Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक हीरा व्यापारी था जो हीरे का बहुत बड़ा विशेषज्ञ माना जाता था, किन्तु गंभीर बीमारी के चलते अल्प आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी . अपने पीछे वह अपनी पत्नी और बेटा छोड़ गया . जब बेटा बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने कहा –

“बेटा , मरने से पहले तुम्हारे पिताजी ये पत्थर छोड़ गए थे , तुम इसे लेकर बाज़ार जाओ और इसकी कीमत का पता लगा, ध्यान रहे कि तुम्हे केवल कीमत पता करनी है , इसे बेचना नहीं है.”

युवक पत्थर लेकर निकला, सबसे पहले उसे एक सब्जी बेचने वाली महिला मिली. ” अम्मा, तुम इस पत्थर के बदले मुझे क्या दे सकती हो ?” , युवक ने पूछा.

” देना ही है तो दो गाजरों के बदले मुझे ये दे दो…तौलने के काम आएगा.”- सब्जी वाली बोली.

युवक आगे बढ़ गया. इस बार वो एक दुकानदार के पास गया और उससे पत्थर की कीमत जानना चाही .
दुकानदार बोला ,” इसके बदले मैं अधिक से अधिक 500 रूपये दे सकता हूँ..देना हो तो दो नहीं तो आगे बढ़ जाओ.”

युवक इस बार एक सुनार के पास गया , सुनार ने पत्थर के बदले 20 हज़ार देने की बात की, फिर वह हीरे की एक प्रतिष्ठित दुकान पर गया वहां उसे पत्थर के बदले 1 लाख रूपये का प्रस्ताव मिला. और अंत में युवक शहर के सबसे बड़े हीरा विशेषज्ञ के पास पहुंचा और बोला, ” श्रीमान , कृपया इस पत्थर की कीमत बताने का कष्ट करें .”

विशेषज्ञ ने ध्यान से पत्थर का निरीक्षण किया और आश्चर्य से युवक की तरफ देखते हुए बोला ,” यह तो एक अमूल्य हीरा है , करोड़ों रूपये देकर भी ऐसा हीरा मिलना मुश्किल है.”

मित्रों , यदि हम गहराई से सोचें तो ऐसा ही मूल्यवान हमारा मानव जीवन भी है . यह अलग बात है कि हममें से बहुत से लोग इसकी कीमत नहीं जानते और सब्जी बेचने वाली महिला की तरह इसे मामूली समझा तुच्छ कामो में लगा देते हैं.

आइये हम प्रार्थना करें कि ईश्वर हमें इस मूल्यवान जीवन को समझने की सद्बुद्धि दे और हम हीरे के विशेषज्ञ की तरह इस जीवन का मूल्य आंक सकें .

मुनिद्राई मिश्रा

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डेल कारनेगी ने अपना एक संस्मरण लिखा है कि उसे एक पत्र मिला। डेल कारनेगी ने लिंकन के ऊपर एक व्याख्यान दिया था रेडियो पर और उसमें कुछ तारीख की भूल हो गई। तो लिंकन की भक्त किसी महिला ने उसे पत्र लिखा, खूब गालियां दीं–कि ‘तुम्हें जब तारीखों तक का पता नहीं है, तो तुमने यह ज़ुर्रत कैसे की कि तुम रेडियो पर व्याख्यान करने जाओ? पहले अपनी तारीखें ठीक करो। यह तो छोटे-छोटे बच्चे भी जानते हैं। इतना भी तुम्हें पता नहीं है! तुम इसके लिए क्षमा मांगो–सामूहिक। यह लिंकन का अपमान है।’

ऐसा उसने कुछ-कुछ लिखा होगा। डेल कारनेगी भी गुस्से में आ गया पत्र को पढ़ कर। खून खौल गया। उसने भी उत्तर लिखा–उतना ही जहरीला। लेकिन रात हो गई थी। और उस वक्त तो नौकर भी जा चुका था, तो उसने सोचा, सुबह डाल देंगे। चिट्ठी रख कर टेबल पर, सो गया। गाली-गलौंच जितनी देनी थी, वे उसने भी दे डालीं। निश्चिंत, हलका मन हो कर सो गया।

सुबह उठा, लिफ़ाफ़े में बंद करते वक्त उसने फिर पत्र को पढ़ा। लगा यह जरा ज्यादती है। बात तो स्त्री की ठीक ही है कि मुझसे भूल तो हुई है। बजाय क्षमा मांगने के मैं और उलटा नाराज हो रहा हूं!

