गोविंदा नाम क्यों पड़ा भगवान् का
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एक अत्यंत रोचक घटना है, माँ महालक्ष्मी की खोज में भगवान विष्णु जब भूलोक पर आए, तब यह सुंदर घटना घटी।
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भूलोक में प्रवेश करते ही, उन्हें भूख एवं प्यास मानवीय गुण प्राप्त हुए, भगवान श्रीनिवास ऋषि अगस्त्य के आश्रम में गए और बोले…
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मुनिवर मैं एक विशिष्ट कार्य से भूलोक पर (पृथ्वी) पर आया हूँ और कलयुग का अंत होने तक यहीं रहूँगा।
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मुझे गाय का दूध अत्यंत पसंद है, और मुझे अन्न के रूप में उसकी आवश्यकता है। मैं जानता हूँ कि आपके पास एक बड़ी गौशाला है, उसमें अनेक गाएँ हैं, मुझे आप एक गाय दे सकते हैं क्या ?
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ऋषि अगस्त्य हँसे और कहने लगे, स्वामी मुझे पता है कि आप श्रीनिवास के मानव स्वरूप में, श्रीविष्णु हैं।
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मुझे अत्यंत आनंद है कि इस विश्व के निर्माता और शासक स्वयं मेरे आश्रम में आए हैं, मुझे यह भी पता है की आपने मेरी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए यह मार्ग अपनाया है…
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फिर भी स्वामी, मेरी एक शर्त है कि मेरी गौशाला की पवित्र गाय केवल ऐसे व्यक्ति को मिलनी चाहिए जो उसकी पत्नी संग यहाँ आए…
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मुझे आप को उपहार स्वरूप गाय देना अच्छा लगेगा, परंतु जब तुम मेरे आश्रम में देवी लक्ष्मी संग आओगे, और गौदान देने के लिए पूछोगे, तभी मैं ऐसा कर पाऊँगा।
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भगवान श्रीनिवास हँसे और बोले… ठीक है मुनिवर, तुम्हें जो चाहिए वह मैं करूँगा। ऐसा कहकर वे वापस चले गए।
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बाद में भगवान श्रीनिवास ने देवी पद्मावती से विवाह किया। विवाह के कुछ दिन पश्चात भगवान श्रीनिवास, उनकी दिव्य पत्नी पद्मावती के साथ, ऋषि अगस्त्य महामुनि के आश्रम में आए पर उस समय ऋषि आश्रम में नहीं थे।
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भगवान श्रीनिवासन से उनके शिष्यों ने पूछा.. आप कौन हैं ? और हम आपके लिए क्या कर सकते हैं ?
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प्रभु ने उत्तर दिया, मेरा नाम श्रीनिवासन है, और यह मेरी पत्नी पद्मावती है।
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आपके आचार्य को मेरी प्रतिदिन की आवश्यकता के लिए एक गाय दान करने के लिए कहा था, परंतु उन्होंने कहा था कि पत्नी के साथ आकर दान मांगेंगे तभी मैं गाय दान दूँगा।
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यह तुम्हारे आचार्य की शर्त थी, इसीलिए मैं अब पत्नी संग आया हूँ।
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शिष्यों ने विनम्रता से कहा, हमारे आचार्य आश्रम में नहीं है इसीलिए कृपया आप गाय लेने के लिए बाद में आइये।
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श्रीनिवासन हंँसे और कहने लगे, मैं आपकी बात से सहमत हूंँ, परंतु मैं संपूर्ण जगत का सर्वोच्च शासक हूंँ..
