♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️
👉 *!! सच्चा ज्ञानी !!*
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⚜️ आज का प्रेरक प्रसंग ⚜️
एक बार गुरुकुल में तीन शिष्यों की विदाई का अवसर आया तो आचार्य बहुश्रुत ने कहा कि सुबह मेरी कुटिया में आना। तुम्हारी अंतिम परीक्षा होगी। आचार्य बहुश्रुत ने रात्रि में कुटिया के मार्ग पर कांटे बिखेर दिए।
सुबह तीनों शिष्य अपने-अपने घर से गुरु के निवास की ओर चल पड़े। मार्ग पर कांटे थे। लेकिन शिष्य भी कमजोर नहीं थे। पहला शिष्य कांटों की चुभन के बावजूद कुटिया तक पहुंच गया। दूसरा शिष्य कांटो से बचकर आया। फिर भी एक कांटा तो चुभ ही गया। तीसरे शिष्य ने कांटे देखे तो कांटों की डालियों को घसीट कर दूर फेंक दिया।
फिर हाथ मुंह धोकर कुटिया तक तीनों गए। आचार्य बहुश्रुत तीनों की गतिविधियां गौर से देख रहे थे। तीसरा शिष्य ज्यों ही आया, त्यों ही उन्होंने कुटिया के द्वार खोल दिए और बोले- वत्स, तुम मेरी अंतिम परीक्षा में उतीर्ण हो गए हो।
गुरु ने कहा कि ज्ञान वही है जो व्यवहार में काम आए। तुम्हारा ज्ञान व्यावहारिक हो गया है। तुम संसार में रहोगे तो तुम्हें कांटे नहीं चुभेंगे और तुम दूसरों को भी चुभने नहीं दोगे। फिर पहले और दूसरे शिष्य की ओर देखकर बोले, तुम्हारी शिक्षा अभी अधूरी है।
*शिक्षा:-*
ज्ञानी वही है जो ज्ञान को व्यावहारिक रूप से उपयोग में लाता हो।
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।। ओम शांति*
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Day: July 9, 2022
યક્ષ અને યુધિષ્ઠિર
મનુષ્યનુ” કર્તવ્ય શું હોઈ શકે એનો ખોધ આપનારા અનેક
ગ્રંથો છે. તેમાંય પાંચમા વેદ તરીકે ઓળખાતા “ મહાભારત’ નુ
સ્થાન વિશ્વના સાહિત્યમાં અનુપમ છે એ સર્વને વિદિત છે. આ
ગ્રંથમાં ઇતિહાસ, તત્વજ્ઞાન, વિજ્ઞાન, ધર્મશાસ્ર અને ચુદ્ધનીતિનાં
દર્શન થાય છે. મહષિ વેદવ્યાસકેર્ણુત આ ગ્રથનાં અઢાર પર્વે-
માંના વનપવ“માં આવેલા .આરણ્યેયપવના અષ્યાય ૩૧૧થી ૩૧૪
એમ ચાર અધ્યાયોમાં યક્ષ તે યુધિછિરિનો પ્રસગ બહુ જ સુંદર્ રીતે
ર્વણવવામાં આવ્યો છે.
યક્ષે યુધિષ્રિતે પૃછેલા ૧૨૪ પ્રશ્ચો પહેલી દ્એરષ્ટીએ સામાન્ય
કોટીના જણુય છે, પણુ તે અત્યત ગૂઢ રહસ્થીય થી ભરપૂર છે.
મહાખુદ્ધિમાન અને ધર્મજ્ઞ યુધિષ્ઠિર અતિ વિસક્ષણુતાથી એ પ્રશ્નોના
ઉત્તરો ધીર અને સ્થિર ચિત્તે આપે છે, લૌકિક વ્યવહાર સાથે
સંબંધ ધરાવતા આ પ્રશ્નો અધ્યાત્મ જ્ઞાનનું દર્શન કરાવે છે.
યુધિષિરનાં જ્ઞાન અને ધર્ધમ ની કસોટીરૂપ આ ઉત્તરો સદા મનન
કરવા યોગ્ય છે.
સસ્તું સાહિત્ય નું આ પુસ્તક વાચવા યોગ્ય છે.
यक्ष – युधिष्ठिर संवाद (धर्म ही मानव की रक्षा करता है)
स्थल – अजगरा रानीगंज, प्रतापगढ़, उत्तरप्रदेश, भारत
कृप्या शांत चित्त हो पूरा पढें और धर्म रक्षा में अग्रसर बने।
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●यक्ष प्रश्न : कौन हूं मैं?
◆युधिष्ठिर उत्तर : तुम न यह शरीर हो, न इन्द्रियां, न मन, न बुद्धि। तुम शुद्ध चेतना हो, वह चेतना जो सर्वसाक्षी है।
■ टिप्पणी : व्यक्ति को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि मैं कौन हूं। क्या शरीर हूं जो मृत्यु के समय नष्ट हो जाएगा? क्या आंख, नाक, कान आदि पांचों इंद्रियां हूं जो शरीर के साथ ही नष्ट हो जाएंगे? तब क्या में मन या बुद्धि हूं। अर्थात मैं जो सोचता हूं या सोच रहा हूं- क्या वह हूं? जब गहरी सुषुप्ति आती है तब यह भी बंद होने जैसा हो जाता है। तब मैं क्या हूं? व्यक्ति खुद आंख बंद करके इस पर बोध करे तो उसे समझ में आएगा कि मैं शुद्ध आत्मा, चेतना और सर्वसाक्षी हूं। ऐसा एक बार के आंख बंद करने से नहीं होगा।
●यक्ष प्रश्न: जीवन का उद्देश्य क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है।
■टिप्पणी : बहुत से लोगों का उद्देश्य धन कमाना हो सकता है। धन से बाहर की समृद्धि प्राप्त हो सकती है, लेकिन ध्यान से भीतर की समृद्धि प्राप्त होती है। मरने के बाद बाहर की समृद्धि यहीं रखी रह जाएगी लेकिन भीतर की समृद्धि आपके साथ जाएगी। महर्षि पतंजलि ने मोक्ष तक पहुंचने के लिए सात सीढ़ियां बता रखी है:- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान। ध्यान के बाद समाधी या मोक्ष स्वत: ही प्राप्त होता है।
●यक्ष प्रश्न: जन्म का कारण क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल ये ही जन्म का कारण हैं।
■टिप्पणी : जन्म लेना और मरना एक आदत है। इस आदत से छुटकारा पाने का उपाय उपनिषद, योग और गीता में पाया जाता है। वासनाएं और कामनाएं अनंत होती है। जब तक यह रहेगी तब तक कर्मबंधन होता रहेगा और उसका फल भी मिलता रहेगा। इस चक्र को तोड़ने वाला ही जितेंद्रिय कहलाता है।
●यक्ष प्रश्न: जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है।
■टिप्पण : मैं कौन हूं और मेरा असली स्वरूप क्या है। इस सत्य को जानने वाला ही जन्म और मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। यह जानने के लिए अष्टांग योग का पालन करना चाहिए।
●यक्ष प्रश्न:- वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर:- जैसी वासनाएं वैसा जन्म। यदि वासनाएं पशु जैसी तो पशु योनि में जन्म। यदि वासनाएं मनुष्य जैसी तो मनुष्य योनि में जन्म।
■टिप्पणी : वासना का अर्थ व्यापक है। यह चित्त की एक दशा है। हम जैसा सोचते हैं वैसे बन जाते हैं। उसी तरह हम जिस तरह की चेतना के स्तर को निर्मित करते हैं अगले जन्म में उसी तरह की चेतना के स्तर को प्राप्त हो जाते है। उदाहरणार्थ एक कुत्ते के होश का स्तर हमारे होश के स्तर से नीचे है लेकिन यदि हम एक बोतल शराब पीले तो हमारे होश का स्तर उस कुत्ते के समान ही हो जाएगा। संभोग के लिए आतुर व्यक्ति के होश का स्तर भी वैसा ही होता है।