पत्र उसने सरका कर रख दिया, दूसरा पत्र लिखा। दूसरा पत्र लिखते वक्त उसे खयाल आया कि अगर मैंने रात ही यह पत्र पोस्ट करवा दिया होता, अगर नौकर न गया होता, तो…? सुबह में इतना फर्क हो गया। उसने दोनों पत्र देखेः दोनो में जमीन-आसमान का भेद है! तो उसने सोचाः यह दूसरा पत्र भी अभी नहीं डालूंगा। जल्दी तो कुछ है नहीं, सांझ को फिर एक दफा देखूंगा।

सांझ को देखा, तो तीसरा पत्र लिखा। अब तो बहुत फर्क हो गया। फिर तो उसे लगा कि अभी जल्दी क्या है; वह स्त्री कोई पागल नहीं हुई जा रही है मेरे पत्र के लिए! सात दिन रुका। रोज सुबह पढ़ता-बदलता; रोज शाम पढ़ता-बदलता। सातवें दिन जब वह निश्चिंत हो गया कि अब कुछ बदलने को नहीं बचा, लेकिन पत्र का पूरा रूप बदल गया। कहां वह घृणा और जहर से भरा पत्र था; कहां यह मैत्री और प्रेम से भरा पत्र हो गया।

इस पत्र में उसने लिखा था कि मैं अनुगृहीत हूं। और कभी अगर इस गांव आओ, मेरे गांव आओ, तो मेरे घर ठहरना। मिल कर मुझे खुशी होगी। मेरे ज्ञान में वर्धन होगा। लिंकन के संबंध में मैं ज्यादा नहीं जानता; और जानना चाहता हूं। और क्षमा मांगता हूं, जो भूल हो गई।

छह महिने बाद वह स्त्री उसके गांव आई। इस बीच पत्र-व्यवहार होता रहा। उसके घर ठहरी। और तुम हैरान होओगे कि हालत क्या हुई! वह उसकी पत्नी हो गई! ऐसे ही वह प्रेम में पड़ा।

वह पहला पत्र…तो सारी संभावनाएं समाप्त हो जाती थीं दो आदमियों के बीच की।

जब बुरा करना हो, तो थोड़ा ठहराना। कल कर लेना, परसों कर लेना। जल्दी क्या है!

●आचार्य रजनीश-ओशो/ कहै कबीर मैं पूरा पाया

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भाग्य….

एक रेस्टोरेंट में कई बार देखा गया कि, एक व्यक्ति (भिखारी) आता है और भीड़ का लाभ उठाकर नाश्ता कर चुपके से बिना पैसे, दिए निकल जाता है। एक दिन जब वह खा रहा था तो एक आदमी ने चुपके से दुकान के मालिक को बताया कि यह भाई भीड़ का लाभ उठाएगा और बिना बिल चुकाए निकल जाएगा।

उसकी बात सुनकर रेस्टोरेंट का मालिक मुस्कराते हुए बोला – उसे बिना कुछ कहे जाने दो, हम इसके बारे में बाद में बात करेंगे। हमेशा की तरह भाई ने नाश्ता करके इधर-उधर देखा और भीड़ का लाभ उठाकर चुपचाप चला गया। उसके जाने के बाद, उसने रेस्टोरेंट के मालिक से पूछा कि मुझे बताओ कि आपने उस व्यक्ति को क्यों जाने दिया।

रेस्टोरेंट के मालिक द्वारा दिया गया जवाब – आप अकेले नहीं हो, कई भाइयों ने उसे देखा है और मुझे उसके बारे में बताया है। वह रेस्टोरेंट के सामने बैठता है और जब देखता है कि भीड़ है, तो वह चुपके से खाना खा लेता है। मैंने हमेशा इसे नज़रअंदाज़ किया और कभी उसे रोका नहीं, उसे कभी पकड़ा नहीं और ना ही कभी उसका अपमान करने की कोशिश की.. क्योंकि मुझे लगता है कि मेरी दुकान में भीड़ इस भाई की प्रार्थना की वजह से है