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इसीलिए तुम सभी शिष्यगण मुझ पर विश्वास रख सकते हैं और मुझे एक गाय दे सकते हैं, मैं फिर से नहीं आ सकता।
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शिष्यों ने कहा, निश्चित रूप से आप धरती के शासक हैं बल्कि यह संपूर्ण विश्व भी आपका ही है, परंतु हमारे दिव्य आचार्य हमारे लिए सर्वोच्च हैं, और उनकी आज्ञा के बिना हम कोई भी काम नहीं कर सकते।
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धीरे-धीरे हंसते हुए भगवान कहने लगे, आपके आचार्य का आदर करता हूँ कृपया वापस आने पर आचार्य को बताइए कि मैं सपत्नीक आया था। ऐसा कहकर भगवान श्रीनिवासन तिरुमाला की दिशा में जाने लगे।
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कुछ मिनटों में ऋषि अगस्त्य आश्रम में वापस आए, और जब उन्हें इस बात का पता लगा तो वे अत्यंत निराश हुए…
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श्रीमन नारायण स्वयं माँ लक्ष्मी के संग, मेरे आश्रम में आए थे। दुर्भाग्यवश मेैं आश्रम में नहीं था, बड़ा अनर्थ हुआ।
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फिर भी कोई बात नहीं, प्रभु को जो गाय चाहिए थी, वह तो देना ही चाहिए।
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ऋषि तुरंत गौशाला में दाखिल हुए, और एक पवित्र गाय लेकर भगवान श्रीनिवास और देवी पद्मावती की दिशा में भागते हुए निकले..
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थोड़ी दूरी पर श्रीनिवास एवं पत्नी पद्मावती उन्हें नजर आए।
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उनके पीछे भागते हुए ऋषि तेलुगु भाषा में पुकारने लगे, स्वामी (देवा) गोवु (गाय) इंदा (ले जाओ) तेलुगु में गोवु अर्थात गाय, और इंदा अर्थात ले जाओ।
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स्वामी, गोवु इंदा.. स्वामी, गोवु इंदा.. स्वामी, गोवु इंदा.. स्वामी, गोवु इंदा.. (स्वामी गाय ले जाइए).. कई बार पुकारने के पश्चात भी भगवान ने नहीं देखा…
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इधर मुनि ने अपनी गति बढ़ाई, और स्वामी ने पुकारे हुए शब्दों को सुनना शुरू किया।
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भगवान की लीला, उन शब्दों का रूपांतर क्या हो गया। स्वामी गोविंदा, स्वामी गोविंदा, स्वामी गोविंदा, गोविंदा गोविंदा गोविंदा..!!
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ऋषि के बार बार पुकारने के पश्चात भगवान श्रीनिवास वेंकटेश्वर एवं देवी पद्मावती वापिस मुड़े और ऋषि से पवित्र गाय स्वीकार की।
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श्रीनिवासन जी ने ऋषि से कहा, मुनिवर तुमने ज्ञात अथवा अज्ञात अवस्था में मेरे सबसे प्रिय नाम गोविंदा को 108 बार बोल दिया है…
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कलयुग के अंत तक पवित्र सप्त पहाड़ियों पर मूर्ति के रूप में भूलोक पर रहूँगा, मुझे मेरे सभी भक्त “गोविंदा” नाम से पुकारेंगे।
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इन सात पवित्र पहाड़ियों पर, मेरे लिए एक मंदिर बनाया जाएगा, और हर दिन मुझे देखने के लिए बड़ी संख्या में भक्त आते रहेंगे।
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भक्त पहाड़ी पर चढ़ते हुए, अथवा मंदिर में मेरे सामने मुझे, गोविंदा नाम से पुकारेंगे।
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मुनिराज कृपया ध्यान दीजिए, हर समय मुझे इस नाम से पुकारे जाते वक्त, तुम्हें भी स्मरण किया जाएगा क्योंकि इस प्रेम भरे नाम का कारण तुम हो..
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यदि किसी भी कारणवश कोई भक्त मंदिर में आने में असमर्थ रहेगा, और मेरे गोविंदा नाम का स्मरण करेगा। तब उसकी सारी आवश्यकता मैं पूरी करूँगा।
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सात पहाड़ियों पर चढ़ते हुए जो गोविंदा नाम को पुकारेगा, उन सभी श्रद्धालुओं को मैं मोक्ष दूँगा।
जय जय श्री राधे
Day: June 1, 2022
એક ખૂબ જ સુંદર સ્ત્રી વિમાનમાં પ્રવેશી અને પોતાની સીટની શોધમાં આંખો ફેરવી રહી.
તેણે જોયું કે તેની બેઠક આવા વ્યક્તિની બાજુમાં હતી. જેની પાસે બંને હાથ નથી.
