पूंछ पकड़ ले। इस तरह वह दोनों नाग लोक पहुंच गए। नाग लोक में धन, ऐश्वर्य और रत्नों को देखकर छोटी बहू चकित रह गई।वहां सर्पदेव ने उसका परिचय अपनी माँ से करवाया और कहा, माँ इसने मेरी जान बचाई थी और मैंने इसे अपनी छोटी बहन माना है, यह हमारे साथ यहां कुछ दिनों तक रहेगी। यह जानकर सर्पदेव की माँ ने छोटी बहू का स्वागत सत्कार किया और छोटी बहू वहां आरामपूर्वक रहने लगी।

नागलोक में शेषनाग के छोटे-छोटे बच्चे भी रहते थे, जिन्हें सर्प की माँ रोज़ दूध पिलाया करती थीं। वह पहले दूध को ठंडा करती थीं और फिर घंटी बजाकर उन नन्हें-नन्हें सापों को दूध पीने के लिए बुलाती थीं।

एक दिन छोटी बहू ने माँ से कहा कि वो उन छोटे सांपों को दूध पिला देगी। उसने एक पात्र में दूध डाला और जल्दबाज़ी में दूध के ठंडा होने से पहले ही घंटी बजा दी, घंटी की आवाज़ सुनते ही छोटे सांप दूध पीने आ गए और गरम दूध पीने से उनके फन जल गए। इस पर वह क्रोधित हो गए और बोले हम इसे डसेंगे, यह सुनकर छोटी बहू ने उनसे माफी मांगी और सर्पदेव की माँ ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया।

इसके पश्चात् जब छोटी बहू का वहां रहने का समय पूरा हो गया तो सर्पदेव और उसकी माँ ने उसे बहुत सारा धन, दौलत, रत्न और आभूषण देकर विदा कर दिया।

जब इतना सारा धन लेकर वह अपने ससुराल पहुंची तो उसकी जेठानियों को जलन होने लगी। बड़ी बहू ने उससे कहा कि तुम्हारे भाई ने इतना कुछ दिया तो साथ में सोने का झाड़ू भी देता।

यह सुनकर सर्पदेव वहां मनुष्य के रूप में आए और अपनी बहन को सोने की झाड़ू भी दे दी। साथ में उसने अपनी बहन को मणि और हीरों से सुसज्जित एक बेहद खूबसूरत हार भी उपहार में दिया। वह हार इतना अनोखा और खूबसूरत था कि उसकी चर्चा पूरे गांव में होने लगी।

धीरे-धीरे यह बात राजा के महल में रानी तक पहुंच गई। रानी ने राजा से उस हार को मंगवाने के लिए कहा। राजा ने अपने सिपाही भेजकर वह हार मंगवा लिया। सेठ जी भी राजा के आदेश के समाने कुछ नहीं बोल पाए और इससे छोटी बहू को बहुत दुख हुआ। दुखी मन से उसने अपने भाई सर्पदेव को याद किया और उन्होंने वहां आकर यह आश्वासन दिया कि राजा स्वयं उसे वह हार लौटाएंगे।वहीं दूसरी ओर, जैसे ही रानी ने वह हार पहना, वह सांप में बदल गया। रानी ने डरकर उसे उताकर फेंक दिया। यह देखकर राजा ने छोटी बहू और सेठ जी को दरबार में बुलाया और पूछा कि तुमने इस हार पर क्या काला जादू किया है। छोटी बहू बोली, “हे राजन, यह एक विशेष प्रकार का हार है और यह मुझे मेरे भाई सर्पदेव ने दिया है।”

इतनी देर में सर्पदेव वहां खुद प्रकट हुए और बोले कि मैंने इसे अपनी बहन माना है और यह हार मैंने इसे उपहार में दिया है। यह देखकर सभी लोगों ने नाग देवता को प्रणाम किया। ऐसा माना जाता है कि उस दिन पंचमी तिथी थी, इसलिए तब से नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है और नाग देवता को भाई के रूप में पूजा जाता है।