वह मेरे रेस्टोरेंट के सामने बैठे हुए प्रार्थना करता है कि, जल्दी इस रेस्टोरेंट में भीड़ हो तो मैं जल्दी से अंदर जा सकूँ, खा सकूँ और निकल सकूँ। और निश्चित रूप से जब वह अंदर आता है तो हमेशा भीड़ होती है। तो ये भीड़ भी शायद उसकी “प्रार्थना” से है

शायद इसीलिए कहते है कि मत करो घमंड इतना कि मैं किसी को खिला रहा हूँ.. क्या पता की हम खुद ही किसके भाग्य से खा रहे हैँ !

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અમેરિકાની જગપ્રસિધ્ધ હાવર્ડ યુનિવર્સિટિના પ્રમુખને મળવા માટે એક વૃદ્ધ દંપતિ આવે છે.સેક્રેટરી બહેનને જણાવે છે કે અમારે ૧૦ મિનિટ માટે સાહેબને મળવું છે…સેક્રેટરીએ આ દંપતિના મેલાધેલા કપડા જોઇને સોગયું મોઢુ કરીને કંહ્યુ કે સાહેબ આજે ખુબ કામમાં છે ,મળી શકશે નહી…

દંપતિ- કંઈ વાંધો નહી અમે અંહિયા રાહ જોશું…

સાંજ પડવા આવે છે …સેક્રેટરીને દયા આવે છે..સાહેબને વિનંતિ કરે છે કે આ દંપતિને પાંચ મિનિટ માટે મળી લે..
પ્રેસિડેન્ટ- બોલો શું કામ છે ?

વૃધ્ધ- આ ફોટો જુવો ..આ મારો દિકરો છે..આ તમારી યુનિવર્સિટિમાં વર્ષો પહેલા ભણતો હતો..હવે તે આ દુનિયામાં નથી..અમારે તેનું સ્મારક ઉભું કરવું છે..

પ્રેસિડેન્ટ- જુવો આ રીતે ધણા આવે છે..મૃતક વિધ્ધાર્થિઓના પુતળા અમે યુનિવર્સિટિમાં ઉભા કરવા માંડિયે તો.. આ યુનિવર્સિટિ કબ્રસ્તાન થઈ જાય…

વૃધ્ધ- ના..ના..અમારે પુતળુ મુકવું નથી… અમારે તો તેની યાદમાં એક મજાની ઇમારત તમારી યુનિવર્સિટિને તેના નામે બનાવી ભેટ કરવી છે..

પ્રેસિડેન્ટ -તમને ખબર છે ? ઇમારત બનાવવા માટે કેટલો ખર્ચ થાય ? ૭૫ લાખ ડોલર જોઇએ…તમારી હાલત જોતા લાગે છે કે તમારી પાસે ૭૫ ડોલર પણ નહી હોય.

વૃદ્ધ દંપતિને અચરજ થયું ..અને કંહ્યુ કે બસ ૭૫ લાખ ડોલરનો જ ખર્ચ થશે ?

પ્રેસિડેંટ સાહેબનો આભાર માનીને તે દંપતિ એટલે કે મી.એન્ડ મીસિસ લેલેન્ડ સ્ટેનફોર્ડ નામનું દંપતિ ત્યાંથી નિકળી ગયું…અને કેલિફોર્નિયા રાજયના પાલો-આલ્ટો ગામે આવ્યા અને પોતાના દિકરાના નામે યુનિવર્સિટી બિલ્ડીંગ બાંધવાનું શરૂ કર્યુ..જેનું નામ છે જગપ્રસિધ્ધ “સ્ટેનફોર્ડ યુનિવર્સિટિ” આ યુનિવર્સિટી આજે દુનિયામાં વન નંબરની યુનિવર્સિટિ છે. ૮૧૮૦ એકર જમીનમાં આ યુનિવર્સિટી પથરાયેલ છે. આ યુનિવર્સિટિમાં આજે જગતના ૩૨ નોબલ પુરસ્કાર વિજેતા કામ કરે છે.

બોધ- માણસના દિદાર કે તેમને પહેરલા કપડાંથી માણસની સાચી ઓળખ થતી નથી .