●यक्ष प्रश्न: संसार में दुःख क्यों है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: संसार के दुःख का कारण लालच, स्वार्थ और भय हैं।
■टिप्पणी : लालच का कोई अंत नहीं, स्वार्थी का कोई मित्र नहीं और भयभीत व्यक्ति का कोई जीवन नहीं। भय से ही सभी तरह के मानसिक विकारों का जन्म होता है। कई दफे लालच मौत का कारण भी बन जाता है। लालच को बुरी बला कहा गया है। लालची व्यक्ति का लालच बढ़ता ही जाता है और वह अपन लालच के कारण ही दुखी रहता है।
स्वार्थी व्यक्ति तो सर्वत्र पाए जाते हैं। स्वार्थी आदमी स्वयं का उल्लू सीधा करने के लिए किसी की भी जान को भी दांव पर लगा सकते हैं। स्वार्थी के मन में ईर्ष्या प्रधान गुण होता है।
●यक्ष प्रश्न: तो फिर ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की?
◆युधिष्ठिर उत्तर: ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की।
■टिप्पणी : मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है। नकारात्मकता स्वत: ही आती है लेकिन सकारात्मक विचारों को लाना पड़ता है। लाने की मेहनत कोई नहीं करता है इसीलिए वह बुरे विचार सोचकर बुरे कर्मों में फंसता रहता है। बुरे कर्मों का परिणाम भी बुरा ही होता है।
●यक्ष प्रश्न: क्या ईश्वर है? कौन है वह? क्या वह स्त्री है या पुरुष?
◆युधिष्ठिर उत्तर: कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो इसलिए वह भी है उस महान कारण को ही आध्यात्म में ईश्वर कहा गया है।
वह न स्त्री है न पुरुष।
■टिप्पणी : यह जगत या संसार ही इस बात का सबूत है कि ईश्वर है। उसके होने के बगैर यह हो नहीं सकता। जैसे शरीर के होने का सबूत ही ये है कि आत्मा है या तुम हो। तुम्हें (पढ़ने और लिखने वाले को) ही तो आत्मा कहा गया है। ईश्वर न तो पुरुष है और न स्त्री उसी तरह जैसे कि आत्मा न तो स्त्री है और न पुरुष। स्त्री और पुरुष तो शरीर की भावना है। यदि आत्मा स्त्री जैसे शरीर में होगी तो वैसी भावना करेगी। जिस तरह जल, हवा और आत्मा का कोई आकार प्रकार नहीं होता लेकिन उन्हें जिस भी पात्र में समाहित किया जाता है वह वैसे ही हो जाते हैं।
●यक्ष प्रश्न: उसका (ईश्वर) स्वरूप क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: वह सत्-चित्-आनन्द है, वह निराकार ही सभी रूपों में अपने आप को स्वयं को व्यक्त करता है।
●यक्ष प्रश्न: वह अनाकार (निराकार) स्वयं करता क्या है?
◆युधिष्ठिर: वह ईश्वर संसार की रचना, पालन और संहार करता है।
●यक्ष प्रश्न: यदि ईश्वर ने संसार की रचना की तो फिर ईश्वर की रचना किसने की?
◆युधिष्ठिर उत्तर: वह अजन्मा अमृत और अकारण है।
●यक्ष प्रश्न: भाग्य क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है। आज का प्रयत्न कल का भाग्य है।
■टिप्पणी: बहुत से लोग भाग्यवादी होते हैं उनके लिए यह अच्छा जवाब है। भाग्य के भरोसे रहने वालों के मन में नकारात्मकता का जन्म भी होता है। बहुत से लोग जिंदगी भर इसी का दुख मनाते हैं कि हमारे भाग्य में नहीं था इसलिए यह हमें नहीं मिला। ऐसे लोग कभी सुखी नहीं रहते हैं। भाग्य के होने के बहुत सबूत इसलिए दिए जाते हैं क्योंकि वे लोग कर्म के सिद्धांत को अच्छे से समझते नहीं है।
●यक्ष प्रश्न: सुख और शान्ति का रहस्य क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: सत्य, सदाचार, प्रेम और क्षमा सुख का कारण हैं। असत्य, अनाचार, घृणा और क्रोध का त्याग शान्ति का मार्ग है।
■टिप्पणी : असत्य बोलकर व्यक्ति दुख, चिंता या तनाव में रहने लगाता है। बुरा व्यवहार करके भी व्यक्ति सुखी नहीं रह सकता। परिवार या किसी व्यक्ति के प्रति प्रेम नहीं है तो भी सुखी नहीं रह सकता। यदि किसी ने उसके साथ कुछ किया है तो क्षमा न करके उससे बदला लेने की भावना रखने पर भी वह सुखी नहीं रह सकता।
●यक्ष प्रश्न: चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: इच्छाएं, कामनाएं चित्त में उद्वेग उत्पन्न करती हैं। इच्छाओं पर विजय चित्त पर विजय है।
■टिप्पणी : इच्छाएं अनंत होती है। जिस तरह भोजन करने के बाद पुन: भूख लगती है उसी तरह एक इच्छा के पूरी होने के बाद दूसरी जाग्रत हो जाती है। वे इच्छाएं दुखदायी होती है जो उद्वेग उत्पन्न करती है। न भोग, न दमन, वरण जागरण। इच्छाओं के प्रति सजग रहकर ही उन पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
●यक्ष प्रश्न: सच्चा प्रेम क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: स्वयं को सभी में देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सर्वव्याप्त देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सभी के साथ एक देखना सच्चा प्रेम है।
■टिप्पणी : किसी के प्रति संवेदना और करुणा का भाव रखना सच्चा प्रेम है। यदि आप अपने साथी की जगह खुद को रखकर सोचेंगे तो इसका अहसास होगा कि वह क्या सोच और समझ रहा है। वह भी आप ही की तरह एक निर्दोष आत्मा ही है। उसकी भी इच्छाएं, भावनाएं और जीवन है। वह भी अच्छा जीवन जीना चाहता है लेकिन लोग उसे जीने नहीं दे रहे हैं। कभी किसी के लिए त्याग करें। सभी को खुद के जैसा समझना या सभी को खुद ही समझने से ही प्रेम की भावना विकसित होगी। खुद से प्रेम करना सीखें।
●यक्ष प्रश्न: तो फिर मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता?