श्रावण

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

बालतरू


एक बादशाह बड़ा ही न्यायप्रिय था। वह अपनी प्रजा के दुख-दर्द में शामिल होने की हरसंभव कोशिश करता था। प्रजा भी उसका बहुत आदर करती थी। एक दिन वह जंगल में शिकार के लिए जा रहा था। रास्ते में उसने एक वृद्ध को एक छोटा सा पौधा लगाते देखा।
बादशाह ने उसके पास जाकर कहा- यह आप किस चीज का पौधा लगा रहे हैं? वृद्ध ने धीमे स्वर में कहा- अखरोट का। बादशाह ने हिसाब लगाया कि उसके बड़े होने और उस पर फल आने में कितना समय लगेगा। हिसाब लगाकर उसने अचरज से वृद्ध की ओर देखा। फिर बोला- सुनो भाई, इस पौधे के बड़े होने और उस पर फल आने में कई साल लग जाएंगे, तब तक तुम तो रहोगे नहीं। वृद्ध ने बादशाह की ओर देखा। बादशाह की आंखों में मायूसी थी। उसे लग रहा था कि वृद्ध ऐसा काम कर रहा है, जिसका फल उसे नहीं मिलेगा। वृद्ध राजा के मन के विचार को ताड़ गया।
उसने बादशाह से कहा- आप सोच रहे होंगे कि मैं पागलपन का काम कर रहा हूं। जिस चीज से आदमी को फायदा नहीं पहुंचता, उस पर कौन मेहनत करता है, लेकिन यह भी सोचिए कि इस बूढ़े ने दूसरों की मेहनत का कितना फायदा उठाया है? दूसरों के लगाए पेड़ों के कितने फल अपनी जिंदगी में खाएं हैं। क्या उस कर्ज को उतारने के लिए मुझे कुछ नहीं करना चाहिए? क्या मुझे इस भावना से पेड़ नहीं लगाने चाहिए कि उनसे फल दूसरे लोग खा सकें? बूढ़े की यह बात सुनकर बादशाह ने निश्चय किया कि वह प्रतिदिन एक पौधा लगाया करेगा।

मुनिन्द्र मिश्रा

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक बार कॉलेज में Biology (जीव विज्ञान) क्लास चल रही थी.

उसमें प्रोफेसर साहब सभी को तितली अर्थात Butterfly के जीवन चक्र के बारे में बता रहे थे.

तदुपरांत… प्रोफेसर साहब अपने सभी विद्यार्थी को लैब ले गए जहाँ एक तितली का अंडा (प्यूपा) अपने अंतिम चरण में था और उसमें से एक नई तितली का जन्म होने ही वाला था.

सभी विद्यार्थी सांस रोके खड़े थे और उस अनमोल क्षण को देखने को बेताब थे… जब तितली का बच्चा उस अंडे से बाहर आएगा.

तभी… उस अंडे में थोड़ी सी हलचल हुई और अंडे में एक हल्की दरार आ गई.

उसे देखकर… सभी विद्यार्थियों ने खुशी से किलकारी भरी और सबने उस अंडे पर नजरें गड़ा दी.

तभी… अंडा थोड़ा सा टूटा और तितली का बच्चा छटपटाते हुए उससे बाहर आने का प्रयास करने लगा.

लेकिन, चूंकि वो जन्म का समय था और तितली का वो बच्चा बेहद कमजोर था…
शायद, इसीलिए वो अंडे के उस खोल एक झटके में नहीं तोड़ पा रहा था.

इसीलिए, वो लगातार छटपटाए जा रहा था.. जिससे कि अंडे के खोल में काफी हल्की दरार ही आ पा रही थी.

इसे देखकर… कुछ विद्यार्थी इमोशनल हो गए और उन्होंने प्रोफेसर से कहा कि… कृपया इस अंडे के खोल को तोड़ दें जिससे कि वो तितली का बच्चा आसानी से बाहर सके..
अभी वो बेचारा खोल नहीं तोड़ पाने के कारण बहुत छटपटा रहा है.

लेकिन, प्रोफेसर साहब ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया और चुपचाप खड़े होकर देखने के लिए कहा..

और, सभी स्टूडेंट फिर से चुपचाप देखने लगे.

तभी संयोग से प्रोफेसर साहब को प्रिंसिपल का अर्जेन्ट बुलावा आया गया और प्रोफेसर साहब सबको चुपचाप देखने और कोई छेड़छाड़ न करने की ताकीद कर के चले गए.

इधर… तितली के नवजात बच्चे का छटपटाना उसी प्रकार जारी था..

ध्यान से देखने पर मालूम चल रहा था कि… तितली के उस नवजात बच्चे में कुछ लिक्विड जैसा कुछ लगा हुआ था… जिस कारण उसके पंख वगैरह आपस में चिपके हुए थे और वो अंडे के खोल को एक झटके में नहीं तोड़ पा रहा था..
बल्कि, कई बार के छटपटाहट के बाद वो खोल के दरार को थोड़ा बढ़ा ही पा रहा था.

ये सब देखकर… एक विद्यार्थी से नहीं रहा गया और उसने आगे बढ़कर पेंसिल के नोक से अंडे को तोड़ दिया.
अंडे के टूटते ही तितली का वो नवजात बच्चा बाहर आ गया..

लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से बाहर आने के बाद वो तितली का नवजात बच्चा… कुछ देर छटपटाता रहा और फिर मर गया.

इतनी देर में प्रोफेसर साहब भी लौट कर लैब में आ गए.

जब उन्होंने तितली के उस बच्चे को मरा हुआ पाया तो उन्होंने विद्यार्थियों से पूछा कि… क्या किसी ने कोई छेड़छाड़ की थी यहाँ ???