સૌજન્ય – ડો.રાણિંગા

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महाभारत


चीन की सभ्यता 5000 साल पुरानी मानी जाती है, लगभग महाभारत काल का समय,भी यही है तो चीन का उल्लेख महाभारत में क्यों नहीं है ?

देखिए महाभारत काल में अखंड भारत के मुख्यत: 16 महाजनपदों (कुरु, पंचाल, शूरसेन, वत्स, कोशल, मल्ल, काशी, अंग, मगध, वृज्जि, चे‍दि, मत्स्य, अश्मक, अवंति, गांधार और कंबोज) के अंतर्गत 200 से अधिक जनपद थे। दार्द, हूण, हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकय, वाल्हीक बलख, अभिसार (राजौरी), कश्मीर, मद्र, यदु, तृसु, खांडव, सौवीर सौराष्ट्र, शल्य, यवन, किरात, निषाद, उशीनर, धनीप, कौशाम्बी, विदेही, अंग, प्राग्ज्योतिष (असम), घंग, मालव, कलिंग, कर्णाटक, पांडय, अनूप, विन्ध्य, मलय, द्रविड़, चोल, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, आंध्र, सिंहल, आभीर अहीर, तंवर, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ लगभग 200 जनपद से अधिक जनपदों का महाभारत में उल्लेख मिलता है।

महाभारत काल में म्लेच्छ और यवन को विदेशी माना जाता था। भारत में भी इनके कुछ क्षेत्र हो चले थे। हालांकि इन विदेशियों में भारत से बाहर जाकर बसे लोग ही अधिक थे।
देखा जाए तो भारतीयों ने ही अरब और योरप के अधिकतर क्षेत्रों पर शासन करके अपने कुल, संस्कृति और धर्म को बढ़ाया था। उस काल में भारत दुनिया का सबसे आधुनिक देश था और सभी लोग यहां आकर बसने और व्यापार आदि करने के प्रति उत्सुक रहते थे। भारतीय लोगों ने भी दुनिया के कई हिस्सों में पहुंचकर वहां शासन की एक नए देश को गढ़ा है, इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, कंबोडिया, वियतनाम, थाईलैंड इसके बचे हुए उदाहरण है। भारत के ऐसे कई उपनिवेश थे जहां पर भारतीय धर्म और संस्कृति का प्रचलन था। ऋषि गर्ग को यवनाचार्य कहते थे। यह भी कहा जाता है कि अर्जुन की आदिवासी पत्नी उलूपी स्वयं अमेरिका की थी। धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी कंदहार और पांडु की पत्नी माद्री ईरान के राजा सेल्यूकस (शल्य) की बहिन थी। ऐसे उल्लेख मिलता है कि एक बार मुनि वेद व्यास और उनके पुत्र शुकदेव आदि जो अमेरिका मेँ थे। शुक ने पिता से कोई प्रश्न पूछा। व्यास जी इस बारे मेँ चूंकि पहले बता चुके थे, अत उन्होंने उत्तर न देते हुए शुक को आदेश दिया कि शुक तुम मिथिला (नेपाल) जाओ और यही प्रश्न राजा जनक से पूछना
तब शुक अमेरिका से नेपाल जाना पड़ा था।कहते हैं कि वे उस काल के हवाई जहाज से जिस मार्ग से निकले उसका विवरण एक सुन्दर श्लोक में है:- “

मेरोहर्रेश्च द्वे वर्षे हेमवँते तत:। क्रमेणेव समागम्य भारतं वर्ष मासदत्।। सदृष्टवा विविधान देशान चीन हूण निषेवितान।
अर्थात = शुकदेव अमेरिका से यूरोप (हरिवर्ष, हूण, होकर चीन और फिर मिथिला पहुंचे। पुराणों हरि बंदर को कहा है। वर्ष माने देश। बंदर लाल मुंह वाले होते हैं। यूरोपवासी के मुंह लाल होते हैं। अत:हरिवर्ष को यूरोप कहा है। हूणदेश हंगरी है यह शुकदेव के हवाई जहाज का मार्ग था।…
अमेरिकन महाद्वीप के बोलीविया (वर्तमान में पेरू और चिली) में हिन्दुओं ने प्राचीनकाल में अपनी बस्तियां बनाईं और कृषि का भी विकास किया। यहां के प्राचीन मंदिरों के द्वार पर विरोचन, सूर्य द्वार, चन्द्र द्वार, नाग आदि सब कुछ हिन्दू धर्म समान हैं।
जम्बू द्वीप के वर्ण में अमेरिका का उल्लेख भी मिलता है। पारसी, यजीदी, पैगन, सबाईन, मुशरिक, कुरैश आदि प्रचीन जाति को हिन्दू धर्म की प्राचीन शाखा माना जाता है।