મહિલાએ વિકલાંગ વ્યક્તિની પાસે બેસવામાં સંકોચ અનુભવ્યો.
‘સુંદર’ મહિલાએ એરહોસ્ટેસને કહ્યું, “હું આ સીટ પર આરામથી મુસાફરી કરી શકીશ નહીં.
કારણ કે બાજુની સીટ પર બેઠેલી વ્યક્તિના બંને હાથ નથી.
સુંદર મહિલાએ એરહોસ્ટેસને તેની સીટ બદલવાની વિનંતી કરી.
અસ્વસ્થતા સાથે, એરહોસ્ટેસે પૂછ્યું, “મૅડમ તમે મને કારણ કહી શકશો..?”
‘સુંદર’ મહિલાએ જવાબ આપ્યો “મને આવા લોકો પસંદ નથી. હું આવા વ્યક્તિની બાજુમાં બેસીને મુસાફરી કરી શકીશ નહીં.”
સુશિક્ષિત અને નમ્ર દેખાતી મહિલાની આ વાત સાંભળીને એરહોસ્ટેસ આશ્ચર્યચકિત થઈ ગઈ.
મહિલાએ ફરી એકવાર એરહોસ્ટેસને આગ્રહ કર્યો કે “હું એ સીટ પર બેસી શકતો નથી. તો મને બીજી સીટ આપો.”
એરહોસ્ટેસે ખાલી સીટની શોધમાં ચારે તરફ નજર કરી, પણ તેને કોઈ ખાલી સીટ દેખાઈ નહિ.
એરહોસ્ટેસે મહિલાને કહ્યું કે મેડમ આ ઈકોનોમી ક્લાસમાં કોઈ સીટ ખાલી નથી, પરંતુ પેસેન્જરોની સુવિધાનું ધ્યાન રાખવાની જવાબદારી અમારી છે.
તેથી હું પ્લેનના કેપ્ટન સાથે વાત કરું છું. મહેરબાની કરીને ત્યાં સુધી થોડી ધીરજ રાખો.” આટલું કહીને પરિચારિકા કેપ્ટન સાથે વાત કરવા ગઈ.
થોડા સમય પછી, રોલ કર્યા પછી, તેણે સ્ત્રીને કહ્યું, “મૅમ! તમને થયેલી અસુવિધા માટે હું ખૂબ જ દિલગીર છું.
આ આખા પ્લેનમાં માત્ર એક સીટ ખાલી છે અને તે ફર્સ્ટ ક્લાસની છે. મેં અમારી ટીમ સાથે વાત કરી અને અમે એક અસાધારણ નિર્ણય લીધો. અમારી કંપનીના ઈતિહાસમાં પહેલીવાર કોઈ પેસેન્જરને ઈકોનોમી ક્લાસમાંથી ફર્સ્ટ ક્લાસમાં શિફ્ટ કરવાનું કામ થઈ રહ્યું છે.”
‘સુંદર’ મહિલા ખૂબ જ ખુશ હતી, પરંતુ તેણી તેની પ્રતિક્રિયા વ્યક્ત કરે અને એક શબ્દ બોલે તે પહેલાં …
એરહોસ્ટેસ વિકલાંગ અને હેન્ડલેસ માણસ તરફ આગળ વધી અને નમ્રતાથી તેને પૂછ્યું
“સર, શું તમે ફર્સ્ટ ક્લાસમાં જઈ શકશો..? કારણ કે અમે નથી ઈચ્છતા કે તમે અસંસ્કારી મુસાફર સાથે મુસાફરી કરીને પરેશાન થાવ.
આ સાંભળીને તમામ મુસાફરોએ તાળીઓ પાડીને આ નિર્ણયને આવકાર્યો હતો. તે ખૂબ જ સુંદર દેખાતી સ્ત્રી હવે શરમથી આંખો ઉંચી કરી શકતી નહોતી.
પછી વિકલાંગ માણસ ઊભો થયો અને બોલ્યો,”હું એક ભૂતપૂર્વ સૈનિક છું. અને એક ઓપરેશન દરમિયાન કાશ્મીર બોર્ડર પર બોમ્બ વિસ્ફોટમાં મેં મારા બંને હાથ ગુમાવ્યા.