◆युधिष्ठिर उत्तर:. जो स्वयं को सभी में नहीं देख सकता वह सभी से प्रेम नहीं कर सकता।
●यक्ष प्रश्न: आसक्ति क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है।
●यक्ष प्रश्न: नशा क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: आसक्ति।
●यक्ष प्रश्न: मुक्ति क्या है?
◆युधिष्ठिर – अनासक्ति (आसक्ति के विपरित) ही मुक्ति है।
●यक्ष प्रश्न: बुद्धिमान कौन है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: जिसके पास विवेक है।
●यक्ष प्रश्न: चोर कौन है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: इन्द्रियों के आकर्षण, जो इन्द्रियों को हर लेते हैं चोर हैं।
●यक्ष प्रश्न: नरक क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: इन्द्रियों की दासता नरक है।
●यक्ष प्रश्न: जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: जो आत्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है।
●यक्ष प्रश्न: कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: यौवन, धन और जीवन।
●यक्ष प्रश्न: दुर्भाग्य का कारण क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: मद और अहंकार।
●यक्ष प्रश्न: सौभाग्य का कारण क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: सत्संग और सबके प्रति मैत्री भाव।
●यक्ष प्रश्न: सारे दुःखों का नाश कौन कर सकता है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: जो सब छोड़ने को तैयार हो।
●यक्ष प्रश्न: मृत्यु पर्यंत यातना कौन देता है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: गुप्त रूप से किया गया अपराध।
●यक्ष प्रश्न: दिन-रात किस बात का विचार करना चाहिए?
◆युधिष्ठिर उत्तर: सांसारिक सुखों की क्षण-भंगुरता का।
●यक्ष प्रश्न: संसार को कौन जीतता है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: जिसमें सत्य और श्रद्धा है।
●यक्ष प्रश्न: भय से मुक्ति कैसे संभव है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: वैराग्य से।
●यक्ष प्रश्न: मुक्त कौन है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: जो अज्ञान से परे है।
●यक्ष प्रश्न: अज्ञान क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: आत्मज्ञान का अभाव अज्ञान है।
●यक्ष प्रश्न: दुःखों से मुक्त कौन है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: जो कभी क्रोध नहीं करता।
●यक्ष प्रश्न: वह क्या है जो अस्तित्व में है और नहीं भी?
◆युधिष्ठिर उत्तर: माया।
●यक्ष प्रश्न: माया क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: नाम और रूपधारी नाशवान जगत।
●यक्ष प्रश्न: परम सत्य क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: ब्रह्म।…!
●यक्ष प्रश्नः सूर्य किसकी आज्ञा से उदय होता है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः परमात्मा यानी ब्रह्म की आज्ञा से।
■टिप्पणी : हिन्दू धर्म में ईश्वर को ‘ब्रह्म’ (ब्रह्मा नहीं) कहा गया है। ब्रह्म ही सत्य है ऐसा वेद, उपनिषद और गीता में लिखा है। सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा माना गया है। अरबों सूर्य है। ब्रह्मांड में जितने भी तारे हैं वे सभी सूर्य ही हैं। सूर्य के बगैर जगत में जीवन नहीं हो सकता।
●यक्ष प्रश्नः किसी का ब्राह्मण होना किस बात पर निर्भर करता है? उसके जन्म पर या शील स्वभाव पर?
◆युधिष्ठिर उत्तरः कुल या विद्या के कारण ब्राह्मणत्व प्राप्त नहीं हो जाता। ब्राह्मणत्व शील और स्वभाव पर ही निर्भर है। जिसमें शील न हो ब्राह्मण नहीं हो सकता। जिसमें बुरे व्यसन हों वह चाहे कितना ही पढ़ा लिखा क्यों न हो, ब्राह्मण नहीं होता।
●यक्ष प्रश्नः मनुष्य का साथ कौन देता है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः धैर्य ही मनुष्य का साथी होता है।
■टिप्पणी : अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना ही धैर्य है। कुछ लोग बगैर विचार किए हुए बोलते, सोचते, कार्य करते, भोजन करते या व्यवहार करते हैं। उतावलापन यह दर्शाता है कि आप बुद्धि नहीं भावना और भावुकता के अधिन हैं। ऐसे लोग जीवन में नुकसान ही उठाते हैं। किसी भी मामले में तुरंत प्रतिक्रिया देने के बदले में धैर्यपूर्वक उसे समझना जरूरी है।
●यक्ष प्रश्न: यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा कि स्थायित्व किसे कहते हैं? धैर्य क्या है? स्नान किसे कहते हैं? और दान का वास्तविक अर्थ क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: ‘अपने धर्म में स्थिर रहना ही स्थायित्व है। अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना ही धैर्य है। मनोमालिन्य का त्याग करना ही स्नान है और प्राणीमात्र की रक्षा का भाव ही वास्तव में दान है।’
●यक्ष प्रश्नः कौन सा शास्त्र है, जिसका अध्ययन करके मनुष्य बुद्धिमान बनता है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः कोई भी ऐसा शास्त्र नहीं है। महान लोगों की संगति से ही मनुष्य बुद्धिमान बनता है।
टिप्पणी : ज्ञान शास्त्रों में नहीं होता- योगी, ध्यानी और गुरु के सानिध्य में होता है। शास्त्र पढ़ने वाले बहुत है, लेकिन समझने वाले बहुत कम। शास्त्रों को अनुभव से या अनुभवी से ही समझा जा सकता है। इसीलिए हमेशा आचार्यों, शिक्षकों, संतों की संगत या सत्संग में रहना चाहिए।
●यक्ष प्रश्नः भूमि से भारी चीज क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः संतान को कोख़ में धरने वाली मां, भूमि से भी भारी होती है।
■टिप्पणी : मां का कर्ज कभी चुकाया नहीं जा सकता। हमें इस संसार में लाने वाली माता ही होती है। माता के प्रति किसी भी प्रकार से कटु वचन बोलने वाला कभी सुखी नहीं रहता। माता को हिन्दू धर्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।
●यक्ष प्रश्नः आकाश से भी ऊंचा कौन है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः पिता।
■टिप्पणी : आकाश से भी ऊंचा पिता इसलिए होता है क्योंकि वह आपके लिए एक छत्र की भूमिका निभाता है। उसकी देखरेख और उसके होने के अहसास से ही आप खिलते हैं। आपके आकाश में खिलने में पिता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