ऋग्वेद में सात पहियों वाले हवाई जहाज का भी वर्णन है।-
“सोमा पूषण रजसो विमानं सप्तचक्रम् रथम् विश्वार्भन्वम्।”…
इसके अलावा ऋग्वेद संहिता में पनडुब्बी का उल्लेख भी मिलता है, “यास्ते पूषन्नावो अन्त:समुद्रे हिरण्मयी रन्तिरिक्षे चरन्ति। ताभिर्यासि दूतां सूर्यस्यकामेन कृतश्रव इच्छभान:”।

श्रीकृष्ण और अर्जुन अग्नि यान (अश्वतरी) से समुद्र द्वारा उद्धालक ऋषि को आर्यावर्त लाने के लिए पाताल गए।
भीम, नकुल और सहदेव भी विदेश गए थे। अवसर था युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का। यह महान ऋषियोँ और राजाओँ को निमंत्रण देने गए। यह लोग चारों दिशाओं में गए। कृष्ण-अर्जुन का अग्नियान अति आधुनिक थी। कहते हैं कि कृष्ण और बलराम एक बोट के सहारे ही नदी मार्ग से बहुत कम समय में मथुरा से द्वारिका में पहुंच जाते थे। भारतवासी जहाजों पर चढ़कर जलयुद्ध करते थे, यह ज्ञात वैदिक साहित्य में तुग्र ऋषि के उपाख्यान से, रामायण में कैवर्तों की कथा से तथा लोकसाहित्य में रघु की दिग्विजय से स्पष्ट हो जाती है।भारत में सिंधु, गंगा, सरस्वती और ब्रह्मपुत्र ऐसी नदियां हैं जिस पर पौराणिक काल में नौका, जहाज आदि के चलने का उल्लेख मिलता है। कुछ विद्वानों का मत है कि भारत और शत्तेल अरब की खाड़ी तथा फरात (Euphrates) नदी पर बसे प्राचीन खल्द (Chaldea) देश के बीच ईसा से 3,000 वर्ष पूर्व जहाजों से आवागमन होता था। भारत के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में जहाज और समुद्रयात्रा के अनेक उल्लेख है (ऋक् 1. 25. 7, 1. 48. 3, 1. 56. 2, 7. 88. 3-4 इत्यादि)। याज्ञवल्क्य सहिता, मार्कंडेय तथा अन्य पुराणों में भी अनेक स्थलों पर जहाजों तथा समुद्रयात्रा संबंधित कथाएं और वार्ताएं हैं। मनुसंहिता में जहाज के यात्रियों से संबंधित नियमों का वर्णन है। अमेरिका का उल्लेख पुराणों में पाताललोक, नागलोक आदि कहकर बताया गया है। इस अंबरिष भी कहते थे। जैसे मेक्सिको को मक्षिका कहा जाता था। कहते हैं कि मेक्सिको के लोग भारतीय वंश के हैं। वे भारतीयों जैसी रोटी थापते हैं, पान, चूना, तमाखू आदि चबाते हैं। नववधू को ससुराल भेजने समय उनकी प्रथाएं, दंतकथाएं, उपदेश आदि भारतीयों जैसे ही होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के एक ओर मेक्सिको है तो दूसरी ओर कनाडा। अब इस कनाडा नाम के बारे में कहा जाता है कि यह भारतीय ऋषि कणाद के नाम पर रखा गया था। यह बात डेरोथी चपलीन नाम के एक लेखक ने अपने ग्रंथ में उद्धत की थी। कनाडा के उत्तर में अलास्का नाम का एक क्षेत्र है। पुराणों अनुसार कुबेर की नगरी अलकापुरी हिमालय के उत्तर में थी। यह अलास्का अलका से ही प्रेरित जान पड़ता है।