સૌથી પહેલા તો જ્યારે મેં આ દેવીજીની ચર્ચા સાંભળી ત્યારે હું વિચારમાં પડી ગયો. કોની સલામતી માટે મેં પણ જીવ જોખમમાં મુકીને હાથ ગુમાવ્યો..?
પરંતુ જ્યારે મેં તમારા બધાની પ્રતિક્રિયા જોઈ, હવે મને મારી જાત પર ગર્વ છે કે મેં મારા દેશ અને દેશવાસીઓ માટે મારા બંને હાથ ગુમાવ્યા છે.
અને એમ કહીને તે ફર્સ્ટ ક્લાસમાં ગયો.
‘સુંદર’ મહિલા એકદમ અપમાનમાં માથું નમાવીને સીટ પર બેઠી.
વાર્તાનો સારઃ- વિચારોમાં ઉદારતા ન હોય તો આવી સુંદરતાનું કોઈ મૂલ્ય નથી.
જ્યારે મેં તે વાંચ્યું ત્યારે તે મારા હૃદયને સ્પર્શી ગયું, તેથી જ હું આ પોસ્ટ કરી રહ્યો છું.
WhatsApp ના એક ગ્રુપ માં આવેલ પોસ્ટ ની કોપી પેસ્ટ કરેલ છે..
♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️
👉 *ईश्वर का न्याय* 🏵️
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एक रोज एक महात्मा अपने शिष्य के साथ भ्रमण पर निकले। गुरुजी को ज्यादा इधर-उधर की बातें करना पसंद नहीं था, कम बोलना और शांतिपूर्वक अपना कर्म करना ही गुरू को प्रिय था। परन्तु शिष्य बहुत चपल था, उसे हमेशा इधर-उधर की बातें ही सूझती, उसे दूसरों की बातों में बड़ा ही आनंद मिलता था। चलते हुए जब वो तालाब से होकर गुजर रहे थे, तो उन्होंने देखा कि एक धीवर नदी में जाल डाले हुए है शिष्य यह सब देख खड़ा हो गया और धीवर को ‘अहिंसा परमोधर्म’ का उपदेश देने लगा। लेकिन धीवर कहाँ समझने वाला था, पहले उसने टालमटोल करनी चाही और बात जब बहुत बढ़ गयी तो शिष्य और धीवर के बीच झगड़ा शुरू हो गया। यह झगड़ा देख गुरूजी जो उनसे बहुत आगे बढ़ गए थे, लौटे और शिष्य को अपने साथ चलने को कहा एवं शिष्य को पकड़कर ले चलेगुरूजी ने अपने शिष्य से कहा- “बेटा हम जैसे साधुओं का काम सिर्फ समझाना है, लेकिन ईश्वर ने हमें दंड देने के लिए धरती पर नहीं भेजा है शिष्य ने पुछा- “महाराज! को तो बहुत से दण्डों के बारे में पता ही नही है और हमारे राज्य के राजा तो बहुतों को दण्ड ही नहीं देते हैं। तो आखिर इसको दण्ड कौन देगा? शिष्य की इस बात का जवाब देते हुए गुरूजी ने कहा- “बेटा! तुम निश्चिंत रहो इसे भी दण्ड देने वाली एक अलौकिक शक्ति इस दुनिया में मौजूद है जिसकी पहुँच सभी जगह है… ईश्वर की दृष्टि सब तरफ है और वो सब जगह पहुँच जाते हैं। इसलिए अभी तुम चलो, इस झगड़े में पड़ना गलत होगा, इसलिए इस झगड़े से दूर रहो शिष्य गुरुजी की बात सुनकर संतुष्ट हो गया और उनके साथ चल दिया इस बात के दो वर्ष बाद एक दिन गुरूजी और शिष्य दोनों उसी तालाब से होकर गुजरे, शिष्य अब दो साल पहले की वह धीवर वाली घटना भूल चुका था। उन्होंने उसी तालाब के पास देखा कि एक घायल साँप बहुत कष्ट में था उसे हजारों चीटियाँ नोच-नोच कर खा रही थीं। शिष्य ने यह दृश्य देखा और उससे रहा नहीं गया, दया