पिता क्या होता है और पिता क्या सोचता है यह पिता बनकर ही ज्ञात होता है। जो व्यक्ति अपने पिता की भावना को नहीं समझता है उसका पुत्र भी इसका अनुसरण करता है। पिता के वचनों की सत्यता और उनके प्रेम को व्यक्ति पिता बनने के बाद ही जान पाता है। वह पिता महान है जो अपने पुत्र-पुत्री के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करता हो और उनके भीतर अपना संपूर्ण अनुभव डालता हो। पिता की सीख जिंदगी में हमेशा काम आती है लेकिन पिता सीख देने वाला भी होना चाहिए। आपकी जिंदगी में यदि पिता का कोई महत्व नहीं है तो आप ऊंचाइयों के सपने देखना छोड़ दें।
●यक्ष प्रश्नः हवा से भी तेज चलने वाला कौन है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः मन।
■टिप्पणी : मन की गति निरंतर जारी है। इसकी गति को समझ पाना मुश्किल है। मन की गति से कहीं भी पहुंचे वाले देवी और देवताओं के बारे में हमने पढ़ा है। सिर्फ किसी स्थान के बारे में सोचकर ही वहां पहुंच जाते थे। हमारा मन भी यहां बैठे बैठे संपूर्ण धरती का एक क्षम में चक्कर लगा सकता है। मानव मन में 24 घंटे में लगभग साठ हजार विचार आते हैं।
●यक्ष प्रश्नः घास से भी तुच्छ चीज क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः चिंता।
●यक्ष प्रश्न : विदेश जाने वाले का साथी कौन होता है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः विद्या।
●यक्ष प्रश्न : घर में रहने वाले का साथी कौन होता है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः पत्नी।
●यक्ष प्रश्न : मरणासन्न वृद्ध का मित्र कौन होता है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः दान, क्योंकि वही मृत्यु के बाद अकेले चलने वाले जीव के साथ-साथ चलता है।
●यक्ष प्रश्न : बर्तनों में सबसे बड़ा कौन-सा है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः भूमि ही सबसे बड़ा बर्तन है जिसमें सब कुछ समा सकता है।
●यक्ष प्रश्न : सुख क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः सुख वह चीज है जो शील और सच्चरित्रता पर आधारित है।
●यक्ष प्रश्न : किसके छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बनता है ?
◆युधिष्ठिर युधिष्ठिर उत्तरः अहंभाव के छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बनता है।
●यक्ष प्रश्न : किस चीज के खो जाने पर दुःख होता है ?
◆युधिष्ठिर उत्तरः क्रोध।
●यक्ष प्रश्न : किस चीज को गंवाकर मनुष्य धनी बनता है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः लालच को खोकर।
●यक्ष प्रश्न : काजल से भी काला क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: कलंक
●यक्ष प्रश्न : धरती पर अमृत क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तर: गौ दुग्ध (गाय का दूध)
■टिप्पणी : दूध जैसा पौष्टिक और अत्यन्त गुण वाला ऐसा अन्य कोई पदार्थ नहीं है। दूध जो मृत्युलोक का अमृत है। सभी दूधों में अपनी माँ का दूध श्रेष्ठ है और माँ का दूध कम पडा। वहाँ से गाय का दूध श्रेष्ठ सिद्ध हुआ है।
गाय का दूध धरती पर सर्वोत्तम आहार है।
गोदुग्ध मृत्युलोक का अमृत है। मनुष्यों के लिए शक्तिवर्धक, गोदुग्ध जैसा अमृत पदार्थ त्रिभुवन में भी अजन्मा है। गोदूध अत्यन्त स्वादिष्ट, स्निग्ध, कोमल, मधुर, शीतल,वाला, ओज प्रदान करने वाला, देहकांति बढाने वाला, सर्वरोग नाशक अमृत के समान है।
●यक्ष प्रश्न : संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है?
◆युधिष्ठिर उत्तरः हर रोज आंखों के सामने कितने ही प्राणियों की मृत्यु हो जाती है यह देखते हुए भी इंसान अमरता के सपने देखता है। यही महान आश्चर्य है ।
जब युद्धिष्ठिर ने सारे प्रश्नों के उत्तर सही दिए तो फिर यक्ष ने क्या कहा…
युधिष्ठिर ने सारे प्रश्नों के उत्तर सही दिए अंत में यक्ष बोला, ‘युधिष्ठिर में तुम्हारे एक भाई को जीवित करूंगा। तब युधिष्ठिर ने अपने छोटे भाई नकुल को जिंदा करने के लिए कहा। लेकिन यक्ष हैरान था उसने कहा तुमने भीम और अर्जुन जैसे वीरों को जिंदा करने के बारे में क्यों नहीं सोचा।’
युधिष्ठिर बोले, मनुष्य की रक्षा धर्म से होती है। मेरे पिता की दो पत्नियां थीं। कुंती का एक पुत्र मैं तो बचा हूं। मैं चाहता हूं कि माता माद्री का भी एक पुत्र जीवित रहे। यक्ष उत्तर सुनकर काफी खुश हुए और सभी को जीवित कर महाभारत की जीत का वरदान देकर वह अपने धाम लौट गए।
क़ब्र पूजा
कब्र पूजा – मुर्खता अथवा अंधविश्वास
अजमेर दरगाह के खादिम ने नूपुर शर्मा के विरुद्ध जो बयान दिया है। आप सब उससे परिचित है। यह खादिम कौन होते है? इससे जानना आवश्यक है। खादिम कहते है सेवक को। ये लोग एक वर्ग विशेष के सदस्य है जिनका कार्य अजमेर दरगाह की देख रेख करना और उस पर चढ़ने वाले करोड़ो रुपये को आपस में बाँटना है। अजमेर दरगाह और गरीब नवाज को धर्म विशेष के रूप में इतनी मान्यता दे दी गई है कि देश के प्रधानमंत्री मोदी जी अजमेर में दरगाह शरीफ पर चादर चढ़ाने के लिए बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नक़वी को अजमेर हर वर्ष भेजते हैं। यह समाचार आपने अनेक बार पढ़ा होगा। पूर्व में भी बॉलीवुड का कोई प्रसिद्ध अभिनेता अभिनेत्री अथवा क्रिकेट के खिलाड़ी अथवा राजनेता चादर चढ़ाकर अपनी फिल्म को सुपर-हिट करने की अथवा आने वाले मैच में जीत की अथवा आने वाले चुनावों में जीत की दुआ मांगता रहा हैं। बॉलीवुड की अनेक फिल्मों में मुस्लिम कलाकारों ने अजमेर शरीफ की प्रशंसा में अनेक कव्वालियां गाई हैं जिसमें ए. आर. रहमान की अकबर फ़िल्म का ख्वाजा मेरे ख्वाजा सबसे प्रसिद्ध है। पाठकों को जानकार आश्चर्य होगा की सन 2006 में UPA सरकार द्वारा NCERT बोर्ड के अंतर्गत लगाए गई इतिहास पुस्तक में भी ख्वाजा की चर्चा हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक सूफी संत के रूप में की गई हैं। भारत की नामी गिरामी हस्तियों के दुआ मांगने से साधारण जनमानस में एक भेड़चाल सी आरंभ हो गयी है की अजमेर में दुआ मांगे से बरकत हो जाएगी , किसी की नौकरी लग जाएगी , किसी के यहाँ पर लड़का पैदा हो जायेगा , किसी का कारोबार नहीं चल रहा हो तो वह चल जायेगा, किसी का विवाह नहीं हो रहा हो तो वह हो जायेगा।
कुछ प्रश्न हमें अपने दिमाग पर जोर डालने को मजबूर कर रहे हैं जैसे की यह गरीब नवाज़ कौन थे ?कहाँ से आये थे? इन्होंने हिंदुस्तान में क्या किया और इनकी कब्र पर चादर चढ़ाने से हमें सफलता कैसे प्राप्त होती है?