अमेरिका में शिव, गणेश, नरसिंह आदि देवताओं की मूर्तियां तथा शिलालेख आदि का पाया जाने इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि प्रचीनकाल में अमेरिका में भारतीय लोगों का निवास था। इसके बारे में विस्तार से वर्णन आपको भिक्षु चमनलाल द्वारा लिखित पुस्तक ‘हिन्दू अमेरिका’ में चित्रों सहित मिलेगा। दक्षिण अमेरिका में उरुग्वे करने एक क्षेत्र विशेष है जो विष्णु के एक नाम उरुगाव से प्रेरित है और इसी तरह ग्वाटेमाल को गौतमालय का अपभ्रंष माना जाता है। ब्यूनस आयरिश वास्तव में भुवनेश्वर से प्रेरित है। अर्जेंटीना को अर्जुनस्थान का अपभ्रंष माना जाता है। पांडवों का स्थापति मय दानव था। विश्‍वकर्मा के साथ मिलकर इसने द्वारिका के निर्माण में सहयोग दिया था। इसी ने इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया था। कहते हैं कि अमेरिका के प्रचीन खंडहर उसी के द्वारा निर्मित हैं। यही माया सभ्यता का जनक माना जाता है। इस सभ्यता का प्राचीन ग्रंथ है पोपोल वूह (popol vuh)। पोपोल वूह में सृष्टि उत्पत्ति के पूर्व की जो स्थिति वर्णित है कुछ कुछ ऐसी ही वेदों भी उल्लेखित है। उसी पोपोल वूह ग्रन्थ में अरण्यवासी यानि असुरों से देवों के संघर्ष का वर्णन उसी प्रकार से मिलता है जैसे कि वेदों में मिलता है।
पूरी दुनिया हिन्दू सनातनियों भारतवासियों द्वारा ही स्थापित की हुए है अलग अलग इस्थानों के मौसम और बदले समय और कलियुग के प्रभाव के कारण धर्म से विमुख हो गया।

Posted in जीवन चरित्र

आदि शंकराचार्य


एक बालक जिसने 4 वर्ष की उम्र में अपने पिता को खो दिया। 8 वर्ष की उम्र में अपनी मां से सन्यास की आज्ञा ले ली। 12 की उम्र में श्रुति और स्मृति शास्त्रों में निपुणता प्राप्त कर ली।

16 की उम्र में अद्वैत वेदांत का दर्शन दे दिया जिस पर आज तक सबसे ज्यादा रिसर्च हुई है और जारी है। 20 की उम्र में उपनिषद,योगसूत्र,भगवतगीता जैसी गूढ़ पुस्तकों पर टिकाएं लिख डालीं। 25 की उम्र तक तो देश के समस्त विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया।

सनातन धर्म से विमुख हो चुके लोगों को पुनश्च मुख्य धारा में लाने के लिए देश भर में मठ-मंदिर,धामों की स्थापना की,जो आज भी सनातन धर्म की दिग्दिगांत में फैली कीर्ति का मूल बने हुए हैं।

अंततः 32 की उम्र में केदारनाथ में समाधि ली।

ऐसे भगवान शंकाराचार्य की अपने जीवन काल में की गई दिग्विजय यात्राओं का मैप देखिए और कल्पना कीजिये आज से 1300 वर्ष पहले एक व्यक्ति द्वारा पूरे देश भर में भ्रमण कैसे संभव हुआ होगा।

रत्नगर्भा भारत-भूमि पर जन्में सर्वश्रेष्ठ मानव का हम सब पर ऋण है,आइए उनकी राह पर चल उस ऋषि-ऋण को कम करने का संकल्प लें।

जयतु भारतं🙏🙏

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक, रामायण - Ramayan

यह रामायण सीरियल का वह दृश्य है जहाँ एक अदभुद घटना घटी ( सत्य घटना )

1985-86 में समुद्र के किनारे पर रामायण सीरियल की शूटिंग चल रही थी .. राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल एक शिला पर बैठे हुए थे.. समुद्र के पास में ही एक छोटा सा गाँव था, उस गाँव के लोग कभी कभी रामायण की शूटिंग देखने आ जाते थे …