से उसका ह्रदय पिघल गया था। वह सर्प को चींटियों से बचाने के लिए जाने ही वाला था कि गुरूजी ने उसके हाथ पकड़ लिए और उसे जाने से मना करते हुए कहा-“ बेटा! इसे अपने कर्मों का फल भोगने दो। यदि अभी तुमने इसे बचाया तो इस बेचारे को फिर से दुसरे जन्म में यह दुःख भोगने होंगे क्योंकि कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है शिष्य ने गुरूजी से पुछा- “गुरूजी इसने ऐसा कौन-सा कर्म किया है जो इस दुर्दशा में यह फँसा है? गुरू महाराज बोले- “यह वही धीवर है जिसे तुम पिछले वर्ष इसी स्थान पर मछली न मारने का उपदेश दे रहे थे और वह तुम्हारे साथ लड़ने के लिए आग-बबूला हुआ जा रहा था। वे मछलियाँ ही चींटीयाँ है जो इसे नोच-नोचकर खा रही है यह सुनते ही बड़े आश्चर्य से शिष्य ने कहा- गुरूजी, यह तो बड़ा ही विचित्र न्याय है गुरुजी ने कहा- “बेटा! इसी लोक में स्वर्ग-नरक के सारे दृश्य मौजूद हैं, हर क्षण तुम्हें ईश्वर के न्याय के नमूने देखने को मिल सकते हैं। चाहे तुम्हारे कर्म शुभ हो या अशुभ उसका फल तुम्हें भोगना ही पड़ता है। इसलिए ही वेद में भगवान ने उपदेश देते हुए कहा है अपने किये कर्म को हमेशा याद रखो, यह विचारते रहो कि तुमने क्या किया है, क्योंकि ये सच है कि तुमको वह भोगना पड़ेगा। जीवन का हर क्षण कीमती है इसलिए इसे बुरे कर्म के साथ व्यर्थ जाने मत दो। अपने खाते में हमेशा अच्छे कर्मों की बढ़ोत्तरी करो क्योंकि तुम्हारे अच्छे कर्मों का परिणाम बहुत सुखद रूप से मिलेगा इसका उल्टा भी उतना ही सही है, तुम्हारे बुरे कर्मों का फल भी एक दिन बुरे तरीके से भुगतना पड़ेगा। इसलिए कर्मों पर ध्यान दो क्योंकि वो ईश्वर हमेशा न्याय ही करता है।”
शिष्य बोला- “गुरुदेव तो क्या अगर कोई दुर्दशा में पडा हो तो उसे उसका कर्म मान कर उसकी मदद नहीं करनी चाहिए?” गुरुजी बोले- “करनी चाहिए, अवश्य करनी चाहिए। यहाँ पर तो मैने तुम्हें इसलिए रोक दिया क्योंकि मुझे पता था कि वह किस कर्म को भुगत रहा है। साथ ही मुझे तुमको ईश्वर के न्याय का नमूना भी दिखाना था। लेकिन अगर मै यह सब नहीं जानता तो उसकी मदद न करना मेरा पाप होता, इसलिए तब मै भी अवश्य उसकी मदद करता। शिष्य गुरुजी की बात स्पष्ट रूप से समझ चुका था।
दोस्तों! हम चाहे इस बात पर विश्वास करें या नहीं लेकिन यह शत्-प्रतिशत सच है कि ईश्वर हमेशा सही न्याय करते हैं। और उनके न्याय करने का सीधा सम्बन्ध हमारे अपने कर्मों से है। यदि हमने अपने जीवन में बहुत अच्छे कर्म किये हैं या अच्छे कर्म कर रहे हैं तो उसी के अनुरूप ईश्वर हमारे साथ न्याय करेंगे। यह जीवन हमें इसलिए मिला है ताकि हम कुछ ऐसे कार्य करें जिसको देखकर ईश्वर की आँखों में भी हमारे प्रति प्रेम छलक उठे।
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