गरीब नवाज़ भारत में लूटपाट करने वाले , हिन्दू मंदिरों का विध्वंस करने वाले ,भारत के अंतिम हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान को हराने वाले व जबरदस्ती इस्लाम में धर्म परिवर्तन करने वाले मुहम्मद गौरी के साथ भारत में शांति का पैगाम लेकर आये थे। पहले वे दिल्ली के पास आकर रुके फिर अजमेर जाते हुए उन्होंने करीब 700 हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित किया और अजमेर में वे जिस स्थान पर रुके उस स्थान पर तत्कालीन हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान का राज्य था। ख्वाजा के बारे में चमत्कारों की अनेकों कहानियां प्रसिद्ध है की जब राजा पृथ्वीराज के सैनिकों ने ख्वाजा के वहां पर रुकने का विरोध किया क्योंकि वह स्थान राज्य सेना के ऊँटों को रखने का था तो पहले तो ख्वाजा ने मना कर दिया फिर क्रोधित होकर श्राप दे दिया की जाओ तुम्हारा कोई भी ऊँट वापिस उठ नहीं सकेगा। जब राजा के कर्मचारियों ने देखा की वास्तव में ऊँट उठ नहीं पा रहे है तो वे ख्वाजा से माफ़ी मांगने आये और फिर कहीं जाकर ख्वाजा ने ऊँटों को दुरुस्त कर दिया। दूसरी कहानी अजमेर स्थित आनासागर झील की हैं। ख्वाजा अपने खादिमों के साथ वहां पहुंचे और उन्होंने एक गाय को मारकर उसका कबाब बनाकर खाया। कुछ खादिम पनसिला झील पर चले गए कुछ आनासागर झील पर ही रह गए। उस समय दोनों झीलों के किनारे करीब 1000 हिन्दू मंदिर थे, हिन्दू ब्राह्मणों ने मुसलमानों के वहां पर आने का विरोध किया और ख्वाजा से शिकायत कर दी।
ख्वाजा ने तब एक खादिम को सुराही भरकर पानी लाने को बोला। जैसे ही सुराही को पानी में डाला तभी दोनों झीलों का सारा पानी सुख गया। ख्वाजा फिर झील के पास गए और वहां स्थित मूर्ति को सजीव कर उससे कलमा पढ़वाया और उसका नाम सादी रख दिया। ख्वाजा के इस चमत्कार की सारे नगर में चर्चा फैल गई। पृथ्वीराज चौहान ने अपने प्रधान मंत्री जयपाल को ख्वाजा को काबू करने के लिए भेजा। मंत्री जयपाल ने अपनी सारी कोशिश कर डाली पर असफल रहा और ख्वाजा नें उसकी सारी शक्तिओ को खत्म कर दिया। राजा पृथ्वीराज चौहान सहित सभी लोग ख्वाजा से क्षमा मांगने आये। अनेक लोगों ने इस्लाम कबूल किया पर पृथ्वीराज चौहान ने इस्लाम कबूलने इंकार कर दिया। तब ख्वाजा नें भविष्यवाणी करी की पृथ्वी राज को जल्द ही बंदी बना कर इस्लामिक सेना के हवाले कर दिया जायेगा। निजामुद्दीन औलिया जिसकी दरगाह दिल्ली में स्थित हैं ने भी ख्वाजा का स्मरण करते हुए कुछ ऐसा ही लिखा है।
बुद्धिमान पाठक गन स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं की इस प्रकार के करिश्मों को सुनकर कोई मुर्ख ही इन बातों पर विश्वास ला सकता है। भारत में स्थान स्थान पर स्थित कब्रें उन मुसलमानों की हैं जो भारत पर आक्रमण करने आये थे और हमारे वीर हिन्दू पूर्वजों ने उन्हें अपनी तलवारों से परलोक पहुंचा दिया था। ऐसी ही एक कब्र बहराइच गोरखपुर के निकट स्थित है। यह कब्र गाज़ी मियां की है। गाज़ी मियां का असली नाम सालार गाज़ी मियां था एवं उनका जन्म अजमेर में हुआ था। इस्लाम में गाज़ी की उपाधि किसी काफ़िर यानी गैर मुसलमान को कत्ल करने पर मिलती थी। गाज़ी मियां के मामा मुहम्मद गजनी ने ही भारत पर आक्रमण करके गुजरात स्थित प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर का विध्वंस किया था। कालांतर में गाज़ी मियां अपने मामा के यहाँ पर रहने के लिए गजनी चला गया। कुछ काल के बाद अपने वज़ीर के कहने पर गाज़ी मियां को मुहम्मद गजनी ने नाराज होकर देश से निकला दे दिया। उसे इस्लामिक आक्रमण का नाम देकर गाज़ी मियां ने भारत पर हमला कर दिया। हिन्दू मंदिरों का विध्वंस करते हुए, हजारों हिन्दुओं का कत्ल अथवा उन्हें गुलाम बनाते हुए, नारी जाति पर अमानवीय कहर बरपाते हुए गाज़ी मियां ने बाराबंकी में अपनी छावनी बनाई और चारों तरफ अपनी फौजें भेजी। कौन कहता है की हिन्दू राजा कभी मिलकर नहीं रहे? मानिकपुर, बहराइच आदि के 24 हिन्दू राजाओं ने राजा सोहेल देव के नेतृत्व में जून की भरी गर्मी में गाज़ी मियां की सेना का सामना किया और उसकी सेना का संहार कर दिया। राजा सोहेल देव ने गाज़ी मियां को खींच कर एक तीर मारा जिससे की वह परलोक पहुँच गया। उसकी लाश को उठाकर एक तालाब में फेंक दिया गया। हिन्दुओं ने इस विजय से न केवल सोमनाथ मंदिर के लूटने का बदला ले लिया था बल्कि अगले 200 सालों तक किसी भी मुस्लिम आक्रमणकारी का भारत पर हमला करने का दुस्साहस नहीं हुआ।
कालांतर में फ़िरोज़ शाह तुगलक ने अपनी माँ के कहने पर बहराइच स्थित सूर्य कुण्ड नामक तालाब को भरकर उस पर एक दरगाह और कब्र गाज़ी मियां के नाम से बनवा दी जिस पर हर जून के महीने में सालाना उर्स लगने लगा। मेले में एक कुण्ड में कुछ बहरूपिये बैठ जाते है और कुछ समय के बाद लाइलाज बीमारियों को ठीक होने का ढोंग रचते है। पूरे मेले में चारों तरफ गाज़ी मियां के चमत्कारों का शोर मच जाता है और उसकी जय-जयकार होने लग जाती है। हजारों की संख्या में मुर्ख हिन्दू औलाद की, दुरुस्ती की, नौकरी की, व्यापार में लाभ की दुआ गाज़ी मियां से मांगते है, शरबत बांटते है , चादर चढ़ाते है और गाज़ी मियां की याद में कव्वाली गाते है।
कुछ सामान्य से 10 प्रश्न हम पाठकों से पूछना चाहेंगे?