एक दिन उस गाँव में एक बच्चे को सर्प ने डस लिया, बच्चा एक दम बेहोश हो ग
या और उसके मुँह से सफेद झाग आने लगे …! जैसे ही उसकी माँ को पता चला, वो अपने बच्चे को गोदी में लेकर वहां दौड़ी जहाँ रामायण की शूटिंग चल रही थी… सभी रामायण की शूटिंग में व्यस्त थे ..महिला रोती रोती एक दम वहाँ पहुँची और जहाँ रामजी ( अरुण गोविल ) बैठे हुए थे…
महिला ने बच्चे को रामजी के चरणों मे पटक दिया और जोर जोर से रोने लगी, रामजी मेरे बच्चे को बचाओ..इसे सर्प ने डस लिया है ..आप भगवान हो, मेरे बच्चे को बचाओ … प्रभु मेरे बच्चे को बचाओ …🙏

सभी शूटिंग करने वाले हैरान होकर महिला की तरफ देखते रहे, कुछ समय के लिये शूटिंग रोक दी गई ….. जब महिला रामजी के सामने जोर जोर से रोने लगी, तब रामजी एक दम खड़े हो गए और बच्चे को देख कर उसके ऊपर अपना हाथ फेरने लगे …

और जैसे ही रामजी ने बच्चे पर हाथ फेरा बच्चे को होश आने लगा , आँखे खोलने लगा…सभी शूटिंग करने वाले लोग और कुछ महिला के साथ आये लोग दंग रह गए और बच्चा खड़ा हो गया.. !

महिला का भाव देखो कि उधर एक अभिनेता के अंदर प्रभु की शक्ति पैदा हो गयी !

यह घटना खुद अरुण गोविल ने अपने मुँह से सुनाई थी …. 1995 में किसी stage प्रोग्राम में उनको आमंत्रित किया, तब किसी व्यक्ति ने arun govil जी से पूछा कि रामायण की शूटिंग करते समय आपका कोई ऐसा अनुभव जो आपके लिए अविस्मरणीय रहा हो …. तब उन्होंने यह घटना सभी को बताई …

जब सच्चे भाव और भावना से पत्थर में भगवान प्रकट हो सकते हैं तो व्यक्ति में क्यों नहीं.. कौन कहता सच्चे मन से पुकारे तो भगवान प्रकट नहीं होते…..

सियाराम मय सब जग जानी,
करहु प्रणाम जोर जुग पानी…!

जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी …।।

जय श्रीराम 🙏🌹

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गली में कोई आवाज लगा रहा था । दाल ले लो …चावल ले लो ।

“ओ भैया ! कैसे दे रहे रहे हो ?” तीसरी मजिल से एक महिला ने आवाज लगाई थी । वह आदमी अपनी साइकिल पर तीन कट्टे चावल और हेंडिल पर दो थैलों में दाल लादे हुए था ।

“चावल चालीस का किलो है और मसूर सत्तर की किलो है ।”

“रुको मैं नीचे आती हूँ ।” कहकर महिला नीचे आने लगी । वह साइकिल लिए धूप में खड़ा रहा । कुछ देर बाद वह बाहर आई ।

“अरे! भैया , तुम लोग भी न हमें खूब चूना लगाते हो । चालीस रुपये किलो तो बहुत अच्छा चावल आता है और दाल भी महंगी है …सही – सही भाव लगा लो। “

“बहिन जी ! इस से कम न दे सकूँगा । आप जानती नहीं हैं कि चावल और दाल को पैदा होने में सौ से एक सौ बीस दिन लगते हैं । एक किलो चावल पर बीस-तीस लीटर पानी लगता है । हर दिन डर लगता है हमें कि कुछ अनहोनी न हो जाय मौसम की । चार महीने पसीना बहाने के बाद भी कई बार फसल के दाम नहीं मिलते । आप लोग किसानों की बात खूब करते हैं पर कोई नहीं जानता कि हर साल दो लाख किसान मर जाते हैं । हमारे पास आप जैसे बड़े मकान नहीं , सुविधा के सामान नहीं । खुद ही निकल पड़े हैं इस लोहे के घोड़े पर लादकर ।”

“सब जानती हूँ भैया पर वहाँ स्टोर में तो सस्ता मिलता है ।” वह अपनी बात ऊपर करते हुए बोली ।