तो, उस विद्यार्थी ने उदास भाव से बताया कि… उससे तितली के बच्चे का उस तरह छटपटाना नहीं देखा गया इसीलिए उसने पेंसिल के नोक से अंडे को तोड़ दिया था ताकि बच्चा आसानी से बाहर आ सके.

इस पर प्रोफेसर ने उसे बताया कि… तितली का ये नवजात बच्चा इसीलिए मर गया क्योंकि, तितली के उस बच्चे के स्थान पर तुमने उस अंडे को तोड़ दिया.

क्योंकि, असल में… होता ये है कि… जन्म के समय तितली के बच्चे में एक लिक्विड (प्लेजेंटा/पानी जैसा एक लसलसा पदार्थ) लगा रहता जो उस बच्चे के छटपटाने से हटता जाता है…
और, इससे.. उसके पंख एवं आंख-नाक आदि खुलते जाते हैं.

इसीलिए, जब वो खुद छटपटा कर अपना खोल तोड़ता है तो बाहर आने तक उसके हर अंग फ्री हो चुके होते हैं..
और, वो उड़ पाता है…
तथा, सांस ले पाता है.

लेकिन, चूंकि तुमने… अपने पेंसिल के नोक से खोल को तोड़ दिया इसीलिए उसे बाहर आने के लिए छटपटाना नहीं पड़ा…
और, इस कारण उसके अंग फ्री नहीं पाए… जिससे न तो वो सांस ले पाया और न ही उड़ पाया..
इस तरह अंततः…. वो मर गया.

असल में यही वो सत्य है जिसे लोग समझना नहीं चाह रहे हैं…
जबकि… हिनूओं को छोड़कर बाकी सारी दुनिया इसे अच्छी तरह समझ रही है.

आज देश हिनू समुदाय भी अपने खोल से बाहर आने के लिए उसी तितली के बच्चे की तरह छटपटा रहा है…
और, प्रोफेसर की भूमिका में मोई उसे छटपटाता हुआ देख रहे हैं.

हिनू रूपी तितली छटपटाते हुए… बहुत आशा भरी नजरों से मोई को देख रहा है कि वो आगे बढ़कर उसके खोल को तोड़ दे..
ताकि, वो आसानी से बाहर आ सके.

लेकिन, प्रोफेसर मोई को ये अच्छी तरह मालूम है कि… अगर उसने आगे बढ़कर इस खोल को तोड़ दिया तो फिर हिनू रूपी तितली के पंख, आंख, नाक, मुँह आदि फ्री नहीं हो पाएंगे जिस कारण वो आगे सर्वाइव नहीं कर पाएगा.

क्योंकि… आगे सर्वाइव करने के लिए उसके आंख, नाक, मुँह, पंख आदि खुले होने अति आवश्यक हैं.

इसीलिए… हिनू समुदाय खोल से बाहर आने के लिए जितना ज्यादा छटपटायेगा तो उसके ऊपर से जातिवाद और सेक्युलरिज्म का लसलसा लिक्विड हटता जाएगा.

और, जब ये लिक्विड उस पर से पूरी तरह हट जाएगा तबतक उसके आंख, नाक, मुँह, पंख एवं हाथों में इतनी ताकत आ चुकी होगी कि वो स्वयं ही उस खोल को तोड़कर बाहर आ जाएगा एवं खुले आसमान में विचरण करने लायक हो जाएगा.

इसीलिए मोई चुपचाप हिनू रूपी तितली के बच्चे को छटपटाते हुए एवं अपने ऊपर लिपटे उस लिक्विड को हटाते हुए देख रहा है.

क्योंकि… बिना उस प्लीजेंटा के हटे ही खोल को तोड़ कर तितली को बाहर निकाल देना… एक आत्मघाती कदम होगा.
क्योंकि, उस प्लीजेंटल लिक्विड में लिपटे हुए…
बाहरी हवा में हिनू समुदाय का सर्वाइवल बेहद मुश्किल है.

हाँ… इस परिस्थिति में मोई सिर्फ ये कर रहा है कि वो तितली के उस बच्चे को धारा 370, अयोध्या में राममंदिर, काशी कॉरिडोर आदि के जरिए बीच बीच में उसे हिम्मत दे रहा है ताकि हिनू समुदाय निराश होकर अपनी छटपटाहट न छोड़ दे..

साथ ही साथ… वो तितली के इस जन्म लेने वाले बच्चे के लिए एक अच्छा, मजबूत एवं स्वर्णिम देश का निर्माण कर रहा है.

ताकि, जब तितली का वो बच्चा खोल तोड़ कर बाहर निकले तो उसे विरासत में एक गरीब और असहाय नहीं बल्कि विश्वगुरु एवं आत्मनिर्भर देश मिले.

जय महाकाल…!!!

कुमार सतीश