1 .क्या एक कब्र जिसमें मुर्दे की लाश मिट्टी में बदल चूकि है वो किसी की मनोकामना पूरी कर सकती है?
2. सभी कब्र उन मुसलमानों की है जो हमारे पूर्वजों से लड़ते हुए मारे गए थे, उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना क्या उन वीर पूर्वजों का अपमान नहीं है जिन्होंने अपने प्राण धर्म रक्षा करते की बलि वेदी पर समर्पित कर दिये थे?
3. क्या हिन्दुओं के राम, कृष्ण अथवा 33 कोटि देवी देवता शक्तिहीन हो चुकें है जो मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक है?
4. जब गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहाँ हैं की कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ मांगने से क्या हासिल होगा?
5. भला किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा आदि वीरों की स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता है तो भला हमारे ही देश पर आक्रमण करने वालों की कब्र पर हम क्यों शीश झुकाते है?
6. क्या संसार में इससे बड़ी मूर्खता का प्रमाण आपको मिल सकता है?
7.. हिन्दू जाति कौन सी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति मुसलमानों की कब्रों की पूजा कर प्राप्त कर रहीं है जिसका वर्णन पहले से ही हमारे वेदों- उपनिषदों आदि में नहीं है?
8. कब्र पूजा को हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल और सेकुलरता की निशानी बताना हिन्दुओं को अँधेरे में रखना नहीं तो ओर क्या है?
9. इतिहास की पुस्तकों में गौरी – गजनी का नाम तो आता हैं जिन्होंने हिन्दुओं को हरा दिया था पर मुसलमानों को हराने वाले राजा सोहेल देव पासी का नाम तक न मिलना क्या हिन्दुओं की सदा पराजय हुई थी ऐसी मानसिकता को बना कर उनमें आत्मविश्वास और स्वाभिमान की भावना को कम करने के समान नहीं है?
10. क्या हिन्दू फिर एक बार 24 हिन्दू राजाओं की भांति मिल कर संगठित होकर देश पर आये संकट जैसे की आतंकवाद, जबरन धर्म परिवर्तन ,नक्सलवाद, लव जिहाद, बंगलादेशी मुसलमानों की घुसपैठ आदि का मुंहतोड़ जवाब नहीं दे सकते?
आशा हैं इस लेख को पढ़ कर आपकी बुद्धि में कुछ प्रकाश हुआ होगा। अगर आप आर्य राजा राम और कृष्ण जी महाराज की संतान हैं तो तत्काल इस मूर्खता पूर्ण अंधविश्वास को छोड़ दे और अन्य हिन्दुओं को भी इस बारे में प्रकाशित करें।

शास्त्रों के मिथ्या अनुवाद द्वारा दुष्प्रचार-
कई बार लोग किशोरी मोहन गांगुली के महाभारत अनुवाद को उद्धृत कर कुछ बातें कहते हैं-
१-युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में कर्ण को सूतपुत्र होने के कारण अपमानित किया गया था।
२-राजा रन्तिदेव के यहाँ यज्ञ के लिए प्रतिदिन २००० गायें मारी जाती थीं।
इसी प्रकार भगवान् राम के मांसाहार का वर्णन कई लोग करते हैं। अभी मुरारी बापू ने बलराम जी के दिन रात शराब पीने का निराधार वर्णन आरम्भ किया है।
ये सभी भारतीय संस्कृति की यथासम्भव निन्दा के लिए झूठे प्रचार हैं।
१-युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में कर्ण को निमन्त्रण तथा आगमन का बहुत सम्मान सहित भीष्म पितामह के साथ वर्णन है-
धृतराष्ट्रश्च भीष्मश्च विदुरश्च महामतिः॥५॥
दुर्योधनपुरोगाश्च भ्रातरः सर्व एव ते।
गान्धारराजः सुबलः शकुनिश्च महाबलः॥६॥
अचलो वृषकश्चैव कर्णश्थ रथिनां वरः।
तथा शल्यश्च बलवान् वाह्लिकश्च महाबलः॥७॥
(महाभारत, सभा पर्व, अध्याय ३४)
क्या कर्ण को रथियों में सर्वश्रेष्ठ कहना उसका अपमान है? राजा के रूप में निमन्त्रण ही पूर्ण सम्मान है।
उसके बाद विस्तार से वर्णन है कि युधिष्ठिर ने सभी निमन्त्रित लोगों को नमस्कार किया तथा नकुल द्वारा उनको अच्छे भवनों में ठहराया।
२-रन्तिदेव पर दैनिक गोहत्या का आक्षेप-
महाभारत, द्रोण पर्व, अध्याय ६७-
सांकृते रन्तिदेवस्य यां रात्रिमतिथिर्वसेत्।
आलभ्यन्त तदा गावः सहस्राण्येकविंशतिः॥१४॥
= जो भी अतिथि संकृति पुत्र रन्तिदेव के यहाँ रात में आता था, उसे २१,००० गौ छू कर दान करते थे।
कोई भी २१,००० गौ एक बार क्या, जीवन भर में नहीं खा सकता है। यहां गो शब्द सम्पत्ति की माप भी है। मुद्राओं के नाम बदलते रहे हैं। उनका स्थायी नाम था-गो, धेनु। किसी को एक लाख गाय दी जायेगी तो वह उनको रख नहीं पायेगा, न देख भाल कर सकता है। यहाँ गो बड़ी मुद्रा (स्वर्ण), धेनु छोटी मुद्रा (रजत), निष्क सबसे छोटी मुद्रा है। निष्क से पंजाबी में निक्का, या धातु नाम निकेल हुआ है। निष्क मिलना अच्छा है, अतः नीक का अर्थ अच्छा है।
अन्नं वै गौः (तैत्तिरीय ब्राह्मण, ३/९/८/३ आदि)