“बहिन जी , दो रुपए किलो का आलू चार सौ रुपये किलो में चिप्स में , बीस रुपये किलो का चावल सात-आठ सौ रुपये किलो और हमारी अस्सी रुपये किलो की मिर्च पीसकर डिब्बों ले तीन चार सौ रुपये किलो आपको सस्ती लगती । नहीं दे सकेंगे जी ।” वह आगे बढ्ने लगा ।

“लगता है तुम टी वी खूब देखते हो ।” महिला बोली ।

“हाँ, कभी-कभी देखते हैं अपना मज़ाक बनते हुए । खेती की जमीन पर कब्जे , पानी का नीचे जाता स्तर , खाद, बीज के बढ़ते भाव और किसानों की बेइज्जती तो आप भी जानती होंगी । यहाँ कोई बड़ा आदमी करोड़ों लेकर भाग जाय तो कुछ नहीं , हम कर्ज न चुका पाएँ तो बैंक दीवार पर नाम का नोटिस चस्पा कर देता है । सब के सामने बेइज्जत करता है , कुर्की लाता है । बहिन चाँदी तो बिचौलिये काट रहे हैं ।”

“लगता है राजनीति भी जानते हो तुम ।”

“हम तो शिकार हैं राजनीति के । जब इस देश की नदियां सूख जाएगी , जंगल खत्म हो जाएँगे , जब खेतों पर इमारतें होंगी तब इंसान लड़ेगा रोटी के हर टुकड़े के लिए मगर तब तक बहुत देर हो चुकी होगी …फिर ये फेक्टरिया भूख मारने की दवाई बनाएँगी या एक -दूसरे को मारने की गोलियां ।” वह बोला ।

“बात तो पढे-लिखो जैसी कर रहे हो भैया । कहाँ तक पढे हो ?”

“सरकारी कालेज से बी ए किया है , पर हमारे लिए नौकरी नहीं है । हम अपनी भाषा में जो पढे हैं । यहाँ तो सबको चटर -पटर अङ्ग्रेज़ी चाहिए और ससुर गाली देंगे अपनी भाषा में । अनपढ़ करेंगे राज तो होगी ही मेहनतकश पर गाज ।” वह अपना पसीना पोंछते हुए बोला ।

“वोट तो तुम भी देते हो न ।”

“वोट भी हम देते हैं , जान भी हम देते हैं , भीड़ भी हम होते हैं और मरने को सेना में भी हम जाते हैं । आम आदमी बस साल में एक दिन नारा लगाता है जय जवान जय किसान और हो गए महान ।” वह बोला । धूप बहुत तेज थी सो सीधे सवाल किया ,” बहिन जी ! कितना लेना है ?”

“पाँच किलो चावल और दो किलो दाल ।” महिला दाल देखते हुए बोली ।

“ठीक है दस रुपया कम दे देना कुल पैसे में ।” और उसने साइकिल स्टेंड पर खड़ी कर दी । महिला उसका लाल तमतमाया हुआ चेहरा देखती रही । वह सामान तोलने में लग गया ।

“लो बहिन जी , आपका सामान तोल दिया ।

महिला ने सामान लिया और बोली , ” ऊपर जाकर पैसे देती हूँ भैया । “

कुछ देर बाद एक टोकरी उसने लटका दी जिसमें उसके पूरे पैसे थे । एक पानी की बोतल थी और कुछ लपेटकर रखा हुआ था ।

उसने पैसे और पानी ले लिया ।

“बहिन आपने ज्यादा पैसे रख दिये हैं । दस रुपये काटे नहीं ।” वह चिल्लाया ।

“पहले खाना ले लो …समझना मैंने रुपये ले लिए ….तुमने बहिन कहा है मुझे , खाना जरूर खाना ।” उसने वहीं बैठकर खाना शुरू कर दिया था । तीसरे मंजिल से कुछ टपका था मगर तपती धूप में दिखा नहीं था। हथेलियों पर राहत की दो गरम बूंद आत्मीयता के मोतियों के बिखर गए थे । टोकरी धीरे-धीरे कर ऊपर चली गई थी और उसके हाथ ऊपर उठ गए थे दुआ में एक अनजान बहन के लिए ।

रामचंद्र आर्य