इन्द्र मूर्ति १० धेनु में खरीदने का उल्लेख है-
क इमं दशभिर्ममेन्द्रं क्रीणाति धेनुभिः। (ऋक, ४/२४/१०)
२१००० गो या स्वर्ण मुद्रा देने के बाद उनको अच्छा भोजन कराते थे-
तत्र स्म सूदाः क्रोशन्ति सुमृष्ट मणिकुण्डलाः।
सूपं भूयिष्ठमश्नीध्वं नाद्य भोज्यं यथा पुरा॥
वहाँ कुण्डल, मणि पहने रसोइये पुकार पुकार कर कहते थे-आप लोग खूब दाल भात खाइये। आज का भोजन पहले जैसा नहीँ है, उससे अच्छा है।
यही वर्णन शान्ति पर्व (६७/१२७-१२८) में भी है।
अनुशासन पर्व (११५/६३-६७) में बहुत से राजाओं की सूची है जिन्होंने तथा कई अन्य महान् राजाओं ने कभी मांस नहीँ खाया था। इनमें रन्तिदेव का भी नाम है-
श्येनचित्रेण राजेन्द्र सोमकेन वृकेण च।
रैवते रन्तिदेवेन वसुना, सृञ्जयेन च॥६३॥
एतैश्चान्यैश्च राजेन्द्र कृपेण भरतेन च।
दुष्यन्तेन करूषेण रामालर्कनरैस्तथा॥६४॥
विरूपश्वेन निमिना जनकेन च धीमता।
ऐलेन पृथुना चैव वीरसेनेन चैव ह॥६५॥
इक्ष्वाकुणा शम्भुना च श्वेतेन सगरेण च।
अजेन धुन्धुना चैव तथैव च सुबाहुना॥६६॥
हर्यश्वेन च राजेन्द्र क्षुपेण भरतेन च।
एतैश्चान्यैश्च राजेन्द्र पुरा मांसं न भक्षितम॥६७॥
श्येनचित्र, सोमक, वृक, रैवत, रन्तिदेव , वसु, सृञ्जय, अन्यान्य नरेश, कृप, भरत, दुष्यन्त, करूष, राम, अलर्क, नर, विरूपाश्व, निमि, बुद्धिमान जनक, पुरूरवा, पृथु, वीरसेन, इक्ष्वाकु, शम्भु, श्वेतसागर, अज, धुन्धु, सुबाहु, हर्यश्व, क्षुप, भरत-इन सबने तथा अन्य राजाओं ने कभी मांस नहीँ खाया था।
३-भगवान् राम आदि कई राजाओं का ऊपर उल्लेख है कि उन लोगों ने जीवन में कभी मांस नहीं खाया।
४-यज्ञ में उपरिचर वसु ने पशु बलि का समर्थन किया था जिस पर ऋषियों ने उनको शाप दिया था।
महाभारत, शान्ति पर्व, अध्याय ३३७-
देवानां तु मतं ज्ञात्वा वसुना पक्षसंश्रयात्॥१३॥
छागेनाजेन यष्टव्यमेवमुक्तं वचस्तदा।
कुपितास्ते ततः सर्वे मुनयः सूर्यवर्चसः॥१४॥
ऊचुर्वसुं विमानस्थं देवपक्षार्थविदिनम्।
सुरपक्षो गृहीतस्ते यस्मात् तस्माद दिवः पत॥१५॥
अद्यप्रभृति ते याजन्नाकाशे विहता गतिः।
अस्मच्छापाभिघातेन महीं भित्वा प्रवेक्ष्यसि॥१६॥
यहां अज का अर्थ बीजी पुरुष कहा गया है, जिसकी यज्ञ द्वारा उपासना होती है।।यज्ञ में पशु का आलभन करते हैं-उसका पीठ, कन्धा आदि छूते है। इसे शमिता कहते हैं, अर्थात् शान्त करने वाला। शान्त करने के लिए हत्या नहीँ की जाती है। पर इसका अर्थ किया जाता है कि पशु का कन्धा आदि छू कर देखते हैं कि कहाँ से उसका मांस काटना अच्छा होगा। आजकल भी घुड़सवारी सिखाई जाती है कि घोड़े पर चढ़ने के पहले उसकी गर्दन तथा कन्धा थपथपाना चाहिए। इससे वह प्रसन्न हो कर अच्छी तरह दौड़ता है। बच्चों की भी प्रशंसा के लिए उनकी पीठ थपथपाते हैं, यद्यपि वे भाषा भी समझ सकते हैं। यही आलभन है। शिष्य भी पहले गुरु को जा कर नमस्कार करता है तो गुरु उसके कन्धे पर हाथ रख कर आलभन करते हैं। यदि आलभन द्वारा उसकी हत्या करेंगे तो शिक्षा कौन लेगा? गुरु को भी फांसी होगी। हर अवसर पर यदि कोई पैर छूकर नमस्कार करे तो उसकी पीठ पर ही हाथ रख कर ही आशीर्वाद दिया जाता है।
५-बलराम जी का मदिरा पान-ऐसा वर्णन करने वाले से अधिक मूर्ख मिलना सम्भव नहीं है। किसी भी विद्या या खेल में अच्छा होने के लिए पूरे जीवन साधना करनी पड़ती है। बलराम जी अपने समय के सर्वश्रेष्ठ पहलवान तथा गदा युद्ध के विशेषज्ञ थे। दुर्योधन उनके पास ही गदा युद्ध की विशेष शिक्षा लेने गया था। पहलवान होने के लिए दैनिक कम से कम ५ घण्टे व्यायाम तथा सादा पौष्टिक भोजन करना पड़ता है। यदि मद्य पान द्वारा ही मल्ल होने की बात सिखायेंगे तो भारत में कभी अच्छे खिलाड़ी नहीँ हो सकते जो ओलम्पिक में जीत सकें। बलराम जी वारुणी लेते थे जो कठोर व्यायाम के लिए आवश्यक है।
अष्टाङ्ग हृदय सूत्र (७/४२)- श्वेतसुरा सा च श्वेत पुनर्नवादि मूलयुक्तेन शालिपिष्टेन क्रियते। गुणाः लघुस्तीक्ष्णा हृद्या शूल- कास-वमि -श्वास-विबन्ध- आध्मान- पीनसघ्नी। सुश्रुत संहिता, उत्तर (४२/१०२)-वात शूल शमनी।
शरीर की कोशिकाओं में टूट फूट होती है। उनके पुनर्निर्माण के लिए जो ओषधि है उसे पुनर्नवा कहते हैं। इसके अतिरिक्त शरीर गर्म होने के बाद अचानक जल या भोजन लेने पर कास या वात हो जाता है। ठीक आराम नहीँ होने पर शूल तथा वायु विकार होता है। इन कष्टों को दूर करने के लिए पुनर्नवा आदि मूलों को धान के चूर्ण के साथ मिलाकर जो ओषधि बनती है, उसे वारुणी कहा गया है।
लेखक : अरुण कुमार उपाध्याय
दुर्गा पूजा
प्रश्नकर्ता – क्या दुर्गा पूजा में वेश्या के घर से मिट्टी लाकर मूर्ति बनाने का विधान है ?
निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु – दुर्गा पूजा में प्रतिमा निर्माण हेतु वेश्या के घर से मिट्टी लाने का आचार कई परम्पराएं पालन करती आ रही हैं। इसको माध्यम बनाकर परम मूढ़ता और मूर्खता से ग्रस्त कुमार्गगामी नरपिशाच गण श्रीदेवी के सन्दर्भ में अनर्गल प्रलाप करते रहते हैं। सबसे पहले हम वेश्या की तन्त्रोक्त परिभाषा देखेंगे :-
कुलमार्गे प्रवृत्ता या सा वेश्या मोक्षदायिनी।
एवंविधा भवेद्वेश्या न वेश्या कुलटा प्रिये॥
शिव जी कहते हैं, कि व्यभिचार में रत कुलटा स्त्री को तन्त्र में वेश्या नहीं कहा गया है, अपितु कुलमार्ग में स्थित जो मोक्ष को देने वाली साधिका है, उसे वेश्या कहा गया है।
अब कुलमार्ग क्या है, यह गुरुपरम्परागम्य गूढ़ शाक्ताचार से सम्बंधित है, इसीलिए अधिक नहीं लिखूंगा, किन्तु कुलार्णव तन्त्र में वर्णित सामान्य परिभाषा बताता हूँ :-
कुलं कुंडलिनी शक्तिरकुलन्तु महेश्वर:।
कुलाकुलस्यतत्वज्ञ: कौल इत्यभिधीयते॥
कुण्डलिनी शक्ति को कुल और परमशिव को अकुल कहा गया है, इन दोनों का रहस्य जानने वाला ब्रह्मवेत्ता ही कौल यानी कुलमार्ग का अनुसरण करने वाला है।
तन्त्र की परिभाषा के अंतर्गत जिस वेश्या का वर्णन है, वह परम साध्वी होती है :-
शिवलिंगगता साध्वी शिवलिंगगता सती।
शिवलिंगगता वेश्या कीर्तिता सा पतिव्रता॥
(निरुत्तर तन्त्र)
शिवलिंग (ब्रह्मभाव की पहचान) में जो स्थित है, वही साध्वी, सती, वेश्या है और उसे ही पतिव्रता कहा गया है।
यहां साध्वी, सती, पतिव्रता तो ठीक है, किन्तु वेश्या शब्द का अर्थ विरोधाभासी होने से इसका कारण निम्न उक्ति से स्पष्ट किया गया है :-
वेश्यावद्भ्रमते यस्मात्तस्माद्वेश्या प्रकीर्तिता।
जैसे (लोक)वेश्या बिना किसी के प्रति आसक्ति रखे केवल धनपरायणा होकर स्वच्छन्द विहार करती है, वैसे ही (बिना किसी के प्रति आसक्ति रखे केवल ब्रह्मपरायणा होकर) स्वच्छन्द विहार करने वाली होने से ऐसी साधिका को वेश्या कहा गया है।
अब यह वेश्या सात प्रकार की होती है :-
गुप्तवेश्या महावेश्या कुलवेश्या महोदया।
राजवेश्या देववेश्या ब्रह्मवेश्या च सप्तधा॥
(निरुत्तर तन्त्र)
गुप्तवेश्या, महावेश्या, कुलवेश्या, महोदयावेश्या, राजवेश्या, देववेश्या एवं ब्रह्मवेश्या, ये सात प्रकार की वेश्याओं का वर्णन तन्त्र में है।
गरुड़ पुराण, नारद पुराण, गर्ग संहिता आदि में निम्न सात तीर्थपुरियों को मोक्षदायिनी बताया गया है :-
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः ॥
(मायापुरी हरिद्वार को कहते हैं)
इसी प्रकार हमारे पुराणों में वर्णित सात महान् मोक्षमूलक तीर्थों का भी तन्त्र में यही संकेत है :-
गुप्तवेश्या महावेश्या अयोध्या मथुरा प्रिये।
माया च कुलवेश्या स्यात् महोदया च कालिका॥
राजवेश्या देववेश्या द्वारका परिकीर्तिता।
कांची च राजवेश्या स्याद्देववेश्या अवन्तिका॥
द्वारावती ब्रह्मवेश्या सप्तैते मोक्षदायिका॥
(निरुत्तर तन्त्र)
अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, अवन्तिका एवं द्वारिका, ये क्रमशः गुप्तवेश्या, महावेश्या, कुलवेश्या, महोदयावेश्या, राजवेश्या, देववेश्या एवं ब्रह्मवेश्या हैं। द्वारिका को मतांतर से राजवेश्या अथवा देववेश्या भी कहा गया है।
इस प्रकार से उपर्युक्त परिभाषा से युक्त साधिका के घर की मिट्टी अथवा उपर्युक्त तीर्थों की मिट्टी लेकर प्रतिमा बनाने का विधान तन्त्रशास्त्र में है। उपर्युक्त तीर्थों का सेवन करने वाला ही तन्त्रोक्त परिभाषा के अनुसार वेश्यागामी है और इसीलिए वेश्यागामी को तत्वज्ञानी एवं मोक्ष का अधिकारी बताया गया।
कुलपूजां विना देवि तत्वज्ञानं न जायते।
तत्वज्ञानं विना देवि निर्वाणं नैव जायते॥
हमारे शास्त्रों में सर्वाधिक गूढ़ और गोपनीयता की बातें तन्त्रग्रंथ में ही हैं जिन्हें समझना ऊपरी दृष्टि वाले व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं। बहुत से तंत्रों को जानबूझकर कर ऐसी भाषा और शैली में बताया और लिखा गया है कि सामान्य लोग उसे न जान पाएं और सिद्धियों का दुरूपयोग न हो। अतएव अपने धर्म और धर्मग्रंथों में पूर्ण आस्था रखें औए यदि कोई संदेह हो तो साधक एवं रहस्यवादियों के पास जाकर शंका समाधान करें। गूगल बाबा और पाखंडियों के फेर में न रहें।
(यह लेख मेरी पुस्तक “अमृत वचन” – पृष्ठ ३९३ में प्रकाशित हो चुका है)
साभार – श्री भगवतानंद जी 🙏